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Thursday, October 23, 2014

उनटन

उनटन











अधरति‍यामे करि‍याकाकीक नीन टुटलनि‍। भकुआएले मने लालकाकाकेँ उठबैत बजली-
नीन छी की जागल। कनी उठू ते।
ओना लालकाका जगले रहथि‍। कौल्हका काज मनमे घुड़ि‍याइत रहनि‍। काल्हि‍ बोरिंग गड़ाएब, मि‍स्‍त्री सबेरे सात बजे पहुँचैक समए देने अछि‍। तैबीच आरो जोगाड़ करैक अछि‍। काज करैबला, चीज-बौस, सभ कि‍छु जगहपर जेतए बोरिंग गाड़ल जाएत ओतए पहुँचबैक अछि‍; जँ से नै मुसतैदी रखब तँ अनेरे काजमे लटपटी लगैत रहत, जेते लटपटी लगत तेते काज पछुआइत रहत। तहूमे आब कि‍ दादाबला समए रहल जे काज करैबला बोनि‍हार मरल आकि‍ जीबैए सेहो पुछि‍नि‍हार नै। आब तँ सत-सत बेर खुशामद करि‍यौ, हार्ड लीकरबला चाह पीअबि‍यौ, पान सौ नम्‍बर जर्दा पत्ती देल पान खुअबि‍यौ, तैपर सँ चारि‍टा पुड़ि‍या शि‍खरक दऽ दि‍यौ, तखनि‍ ओकर आशा करि‍यौ। मुदा से अपन लोक नै छथि‍। एक जुआनक लोक तँ छथि‍ए। ओ अपन भरि‍ दि‍नक बोनि‍एटा नै बुझै छथि‍ ओइ काजमे अपन भवि‍स देखै छथि‍। एकटा बोरिंग जँ दस बीघा खेत पटबैक पानि‍ दइक क्षमता रखैए तँ जैठाम बोरिंग हएत, तैठाम दसो बीघा खेतबलाकेँ आशा जगबे कएल। मुदा फेर नजरि‍ दोसर दि‍स बढ़लनि‍, पान सौ बीघाक गाम अछि‍, सए बीघासँ ऊपरे ओहेन जमीन अछि‍ जे पानिएमे सोलहन्नी डुमल रहैए। अन्नक उपजाकेँ पानि‍ खा जाइए आ पानि‍केँ केना उपजा कऽ खाएब से लूरि‍ए ने अछि‍। तँए गामक चौथाइ ओहि‍ना गेल। तेकर अति‍रि‍क्‍त घर-घराड़ी, पोखरि‍-परती, गाछी-कलम सेहो भेल। अदहोसँ कम उपजाउ बँचल। बारहो मासक खेती लेल बारहो मास पानि‍क खगता होइ छै। भलहिं ओ केतौ पटौनी, तँ केतौ सिंचाइ, केतौ छीचा तँ केतौ उपछे कि‍ए ने होउ!
करि‍याकाकीक बात सुनि‍ लालकाका ऐ दुआरे अनठा देलनि‍ जे भरि‍सक सि‍रमा तर सिंगहारक पात नै छन्‍हि‍ तँए सपनए गेली अछि‍। जँ जागि‍ कऽ बाजल हेती तँ फेर दौहरौती; नै जँ सपनाएल हेती तँ अनेरे ने भकुआ जेती। मुदा से भेल नै। जहि‍ना कोनो कोनो वि‍द्यार्थीकेँ पढ़ैक कीड़ी माथमे कटैत रहै छै तहि‍ना करि‍याकाकीक मनमे सेहो कटैत रहनि‍। कटैत ई रहनि‍ जे कि‍रि‍ण डुमैबेर रस्‍तापर ठाढ़ छेली तँ एकटा अनठि‍या साइकि‍लपर चढ़ल बजैत जाइत रहए-
“तेते ने लोक लोहा पाइप धरतीमे गाड़ि‍-गाड़ि‍ पतालक पानि‍ सोंखने जाइए जे पताले सूखि‍ जाएत। जखने पताल सूखत आकि‍ जहि‍ना सीता धरतीमे समा गेली तहि‍ना धरती धँसि‍ पतालमे समा जाएत। जखने से भेल कि‍ उनटन हएत। उनटनमे के उनटि‍ कऽ सुनटि‍ जाएत आ पुनैट जाएत तेकर कोनो ठीक अछि‍। लोक तँ अपने तेहेन अगि‍मुतु भऽ गेल अछि‍ जे जानि‍ कऽ अँठि‍-अँठि‍ मुतैए; तँ पड़तै केकरा देहपर!” 


अंतिम पेजसँ............................................................................. 



तड़तड़ए लगैए तहि‍ना भेलनि‍। बजला कि‍छु ने। अपने घरपर वि‍दा होइत काज केनि‍हारकेँ कहलखि‍न-
ताबे अहाँ सभ खादि‍ खुनि‍ पानि‍ भरू।
दू गोटेकेँ संग केने लालकाका घरपर पहुँच पत्नीकेँ पुछलखि‍न-
दुनू गोरेकेँ घुमा कि‍ए देलि‍ऐ?”
पति‍क वि‍चारक बीच दृढ़ता देखि‍ करि‍याकाकी सहमि‍ गेली। बजली कि‍छु ने। मने-मन जेना खूनक घाेंट पीबए लगली आकि‍ दूधक से तँ ओ जानथि‍। मुदा लालकक्काक मनमे एते जरूर उठलनि‍ जे परि‍वारक काजकेँ जँ दृढ़ बनि‍ दृढ़तासँ नै पकड़ि‍ चलब तँ हवा-वि‍हाड़ि‍मे कखनि‍ कोन झाँटसँ झटा घर खस्‍सू भऽ जाएब तेकर ठेकाने ने रहत!¦१,१८७¦

६ जुलाई २०१४

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