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Thursday, June 12, 2014

कथाकार नन्‍द वि‍लास राय जीक कथा ''मदन अमर'' जे 82म सगर राति‍ मेंहथमे पाठ कएल गेल

मदन-अमर


रमणजी इलाहावाद वि‍श्ववि‍द्यालयमे प्रोफेसर छथि‍। हुनका एक बेटा आ एकटा बेटी छन्‍हि‍। बेटाक नाओं मदन आ बेटीक मीरा रखने छथि‍। मीरा आ मदन इलहेवादक एकटा कॉनवेन्‍टमे पढ़ैए। मदन स्‍टैन्‍डर्ड पाँच आ मीरा स्‍टैन्‍डर्ड चारि‍मे पढ़ैए।
रमणजीक सासुर मि‍थि‍लांचलक कोयलख गाममे अछि‍। रमणजीक ससुर महराज रमणजी सँ गर्मी छुट्टीमे आम खाइले कोयलख आबए आग्रह केलखि‍न। रमणजी सपरि‍वार कोयलख एला।
नानी गाममे मीरा आ मदन दुइए-चारि‍ दि‍नमे गामक धि‍या-पुता संग तेना ने मि‍लि‍ गेल जेना पानि‍मे चीनी मि‍लैए। मदन नानी गामक धि‍या-पुता संगे कबड्डी आ हाथी-चुक्का खेल खेलाइत रहए। मदन तँ इलाहावादमे बैडमि‍न्‍टन आ क्रि‍केट देखैत रहए। कखनो-काल क्रि‍केट खेलबो करए। ओकरा लेल कबड्डी आ हाथी-चुक्का खेल नव छेलै, मुदा ओकरा नीक लगैत रहै।
नानी गाममे मदनकेँ अमर नामक एकटा बालकसँ दोस्‍ती भऽ गेल। एक दि‍न अमर मदनकेँ अपना अँगना लऽ गेल। अमरक घर फूसक रहए। ओकर बाबूजी दि‍ल्‍लीमे दालि‍ मीलमे काज करै छथि‍न। अमरक माए एकटा गाए पोसने छथि‍न। आइ-काल्हि‍ गाए लगबो करै छन्‍हि‍। खेत-पथारक नाओंपर अमरकेँ बाधमे दस कट्ठा खेत, दू कट्ठा गाछी आ दू कट्ठा घराड़ी। अँगनामे दूटा घर। अमरक माए नीकहा-नीकहा आम मदनकेँ खइले देलखि‍न। मदन अमरकेँ माएसँ बड्ड प्रभावि‍त भेल रहए।
मदनक नानाकेँ पक्काक घर। चारू भागसँ पोखरा-पाटन। ऊपरोमे चारि‍ कोठरी। गामक लोक मदनक नानाक घरकेँ हवेली कहैत अछि‍। मदनक नाना गोकूलबाबू पुरान जमीन्‍दारक बेटा, तइमे रि‍टारयर डि‍प्‍टी कलक्टर। गामक गरीब-गुरबा हुनका हािकम मालि‍क कहैत छेलनि‍।
एक दि‍न मदन अपना संग अमरकेँ अपना नानीक घर लऽ जाइत छल। मैल-कुचैल कपड़ामे अमर। ऐसँ पहि‍ने ओ कहि‍यो हवेली नै गेल रहए। ओ धखाइते-धखाइत मदनक संगे हवेलीक सीढ़ीपर चढ़ल। आगू बढ़ल। देखि‍ते मदनक नानी मदनकेँ पुछलखि‍न-
ई छौड़ा के छी। तोँ एकरा भीतर कि‍ए अनै छेँ?”
तैपर मदन बाजल-
नानी ई अमर छी। हम एकरा संगे खेलाइ छी। एकरासँ हमरा दोस्‍ती भऽ गेल अछि‍।
मदनक बात सुनि‍ नानी मदनकेँ डँटैत कहलखि‍न-
समूचा कोयलखमे तोरा यएह छौड़ा दोस्‍ती करैले भेटलौ। छोट लोकसँ दोस्‍ती करै छेँ!
तैपर मदन बाजल-
नानी ई छोट कहाँ अछि‍। ई तँ हमरे अतेटा अछि‍।
तोँ नै बुझलेँ। ई सभ छोट जाति‍ छी। एकरा सभकेँ हम सभ अपना हवेलीक भीतर नै आबए दइ छि‍ऐ।
अमर दि‍स देखैत नानी फेर बजली-
रे छौड़ा, केकर बेटा छीही?”
अमर बाजल-
भोला चौपालक।
कह तँ खतबे जाति‍क छौड़ाकेँ हवेलीक भीतर अनै छेँ। हवेलीओ छुआ जाइत। रे छौड़ा भोलबा बेटा, जो भाग एतएसँ।
अमर ओतएसँ चलि‍ देलक। मदन कि‍छु बूझि‍ नै पौलक। बकर-बकर नानीक मुँह दि‍स तकैत रहल। नानी ओकर हाथ पकड़ि‍ हवेलीक भीतर लऽ गेली।
अमर अपना आँगन जा माएकेँ सभ गप कहलक। माए पुछलखि‍न-
तूँ हवेली गेलही कि‍ए?”
तैपर अमर बाजल-
माए, हमरा तँ मदन लऽ जाइत रहए। हम कहि‍यो कहाँ हवेली दि‍स जाइ छी।
माए-
बाउ रौ, उ सभ पैघ लोक छथि‍न। हम पनरह बर्खसँ कोयलखमे छी मुदा आइ धरि‍ हवेलीक भीतर नै गेलौं। कहि‍यो काल खेरही तोड़ए हाकि‍म मालि‍कक खेतमे जाइ छी तँ हेवलीक ओसारक नि‍च्‍चेसँ खेरही राखि‍ आ बोइन लऽ घूमि‍ जाइ छी।
अमर माएक बात नै बूझि‍ सकल। पुछलक-
पैघ लोक केकरा कहै छै?”
माए जवाब देलखि‍न-
पैघ लोक माने बड़का आदमी। धनीक आदमी। पढ़ल-लि‍खल हाकि‍म-हुकूम।
अमर-
हमहूँ पैघ लोक बनब।
माए-
पढ़बीही तब ने पैघ लोक बनमेँ। देखै छीही ने जीतनीक मामा पढ़ि‍-लि‍ख कऽ हाकि‍म बनलखि‍न। ओ अबै छथि‍न तँ हाकि‍मो मालि‍क हुनका चाह-पान करबै छथि‍न। तहूँ मनसँ पढ़-लि‍ख आ हाकि‍म बन।
माएक बात सुनि‍ अमर बाजल-
तूँ तँ हमरा कि‍ताबो-काैपी ने आनि‍ दइ छीही। टी‍शनो ने धरा दइ छीही। कहैत रहै छीही गाए चरा आन।
तैपर माए बजली-
तूँ मोनसँ पढ़। तोरा कि‍ताप-कौपी सभ आनि‍ देबौ। गाइओ चरबए नै कहबो। टीशनो धरा देबौ। 
अमर बाजल-
हम मोनसँ पढ़ब आ हाकि‍म बनब।
अमर पढ़ए लगल। ओ अपना कि‍लासमे फस्‍ट करए। मैट्रि‍क आ इण्‍टरमे अपना जि‍लामे पहि‍ल स्‍थान लौलक। चटि‍या सभकेँ टीशन पढ़ा कऽ बी.ए. आनर्स फस्‍ट क्‍लाससँ पास भेल। जीतनीक मामा हरि‍यरीबला बीडीओ साहैबसँ भेँट केलक। ओ कहलखि‍न-
कोनो भी कम्‍पीटीशनक तैयारी लेल पटनामे बैसए परतह। तइले ढौआ चाही।
ई सभ गप्‍प अमर अपना माए-बाबूसँ कहलक। अमरक बाबू दस कट्ठा जमीनमे सँ पाँच कट्ठा जमीन बेच देलक। अमर पटनामे रहि‍ बी.पी.एस.सी.क तैयारी करए लगल। गाममे कुट्टी-चालि‍ चलए लगलै। जे जमीन बेच कऽ सभटा बेरबाद करैए फल्लमा। मुदा तेकर परवाह नै केलक अमरक पि‍ता।
पहि‍ले खेपमे अमर सफल भऽ गेल, बी.डी.ओ.क पदपर चयन भऽ गेलै।
प्रशि‍क्षणक बाद अमरक पदस्‍थापना निर्मली अनुमण्‍डलमे भेल। योगदानक दोसरे दि‍न हुनका चैम्‍बरमे हुनकर सहायक संचि‍का लऽ कऽ आएल। बी.डी.ओ. साहैबकेँ ओ चेहरा जानल-पहचानल लगलनि‍। ओ गौर करि‍ कऽ सहायक दि‍स ताकए लगलखि‍न। आ दि‍मागपर जोर देलखि‍न जे हि‍नका तँ केतौ देखने छि‍यनि‍। मुदा केतए से मोने ने पड़नि‍। सहायकसँ पुछलखि‍न-
अहाँक नाओं की छी?”  
सहायक जवाब देलखि‍न-
मदन कुमार ठाकुर।
मदन नाओं सुनि‍ते बी.डी.ओ साहैबकेँ बचपनक सभ घटा मोन पड़ि‍ गेलनि‍। हुनका भेलनि‍ शाइत ओ वएह मदन छी जे हमरा हवेली लऽ जाइत छल, मुदा ओकर नानी हमरा डपैट कऽ भगा देने रहए। मुदा शंका समाधान दुआरे पुछलखि‍न-
अहाँक मामा गाम केतए अछि‍?”
सहायक जवाब देलखि‍न-
जी, हमर मामा गाम कोयलख भेल। आ नाना स्‍व. गोकूल प्रसाद ठाकुर।
आब तँ बी.डी.ओ साहैबकेँ कोनो शंके ने रहलनि‍। ओ सभ संचि‍का पढ़ि‍ कऽ ओइपर दसखत करैत कहलखि‍न-
साँझमे हमरा डेरापर आएब।
तैपर सहायक मदन पुछलकनि‍-
सर, कोनो खास गप्‍प छै की?”
बी.डी.ओ. साहैब कहलखि‍न-
अहाँ आएब तँ ओतए आम आ खास मालूम भऽ जाएत।
सहायककेँ छातीक धड़कन बढ़ि‍ गेलनि‍। ओ सोचए लगला की बात छि‍ऐ। कि‍एक साहैब डेरापर बजौलनि‍। कि‍यो चुगली तँ ने कऽ देलक।
साँझमे मदन बी.डी.ओ साहैबक डेरापर पहुँचला। बी.डी.ओ. साहैब हुनका बड़ प्रेमसँ भीतर लऽ गेलखि‍न। एकटा कुरसीपर अपना बैसला आ दोसरपर इशारा करैत मदनकेँ बैसैले कहलखि‍न। दुनू गोटे कुरसीपर बैसला। बी.डी.ओ. साहैब पत्नीकेँ सोर पाड़ैत कहलखि‍न-
चाह-जलखैक ओरि‍यान करू। मदन एला।
मदनकेँ कि‍छु बुझेबे ने करए। ओ बाजल-
सर, कथी लऽ बजेलौं। की आदेश छै।
तैपर बी.डी.ओ. साहैब कहलखि‍न-
सर नै अमर बाजू अमर। हम वएह अमर छी जेकरा संगे अहाँ मामा गाममे कबड्डी, हाथी चुक्का खेलैत रही। एक दि‍न अहाँ अपना नीनीक हवेली लऽ जाइत रही तँ अहाँक नानी अहाँपर बि‍गड़ैत हमरो डँटने रहथि‍। की अहाँकेँ ओ घटना मोन अछि‍?”
मदनकेँ ममहरक सभ गप मोन पड़ि‍ गेल। ओ ठाढ़ भऽ कऽ हाथ जोड़ैत बाजल-
सर, हमरा माफ कऽ दि‍अ। हम बड्ड लज्‍जि‍त छी।
तैपर बी.डी.ओ. साहैब कहलखि‍न-
फेर सर! अमर बाजू। अमर। 
कहि‍ बी.डी.ओ. साहैब ठाढ़ होइत पुन: बजला-
आउ मदन, गला मि‍लू।

कहि‍ दुनू बाँहि‍ फैला देलखि‍न। मदन झि‍झकैत अमरसँ गला मि‍लल। मदनक दुनू आँखि‍सँ दहो-बहो नोर जाए लगलै।¦¦¦

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