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Monday, June 2, 2014

82म सगर राति‍ कथा बौद्ध सि‍द्ध मेहथपा'' मेंहथ (झंझारपुर) मे पठि‍त बाल साहि‍त्‍यपर आधारि‍त उमेश पासवानक लि‍खल आत्‍मकथात्‍मक शैलीमे एक अनुपम कथा- अजोह

82म सगर राति‍ दीप जरए-कथा बौद्ध सि‍द्ध मेहथपा'' मेंहथ (झंझारपुर)मे उमेश पासवानक लि‍खल आत्‍मकथात्‍मक शैलीमे एक अनुपम बाल कथा- अजोह 


अजोह


स्‍कूलक पढ़ाइ, खेल-कूद, दस मि‍नट छुट्टी लेल बि‍नु कि‍छु बजने सर जीक आगू दुनू हाथक दसो आँगूर देखानाइ, बड़की पोखरि‍क महारपर जा गप-सप्‍प लड़ेनाइ, सवक नै बनल रहने बैजू कान्‍त सर तथा रायजी सरक घंट्टी छोड़नाइ इत्‍यादि‍ मन पड़ैए। मुदा तइ दि‍नमे कि‍छु आर छल। कि‍छु एहनो प्रसंग अछि‍ जेकरा तइ दि‍नमे ठीकसँ नै बुझै छेलौं जे आइ बूझि‍ रहल छी। कि‍छु ओहनो प्रसंग रहल जइमे अपने दोखी नै रही मुदा दोखीक सजा पबैत रही। अधलाकेँ अधला नै बूझि‍ नीक्के बुझैत रही। वास्‍तवमे ओ नीक नै छल, खराप छल, जे आइ बुझै छी। खैर! नीक-खरापक पनचैती नै करेबाक अछि‍। सुनेबाक अछि‍ अपन बचपनक खि‍स्‍सा।
तीसरा-चौथामे पढ़ैत रही। पाठकजी, यादवजी, रायजी, मोलबी साहैब आ बैजू कान्‍त सर छला हमरा सबहक शि‍क्षक। रमण, वीर कुमार, मनोज, मुरारी आ हम रही एक-दोसराक पार्टनर।
पाठक सर पढ़बैत रहथि‍न जोड़-घटाउ, रायजी एबीसीडी, यादवजी लि‍खना चेक करै छेलखि‍न आ जे समए बँचल तइमे यादि‍ केलहा कवि‍ता सुनै छला। मोलबी साहैब समाज वि‍ज्ञान पढ़बैत रहथि‍न। सभसँ आफत छल हमरा सभ लेल संस्‍कृत। बैजू कान्‍त सर पढ़बथि‍न संस्‍कृत। पाँच-सात दि‍नपर अबैत रहथि‍न स्‍कूल। बेसी काल कार्यालयी कार्यमे लगल रहैत रहथि‍न। तँए ई समस्‍या सभ दि‍नक नै कहि‍यो कालक छल।  
सभसँ नीक सरजी रहथिन मोलबी साहैब। कि‍एक तँ ओ मारै नै छेलखि‍न कोनो वि‍द्यार्थीकेँ। मारैमे नामी रहथि‍न बैजू कान्‍त सर। हम सभ डरसँ हुनकर कि‍लास छोड़ैक गड़ लगबैत रहै छेलौं। हुनकर घंटी अबैसँ पहि‍ने दस मि‍नटक छुट्टी लऽ नि‍कलि‍ जाइत रही। कि‍एक तँ ओ अपने जल्‍दी छुट्टी नै दैत रहथि‍न। कए दि‍न तँ पोखरि‍ महारपर सँ पजन्‍त टँगबा अनै छेलखि‍न वि‍द्यार्थीकेँ‍। आ लग्‍गे छौंकी! मुदा कए दि‍न असानीसँ बँचि‍ओ जाइत छल। खास कऽ ओइ दि‍न जइ दि‍न बैजू कान्‍त सर उपस्‍थि‍ति‍ होइत रहथि‍न आ हाथमे कागतक झोरा रहै छेलनि‍। झोरे देखि‍ हम सभ बूिझ जाइत रही जे आइ ठीक रहत। कि‍एक तँ हि‍साब-बाड़ी चलतै ऑफि‍समे। सभ कि‍यो आॅफि‍समे बैस हि‍साब-वाड़ी करता, हम सभ मुक्‍त रहब। खुश भऽ जाइत रही। मुदा भऽ जाए कि‍छु आैर। खुशी कहीं दबाएल रहै छै। कि‍लासमे हल्‍ला हुअ लगै। आकि‍ यादवजी आबि‍ तरतरबऽ लगैत रहथि‍न। यादव जीक तइ घड़ीक तामस दोसर रहैत रहनि‍। ओ ई जे लेखा-जोखा करैत घड़ी हि‍नकर इच्‍छा रहैत रहनि‍ जे हमहूँ ऑफि‍सेमे रही मुदा हल्‍ला जे हुअ लगै छल आकि‍ सभ कि‍यो यादवेजी सरकेँ कि‍लास पठा दन्‍हि‍। ओ आबि‍ सभटा बि‍ख हमरे सभपर उतारि‍ लइ छला।
हलाँकि‍ हम चारू मि‍त्र ऐ सभ समस्‍याकेँ रसे-रसे बूझि‍ गेल रही। आ ऐ सभसँ बँचैले दस मि‍नट छुट्टी लऽ पोखरि‍ दि‍स चल जाइत रही। छुट्टीओ अरामसँ मि‍ल जाइत रहए।
कहि‍यो काल बैजू कान्‍त सर बड़ तमसाएल अबैत रहथि‍न। हाथमे झोरा नै रहने हम सभ बुझि‍ओ जाइत रही जे आइ तमसाएल हेता। आइ मारि‍ लगले अछि‍। बैजू कान्‍त सर छुट्टीओ जल्‍दी नै दइ छथि‍न। संस्‍कृत वि‍षयमे आफदे-आफद। सभटा यादे करए पड़ैत छल।
हमरा सबहक हि‍साबे बैजू कान्‍त सरमे एकटा गुण रहनि‍। ओ ई जे नेबोक शर्बत बड़ पसि‍न रहनि‍। नेबो औत केतएसँ। जहि‍ना पि‍यास लगलापर हमरा सभकेँ पानि‍ पीआबए इशारामे कहथि‍न आ हम सभ पानि‍ आनि‍ पीअबैत रहि‍यनि‍ तहि‍ना मनक गप बूझि‍ नेबोओक जोगाड़ हम सभ लगा आनी। मुदा तइमे दि‍न-तारीखक मेल नै खाइत रहए। तैयो खुश भऽ जाथि‍न।
एक दि‍न नेबोक चर्च करैत कि‍लासमे पुछलखि‍न-
केकरा नेबो फड़ल छौ?”
रौदाएल आएल रहथि‍न। हाथमे झोरा नै देखने रहि‍यनि‍। आठम दि‍नन देलहा सवक यादो नै भेल छल। हम आ हमर मि‍त्र मुरारी एक्केबेर हाथ उठबैत बजलौं-
हमरा। हमरा।
मुदा एकटा आफत भेल दुनू गोरेकेँ कहीं नै जाए देलनि‍ तखनि‍ तँ फँसलौं। हम कहलि‍यनि‍-
सर, नेबो आनए हम जाएब।
यएह डर मुरारीकेँ सेहो रहै, प्रति‍वाद करैत ऊहो बाजल-
नै सर, हम जाएब, हमरा गाछमे कागजीबला नेबो छै।
हम ठाढ़े रहलौं। मुरारी हमरा दि‍स ताकए लगल। केना-ने-केना सरजी दुनू आदमीकेँ कहि‍ देलनि‍-
अच्‍छा जो दुनू गोरे, जल्‍दी अबि‍हेँ।
दुनू गोटे वि‍दा भेलौं। स्‍कूलक हाता धरि‍ तँ संचमंच भऽ टपलौं, जे काजे जा रहल छी। मुदा हातासँ टपि‍ते इठलाइत बढ़ए लगलौं। दुनू गोटे एक्के समस्‍यासँ घेरल रही। सवक नै बनल रहए। ई बात तँ तखने स्‍पष्‍ट भऽ गेल छल। जइसँ कोनो धरानी त्राण पेने रही। मुदा आब एकटा दोसर समस्‍या ठाढ़ भेल। नेबो गाछमे अखनि‍ सभटा थुल्‍लीए छै। ई नै बुझैत रही जे हमरो गाछमे अजोहे हेतै। आब तँ भेल आफत! आब की करब। मन औनाए लगल। समए सेहो बि‍त रहल छै। कहने छेलखि‍न जल्‍दी अबि‍हेँ। देरी हएत तँ वीरकुमरा ने कहीं सवक दुआरे दुनूटा नि‍कलल से सरजीकेँ कहि‍ दन्‍हि‍। सेहो मनमे आबए लगल। अन्‍तमे वि‍चार केलौं। पाँच-सातटा अजोहे नेबो तोड़ि‍ कऽ लऽ जा सरजीकेँ नै देखए देबनि‍ आ शर्बत बना गि‍लास पकड़ा देबनि‍। सएह करए वि‍दा भेलौं। नेबो तोड़ि‍ लऽ जाइत रही तँ राजे काका देखि‍ लेलनि‍। हमरा तँ नै कि‍छु कहलनि‍ मुदा मुरारीकेँ कहलखि‍न-
आइ आबए दहुन मनेजर साहैबकेँ। नेबो सुररनाइ की छि‍ऐ से पता चलतौ।
मुरारीक बाबूकेँ सभ मनेजर साहैब कहै छन्‍हि‍। बड़ तमसाह छथि‍न। मुरारी डरि‍ गेल। डर हमरो भऽ गेल। दुनू गोरे ठमकि‍ गेलौं। हमरा सभकेँ ठमकल देखि‍ राजे काका पुन:‍ पुछलनि‍-
केतए लऽ जाइ छेँ ई थुल्‍ली नेबो?”
अपन दोख छोड़बैत दुनू गोटे एक्केबेर बजलौं-
सरजी, कहने छथि‍न। हुनकर मन खराप छन्‍हि‍। शर्बत बनतै।
राजे काका मुड़ी डोलबैत कि‍छु ने बजला। हम सभ बढ़ि‍ गेलौं। दुनू पार्टनरकेँ बुझाएल जे पार लगि‍ गेल। स्‍कूलपर पहुँचि‍ते देखलौं बैजू कान्‍त सर ओङहा रहल छथि‍। फबल। हाँइ-हाँइ कऽ शर्बत बना सरजीकेँ उठबैत गि‍लास हाथमे देलि‍यनि‍। पीब तँ गेला मुदा केना-ने-केना बूझि‍ गेलखि‍न जे नेबो रसाएल नै छेलै। मुदा कि‍छु हाँट-दबाड़ नै केलनि‍। घंटी बदलि‍ गेल छल। समस्‍या टड़ि‍ गेल। दुनू पार्टनर खुशी भऽ गेल रही। मुदा ई खुशी दुखमे बदलि‍ गेल। डर तँ रहबे करए जे राजे काका ने कहीं बाबूजीकेँ कहि‍ दन्‍हि‍। सएह भेल। बेरू पहर, करीब साढ़े पाँच बजेमे मनेजर साहैबक संग मुरारीकेँ अबैत देखि‍ हम सर्द भऽ गेलौं। दलानपर एला। ताबत हम अँगना चलि‍ गेलौं। टाटक अढ़मे ठाढ़ भऽ डरे थरथराइत रही। आब की हएत की नै। बाबूजी दलानेपर बैसल छला। वाड़ीसँ काज करि‍ कऽ तुरन्‍ते आएले रहथि‍। मनेजर साहैबकेँ देखि‍ते हमरा सोर पाड़लनि‍-
रमेश?”
हमर तँ बुझू समुच्‍चा देह सर्द भऽ गेल रहए। कि‍छु ने प्रति‍उत्तर पाबि‍ पुन: सोर पाड़ैत बजला-
एक लोटा पानि‍ नेने आ आ माएकेँ कहुन दू गि‍लास चाह बनबए।
ई बात सुनि‍ थोड़ेक जान-मे-जान आएल। लोटामे पानि‍ लऽ दलानपर पहुँचलौं। लगले आबि‍ माएकेँ चाह बनबए कहलि‍यनि‍। चाहपत्ती घरमे नै रहने दोकानसँ आनए गेलौं। चाह बनल। दुनू गि‍लास चाह छि‍पलीमे लऽ माए हाथमे पकड़ा देलनि‍। छि‍पली लऽ कऽ दलानपर पहुँचलौं। मुरारीक चेहराक उदासी देखि‍ बूझि‍ पड़ल समस्‍या अछिए। दू-चारि‍ घोंट चाह पीला पछाति‍। मनेजर काका हमरा पुछलनि‍-
रमेश, सरजी कहने रहथुन नेबो तोड़ि‍ अनैले आकि‍ तूँ सभ अपने मोने तोड़ने छेलँह?”
अपन जान बँचबैत सहीए बात बजलौं-
सरजीए कहने छेलखि‍न, हुनकर मन खराप छेलनि‍।
ताबए बाबूजी पूछि देलनि‍-
पुछलुहुन नै जे अखनि‍ नेबो तोड़ेबला हेतै।
ई गप सुनि‍ मुरारी हमरा मुँह दि‍स तकलक। हम चुपे रहलौं। मनेजर साहैब बि‍च्‍चेमे दुनू गोटेकेँ कहलनि‍-
जाइ जो, नीकसँ पढ़ै जइहेँ।
मुरारी आ हम दुनू गोटे ओतएसँ ससरलौं। ओ दुनू गोटे अपनामे गप करैत रहला। हमरा दुनू पार्टनरक मन खुशी भऽ गेल, वि‍चारि‍ लेलौं आब थुल्‍ली नेबो कहि‍यो नै तोड़ब।  


-उमेश पासवान 

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