मरूभूमि
जहिना
मनुखक तीन अवस्था- सूतल, जागल आ सपनाएल- होइए, तहिना भूमिक सेहो होइ छै। कौलेजक
छात्रा गीता जेहने जागल तेहने रीता मरियाएल, मुदा दुनूक दियादी परिवार तँए घनिष्ठता
बेसी। बेसी घनिष्ठताक आरो-आरो कारण छै, एकठाम घर सेहो छै, बच्चेसँ, जहियेसँ इस्कूल
जाए-आबए लगल आ एक्के किलासमे नाओं लिखा पढ़ए लगल, तहियेसँ दुनू इस्कूलक संगी
बनि आरो घनिष्ठताक घनत्वकेँ बढ़ौलक। ओना दियादीक डाह सेहो होइ छै। माने कटा-कटी,
मारा-मारी, गारा-गारी, मुदा से रीता-गीताक परिवारक बीच कहियो ने रहल, तँए दुनू
बहिन रीता-गीताक बीच किए हएत। एक तँ ओहुना गामो-समाजमे बेटाक अपेक्षा बेटीक बीच
घनिष्ठता बेसी होइए, तहूमे दुनू पढ़बो-िलखबो करिते अछि। ओना एकरंगाह वेपारीओ
आ गिरहस्तोक बीच जिनगीक दौड़मे मुँह फुल्ला-फुल्ली होइए जे से एक-दोसरसँ आगू
बढ़ैले किछु उचित अनुचित भाइए जाइ छै, मुदा तैयो आगूक दिलाशामे प्रतियोगिक
रूप पकड़िए लइ छै। से एके दिस नै, दुनू दिस पकड़ै छै। उचितो दिस पकड़ै छै आ
अनुचितो दिस। दुनूक अपन-अपन लक्ष्य सेहो छै। तँए कि सभ वेपारीओ आकि सभ गिरहस्तोमे
अहिना रहै छै? नै! एना रहबो केना ने करत? सभ दिनसँ होइत आएल अछि
जे फनिगा[1]केँ
चुट्टी बीछि-बीछि खाइ छै, चुट्टीकेँ बीछि-बीछि बेंग, बेंगकेँ बीछि-बीछि साँप
आ साँपकेँ गरूड़, तँए ने पर्यावरण नियंत्रणमे अछि। तहिना जँ छोट वेपारीकेँ आकि
गिरहस्तेकेँ मझोलका नै बीछि-बीछि खाए, मझोलकाकेँ पुरलाहा नै खाए, पुरलाहाकेँ
परपुरलाहा नै खाएत, तखनि पर्यावरण नियंत्रणमे रहत केना! बच्चेसँ दुनू दियादी
बहिनक बीच रहल जे जखनि जे काज करै छी तखनि तहीपर नजरि गड़ा करब, जइसँ दीन दिन
दिनो-दिन नीक बनैत जाएत। नीक आकि अधला केतौ एकेबेर हड़-हड़ा कऽ थोड़े भऽ जाइए,
ओ तँ होइत-होइत होइए। दुनू दुनूक बीच सम्बन्ध बच्चेमे एहेन बनि गेल जे बिना
संग केने इस्कूलो ने जाइत। भलहिं तैयार भेलो पछाति किए ने एक-आध घंटा बिलमए
पड़ै। मुदा से कोनो अधला नै। निरर्थक घोड़-दौड़मे समैक महते की रहैए, जे अनेरे कियो
समैक नांगरि पकड़ि दौड़ा-दौड़ीमे हकमैत रहत। घरसँ बहराइते दुनूक बीच एहेन बनि गेल
छै जे बाटमे जेकरे नजरि कोनो नव वस्तुपर पड़तै तँ ओ ओकरे जिनगीक खेलौना बूझि
एक-दोसरकेँ पूछि, बक-झक करैत एक सीमापर अँटकि एक राय बना सीमान दऽ दइए।
जेना-जेना
विद्यालय घुसकैत गेल तहिना-तहिना रीता-गीताक जिनगी आ जिनगीक विचार सेहो
घुसकैत गेल। आब, दुनू कौलेजमे पढ़ैए। घरेक गोसाउनिक गीतटा नै भूगोल पढ़ि
दुनियोँक गप-सप्प करए लगल अछि।
जहिना घरसँ इस्कूलक रस्तामे निकलिते कोनो वस्तुकेँ
ज्ञान बूझि धियानक करखानामे दुनू औंट-पौर दूधकेँ दही जनमबैत। ओना बच्चेक विद्यालयसँ
दुनू भूगोल पढ़ने, मरूभूमिक चर्च किताबोमे देखने आ कानोसँ सुनने। मुदा भूगोलमे
दुनू ओही दिनसँ भरमि गेल जइ दिन किताबमे पढ़लक जे दुनियाँ गोल छै, आँखिक
सोझमे उतरे-दछिने आकि पूबे-पछिमे खूब नमती धरती छै। ऊपर अकास छै तँ ने ओकरे
ठेकान छै जे केते ऊपरमे अछि आ ने तरे दिस पताल छै तँ केते तरमे अछि। एक भग्गू
नाप, मानि दुनू एक राय बना नेने छल जे किताबक बात दोसर होइ छै आ आँखिक सोझक बात
दोसर। तँए मरूभूमिकेँ किताबक बात मानि दुनू.......................अंतिम पेजसँ..........................................................................
गीताक
विचार सुनि रीता हँूहकारी तँ भरि देलक मुदा मन झुरझुराइते रहलै। मनो केना नै
झुरझुरैतै? पहिने जी आकि पहिने दाँत? देखलो पछाति तँ लोक
बजिते अछि जे जी-दाँत देखि पसिन करू। मुदा तैयो मनकेँ थीर करैत रीता बाजल-
“बहिन, खुरपी लेमे आकि बेंट?”
रीता-
“हमरा-तोरा काल्हि कौलेजमे प्रोफेसर साहैबक सोझहामे अपन-अपन प्रश्नक हएत
भेँट।”
मुस्कीआइत
दुनू गोटे मुहथरिसँ आगू बढ़ल।¦१,२१४¦
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