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Monday, June 16, 2014

दस-हजरिया नोट

लोक कथाक पुनर्लेखन- 
लेखक- ललन कुमार कामत
सम्‍पर्क-
गोल इंग्‍लि‍श गार्डेन सह ललन आर्ट
निर्मली- सुपौल

दस हजरिया नोट-


हम अपन इलाकामे जानल पहचानल पेन्टर छेलौं। पेन्टिंगमे बेदरेसँ लगाव रखैक कारण, भाड़ी-सँ-भाड़ी चित्र पल भरिमे बनेनाइ हमरा लेल असान छल।
एकटा लङोटिया दोस्त छल धीरेन्द्र, किराना दुकानदार आ जातिक भूमिहार। बखत-कु-बखतपर हम एक दोसरकेँ मदति‍ निस्वार्थ भावसँ करै छेलौं। एक दोसरकेँ विशुद्ध दोस्त मानै छेलौं। लोक सभ हमरा ऐ दोस्तीकेँ देखि हैरत रहै छल। हैरत ऐ खातिर रहै छल जे हमर दोस्त धीरेन्द्र भुमिहार जातिक छल। केते लोग कहैतो छल-
 “की रौ, भुमिहारसँ दोस्ती केलँह..., ठीकसँ रहिहेँ. कहीं भुमिहारी दाउमे फँसलँह तँ बुझि‍यैहनि‍!
मुदा ऐ बातपर हम कोनो कान-बात नै दइ छेलौं। एकदिन जहिना हम रंग-ब्रशक झोरा लऽ कऽ केतौ काजपर वि‍दा भेल छेलौं आकि जनक काका दलानपर सँ चिकड़ि कऽ बजा‍ कहलथि‍-  
रौ, सुन कहै छियौ तूँ जौं भुमिहारसँ दोस्ती केलँह तँ भुमिहारी दाउ एकोटा सिखलेँ आकि‍ नै?”
हमरा जिज्ञासा भेल आ पुछलियनि-
काका, भुमिहारी दाउ केकरा कहै छै हौ?”
हम जँ बुझि‍तौं तँ हमहीं ने तोरा सिखा दैतिऔ? लोक बाजै छै जे भुमिहारी दाउ बड़ पेंचिदा होइ छै।
हम भरि बाट गुन-धुन करैत एलौं मुदा ई कोन दाउ छी? जे लोक सभ दोसक संग देखि पुछैत रहैए? से नै तँ, आइ हम दोसेसँ ऐ बिषयमे पुछि कऽ रहब।
दुपहरियाक रौदामे हम कोसी प्रोजेक्टक देवालपर एकटा विज्ञापन लिखैत रही संयोगसँ तखने पाछूसँ मोटर साइकिलक सीटीक अवाज पिपियाएल! हम रंगक डिजाइन बनबैमे मगन रही। मने-मन तामससँ देह बहिर भऽ गेल! के एहेन दुष्ट छी जे डिस्टर्ब करैए?’ मुदा ताकब केना? जौं ताकब तँ डिजाइन खराप भऽ जाएत। लगल हाथ छोड़ि‍,़ ताकलौं। अवाक् रहि गेलौं! वएह भुमिहार दोस धीरेन्द्र छल। दोस्तीमे कनी-मनी शैतानी तँ चलिते रहैत छल। मन्‍द मुस्‍कान चेहरासँ सेहो छुटल। तैबीच धीरेन्द्रक नजरि पेन्टिंगपर पड़ल आ प्रशंसा करए लगल। मुदा हमर प्रशंसा, जे हमरे मुँहपर बाजल जाइत अछि! नीक नै लगल, अंग्रेजीक एकटा मुहावरा मन पड़ि गेल, ‘रेस्ट ऑन वन्स लॉरेल्सअर्थ अछि, ‘अप्पन ख्यातिसँ संतुष्ट नै रहक चाही,’ हम विनम्रतासँ कहलियनि-
दोस, अहाँक ऐ प्रशंसासँ हम खुश नै छी। हम मात्र एकटा छोटका कलाकार छी, खरचा-पानि चलेबा लेल ई काज करै छी।”  
तैबीच हमरा मन पड़ल भुमिहारी दाउपुछलियनि-  
दोस, लोक कहैए जे भुमिहारी दाउ बड़ नीक होइ छै, हमरो सिखा दिअ।”  
धीरेन्द्र पहिले तँ हमरा बातपर धियान नै देलक मुदा बेर-बेर जिद्द केलापर सोचए लगल, कनीकाल सोचि कऽ बाजल-
दाउ तँ अहाँकेँ सिखा देब मुदा बदलामे किछु दिअ पड़त।
हम पुछलियहन-  
कथी देबए पड़त? बाजू।
धीरेन्द्र फेर बजला-
अहाँकेँ एकटा दस-हजरिया नोटक पेन्टिंग बना कऽ हमरा दिअ पड़त।
हम बजलौं-
रूपैआक नोट! दस-हजरिया आ पँच-हजरिया की, जौं पेन्‍टिंगेसँ बनाएब तँ किए नै? जरूर बना देब। कनीए दिन रूकू फुरसति हुअ दिअ तँ छापि देब।
पेन्टिंग हमर ईश्‍वरीय देन छल, बेदरेसँ अनेक प्रकारक चित्र पाड़ै छेलौं, स्कूलमे सरजीकेँ यार-दोस्तक आ संग पढ़ैत लड़कीओ सबहक। बाबूजी सधारण किसान छल, हमर पढाइ लेल पर्याप्त खर्चा नै रहैक कारण अध्ययनक संग उपार्जनक मार्ग अपनौने रहौं। अखनि‍ हम निर्मली आ आसपासक क्षेत्रमे जानल-पहचानल चित्रकार छी। कामक व्यस्तता हरिदम रहैए। ऐ व्यस्ततामे दोसक लेल दस-हजरिया नोट बनेनाइ हम साफे बिसरि गेलौं।
एकदिन हम नगर सेठक दोकानक बगलमे साइन बोर्ड बनबैत रही, तखने धीरेन्द्रक अवाज सुनि‍ पड़ल। काम रोकि गद्दी लग हम ससरि कऽ एलौं, तही समैमे आउरो किछु जानल-पहचानल बेपारी सभ पहँुचल छल। धीरेन्द्र जोरसँ सभकेँ सुना कऽ हमरा कहैए-
की दोस, हमर काम नै हेतै?”
हम चौंकि गेलौं जे हमरा कोन काम कहने छथि! पुछलियनि,
कोन काज?”
वएह दस हजारबला!
हमरा मन पड़ि गेल दस-हजरिया नोट! मुड़ी हिला स्वीकृति दैत कहलियनि-
ओऽ हाँ, हेतै, हेतै, किछुए दिन और रूकू।
सेठजी नोटक गड्डी गीनैत-गीनैत, चेश्‍माक भीतरे-भीतर, रूपैआक बात सुनि हमरा दिस ताकए लगल। हम चुपचाप, काम करए लगलौं। हमरा एला पछाति़, धीरेन्द्र सभ लग बाजल, जे ई पेन्टर हमर दोस छी, हमरासँ दस हजार टाका लेने अछि, केतेक महिना भऽ गेल, मुदा टाका मांगलापर, आइ-काल्हि‍ करैत, समए काटैए।
समए बीतैत गेल, छह महिना-साल भरिक बाद, फेरि दोसर बेपारीक दोकानपर दस हजारक तकेजा केलक। हम दस-हजरिया पेन्टिंगक नोट समझि‍ टाड़ि देलौं। मुदा हमरा गेलाक पछाति धीरेन्द्र सभ लग बाजल फिरै छल जे साँचेमे ई हमर रूपैआ लेने अछि।
ऐ बातक दू बरख भऽ गेल। जेतए-तेतए लोक सभ हमरा कहए लागल-
धीरेन्द्रक रूपैआ किए ने फड़िया दइ छिही! दोस-बोनक पैसा एते-एते दिन रखनाइ नीक बात नै छै।
पहिले तँ हम असमंजसमे रहौं मुदा, जखनि पता चलल जे धीरेन्द्र दस-हजरिया पेन्टींगक बदलामे दस हजार टाका लोक सभ लग बाजल फिड़ैए, हम अवाक् रहि गेलौ! केतेक गोटेकेँ समझेबाक परियासो केलौं ई बात, मुदा जेकरे कहि‍ऐ वएह, बुड़िबक बनबए लगल-
कलाकार भऽ कऽ एहेन नीयत तोहर नै हेबा चाही।
हम चिंतित भऽ सोचए लगलौं, ‘ई दोस्त नै छी, दुश्‍मन छी, एते भाड़ी फेरामे पड़ा देलक! केतएसँ एते टाकाक ओरियान करब!हमर ओकाति हजार टाका जेना लाख टाकाक के बराबरि छल। बिना जमीन-जथा बेचने दोसर उपए नै छल।
कनीए दिनक पछाति, पंचैती भेल, पंचक फैसला भेल, कटि-मारि कऽ दू हजार सुइदकक संग बारह हजारक देनदारी ठहरौल गेलौं। लोक सभ बाजए नै दैत छल। जीवनमे एहेन बेज्जती कहियो नै भेल रहए। दस दिनक समए देल गेल।
 टाकाक ओरियान नै भऽ रहल छल। कोनो गुंजाइश नै देखि, एकटा उपए सूझल, जमीन बेचु नै तँ, भरना लगाउ। एक बीघा जमीन भैयारीक फाँट पड़ल छल। बेचब तँ फेर कीनल नै हएत, से नै तँ भरने लगा देबाक चाही।
हजार टाकाक दरसँ बारह कठ्ठा खेत भरना लगेलौं, रूपैआ लऽ कऽ दोसक घर पहुँचलौं। दलानपर कियो नै छल असगरे बैस गेलौं, दोस्तीनीकेँ खबरि गेल। कनीकालक पछाति, दोस्तीनी एक हाथमे पानिक लोटा आ दोसर हाथसँ घोघ तानि, अदहा मुँह झाँपल अदहा देखाइत, आगूमे पानि बढ़ा देली। तामससँ तँ हमर देह बहिर छल, सोचने छेलौं जे दोसकेँ किछु कहबनि, मुदा की करब! चोटपर दोस्तीनी पड़ि‍‍ गेली। भाड़ीए मनसँ कहलियनि-
दोसकेँ बजाउ आ कहियन जे अपन टाका लेता। 
कनी काल पछाति धीरेन्द्र हँसैत-हँसैत दलानपर एला। ई हँॅसी, हमरा हरियाएल घापर, नूनक लहरि जकॅंा लागल। चुप चाप रूपैआक गड्डी देलियनि, गिनला पछाति फेरसँ हमरे हाथमे धराऽ देलनि। हम चुपे छेलौं मुदा धीरेन्द्र बाजल-  
दोस, याद करू। अहाँ हमरा कहने छलिएे ने भुमिहारी दाउ सिखबैले? यएह छिऐ भूमिहारी दाउ।
एकबेर फेर दोसक ऐ बर्तावसँ हम चकित रहि गेलौं।


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