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Monday, August 6, 2012

अतुलेश्वर - बसात


आइ झंझारपुर बजार मे बहुत दिनक बाद माधव झा भेटल छलाह। भेंट होइतहिँ ओ सुरु भए गेलाह अपन आन्तरिक गप्प बँटबामे। जेना-तेना छुटकारा भेटल आ हम अपनामे लगलहुँ। मुदा हुनक कहल बहुतो रास बात एखनहुँ घुरिया रहल अछि। बेरि-बेरि मोन पड़ि जाइछ माधव झाक व्यथा। माधव झाक बेटा विवेक मध्यम कोटिक छात्र छल, मुदा रहए मेहनतिआ आ तैँ ओकर आकांक्षा रहैक जे इंजीनियर बनी। माधव झा सेहो मध्यम आयक लोक, मुदा सन्तानक आकांक्षाकेँ पूरा करबाक लेल अपनाभरि प्रयास करैत रहनिहार। समाजमध्य बसात तेहन बहि रहल छैक जे जत-तत अर्थक काज। तैओ ओ अपना लेखें एहि प्रयास मे हरदम लागल रहैत छलाह जे जेना-तेना बेटाक आकांक्षा पूरा होइक। मोन पड़ैत अछि जखनि इंजीनियरिंग पढ़ाईक जाँच-परीक्षा परिणाम आयल रहैक आ हमहीँ हुनक पुत्रक रिजल्ट देखने रहिअनि, ओ परिणाम सूनि निराश भए गेल रहथि, कारण विवेकक पोजीशन बड्ड निम्न स्तरक छलैक। परिणामक हिसाबें ओकर एडमिशन कोनो नीक इंजीनियरिंग कॉलेजमे आ मनोनुकूल प्रभाग भेटबाक सम्भावना बहुत कम रहैक। हम कहने रहयनि जे- औ जी आइ-काल्हि सभ गोटा अपन सन्तानकेँ इंजीनियरे बनएबामे व्यस्त छथि,  हमरा जनैत किछु दिनमे ओकर हाल ठीक नहि रहतैक। तैँ अपन पुत्रकेँ प्रतियोगिता परीक्षाक हेतु तैआर करु आ सम्प्रति कॉमर्स रखबाक हेतु कहिऔक। हमर गप्प सुनि माधवजी तँ सहमत भेलाह मुदा पुत्रक आकांक्षा ओ नहि तोड़य चाहैत छलाह। एहि बीच पुत्र सेहो दिल्लीसँ परीक्षा द घुमि आयल रहनि, कारण जे आब तँ एडमिशनक बेर भ गेल छलैक। ई कथा ओ माधव झा केँ सेहो कहलक, संगहि इहो जे काल्हि हम मुजफ्फरपुर जायब, जतए ओकरा कॉनसिलींग मे बजौने छैक। प्रातः ओ मुजफ्फरपुर गेल आ एम्हर चिन्तित माधवजीकेँ हम कहने रहियनि जे जखनि छात्र स्वयं एतेक उत्सुक अछि तँ ओहि उत्सुकताकेँ रोकब उचित नहि।
किछु दिनक अभ्यन्तर पुनः झंझारपुर बजार मे भेटलाह। हमर जिज्ञासा पर ओ चिन्तित चित्तेँ चाहक दोकान दिस घीचैत कहलन्हि- गप्प कने माहूर भ गेल अछि आ ई गप्प ठाढ़े-ठाढ़ नहि कहि सकैत छी। दूगोट चाहक आग्रह करैत हम पूछलियनि जे कि बात छैक, अपने की कहैत छलहुँ? ओ अत्यन्त गम्भीर भ कहए लगलाह- की कहू! किछु नहि फुरा रहल अछि, एक दिस सन्तानक मोह आ दोसर दिस हमर आर्थिक स्थिति। पता नहि जे कोना दुनूक बीच सामंजस्य होएत। गप्पकेँ फरिछबैत कहलनि जे -काल्हि मुजफ्फरपुरसँ अएला पर खुशीपूर्वक कहलक जे कागज-पत्तरक कार्य भए गेल, हमर नामांकन उड़ीसाक एकटा इंजनियरिंग कॉलेज मे होएबाक अछि। हमसभ क्षण भरिक लेल सुन्दर सपना देखनहिँ छलहुँ कि ओकर अग्रिम पंक्ति झकझोड़िकेँ राखि देलक। ओकर कहब छलैक जे एहि लेल कम सँ कम पाँच लाख टाका चाही। पाँच लाख टाकाक गप्प सुनितहिँ लागल जेना हमर शरीरसँ सबटा खून सोखि लेल गेल हो, मोनमे तत्कालहि आएल जे ने राधाकेँ नओ मन घी होएतनि आ ने राधा नचतीह। आँखिक आगाँ अन्हार भए गेल छल, आगाँ कोनो इजोत देखबामे नहि आबि रहल छल। किंकर्त्तव्यविमुढ़क स्थिति छल। मुदा बेटाक ई शब्द सुनि जे आब बैंकसभ पढ़बाक हेतु कर्ज दैत छैक, किछु आशा जागल। हम व्यग्र भए पूछि बैसलिऐक जे – एहि हेतु हमरासभकेँ की करए पड़त? ओ सहज रूपेँ कहलक जे एहि हेतु जमीनक कागज बैंक मे जमानति रूपमे जमा करए पड़त। ई गप्प सुनि बाबूजी बजलाह कोना होएत, कारण जखन हमरा तीनू भायमे बँटवारा नहि भेल अछि तखन जमीनक कागज बैंक मे कोना जमा कएल जाए सकैछ। हमर मुँहसँ अनायास निकलि गेल जे ई तँ असम्भव अछि। आ विवेक ई गप्प सुनतहिं भनभनाइत ओतए सँ उठि चल गेल आ अपन माएसँ कहि बैसल- ‘लगैत अछि हमर कैरियर हिनके सभ जेकाँ एही खोनही मे सड़ि जाएत’ आ ई कहैत घरमे जाकेँ सूति रहल। हमर स्थिति विकट छल, ने ओहि पार ने एहि पार, बीच समुद्रमे डुबैत एकटा निरीह प्राणी, जकर जीवनक कोनो आस नहि। एतबा कहैत ओ किछु कालक हेतु रुकलाह, हम हुनका विभिन्न तरहेँ आशान्वित करैत अपन-अपन बाट धएल।
माधवजीकेँ किछु अति आवश्यक कार्यवश गाम जाए पड़लनि, जतए भेंट भए गेलखिन एकटा मित्र। मित्रक ममियौतकेँ सेहो इंजीनियरिंग पढ़बाक लेल चुनाओ भेल छलनि आ ओहो हुनके सन समस्यामे पड़ि समाधान ताकल आ नामांकन कराओल। हुनकहि द्वारा ताकल समाधानक बाटेँ माधवजी सेहो पार उतरलाह आ बेटाक नामांकन कतेओ ढ़क-पेँचक बाद  भोपाल मे भ गेलैक। पछाति अपन पेट काटि बेटाकेँ पढ़बैत रहलाह। कतेको दिनक बाद एकबेर फेर हुनकासँ झंझारपुरहिमे भेंट भेल ओ खूब प्रसन्नचित्त बुझएलाह। हमर भोज-भातक आग्रह पर अत्यन्त आह्लादित होइत तत्काल तैआर भए गेलाह, मुदा चाह-पान खाइत अपन-अपन घर दिस बिदा भए गेलहुँ। हुनकासँ हेँठ होइतहिँ नाचि उठल अपन छात्र-जीवन। सोचए लगलहुँ जे यदि हमरो सभक समय एतेक सहज रहितैक तँ आइ एम.ए. क केँ सूप महक भट्टा बनल नहि रहितहुँ। मुदा ओएह गप्प, आब सोचिए केँ की! परञ्च, भूततँ पाछाँ छोड़निहार नहि, तेँ पुन: स्मरण भए आएल अपन रोटी जोगाड़, आइ एहि ठाम तँ काल्हि ओहि ठाम, कोनहुना जीवनक गाड़ी घीचि रहल छलहुँ। इएह दौगा–दौगी मे पहुँचि गेल रही कर्नाटक। गामक सभ खुशी- अहा बेचारा बड्ड दिन सँ बौआ रहल छल, एहि बेर ओकर जोगड़क काज भेटलैक। मुदा जे भेटल, केहन भेटल ओ तँ हमहिंटा जनैत छलहुँ, मुदा किछु संतोषजनक तँ अवश्य छल। एतेक दूर अयलाक पश्चात गाम सँ सम्पर्क कमि गेल आ अपनाकेँ नव परिवेशमे घुला लेलहुँ। आइ कतेको सालसँ कर्नाटकमे रचल-बसल छी, मुदा गाम तँ गाम होइत छैक।
किछु दिनक अवकाश पर गाम पहुँचल छलहुँ। गाम जाए झंझारपुर बजार नहि जायब ई सम्भव नहि। संयोग एहन जे झंझारपुर जाइतहिँ भेटि गेलाह माधवजी।  कुशल क्षेम पूछैत कत छी, बहुत दिनक बाद भेटलहुँ, आदि प्रश्नक झड़ी लगा देलनि। हम कहलियन्हि जे एतेक प्रश्नक उत्तर ठाढ़े-ठाढ़ नहि द सकैत छी। ताहि पर ठहक्का मारैत बाजि उठलाह- अहाँ तँ हमर मूहक गप्प छीनि लेलहुँ आ ई कहैत हम दुनू गोटें चाहक दोकानमे पैसि गेलहुँ। चाहक चुसकीक सङ अपन कथा हुनका सुनबैत गाम सँ एतेक दूर, ताहि पर सँ निश्चितता नहि, ई गप्प–सप्प कहैत छियैन्ह। मुदा ओ आशाक पोटरी खोलैत कहलनि- भगवती सभ आशा पूर्ण करतीह। गप्प बढ़बैत हम विवेकक इंजीनियरिंग पढ़ाईक जिज्ञासु भेलहुँ, सङहि छुट्टीमे गाम अएबाक विषयमे पूछि बैसलिएनि। हमर गप्प सुनि ओ एकबेर हमर मूह दिस ताकि आकाश दिस ताकए लगलाह। जेठक मास, तैँ भगवान भास्कर अपन रौद्र रूपमे धरतीबासीकेँ अपन प्रतापेँ जरा रहल छलाह तैओ ओ हुनके दिस ताकि उठलाह। एकटा पैघ निसाँस लैत कहलनि- ‘हँ गाम आयल अछि लगभग आठ दस दिन भेल हेतैक।’ एकटा पैघ श्वास छोड़ैत कहि उठैत छथि-  “मोनमे बहुत दिन सँ  एकटा गप्प घुरिया रहल छल आ मोन होइत छल जे ककरो कहियौक, मुदा केओ ओहन विश्वस्त भेटिए नहि रहल छल, आइ संयोग सँ अहाँ भेंट भ गेलहुँ, होइत अछि जे ई गप्प अहाँकेँ कहि मोनकेँ हल्लुक करी।” हमर प्रतिक्रियाक प्रतीक्षा बिनु कएनहि ओ सुरु भए गेलाह– “जीवनक एहि यात्राक धारमे कतेक ठोकर लागत से नहि कहि। मोने मोन प्रसन्न छलहुँ जे हम अपन लक्ष्य पाबि गेलहुँ, जीवनमे नव किरिनक आशा देखए लगलहुँ, मुदा एकाएक सम्पूर्ण भविष्य मेघाच्छादित भए गेल।’’ ई कहैत दहो-बहो नोरमे डूबि गेलाह। बादमे बहुतो बुझौला पर ज्ञात भेल जे एक दिन सभ गोटा सङहि भोजन कए रहल छलाह। माधवजीक बाबूजी विवेकसँ पूछलखिन्ह जे ओतए कोना कि हौ। एहि पर ओ एकटा संक्षिप्त  उत्तर देलक सभटा ठीके ठाक। आ बाबूजी वाह! वाह! कहए लगलाह। गप्प बढ़ैत गेल आ एही क्रममे विवेक एकटा एहन गप्प कहलकनि जे सभक मोन तीत अकत्त कए देलकनि। ओ कहलकनि जे ओतए सभ किछु तँ ठीक ठाक छैक मुदा हमरा ई कहैत लाज होइत अछि जे हमर पापा कोनो कार्य नहि करैत छथि आ नहि तँ कोनो पैघ व्यापारी छथि। ओकर कहब छलैक जे एतेक धरि हम पहुँचलहुँ अछि ओ तँ अपन विश्वाससँ, नहि तँ हमरहुँ पापा जेकाँ पाँच लाख टाकाक लेल पढ़बा आ नौकरी करबा सँ पहिने अपन सन्तानकेँ कर्जदार बनबए पड़ितए। आगाँ ओ दादाजीसँ कहि बैसल- अहाँ तँ बहुत पैघ पंडित छी तखनि ई कखनो अहसास नहि भेल जे अहाँ सँ कम पढ़ल-लिखल पंडित जागे झा अपन दुनू बेटाकेँ कत सँ कत पहुँचा देलन्हि, हमरा तँ अहाँक एहि बुद्धि पर हँसी लगैत अछि जे अहाँक बेटासभ हाथ-पैरक अछैतो लुल्ह-नांगर बनि बैसल रहि गेलाह, जाहिसँ सम्पूर्ण परिवार काहि काटि रहल अछि। माधवजी ओ हुनक बाबूजीकेँ किछु फुरिऐ नहि रहल छलनि, मुदा विवेक लेल धनि सन, ओ  बुदबुदाइत रहल- कोन घरमे जन्म भ गेल, से नहि जानि।
माधवजीकेँ शान्त करबामे ठीके बहुतो समय लागल, यद्यपि छगुन्तामे अपनहुँ पड़ल छलहुँ। पान हुनक हाथमे दैत मात्र एतबहि कहि सकलिएनि- माधवजी, ई नवका बसात छियैक,  आ एहि बसातमे अपने जे संवेदना तकबैक ओ असम्भव। बुझियौ जे हमरा लोकनि एकटा चिड़ै छी जे अपन बच्चासभक लेल अपन सभ आकांक्षाकें आगि मे झोकि ओकर सभक आकांक्षा पूरा करैत रहू एहि आशामे जे एकटा नव बिहान अओतैक। ठीक ताही बेरमे हमर गाम जाय बाली गाड़ी खुजबाक लेल पुक्की मारि रहल छल आ हम हुनका सँ विदा लैत चलि पड़ैत छी आ रास्ता भरि अपस्याँत माधवजी हमर आगू मे नचैत रहैत छथि आ हम सोचए लगैत छी ई नवका बसात......!

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