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Saturday, October 18, 2014

रिजल्‍ट


रिजल्‍ट



हिल जनवरीकेँ रवि दिन रहने दोसर दिन स्‍कूलो खुजत आ बड़ादिनक छुट्टीसँ पहिने भेल परीछाक रिजल्‍टो नि‍कलत। ओना शि‍क्षक अभिभावक आ वि‍द्यार्थीक बीच नव बर्खक उपहारक समए रहने खुशीक वातावरण पसरले अछि‍। केना नै पसरौ! दुर्गापूजा अबैसँ पहि‍ने जे खुशी मनमे उमकैत ओ तँ सप्‍तमी पूजा धरि रहबे करैत। ठाँउ करब, फूल-पातसँ पूजा करब, काँच माटिक दि‍यारीसँ साँझ देब, स्‍तुति करब, मुदा आँखि (डिम्‍हा) पड़ला पछाति‍ जे उत्‍सवक मेला शुरू होइए तेकर पछातिए ने खगल-भरल हाथक वोध होइए।
गामेक हाइ स्‍कूलक नअम कक्षामे गोबर गणेश सेहो पढ़ैत। ओकरो रि‍जल्‍ट नि‍कलत। जहि‍ना आन-आन वि‍द्यार्थीमे खुशी तहि‍ना ओकरो। एक तँ परीछा देला पछाति‍ बड़ादि‍नक छुट्टीक उछाही तैपर आगू बढ़ैक अवसरि कि‍ए ने रहतै। ओना छुट्टीक उछाही सभ छुट्टीमे होइ छै मुदा से बड़ादि‍नक छुट्टीमे नहियेँ रहै, मुदा कि‍छुओ तँ जरूर रहए। सालमे केतेको छुट्टी वि‍द्यालयमे होइए, जइमे कि‍छु स्‍थाइओ आ अस्‍थाइओ होइ छै। ओना बाबन-ति‍रपनटा रवि‍ अपन अठबारे हि‍स्‍सा लइये लेने अछि, मुदा तँए आन-आनक कोनो सीमा-सरहद नै छै? छइहे। कि‍छु पावनि‍-ति‍हारक नामे अछि, कि‍छु मौसमक नामे अछि तँ कि‍छु समैक नामे। खैर जे होउ, मुदा जहि‍ना घटनकेँ बढ़न कहल जाइ छै तहि‍ना छोट दि‍नकेँ पैघ दि‍न अर्थात् बड़ादि‍न कहि‍ आराम करैक अवसरि‍ देल जाइए!
केतबो धड़फड़ केलक गोबर गणेश तैयो साढ़े दस बाजि‍ये गेलै। एक तँ स्‍कूलो जेबामे कि‍छु बि‍लम भाइए गेल रहै मुदा रि‍जल्‍टक खुशीक हकार बँटबे ने केने रहए। तँए वि‍द्यालय जाइसँ पहिने हकार सेहो बँटैक छइहे। वि‍दा होइसँ पहिने बाबा लग जा बाजल-
बाबा, आइ रि‍जल्‍ट नि‍कलत।



अंतिम पेज....................................................... 


गोबर गणेशक वि‍चार श्‍यामचरणकेँ जँचलनि। मनमे उठलनि जे भरिसक हमहूँ सभ (पुरुष पात्र) अति‍क्रमण करै छी। से नै तँ दुनू गोटेक (पति-पत्नी) दि‍शा दू किए भऽ जाइए। परि‍वारक भीतर जँ वैचारिक समरूपता रहत तँ मतभेद किए हएत। सभ तँ बालो-बच्‍चा आ परि‍वारोकेँ नीक्के चाहै छिऐ।
अाङ्गगन पहुँच दादीकेँ गोड़ लागि‍ गोबर गणेश पाशा बदलैत बाजल-
दादी, पास केलिऐ। तेते ने बैटरीबला पङ्खा, बत्ती, छोटका बड़का कम्‍प्‍यूटर, आरो कि कहाँ आबि‍ गेल अछि जे घरे बैसल इंजीनियर-डाक्‍टर बनि जेबौ।
पोताक वि‍चार सुनि दादी एते अह्लादित भऽ गेली जे लाख सम्‍हारला पछातिओ मुहसँ खसिये पड़लनि-
रौ गोबरा, सभ दि‍न तूँ गोबरे रहमेँ।
दादीक बात गोबर गणेश नै बूझि पौलक। अपनापर सुनैक शङ्का भेलै। ‘सुनैक शङ्का’ ई जे गोबराएल कहलक आकि गोबर गणेश। सभ तँ गोबर गणेश कहैए। भऽ सकै छै बि‍नु दाँतक बूढ़ मुँह कि‍छु बजाइए गेल होइ। केहेन-केहेन बीखधरक तँ बीख बि‍नु दाँते नि‍कलि‍ते ने छै, दादी तँ सहजे बूढ़ दादीए भेली। बाजल किछु ने चाहक गि‍लास नेने बाबा लग पहुँचल। हाथमे चाहक गि‍लास पकड़बैत बाजल-
बाबा, अहाँ खुशी भेलौं कि‍ने?”
बौआ, जँ तूँ खुशी तँ हमहूँ खुशी।¦२,३४३¦   ‍ 

१६ जनवरी २०१४

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