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Friday, August 10, 2012

अनमोल झा - अबकी बेर फतंग


अनमोल झा १९७०- गाम नरुआर, जिला मधुबनी। एक दर्जनसँ बेशी कथा, लगभग सए वि‍हनि‍कथा, तीन दर्जनसँ बेशी कविता, किछु गीत, बाल गीत आ रिपोर्ताज आदि विभिन्न पत्रिका, स्मारिका आ विभिन्न संग्रह यथा- कथा-दिशा”-महाविशेषांक, “श्वेतपत्र”, एक्कैसम शताब्दीक घोषणापत्र” (दुनू संग्रह कथागोष्ठीमे पठित कथाक संग्रह), “प्रभात”-अंक २ (विराटनगरसँ प्रकाशित कथा विशेषांक) आदिमे संग्रहित।

अबकी बेर फतंग

बात से नै छलइ, बात छलइ जे कहियो गाम-घर छोड़ि बाहर नै रहलइ, बेशीसँ बेशी दू मास आ दस पाँच दिन। सभ दिन तँ सबहक बीचेमे रहि कऽ पढ़ाइयो-लिखाइ गामेपर केलक, हाइ स्कूलमे गेल तँ झंझारपुर सेहो कतेक दूर, साइकिल उठाउ तँ पन्द्रह मिनट आ पएरे जाउ तँ पाउन घंटा। ओइ छहरपर सँ नीचा खसि जाउ तँ ओइ बाधे-बाधे आधा घंटा आ राखू ओहूसँ कम समैमे चलि जाउ स्कूल आ कालेज, आ चलि आबू फेर गामपर।
ओना अनिल सभ दिन गामेपर रहि पढ़लक से बात नै छलै, ओकरा आेहि‍ना मोन छलै जखन  ओ आइ कॉम फस्ट इयरमे ललित नारायण जनता कॉलेज झंझारपुरमे रहए तँ पढ़ुआ कक्का संगे, कक्के टी.सी. लऽ कए गेल रहए आर.के. कॉलेज मधुबनीमे, नाओं लिखाबए गेल रहए; आ नाओं लिखा दुनू बेटा आ पित्ती घूमल रहए मधुबनीक लॉज सभमे, एकटा डेरा लेल, डेरा ओइ दिन तँ झट दऽ नै भेट गेल रहै, तथापि गामेपर आबि जोगार पाती बैस गेल रहए। एकर गामक छोटका बौआसँ गामपर गप्प-सप्प भेलै आ ओ कहने रहै जे हमरा डेरामे एकटा सीट खाली छै, विचार हुअए तँ रहि सकैत छी, सत्तरि रूपया भाड़ा छै महिना, सेफरेट रूमक पैंतीस टका लागत, हँ एकटा चौकी लेमए पड़त। भानस-भातक जेना जे विचार हुअए अलग-अलग भानस करब तँ सभ बर्त्तन बासन सभ लेमए पड़त, नै एके ठाम करी तँ मोटा-मोटी सभ समान अछिये, आ जे नै अछि से लऽ लेब तैयो चलत आ नै लेब तैयो चलत। अनिलकेँ लगलै जे कियो एकरा लेल पहिलेसँ व्यवस्था केने हुअए तहिना सन बुझेलै ओकरा। ओ झट दऽ कहलकै, हँ हमरा विचार अछि, चलू मधुबनी आ एके ठाम रहब आ एके ठाम भानसो-भात करब, जे जेना खर्चा-वर्चा हएत आधा-आधा सएह ने? आ गेल अनिल मधुबनी ओइ लाजमे जाऽ कऽ पहिले अपन पोथी-पतरा सँथलक। छोटका बौआ, अपने आ लहटन तिनू गोटा जा चौकी कीन आनलक। ताइ दिनमे बिड़ासी आ तिरासी टाकामे चौकी देने छलै, चौकी कोनो साउख-सीसमक छलै, आमेक पाइस पउआ आ आमेक तखता, उलूके-फलूक एकजनिये टाइप। आ रहए लागल मोन लगाक ओतए।
मोन लगा कऽ तँ रहए लागल अनिल, मुदा मोन लागब एकरा कहबै की? जहियासँ मधुबनीमे रहनाइ शुरू केलक तहियासँ तिला संक्रांतिक सात दिन छलै, माने एक हप्ता, मोनमे विचारने रहए, गाम नै जाएत। लोके की कहतै, देखलक हौ पढुआकेँ दस दिन नै भेलै आ हाजिर जबाब? आ अपनो नीक नै बुझेलै। ओना काल्हि हेतै तिलासंक्राति तँ संगी, जे छोटका बौआ आ लहटन छलै, पावनि करए गाम चल गेलै । एक दिन पहिने सेहो भोरे भोर, साँझ तक अनिलोक मोन कछमछा सन गेलै, मोन केनादनि रिब-रिब करए लागल रहै, असगरमे खूब कानए कऽ मोन होबए लगलै आ उठेलक एक आध टा पोथी आ एकटा झोड़ा आ साँझुका बससँ गाम आबि गेल रहए पावनि करए। माएक मोन जुड़ा गेल छै, माए कहलकै- नीक केलेँ बौआ, चल एलेँ, तोरा बिना हमरा सभ केना पावनि करीतियौ? अनिल किछु बाजल नै रहए कारण जखन मधुबनी जाए लागल रहए तँ माए पावनिमे आबए कहने रहै मुदा अनिल कहने रहै जे एहनो एनाइ होइ छै? मुदा आइ अपने अनिलक आबि गेलासँ माएक छाती सूप सन भऽ गेलै। फेर पावनि कऽ प्राते फेर मधुबनी आएल। पढ़ाइ लिखाइक क्रममे मधुबनी आ गाम अनिलक पएरे तरमे रहए। दुरे कतेक, पच्चीस आ तीस किलोमीटर छलै गामसँ मधुबनी, आ मधुबनीसँ गाम।
अनिलक बाबूक तीन भाइक भैयारी छलाह, सभसँ पैघ पित्ती पढुआ कक्का गामेक स्कूलमे मास्टर साहेब छलाह। दोसर भाय बिचला अनिलक बाबूजी छलखि‍न जे गामेपर रहि खेतीबारी करैत छलाह आ सभसँ छोटका पित्ती कलकत्तामे कोनो प्राइभीट फार्ममे कोनो नौकरी करै छला। गामपर तीनू भाँइक साझी आश्रम खूब हेम-छेमसँ चलैत छल। सभ भैयारीमे आ सभ दियादनी सभमे सेहो ककरो कतौ दियाद बादमे झगड़ा होइ तँ अनिलक बाप पित्तीक उपमा देल जाइ छलै। गामपर लोकक भाबे तेहन जे नीक जकाँ सभक थथमारि कऽ घर आश्रम चलै छलै।
ओना पारिवारिक आर्थिक स्थिति नीक नै छलै, तथापि ओतेक खरापो नै कहक चाही, “लुटी आनए आ कुटी खाइबला बात छलै, तथापि आेइमे बड़ दीब जकाँ दिन कटल जा रहल छलै। अखन तँ भगवानक दयासँ दू कर भोजन आ दू हाथ वस्त्र तँ भेटीते आ आ जखन अनिलक बाप-पित्ती बच्चा रहए तँ हुनका सभकेँ ओहूपर आफद भऽ जाइत छलनि। गप्पे-गप्पमे माए एक दिन कहने रहै अनिलकेँ- बुझले बौआ, कि जखन तोहर बाप स्कूलसँ पढ़ि कऽ आबथुन तँ तोहर भैया हमरा कहथि, बौआकेँ खेनाइ दऽ अबियौ आ हम लाजे नै जाइऐ खेनाइ देबए, कारण खेसारीक रोटी आ मसुरीक उसना कतौ खेनाइ देल जाइ, हमरा लाज हुअए खेनाइ दैत। तँ सएह परिस्थिति छलउ तोरा बाप-पित्तीक घरक। रातिक मसुरीक उसना खा कऽ सभ सूति रहै छलउ, आइ भगवतीक दयासँ से बात तँ नै छउ। उसना आ फुटहाबाल बात।
ई सभ सूनि अनिलक माथा सुन्न जकाँ लागए लगै, मुदा से केने कोनो लाभ छलै की? चिंता केने मोन आर खराप सन लागए लगै आ अपने मोने-मोन मोनकेँ सांतत्वना दै- जे बीत गेल से बात गेल
खएर...................।
अनिल मैट्रीक, आइ. कॉम आ बी. कॉम.क परीक्षाक बाद जहाँ कि परीक्षा समाप्त होइ टिकट कटा फटाकसँ कलकत्ता पहुँच जाइ छल छोटका पित्ती लग, कलकत्ता घुमए। कलकत्ता ओकरा बड नीक लगलै आ कलकत्ताक लोक सभ आ ताइमे मौगी आ छौड़ी सभकेँ देखि कऽ ओकर आँखि फाटए लगलै, एह उदण्ड आ एह उघार आ निघार, ओ मोने-मोन सोचए लागल। एकरा सभकेँ जतेक उघार ततेक फैसन लगै छै की? अनिल गामसँ कलकत्ता जता बेर आबए परीक्षा दऽ कए, सभ ठाम जाइ छल। जतए गेलो छल तत्तौ जाइ छल माने चिड़ियाखाना, विक्टोरिया मेमोरीयल, तारामण्डल, जादूघर, बिड़ला मन्दिर, बिड़ला म्यूज्यम, नेहरू चिल्ड्रेन म्यूज्यम, कालीघाट, दक्षिणेश्वर काली, बेलूड़ मठ आ आर कतए कतए नै घुमए लेल जाइत छल अनिल। आ लेक गार्डन आ एम्हर ओम्हरका पार्क आ मैदान सभ तँ धांगल छलै ओकरा। जए बेर आबए खूब घूमए; आ भरि दिन डेरापर असगर पड़ल राजा बनल रहै छल। पित्ती आफिस चल जाइत छलै आ डेराक आर लोक सभ ड्यूटीपर। एतुक्का लोककेँ एतेक ड्यूटीक प्रति सतर्कता देखि‍ अनिलकेँ आश्चर्य लगैत छलै, चारि बजे भोरे पित्ती उठै, शोचादिसँ निवृत भऽ नहा सोना भानस भात कऽकए। छः बजे फिट। आठ बजैत-बजैत बासन खाली, माजल-धोल आ चकमक करैत रहैत छलै आ सभ लऽ कऽ पड़ाइत छलै ड्यूटीपर। फेर मुन्हारि साँझमे अबैत छलै सभ फेर। खेनाइ-पिनाइ बना सुति रहै छलै आ प्रातः भेने फेर ओहे रामा ओहे खटोलबा बला बात होइ छलै। से एकरा आश्चर्य लगैत छलै बुढ़ पित्तीक ई फुर्त्ती देखि। अनिलकेँ मोने-मोन होइ, काश एहिना आ एतहे जकाँ फूर्त्ति आ काजक प्रति एतेक सजगता गाममे लोककेँ रहितै तँ निश्चय कोनो गाम गाम नै रहितै, सभ गाम अपन नाओं शहरमे गनबऽ लगितै। जे-से..............।
अनिल तँ कोनो खुट्टा गाड़ि कऽ रहै लेल कलकत्ता नै जाइ छल, ओ तँ परीक्षा-तरीक्षा कोनो भऽ जाइ मधुबनीमे तँ दस दिन मास दिन घुमि आबए छल पित्ती लगसँ। से बेचाराक मोनो खूब लगैत छलै कलकत्तामे। मुदा जखन गाम आबए कालमे पित्ती गाड़ीपर चढ़बै लेल हावड़ा अबै छलखि‍न तखन अनिलक बरदास्त सँ फाजिल भऽ जाइत छलै। हिचुकि-हिचुकि कानए लगैत छल, धीया-पुता जकाँ। पित्ती बुझैत छलखि‍न, ई आइ गाम जाइत अछि, एतए एकरा नीक लगैत छलै तँए कनैत अछि। मुदा पित्तीये की करितथिन्ह, छोट-छीन नोकरी, कलकत्ता देखू आ गामपर घर-आश्रम सेहो देखए पड़ैत छलनि आ नइहे देखए पड़ितैन तँ की सभ दिन अनिल अपन पढ़ाइये लिखाइ छोड़ि कऽ एतए पड़ल रहितै, सएह की नीक बात छिऐ? आ बोल भरोस दऽकए भातिजकेँ गाम बिदा करथि। ओना बेटा आ भातिजमे कोनो अंतर छै? बेटे जकाँ मानितो छलनिहेँ पित्ती आ देख-भाल सेहो करैत छलनिहेँ अनिलक।
एम्हर गाम आ मधुबनी एलापर एक राति मोन नै लगैत छलनिहेँ बाउकेँ। होइन जे किछु हरा गेल हो कलकत्तामे, आ हरेतैन की? लगैन अपने या मोने हरा गेल हो। एक मोन इहो होइ नाओं-ताओं कटा ओतहे चलि जाइ पढ़ाइ-लिखाइ करए, से फेर मोन अछताए-पछताए सेहो लगैत छलै, मधुबनीक पढ़ाइ आ कलकत्ताक पढ़ाइ, आ मधुबनीक खर्चा-बर्चा आ कलकत्ताक खर्चा-बर्चामे अकास पातालक अंतर छलै। सेहो दम सकरब बाला बात छलनिहेँ, आ अपन बाप किछु छलै तँ गामपर गृहस्थे छलै ने, पित्तीयेपर कते कुदता, पित्तीक फेर अपनो बाल बच्चा छै ने, कोनो इएहटा नै छथिन जे चल बाबा या कोनो बड़का हाकिम मुखतारो नै छन्‍हि पित्ती। फेर तँ छोटे छीन कम्पनीमे काज करैत छै ने। जे से बात धीरे-धीरे सरा जाइत छलैहेँ आ फेर अपने आप मोन लागए लगैत छलै मधुबनी आ गाममे।
समैकेँ बितैत देरी होइ छै? ओ तँ हबाइ जहाजोसँ तेज गतिसँ चलै छै आ देखिते-देखिते कतएसँ कतए भागि जाइ छै। मधुबनीक पढ़ाइ समाप्त भेलै आ नौकरी-चाकरी लेल खूब प्रयास आ दौग बड़हा केलक अनिल, गाम घर, पटना, दरभंगा-मधुबनी आदि-आदि ठाम। अखुनका युगमे भगवानक भेटब आ नोकरी भेटब एके दर्जाक बात भेलै। औना कऽ रहि गेला अनिल, कतौ गोटी नै बैसलनि। मोने-मोन अपने-आपपर खुँझाइत रहथि, पढ़ाइक कोन काज? मधुबनीक ओगरनाइक कोन काज? पढ़ाइक पाछाँ पाइ बहाबैक कोन काज? जखन ईएह बेरोजगारीक जिनगी, तखन एतेक तपस्ये कथीक? होइ अपन मूड़ी अपने पानिमे गोइत ली। आब आर किछु नै नीक लगै छै अनिलकेँ। मोन अनोन-बिसनोन सन लगै छै ओकरा, अपरतीब सन सेहो।
पित्ती छोटका कोनो काज उद्यममे गाम आएल छलखि‍न, अनिल कोनो काज ताजक बारेमे गप्प केलक पित्तीसँ। पित्ती आबै काल कलकत्ता लेने एलखि‍न। अपना सेठकेँ कहलखि‍न- हमर भातिज छी आ भातिज की हमर बेटे बूझि कोनो काज एकरा दहक। पित्तीक पैरबी काज केलकै आ भऽ गेलै अनिलकेँ कोनो क्लर्केक पोस्टपर, पित्तिये ऑफिसमे काज।
ट्रेनिंग भेलै आ तकरा बाद अप्वाइन्टमेन्ट आ कन्फरमेशन सेहो। आब लगभग चारि-पाँच बरखसँ काज करैत अछि कलकत्तामे अनिल। पित्ती भातिज एके नगरी आ एके डेरामे सेहो रहैत छथि। मोन नै लगबाक कोनो बाते नै। मुदा अनिलकेँ मोन नै लगैत छै आब कलकत्तामे। बात कने भटमेराह सन सभकेँ जरूर लगै छै जे जइ अनिलकेँ कलकत्ताक प्रति एतेक स्नेह आ उद्गार छलै जे हावड़ामे ट्रेन पकड़ै काल आ गाम जाइत काल कानए लगैत छल, छ मसिया चिल्का जकाँ, तकरा आइ एतए नीक किएक नै लगै छै? ओकरा नोकरी छोड़ि देबाक इच्छा होइ छै। मुदा पित्तीक मुँह आ गामक ओ नौकरी लेल बौऐनी आ छिछिऐनी मोन पड़ि जाइ छै। पित्तीक मुँह लऽ कऽ मोन पड़ै छै जे अनिलक सामनेमे दुनू हाथ जोड़ि थड़थर कपैत सेठसँ अनिलक लेल नोकरीक भीख मँगने छलै, से जँ आइ नोकरी छोड़ि देतै तँ पित्तीक कतेक मान रहतै। ओना आइ कतौ सरकारी काज आकि नीक पोस्टबला काज कतौ होइतै आ तखन जे छोड़िये देतै तँ पित्तीक अपमान नै छाती सूप सन होइतै आ कहैयो लेल होइतै ने, सरकारी काम आकि उच्च पोस्टबला काम भेटलै तेँ छोड़ि देलक, मुदा सेहो बात नै छलैहेँ।
अनिल करत की, तँए काज करैत छल। मुदा ओकर मोन मिसिया भरि नै लगैत छलै। ओकरा गामक लोकसभ गामक चौक-चौराहा, कलम-गाछी, पुबारी बाड़ी, बढ़मोतर आ खोइटक खेत, कुमरी पोखरि, उसराहा आ बौअन झा पोखरि सभ मोन पड़ि जाइत छलै। ओकरा गाम, झंझारपुर आ मधुबनी सभटा आँखिक समक्ष नाचए लगैत छलै। ओकरा ई बान्हल जिनगी एकदम नै नीक लगै छलै। ई आठ-दस घण्टा ड्यूटी आ एतेक व्यस्तता सोहाइत नै छलै। ओकरा मोन होइ छलै गाम-घरमे रहबाक, कत्ता गोटा कहै, अहाँकेँ नोस्टालजिया भऽ गेलहेँ, बिछुड़ल लोक, बिछुड़ल समए आ बितल बात सभ जे एतेक मोन पड़ैत अछि, से किछु नै नोस्टेलजियाक बात छी।
ओकरा मोन पड़ै छलै गामक नांङट-उघार बच्चा सभ, गामक जुगेश्वर, बालेश्वर, फतुरिया, उत्तमा, जे तीन सेर बोइन लेल सारा दिन ओही रौद आ पानिमे तितैत लोकक ओतए काज करैत छलै। ओकरा मोन पड़ै छलै गामक सभ वस्तुक दिक्कत, सड़लाहा राजनीति। लोकक कुचिष्टामे लोक लीन रहै छै। भरि पेट लोक भोजनो करतै तैयो हँसतै आ जँ भुखले रहतै तैयो हँसतै। मुदा एतेक बात बूझितो आ सुझितो आ गमितो अनिल ऑफिसमे रिजाइन दऽ दै छै आ चल अबैत अछि गाम। आ गाममे रहए लगै छै।
पित्तीक सभ प्रतिष्ठा आ बातकेँ अनिल पएरक ठोकरसँ घैला जकाँ गुड़का देलकै। घैला गुड़कि कऽ फूटि गेल छलै आ पानि सौंसे बहि गेल छलै। अनिलक पित्ती मोने मोन सोचै छै, कलकत्ताक ओही डेरामे आखिर एना किए भेलै, जकरा कलकत्तामे एतेक नीक लगैत छलै तकरा एक बैग एना किए मोन भऽ गेलै। आ अनायास मोनमे आ आँखिक सोझाँ अनिलक पित्तीकेँ अपन भैयारीक ओ बच्चाबला समए मोन पड़ै छै आ देखाइ छै खेसारीक रोटी, मसुरीक सन्ना आ पेटकटारी लागल पेट आ अभावे अभाव सगरे...!  

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