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Wednesday, October 5, 2016

बिसाँँढ़ (चारिम संस्‍करण)

बिसाँँढ़ (चारिम संस्‍करण) 
पैछला चारि सालसँ रौदी भेने गामक सुर्खीए बेदरंग भऽ गेल। जे गाम हरिअर-हरिअर गाछ-बिरीछ, अन्नसँ लहलहाइत खेत, पानिसँ भरल इनार-पोखैर, सैंकड़ो रंगक चिड़ै-चुनमुनी, हजारो रंगक कीट-पतंगसँ लऽ कऽ गाए-महींस आ बकरीसँ भरल रहै छल ओ मरनासन्न भऽ गेल। सुन-मसान जकाँ। बीरान। सबहक मनमे एक्केटा विचार अबैत जे आब ई गाम नइ रहत। जँ रहबो करत तँ खाली माटिए-टा। किएक तँ जइ गाममे खाइले अन्न नै उपजत, पीबैले पानि नइ रहत तइ गामक लोक की हवा पीब कऽ रहत?
जइ मातृभूमिक महिमा अदौसँ सभ गबैत एला ओ भूमि चारिए सालक रौदीमे पेटकान लाधि देलक। मुदा तैयो लोकक टुटैत आशाक वृक्षमे नव-नव फुलक कोढ़ी टुस्साक संग जरूर निकैल रहल अछि। निकलबोकेना ने करत, आखिर जनकक राज मिथिला छिऐ कि‍ने। जइ राज्यमे बारह-बर्खक रौदीक फल सीता सन भेटल तइ राज्‍यमे, हो-ने-हो जँ कहीं ओहने फल फेर भेटए! ..एक दिस रौदीक सघन मृत्युवाण चलैत तँ दोसर दिससँ आशाक प्रज्वलित वाण सेहो ओकर मुकाबला करैत। जेकर हँसेरियो नमहर
एहनो स्थितिमे दुनू परानी डोमनक मनमे जीबैक ओहने आशा बनल रहल, जेहने सुभ्यस्त समैमे। कान्हपर कोदारि नेने आगू-आगू डोमन आ माथपर सिंगही माछ आ बिसाँढ़सँ भरल पथिया नेने पाछू-पाछू सुगिया, जिनगीक गप-सप्‍प करैत बड़की पोखैरसँ आँगन अबैत रहए। चानिक पसीना दहिना हाथसँ पोछि, मुस्‍कियाइत सुगिया बाजल-
“जेकरा खाइ-पीबैक ओरियान करैक लूरि‍-उहि छै ओ कथीक चिन्ता करत?”
पत्नीक बात सुनि डोमन पाछू घुमि सुगियाक चेहरा देख, बिनु किछु बजने नजैर निच्चाँ केने आगू डेग बढ़बए लगल। किएक तँ खाइक ओते चिन्ता मनमे नहि, जेते पानि पीबैक।
डोमनकेँ अपन खेत-पथार नहि। मुदा दुनू बेकती तेहेन मेहनती जे नहियोँ किछु रहने नीक-नहाँति गुजर करैत। गिरहस्तीक सभ काजक लूरि‍ रहितो डोमन कोनो गिरहस्तसँ बन्हाएल नहि, ओना समए-कुसमए अपन काज नइ रहने बोइनो कऽ लइत। ओना, अपना खेत नइ रहने खेती तँ नहियेँ करैत मुदा दस कट्ठा मरूआ धरि सभ साल बटाइ रोपि लैत, जइसँ पाँच मन अन्नो घर लऽ अबैत।
मरूआ-बीआ तैयार करैमे बेसी मेहनत होइए। सभ दिन बीआ पटबए पड़ैए। शुरूहे रोहैणमे बड़की पोखैरक किनछैरमे डोमन बीआ पाड़ि लइत। लगमे पानि रहने पटबैयोक सुविधा। आरू बीराड़ तँए बीओ नीक उमझैत। पनरहे दिनमे रोपाउ भऽ जाइत। मिरगिसरामे बर्खा होइते डोमन सभ साल अगते मरूआ रोपि लैत, मुदा ऐ बेर से नइ भेलइ। बर्खा नइ भेने बीआ बीराड़ेमे बुड़हा गेलइ। एक्को धूर मरूआक खेती गाममे नहि भेल। तेतबे नहि, अखन धरि कियो ने धानक बीराड़क खेत जोतलक आ ने बीआ बागु केलक।
रौदीक आगम सबहक मनमे हुअ लगल। मुदा तैयो केकरो मनमे अन्देशा नहि! किएक तँ ढेनुआर नक्षत्र सभ पछुआएले रहए।
जहिना रोहैण-मिरगिसरा फोंक गेल तहिना अदरो। समए सेहो खूब तबि गेल। दस बजेसँ पहिनहि लोक बाधसँ आँगन आबि जाइत, किएक तँ लू लगैक डर सबहक मनमे।
मरूआ खेती नइ भेने दुनू परानी डोमनक मनमे चिन्ता पैसए लगल।
बड़की पोखैरसँ दुनू परानी पुरैनक पातक बोझ माथपर नेने अँगना अबैत बाटमे सुगिया बाजल-
“ऐ बेर एक्को कनमा मरूआ नइ भेल। बटाइयो केने आन साल ओते भऽ जाइ छल जे सालो भरि जलखै चलि जाइ छेलए। ऐ बेर तँ जलखैयो बेसाहिये कऽ चलत।
माथ परहक पुरैनक पातक बोझसँ पानि चुबैत। जे डोमनो आ सुगियोकेँ अधभिज्जु कऽ देने। नाक परहक पानि पोछैत डोमन उत्तर देलक-
“कोनो कि अपनेटा नइ भेल आकि गामेमे केकरो नइ भेलइ। अनका होइतै आ अपना नै होइत तहन‍‍ ने दुख होइतए। मुदा जब केकरो नइ भेलै तँ हमरे किए दुख हएत। जे दसक गति हेतै से अपनो हएत। अपना तँ पुरैन-पातक रोजगारो अछि आ जेकरा ईहो ने छइ?
पतिक उत्तर सुनि सुगिया मिरमिराइत बाजल-
“हँ, से तँ ठीके। मुदा ठनका ठनकै छै तँ कियो अपने माथपर ने हाथ दइए। तहन‍‍ तँ ई रौदी इसरक डाँग छी! लोकक कोन साध!
खन धरिक समैकेँ कियो रौदी नइ बुझलक। सबहक मनमे यएह होइत जे ई भगवानक लीले छिऐन। कोनो साल अगतेसँ पानि हुअ लगैत तँ कोनो साल अन्‍तमे होइत। कोनो साल बेसियो होइत तँ कोनो साल कम्मो आ कोनो-कोनो साल नहियेँ होइत। जइ साल अगते बिहरिया हाल भऽ जाइत ओइ साल समैपर गिरहस्ती चलैत मुदा जइ साल पचता बर्खा होइत तइ साल अधखड़ू खेती भऽ जाइत...।
जखन‍‍ हथियो नक्षत्र धरिमे बर्खा नइ भेल तखन‍‍ सबहक मनमे आबए लगलै जे ऐ बेर रौदी भऽ गेल। ओहि‍ना जोतल-बिनु-जोतल खेतसँ गरदा उड़ैत। घास-पातक केतौ दरस नहि। मुदा तँए कि लोक हारि मानि लेत? कथमपि नहि! सभ दिनसँ गामक लोकमे सीना तानि कऽ जीबैक जे अभि‍यास बनल अछि ओ पीठ केना देखौत...। भऽ सकैए जे इन्द्र भगवानकेँ कोनो चीजक दुख भऽ गेल हेतैन। जइसँ बिगैड़ कऽ एना केलैन। तँए हुनका वौसब जरूरी अछि। जखने फेर सुधैर जेता तखनेसँ सभ काज सुढ़िया जाएत। ..यएह सोचि कियो भूखल-दूखलकेँ अन्न दान करैत, तँ कियो कीर्तन-अष्टयाम-नवाह, तहिना कियो चंडी, विष्णु यज्ञ-जप, तँ कियो महादेवक पूजा इत्यादि। अनेको रंगक बौसैक ओरियान लोक सभ शुरू केलक। जनिजाति सभ सेहो कमला-कोसीकेँ छागर-पाठी कबुलए लगली। जँ हुनकर महिमा जगतैन तँ बिनु बर्खोक बाढ़ि अनती। बाढ़ि औत पोखैर-झाँखैरसँ लऽ कऽ चर-चौरी, डोह-डाबर सभ भरत। रौदी कमत। अदहा-छि‍दहा उपजो हेबे करत...।
बर्खाक मकमकी देख नेंगरा काका महाजनी बन्न कऽ लेलैन। ओ बुझि गेला जे ऐ बेरक रौदी ऐगला साल बिसाएत। मुदा सोझमतिया बौकी काकी सभटा चाउर लगा लेलैन। ओना बौकी काकीक लहनो छोट, खाली चाउरेक, सेहो पावैने-तिहार धरि समटल रहै छैन। बौकी काकीक महाजनी मातृ-नौमी, पितृ-पक्षसँ शुरू भऽ पाहुन-परक होइत दुर्गापूजा-कोजगरा होइत दिवाली-परेब, गोवर्धनपूजा-भरदुतिया आ छठि होइत शामा धरि अबैत-अबैत सम्पन्न भऽ जाइ छैन। किएक तँ समाकेँ सभ नवका चूड़ा खुअबैत। खुएबे-टा नहि करैत, संगे भारो दइत। ताधैर कोला-कोली धानो पकि जाइत। मुदा ई बात बौकी काकी बुझबे ने केलैन जे ऐ बेर रौदी भऽ गेल। तँए अपनो खाइले नै रखली। जहिना बोनिहार-किसान तहिना महाजन बौकियो काकी भऽ गेली।
अगहन अबैत-अबैत सभकेँ चि‍न्‍ता हुअ लगलै जे अपने की खाएब आ माल-जालकेँ की खुआएब। किएक तँ कातिक धरिक ओरियान, अपनो आ मालो-जाल-ले तँ अधिकांश लोक पहिनहिसँ करि कऽ रखैत। जे ऐबेर नेंगरा काका छोड़ि सबहक सठि गेलैन..! अन्‍तमे धानोक बीआ सभ कुटि-छाँटि कऽ खा गेल। ..ऐबेर धानक कोन गप जे हाल दुआरे रब्बियो-राइ हएब कठिन। एकाएक सबहक भक्क खुजल। भक्क खुजिते मनमे चिन्ता समाए लगलै। जेना-जेना समए बितैत तेना-तेना चिन्तो फौदाइत। एक तँ ओहिना चुल्हि सभ बन्न हुअ लगल, ऊपरसँ सुरसा जकाँ समए मुँह बाबि सबहक आगूमे ठाढ़। चिन्तासँ लोक रोगाए लगल। भोर होइते धिया-पुताक बाजा सौंसे गाममे बजए लगैत। मौगी पुरुखकेँ करमघट्टू तँ पुरुख मौगीकेँ राक्षसनी कहए लगल। जइसँ धिया-पुताक बाजाक संग दुनू परानीक नाच शुरू भऽ जाइत। मुदा एहेन समए भेलोपर दुनू परानी डोमनक मनमे एक्को मिसिया चिन्ता नहि। किएक तँ जुड़ेशीतलसँ पुरैनक पातक रोजगारा शुरू केलक। रोजगारो नमहर। बावन बीघाक बड़की पोखैर। जइमे सापरपिट्टा पुरैनक गाछ। बजारो नमहर। निर्मली, घोघरडीहाक संग झंझारपुरक नबको आ पुरनो बजार। ..असगरे सुगिया केते बेचत। पुरैनक पात किननिहार हलुआइसँ लऽ कऽ मुरही-कचड़ीवाली धरि। तैपर सँ भोज-काजमे सेहो बिकाइत। तँए आठ दिनपर पार लगौने रहए।
भरि दिन डोमन पत्ता तोड़ि-तोड़ि जमा करैत। एक दि‍न सुगि‍या पातकेँ सेरिया-सेरिया तेसरा दि‍नपर भोरुके गाड़ीसँ बेचैले जाइत। जे पात उगैर जाइ ओकरा डोमन सुखा-सुखा रखैत। किएक तँ सुखेलहो पातक बिकरी होइए।
आइ निर्मलीसँ पात बेच कऽ सुगिया आबि पतिकेँ कहलक-
“रौदी भेने अपना चलतीए आबि गेल!
चलतीक नाओं सुनि मुस्‍कियाइत डोमन पुछलक-
“से की?”
“सभ पात बेचनिहार वेपारी थस लऽ लेलक। सभ गामक पोखैर सुखि गेलै, जइसँ सबहक कारबार बन्न भऽ गेलइ। अपनेटा पात बजार पहुँचैए। आइ तँ जहाँ गाड़ीसँ उतरलौं कि दोकानदार आबि‍-आबि‍ बुझू जे लुझि लेलक। टीशनेपर छुहुक्का उड़ि गेल।
डोमन-
“अहाँकेँ लूरि‍ नै छेलए जे दाम बढ़ा दैतिऐ, एकक दू होइत।
सुगिया-
“ऐगला खेपसँ सएह करब। आब तँ बर्ड़ी सेहो जुआइत हएत कि‍ने?”
डोमन-
“गोटे-गोटे जुआएल अछि‍। अखन बीछि-बीछि तोड़ए पड़त, तँए पाँच दिन आरो छोड़ि दइ छिऐ।
तेसर साल चढ़ैत-चढ़ैत गामक एकटा बड़की पोखैर आ पाँचटा इनार छोड़ि सभ सुखि गेल। नमहर आँट-पेटक बड़की पोखैर। किएक तँ दाँइत खुनने अछि‍ कि‍ने? लोकक खूनल थोड़े छिऐ। देव अंश अछि। तँए ने गामक सभ अपन बेटाकेँ उपनयनो आ बिआहोमे ओही पोखैर जा पहि‍ने नहबैए। तेतबे नहि, छठिमे हाथो उठबैए। हमरा इलाकाक पृथ्‍वीक बनाबट सेहो अजीब अछि। बुझू तँ माटिक पहाड़। पाँच साए फुटसँ निच्चाँ धरि ने बाउल अछि आ ने पानि। शुद्ध माटि। जइसँ ने एक्कोटा चापाकल आ ने बोरिंग गाममे। पानि दुआरे गाम-गामक लोककेँ पड़ाइन लगि‍ गेल। माल-जाल उपैट गेल। सभटा गाए-माल चाहे तँ लोक बेच लेलक वा खढ़ पानि दुआरे मरि गेलइ। अदहासँ बेसी गाछो-बिरीछ सुखि गेल। चिड़ै-चुनमुनी इलाका छोड़ि देलक। जे मूस अगहनमे अंग्रेजी बाजा बजा-बजा सत-सतटा बि‍आह करै छल ओहो या तँ बिलेमे मरि गेल वा केतए पड़ा गेल तेकर ठेकान नहि। हमरो गामक अदहासँ बेसीए लोक पड़ा गेल। मुदा तैयो जिबठगर लोक गाम छोड़ैले तैयार नहि। पुरुख सभ गाम छोड़ि परदेश खटैले चलि गेल। मुदा बाल-बच्चा आ जनि-जाति गामेमे रहल।
पोखैर-इनारकेँ सुखैत देख लोक पानि पीबैले बड़कीए पोखैरक कतबाहिमे कूप खुनि लेलक। अपन-अपन कूप सभकेँ। पानिक कमी नहि। तीन सालक जे रौदी परोपट्टा-ले बाम भऽ गेल अछि, ओ डोमन दुनू परानी-ले दहीन भऽ गेल। काज तँ आने साल जकाँ मुदा आमदनी दोबर-तेबर भऽ गेलइ। गामक जमीनोक दर घटल। जइसँ डोमन खेत कीनए लगल। ओना सुगियाक इच्छा खेत किनैक नहि। किएक तँ मनमे होइ जे अहि‍ना सभ दिन रौदी रहत आ खेत सभ पड़ता। तँए अनेरे खेत लऽ कऽ की करब। घास-पानिक दुआरे मालो-जाल लेब नीक नहियेँ हएत।
डोमनक मनमे आशा रहै जे जहिना लूल्हियो कनियाँ बेटा जनमा कऽ गिरथाइन बनि जाइए तहिना ने पानि भेने परतियो खेत हएत।
योगी-तपस्वीक भूमि मिथिला अदौसँ रहल। जे अपन देह जीव-जन्तुक कल्याण-ले गला लेलैन। ओ की ऐ बातकेँ नहि जनै छला? जरूर जनै छला! तँए ने गाममे अठारह गण्डा[1] पोखैर, सत्ताइस गण्डा[2] इनारक संग-संग चौरीमे सैंकड़ो कोचाढ़ि-बिरइ खुनि पानिक बखाड़ी बनौने छला। सोल्‍होअना बरखे भरोसे नहि, अपनो जोगार केने छला।
तीन साल तँ दुनू परानी डोमन चैनसँ बितौलक। मुदा चारिम साल अबैत-अबैत बेचैन हुअ लगल। गामक सभ पोखैर-इनार तँ पहिनहि सुखि गेल छल। लऽ दऽ कऽ बड़की पोखैरटा बँचल रहइ। तहूमे आब सुखैत-सुखैत मात्र कठ्ठा पाँचेमे पानि बँचल। सूखल दिस पुरैनियोँ उपैट गेल। खाली बीचमे जे पानि अछि मात्र ओहीमे पुरैनक गाछ बँचल, मुदा तइमे जाँघ भरिसँ ऊपरे गादि छइ। पैसब महाग मोसकिल अछि। पएर दैते सरसरा कऽ जाँघ भरि गड़ि जाइत अछि। के जान गमबए पैसत। निराशाक जंगलमे डोमन वौअए लगल। मनमे हुअ लगलै, जहिना गामक लोक चलि गेल तहिना हमहूँ चलि जाएब। जानि कऽ परानो गमाएब नीक नहि। जिनगी बँचत, समए-साल बदलतै तँ फेर घुमि कऽ आएब नइ तँ केतौ मरि जाएब। जहिना गामक सभ कि‍छु बिलैट गेल, समाजक लोक बिलैट गेल, तहिना हमहूँ बिलैट जाएब...।  
पतिकेँ चिन्तित देख सुगिया पुछलक-
“किछु होइए की? एना किए मन खसल अछि?”
पत्नीक प्रश्‍न सुनि डोमन आँखि उठा कऽ देख पुनः आँखि निच्चाँ कऽ लेलक। आँखि निच्चाँ करिते सुगिया दोहरा कऽ पुछलक-
“मन-तन खराप अछि?”
नजैर उठबैत डोमन बाजल-
“तन तँ नइ खराब अछि मुदा तनेक दुख देख मन सोगाएल अछि। जइ आशापर अखन धरि खेपलौं ओ तँ लिए गेल जे ऐगलोक कोनो आशा नइ देखै छी। की करब आब?”
सुगिया-
“अपना केने किछु ने होइ छइ। जे भगवान जन्‍म देलैन मुँह चीरने छैथ‍, अहारो तँ वहए ने देता। तइले एते चिन्ता किए करै छी?”
डोमन-
“सभ कि‍छु बिलैट गेल। एहेन सुन्दर गाम छल सेहो उपैट रहल अछि। खाली माटिटा बँचल अछि। की माटि खुनि-खुनि खाएब? बिनु अन-पानिक कए दिन ठाढ़ रहब?”
“चिन्ता छोड़ू। जहिया जे होइक हेतै से हेतइ। अखन तँ पाइनो ऐछे आ अन्नो ऐछे। जाधैर ऐ धरतीपर दाना-पानी लिखल हएत ताधैर भेटबे करत। जहिया उठि जाएत तहिया केकरो रोकने रोकेबै। तइले एते चिन्ता किए करै छी?
कहि सुगिया भानसक ओरियानमे जुटि गेल।
पत्नीक बात सुनि डोमन मने-मन सोचए लगल जे हमरा तँ मरैयोक डर होइए मुदा एकरा कहाँ होइ छइ! ई तँ मरैयो-ले तैयारे अछि। ..फेर मनमे उठलै, जीवन-मृत्युक बीच सदासँ संघर्ष होइत आएल अछि आ होइत रहत। तइसँ पाछू हटब कायरता छी। जे मनुख कायर अछि ओ कोन जिनगीक आशामे अनेरे दुनियाकेँ अजबारने अछि। पुनः अपना दि‍स तकलक। अपना दि‍स तकिते डोमनकेँ मनमे उठलै, जनु जीबैक बाट हेरा गेल अछि तँए एते चिन्ता दबने अछि...।
तमाकुल चुना कऽ डोमन मुँहमे लेलक। तमाकुल मुँहमे लइते डोमनकेँ अपन माए-बापसँ लऽ कऽ पैछला पुरखा दिस घोड़ा जकाँ नजैर दौगलै। मुदा केतौ रूकलै नहि। जाइत-जाइत मनुखक जड़िमे पहुँच‍ गेलइ। पुनः घुमि कऽ आबि माए लग अँटैक गेलइ। मन पड़लै माइक संग बितौलहा जिनगी। मन पड़लै माइक ओ बात जे दस बर्खक अवस्थामे रौदी बितौने छल।
रौदी मन पड़िते बड़की पोखैरक बिसाँढ़ आ अन्है माँछ डोमनक आँखिक सोझमे आबि गेल। कनी काल धरि गुम्म भऽ मन पाड़ए लगल।
मन पड़लै, अही पुरैनक जड़िमे तँ बिसाँढ़ो फड़ैए। अल्हुए जकाँ। जहिना माटिक तरमे अल्हुआक सिरो आ अल्हुओ रहै छै तहिना पुरैनक जड़िमे सिरो आ बिसाँढ़ो रहैए। अनासुरती मुहसँ निकललै-
“बाप रे! बाबन बीघाक पोखैरमे तँ केते-ने-केते बिसाँढ़ हेतइ। ओकरे खुनैमे माछो भेटत। खाधि बना-बना सिंही-माङुर रहैए।
एक पंथ दू काज। मनमे खुशी अबिते पत्नीकेँ हाक पाड़ि डोमन कहलक-
“भगवान बड़ीटा छथिन। जहिना अरबो-खरबो जीव-जन्‍तुकेँ जन्‍म देने छथिन तहिना ओकर अहारोक जोगार केने छथिन।
पतिक बात सुनि सुगिया अकबका गेल। जेना किछु बुझबे ने केलक। मुँह बाबि पति दिस तकैत रहल। पत्नीकेँ टकटक तकैत देख ‍ डोमन बाजल-
“चुल्हि मिझा दियौ। घुमि कऽ आएब तखन‍‍ भानस करब।
पतिक उत्साह देख सुगियाक मनमे शंका भेलै जे मन ने तँ सनैक गेलैन हेन! अखने मुर्दा जकाँ पनिमरू छला आ लगले की भऽ गेलैन! दोसर बात परखैक खियालसँ सुगिया किछु बाजल नहि, चुप-चाप ठाढ़ रहल।
डोमन फेर बाजल-
“की कहलौं! पहिने आँच मिझा दियौ, घरक फट्टक लगा दियौ आ छिट्टा लऽ कऽ संगे चलू।
सुगिया पुछलक-
“केतए।
“बड़की पोखैर।
“किए?”
“एहेन-एहेन सैयो रौदी कटैक खेनाइ पोखैरमे दाबल अछि। आनैले चलू।
सवाल-जवाब नहि कऽ सुगिया आगि पझा, फट्टक लगा छिट्टा लऽ तैयार भेल। घरसँ कोदारि निकालि डोमन विदा भेल। आगू-आगू डोमन आ पाछू-पाछू सुगिया। बड़की पोखैरक महारपर पहुँच‍ल। पहुँचते डोमन हाथक इशारासँ देखबैत पत्नीकेँ कहलक-
“जेते पोखैरक पेट सूखल अछि ओइमे तेते खाइक वस्तु गड़ाएल अछि। ने खाइक कमी रहत आ ने पीबैक पानिक। जेना-जेना पानि सुखैत जेतै तेना-तेना कूपकेँ गहींर करैत जाएब। जेते पुरैनक गाछ सुखाएल अछि ओइमे घौर्छा जकाँ बिसाँढ़ फड़ल हएत।
पोखैर धँसि डोमन तीन डेग उतरे-दछिने आ तीन डेग पूबे-पछिमे नापि कोदारिसँ चेन्ह देलक। एक धूर भरिमे। उत्तरबरिया-पुबरिया कोणपर कोदारि मारलक। माटि तेते सक्कत जे कोदारि धँसबे ने कएल। दोहरा कऽ फेर जोरसँ कोदारि मारलक। कोदारि फेर नइ धँसल। आगू दिस देख डोमन हियाबए लगल जे किछु दूर आगूक माटि नरम हएत। खुनैमे असान हएत। मनक खुशी उफैन कऽ आगू बढ़लै, बाजल-
“अँइ यइ ढोरबा माए, हम पुरुख नै छी? देखियौ! हमरा माटि गुदानबे ने करैए! अहाँ हमरासँ पनिगर छी, दू छअ मारि कऽ देखियौ तँ।
सुगिया-
“पहिने हमर चूड़ी-साड़ी पहिर लिअ आ हमरा अपन धोती दिअ। तहन‍‍ कोदारि पाड़ि कऽ देखा दइ छी।
मुस्‍कियाइत दुनू आगू-मुहेँ ससरल। एक लग्गा आगू बढ़लापर माटि नरम बुझि पड़लै। कोदारि मारि कऽ देखलक तँ माटि सहगर लगलै। एक धूर नापि डोमन खुनए लगल। पहिलुके छअमे एकटा बिसाँढ़क लोली जगलै। लोल देखते उछैल कऽ बाजल-
“हे देखियौ! यएह छी बिसाँढ़!
सुगिया-
“लोल देखने नै बुझब। सौंसे खुनि कऽ देखा दिअ?
पत्नीक बात सुनि डोमनकेँ शंका भेलै जे हो-ने-हो कहीं अधेपर सँ ने कटि जाए। तँए लोल पकैड़ डोला कऽ हाथेसँ उखाड़ए लगल। मुदा नइ उखड़लै। कनी हटि दमसा कऽ दोसर छअ मारलक। छअ मारिते एक बीतक देखलाहा आ तैसंग दूटा आरो देखलक। तीनूकेँ खुनि दुनू परानी डोमन निंगहारि-निंगहारि बिसाँढ़ देखए लगल।
उज्जर-उज्जर। नाम-नाम। लठिआहा बाँस जकाँ गोल-गोल। मोट। हाथीक दाँत जकाँ चिक्कन। बित भरिसँ हाथ भरिक। पाव भरिसँ आध सेर धरिक।
पत्नी दिस नजैर उठा कऽ डोमन देखलक तँ पचास वर्षक आगूक जिनगी बुझि पड़लै। पति दिस नजैर उठा कऽ सुगिया देखलक तँ चूड़ीक मधुर स्वर आ चमकैत मांगक सिनुर देखलक।
छिट्टा भरि बि‍साँढ़ आ सेर चारिए-क सिंही माछ नेने दुनू परानी- डोमन आ सुगिया खुशीसँ हलसैत विदा भेल।
¦¦
शब्‍द संख्‍या : 2516



[1] 72 टा
[2] 108 टा

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