नौमीक हकार
चारि
सालक हराएल संगीक फोन नम्बर देखि गुणानन्द रिसिव करैत बाजल-
“के, फलानन्द भाय?”
जवाब
भेटल-
“हँ। गामक पहिल चैती नवरात्रा पूजा प्रारम्भ भेल, केना नै अबितौं। मुदा
अखनि पूजाक धुमसाहीमे पड़ल छी तँए आरो गप भेँट भेलापर हएत, अखनि एतबे जे काल्हि
नौमी छी, तँए सवेर-सकाल पहुँच जाइ।”
फलानन्दक फोन सुनि गुणानन्द किछुओ तर्क-वितर्क नै
केलक। अगुरवारे हकार मानि लेलक। अन्तिममे.....................................
काजक
ढंग बदलने समैक बचत सेहो होइते छै। तत्-खनात आगूमे कोनो काज नै देखि फलानन्द
बाजल-
“बाबू, ओना तँ मेला छी, हवा-बिहाड़िक समए छीहे तेतबे किए, गामक मेला
छी, सभकेँ कि एके रंग ओकाति छै जे भगवतीक दर्शन एके रंग करत। तँए किछु नव वस्त्र
सेहो भगवतीकेँ चढ़बितियनि।”
सुशील
बजला-
“भगवतीक तँ खोंइछ भरले जेतनि। मुदा एकटा बात जे कहए चाहै छेलियऽ ओहो सुनि
लैह। अपना ऐठाम दस दिनक पूजा-प्रक्रिया अछि जखनि कि गौहाटीमे तीन दिनक। ओतए
बंगाली पद्धतिक अनुरूप पूजा होइए। से गौहाटीए टामे नै, पूर्वांचलक बंगाल, बंगला
देश, त्रिपुरा, मेघालय, असाम इत्यादि क्षेत्रमे होइए। अपन मिथिला जे बिहारक
पनरह-बीसटा जिला आ नेपालक किछु जिला अछि...।”
बजैकाल
तँ सुशील बाजि गेला मुदा बिच्चेमे मन कहलकनि, अखनि फलानन्दक उमेरे की भेल जे
ई सभ बूझत।
तही
बीच समेनाक गाड़ी आबि गेल।¦१,११६¦
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