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Thursday, October 23, 2014

असगरे

असगरे











साइठम बर्खक अन्‍ति‍‍म दि‍न आ एकसठम बर्खक पहि‍ल दि‍नक सीमानपर बैसि‍ अभया दीदी असगरे अपन कोठरीमे सालक जन्‍म-मृत्‍युक उपलक्षमे साल गि‍रह मना रहल छथि‍। साठि‍ सालक बीतल जि‍नगीमे दोसर परि‍वारकेँ अपना सन नै देखि‍, मने-मन कुहसि‍ रहल छथि‍। जइसँ अपनापर क्षोभ भऽ रहल छन्‍हि‍ जे जि‍नगीक चारि‍मपनमे पएर रोपि‍ रहल छी, मुदा एतेटा जि‍नगीमे की पेलौं? तँ कि‍छु ने। की केलौं? ‘तँ सभ कुछ।’ कि‍ए ने पेलौं? ‘सएह ने बुझहै छी!’ अपन जि‍नगीक बीच अपन काज मनमे औंढ़ मारि‍ रहल छन्‍हि‍। समाजक पहि‍ल महि‍ला छी, जे बी.ए. पास कऽ सरकारी कार्यालय सम्‍हारि‍ चुकल छी, अपन अध्‍ययन-मनन एहेन रहल जे एक नै हजारो-लाखो परि‍वारकेँ बाट-घाट देखा बटोही बना भवसागर टपा सकै छी, मुदा भेल की? भरि‍सक ई ने तँ भेल जे चरि‍त्रवानसँ आचारवान आ वि‍चारकसँ वि‍चारवान होइत एते ने कि‍यो अगुआ जाइए जे असगरे गाछक फुनगी जकाँ सभसँ अलग भऽ टपि‍ जाइए। मुदा सेहो तँ ओइ दि‍न ने वि‍चारि‍तौं जइ दि‍न समाजक बीच एकटा नव जि‍नगीक सूत्र-पात केलौं? मुदा पढ़ल-लि‍खल रहि‍तो समैक गति‍केँ कि‍ए ने बूझि‍ पेलौं? भऽ सकैए जे जइ सूक्ष्‍म दृष्‍टि‍सँ समैक गति‍केँ पकड़ल जाइए, भरि‍सक से दृष्‍टि‍ए ने खुजल। वि‍चारसँ बि‍सबि‍साएल अभया दीदीक मन घोर-मट्ठा भऽ गेलनि‍। मनमे कि‍छु एबे ने करनि‍ जे हारल जि‍नगीकेँ आब केना सम्‍हारब। तैबीच मनमे ईहो होइत रहनि‍ जे फुटा कऽ घोर आकि‍ मट्ठा पीबैसँ नीक दूधे पीब ली। मुदा बि‍नु बूझलमे हूसल तँ ओकरा माफो कएल जा सकैए। जानल-मानलमे हूसब तँ कायरता भेल। जेना-जेना कुशि‍यारक रस पानि‍सँ गुड़ वा राब बनैए, गुड़सँ चीनी बनि‍ सकताइत जाइए आ मि‍सरी बनैत-बनैत पाथर जकाँ सक्कत भऽ जाइए, तहि‍ना ने अपनो लूरि‍-बूधि‍ अछि‍। दोसर संग पुरैबला नै होइक कारण केतौ एहेनठाम ने तँ नुकाएल अछि‍ जे नुकाएले-नुकाएल फगुआ जकाँ समाजोक संग धूर-खेल करैए। अभया दीदीक वि‍चार ललकलनि‍-
जीता जि‍नगी हारि‍ मानि‍ हटब रणभूमि‍सँ भागब भेल। जँ जि‍नगी रणभूमि‍ नै पहुँच कर्मभूमि‍सँ हटि‍ चलत तँ वीरभूमि‍ केना पहुँचत? नै! पाछू नै हटब, सुचालि‍ छोड़ि‍ कुचालि‍ नै चलब।” 


अंतिम पेजसँ.................................................................





चारि‍ बजे अभया दीदी नोकरी छोड़ैक कागत आँफि‍समे दैत सड़कपर एली। सड़कपर अबि‍ते जेना नमहर साँस छुटलनि‍। दलालीक जुग छी, कि‍छु लेन-देनमे हेरा-फेरी हएत, मुदा काजो तँ कम्‍प्‍यूटरेसँ होइ छै। सएह भेलनि‍। तीन बीघा जमीन अभया दीदी कीनि‍ लेलनि‍।
जमीन कीनला पछाति‍ अभया दीदीक नजरि‍ खेत दि‍स बढ़लनि‍। बेटाकेँ कि‍सानी जि‍नगी जीबैक लूरि‍क पाठ पढ़ौलनि‍। एग्रीकल्‍चर ग्रेजुएटक रूपमे बेटाकेँ देखए चाहली जइमे असीम सम्‍भवना भेटलनि‍। मुदा ओइ सम्‍भावना लेल तँ केतौ-ने-केतौ क्रि‍याक रूप धड़ए पड़ै छै। जेते खेत छन्‍हि‍ तेतेककेँ ओ समुचि‍त बेवस्‍था करती। अपनासँ लऽ कऽ खेत-पटबैक ओरि‍यान करती, नीक बीआ, नीक खाद आनि‍ खेती करती। मुदा केते करती काजेमे हरा जेती।
जाबे धरि‍ अभया दीदी अपन सभ बेवस्‍था गाममे ठीक केलनि‍ ताबे धरि‍ भाड़ाक घरमे रहली, पछाति‍ नैहरक समाजमे आबि‍ बसि‍ गेली।
आइ अपन जि‍नगीकेँ नि‍अमि‍त बनबैत अभया दीदी अपना बले‍ गाए पोसि‍ पचास कि‍लो दूध प्रति‍दि‍न पैदा कऽ रहली अछि‍, मुदा तेहेन अड़ोस-पड़ोसमे कहाँ कि‍यो छन्‍हि‍। नि‍ठाही असगरे...। गाछक फुनगी जकाँ असगरे...।¦१,५५७¦

२४ जुलाई २०१४

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