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Tuesday, December 31, 2013

चोरूक्क झगड़ा


आने दि‍न जकाँ भि‍नसुरका चाह पीबए शि‍वशंकर, कि‍सुनदेव, सि‍ंहेश्वर, राधाकान्‍त आ मनोहर एक्केबेर चाहक दोकानपर पहुँचला। पाँचोक जेहने मि‍लान चाह दोकानक तेहने मि‍लान बात-वि‍चारक आ तेहने जि‍नगीक काजोक। ओना पाँचो पाँच टोलक, पाँच जाति‍क मुदा चाहक दोकानक एक्के नि‍अम बनौने जे अपने-अपने चाहक खरचे अपनो पीब आ समाजोकेँ पि‍आएब। भोज हेतै। हि‍साबो सोझराएले, पाँचो गोटे छह-छह दि‍नक भोजक खर्चाक हि‍स्‍सा तीस गि‍लास चाहक दाम एक्केठाम जमा करैत रहथि‍। जइसँ तीसो गि‍लासक दाममे अपनो तीसो दि‍न पीबैत आ चारू संगीओकेँ पीअबैत। ऐ बीचमे एकटा शंका नै करब जे के कहि‍या पीऔलनि‍। बही-खताबला दोकानदार पाहि‍ लगा कऽ नाम बजैत जे आइ फल्लाँक भोज छि‍यनि‍। ओना चाहक दोकान बजारक नै गामक चौक परहक। बजारक दोकानमे सि‍रि‍फ कारोबारक गप-सप्‍प चलैत मुदा गामक चौक अन्‍तर्राष्‍टीय होइत। जैठाम सएओ रंगक गप चलैत। केतो चीलमक चौखड़ी तँ केतौ ताड़ी-दारूक, केतो खेती-पथारीक तँ केतो शास्‍त्र-पुराणक। केतो पार्लियामेंट तँ केतो युनि‍वरसि‍टीक।
तीन दि‍नसँ गुलेति‍या दुनू परानी सौंसे गाम केता बेर भौड़ी दऽ देलक। भौड़ीक दइक कारण रहै जे शुरूहेक जेठुआ लगनमे गुलेतिया कबुतरीकेँ मेलासँ पटि‍या कऽ बि‍आह कऽ लेलक। कुमारि‍ कन्‍या कबुतरी नै बूझि‍ सकली जे दोती बर गुलेती अछि‍। मुदा जखनि‍ कबुतरी सासुर आएल तँ सासुक जगह सौतीनक गारजनीमे फँसि‍ गेल। जहि‍ना पड़बा नव-पुरान खोप नै चीन्‍हि‍ चहरेमे लोभा जाइए तहि‍ना। सौतीनक गारजनी कबुतरीकेँ पसि‍न ऐ दुआरे नै होइ जे जखनि‍ एके घरबलाक दुनू घरवाली छि‍ऐ तखनि‍ ओकर हुकुम कि‍ए मानबै। जहि‍ना ओकर घर छि‍ऐ तहि‍ना ने हमरो छी आ जौं अपन नीक दुआरे हमरासँ काज करा लि‍अए तखनि‍ अपना की रहत।
गुलेति‍या अपने पस्‍त रहए। होइ जे कहुना साँपो मरि‍ जाए आ लाठीओ ने टुटए। झगड़ो फड़ि‍छा जाए आ दुनू घरवालीसँ मि‍लानो रहि‍ जाए। मने-मन सोचए जे बाप-माएक बि‍आह केलहा पहि‍लुका घरवाली छी, जौं कोनो तरहक दुख हेतै आ वेचारी कलपत तँ पड़ि‍ जाएत। हो-न-हो हाथे-पएर लुल्ह भऽ जाए तखनि‍ की धोइ-धोइ चाटब। तँए बि‍आही घरवालीक डर होइ मुदा दोसरसँ ऐ दुआरे डराइत रहए जे, घटकैतीकाल घरवाली लग बाजि‍ गेल रहए जे बि‍आह-ति‍आह नै भेल अछि‍। रस्‍ते-रस्‍ते कबुतरीयो भाँज लगा नेने रहए जे अंगनामे एकटा स्‍त्रीगण छै। मुदा ई भाँज नै पाबि सकल जे सासु हएत आकि‍ सौतीन।
गामक लोक दुनूक बातो सुनि‍ लि‍अए आ अनठाइओ दि‍अए। अनठबैक कारण रहै जे सभ बुझैत जे सँए-बहुक झगड़ा कि‍ए होइ छै। ओना गुलेति‍यो आ कबुतरीयोमे सँ कि‍यो पाछू हटैले तैयारो नै। मरदे जकाँ गुलेतियाे लोक लग बाजे आ महि‍ले जकाँ कबुतरीयो।
तीन दि‍न गामक भौड़ी केला पछाति‍ चाहक दोकानपर गुलेतिया पहुँचल। गुलेतियाकेँ देखि‍ते चाहबला बाजल-
अखनि‍ गाममे केकरो चलती छै तँ ओ गुलेती भायकेँ अछि‍।
ब्रेन्‍चपर बैसल शि‍वशंकर टोनलक-
की चलती गुलेती भायकेँ छन्‍हि‍ हौ?”
मुँह-बनबैत दोकानदार बाजल-
अरे बा, चलती! तेहेन गुलेती भाय छथि‍ जे महाभारतक तीरो छोड़ै छथि‍ आ मेना-पौड़की मारैबला गुल्लीओ।
चाहक दोकानपर बैसल सभ दोकानदारक बात अकानैत मुदा अर्थे ने कि‍नको भेटनि‍। कि‍यो कि‍छु तँ कि‍यो कि‍छु।
तही बीच कबुतरी पहुँचल। गुलेतियाक बि‍ना रोच रखने बाजलि‍-
ऐ मरदाबाकेँ पुछि‍यौ जे अपनाकेँ कुमार कहि‍ कि‍ए बि‍आहि‍ अनलक।
सभ चुप। चुपो केना नै रहता। जखने मुद्दे-मुदालह सोझहामे सवाल-जवाब करत तँ पनचैतीओ अपने कऽ लेत तइले पंचक कोन काज छै। पत्नीक प्रश्नक उत्तर दैत गुलेतिया बाजल-

ई झूठ केना भेल। जैठाम तीस-तीस, चालीस-चालीसटा लोक बि‍आह करैए तैठाम तँ हम दुइएटा केलौं, तइले एकरा लगै कि‍ए छै। काेनो कि‍ हमहींटा अपनाकेँ कुमार कहलि‍ऐ आकि‍ सभ कहने हेतै?” ¦¦¦

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