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Thursday, October 23, 2014

चैन-बेचैन

चैन-बेचैन 


नव हवाक वेगमे गौआँ सभकेँ मन फुड़फुडेलनि‍। फुड़फुड़ेबोक चाही। फुड़फुड़ेलनि‍ ई जे वृन्‍दावनमे गीताक जानकार ज्ञानी दास छथि‍, हुनकासँ पनरह दि‍न प्रवचन करौल जाए। गामक धर्मक काज तँ गौवेंक भेल तँए सबहक भागीदारी होइ। अद्रा नक्षत्रक मेघ जकाँ समाजमे हुमरल। ओना ज्ञानी दास भागवतो आ गीतो-रामायण कहि‍ते छथि‍ तँए हुनके आनल जाए। चंदाक गुम-गुमी चलि‍ते छल आकि‍ एक गोटे बाजि‍ गेला-
सोलहन्नी खर्च देब, अहाँ बेवस्‍था करैक भार लि‍अ।
मुदा प्रस्‍तावपर सहमत नै बनल ‘जेकर चून तेकर पून’ भऽ जाएत। तखनि‍ ई हुअए जे ‘चंदा सौंसे गामसँ हुअए आ जे घटतै ओ देथुन।’
मुदा बि‍च्‍चेमे दोसर प्रश्न उठि‍ गेल जे घटतै तखनि‍ ने ओ देथुन मुदा जँ बढ़ि‍ जाए। घमरथन शुरू भेल, होइत-हबाइत फेरि सहमत बनल जे धर्मोक काजक कि‍ कमी छै, फेरि‍ दोबरा कऽ भऽ जाएत। 


अंतिम पेजसँ..............................................


असोथकि‍त भऽ रमेश निर्णए करैत बाजल-
काजक दौरमे जइ-जइ वस्‍तुक जरूरति‍ होइए ओकर ओरि‍यान शुरू करैसँ पहि‍ने जँ कऽ नेने रहब तखने ओइ काजकेँ बि‍सवासू बना सकै छी। नै तँ अभावगक आगि‍ मनकेँ थीरे ने हुअ देत।
दोसर दि‍न जानिए कऽ प्रवचन सुनए रमेश नै गेल। अपने मन धि‍क्कारैत रहै जे जेतबो सुनि‍-बूझि‍ करैले डेग बढ़ेलौं, से तँ समहरि‍ए ने रहल अछि‍ आ तैपर सँ आरो सुनि‍ माथकेँ भरि‍याएब नीक नै।¦९३६¦

०९ मार्च २०१४

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