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Sunday, October 28, 2018

चटवाह (दिवालीक दीप पोथीसँ)


भोरे बरदकेँ घरसँ निकालि थैरमे बान्हि गाएकेँ घरसँ निकालिते रही कि नागेसर भायकेँ दच्छिन-सँ-उत्तर-मुहेँ अबैत देखलयैन। ओना, नजैर गाएपर छल तँए नगेसर भायपर अझप्पे नजैर पड़ल जइसँ चेहराक रंग-रूप नीक जकाँ नहि देख पेलौं मुदा नागेसर भायकेँ तँ देखबे केलिऐन। हाथसँ गाएकेँ खुट्टामे बन्हैत मुहसँ नागेसर भायकेँ पुछलयैन-
भाय, केतए-सँ भोरे-भोर अबै छी?”
ओना, चारि-पाँच बरख नागेसर भाय जेठ छैथ, तँए समाजिक लोक लाजे भायकहै छिऐन। ने ओ अपन परिवारक छैथ माने वंशगत परिवारक आ ने लतरल लत्ती जकाँ दियादेवाद छैथ मुदा समाजक बीच जे धारा प्रवाहित अछि तइ हिसाबे भायकहै छिऐन। समाजिक धारा ई अछि जे उमेरक हिसाबसँ आनो-आनकेँ, माने जे अपन वंशगत परिवारक नहियोँ छैथ हुनको लोक बाबा, ‘काका’, ‘भैयाइत्यादि कहिते छैन। तही हिसाबसँ हमहूँ हुनका भायकहै छिऐन। गाइयक डोरी बान्हि आगू बढ़लौं कि ताबे नागेसरो भाय रस्तापर सँ उतैर दरबज्जा लग पहुँचला। लग पहुँचते नागेसर भाइक चेहरापर नीक जकाँ नजैर पड़ल। नजैर पड़िते बुझि पड़ल जे अस्सी मन पानि नागेसर भाइक मनपर पड़ल छैन। जेठुआ मेघ जकाँ घोघ लटकल देखलयैन। मिरमिराइत नागेसर भाय बजला-
ओहिना गाममे छिछिआइ छी।
नागेसर भाइक गपक कोनो अरथे ने लागल। तैपर मुहोँ लटकल छेलैन आ चेहरोक रंग उड़ल-उड़ल सन छेलैन जइसँ अनेको प्रश्न मनमे उठि गेल। मुदा एक तँ भोरक समय, यत्र-कुत्र नहियेँ बाजल जा सकैए आ दोसर दरबज्जापर छैथ। हुनकर बातकेँ दहलबैत बजलौं-
भाय, पहिने चौकीपर बैस तमाकू खाउ, पछाइत दुनियाँ-दारीक गप-सप्प हेतइ।
ओना, तरे-तर नागेसर भाइक मन मन्हुआएल रहबे करैन मुदा विचारकेँ पेटेमे दाबि कऽ रखने छला। जँ आनठाम आन गोरे लग रहितैथ तखन प्रभावशाली भाषण करैत अपन प्रभावसँ प्रभावित कऽ नेने रहितैथ मुदा जहिना हम हुनका चिन्है छिऐन तहिना ओहो हमरा चिन्हते छैथ तँए वाणीकेँ समेट मनेमे रखने छला। नागेसर भाइक चेहरासँ अनेको रूप टपैक रहल छेलैन, जेना- लटकल मुँह, भोरे-भोर छिछियाएब, तैपर सँ पैंसैठ  बर्खक टपान टपल गामक एकटा प्रवुद्धजन! गामक अस्सी-सँ-नब्बे प्रतिशत लोक हिनका आदरक नजैरसँ देखते छैन जेकर जीबैत रूप अछि जे नवतुरिया धिया-पुतामे कियो ओझहाबाबा’, तँ कियो भगतबाबा तँ कियो गुनीबाबा कहिते छैन। तैसंग ओइसँ ऊपरका लोक माने चेष्टगर लोक सेहो कियो भगतकाकातँ कियो गुनीकाका सेहो कहिते छैन। जनिजाति तँ सहजे बताहे भेल छैथ जइसँ जिनका जे नीक नाम रूचै छैन से से कहै छैन। तहिना तहूसँ ऊपरक उमरदार आदमी सेहो भगत भाय’, ‘गुनीभायकहिते छैन। मुदा हम तइ सभसँ अलग सोझे भायकहै छिऐन, उमेरक लेहाजसँ।
नागेसर भाइक रूप-रंग देख अनेको प्रश्न मनमे उठि रहल छल जे पुछिऐन मुँह किए लटकल अछि आ ठोरसँ फुफरी किए उड़ैए। मुदा अनेरे किए झूठ-फूसमे झूठा-फूसाक संग अपनो सार्थक समयकेँ निरर्थक बनाबी। कहब जे टोकबे किए केलिऐन, तइमे कनी नजैर मिलानी भऽ गेल। नजैर मिलानी ई भेल जे जहिना गाइयक डोरी पकड़ने रस्ता दिस तकलौं तहिना चटपटाएल नागेसर भाइक मन सेहो गप-सप्प करैले चटपटाइत देखलयैन। जइसँ भोरू पहरक दुआरे मनमे आबि गेल जे भरिसक तमाकू दुआरे दस्त ढील नइ भऽ रहल छैन तँए कछमछा रहल छैथ। तँए कहलयैन, तमाकू खा लिअ। जँ कोनो मुसीबतमे पड़ल छैथ तँ अपने ने मुँह खोलता। ओना, मुसीबतो नीक-बेजाए दुनू होइए। दुनू मानेकेँ अपन-अपन भाँजो होइते अछि। जँ नीक-ले मुसीबत पड़लैन ओकर महत् अलग भेल आ जँ अधला वृत्तिक मुसीबत छैन तँ ओकर महत् अलग भेल। आँखि मुइन सभ मुसीबतकेँ एक्के कसौटीपर तौल बाजब ओ तँ अँखिमूना गुण भेल। ओना, आँखिमुनो गुण दू रंगक अछिए। एकटा अछि नीककेँ आँखि मुइन मानि चलब आ दोसर भेल अधलाकेँ नीक मानि आँखि मुइन मानबो करब आ चलबो करब।
ओना, सँपकट्टा वा छुछुनैरकट्टा जकाँ भीतरे-भीतर नागेसर भाय कछमछाइते छला तँए हुअए जे बफैर कऽ बाजी, मुदा चालीस सालक पैछला जिनगी दुनू गोरेकेँ एते दूरी बनाइये चुकल अछि जे जहिना विषवत रेखा टपला पछाइत लोक बुझैए जे हम उत्तरी ध्रुवक यात्रापर छी आकि दछिनी ध्रुवक। तैबीचक लोक तँ बुझिये ने पबैए जे दुनियाँक दूटा छोरो अछि आ दूटा धुरियो अछि आ अपने कोन छोर पकैड़ चलि रहल छी। बड़ीकालक पछाइत, तैबीच एकबेर तमाकू खा थुकैर सेहो फेक चुकल छेलौं आ दोसरो जूमक तैयारीमे थोपड़ी दऽ तमाकुलक गरदीकेँ उड़ा चुकल छेलौं, नागेसर भाय बजला-
आब जीब कठिन भऽ गेल। सौंसे दुनियाँ एक्के बेर उजैड़ गेल।
आब जीब कठिन भऽ गेल’, नागेसर भाइक ई विचार अपनो नीक लागल जे अपनो जीब तँ कठिन भइये गेल अछि, मुदा एक्के बेर दुनियाँ उजैड़ गेल’, एकर कोनो माने लगबे ने कएल। तहूमे अपने उजड़ब माने अपन परिवारकेँ उजाड़ब आ दुनियाँ उजड़ब, दुनू दू भेल। दुनियाँ ते सदिकाल किछु-ने-किछु उजैड़ते रहैए आ बनिते रहैए, मुदा अपन जिनगी तँ से नइ छी जे सदिकाल बनत आ सदिकाल उजड़त। एकर तँ अपन आधार छै, अपन घाट आ अपन बाट छइ...। बजलौं-
भाय ई की कहलिऐ जे एक्केबेर दुनियाँ उजैड़ गेल? जखन दुनियेँ उजैड़ जाएत तखन रहब केतए?”
जहिना हृदयबेधी वाण लगने लोकक मन थरथरा जाइए, हृदय दलमलित हुअ लगैए तहिना नागेसर भायकेँ सेहो हुअ लगलैन। मन थरथराए लगलैन जइसँ मुँहक बोली बन्न भऽ गेल छेलैन। मुदा जाबे अपने मुहेँ अपन बेथा नइ बजता ताबे बुझब केना। तहूमे ओहन लालबुझक्कर नहियेँ छी जे भुतलग्गु जकाँ अनेरे बड़बड़ाए लगब। मनमे भेल जे दोहरा कऽ फेर पुछिऐन मुदा लगले ईहो भेल जे नइ सुनने रहितैथ तखन ने पुछब उचित होइत मुदा जखन लगमे बैसल छैथ तखन नइ सुनलैन सेहो केना मानल जाएत। भऽ सकैए जे जँ सभ शब्द नहियोँ सुनने रहितैथ तँ उनटाइयो कऽ पुछबे करितैथ। सेहो नहियेँ पुछलैन। तखन किए ने बाजि रहल छैथ? मनमे ईहो हुअए जे भऽ सकैए कोनो एहेन काज भेल हेतैन जइसँ जिनगी तँ प्रभावित होइत हेतैन मुदा लाजक संकोचे नइ बजैत होइथ।
चालिस-पैंतालीस बर्खसँ नागेसर भाय चटवाहक काज करैत आबि रहल छैथ। चालीस कि पैंतालीस बरख तँ डायरीमे लिखि कऽ नइ रखने छी जे निश्तुकी कहब, मुदा अनुमानसँ कहि रहल छी। किए तँ जखन उठैत जुआनी नागेसर भाइक छेलैन तहियेसँ देखैत आबि रहल छी जे नागेसर भाय गामक एक नम्बर चटवाह छैथ, केहनो साँप काटल बीखकेँ चाटीए-सँ उताड़ि दइ दैत रहथिन। तहूमे केकरो ऐठाम जँ सँपकटिया भेल तैठाम ओ खबैर होइते अपनो वा आनोक काजकेँ छोड़ि दौड़ले जाइ छलाह। जाँति-पाँजि, दियाद-वाद किछु ने मानै छला। अपनाकेँ उपकारी कहि उपकार करए पहुँचिये जाइ छला। चलतियो एहेन रहैन जे तीन-तीन, चरि-चरिटा सँपकट्टाक नम्बर लागि जाइ छेलैन।
ओना, जइ गाममे बिसहाराक गहबर छल तइ गामक लोककेँ चटवाह बनब असान छेलइ। किए तँ दसमीमे जखन दसो दुआरि खुजि जाइए तखन बिसहाराक गहवरक भगत[i] सेहो दसमीक पहिले दिनसँ गहवरमे भगतै करए लगै छला। रंग-रंगक डाली पहुँचते छेलैन, केकरो धिया-पुता नइ होइ छल तेकर डाली, तँ केकरो घरमे डाइन-जोगिनक उपद्रव बढ़ि गेल तेकर डाली, तँ केकरो धिया-पुता बहवारि भऽ गेल तेकर डाली इत्यादि-इत्यादि अनेको डाली पहुँचते छेलैन आ साँझू पहर जखन भगत गोसाँइ खेलाइ छला माने देवता दहेपर अबै छेलैन तखन फूल-अच्छत-भूभूतसँ ओकर गुहारि करिते छला। भगत जहिया मरला तहियासँ भगताइयो बन्न भेल आ गहवरो खसल। खाएर जे भेल। गामोक लोक (जे चटवाह बनए चाहै छल) आ आनो अड़ोस-पड़ोसक गामक लोक आबि-आबि चाटी धड़ै छल आ जेकर चाटी उठल (उठल- माने आगू घुसैक चटिवाहि करै छल से) ओ चटवाह बनै छल। नागेसर भाय चनौरा गहवरक सीखि छला। इलाकामे सभसँ जगता-जोर गहवर चनौरा-गहवरकेँ बुझल जाइत छल। महंथानाक गहवर। दुर्गोपूजा आ बिसहरोक गहवर महंथजी बनौने छला। ओना, छोट-मोट[ii] स्वास्थ्य केन्द्र सेहो बनौनहि छला। जइमे एम.बी.बी.एस डॉक्टर तँ नहि छला मुदा एकटा नर्स जरूर रहै छेली। ओना, ओहो तेहेन ट्रेण्ड (ट्रेनिंग कएल) नहियेँ छेली मुदा पित्ती डॉक्टरकेँ रहने बहुत किछु सीखि नेने छेलीहे।  महंथजी महंथेजी छला। बिआह नइ केने छला। ई दीगर भेल जे महंथजी अपने ऐठाम नर्सकेँ रहैक बेवस्था केने छला। आन गामक बेचारी नर्स, तँए डेराक जरूरत रहबे करैन। तैपर सँ महंथानाक अवासमे डेरो भेट गेलैन। मुदा एहेन कहियो ने भेलैन जे कुत्ताक बीख जकाँ लसैर लगलैन।
अनहरिया पखक तृतीया इजोरिया जकाँ गाममे बुधिक चान जरूर उगि चुकल छल मुदा छोट रहने (कम समैयक प्रकाश) गाम अन्हारक अन्हारमे पड़िये जाइ छल। जइसँ जिनगीक सभ खगताक रस्ताक दुआर बाधिक छेलैहे मुदा केतबो लोक पछुआएल छल तँए ओकरा मन-पेट नइ छेलै सेहो तँ नहियेँ मानल जा सकैए। से तँ छेलैहे, तँए अपन विचारो आ विचारक विश्वसनीयता सेहो छेलैहे। ओही जिनगीक जुग छल जइमे ओझा-गुनी, चटवाह, डानि-जोगिन सबहक उत्पैत भेल छल।
भौगौलिक दृष्टिसँ अपना सबहक इलाका केहेन अछि आ केहेन छल से तँ सब भोगिये रहल छी जे गामक फेदार मोरंगक दफेदार बनिते अछि। एकदिस कोसी धारक बाढ़िक पानिक विभीषिका जइमे नेपालक पहाड़ो आ जंगल-झाड़सँ सेहो बाढ़िमे साँप-कीड़ा भँसि-भुँसि आबिये जाइ छल। सतासी (1987) इस्वीक बाढ़िक विभीषिका जकाँ पहिनौं भेल हुअए तँ भेल हुअए मुदा तीन-चारि जेनरेशनसँ नहि भेल छल, जइमे साँपक उपटान नीक जकाँ भेल। मुदा तइसँ पहिने सँपकटियाक संख्या बहुत बेसी छल। वैज्ञानिक ढंग, वैज्ञानिक ढंगक माने भेल जाँचल-परखल ढंग, जे विश्वसनीय अछिए। तेकर बहुत बेसी अभाव छल। ओना, दुनियाँक आन-आन किछु देश अगुआएलो आ किछु पछुआएल सेहो अछिए मुदा अपना सभ हजारो बर्खक गुलामीसँ लगले निकलले छेलौं, तँए अभावे-अभाव सभ कथुक रहबे करत किने।
दोसर उपटान साँपक 1988 इस्वीक भुमकममे भेल। धरती डोलने बिल सभ दबाएल जइसँ बिलमे रहैबला साँप नष्ट भेल। ओना, साँपोक वंशवृद्धि अलग-अलग अछि। किछु साँप बच्चा दइए तँ किछु साँप अण्डा दइए। तैसंग प्रकृत प्रदत्त सेहो अछि। अगता बर्खाक मौसममे साँपक पतौरा धरतीपर अकाससँ खसैए जइमे साइयो साँप निकलैए। नब्बे-बेरानबेक[iii] शीतलहरी विषैला-सँ-विषैला साँप धरिकेँ, खासकए गहुमनकेँ तेना उपटौलक जे बीछा गेल। तैसंग अस्पतालो सभमे आ प्राइवेटो क्लिनीकमे साँपक बीखक इलाज हुअ लगल जइसँ सँपकटिया मृत्युक दर कमल। आजुक आर्थिको दृष्टिसँ आ जरूरतोक दृष्टिसँ लोक सजग भेबे कएल अछि जइसँ साँपक कोन बात जे छुछुनैरो कटलाहा सभ डॉक्टर ऐठाम पहुँचए लगल अछि। साँपे जकाँ पाँखिबला फैनगा-फैनगी सेहो जनमारा अछिए मुदा तोहूसँ लोककेँ आफियत भेटिये रहल अछि।
समय आगू बढ़ल, नागेसर भाय सन-सन केतेको लोकक हाथक काज छीनाएल। जखन हाथक काजे छीना गेल तखन ई हाथ करत की, आ नइ करत ते खाएत की, अही चौबट्टीक मोनिमे नागेसर भाय खसला अछि। खसला पछाइत सुमारक सोभाविके अछि। जइ लूरिक चलैत समाजमे पेटक संग विचारो चलै छल, से जिनगीए उनैट कऽ पुनैट बिलैट गेल, आब केतए रहब? नागेसर भायकेँ सुमारक होइ छैन जे जइ जिनगीमे भैया, काका, बाबा बनि जीबै छेलौं तैठाम कोचिंगक जे छौड़ा सभ अछि सेहो सभ तेना कऽ ताना मारैए जे देह झनझना कऽ तुनतुना-तनतना जाइए मुदा करब की। आब की हमर ओ उमेर अछि जे छौड़ा-सभसँ मुँह लगाएब। सुमारक होइ छैन जे जइ हाथक चाटी-बले ओहन जिनगी बना चलैत आबि रहल छेलौं, तैठाम कोनो पूछ नहि! जइसँ तरे-तर नागेसर भाइक मन मोम जकाँ पिघैल-पिघैल जरि रहल छैन मुदा मनक एते शक्ति नहि जुटा पेब रहल छैथ जे अपन जिनगीक हारकेँ जीत दिस बढ़ौता। अखन तक तँ नीके-नीक जिनगीक बीच ने जीबैत आबि रहल छी तखन बीच रस्तापर ओहन मोनि केना फुटि गेल जे बुझबे ने केलौं! झोंकमे झोंकाइत नागेसर भाय बजला-
रस्तेपर मोनि फुटि गेल!”
ओना, रस्तापर मोनि फुटबक एक माने भेल जे बाढ़िक समय एहेन होइ छै जे धाराक प्रवाहमे रस्ता ढहि-टुटि कऽ धाराक मोड़ सेहो बनैए जइसँ मोनि फुटै छइ। आ दोसर होइए जे चढ़ानसँ निचान माने ऊपरक जमीनसँ नीचरस जमीनमे धाराक धारसँ जे खाधि बनैए ओहो बढ़ैत-बढ़ैत मोनि बनैए जे नम्हरो-गहींरो बनैए आ उथरो-आथर बनिते अछि। मुदा ऐठाम तँ नागेसर भाय अपन जिनगीक गप कऽ रहला अछि, खेत-पथारक रस्ताक मोनि जकाँ ओ मोनि थोड़े हएत, तँए किए ने नागेसरे भायसँ बुझि ली। बजलौं-
की मोनि कहलिऐ भाय?”
हमर बात सुनिते नागेसर भायकेँ मनमे जेना खौंत फेकलकैन तहिना बजला-
अपन मनक मोनि सेहो फुटल आ गामक जे छौड़ा-माड़ेरक विचार सुनै छी ते बुझि पड़ैए जे अपनोसँ बेसी ओकरे सबहक मोनि फुटल छइ। की कहबह!”
नागेसर भाइक जिनगी ओहने बुढ़ाएल माछ जकाँ भऽ गेल छैन जहिना सौभरी ऋृषि यमुना नदीक जलमे तपस्या करैत नदी-माछक गति देखलैन जइसँ जहिना विराग उत्पन्न भेलैन तहिना तँ ने नागेसरो भायकेँ भऽ रहल छैन। फेर लगले मनमे उठल जे सौभरी ऋृषि जकाँ नागेसर भाय जलसमाधि थोड़े नेने छैथ जे विचारसँ वैरागपन औतैन। हिनका तँ गरदैनमे बड़का ढोल बान्हि देबैन तैयो बकार नइ फुतटैन। मन छलैक गेल, विचारक धारा एकाएक धड़धड़ाइत निच्चाँ खसए लगल। मुदा तैयो खसैत-खसैत मन बजिते गेल जे शुरूए-सँ नागेसर भायकेँ मनाही करैत एलौं जे मनुख बनि जखन जन्म लेलौं तखन मनुखक रूप धारण करब तखने ने मानव मनुख कहाएब, से सभ दिन गुरुआइ करैत रहि गेला आ आब कनै छैथ। मनकेँ मारि बजलौं-
भाय, आब अहाँकेँ कोन मतलब ऐ दुनियाँ-दारीसँ अछि, ने रहब ओइ टोल ने सुनब ओकर बोल, बेटासँ खरचा लिअ आ दरबज्जाक ओसारक चौकीपर बैस रस्ता दिस तकैत सीताराम सीताराम राधाकृष्ण राधाकृष्ण करू।
हमर बात सुनिते नागेसर भाइक मन जेना फुटि कऽ छिड़िया गेलैन तहिना बजला-
बौआ, तोरासँ लाथ की। दुनू बेटो मुँह फुला कऽ अपन-अपन बहु-बेटा लऽ कऽ जेतए नौकरी करैए तेतइ चल गेल अछि। दुनू परानी-बुढ़बा-बुढ़िया घरमे छी।
पुछलयैन-
बेटा किए मुँह फुलौने अछि?”
नागेसर भाइक बेइमान मन इमानक धरती पकैड़ लेलकैन, जइसँ विचारमे बदलाव आबिये गेलैन। बजला-
बौआ, इमान-धरमसँ बजै छी, दुनू बेटाक परोछक बात छी, जेठका बेटा साइंस पढ़ने खोंटकर्मा भइये गेल। बेर-बेर ओ मनाही केलक जे अहाँ झूठ-फूसक धन्धा छोड़ू, मनुख छी मनुख जकाँ रहू, मुदा..?”
मुदा कहि नागेसर भाय चुप भऽ गेला। मन मानि गेल जे बेटा लग अपन दोख कबुल नइ करए चाहलैन, बजलौं-
हे जेठका बेटा अपन जेठपन देखौलक, तँए फुलि रहल मुदा छोटका किए फुलल अछि?”
नागेसर भाय बजला-
जेठके ओकरो तेना कऽ दुइर केलकै जे ओहो ओहिना दुरि भऽ गेल। हमहूँ अड़ि गेलौं, आमदनियोँ छल आ समाजमे पूछो तँ रहबे करए।
बजलौं-
अच्छा आब छोड़ू मायाजालकेँ, बेटासँ खरचा दिया दइ छी। शान्तिसँ रहू।  
q कथाक शीर्षक भगैतिया
शब्द संख्या : 2135, तिथि : 4 अक्टुबर 2018


[i] भगता, पुजेगरी
[ii] ग्रामीण स्तरक
[iii] 1990-92