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Friday, August 10, 2012

शंभु नाथ झा ‘वत्स’ -अतीतक घटना/ सपना/ कोशीक प्रलंकारी बाढ़िमे भाँसल एकटा लड़कीक सत्य कथा


शंभु नाथ झा वत्स
अतीतक घटना/ सपना/ कोशीक प्रलंकारी बाढ़िमे भाँसल एकटा लड़कीक सत्य कथा      

मनोरमा आइ उठैमे देर कऽ देलक। आइ आँखि खुजिए नै रहल छलै। देबारक घड़ीपर नजरि गेलै। साढ़े छ बजि गेल। हड़बड़ाइत मनोरमा नल लग जाए आँखिमे पानिक छिटा मारलक। झटसँ पेस्ट आ ब्रश लऽ कए मुँह धोअए लागल। तावत रजनीशक अवाज सुनाए पड़लै- मनोरमा, चाह...।
आँए। रजनीश पहिनहिए उठि गेल छल।
फेर रजनीशक आवाज होइ छै।
-हे ऐठाम टेबुलपर चाह धरि देलौंहेँ।
मनोरमा मुँह-हाथ धोए कुरूड़ कऽ कमरामे प्रवेश करै छथि आकि रजनीश तैयार भऽ कऽ बाहर निकलि कऽ कहलक- हम जा रहल छी। हमर बस छूटि जाएत। अहाँ उठैमे देर कए देलौं- रजनीश बाजल।
 -नाश्ता कऽ लिअ, बना दैत छी।-मनोरमा बजलीह।
 -हम नास्ता बना कऽ खा लेलौं। अहूँ लेल धऽ देने छी।
 रजनीश बाजिते-बाजिते बाहर भऽ गेल।
 मनोरमा सकपका गेलीह। आइ हमरा की भऽ गेल छल। आँखिए नै खुजि रहल छल। रजनीश कखन उठि कऽ सभ काजसँ निवृत्त भऽ गेल। आ अपनहिसँ चाह सेहो बना लेलक आ नाश्ता सेहो? हमरा नै उठौलक। कत्तौ मोनमे दुःख तँ नै भऽ गेलैए। नै दुःख तँ आइ धरि नै केलक। हमहूँ रजनीशकेँ खुश करबा लेल कोनो कसर नै राखलौं। मुदा आइ की भऽ गेल छल जे उठैमे देरी भऽ गेल। हँ रातिमे सपना देखलौं। सपना भोरे-भोर धरि देखलौं। तँ उठबामे देर भऽ गेल। रजनीशक स्कूल दूर पड़ैत छैक। तेँ रोज साढ़े पाँच बजे उठि जाइ छै। हमरो निन्न साढ़े पाँचसँ पहिने टूटि जाइत छल। मुदा आइ हमरा की भऽ गेल छल जे आँखिए नै खुजल। रजनीश हमरा उठएबो नै केलक।
मनोरमा रातुक सपनाक स्मरण कऽ अतीतमे चलि गेलीह। महाकाल रात्रि छल। कुशहा बान्ह टूटि गेलै। कोशी माए रोद्र रूप धारण कऽ भयानक गर्जन करैत गामक-गाम अपना उदरमे समाबए लगलीह। कतौक नारी-पुरुषक सुतलेमे प्राण पखेरू उड़ि गेलै। मरल बच्चा-माल-मवेशी भाँसि-भाँसि कऽ बहै लागल। सुपौल, मधेपुरा, सहरसाक किछु भाग आ पूर्णियाँ आ अररिया जिलाक पश्चिम भाग सेहो डूमि‍ गेल। दू मंजिला मकान सभ तँ कतोके उलटि गेल। फूस घरक कथे कोन। त्रिवेणीगंज बाजार, मुरलीगंज बाजार तँ बर्बाद भऽ गेल। महाप्रलयकालीन धारा भऽ जखन कोशीक धारा दक्खिन दि‍सि‍ बढ़ल तँ गाम-घर, बाग-बगान सभटा नष्ट भ्रष्ट भऽ गेलै। विशाल-विशाल गाछ-बिरीछ सभ धराशायी भऽ गेलै। चारू दि‍सि‍ पानि-पानि नजरि आबए। कतौ-कतौ बाँस भरि पानि। पक्काक मकानपर बचल-खुचल आदमी सभ आश्रय लेलक।
मनुक्खोमे जे राक्षसी प्रवृतिक मनुख छल, सहायताक ढ़ोंग रचि-रचि धन लोभसँ ग्रस्त भऽ महा-अनर्थ कार्य केलक। जइ गाममे पानि पहुँचैमे देर भेलै तइ गामक लोक सभ आशामे, जे आब पानि घटि जेतै, लोभसँ गाम नै छोड़लक। मुदा अओर पानि बढ़िए गेलै।
जिनका सभकेँ पक्काक मकान छलै से सभ अपन-अपन टाका गहना जेवर लऽ कऽ मकानक छतपर पहुँचि गेल। तीन-चारि दिन बीति गेलै। भोजनक समस्या। बच्चा सबहक प्राण निकलए लागल। सभटा अनाज, चूल्हा-चौका, जारनि आदि तँ नीचेमे छलै। सभटा जलमग्न छलै, जिनका हाथमे मोबाइल फोन छल ओ अपन सर-कुटुमकेँ सूचना दऽ देलक। मुदा सरो-कुटुमकेँ किछु नै फुरन्हि। बल-कल तेज धारमे किनको हेलए केर साहस नै होइन्‍हि।
एम्हर लूटे खसोटे केर मोन बला सभ नाह लऽ कऽ बचाबए केर स्वांग रचि नाहपर चढ़ा कऽ माँझ धारमे आबि सभटा माल-पत्तर गहना जेवर छीनि कए पानिमे धकेल दैत छलए।
केन्द्र सरकार आ राज्य सरकारकेँ त्राहिमाम् संदेश जखन भेटलै तखन जा कऽ फौज केर नाह आएल। ऊपरसँ हेलीकॉप्टरसँ बिस्कुट आ भोजन सामग्री पहुँचाएल गेल। सहायता शिविर स्थापित भेल।
ई काल रात्रि १८ अगस्त २००८ केँ आएल छल। मनोरमा सेहो अपन परिवारक संग अपन मकान केर छतपर छलि। कतेक दिन बीति गेल छल। चारू दिस पानिए पानि। कत्तो भागए केर रास्ता नै। उपरसँ झमाझम बरखा सेहो बरसै छल। भूख प्याससँ बाँचब कठिन भऽ गेल छलै। ताबत एकटा नाह लऽ कऽ तीन-चारि आदमी आबि नाहपर चढ़ा लेलक। किंतु माँझ धारमे जाए सभटा गहना जेवर टाका छीनि कऽ सभकेँ लाठीसँ मारि पानिमे धकिया देलक।
मनोरमा सेहो धक्का खाए पानिमे खसि ऊब-डूब करए लगलीह। ओ बेहोश भऽ भाँसैत-भाँसैत एक किनार लागि गेलीह।
मनोरमाक आँखि खुजलै- होशमे अएलीह तँ अपनाकेँ राहत शिविरमे पओलीह। राहत शिविरमे अन्यान्यो सबहक डॉक्टरक उपचार भऽ रहल छलै। मनोरमा जखन दूइ चारि दिनक बाद स्वस्थ भेलीह तँ डॉक्टर आ राहत शिविरक व्यवस्थापक मनोरमाक निर्देशसँ ओकर सूचना ममहर भेजवा देलकै।
मनोरमाक पिता अवकाश प्राप्त प्रधानाध्यापक छलाह। मनोरमाक जेठ भाए युगेश कृष्णाष्टमी पूजामे गाम आएल छल। युगेश कलकत्तामे मेडिकल पढ़ि रहल छलै। मनोरमाक बि‍आहक कथा लागि गेल छलै युगेशेक साथी धर्मानन्दसँ। अगला माघ-फागुन मासमे बि‍आह होमए बला छलै। मनोरमा सेहो बी.ए. छलीह। दरवज्जेपर कृष्णाष्टमी पूजा धूम-धामसँ हरेक साल मनाएल जाइत छलै। सभ भगवानक मूर्त्ति सभ बनि कऽ तैयार छलै। पूजाक व्यवस्था जोर-शोरसँ भऽ रहल छलै ताबते ई महाप्रलयक घटना घटित भऽ गेल। माम एक छोट छिन शहरमे शिक्षकक नोकरी करए छलनि। मनोरमाक सातम आठम दिन ममहरमे रहब भेल छलै। मामीक व्यवहार मनोरमाकेँ नीक नै बुझा रहल छलै। मामी एकांतमे मामसँ कहथिन- एकरा माथपर किए बैसा लेलिऐ। आगाँ किछु सोचबो करै छिऐ। एकर बियाहो करबै पड़त। एक दिन मनोरमा मामीक मुँहसँ मामसँ ई कहैत सुनि लेलक। मनोरमा चिंतित भऽ गेलीह। बेर-बेर मामीक तानासँ अकच्छ भऽ गेल छलीह। मनोरमा शहरक मोहल्लामे घुमि कऽ सम्पर्क कऽ कऽ छोट-छोट नेना सबहक ट्यूशन करए लगलीह। मामो ओतए पूर्वसँ आवागमन रहबे करै तँए मुहल्लाक लोग सभ मनोरमाकेँ चिन्हते रहै तेँ ट्यूशन भेटैमे भाङ्गठ नै भेलै।
एक दिन रघुवीर जे सम्बन्धमे ममियौत छलै मनोरमासँ कहलखि‍न- बहिन कोनो कान्वेन्ट धऽ लैतिए तँ बड्ड नीक होइतौ।
मनोरमा बजलीह- भाए। हमर सार्टिफिकेट तँ घरेमे पानिमे नष्ट भऽ गेल। अहाँ भाए मदति कऽ दिअ। सहरसा कॉलेजसँ प्रिंसिपल साहेबसँ आवेदन अग्रसारित कराए मधेपुरा यूनिवर्सीटीसँ द्वितीयक लब्धांक पत्र सभ मंगा दिअ। हे भाए हमर सन अभागल केर किछु मददि कऽ दिअ। हमरा किछु नै सूझि रहल अछि। हम अनाथ छी।-  कहि कऽ मनोरमा फफकि-फफकि कानए लगलीह। रघुवीर सान्त्वना दऽ चुप करौलक। रजनीशकेँ हाल-फिलहालमे सेंट्रल स्कूलमे नोकरी भेटल छलै। ओ छुट्टीमे अपन शहर आएल छल। रघुवीरक संग एक दिन रजनीश बाजार करएले जा रहल छल। मनोरमा सेहो किछु सहेली संग बाजार घूमि रहल छलीह। रजनीश केर नजरि जखन मनोरमापर पड़ल तँ रूप-लावण्य देखि‍ ओ भाव विह्वल भऽ गेल। ओ रघुवीरसँ प्रश्न कएलक- रघुवीर, ई नवयुवती के थिक?  
नजरि हटिए नै रहल छलैक।
-हमरे पिसियौत बहिन थिकीह। बाढ़िमे सभ किछु बर्बाद भऽ गेलैए। भाए, माए, पिताजी केर कोनो पता नै छै।- रघुवीर सकल वृतांत कहि सुनौलक।
रजनीश दुर्घटनाकेँ सुनि व्यथित भऽ गेल। ओ मोने-मोन विचारै लागल जे एकर बि‍आह नीक घरमे होएबाक चाही। एह शिक्षित सुन्दरि जइ घर जएतीह, ओ घर स्वर्ग भऽ जेतै। प्राकृतिक विपदासँ एह उत्तम कुल शील वाली कन्या अनाथ भऽ गेल अछि। रजनीश विचार मग्न रघुवीरक संग आगाँ बढ़ल जा रहल छल।
ताबत पाछाँसँ मधुर शब्द सुनाए पड़लै -रघुवीर भाए। ई देखू विद्या विहार कान्वेन्टमे एकटा महिला शिक्षक केर विज्ञापन छै। मनोरमा एकटा न्यूज पेपर देखइत बजलीह।
-बड्ड नीक। आवेदन कऽ दियौ।- रघुवीर बाजल। 
-कतेक योग्यता अछि।- रजनीश हठाते पुछि देलक।
-बी.ए. संस्कृत आनर्स फर्स्ट क्लास।- मनोरमा सकपकाइत बजलीह।
-अहा हा! तखन तँ अहाँ कऽ निश्चिते भऽ जाएत।-रजनीश बाजल।
तरहे गप्प सप्प करैत घर घुरि सभ आबि गेल। रजनीश केर मोनमे मनोरमा बैस गेल। रजनीश एक दिन प्रसंगमे माएसँ कहि देलक। -माए हम कमाबैत छी, लेल हम आदर्श बि‍आह करब आ एहेन लड़कीसँ जे कुलीन हुअए आ परिवार जनक सेवा कऽ सकए। सभ परिवार जनकेँ मनोरमा पसिन्न भऽ गेलीह, खास कऽ रजनीशक मोन राखए लेल।
बि‍आह कए रजनीश मनोरमाकेँ लऽ कऽ शहर आबि गेल। गर्मीक समए, अप्रैल-मइ मास। रजनीशकेँ सबेरे तैयार भऽ नाश्ता कऽ स्कूल जाए पड़ैत छलै। बि‍आह कऽ शहर आएब पन्द्रह-बीसे दिन लगधग भेल छलै। दुनोक बीच अगाध प्रेम छलै। मनोरमा नित भिनसरे साढ़े चारिये बजे उठि कऽ चाह बनाबैत, दुनू गोटे संगहि पीबै छल। आ नास्ता बनाए रजनीशकेँ खुआ प्रेमसँ बिदा करै छलीह। मुदा आइ अतीतक घटनाक सपना देखैत भोरमे आँखिए नै खुजलै। तइ लेल रजनीश अपनहिसँ सभ काम कऽ लेलक आ फेर अपन स्कूल चलि गेल।   

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