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Tuesday, June 10, 2014

82म गोष्‍ठीमे जगदीश प्रसाद मण्‍डलक पठि‍त कथा

अवाक




दुनि‍याँक एक-एक मनुखकेँ जहि‍ना अपन देश-कोस आ अपन भूमि‍-मातृभूमि‍क प्रति‍ ममता सि‍नेह रहै छै तहि‍ना हमरो जगल। कोनो अधला वृत्ति‍ तँ छीहो नहि‍येँ जे बेसी तर्क-वि‍तर्क आकि‍ वि‍चार-वि‍मर्श करैक परयोजन पड़ैत। देह-दशासँ दुब्‍बर रहि‍तो अपन मातृभूमि‍क गरि‍मा बढ़बैले समाजसँ अनुचि‍त वि‍चारो आ काजो मेटबैक संकल्‍प मनमे रोपलौं। अनुचि‍तक वि‍रोधमे बाजब शुरू केलौं, मुदा बाजबे धरि‍ रहलौं। जइसँ कोनो भीड़-भड़क्कासँ कहि‍यो भेँट नै भेल। मनो आ मनक वि‍चारो तइसँ कनी-मनी सकता गेल। मन सकताइते अनुचि‍त काज रोकैक उत्‍साह जगल। उत्‍साहक दोसरो कारण भेल, ओ भेल जे हमरा सन-सन बहुत गोटे हमरे संग संकल्‍प मनमे रोपलक। जइसँ एक तरहक वि‍चारक जनम भेल। जहि‍ना आमक आँठीमे पीपही जनमि‍ते दू दलि‍आ बनि‍ आँठीक गुद्दा रगड़ पाबि‍ पीपहीक अवाज दिअ लगै छै तहि‍ना मन पीपीया लगल।
गाममे एकटा घटना भेल। घटना कि‍ भेल जे रामलालक बकरी चोरि‍ भऽ गेल। ओना मालो-जाल आ बकरीओ-छकरीक चाेरि‍ओ होइए आ अपनो डोरी टुटने वा खुजने सेहो खुट्टा छोड़ि‍ हटि‍ जाइए। खुट्टा सून देखने ताक-हेर मलकार करि‍ते अछि‍। मुदा होइ दुनू छै। चोरि‍ओ होइ छै आ खुजबो करै छै। खुजलाहा भेट‍ जाइ छै मुदा चोरौलहा चल जाइ छै।
भोर होइते रामलाल बकरी टोहि‍यबए लगल। परि‍वारक सभ तूर वाड़ी-झाड़ी, अड़ोसी-पड़ोसीक खेत-खरि‍हाँनमे ताकए लगल। सौंसे गाम बकरी चोरि‍क गंध पसरि‍ गेल। जेतए-तेतए माने चौक-चौराहासँ लऽ कऽ दुआर-दरबज्‍जा, इनार-पोखरि‍क घाट धरि‍मे एक्के चर्च। रामलालक बकरी चोरि‍ भऽ गेल। तही बीच दोसरो गंध नि‍कलल। ओ नि‍कलल जे कि‍छु रति‍गर दबि‍ कऽ गरम-मसालाक गंध पसरल। भरि‍सक केतौ मासु रनहाइए! एती राति‍मे! मुदा भाइयो तँ सकि‍ते छै जे कि‍यो दरभंगा-मधुबनीसँ राति‍ दबा मासु-तासु अनने हेता। पोखरि‍क पानि‍क हि‍लकोर जकाँ गामोमे हि‍लकोर उठल, मुदा केतौ असथि‍र तँ केतौ तेज गति‍ आएल। रौतुका मासुक सुगंध मुदा बकरी चोरि‍क भाँज खोललक। भाँज खुजि‍ते चोर-मोट धड़ा गेल।
समाज तँ समाज छि‍ऐ, ऐठाम तँ गोली-बन्‍दूकक ओगरवाहि‍ नै छै, ऐठाम तँ समाजक दसटा लोके अपन उचि‍त-अनुचि‍तक वि‍चार करता। ई तँ नै जे फल्‍लाँ-गाम चोरक छी आ चि‍ल्‍लाँ-गाम नीक लोकक। गाममे नीको लोक अछि‍ आ चोरो अछि‍। सतो बजनि‍हार अछि‍ झूठो बजनि‍हार तँ अछि‍ए, इमानदारो अछि‍ आ बेइमानो अछि तहि‍ना सूदि‍खोरो अछि‍ आ सूदि‍ देनि‍हारो तँ अछि‍ए। मुदा गाम-समाज तँ ओहेन जगहक इजोत छी जैठाम ऐनाक जरूरते ने छै, हाथक कंग भूमि‍ जकाँ।
बकरी चोरौनि‍हार अपन पूर्व संस्‍कारक परि‍चए दैत ताल ठोकि‍ अपन पैघ-पैघ वृत्ति‍क चर्च बखानि‍ देलक! वातावरण एहेन भऽ गेल जे बकरीएक तराजूपर गाम तौलाइक परि‍स्‍थि‍ति‍ बनि‍ गेल। पनचैतीक समए बनल। पनचैतीमे समाजक एते लोकक जुटान भरि‍सक कोनो पनचैतीमे कहि‍यो नै भेल छल। कोनो काजक एकमुहरी वि‍चार काजकेँ हल्‍लुक बनबै छै, से नै भेल। वि‍चारधाराक धारमे चोरि‍ फँसि‍ गेल! गाम दू फाँक भऽ गेल! मारि‍-पीट भऽ गेल! मारि‍-पीट भेने मुकदमाक आगमन भेल। लोअर प्राइमरीक चटि‍या जकाँ काँखमे झोरा टाँगि‍ मधुबनी कचहरीक स्‍कूलमे पचीस-तीस गोटे नाओं लि‍खौलक।
बीस बर्खक पछाति‍ जखनि‍ मुकदमा मरान दि‍स बढ़ल तइ समए एकटा अनुकूलतो भेल। भेल ई जे केसक संख्‍या बेसी भेने केसेक समए निर्धारि‍त भेल, जे अमुक केस जँ दस बर्खसँ न्‍यायालयमे अछि‍ तँ ओकरा खारि‍ज कएल जाए। मनुखे जकाँ मरानपर बेसी तरद्दूतक जरूरी होइते छै, बि‍मारीसँ सराध धरि‍। जेते गोटे मुकदमाक मुद्दालह रही अपनामे वि‍चार केलौं जे बीस बर्खसँ गाम-सँ-मधुबनी आ मधुबनी-सँ-गाम रेंगबे केलौं, समाज होइक नाते कम तँ नहि‍येँ भेल। तँए जेकर बकरी चोरि‍ भेल ओकरो खर्चमे मदति‍ करैले एकबेर कहि‍यौ। संयोग एहेन जे एकतरफा केस भेल, बकरीबला नै फँसल। जहि‍ना पहि‍ने अवाद छल तहि‍ना घटनाक पछाति‍ओ रहल। बि‍नु पानि‍क मनुख पीछड़ाह तँ होइते अछि‍। रामलालो ओहने पीछड़ाह। जेते जगह, जेते लोक, तेते रंगक चालि‍ आ तेते रंगक बोल तँ सभ दि‍नका रहबे करए, आरो बेसी चलती आबि‍ गेलै। चलतीक कारण दू-दि‍सि‍या भेल। दू दि‍शि‍या ई जे जेकर बकरी नै रहै तेकरे मधुबनीक दौगो-बरहा आ होटल, गाड़ी भाड़ासँ लऽ कऽ समए तकक खर्च हुअ लगलै। जइसँ मनमे हेबे करै जे दि‍ल्‍लीक लड़ू जकाँ जेहने खेने तेहने बि‍नु खेने। तँए अपन नोकसानीपर सोच-अपसोच हेबे करै। मनमे बोझ सेहो बनि‍येँ गेल रहै। बोझ बनैक कारण ईहो भेल जे जँ बकरीबला कमसँ कम पीठपोहुओ रहैत तँ कि‍छु असो रहि‍तए, मुदा सेहो नै! गाममे सभठाम बैसै-उठैक चलतीओ बेसी ओकरे भऽ गेल अछि‍। तैसंग दोसरो कारण भेल, ओ ई भेल जे एहेन लोकक ठेकाने काेन? हो-ने-हो कहीं गोटे वि‍रोधी एहेन संग देनि‍हार भऽ गेल जे अपने पूजी लगा तमाशा ने ठाढ़ कऽ दि‍अए। तमाशा ई जे कोट-कचहरीक कारोबार सेहो ठि‍कौतीएपर चलए लगल अछि‍। सभ काजक ठि‍कौती! एते तक कि‍ जजमेंटो ठि‍कौतीए होइए। तँए शंका हएब सोभावि‍के अछि‍। भरि‍ दि‍न आँखि‍ओ आ कानो देखि‍ओ कऽ आ सुनि‍ओ कऽ तोपाएले रहैए जे फल्‍लाँ पोखरि‍मे माछक जोती भेल अछि‍, केदैन‍ दबाइ राति‍मे धऽ देलकै। कि‍यो देखलकै कहाँ! तहि‍ना फल्‍लाँ गाछमे आम तोड़ि‍ लेलकै, फल्‍लाँक सजमनि‍क लत्तीए काटि‍ देलकै जे वि‍कसि‍त खेतीक प्रक्रि‍याक अंग छी, अंग ई जे जइ खेतमे अन्नक खेती होइए ओइमे जँ तरकारी खेती हुअए तँ अन्नसँ चारि‍ गुणा उपज जरूर बढ़त! गामक उत्‍पादन- उपजा-वाड़ी- गामकेँ आगू आ पाछू घुसकैक मि‍थि‍लाक चि‍न्‍तनधाराक प्रमुख थर्मामीटर छी। जे धरती अन्न, फल, फूल, भोजन, जीवनकेँ एक सूत्रमे बान्‍हि‍ देव तुल्‍य जि‍नगीक अनुसंधान कऽ चुकल अछि‍!
पाँच गोटे जे सभ केसक मुद्दालह रही, रामलाल ऐठाम गेलौं। रामलालक चलती खाली भाषणेटा मे नै खेत-बोनि‍हारसँ छोटका वेपारी बनि‍ गेल। गामो आ गामक चारू भाग छोटका-बड़का हाट लगि‍ते छै। एम्‍हुरका ओमहर लऽ जा बेचि‍ लइए आ ओमहर जे सस्‍ता रहै छै ओ कीन लइए। साइकि‍ल रखने अछि‍ एक मनक बोझाक कारोबारी बनि‍ गेल अछि‍। पहुँचि‍ते देखलि‍ऐ जे करीब तीन सए लाभक कारोबार करैए। तँए मुँहक मुस्‍की दैत कहलि‍ऐ-
रामलाल, गाममे केकरो चलती आएल तँ तोरा सभसँ बेसी एलह, एकेटा बकरी गेने जि‍नगी बदलि‍ गेलह।
जहि‍ना हमर मुस्‍की रहए तइसँ डेढ़ि‍या-दोबर मुस्‍कान भरैत बाजल-
चलती तँ सौंसे गामेकेँ एलै आकि‍ हमरेटा आएल। हमरे पाबि‍ केते लोक मधुबनी देखलक। नै तँ! बाप-दादा देखबे ने केलकै आ बेटा-पोता ओकील जकाँ कानून झाड़ैए!  
ओही दि‍न मुस्‍की आ मुस्‍कानकेँ देखलौं। रामलालक मुस्‍कान अपन जि‍नगीक लाली परहक, मुदा ओ लालीक जड़ि‍ की? से के देखत जेकरा ले चोरि‍ करी सएह कहए चोरा! कहलि‍ऐ-
रामलाल, तोहरबला केस आब मरानपर आबि‍ गेल अछि‍। बीस बर्खसँ तँ केसमे फँसल सोलहो गोटे मधुबनी रेंगबे केलौं आ खरचो केलौं। अंति‍म तोर केसक छी, वि‍धि‍-बेवहारमे खर्च होइते छै, कि‍छु उचि‍तो कि‍छु अनुचि‍तो। तँए अगि‍ला खर्च तूँ दऽ दहक।
मुस्‍कान भरल मुहसँ रामलाल बाजल-
हमहीं तोरा सभकेँ पनचैतीमे मारि‍ करए कहने रहि‍यऽ जे केसक खर्चा मंगै छह?”
रामलालक गप सुनि‍ अवाक भऽ गेलौं।
ओना मरैसँ पहि‍ने लोक अंगेज नेने रहैए जे मुइलोपर अस्‍सी मनक भार पड़बे करत तइले चि‍न्‍ता केने चीता मानत। जे बीस बरख लड़ल ओकरा बुते फरि‍छौल नै हेतै। मुदा...?¦¦¦


१७ मई २०१४

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