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Thursday, October 23, 2014

अखरा-दोखरा

अखरा-दोखरा 


देवघरसँ अबैत रही, जसीडीहक मुसाफि‍र खानामे एक गोटे भेटला। भेटला कि सिमटीक जे कुरसी बनल छल ओइपर पहिनेसँ असगरे बैसल रही, ऊहो आबि कऽ बैसला। कनीकाल तँ ऊहो चुपे रहला आ हमहूँ चुपे रहलौं मुदा जखनि चुनौटी निकालि तमाकुल चुनबैक सुर-सार केलौं आकि बजला-
एक जुम बढ़ा देबै।
पहिल दिनक भेँट, केना कऽ पुछिति‍यनि जे छोट जुम खाइ छी आकि नमहर। अपने अनुमान करए लगलौं जे मुँहक एकोटा दाँत नै टुटल देखै छियनि तइसँ भरिसक छोटे जुम खाइत हेता। सएह करैक मन भेल, मुदा खुएला पछाति जँ अजश भेल तखनि खुएलहा फले की हएत! तँए अहगरसँ तँ नै मुदा मझोलका घानी लगा देलि‍ऐ। तरहत्‍थीपर औंठा चलए लगल। धिया-पुताक खेल जहानि एतएसँ चलिहेँ बुढ़ि‍या, धोकड़ी समैइहेँ बुढ़िया...। बाँहिपर ओंगरी चलए लगल।
घंटा भरि गाड़ी पछुआएल। भरिपोख दुनू गोटेक बीच गपो-सप्‍प भेल आ दूबेर चाहो-पान चलल। गाड़ीक एके कोठलीमे बैसि‍ कऽ भरि रस्‍ता गप-सप्‍प करैत एलौं। दरभंगा अबैक रहए। हायाघाटमे जखनि‍ ओ उतरए लगला तँ कहलनि-
फेर कहि‍या भेँट-घाँट हएब आकि‍ नै हएब।” 


अंतिम पेजसँ...........................................................




ओना बेसी थकान नै रहए हायेघाटसँ आएल रही, मुदा पाछू पुछड़ी जोड़ि बजलौं-
बौआ, थाकनिसँ देह भरियाएल अछि, पहिने नहा-खा कऽ कि‍छु समए आराम करब तखनि मन खनहन हएत। पछाति‍ सविस्‍तर बात करबह।
थकान सुनि बेटा अपन जवाबदेही बूझि गुमे रहि गेल।¦३४२¦
 
१० फरवरी २०१४

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