Pages

Friday, October 17, 2014

नीक बोल


नीक बोल






कौल्हुका साढ़े चारि‍ बजेक ड्यूटी पूरि‍‍ पढ़ुआ भाय सेवा मुक्‍ति‍क आदेश पत्र नेने भोरे गाम पहुँचला। सि‍ताएल नढ़ि‍या जकाँ पत्नी देखि‍ बि‍नु कि‍छु बजने चाह बनबए गेली। ओना दूटा पुतोहुओ छन्‍हि‍ मुदा ओ दुनू बहरबैइए छथि‍न। जहि‍यासँ भौजी एली तहि‍येसँ नवकी भौजीक नाओंसँ वि‍भूषि‍त रहली जे अखनो छथि‍ए। भाति‍जो-पोता सभ भौजीए कहै छन्‍हि‍ मुदा तइले एको पाइ रोख-मान नै होइ छन्‍हि‍। ओना अपनो मन बुढ़ाड़ी नहि‍येँ मानै छन्‍हि‍ तेकर कारण चुल्हि‍ तरक काज रहलनि‍। जे मन फुड़ल, जेना मन फुड़ल तेना बना कऽ खेलौं।
नवके धेलहा कपमे चाहो आ गि‍लासमे पानि‍ओ नेने पढ़ुआ भाइक आगूमे रखि‍ देलनि‍। चाह-पानि‍क स्‍वागत देखि‍ भाइक मन खुशी भेलनि‍। मनमे उठलनि‍ जे पत्नीकेँ कहि‍ दि‍यनि‍ जे सेवा-नि‍वृत्ति‍ भऽ आबि‍ गेलौं। मुदा लगले भेलनि‍ जे जाबे नै बाजब ताबे भारो तँ नहि‍येँ बुझती, तइसँ नीक जे चुपे रही। मुदा पति‍-पत्नीक बीच तँ चुपो-चुपी नहि‍येँ रहल जा सकैए। पानि‍ पीब, चाहक घोंट लगबि‍ते पढ़ुआ भाय बजला-
बड़ सुन्नर चाह अछि‍।” 


अन्‍तिममे.......................... 


पत्नीक बोल सुनि‍ पढ़ुआ भाय थकथका गेला। थकथका ई गेला जे सचमुच परि‍वार खण्‍डि‍त भऽ गेल। बहरबैया कमेनि‍हार तँ रहलौं मुदा घरक नोन-तेलक भाँज कहि‍यो नै बूझि‍ सकलौं, जे कमाएल ओ खर्चक भाँज नै बुझलनि‍ आ जे खर्च केलनि‍ ओ उपैति‍क भाँज नै बुझलनि‍। पसीना कमाएल जँ फूसि‍-फासि‍मे चलि‍ जाएत, तखनि‍ परि‍वार केना ठाढ़ हएत। मुदा जे समए हाथसँ नि‍कलि‍ गेल, पश्चाताप केला पछाति‍ भाइए की सकैए। मुदा एहनो तँ भाइए सकैए जे दौग कऽ धारमे कुदी। खैर जे होउ, परि‍वार छी दीके-कि‍-सीके ठाढ़ तँ अछि‍ए। जखनि‍ जगह बदलत तँ जि‍नगीओ कि‍ए ने बदलत, करेज खोलि‍ बजला-
आब अहींक राजमे आबि‍ गेलौं।  
मौगी जानि‍ ठकै छी, दसटा पुरुखमे एकटा मौगी मौगी रहत आकि‍ सासुर-मात्रि‍कक अणे खेलौना बनि‍ जाएत।¦५७०¦

१३ मार्च २०१४


No comments:

Post a Comment