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Friday, August 10, 2012

मनोज कुमार मंडल घासवाली


मनोज कुमार मंडल
घासवाली
गामक चौबटि‍यापर कि‍छु दर-दोकान रहने सभ दि‍न साँझ-भोर बड़ भीड़ रहैत छल। गाम नम्हर रहने पंचायत छल। अड़ोस-पड़ोसक गाममे ऐ ढंगक दर-दोकान नै रहलाक कारण ओहो गामक लोक सभ अही चौबटि‍यापर अबैत। लोक सभ चौबटि‍यापर आबि‍ साँझ-भाेर चाह-पान सेहो करैत आ अपन जरूरति‍क साैदा सेहो कीनि‍-बेसाहि कऽ घर लऽ जाइत। चौबटि‍या गामक बीच रहबाक कारण कि‍छु बेसि‍ये भीड़-भार रहैत छल। छोट-पैघ गि‍रहस्थ आ ठर-ठि‍केदार आबि‍ जन-मजदूर अढ़बैत छल। भीड़ भेने लोक सभ चाह-पानक दोकानपर चाहो-पान करैत आ रंग-बि‍रंगक गप-सप सेहो। गप-सपसँ बुझाइत जेना ई चौबटि‍या गामक राजनीति‍क अड्डा रहए।‍ दुपहरि‍याकेँ चौबटि‍या खाली रहैत छल। लोक अपन-अपन काम-काजमे रहैत छलाह। दोकानदारो सभ अपन-अपन दोकान बन्न कऽ घर खाइले चलि‍ जाइत छल। गामक कि‍छु निठल्लो सभ दुपहरि‍यामे ताश भँजैत रहैत छल।
एक दि‍न साँझू पहर चौबटि‍यापर बैसल रही‍। हमरा बगलमे कि‍छु लोक सेहो बैसल छलाह। चौबटि‍यापर तरकारी बेचैवाली सभ आबि‍ अपन-अपन दोकानक बोरा बि‍छा-बि‍छा लगा रहल छलीह। चौबटि‍यापर एकटा दुचारी घर रहए जे सदि‍खन खालि‍ये रहैत छल। कि‍छु गाजा पि‍याक सभ बैस गाजा पी रहल छलै। तखने गामक पुबरि‍या टोलसँ झुण्डक-झुण्डा बकरी नि‍कलि‍ रहल, चरैले जा रहल छल। बकरीक झुण्ड खूब नमहर छल। हमरा लागल तीसो-चालीसक ई झुण्ड अछि‍। हमरा बगलमे ओइ टोलक एक गोटे बैसल छलाह। हम हुनका पुछलि‍यनि‍- ई सभटा बकरी अहीं टोलक छी?”
ओ कहला- ई सभ बकरी तँ एक्के गोटाक छी।
सुनि‍ हमरा बड़ आश्चर्य भेल। हमर जि‍ज्ञासा कने आर बढ़ल। हम फेर पुछलि‍यनि‍- कि‍नक ई सभ बकरी छी?”
कहलनि‍-दीपवालीक।
हम छगुन्तामे पड़ि‍ गेल रही। संगे खुश सेहो भेल रही। सभसँ पहि‍ने तँ हमरा भेल जे एतेक बकरी एक गोटा सम्हारैत केना अछि‍। आ फेर भेल जे जखनि‍ ओ चरबए लेल जाइ अछि‍ तँ केना बुझैत अछि‍ जे कोन हमर छी आ कोन दोसराक।
दीपवालीक घर हमरा घरसँ कनि‍ये दूर हटि‍ कऽ छल। दू जाति हेबाक कारणे दू टोल छल। गाममे बहुतो जाति‍ रहए परंतु सभ जाति‍क घर कने अलग-अलग रहए। जाति‍क नाओंपर टोलक नाओं पड़ल अछि‍। हम दीपवालीसँ परि‍चि‍त रही। दीपवाली बुधनाक कनि‍याँ छथि‍। बुधना देखबामे रोगाहे जकाँ छथि‍। समए-समैपर दरभंगा गि‍लास फैक्ट्रीमे मास-दू मास कमा कऽ कि‍छु उपार्जन कऽ लैत छथि‍। जाधरि‍ बुधना गामे रहैत साइकि‍लपर झंझारपुरसँ तरकारी अनैत, बाँकी समए सदि‍खन ताश भँजैत। चाह-पान, भाँग-गाँजा सभ कि‍छु बुधनाक अमल। 
दीपवाली बड़ नमगर-छड़गर छथि‍। देखबामे एकदम गोर। बड़ कमासुत। नाउएँटा लऽ दीपवाली मौगी छलीह परन्तु मर्दे जकाँ हरि‍दम खटैत छलीह। दूटा बेटा आर एकटा बेटी छन्हि। बेटीक बि‍आह भऽ गेल छन्हि। बेटी वि‍धवा भऽ गेल छन्हि जइसँ एकटा नाति‍क जि‍म्मेवारी दीपेवालीपर छन्हि। बड़का बेटा थोड़-बहुत पढ़ि‍ माइक सहयोग करए लागल। छोटका बेटा पढ़ैत छल। एतेकटा बकरीक झुण्ड दीपवालीक मेहनति‍क फल छल। भरि‍ दुपहरि‍या अंगने-अंगने घूमि‍ तरकारी बेचैत छलीह, साँझू पहरकेँ चौबटि‍यापर बैस तरकारी बेचैत छलीह। दीपवाली बड़ मधुभाषी आ मि‍लनसार छथि‍ से सभ जनैत। 
एक दि‍न बुधना तरकारी लऽ कऽ अबैत छलाह। बाटपर एकटा मोटरगाड़ीबला पाछूसँ ठोकर मारि‍ देलकनि‍। जइसँ बुधना मरि‍ गेल। हटि‍याक दि‍न रहने हमरो गामक बहुतो लोक झंझारपुर गेल छलाह। ई कथा सौंसे गाम मटि‍या तेल जकाँ पसरि‍ गेल। सुनैत देरी भरि‍ गामक लोक चौबटि‍यापर जमा भऽ गेल। दीपवालीक घर चौबटि‍यासँ सटले पुबरि‍या टोलमे छल। के बच्चा, के बूढ़, सभ साइकि‍ल मोटर साइकि‍लसँ झंझारपुर दि‍स दौड़ पड़ल जेतए बुधनाक लाश छल। हम गुड़ घावक पीड़ासँ व्यायकुल रही, ई बात सुनि‍ कहुना कऽ चौबटि‍यापर गेल रही। कि‍छुए कालक बाद हमर धि‍यान दीपवाली आ हुनकर दुनू बेटापर पड़ल। हमरा आइ धरि‍ मोन अछि,‍ दीपवालीक खूलल-खूलल केश, लत्ता-कपड़ाक कोनो ठेकान नै। बताहि‍ जकाँ जोर-जोरसँ कनैत छलीह- डकूबा हौ, डकूबा! आब हमर जि‍नगी केना कटतै हौ डकूबा! आब ई दुनू बेटा केकरा बाबू कहते हौ डकूबा! 
हुनकर दुनू बेटा सेहो भोकासि‍ पाड़ि‍-पाड़ि‍ कनैत छल। ई दृश्य देखि‍ हमरा आँखि‍मे नोर आबि‍ गेल। गामक दाइ-माइ दीपवालीकेँ सम्हारैत आ कनबो करैत। कि‍छुए कालक बाद बुधनाक लाश लग पुलि‍स आएल। लाश उठा पोस्टमार्टमक लेल लऽ गेल। गामक लोक सभ रंग-बि‍रंगक बात करए लगल। सबहक बात बुधनासँ शुरू होइत छल। मुन्हाइर साँझकेँ एम्बु्लेंसपर बुधनाक लाश गाम आएल रहए। एक बेर फेर भरि‍ गाममे हल-चल भऽ गेल। दीपवाली आर दुनू बेटा लाशपर गि‍र जोर-जोरसँ कनैत छलीह। गामक बूढ़-बुढ़ानुस सभ कहलनि‍- ऐ लाशकेँ जल्दी़ संस्कार कऽ देल जाए। ई कोनो खुशनामा नै छी। ई हाक-डाकबला लाश छी। 
कोनो तरहेँ संस्कार भऽ गेल।
आब दीपवाली बेसाहारा भऽ गेलीह। दूटा बेटा आ एकटा नाति‍क जि‍म्मेवारी हुनका ऊपर। दीपवाली आब तरकारी बेचनाइ बन्न कऽ देलनि‍। केना नै बन्न करैत। झंझारपुरसँ तरकारी के आनत? बक‍रीये टा आब हुनक जीवि‍काक साधन रहि‍ गेल रहनि‍। कहाबी अछि‍ जे दुख जखनि‍ अबैत अछि‍ तँ चारू दि‍ससँ अबैत अछि‍। 
बुधनाक मरब सालो नै लागल रहै, बरसातक समए रहए, एकटा बेमारी आएल। हुनकर सभ बकरी एका-एकी सभटा मरि‍ गेल। दीपवाली फेरसँ दुखमे डूमि‍ गेलीह। आब हुनका कोनो सहारा नै बचल। पन्द्रह दि‍न धरि‍ दीपवाली कि‍छु नै बाजए। फेर दीपवाली हि‍म्मत नै हारलनि‍। एक दि‍न हम सांत्वनाक खि‍यालसँ कहलि‍यनि‍- की हाल अछि‍?”
ओ कहलनि‍-बौआ, वि‍धनाक एहने मोन छन्हि्‍ तँ हम की केओ की करत? आब हम सभ माटि‍मे मि‍लि‍ गेलौं कि‍ंतु अहाँ सबहक माए-बापक असीरवादसँ हम हारि‍ मानएवाली नै छी। जाबे जि‍अब मेहनत कऽ बाल-बच्चाकेँ देखब। मरला ऊपर जानथि‍ वि‍धना।
दीपवालीकेँ आब मेहनति‍ छोड़ि‍ कोनो सहारा नै बँचल। ओ छथि‍ बड़ मेहनती। ओना बुधना दीपवालीक साेहाग छल कि‍ंतु दीपवालीक कमाइपर घरक सबहक ठेसी छलनि‍। दस धूर जमीनसँ पाँच कट्ठा भेल रहै जे दीपवालीक खून-पसेनाक फल छी।
दीपवाली एक गोटासँ गाए, तेहाइपर, पोसि‍या लेलनि‍। नाति‍ अपन गाम चलि‍ गेल। दीपवाली आब भरि‍ दि‍न गाएमे लागल रहैत छलीह। समए बीतल। छोटका बेटाकेँ कोनो तरहेँ दरभंगा पढ़ैले पठौलनि‍। दीपवालीक उमर सेहो नीचाँ मुहेँ भेल जा रहल छल। गाए पोसबामे एना लगल रहैत छलीह जे घासक पथि‍या सदि‍खन हुनका माथेपर रहैत छल। बड़का बेटा आब नम्हर भेल, घर-गि‍रहस्तीक कार्य करए लगल। गाए पोसलासँ एकटा बड़द भऽ गेल। जइसँ बड़का बेटा खेती करए लागल। दुख तँ दीपवालीकेँ बड़ भेलै कि‍ंतु दीपवालीक मेहनति‍क कारण एकबेर फेर हुनकर घर-परि‍वार चलए लगल। भरि‍ गामक लोक हुनका घासवाली कहए लगलनि‍। आइ हुनका दस थान गाए छन्हि‍। ओ घास आनैमे एना लगल रहैत छलीह जे भरि‍ दि‍न बाधेमे रहैत छलीह। बाधसँ एलापर खेनाइ बनाबथि‍ आ माल-जालक नि‍मेरा सेहो करथि‍। 
एक दि‍न बड़का बेटाकेँ कहलीह- बौआ, हमरा खेतसँ एबामे देरी भऽ जाइए, तोरा भूख लागि‍ जाइत हेतह ने?”
बेटा कहलकनि‍-माए, भूख तँ अवश्ये लागि‍ जाइए परन्तु तूहीं की करबीही, से नै तँ हमरा खेनाइ बनेनाइ सि‍खा दे।
माए बाजलि‍-जरूर बौआ, लूरि कोनो खराप नै होइ छै। हम बाप-जनम कहि‍यो घास नै छि‍लने रही मुदा आइ दस थान गाए घासेपर रखने छी। 
ऐ तरहेँ समए बितैत गेल। दीपवाली संघर्ष करैत रहलीह। 
एक दि‍न हम भोरे-भोर चौबटि‍यापर गेल रही। चाहक दोकानपर ि‍कयो बजलाह जे दीपवालीक बेटा प्रोफेसर भऽ गेलै। पेपरमे आएल छै। हमरा बड़ खुशी भेल। हम हुनकर पूरा जि‍नगीकेँ मोन पाड़ए लगल रही। दीपवालीपर घनेरो दुख आएल परन्तु कखनो हुनक मनोबल मलीन नै भेल। ओ दुखसँ संघर्ष कऽ समाजकेँ एकटा प्रोफेसर देलखि‍न, ऐसँ खुशी अओर की?
छोटका बेटा काओलेज ज्वाैइन कऽ लेलन्हि। पहि‍ल तनखाह उठा माएसँ मि‍लबा लेल गाम एलाह। माए कहलखि‍न- बेटा, हमरा बड़ खुशी अछि‍ कि‍ंतु ई दि‍न आनबामे तोहर भैयाक योगदान छह। तूँ छोटेटा छेलह तखन बाप मरि‍ गेलह। तोरा पढ़ेबा-लि‍खेबामे तोहर भैया हरि‍दम मदति‍ केलकह। ई धि‍यान रखि‍यह। 
कहैत दीपवालीक आँखि‍सँ खुशीक नोर टपकल आ तखनि‍ दोसर दि‍स टगि‍ गेल।

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