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Thursday, October 6, 2016

बोनिहारिन मरनी (कथाकार श्री जगदीश प्रसाद मण्‍डल) साभार गामक जिनगी, लघु कथा संग्रह, चारिम संस्‍करण

छोट-छीन गाम छतौनी। तीनिए जातिक लोक गाममे। साइए घरक बस्‍तियो। छेहा बोनिहारक गाम। ओना, पास-पड़ोसक गामक लोक छतौनीकेँ प्रतिष्ठित गाम नइ बुझैत, किएक तँ ओइ गाम सबहक लोकक विचारे प्रतिष्ठित गाम ओ होइत जइमे छत्तीसो जातिक लोक बसैत। जइसँ समाजक सभ तरहक जरूरतक पूर्ति गामेमे होइत। मुदा से छतौनीमे नहि, तँए छतौनी राजस्‍व गाम भऽ सकैए, प्रतिष्ठित नहि। मुदा ऐ विचारकेँ छतौनीक लोक मानैले तैयारे नहि। छतौनीक लोकक कहब जे जहियासँ हमर गाम बनल तहियासँ ने कहियो अपनामे झगड़ा-झंझट भेल आ ने मारि-पीट। जइसँ ने कहियो कियो कोट-कचहरी देखलौं आ ने थाना-बहाना। तेतबे नहि, तीनिए जातिक लोक रहितो सभ मिलि-जुलि‍ एकठाम बैस खेबो-पीबो करै छी आ तीनू जातिक तीनू देवस्थानमे पूजो-पाठ करै छी संगे परसादियो खाइ छी। तेतबे नहि, सभ जातिक लोक संगे-संग कमेबो करै छी आ एक-दोसराकेँ मौका-मोसीबत पड़लापर, संगो पुरै छी। आन-आन गामबला हमरा गामकेँ ऐ दुआरे गाम नै मानैए जे ओ सभ बहरबैया छी आ हमरा सबहक पूर्वज अदौसँ रहल अछि।
छतौनीवासी सभ दिनसँ बोनिहारे नइ रहल अछि। पहिने एकरो सभकेँ अपन-अपन खेत-पथार छेलइ। खेत-पथार गेलै केना? ऐ सम्बन्धमे छतौनीक बुढ़-बुढ़ानुस लोकक कहब छैन‍, हमरा सबहक पूर्वज रौदीक चलैत खेतक बाँकी[1] राज दरभंगाकेँ समैपर नइ दऽ सकलैन, तहीसँ ओ सभ जमीन निलाम कऽ अबधिया, छपरिया हाथे बेच लेलक। हमरा सबहक जमीनक मलिकाना हक खतम भऽ गेल। अबधियो आ छपरियो राजमे नोकरी करै छेलै जे ऐ इलाकामे आबि जमीनो हथिया लेलक आ मुखियो-सरपंच बनि मैनजनी करैए। मुदा एकटा चलाकी ओ सभ जरूर केलक जे जेना अंग्रेज आबि सत्ता हथियौलक तेना चलि नइ गेल बल्‍कि मुगल जकाँ बसि गेल।
जहियासँ देश अजाद भेल आ सत्ता-ले भोँट-भाँट शुरू भेल, तहिए-सँ ने एक्कोटा कोनो पार्टीक नेता भोँट मंगैले छतौनी आएल आ ने एक्को बेर गौंआँ भोँट खसौलक। किएक तँ आइ धरि छतौनीमे भोँटक बूथ बनबे ने कएल। तँए नेतो किए औत। गाममे ने चरिपहिया गाड़ी चलैक रस्ता छै आ ने सार्वजनिक जगह स्कूल-अस्पताल, जैठाम भाषण-भुषण हएत। जइ गाममे छतौनीक बूथ बनैत ओइ गामक लोक सभ छतौनियोँक भोँट खसा लइत। छतौनीक लोकक जिनगियो छोट। ने पढ़ै-लिखैक झंझट‍, ने चोर-चहारक झंझट‍ आ ने रोग-बि‍यादि‍‍क झंझट। किएक तँ गामक सभ बुझैत जे जेकरा कपारमे विद्या लिखल रहत ओ डुमियोँ-मरि कऽ पढ़िए लेत। चोर-चहार एबे कथीले करत। रोग-बियाधि-ले पूजो-पाठ आ झाड़ो-फूक ऐछे। तहूसँ पैघ बात जे, जे ऐ धरतीपर रहैले आएल अछि ओ जीबे करत। पानि, पाथर, ठनका ओकर कथी बिगाड़ि लेतइ। आ जे नै रहैबला अछि ओकरा फूलोक गाछपर साँप काटि लेतै, मरि जाएत...।
तँए की, छतौनीबलाकेँ भगवानपर बिसवास नइ छइ? जरूर छइ। जँ से नै रहितै तँ देवस्थानमे सालमे एक बेर एते धुमधामसँ पूजा किए करैए? उपास किए करैए? दसनमो स्थान -देवस्थान- आ अपनो-अपनो घरमे गोसाउनिक पीड़ी किए बनौने अछि? तैसंग साले-साल कामौर लऽ कऽ बैजनाथ किए जाइए?
सभ अभाव रहितो छतौनीक लोक हँसी-खुशीसँ जीवन बितबैए। अगर जँ कियो गाममे मरैत वा साँप-ताँप कटैत आकि‍ आगि-छाइ लगैत तँ सभ कियो दासो-दास भऽ लगि‍ जाइत...।
पचास बर्खक मरनी सेहो तइमे सँ एक। जे अपना आँखिसँ अपन पति, बेटा आ पुतोहुकेँ गाछक तरमे खून बोकैर कऽ मरैत देखने। आइ वेचारी पाँच बर्खक पोता आ आठ बर्खक पोतीक बीच आशाक संग जीब रहल अछि। कारी झामर एक हड्डा देह, ताड़-खजुरपर बनौल चिड़ैक खोंता जकाँ केश, आँगुर भरि-भरिक पीअर दाँत, फुटल घैलक कनखा जकाँ नाक, गाए-बरदक आँखि जकाँ बड़का-बड़का आँखि, साइयो चेफड़ी लगल साड़ी, दुरगमनियाँ आँगी फटला पछाइत‍‍ कहियो देहमे आँगीक नसीब नइ भेल, बिनु साया-डेढ़ियाक साड़ी पहिरने। यएह छी मरनी।
चारि साल पहिने सुबध, मनोहर आ तौनकी धान रोपए बाध गेल। जाधैर तौनकीकेँ दोसर सन्तान नइ भेल ताधैर मरनीए पति आ बेटाक संग, माने सुबध आ मनोहरक संग धनरोपनी, धनकटनी, कमठौन, रब्बी-राइ उखाड़ै-काटैले संगे जाइत आ तौनकी अँगनाक काज सम्हारैत। मुदा जहन‍‍ दूटा पोता-पोती भेलै तहियासँ मरनी अँगनाक काज सम्हारए लगल। ओना, अँगनोमे कम काज नहि। भानस-भात करब, पोता-पोतीकेँ खेलाएब, खुट्टा परहक बाछीक सेवा करब इत्‍यादि। आने परिवार जकाँ मरनियोँक परिवार भरल-पूरल।
दस आँटीक जोड़ा। तीन-तीन जोड़ा बीआ उखाड़ि सुबध आ मनोहर पटैपर टँगलक आ राड़ीक जुन्ना बना तौनकी बीआक बोझ बान्हि माथपर लऽ कदबा खेत पहुँचल। कदबा एक दिन पहिने गिरहत करा देने छेलइ। तँए तीनू गोरेक मनमे खुशी होइत रहै जे सबेर-सकाल रोपि कऽ चलि जाएब। आन दिन कदबे दुआरे अबेर भऽ जाइ छेलए। ..मने-मन सुबध सोचैत, बेरू-पहर अपनो जे कट्ठा भरिक खेत अछि, ओहो सभ तूर मिलि कऽ हाथे-पाथे रोपि लेब।
कदबामे बीआ रखि‍ सुबध आड़िपर बैस तमाकुल चुनबए लगल। मनोहर आ तौनकी खेतमे बीआ पसारए लगल। सौंसे खेत बीओ पसैर गेलै आ सुबधो तमाकुल खा लेलक। तीनू गोरे एक-एक आँटी खोलि खुज्जा पसाइर एक-एक खुज्जा रोपैले बामा हाथमे लेलक। आड़िक कात पच्‍छि‍मसँ तौनकी, बीचमे मनोहर आ पूबसँ सुबध पाहि धेलक। ..एक पाँति‍ रोपि दोसर धेलक आकि पूब दिस एक चिड़की मेघ उठैत देखलक। मुदा मेघक छोट टुकड़ी देख केकरो मनमे बर्खाक शंका नै उठलै।
कनी-कनी सिहकी सेहो चलए लगलै। जहिना-जहिना हवा तेज होइत जाइत, तहिना-तहिना करिया मेघक टुकड़ी सेहो उधिया-उधिया ऊपर चढ़ए लगलै। ऊपर चढ़ि-चढ़ि ओ टुकड़ी एक-दोसरमे मिलए लगल, मुदा पच्‍छि‍म दिस रौद उगलै। कनीए कालक पछाइत‍‍ सुरूज झँपा गेल। हवो तेज हुअ लगलै। बिजलोको चमकए लगलै। बुन्दा-बुन्दी पानि पड़ए लगलै। जेते मेघ सघन होइत जाइत तेते पानियोँक बून जोर पकड़ैत गेल। संगे बिजलोको बेसियाएल जाइत। थोड़बे कालक पछाइत घन-घनौआ बर्खा हुअ लगल...।
पानिमे भीजै दुआरे तीनू गोरे दौग कऽ आमक गाछ लग पहुँचल। खेतसँ बीघे भरि हटि कऽ आमक गाछ। खूब झमटगर। चारि हाथ ऊपरेमे दू फेंड़ भऽ गेल। सरही आम। ..गाछक पँजरेमे पच्‍छि‍मसँ तौनकी बैसल आ पूबसँ सुबध आ मनोहर। तौनकी साड़ी ओढ़ि दुनू हाथक मुट्ठी बान्हि काँखमे लऽ लेलक। मुदा सुबध आ मनोहर छुच्‍छे देहे। गमछाक मुरेठा बान्हि लेलक। मुदा तैयो जाड़े दुनू बापूत थरथर कँपैत। नमहर-नमहर बून कखनो काल देहपर खसइ। सौंसे देहक रोइयाँ भुलैक कऽ ठाढ़ भऽ गेलइ। मुदा की करैत, कोनो उपाय नहि। पच्‍छिमो मेघ पकैड़ बरिसए लगल। जइसँ दूर-दूर धरि बर्खा हुअ लगलै। रहि-रहि कऽ मेघो गरजै आ बिजलोको चमकै। एक बेर खूब जोरसँ बिजलोका चमकलै। मुदा आन बेरक चमकसँ बिजलोकाक रंग बदलल। आन बेर पिरौंछ इजोत होइत जहन‍ कि ऐ बेर लाल टुह-टुह।
दुरकाल समए देख तौनकी मने-मन खौंझा कऽ भगवानकेँ कोसैत, कोनो काजक समए होइ छइ। अखन पानिक कोन काज छइ! जहिना तगतगर लोक हरिदम बलउमकी करैए तहिना ई टिकजरौना इन्द्रो भगवान करैए! अनेरे काजकेँ बरदा जाड़े कठुअबैए! लोक सभ कहै छै जे देवता-पितरकेँ बड़का-बड़का आँखि होइ छै जे एक्केठीम बैसल-बैसल सगरे दुनियाँ देखैए। से आँखि अखन केतए चलि गेलइ। देवियो-देवता गरीबे-गुरबाकेँ जान मारै पाछू लगल रहैए! जन-बोनिहारक काज करैक दू उखड़ाहा होइए। भिनसुरका आ दुपहरिया। भिनसुरका उखड़ाहामे जँ एगारहो बजे पानि भेल वा कोनो बाधा भेल तँ गिरहत थोड़े बोइन देत। अगर जँ जलखै भऽ गेल रहलै तँ बड़बढ़ियाँ नहि तँ जलखैयो पार। यएह तँ ऐठामक चलैन अछि‍। ई टिकजरूआ भगवान गिरहतेकेँ मदैत‍ करै छइ।
जाड़सँ कँपैत सुबध मनोहरकेँ कहलक-
“बौआ, सोचै छेलौं जे आन दिन रोपैन करैमे अबेर भऽ जाइ छेलए जइसँ अपन काज नै सम्हरै छेल मुदा आइ सबेरे-सकाल रोपैन भऽ जात तँ अपनो बाड़ी रोपि लैतौं, से सभ भङैठ गेल। कखन पानि छुटत कखन नहि।”
दुनू बापूत गप-सप्‍प करिते छल कि तरतरा कऽ ठनका ओही गाछपर खसल। जैठमसँ दुनू डारि फुटल छेलै तहीठामसँ चिरैत माटिमे चलि गेल। चिरा कऽ गाछ दुनू भाग खसल। एक फाँकक तरमे तौनकी आ दोसर फाँकक तरमे दुनू बापूत- सुबध-मनोहर- पड़ि गेल।
पानि छुटल। सौंसे गाममे हल्ला हुअ लगलै जे बाधमे जे आमक गाछ छेलै ओ खसि पड़लै। भरिसक ओहीपर ठनका खसलै। ..एक्के-दुइए लोक देखैले जाए लगल। कातेमे ठाढ़ भऽ भऽ लोक देखैत। गाछोपर आ गाछक नि‍च्‍चाँ जमीनोपर तेते घोरन पसैर गेल जे लोक गाछक भीर जाइक हिम्मते ने करैत। मुदा जीबठ बान्हि करिया गाछक जड़ि देखैले बढ़ल। घोरन तँ खूब कटै मुदा तैयो हिम्मत करि करिया जड़ि लग पहुँचल। ठनकाबला आगिक चेन्ह ओहिना दुनू फाँकमे। ..जड़ि लग ठाढ़ भऽ करि‍या हिया-हिया देखए लगल। देखैत-देखैत मनोहरक टाँगपर नजैर पड़लै। टाँगपर नजैर पड़िते हल्ला करए लगल-
“एक गोरे तरमे पिचाएल अछि! दौग कऽ अबै जाइ जा, एकरा बहार करह?”
करियाक बात सुनि चारू-भरसँ लोक बढ़ल। देखैत-देखैत तीनू गोरेपर नजैर पड़लै। हल्ला करैत करिया कुरहैर आनए घर दिस दौगल। ..तीनू खून बोकैर-बोकैर मरल। मुदा तैयो सभ बँचा-बँचा कऽ डारि काटए लगल। डारि काटि शील उनटौलक तँ तीनूकेँ थकुचा-थकुचा भेल देखलक। पहिने तँ कियो नै चिन्ह सकलै, किएक तँ तीनू बेदरंग भऽ गेल। मुदा भाँज लगौलापर पता चललै जे दुनू बापूत सुबध काका छी आ पुतोहु छिऐ।
अखन धरि मरनी, अँगनेमे दुनू बच्चाकेँ खेलबैत रहए। गौरिया आबि कऽ कहलकै-
“दादी, तोरे अँगनाक सभ गाछक तरमे दबि कऽ मरि गेलौ।
गौरियाक बात सुनिते मरनी अचेत भऽ खसि पड़ल। दुनू बच्चो चिचियाए लगलै। मरनीकेँ अचेत देख अलोधनी मुँहपर पानि छीटि बीऐन होंकए लगलै। कनीए कालक पछाइत‍‍ होश भेलइ। होशमे अबिते मरनी फेर बपहारि काटए लगल।
बच्चाकेँ कोरामे लऽ अलोधनीक संग मरनी देखैले विदा भेल। गाछ लग पहुँचते तीनू गोरेकेँ मुइल देख मरनी ओंघरनियाँ काटए लगल। ओंघरनियाँ कटैत देख करिया पँजिया कऽ पकैड़ मरनीकेँ कात लऽ गेल। मरनीक दशा देख सभ बोल-भरोस दिअ लगलै। मुदा मरनीक करेज थीरे ने होइ! विचित्र स्थितिमे पड़ल। एक दिस परिवारकेँ नाश होइत देखए तँ दोसर दिस दुनू बच्चाक मुँह। बच्‍चाक मुँह देख कनी-मनी आशा मनमे जगए लगलै।
चारि साल पहिलुका नहि, अखुनका बदलल मरनी, नव मरनी। जहिना आगिमे तपैसँ पहिने सोनाक जे रंग रहैत आ तपलापर जहिना चमैक उठैत तहिना। ओना समाजोक बेवहार जे पहिलुका छेलै अहूमे बदलाउ एलइ। कियो खाइक बौस दऽ जाइत तँ कियो बच्चो आ मरनियोँ-ले नुआ-बस्तर। जहन‍‍ केकरो भाँजमे कोनो काज अबै तँ ओ मरनियोकेँ संग कऽ लइत। जहिना परिवारमे बुढ़ आ बच्चाक प्रति जे सिनेह होइत, ओहने सिनेह मरनीक प्रति समाजोक बीच हुअ लगल।
अपनो जीबैक आशा आ बच्चोक, मरनीकेँ नव स्फूर्ति पैदा केलक। एते दिन मरनीक हाथमे पुरने खेतीक औजारटा रहै छल मुदा आब ओ बढ़ि कऽ दोबर भऽ गेल। हँसुआ, खुरपी, टेंगारी, कोदारिक संग-संग हथौरी, गैंचा सेहो आबि गेल।
समए आगू बढ़ल। देशक विकासक गति सेहो, बहुत तेज नहि मुदा किछु गति तँ जरूर पकड़लक। गाम-गाममे बान्ह-सड़क, पुल-पुलिया, स्कूल-अस्पताल सेहो बनए लगल। जइसँ खेतीहरो बोनिहारक काज बढ़ल। मरनियोँ छिट्टामे माटि उघब, पजेबा उघब, गिट्टी फोरब, सुरखी कुटब सीखि लेलक। जइसँ बेकारी मेटाए लगलै। रोज कमेनाइ रोज खेनाइ धरि गरीबो लोक आबि‍ गेल। भलेँ जिनगीमे बहुत अधिक उन्नैत नइ एलै मुदा जीबैक आशा जरूर जगलै। ओना, सभ काज छतौनीमे नहि, पास-पड़ोसक आन-आन गाममे। जइमे छतौनियोँक बोनिहार सभ काज करए लगल।
छतौनियोँक दिन घुमलै। सात किलोमीटर पक्की सड़क जे एन.एच.सँ लऽ कऽ रेलबे स्टेशनकेँ जोड़ैत, छतौनीए होइत बनब शुरू भेल।
जहिए-सँ “प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजनाछतौनी होइत बनैक चर्चा भेल तहिए-सँ छतौनीक लोकक मनमे खुशी आबए लगलै। गामक लोकक तँ ओहेन दशा नहि जे बस-ट्रक किनैक विचार करि‍तए। मुदा तैयो एते जरूर भेलै जे बरसातमे जे घरसँ बहराएब कठिन छेलै ओ समस्‍या आब नइ रहतै। ओना, किछु गोरेक मनमे ई बात जरूर उठै जे एते दिन बिनु जूत्तो-चप्पलसँ काज चलै छेलए, मुदा आब से नै चलत। आड़ि-धुर-माटिपर चललासँ, बेसीसँ बेसी काँट-कुश गड़ै छल मुदा पीच भेने शीशाक टुकड़ी, लोहाक टुकड़ी सेहो गड़त। जइसँ पैरक नोकसान बेसी हएत। मुदा फेर मनमे अबै, एते दिन कम आमदनी रहने जुत्ता-चप्पल नै कीनि पबै छेलौं से आब थोड़े हएत। नइ बेसी तँ एक्को जोड़ा जरूरे कीनि लेब। जइसँ पैरमे बेमाए-ओ ने फटत।
प्रधानमंत्री योजनाक सड़क बनए लगल। मुदा जेते आशा बोनिहारक मनमे छेलै तेते नइ भेलइ। किएक तँ माटिक काज शुरू होइते रंग-बिरंगक गाड़ी सभ पहुँचए लगलै। जे माटिक काज बोनिहार करैत ओ टेक्टर करए लगलै। ओना काजक गति तेज रहै, मुदा बोनिहारक बेकारी बरकरारे रहलै। सड़कपर माटि पड़िते रौलर आबि सेरियाबए लगल।
खेनाइ-पिनाइ छोड़ि धियो-पुतो आ जनिजातियो सभ भरि-भरि दिन देखते रहैत। ओना बुढ़ो-बुढ़ानुस देखैत मुदा घरक चिन्ता घिंच कऽ काज दिस लऽ जाइत। पनरहे दिनमे सातो किलोमीटर सड़कपर माटिक काज सम्पन्न भऽ गेल। एकदम चिक्कन, उज्जर धप-धप, घरसँ ऊँच सड़क बनि गेल।
माटिक सड़क बनिते बड़का-बड़का ट्रक चिमनीसँ ईटा खसबए लगल। एह, अजीब-अजीब ट्रको सभ। एते दिन छह-पहिए ट्रकटा गामक लोक देखने मुदा ई सड़क बनने दस पहियासँ लऽ कऽ अठारह-अठारह पहियाबला ट्रक सेहो लोक देखलक।
तीनिए दिनमे सातो किलोमीटरक ईंटा खसा देलक। मुदा ईंटा पसारैक काज तँ इंजन नै करत। ओ तँ लोके करत। मुदा ओइले तँ अनुभवी माने एक्सपर्ट लोकक जरूरत हएत। जे छतौनीमे नहि। तँए बाहरेसँ अनुभवी मि‍स्‍त्री औत। ओना, तेहेन बड़का ठीकेदार सड़क बनबैत जे अनेको सड़कक काज एक संग चलबैत। एक्के दिन तेते अनुभवी मि‍स्‍त्री ईंटा पसारैले आएल जे सभकेँ बुझि पड़लै जे दुइए दिनमे सातो किलोमीटर ईंटा पसाइर देत। मुदा ईंटा उघैले तँ मजदूर चाही। पहिल दिन छतौनी गामक बोनिहारकेँ काज भेटलै। ईंटा पसरए लगल। धुरझार काज चलए लगलै। छतौनीक सभ बोनिहार खुशीसँ काज करए लगल। तैबीच ईंटापर पसारैले फुटलाहा ईंटा सेहो ट्रकसँ आबए लगल। दोहरी काज देख छतौनीक बोनिहारक मन खुशीसँ नाचए लगलै। किएक तँ गिट्टी फोड़ैले गामेक बोनिहारकेँ काज भेटतै किने। मुदा ठीकेदारक मुनसी, अपने खाइ-पीबै दुआरे सस्ते दरसँ गिट्टी फोड़ैक रेट लगा देलक। एक टेक्टर पजेबा फोड़ैक दर साठिए रूपैआ दइले तैयार भेल। एक-दू दिन तँ बोनिहार सभ गिट्टी फोरब बन्न केलक मुदा पेटक आगि मजबुरन सभकेँ लऽ गेलइ। मरनी सेहो गिट्टी फोड़ए लगल। एक टेक्टर गिट्टी फोड़ैमे वेचारीकेँ चारि दिन लगैत, मुदा की करैत।
ऐ सड़कसँ पहिने जे सड़क बनै ओ रियाइत-खियाइत रहि जाइ। माटिक काज भेलापर साल-दू-साल ईंटा बैसैमे लगइ। जइसँ माटि ढहि-ढ़ुहि कऽ उबड़-खाबड़ बनि जाइ। बड़का-बड़का खाधि सड़कपर बनि जाइ। तहूमे तीन नम्‍मर पजेबा फुटि-भाँगि कऽ गरदा बनि जाइत रहइ। गामक धियो-पुतो उठा-उठा खेत-पथारमे फेक दइत। तेतबे नहि, कोठीक गोड़ा बनबैले स्‍त्रीगण सभ निकहा ईंटा उठा-उठा लऽ जाइत। मुदा ऐ बेर से नै हएत। दुइए मासमे सड़क बनबैक शर्त ठीकेदारकेँ छइ। जाबे बर्खा खसत-खसत ताबे सड़क बनि जाइक छइ।
पचास बर्खक मरनी जे देखैमे झुनकुट बुढ़ बुझि पड़ैत। सौंसे देहक हड्डी झक-झक करइ। खपटा जकाँ मुँह। खैनी खाइत-खाइत ऐगला चारू दाँत टुटल। गांगी-जमुनी केश हवामे फहराइत। तहूमे सड़कक गरदासँ सभ दिन नहाइत। मुदा तैयो मरनी अपन आँखि बँचौने रहैत। जखन‍‍ पुर्बा हवा बहै तँ पच्‍छि‍म-मुहेँ घुमि कऽ गिट्टी फोड़ए लगैत आ जखन‍‍ पछबा बहैत तँ पूब-मुहेँ घुमि जाइत। बीच-बीचमे सुसताइयो लैत आ खैनी सेहो खा लइत। मुदा तैयो मरनीक मुँह कखनो मलिन नै होइ। किएक तँ हृदैमे अदम्य साहस आ मनमे असीम बिसवास हरिदम बनल रहइ। तँए हरिदम हँसिते रहए।
भिनसुरके उखड़ाहा। करीब नअ बजैत। पूब-मुहेँ घुमि मरनी गिट्टी फोडै़त रहए। तैबीच पच्चीस-तीस बर्खक सुगिया माथ उघारने, छपुआ बनारसी साड़ी आ ओही रंगक आँगी पहिरने, घुमौआ केश सीटि जुट्टी लटकौने, मोजा लगा कऽ एँड़ीदार चप्पल पहिरने, मुँहमे पान-साए नम्‍मर पत्ती देल पान खेने, प्‍लोथि‍नमे नूनक पौकेट, करूतेलक शीशी, मसल्लाक पुड़िया आ साबुन रखि‍ हाथमे लटकौने आबि कऽ मरनीक लग ठाढ़ भऽ मरनीक मेहनत‍ आ बगए देख दिल खोलि मने-मन हँसए लगल। ..मरनी गिट्टी फोड़ैमे मस्त, किएक किम्हरो ताकत। ..सुगियाक हृदैक खुशी मुहसँ हँसी होइत निकलए चाहैत, मुदा मुँहक पानक पीत ठोरक फाटककेँ बन्न केने, तँए पानक पीत फेकब सुगियाकेँ जरूरी भेलइ। जइ पजेबाक ढेरीपर बैस मरनी गिट्टी बनबैत रहए ओही ढेरीपर सुगिया अपन भरल मुँहक पीत फेक देलक। पीतक दू-चारि बून मरनीक देहोपर पड़लै। देहपर पड़िते ओ उनैट कऽ तकलक। टटका पीत चक-चक करैत। कनडेरिये आँखिए मरनी सुगियाक मुँह दिस तकलक। सुगियाकेँ पान चिबबैत देख मरनीक मनमे आगि पजैर‍ गेलइ। पजेबाक ढेरीपर सेहो नजैर पड़लै, सौंसे थूक पड़ल देलखल। आब केना गिट्टी फोरब, ढेरियो आ देहो अँइठ कऽ देलक! ..आँखि गुड़ैर कऽ मरनी सुगियाकेँ कहलक-
“गइ रनडिया, तोरा सुझलौ नै जे ढेरीपर थूक फेकलेँ?”
गरीब मरनीक कटाह बात सुनि सुगिया तमक कऽ उत्तर देलक-
“तोरे बान्ह छियौ जे हम थूक नै फेकब।
सुगियाक बोलकेँ दबैत मरनी बाजल-
“एतेटा बान्ह छै, तइमे तोरा केतौ थूक फेकैक जगह नइ भेटलौ जे ऐठाम फेकलेँ।
सुगिया-
“जदी एतै फेकलिऐ तँ तूँ हमर की करमेँ?”
मरनी-
“की करबौ। आँइ गइ निरलज्जी, तोरा लाज होइ छौ जे सात पुरखाकेँ नाक-कान कटौलही। जेहने कुल-खनदान रहतौ तेहने ने चालि‍ चलमेँ।
सुगिया-
“अपन देह-दशा नइ देखै छीही!
मरनी-
“की देखबै। ई देह बोनिहारनिक छिऐ। तोरा जकाँ की हम कहियो बमैबला छौड़ा सेने तँ कहियो डिल्लीबला छौड़ा सेने वौआइ छी। एक चुरूक पानिमे डुमि कऽ मरि जेमे से नइ, तीमन चिक्खी नहितन..! जहिना सात घरक तीमन चिक्खै छँए तहिना सातटा मुनसा देखै छँए। हमर परतर सातो जिनगीमे हेतौ? जेकरा संगे बाप हाथ पकड़ा देलक, सहि-मरि कऽ तइ घरमे छी। छुछुनैर कहीं-के! आगि लगा-ले ऐ फुललाहा देहमे..!
मरनीक बातसँ सुगिया सहैम गेल। मनमे डर पैस गेलै जे हो-ने-हो कहीं मारबो ने करए। मुँह सकुचबैत मुड़ी गोंति विदा भेल। ..सुगियाकेँ जाइत देख मरनी साड़ीक खूटसँ तमाकुल-चुन निकालि चुनबए लगल। मुदा तैयो मन असथिर नइ भेलइ। मुड़ी उठा-उठा सुगियो दिस देखै आ मने-मन बजबो करए-
“देह केहेन सीटने अछि, उढ़ड़ी। जेना रजा-महराजाक बौहु हुअए! हाथ-पैरमे लुलही पकड़ने छैन‍‍ जे कमा कऽ खेती। जेहने छुछुनैर छौड़ा सभ तेहने छौड़ी सभ।
तमाकुल खा मरनी ईंटा फोडै़ले घुमल कि दादी-दादी करैत पोता दौगल आबि दुनू हाथे दुनू कान्‍ह पकैड़ पीट्ठीपर लटैक गेल। पाछूसँ पोतियो एलइ। पोताकेँ कोरामे उठा मुँहमे चुम्मा लऽ पोतीकेँ कहलक-
“दाइ, बौआकेँ रोटी नै देलही। दुनू गोरे चलि जाउ, मोरामे रोटी रखने छी, लऽ कऽ दुनू गोरे खा लेब। हम अखन काज करै छी। कनी कालमे आबि कऽ भानस करब।
पोता-पोती, आँगन दिस विदा भेल। पूब-मुहेँ घुमि कऽ मरनी गिट्टी फोड़ए लगल।
चारिटा बन्दूकधारी बड्डी-गार्डक संग सड़कक ठीकेदार उत्तरसँ दच्‍छिन-मुहेँ सड़क देखैत जाइ छला। आगू-आगू ठीकेदार पाछू-पाछू बन्दूकधारी। ठिकेदारक नजैर मरनीपर पड़लैन‍। मरनीपर नजैर पड़िते ठिकेदारक डेग छोट हुअ लगलैन‍। ठिकेदारक आँखि मरनीपर अँटैक गेलैन‍। डेग तँ आगू-मुहेँ बढ़बैत रहैथ मुदा आँखिक ज्योति हृदैमे ढुकि कऽ हड़बड़बए लगलैन‍। मनमे जेना अन्हड़-तूफान उठए लगलैन‍। जइसँ मने-मन विचारए लगल जे जेकरा कमाइपर हमरा चारिटा बड्डी गार्ड अछि, करोड़ो-अरबोक आमदनी अछि, तेकर ई दशा! ओ तँ हमर ओहेन समांग जे कमासुत अछि, ओहेन तँ नहि जे ऐश-मौजक जिनगी बना कमेलहे सम्‍पैत‍केँ भोगैए। मुदा अँटकला नहि। आगू-मुहेँ बढ़िते रहला। किछु दूर आगू बढ़लापर जेना मरनीक आत्मा आगूसँ रोकि देलकैन तहिना बि‍च्‍चे सड़कपर ठीकेदार ठाढ़ भऽ गेला। ठाढ़ भऽ एकटा सिपाहीकेँ अढ़ेलखि‍न-
“ओइ गिट्टी फोड़निहारिकेँ कनी बजौने आउ?”
ठीकेदारक बात सुनि एकटा सिपाही मरनी दिस बढ़ल। मरनी लग जा कहलक-
“मालिक बजबै छथुन, चलही?”
गिट्टी फोरब छोड़ि मरनी उनैट कऽ सिपाही दिस तकलक। सिपाहीकेँ देख मने-मन सोचए लगल,‍ ने हम कोनो ममिलामे फँसल छी आ ने कोनो बैंकक करजा नेने छिऐ, तहन‍‍ किए हमरा सिपाही बजबैए...।
मन सक्कत करि मरनी बाजल-
“तूँ नै देखै छहक जे अखन हम काज करै छी। जेकर बोइन लेबै ओकर काज नै करबै। अखन जा। काजक बेर उनैह जेतै तब एबह।
मरनीक बात सिपाहियो आ ठीकेदारो सुनलैन। एक-दोसरकेँ देख आँखि निच्चाँ कऽ लेलैथ। ठीकेदारक मन पीपरक पात जकाँ डोलए लगलैन‍। कखनो मरनीक इमानदारीपर तँ कखनो ओकर अवस्थापर। जइ देशक श्रमिक श्रममे एते बिसवास करैए ओइ देशक विकास जँ बाधित अछि तँ जरूर केतौ-ने-केतौ संचालनकर्तामे बेइमानी छइ। ई बात मनमे अबिते ठीकेदार अपना दिस घुमि कऽ तकला तँ अपन दोख सामनेमे आबि ठाढ़ भऽ गेलैन‍।
सिपाही कड़ैक कऽ मरनीकेँ कहलक-
“नै जेबही तँ पकैड़ कऽ लऽ जेबौ?”
सिपाहीक गर्म बोली सुनि मरनी बाजल-
“तोहर हम कोनो करजा खेने छिअ जे पकैड़ कऽ लऽ जेबह। अपन सुखलो हड्डीकेँ धुनै छी, खाइ छी।
मरनीक बात सुनि सिपाहियोक मन उनटए-पुनटए लगलै। एक दिस मालिकक आदेश दोसर दिस मरनीक विचार। आखिर, एहेन लोकक बीच एहेन सक्कत विचार अबैक कारण की अछि? अनका देखै छिऐ जे खाली सिपाहीक वर्दी देख डेरा जाइए, भलेँ ओ सरकारक सिपाही नहियोँ रहए। मुदा हमरा तँ सभ कि‍छु अछि तैयो ऐ बुढ़ियाकेँ डर नै होइ छइ। ..फेर मनमे एलै, हम किछु छी तँ नोकर छी मुदा ई किछु अछि तँ स्वतंत्र बोनिहारिन। स्वतंत्र देशक स्वतंत्र श्रमिक। जे देशक अधार छी। आखिर देश तँ एकरो सबहक छिऐ।
सिपाहीकेँ ठाढ़ देख ठीकेदारे पाछू ससैर कऽ मरनी लग एला। मरनियोँ सभकेँ देखैत आ मरनियोकेँ सभ। ठीकेदार मरनीक आँखिपर अपन नजैर देलैन। नजैर पड़िते मरनीक आँखिमे सुरूजक रोशनी जकाँ प्रखर ज्योति देलखलैन। ललाटसँ आत्म-बिसवास छिटकैत देलखैन। ..मधुर स्वरमे ठीकेदार पुछलखि‍न-
“चाची, अहाँक परिवारमे के सभ छैथ?”
ठिकेदारक प्रश्‍न सुनि मरनीक आँखिसँ नोर खसए लगल। मन पड़ि गेलै अपन पति, बेटा आ पुतोहुक मृत्यु। टघरैत नोरकेँ आँचरसँ पोछि बाजल-
“बौआ, हमर घरबला, बेटा आ पुतोहु ठनकामे मरि गेल। अपने छी आ पिलुआ जकाँ दूटा पोता-पोती अछि।
“बच्चा सभ स्कूलो जाइए?”
“नहि। एक तँ गाममे स्‍कूल नइ छइ। तहूमे पहिने गरीब लोकक धिया-पुताकेँ पेट भरतै तब ने जाएत। ने भरि पेट अन होइ छै आ ने भरि देह बस्‍तर, ने रहैक घर छै, तहन‍‍ इसकूल केना जाएत।
मरनीक बात सुनि ठीकेदार सहैम गेला। मने-मन सोचए लगला, जे आँखिक सोझमे देखै छिऐ ओ झूठ केना भऽ सकैए। एते भारी काज केनिहारक देहपर कारी खट-खट कपड़ा छै, तोहूमे सैयो चेफड़ी लागल, काज करै-जोकर उमेर नइ छै, तैपर एते भारी हथौरी पजेबापर पटकैए..!
ठिकेदारक मन दहैल गेलैन‍। जहिना अकास आ पृथ्वीक बीच क्षितिज अछि, जैठाम जा चिड़ै-चुनमुनी लसैक जाइए, तहिना ठीकेदारक मन सुख-दुखक बीच लसैक गेलैन‍। जेना सभ कि‍छु मनक हेरा गेलैन तहिना सुन्न भऽ गेला। ने आगूक बाट सुझैत‍ रहैन‍ आ ने पाछूक। मरनीसँ आगू की पुछब से मनमे रहबे ने केलैन‍। साहस बटोरि पुछलखि‍न-
“भरि दिनमे केते रूपैआ कमाइ छी?”
ठिकेदारक प्रश्‍न सुनि मरनीक मनमे झड़क उठलै। बाजल-
“केते कमाएब! जेहने बैमान सरकार अछि तेहने ओकर मनसी छइ। चारि दिनमे एकटा पजेबा ढेरी फोड़ै छी तँ तीन-बीस रूपैआ दइए। तइसँ तीन तूरक पेट भरत? भरि दिन ईंटा फोड़ैत-फोडै़त देह-हाथ दुखाइत रहैए मुदा एकटा गोटियो कीनब से पाइ नै बँचैए।”
ठिकेदारक आँखिमे नोर आबि गेल। मनुखता जागि गेल। मुदा ई मनुखता केते काल जिनगीमे अँटकत? जिनगी तँ उनटल अछि‍।
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शब्‍द संख्‍या : 3412


[1] मालगुजारी

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