Pages

Thursday, August 18, 2016

गुलेती दास

गुलेती दास

अन्‍तिम जेठक दस बजेक समए। चारि दिन पहिने गुलेती दासकेँ दूटा छिट्टा दइले कहने रहिऐ। आइ भोरे समाद पठौलक, छिट्टा तैयार भऽ गेल से लऽ जाह। ..समैमे तीखपन, ओना पूर्बा हवा सिहकैत रहइ मुदा तैयो जेना बुझि पड़ैत जे धरतीसँ आगि उठि रहल अछि, खास कऽ दस बजेक पछाइत आ चारि बजेक बीचक समैमे। रोहनियाँ बर्खा नइ भेल, ओना पनरह दिन पहिने बिहड़िया पानि भेल, मुदा ओहो छीच्‍चे जकाँ भेल जइसँ समैक तापकेँ दाबि नइ सकल। छिछियाएले जकाँ रहि गेल। गोटि-पँगरा रोहनियाँ आम पकए लगल मुदा समए नइ पेने ओकरो सुआद पकाइने जकाँ, माने रौद-पक्कुए सन बुझि पड़ैत। गुलेती दास ऐठाम छिट्टा आनए विदा भेलौं।
गुलेतीक पुश्‍तैनी जातीय टाइटिल मुखिया छिऐन। माने मल्‍लाह परिवारमे गुलेती दासक जन्‍म भेलैन। पचीस बर्ख पूर्ब गुलेती मुखिया कबीर पंथी वैष्‍णव भेला, जइसँ मुखिया टाइटिल बदैल दास भऽ गेलैन। पचास बर्खक गुलेती दासक जिनगीक अपन रूटिंग बनल छैन। दस बजे ओ भानसक पाछू लगि जाइ छैथ, जे एगारह-सबा-एगारह बजे भोजन तैयार कऽ लइ छैथ। भानसक पछाइत नहा कऽ, मंत्र-जाप तँ किछु अबै नइ छैन, मुदा तैयो जय सत्-नाम, जय-जय सत्-नाम करैत चानन सेहो करै छैथ। चानन केला पछाइत भोजन करै छैथ। बारह-सबा-बारह बजे थारी-बरतन धो-धा चीनमारपर रखि अराम करए चलि जाइ छैथ। तीन बजे ओछाइन छोड़ि मुँह-हाथ धोइ, पानि पीब, तमाकुल चुना कऽ खा, अपन काजमे लगि जाइ छैथ...।
भिनसुरका उखड़ाहाक काज सम्‍पन्न करैत गुलेती भानस करए विदा होइक ओरियान करिते छल कि पहुँचलौं। हमरा देखते गुलेती दास बाजल»
भैया, तोहर काज काल्‍हिये बेरू-पहर सम्‍पन्न भऽ गेल, भने आबिये गेलह।
कहि दुनू छिट्टा आनि आगूमे रखि देलक। दुनू छिट्टाकेँ निहारि-निहारि देखलौं तँ बुझि पड़ल जे जहिना कहने छल, तहिना छिट्टा बनौनौं अछि। पुछलिऐ»
गुलेती, दुनूक केते दाम भेलह?”
ओना शुरूहेमे, माने जखन छिट्टा दइले कहने रहिऐ तखने डेढ़-डेढ़ साए रूपैयेक हिसावसँ कहने रहए। मुदा ईहो कहने रहए जे जखन छिट्टा बनि जाएत तखन दस-बीस कमे करि कऽ दिहह। ..छिट्टा देख मनमे भेल जे जेहेन वौस देलक अछि तइमे दामक अतिरिक्‍त किछु उपड़ा सेहो दिऐ, मुदा लेबाल-देबालक विचार मनमे जोर मारि देलक तँए दोहरा कऽ कहा गेल केते दाम भेलह।
गुलेती दास बाजल»
भैया, कहनहि रहिहह जे तीन साएमे दस-बीस कमे दिहह।
साए-साए रूपैआक तीनटा नमरी जेबीसँ निकालि गुलेती दासक हाथमे दैत कहलिऐ»
गुलेती, तूँ जेते दस-बीस कम करहब, ओते दाम कम भेल, मुदा तोहर कारीगरी देख मन खुशी भऽ गेल तँए तोरा ओते इनाममे दइ छिअ, ओहो रखि लएह।
इनाम सुनि गुलेती मुस्‍कुराइत कहलक»
भैया, पाइ-कौड़ी कोनो वौस छी, असल छी जे मनसँ असीरवाद दएह जे अहिना काज लगल रहए जइसँ समाजक उपकार करैत रहिऐ। भानस करैक बेर भऽ गेल तँए अखैन बेसी गप नइ करबह।
अपनो गुलेती दासक रूटिंग बुझले अछि तँए बेसी गप-सप्‍पकेँ आगू नहि बढ़ा, दुनू छिट्टा हाथमे लऽ विदा भेलौं।
जहिना कोनो गाममे जे जेते पहिने आएल रहल ओ ओते नीक बासभूमि अपनबैत बसैए, आ जे जेते पछाइत आएल ओ ओते आगू बढ़ैत बास बनबैत जाइए, तहिना गुलेती मुखियाक पिता–दोरिक मुखिया सेहो हरिपुरमे आबि बसला। से खाली दोरिके मुखिया नहि, आठ-दसटा मलाह परिवार कोशिकन्‍हासँ उपैट आबि बसल छला। करीब साठि बर्ख पहिने...।
जइ समए दोरिक मुखिया हरिपुरमे आबि बसला, तइ समए मात्र तीनियेँ गोरे परिवारमे छला। दोरिकक माए- रूपनी, पत्नी- तेतरी आ अपने दोरिक। गरमजरूआ आम जमीन, करीब पाँच कट्ठाक परती रहै तेहीपर आठो-दसो परिवार बसला।
हरिपुरक अवादी पतराएले छल, खेती-पथारी करैबलाक खगता छेलैहे। ..जहिया आठो-दसो परिवार आबि बसला, तहिया हरिपुरमे जे सुभ्‍यस्‍त किसान सभ छला ओ भरपुर सहयोग केलखिन। चारि-पाँच परिवार दू-दू-तीन-तीन परिवारकेँ अपना बीटक बाँस, खढ़ आ साबे दऽ दऽ घर बनबा देलखिन। ओहू दसो-बारहो परिवारकेँ बोनि-बुत्ता करैक गर सेहो भेटलैन।
ओना, रूपनी उमेरदार मुदा तैयो बेटा-पुतोहुक संग अखाढ़मे धनरोपनी आ अगहनमे धनकटनीक संग रब्‍बियो-राइ उखाड़ए-काटए जाइते छेली। जे किसान दोरिककेँ घर बनबैमे बाँस, खढ़ आ साबेक मदैत केने रहथिन, हुनके हरवाहि दोरिक करए लगला।
सालक बारह मासमे दू मास हरवाहि चलै छल, जइमे एक मास सूख-जोत आ एक मास कदबा चलइ, बाँकी दस मास हरवाहिक काज बन्ने रहइ। खेतियो असान छेलइ। अखाढ़मे धनरोपनी, भादो-आसीनमे खरहाएल धानक खेतमे कमठौन आ अगहनमे धनकटनी चलइ। दौन-दोगौन किसान अपने कऽ लइ छला।
समए आगू बढ़ल। दोरिक मुखियाक माए मरि गेली। दोरिककेँ सेहो पहिल बेटा आ दूटा बेटी भेल। सात सालक जेठ बेटा- फुदी मुखिया। फुदियाक बिआह सेहो भऽ गेल।
दुनू बेटी, जे एकटा पाँच बर्खक छल आ दोसर अढ़ाइ बर्खक छल, ओ आ फुदिया लगा पाँच गोरेक परिवार दोरिक मुखियाक छेलैन। ओना, बेटाक बिआह भऽ गेल मुदा ओइसँ परिवारक जनसंख्‍यामे कोनो बिरधी नइ भेल। होइतो अहिना छेलै आ अखनो केतौ-केतौ होइते अछि जे बच्‍चेमे बेटा-बेटीक बिआह भेल आ दस-बारह बरिसक पछाइत दुरागमन।
बाल-विवाहक कारण छल, बेटा-बेटीक बिआह माए-बापक अनिवार्य कार्य मानल जाइत रहल अछि जेकर पुरती करब सेहो अनिवार्य बुझल जाइत रहल अछि। एक तँ ओहुना मनुखो आ आनो-आन जीव-जन्‍तुक जिनगीक कोनो निसचित गारंटी नइ अछि। मर्त्त लोक छी, जे जन्‍म लेलक ओ मरबे करत। मुदा तोहूमे जैठाम जिनगी-ले अनुकूल परिस्‍थिति नइ रहल तैठाम तँ आरो जिनगी बेठेकान भऽ जाइए। ओना, जँ मनुखो आ आनो-आन जीव-जन्‍तुक अनुकूल परिस्‍थिति रहल तँ जिनगीकेँ ठेकनौले जा सकैए। बच्‍चासँ वृद्धि होइत वृद्ध बनैत-बनैत साए बर्ख भाये जाइए।
चारि साए बीघाबला गाम हरिपुर। चारियो साए बीघा जमीन चारि किस्‍ममे बँटल अछि। ओना माइटिक अनेको किस्‍म अछि मुदा से नहि, साइजिक हिसावसँ हरिपुरमे चारि किस्‍मक जमीन अछि। पहिल अछि- उपराइर’, जइमे बासो-अगवास अछि, बाड़ियो-चौमास अछि आ गाछियो-बिरछी अछि। दोसर अछि- मध्‍यम जमीन। मध्‍यमोमे दू रंगक किस्‍म अछि। पहिल ऊँच मध्‍यम आ दोसर अछि नीच मध्‍यम। आ चारिम अछि चौरी’, चौर
चारि साए बीघा जमीनमे दू साए बीघा चौरी अछि, बाँकी दू साए बीघा मध्‍यमसँ बास धरिक अछि। ओना, चौरियोमे धानक खेती होइए, मुदा अबिसवासू। जइ साल अगते नमहर बर्खा भेल आकि बाढ़ि आएल पानिसँ चौरी भरि गेल, तहन तँ दहार भेल तँए एको कनमा धान नइ उपजत।
हरिपुरक उत्तर-पच्‍छिम कोण होइत सुपर्णा धार प्रवेश केने अछि। जे उत्तर-पच्‍छिमसँ शुरू होइत गामक उत्तरबरिया बाध देने उत्तर-पूब कोण पकैड़ दच्‍छिन-मुहेँ होइत गामसँ बहराएल अछि। गामक चारू-कात माने चारू बाधमे चौरियो अछि आ आनो-आनो किस्‍मक जमीन। ओना, जँ समए नीक रहल, माने दाही-रौदी नइ भेल, तखन तँ एते उपजा भाइये जाइए जइसँ सालो भरिक बुतातमे कटमटी नइ अबैए मुदा दाही-रौदी भेने तँ आबिये जाइए।
दोरिक मुखिया, जिनका अपन घर छोड़ि किछु ने छैन, सेहो अपन काजकेँ बढ़ौलैन। बारह मासक सालमे तीन मास काज रहने, तीन मास तँ परिवारक गुजर चलि जाइ छेलैन, मुदा बाँकी मासमे भुखमरी आबि जाइ छेलैन। ओना, परिवारमे गुलेतीक जन्‍म सेहो भऽ गेल। गुलेती माने दोरिक मुखियाक चारिम सन्‍तान।
गामक दछिनबरिया चौरीक बगलेमे पूबसँ पच्‍छिम-मुहेँ बान्‍ह अछि। जे बीचमे टुटल अछि। सुखार मासमे तँ सूखले-सूखल लोक टपैए मुदा जखने बर्खा भेल आकि बाढ़ि आएल तहन रस्‍ता बन्न भऽ जाइए। ओना सोलहन्नी तँ नइ होइए, मुदा भरि-जाँघ-भरि-डाँड़ पानिमे टपए पड़ै छइ।
करीब एक कट्ठामे बान्‍ह टुटल अछि। जइ देने चौरियोक पानि आ बाढ़िक पानि सेहो बरसातमे बहैत रहैए। जेकरा लोक खोरबन्‍हा सेहो कहै छइ। ओही टुटलाहा बान्‍हमे दोरिक टौहकी पहटासँ घेर मछबारि सेहो करै छैथ। जइसँ साओन-भादोसँ लऽ कऽ कातिक तक मछबारिक रोजगार चलिते छैन। ओना, पोखैरक पोसा माछ जकाँ तँ नहि मुदा अनेरूओ आ पोखैर-झाँखैरक जे पुरना माछ बाढ़िमे भँसि-भँसि पड़ाइए ओहो तँ होइते छइ।
बाँसक छिट्टा-पथिया आ टौहकी-पहटा सेहो बनबैक लूरि दोरिक मुखियाकेँ छैन्‍हे। टौहकी-पहटाक बिकरी तँ बेसी नहियेँ होइ छेलैन मुदा छिट्टा-पथियाक बिकरी तँ होइते छेलैन। ओहीठाम माने खोरिबन्‍हाक पुबरिया भित्तामे, खोपड़ियो आ मचानो बना दोरिक मुखिया सौनसँ जे रहए लगै छला ओ कातिक तक बाधेमे दिन-राति बितबै छला।
एक-बेर-दू-बेर टौहकी चाहि माछो ऊपर करै छला आ भरि दिन छिट्टा-पथिया सेहो बनबै छला, जेकर बिकरी गामोमे होइ छेलैन आ आनो-आनो गामक लोक आबि-आबि किनै छल।
जहिना दुरागमनक पछाइत दुनू बेटी सासुर चलि गेल तहिना जेठका बेटा–फुदिया सेहो दुरागमनक पछाइत घर-जमाए बनि सासुरेमे रहए लगल। कारण भेल, ससुरकेँ मात्र एकेटा बेटी दोसर कोनो सन्‍तान नहि। सासुरमे घराड़ीक संग दू कट्ठा बाड़ियो...।
ओना, गुलेती सेहो पनरह बर्खक भऽ गेल, मुदा अलबटाह जकाँ रहने बिआह नइ भेलइ। अलबटाह ई जे देहक हिसावे माथो नमहर रहै आ बोलियो साफ नइ निकलै। ओना बाजै सभ किछु मुदा स्‍पष्‍ट बोल नइ रहने सुननिहार साफ-साफ नइ बुझैत। तैसंग दुनू पएरो झखाइ।
भादो मास, सूर्यास्‍तक समए। टौहकी चाहैत दोरिक मुखिया भरि डाँर पानिमे रहैथ। बड़का टौहकी रहइ। ओइमे एकटा साँप फँसि गेल। मेघौन समए, दोरिककेँ बुझि पड़लैन जे अन्‍है छी। टौहकीक मुँह खोलि साँपकेँ अन्‍है बुझि पकड़ए चाहलैन।
टौहकीमे फँसल साँप छटपटाइते रहए। जहाँ दहिना हाथे साँपकेँ पकड़ए लगला कि हाथेमे साँप काटि लेलकैन। जखन हाथमे साँप काटि लेलकैन तखन दोरिककेँ बुझि पड़लैन जे भरिसक ढोढ़ साँप छी, वएह काटि लेलक।
ढोढ़क बिख माल-जालकेँ तँ लगै छै मुदा मनुखकेँ नइ लगै छइ। ओना, हाथसँ छर-छर खून बहए लगलैन मुदा तेकरो चिन्‍ता मिसियो भरि दोरिकक मनमे नइ भेलैन।
टौहकीक मुँह बान्‍हि दोरिक ऊपर एला आ जैठाम खून बहैत रहैन, तैठाम चुनौटीसँ चून निकालि लगा लेलैन। ओना, बिख तरेतर देहमे पसरए लगलैन मुदा तेकरा अनठा देलखिन। चून लगा फेर पानिमे पसि टौहकी उठौलैन। टौहकीक मुँह खोलि साँपकेँ निकालए लगला कि फेर दोहरा कऽ साँप काटि लेलकैन। टौहकी चाहिते-चाहिते दोरिक पानिमे खसि पड़ला। दोसर कियो ओइठाम नहि। पानियेँमे दोरिक मरि गेला।
एक घन्‍टाक पछाइत जखन गुलेतियो आ ओकर माइयो पहुँचल तँ दोरिककेँ खोपड़ीमे नइ देखलक। चारू-कात तकलक तँ केतौ ने नजैरपर पड़लन। अन्‍हार सेहो भऽ गेलइ। गुलेती कपड़ा बदैल पानिमे पैसल तँ पिताकेँ मुइल पड़ल देखलक। देखते जोरसँ माएकेँ शोर पाड़ैत बाजल»
माए! बाबू मरि गेल!”
मरब सुनि तेतरियो पानिमे पैस कऽ देखलैन जे पतिक साँस बन्न भऽ गेल।
पानिपर ताबे अलगल नइ रहइ। गुलेतीकेँ कहलखिन»
बौआ, पहिने दुनू गोरे पकैड़ कऽ ऊपर लऽ चलह।
भरि राति दुनू माय-पुत माने गुलेतियो आ तेतरियो दोरिककेँ खोपड़ीमे रखि ओगैड़ कऽ बैसल। भोर होइते दुनू माय-पुत खोपड़ीए-मे कानए लगल। ओना गामसँ हटल खोपड़ी, मुदा रहै तँ गामेक दछिनबरिया बाधमे। ..दुनू माए-बेटाक कानब सुनि एके-दुइये गामक लोक पहुँचए लगल। अन्‍तमे मचानेक फट्ठो आ बल्‍लोक चचरी बना दोरिकक लाशकेँ उठा धारक कात लऽ जा गाड़ि देलक।
अखन धरि तेतरीक मनमे मिसियो भरि ई चिन्‍ता नइ पैसल छलैन जे निसहाय छी। बुझियो केना पड़ितैन, सोझमे पति, बेटा, बेटी सभकेँ देखैत। तैसंग जे जिनगी बनल आबि रहल छेलैन सेहो तँ रहबे करैन। माने ई जे जइ सुख-दुखक बीच जिनगी बनल छैन सेहो तँ छैन्‍हे, जइसँ अपन ऐगला शेष जिनगीपर नजैर किए जइतैन। मुदा पतिक परोछ भेने तेतेरीक मनो आ शरीरो हरहरा कऽ जेना बैसए लगलैन। ओना तेतरी सत्तैर बर्ख टपि चुकल छैथ मुदा अखन तक मनसँ मृत्‍युओ आ दुखो हेराएल छैन।
पतिक परोछ भेने जेना एकाएक तेतरीक मनकेँ चिन्‍ता दाबए लगल। दाबबो केना ने करितैन। एक दिस गुलेती सन अलबटाह बेटा सोझहामे देखैत तँ दोसर दिस जेठ बेटा-पुतोहु आ पोता-पोतीकेँ अपनासँ दूर हटल दोसर गाममे देखैत। जे कहियो एको कौर खाइक आकि एको बीत वस्‍त्रक जोगार नइ करैत। बेटी तँ सहजे जन्‍मदाता माए-बापसँ हटि दोसर घर बसिते अछि, तँए ओकर आशे कोन...।
साल बितैत-बितैत तेतरीक शरीर जड़ि कटल लत्ती जकाँ अलिसा-अलिसा सुखैत-सुखैत सुखि गेलैन। माने तेतरी मरि गेली।
पिताक मृत्‍युक पछाइत गुलेती मुखियाक ऊपर परिवारक भार आबि गेल। ओना, गुलेतीक बुधि ओते परिपक्‍व नहि जे अपन पूर्ण दायित्व बुझैत मुदा तैयो तँ एते बुझबे करै छल जे जहिना पिताक अमलदारीमे माछक कारोबार करै छेलौं तहिना आबो करब। जइसँ तीन-चारि मास गुजर चलिये जाइए। तैसंग पिताक संग बाँसक बीटसँ बाँस काटि अनै छल आ ओकरा पाँगि-पुईंग कऽ टुकड़ी बना-बना, माने ओकरा टोनि-टोनि, चीर-फारि छिट्टा-पथियाक काड़ो बनबै छल आ बीनैबला कैमचियो बनबै छल, तैसंग छोट-छोट पथियो-टौहकी आ पहटो गुलेती बना लइ छल। ओना पहटा बनाएब सभसँ सोझगर अछि मुदा आब ने ओकर खगता गाममे अछि आ ने बिकरीक वस्‍तु बनल अछि।
जहिया दोरिक कोशिकन्‍हासँ पड़ा कऽ हरिपुर आबि बसल तहिया तीन गोरेक परिवार रहैन–अपने, माए आ पत्नी, जे समए पेब कलशल। बेटा-बेटी भेने पाँच गोरेक परिवार भेलैन। मुदा बेटा-बेटीकेँ सासुर बास भेने फेर तीनियेँ गोरे–तेतरी आ गुलेतीपर आबि अँटैक गेलैन। ओना, बेटो-बेटी जे सासुर बसैए, जीवित छैन आ तैसंग पोतो-पोती आ नातियो-नातीनसँ परिवार झमटगर भाइये गेल छैन, जइसँ दुनू परानी दोरिकक मनमे खुशी रहबे करैन। मने-मन बजबो करिते छला जे जहिना कोशिकन्हासँ पड़ा आबि हरिपुरमे बसलौं तहिना भगवान एकसँ एक्कैस परिवार बना देलैन। आगू की हएत से लोक थोड़े देखैए। बड़ देखैए तँ वर्तमान देखैए आ अतीत देखैए। अतीतो तँ अतीते छी जे अपन चुगली अपने करैए। चुगली ई जे जहियासँ मनुख ऐ धरतीपर जन्‍म लेलक आ लतड़ैत-चतड़ैत आगू बढ़ल तहियासँ हमरो वंश जीबैत आबि रहल अछि, जँ से नइ जीबैत रहल अछि तँ आइ हम केना छी। समैक चपेटमे, माने समैक उतार-चढ़ावमे परिवारक डारि-पात जे टुटल हुअए आकि झड़ल हुअए मुदा शील रूपमे वंशो तँ जीवित ऐछे।
ओना, गुलेतीक परिवार असगरक भऽ गेल। माने परिवारमे गुलेती असगरे रहि गेल। मुदा असगरो रहल तैयो तँ परिवार रहबे कएल, भलेँ अलबटाह रहने गुलेतीक बिआह नइ भेल, तइसँ परिवार आगू नइ बढ़त, मुदा असगरोक परिवार तँ ऐछे। जखने परिवार रहल तखने ओकरा जीवित रखैले परिवारक सभ विहीत करए पड़ै छइ।
परिवारो तँ परिवार छी। एको गोरेक होइए आ पचासो गोरेक होइते अछि। एक गोरेक परिवार ओ भेल जे गुलेतीक छइ, आ गोटे-गोटे ऋृषि-ऋृषिकाक सेहो होइए, जइमे असगरेक जिनगियो आ परिवारो होइए आ दुइयो-तीनियोँ आ चारियो-पाँचोक होइए। तैसंग जँ दू भैयारी आकि तीन भैयारी आकि चारि भैयारीक रहल, तँ पाँच-दस-पनरह-बीसक सेहो होइए। तहूसँ बेसी जँ पिताक परिवारसँ आगू बढ़ि बाबा तकक रहल तँ तीसो-चालीस गोरेक भेल आ जँ तहूसँ पाछू परबाबा तकक संयुक्‍त रूपमे रहल तँ पचासो-साठि गोरेक परिवार होइते अछि जेकरा संयुक्‍त परिवार सेहो कहै छी। ओना, संयुक्‍तो परिवार केते रंगक होइए। जँ दू-तीन भैयारीक रहल तँ ओहो संयुक्‍त परिवार भेल आ जँ तइसँ पाछू बाबा तकक भेल तँ ओहो भेल आ जँ परबाबा तकक भेल तँ ओहो संयुक्‍ते परिवार भेल।
मुदा तँए कि एक गोरेक आकि दू गोरेक परिवार नइ अछि, एहनो तँ नहियेँ कहल जा सकैए किएक तँ सेहो ऐछे। ओना, एक-पुरखिया परिवारकेँ संयुक्‍त परिवार बनैक अनुकूल परिस्‍थिति बनितो नहियेँ अछि तँए ओ नमहर जड़ि रहितो ताड़-खजूर जकाँ एक-पुरखियाहे रहैए। माने ई जे जँ परबाबा धरिक परिवार अछि। ओइ परिवारमे परबबो असगरे भैयारी छला आ बेटो एकेटा भेलैन, बेटी भलेँ बेसिये रहल होनि जे सासुर चलि गेलैन ओ परिवार तँ एक-पुरखियाहे आगू बढ़ि बाबापर पहुँचैए। आ जँ बबोक वएह गति भेलैन जे एकेटा बेटा भेलैन जइसँ फेर एक-पुरखियाहे परिवार आगू बढ़ल...। तँए ओहन परिवार तँ कहियो संयुक्‍त नहियेँ बनि पाऔत, बेसीसँ बेसी एतबे ने हएत जे बबो-दादी आकि माइयो-बाप आकि बेटो-पुतोहु एकठाम रहि गुजर-बसर करैथ। ओना, अकसरहाँ लोकक मुहेँ यएह निकलैत जे संयुक्त परिवार नष्‍ट भऽ गेल वा जेहो अछि से नष्‍ट होइक बाट पकैड़ नेने अछि। मुदा ऐठाम हमरा भ्रम भऽ गेल अछि। भ्रम ई भऽ गेल अछि जे हम समयक गतिकेँ नीक जकाँ नहि बुझि पेब रहल छी।
जहिना समैक गति अछि जे भिनसरसँ दुपहर, दुपहरसँ साँझ पड़ैए तहिना सभ कथुक अछि, जइमे परिवारो आ समाजो अछि। समाज परिवर्तनशील अछि। कोनो क्षण एहेन नइ होइ छै जइमे परिवर्तन नइ होइए। मुदा प्रति क्षण होइबला परिवर्तन जाबे तक पुरान स्‍थितिमे रहल माने पुरान सीमाक बीच रहल–ताबे तक मात्रात्‍मक परिवर्तनक बीच रहल मुदा जखन ओ धीरे-धीरे बदलैत ओइ सीमापर पहुँच लांघए चाहैए वा लांघैए तखन स्‍थिति बदलौ चाहै छै आ बदलियो जाइ छै जइसँ बदलावक एक नव रूप धारण करैए जेकरा गुणात्‍मक परिवर्तन कहै छिऐ, अहीठामसँ परिवारो आ समाजोमे एक नव रूपक उदय होइ छै जे विकास कहबैए। उदाहरणक रूपमे हम देखै छी जे जहिना केटलीमे पानि भरि चुल्‍हिपर चढ़बै छी, ओइमे निच्‍चासँ आँच दइ छिऐ, जइसँ पानि गर्म होइत खौलए लगैए। जाधैर पानि खौलैत रहैए ताबे धरि ओ मात्रात्‍मक परिवर्तनक रूपमे रहल मुदा जखने खौलैत पानि वाष्‍प बनि उड़ए लगैए तखन ओ गुणात्मकमे बदैल जाइए, जइसँ पानिक रूप वाष्‍पक रूपमे बदैल जाइए।
अहिना परिवारोक संग अछि। जेकरा हम संयुक्त परिवार कहै छिऐ ओ अखनो अपन बदलैत रूपमे जीवित अछि आ आगूओ रहत। अखनो एहेन परिवार तँ ऐछे जे पचीस-पचास जनक अछि। परिवारक जे श्रमशील लोक छैथ ओ अपन-अपन जीविका-ले अपन-अपन उत्‍पादनमे दसठाम छिड़ियाएल रहै छैथ, आ जखन परिवारमे कोनो पैघ काज– विवाह, श्राद्ध इत्‍यादि भेल तखन सभ एकठाम भऽ दस-दिन-बीस-दिनमे काज निवटा अपन-अपन जगह पुन: पकैड़ लइ छैथ। ..जाबे धरि परिवारक सभ जनकेँ जीबै जोग उपार्जन नइ रहतैन ताबे ओ परिवार ठाढ़ो केना रहि सकैए तँए जेकरा नष्‍ट होइत संयुक्‍त परिवार बुझै छी ओ पाछूक विचार आ ढॉंचा छी। मुदा नव ढाँचाक रूपमे संयुक्‍त परिवार अखन नइ अछि सेहो तँ नहियेँ कहल जा सकैए। हँ, एते जरूर भेल अछि जे ओ नव रूप पकैड़ ठाढ़ अछि।
गुलेती मुखियाक परिवारक जे पैछला रूप छल ओ बदैल गेल मुदा जीवित भाए-बहिनक बीचक सम्‍बन्‍ध अखनो जीवित अछि। माने ई जे गुलेतीक जेठ भाइयो आ बहिनो–जे सासुर बास करैए, अपन के कहए जे दुनू बहिनो आ भागिनो-भगिनीक आवा-जाही छइ। तैसंग ईहो छैहे जे गुलेतियो कहियो काल अनदिनो माने बिना कोनो काज-उदेमक सेहो–जाइते अछि आ तैसंग जँ कहियो कोनो विशेष काज–बिआह आदि- भेल तँ तहूमे जाइते अछि। ओना, माता-पिताक मुइने गुलेतीक परिवार असगरेक रहि गेल, मुदा परिवार तँ ठाढ़ रहबे कएल। नमहर परिवार रहने परिवारक जे जरूरतक वस्‍तु अछि ओकर जरूरत बेसी होइ छइ, आ जेते छोट रहल तेते कम होइ छइ। माने ई जे रहैक घर हुअए आकि भोजनक सिदहा-समर, आकि देहक वस्‍त्र आकि रोग-वियाधिक दवाइ-दारू ऐ सभ चीजक खगता कम आ बेसी रहने बेसी होइ छइ।
जाबे तक दोरिक मुखिया जीबै छला ताबे तक शकलदेवकेँ गिरहत मानि हुनके काज-उदेम करैत रहलैन। शकलदेवे दोरिककेँ घर बनबैक बाँसो-खढ़ देने रहथिन आ अपन गिरहस्‍तीमे काजो देने रहथिन, तैसंग मौका-कुमौकामे दू सेर आकि दू टाका दऽ मदैतो करै छेलखिन। ओना, शकलदेवो मरि गेला। बेटा सुरतलाल छथिन जे पितेक सीख-लिखे अखनो धरि परिवार चलबै छैथ।
हाथ-पएर टेँढ़ रहने गुलेतीकेँ ने हर जोतल होइ आ ने धनरोपनी कएल होइ, जइसँ सुरतलालक संग सम्‍बन्‍धमे कमी आबि गेल। ओना, सुरतलाल हर जोतैले दोसर गोरेसँ सम्‍बन्‍ध बना लेलैन मुदा गुलेतीकेँ सेहो सोलहन्नी नहियेँ छोड़लखिन। अखनो जइ दिन सुरतलाल खेती शुरू करै छैथ, माने पहिल दिन, जइ दिन जन-हरबाहकेँ नति कऽ खुअबै छथिन- तइ दिन गुलेतीकेँ सेहो नौत दऽ खुऐबते छथिन।
दोरिकक अमलदारीमे परिवारमे तीन दिसक आमदनी छल, पहिल छल हरबाहिक संग रवियो-राइ उखाड़ै-काटैसँ लऽ कऽ धनकटनीक बोइन सेहो, तैसंग सौनसँ लऽ कऽ कातिक तक माछोक छल आ टौहकी-पहटा-छिट्टा-पथिया जे बनबै छला सेहो छेलैन। से गुलेतीक परिवारमे नइ रहल। मुदा तैयो मछबारिक आमदनी आ छिट्टा-पथियाक रहबे कएल। टौहकी-पहटा बनाएब छोड़ि सोलहन्नी छिट्टा-पथिया बनबैए।
सुरतलाल गामक सुभ्‍यस्‍त किसान छैथ, जिनका दस बीघा जोतो, खढ़ो-खरहोरि आ वेखो-बुनियादि छैन। पाँच कट्ठाक जे बँसवाड़ि छैन ओ ओहन जइमे दस-बीसटा बाँस सभ दिन सूखले रहैए। गदिआह माटिपर बँसबाड़ि छैन जइसँ एक-एकटा बाँस पचास-पचास हाथक होइ छैन। तहूमे जीवनी किसान शकलदेव, रंग-रंगक बाँसो लगौने छला आ ओकर तरद्दुत सेहो साले-साल करिते छला। तरद्दुत ई जे बाँसक बीटमे साले-साल बैशाख-जेठमे माटियो दइ छेलखिन आ खाली जमीनक तमनी सेहो करिते छला, जइसँ पुरान बीट रहितो बुझिये ने पड़ैत जे ई एते पुरान अछि। ओना, नवो बीट पुरान बीट जकाँ बिना तरद्दुतक भाइये जाइए। हेबो केना ने करत जहिना गरीब परिवारमे समुचित भोजन आ बर-बेमारीमे समुचित दवाइ नइ भेटने जुआनो-जहान झखड़ल बुझि पड़ैए तहिना नवको बाँसक बीटमे भाइये जाइ छइ।
गुलेतीक परिवारक सम्‍बन्‍ध जे शकलदेव परिवारक संग अखन धरिक छल ओइमे काजक कमी भेनौं कमी नइ आएल अछि। जइ समए दोरिक जीबै छला तहू दिनमे छिट्टा-पथिया बनबैले शकलदेवक बाँस कीनि बनबै छला आ गुलेती जखन करए लगल तखनो सुरतलालेसँ बाँस कीनि-कीनि बनबैए। ओना, गुलेतीक परिवार आ सुरतलालक परिवारक सम्‍बन्‍धमे मिसियो भरि विघटन नहि भेल मुदा सम्‍बन्‍धक रूपमे परिवर्तन तँ भेबे कएल। होइते अहिना छै जे समैक संग बेकतियो, परिवारो आ समाजोक सम्‍बन्‍धमे परिवर्तन भऽ जाइए।
जहिना दोरिककेँ हरिपुर एलापर शकलदेव बिसवासक संग बाँस, खढ़, खरही दऽ घर बनबा बसौलखिन आ अपन मदैतिक लेल हरबाहिक संग गिरहस्‍तीसँ जोड़ि जिनगीकेँ बिसवासक संग आगू बढ़बैत रहलखिन तहिना सुरतलालो गुलेतीक संग अपन बिसवासकेँ जीवित रखनहि छैथ। माने ई जे गुलेतीकेँ जे छिट्टा-पथिया बनबैले बाँसक खगता होइ छै तइले कहि देने छथिन»
गुलेती, बाँसक बीट अपने बुझिहह, तँए जखन तोरा खगता हुअ तखन परोछोमे काटि सकै छह। दामक कोनो बात नहि, तोरो बुझले छह जे बीस रूपैआ एगो-बाँसक दाम होइए, जे तूँ पहिनौं दऽ सकै छह आ पछातियो दऽ सकै छह।
ओना, गुलेतियो इमानदारीसँ ई बुझिते अछि जे बिसवासो तँ पुरनाइये गेल अछि जइसँ  कमी आबिये जाइ छइ। तँए जखन बाँसक खगता होइ छै तखन ओ अपन जीवनक जीविकाक काज बुझि पहिने सुरतलालकेँ जानकारी दैत काज करैए।
अन्‍तिम जेठ, टहटहौआ रौद। गुलेती मुखिया तीन बजे अपन छिट्टा बीनैक सभ समचाक संग एकटा डाबामे पानि नेने घरसँ थोड़े हटि रस्‍ता परक पाखैर गाछ लग पहुँचल। ओना, ओ आइए-टा नहि, सभ दिन ओही गाछक निच्‍चाँक छाहैरमे बैस अपन काज करैए।
गाछक निच्‍चाँमे काड़ा, कैमची, पगहरिया आ पानिक डाबा रखि बौगुलीसँ तमाकुल निकालि चुनबए लगल। तही काल लोहिया पट्टीवाला श्‍याम सुन्‍दर दास अपन दूटा चेलाक संग पहुँचला। तीनू बबाजी भनडारा पुरए दीप जाइ छला। ओना, तीनू गोरे छत्ता सेहो ओढ़ने रहैथ मुदा तैयो रौदा गेले छला। रौदेबो केना ने करितैथ, एगारहे बजे खा-पी कऽ गामसँ विदा भेला। लोहिया पट्टी आ दीपक बीच पाँच-छह कोस जमीन अछि। चारि बजेसँ भनडाराक कार्यक्रम पहुँचनहि शुरू हएत।
भनडरो नमहर छइ। एगारह साए टूक बँटने छैथ। सात साए महात्‍माक जुटानी अछि। तैसंग परोपट्टाक जे कण्‍ठीधारी कबीर पंथी छैथ, तिनको सभकेँ दल पड़ले छैन। एक-सँ-एक गबैया सभ सेहो एबे करता। ओना, कम कि बेसी जे साधु-महात्‍मा छैथ, सभकेँ किछु-ने-किछु भजन कीर्तन अबिते छैन, जे कियो खौजरीपर गबै छैथ तँ कियो ढोलक-हरमुनियाँपर तँ कियो ओहिना थोपड़ी बजा-बजा सेहो गेबे करै छैथ।
जहिना छोट-पैघ कबीर पंथी महंथक जुटानी अछि माने दल पड़ल छैन, तहिना छोट-पैघ गबैयोक जुटानी ऐछे। रहबो केना ने करत, अखुनका जकाँ कि अपन-अपन फीस बना चलै छैथ, एक टूक सुपारी अपना पंथक भेट जाइ छैन कि अपन सेवा दइले तैयार भऽ जाइ छैथ, जइसँ नीकसँ नीक भजन-कीर्तनक कार्यक्रम, कम-सँ-कम खर्चमे चलिते अछि। ..इलाकाक पैघ गबैया सरिया दासीन जे डोम परिवारक छैथ, जिनकर कहब छैन जे सात-दिन-सात-राति एक-सुरे जँ गबैत रहब तैयो दोहरा कऽ एक भजन नइ गाएब। गबैया नमहरक दोसर कारण ईहो अछि जे अपने-आपमे ओ पूर्ण छैथ। माने ई जे ने हुनका दोसर संग पुरनिहार दोसर गबैयाक खगता होइ छैन आ ने कोनो बजन्‍त्रियेक। माने ई जे एहनो गबैया तँ छैथे जिनका नीक माईक आ आधुनिक बाजाक संग नीक बजौनिहारोक खगता होइ छैन, तैठाम सरिया दासीन अपने मुहेँ गेबो करै छैथ आ अपने हाथे खौजरियो बजबै छैथ। चेहरा-मोहरा भलेँ देखनुक नइ होनि मुदा ज्ञान ज्‍योतिक प्रखर गबैया तँ छैथे जे पारखी लेल आकर्षणक कारण ऐछे। तँए खाली पंथाइयेक सुननिहारटा नहि आनो-आन कला-पारखीक जुटान तँ भाइये जाइए। तहूमे सरिया दासीनक संग छट्ठू दास, हिताइ दास, राम अशीष दास, रामजी दास इत्‍यादि अनेको गबैयाकेँ टूक भेटले छैन। सभ कियो जुटबे करता।
एक तँ ओहिना गोसाँइ साहैबक सेवकान तहूमे नमहर कार्यक्रम ऐछे तैठाम जँ कार्यक्रम शुरू होइसँ एको घन्‍टा पहिने नइ पहुँचता सेहो केहेन हएत। ..यएह सोचि लोहिया पट्टीबला महात्‍मा श्‍याम सुन्‍दर दास एगारह बजे खा-पी कऽ गामसँ विदा भेला जे तीन बजे तक दीप पहुँच जाएब। मुदा से भेलैन नइ शुरूमे तँ एक झोंक खूब चलला जइसँ घन्‍टे भरिमे दू कोस टपि परसा लगिचा देलखिन। मुदा एक तँ खेलहा-पिलहा परहक चालि, दोसर जेठुआ रौद, परसा अबैत अबैत बेदम भऽ गेला। कटोरिया धोधि थुलथुल देह, थकानसँ ई बुझि पड़लैन जे जँ एको डेग आगू बढ़ब तँ खसि पड़ब। ओना, अपनोसँ तबाह दुनू चेला भऽ गेलैन। चेलाक तबाहीक कारण भेल जे दुनू गोरेक काँखमे नमहर-नमहर झोरो, जइमे कपड़ा-लत्ताक संग झालि-खौजरी इत्‍यादि छेलैन, तैपरसँ एक हाथे छत्ता सेहो पकड़ए पड़ल रहैन। मुदा मुँह फोरि अपन बेथा गोसाँइ साहैबकेँ कहबो केना करतैन। कहैक माने भेल अपना संग गोसाँइयो साहैबक समए लेब। एक तँ ओहिना समैपर पहुँच पएब कि नहि, तैपर सँ आरो समए खटियाएब उचित नहि। ..संजोग नीक बनल। परसा धामक आगू पहुँच गेला। केना गोसाँइ साहैब श्‍याम सुन्‍दर दास कहितथिन जे थाकि गेलौं, कनी अराम करब। तँए बोल बदलैत बजला»
छीतन दास, भने नीक जगहपर पहुँच गेलौं। सूर्य मन्‍दिर छी। चलू कनी दर्शन कऽ लेब।
एक तँ ओहिना सबहक मनकेँ रौदक थकान दबने, तैपर गोसाँइ साहैबक विचार कटलो तँ नहियेँ जा सकैए। छीतन दास बजला»
हँ-हँ साहैब, फेर कहिया ऐ रस्‍ते आएब कहिया नहि, तँए जिनगीक जे काज अगुआइत भऽ जाए ओ ओते बढ़ियाँ किने।
ओना, दोसर चेला–दुखी दास बुझि गेला जे दुनू बहन्ना कऽ रहला अछि, भरि दिन निरगुने-सगुनक विचार करैत रहै छैथ आ अखन दर्शन करैक मन भऽ रहल छैन! तँए दुखी दासक मुँह बिजकैत रहैन। जे बात श्‍याम सुन्‍दर दास बुझि गेला। दुखी दासकेँ पछुअबैत पुछलखिन»
की दुखी दास अहाँक की विचार अछि?”
गोसाँइ साहैबक विचार कटलो तँ नहियेँ जा सकैए तखन तँ भेल गुरुकेँ अनुकूल बना चली जइसँ अनुकूलता औत। ..मुस्‍की दैत दुखी दास कहलकैन»
साहैब, अहाँक ने पहिल दिन छी। मुदा हमर तँ सासुरे परसा छी। जखन सासुरमे रहै छी तँ भोरे सुति उठि नहा कऽ पहिने एक लोटा जल सूर्ज भगवानकेँ चढ़बै छिऐन, तेकर पछाइते चाहो-पान करै छी आ दुनियोँ-दारीक गप-सप्‍प।
सभ गप करिते तीनू गोरे मन्‍दिरक आगूक आँगनमे पहुँच अपन-अपन झोरा-झपटा रखि अराम करए लगला।
ओना, तीनू मुरतेकेँ निन सेहो दाबए लगलैन मुदा चारि बजेसँ पहिने दीप पहुँचैले कछमछी सेहो मनकेँ रेबारिते रहैन। पनरह-बीस मिनट अराम केला पछाइत श्‍याम सुन्‍दर दास बजला»
छीतन दास! अराम केने समैपर नइ पहुँचब, आगू बढ़ू।
छीतन दास बिना किछु बजने उठि कऽ झोरा काँखमे लटकौलक। तीनू गोरे परसा धामसँ टहटहौआ रौदमे छाता तानि विदा भेला।
परसा धामसँ दू कोस आगू हरिपुर। हरिपुर अबैत-अबैत तीनू मुरते फेर बेदम भऽ गेला। तीनूक मन लुस-फूसाए लगलैन जे केतौ बैस कनी काल अराम करी। मुदा श्‍याम सुन्‍दर दासक नजैर जखन घड़ीपर पहुँचैन तँ मन कड़ुआ जाइन। एके घन्‍टा समए बँचल अछि आ कोस भरिसँ बेसी जमीन चलबो अछि। मुदा आगू बढ़ैक डेगे ने ससरैन। तैपर पियाससँ मन छटपटाइत रहैन। तहूमे गामो तेहेन अछि जे अँगने-अँगने सभ चापाकल गरौने, रस्‍ता कातमे एकोगो कल नहि, पानियोँ केतेए पीब। केकरो ऐठाम जँ पानि पिबए पहुँचबो करब तँ तेते ने आगत-भागत करए लगता जे आरो बेसी समए लगत। अपन सेवकानमे भनडारा छी, गेला पछातिये कार्यक्रमक श्री गणेश हएत। ..श्‍याम सुन्‍दर दासकेँ कोनो रस्‍ते ने सुझैत रहैन जे की केने की नीक हएत। ततमत करैत तीनू गोरे पाखैर गाछ लग पहुँचला।
गाछक जड़िमे गुलेती डाबाक मुँहपर लोटा औन्‍ह कऽ रखने रहए। जहिना प्रियतमक प्रेममे प्रेमीक नजैर चकोनो होइत रहैए तहिना श्‍याम सुन्‍दर दासक नजैर पाखैर गाछक जड़िमे राखल माटिक कलशपर अँटकल रहैन। मुदा ताकमे रहैथ जे चीजबला किछु बाजत तखन ने बातक सोरि पकैड़ अपन बात राखब। से गुलेती दास किछु बजबे ने करैत। मतलबे वेचाराकेँ की रहइ। तहूमे रस्‍ता-पेरा चलनिहारकेँ उपकैर कऽ टोकबो नीक नहि। जँ कहीं टोकाइन लगि जानि तँ अनेरे गुम्‍हरता। तँए, तइसँ नीक ने जे ने मारी माछ आ ने उपछी खत्ता।
ओना, श्‍याम सुन्‍दर दासकेँ नमगर चानन देख गुलेती बुझि गेल जे ई सभ बबाजी छिआ। किएक तँ श्‍याम सुन्‍दर दासकेँ मोछ-दाढ़ी ने झमटगर नइ छैन मुदा चानन तँ नमगर-चौड़गर छैन्‍हे। छीतन दास आ दुखी दास ने झोंटो बढ़ौने छैथ आ मोछो-दाढ़ी बढ़ौने छैथ, भलेँ कण्‍ठी गमछे तरमे किए ने झँपाएल होनि मुदा छैथ सभ बबाजीए।
समयक गतिकेँ अँकैत श्‍याम सुन्‍दर दास गुलेती दिस तकैत बजला»
बाउ, दीप केते दूर हएत?”
ओना, श्‍याम सुन्‍दर दासकेँ बुझल रहबे करैन, किए तँ केतेको दिन अही रस्‍ते दीप होइत दीघिया गेल छैथ। मुदा एहनो तँ होइते अछि जे लग-पासक गामक दूरी बेसी आबा-जाही भेने छोट भऽ जाइए आ बाहर-बलाक लेल माने दस-कोस-बीस-कोस चाइलिक थाकल लोक-ले बढ़ि जाइए।
गुलेती मुखिया बाजल»
बाबा महराज, किरिण डुमैत दीपक हाट तीमन-तरकारी-ले जाइ छी आ दोसर साँझ होइत-होइत घुमि कऽ आबि जाइ छी, तेतबे दूर अछि।
गुलेतीकेँ कोस आकि किलोमीटर बुझब कोन जरूरी छइ, अपन काजसँ मतलब छइ, तँए अपन काजक नापसँ दीपकेँ नापि बाजल। ओना, गुलेतीक इमान श्‍याम सुन्‍दर दासक मनकेँ मोहि लेलकैन। मोहि ई लेलकैन जे अखनो जँ केतौ इमान बँचल अछि तँ एहने-एहने लोकक बीच अछि। ऐठाम जँ सम्‍बन्‍ध नइ बनाएब तँ नीक सम्‍बन्‍धीसँ भेँट हएब कठिन अछि। विचारकेँ आगू बढ़बैत श्‍याम सुन्‍दर दास बजला»
बाउ, डाबामे जल छी?”
जल सुनिते गुलेतीक अपनो मन जलजला गेलइ। जलजला ई गेलै जे भूखलकेँ एक कौर अन्न आ पियासलकेँ एक लोटा जलदान करब धरम छी। मुदा अपनो तँ धर्म अछि, जँ धर्म-धर्म अपनेमे लड़त तँ अधर्मक राज हेबे करतै। अपन धर्म बँचबैत गुलेती मुखिया बाजल»
बाबा महराज! हम साँकठ छी। मलाह सेहो छी, सालमे चारि मास मछबाइरे करै छी। हमर घैलक जल केना पान करब?”
गुलेतीक बात सुनि श्‍याम सुन्‍दर दासक मनमे एकाएक अनेको प्रश्‍न उठि गेलैन। मुदा समैकेँ देखैत अपन विचारकेँ दाबए चाहैथ। मुदा जे रणक्षेत्रमे प्रश्‍न उठि गेल अछि ओकरा छोड़बो तँ नीक नहियेँ हएत। मुदा प्रश्‍नो तँ एहेन जटिल अछि माने पेरासूत जकाँ तेहेन घुरछी लागल छै जे धड़फड़मे सोझराएबो कठिन ऐछे। जँ कहबै जे बौआ माछ खाएब छोड़ि दहक सेहो नइ हएत। किए तँ कैतकी गैंचीक सुआद मनमे हेबे करतै। हमर बात किन्नौं सुनत। ..जाबे केकरो अनुकूल नइ बना पएब ताबे ओ संग थोड़े आबि सकैए। मुदा पियास ने मानए धोबी घाट...।
..पियाससँ तीनू मुरतेक मन माटिपर पड़ल माछ जकाँ छटपटाइत रहैन। श्‍याम सुन्‍दर दासक मनमे ईहो उठैन जे हमर जे पूर्व महापुरुष सभ भेल छैथ ओ भूखलमे कुत्तोक मौसुकेँ अमृत मानि भक्ष वस्‍तु कहने छैथ...।
श्‍याम सुन्‍दर दास मने-मन विचारए लगला जे की कहलासँ गुलेती अनुकूल हएत। जाबे अनुकूल नइ हएत ताबे जे जल पियौत तँ मन अपन गवाही देबे करतै जे पाप केलौं! एक दिस साधु-महात्‍माक सेवा, दोसर दिस पाप’, दुनू सिरापर ऐछे! तैबीच ईहो तँ ऐछे जे दुनियाँमे सभकेँ अपन इष्‍टदेव छै आ ओही इष्‍टदेवक आदेशानुसार अपन-अपन बुधि-विवेकसँ काज करैए। तत्‍काल जँ किछु आदेशो देबै आ परिस्‍थितिवस जँ मानियोँ लेत तँ पछाइत अपन मन कहबे करतै जे ई अनुचित भेल। माने ई जे बटोही-अभ्‍यागत बुझि कहबै आ तेकरा जँ ओ सेवा बुझि काइयो लेत तैयो मने-मन गुनधुन करबे करत। मुदा जाबे ओकर मनकेँ मोड़ि अपना मनोनुकूल नइ बना लेब ताबे आगूओ केना बढ़ब। ..एकाएक श्‍याम सुन्‍दर दासक मनमे भेलैन कहाँ एक लोटा जल आ कहाँ जलसँ भरल अथाह समुद्र.., तैठाम जँ पछैड़ जाइ सेहो नीक नहि, तँए नीक ई हएत जे अनकर मनकेँ मोड़ैले कनी अपनो मनकेँ लियौन करी।
अपन मनकेँ लियौन करैत श्‍याम सुन्‍दर दास गुलेतीकेँ कहलखिन-
बौआ, परिवारमे के सभ अछि?”
परिवार सुनि गुलेती मुखियाक मन चौंकल। चौंकल ई जे आइ तक कियो एहेन शुभचिन्‍तक नइ भेला जे हमरा सन गरीब लोकक परिवारक खोज-खबैर लथि। ओना गुलेती काज करैक सुर-सार करिते रहए, हाथ नइ लगौने रहए, तइ बिच्‍चेमे परिवारक बात उठि गेल। ..गुलेती बाजल»
बाबा महराज, असगरे छी माइयो आ बाउओ मरि गेल।
असगर सुनिते श्‍याम सुन्‍दर दासक मनमे उठि गेलैन जे एक दिस लसगरक बीच जा रहल छी आ दोसर दिस बाटेमे असगरसँ भेँट भऽ गेल। किए ने एकरो ओही लसगरमे लसका दिऐ जे समूहमे समाज बनि समाजिक जीवन धारण करत। तैबीच मनमे ईहो उठलैन जे लसगर जँ बोनो-झाड़ आकि धारो-समुद्रमे रहैए तँ ओकर जिनगीक अपन आनन्‍द छइ, मुदा असगर जँ से रहत तँ बोन-झाड़मे बाघ-सुगरक डर हेतै जे कहीं किम्‍हरोसँ आबि चाभि ने दिअए। तहिना धारो-समुद्रमे हेबे करतै जे कोनो मोइनमे ने डुमि जाइ...।
विचारकेँ आगू बढ़बैत श्‍याम सुन्‍दर दास बजला»
असगरे परिवारक सभ काज सम्‍हारि केना लइ छी। परिवारमे काज तँ बहुत होइ छइ, उपैतसँ विपैत धरि?”
ओना, श्‍याम सुन्‍दर दासक विचार गुलेती नीक जकाँ नइ बुझलक। माने उपैत-विपैतक अर्थ नइ बुझलक। मुदा एहनो तँ होइते अछि जे दू गोरेक गप-सप्‍पमे बिनु बुझलो प्रश्‍नक उत्तर लोक दइते अछि। ..गुलेतियो मुखिया सहए केलक»
बाबा महराज, गरीब लोकक परिवारे की! आगू नाथ ने पाछू पगहा। तखन तँ पेट अछि ते भूख लगबे करत, तइले कमा कऽ खाइ आकि भीख माँगि कऽ आकि ठकि-फुसिया कऽ, लोक कहुना तँ जीबे करत।
ओना, गुलेती अपना धुनिमे बाजल। मुदा श्‍याम सुन्‍दर दासकेँ जिनगीक एकटा पन्ना[1] भेटलैन, जेकरे पकैड़ पुछि देलखिन»
कमाइ की सभ अछि?”
कमाइ सुनि गुलेती मुखियाक मनमे ठहकल। पहिने काज तखने कमाइ। काज करब तखन ने कमाइ हएत..। बाजल»
बाबा महराज, सालो भरि बाँसक छिट्टा-पथिया बनबै छी, ओकरे बेच कऽ खाइ-पिबै छी।
श्‍याम सुन्‍दर दास»
एकेटा काज करै छी आकि दोसरो?”
गुलेती»
ई भेल सालतनी काज आ बीचमे एकटा दोसरो काज अछि। सालक चारि मास मछबारि सेहो करै छी।
श्‍याम सुन्‍दर दास»
जखन मछबारिक काज करैत हएब तखन तँ छिट्टा-पथियाक काज छुटि जाइत हएत?”
ओना, गुलेती मुखियाक मोट बुधिक मन तँए मेही बात सभ बिसैर-बिसैर जाइते अछि। मुदा अखियास करैत बाजल»
बाबा महराज, आसिन-कातिकमे जहिना पावैनक धुमसाही रहैए तहिना काजोक भऽ जाइए। एक तँ जनमारा मास दुनू छी, केकरो मलेरिया बोखार धरैए तँ केकरो साँप-बिच्‍छूसँ छुबबैए, तैपर दिनो कनी छोट भाइये जाइए। मुदा..?”
मुदा सुनिते श्‍याम सुन्‍दर दासक मनमे ठहकलैन। ठहैकते मुहसँ मुस्‍की छुटलैन। मुस्‍कियाइत बजला»
तखन पार केना लगैए?”
जहिना कोनो भारी माने चौड़गरो आ गहींरगरो धार टपै काल मनमे समोह उठैए तहिना गुलेतीक मनमे समोह उठल, जइसँ बोली लटपटाए लगल। बाजल»
गरीब लोकक जिनगीक कोनो लज्‍जैत रहैए। ने खाइ-पिबैक ठेकान आ ने रहै-सहैक, तखन तँ कहुना मनकेँ मारि नहि रहत तँ..।
ठमकैत गुलेतीकेँ देख श्‍याम सुन्‍दर दास बिच्‍चेमे पुछि देलखिन»
जखन असगरे छी तखन एते लन्‍द-फन्‍द काज किए करै छी? काजकेँ समैट जतबे खगता अछि तही हिसावसँ करू।
श्‍याम सुन्‍दर दासक विचार जेना गुलेती मुखियाक मनमे भरि गेल तहिना तीर लगल चिड़ै जकाँ छटपटाए लगल, बाजल»
से केना हएत?”
श्‍याम सुन्‍दर दास बजला»
जँ साल भरिक रस्‍ता भेट जाए तँ चारि-छह मासक रस्‍ता छोड़ि दी।
हँसैत गुलेती बाजल»
से तँ नानियोँ-मुहेँ सुनने छी जे बेसी काल बजै छेली जे छह मासक रस्‍ता नइ चलि साल भरिक चली।
सुढ़ियाइत गुलेतीक मनकेँ देख मोहैन चलबैत श्‍याम सुन्‍दर दास बजला»
जखन घर-अँगनामे बैस छिट्टा-पथियाक काज कऽ लइ छी तखन जँ पानि-झाड़क काज करै छी से नीक लगैए?”
पानि-झाड़ सुनिते गुलेतीक मन पनियाइत झहरल»
बाबा महराज, हमर बाउओ पानियेँ-मे मरल।
पानिमे मरल सुनिते श्‍याम सुन्‍दर दासक मनमे उपकलैन- मुर्दघट्टीए ओहन जगह छी जैठाम लोक अन्‍तिम साँस लइए। जखन जिनगीक अन्‍तिम साँसक समए अबैए तखने नव साँस पौने मनमे परवेशो करैए...।
जहिना मरैत रोगीकेँ कोराइमिन दऽ किछु समए प्राणकेँ ठहरौल जाइए तहिना जिनगीक कोराइमिन दैत श्‍याम सुन्‍दर दास बजला»
बाउ, जखन साल भरिक उपैतिक काज लगले अछि तखन दू-मसुआ आकि चरि-मसुआ काज छोड़ि देब नीक। ओना, टुकड़ी-पुरजा काज जे होइए ओ थोड़े लभगर होइते अछि मुदा ओइ लभगरक लोभमे नइ पड़ी।
जहिना धुर-झार श्‍याम सुन्‍दर दास अपन विचारकेँ व्‍यक्‍त करैत गेला तहिना गुलेतीक जिज्ञासा सेहो बढ़ैत गेल, जेकरा ओ ठाढ़ कानक कोन बात जे मुँह-बाबि सुनबो करए आ अखियासो करए, मुदा जड़िक मूल लग नजैर जेबे ने करइ जे श्‍याम सुन्‍दर दास की कहि रहला अछि। खएर.., एते तँ जिज्ञासा जगिये गेलै जे बाजल»
बाबा महराज, अहीं सेने हमहूँ जाएब। केतए जाइ छिऐ आ कहिया घुमबै?”
अपन मेहनतक फल देख श्‍याम सुन्‍दर दासक मन ठाढ़ भेलैन। ठाढ़ होइते हियाबए लगला जे की केने की नीक हएत तँए किछु बजैमे बिलम होइत रहैन। बिच्‍चेमे छीतन दास टीपलक»
गुलेती भाय, करीब बीस बर्ख पहिनहि हमरो घरवाली मरि गेल, आ जेठका बेटा जे पनरह सालक रहए ओ गौंआँ सबहक संगे बिराटनगर पड़ा कऽ चलि गेल।
बिच्‍चेमे गुलेती बाजल»
दोसर-तेसर धिया-पुता बीचक नइ अछि?”
गुलेती मुखियाकेँ धड़फड़ाइत देख छीतन दास बाजल»
छह मास अल्‍हुआ माटि तर रहैए से धड़फड़ेबे ने करैए आ अहाँ लगले धड़फड़ा गेलौं। पहिने भेख लिअ तखन आरो भीख भेटत।
लगले सूरमे गुलेती बाजल»
अहाँक विचार मानि गेलौं। पहिने एक लोटा जल पीब लिअ जे थाकल-ठेहियाएल छी, बजैमे कण्‍ठो सर्रास हएत।
कहि गुलेती पाखैर गाछक जड़िमे माटिक डाबा लग आबि लोटा अखारि कऽ पानि भरि श्‍याम सुन्‍दर दासक हाथमे दैत बाजल»
गरीब लोक छी, ऐसँ बेसी ऐठाम उपाइये की अछि। जँ आइ ठहैर जैतिऐ तँ सौंझका भनडारा चलितै।
लोटो भरि जल पीब श्‍याम सुन्‍दर दास बजला»
अखनसँ अहाँ गुलेती मुखिया नइ गुलेती दास भऽ गेलौं।
अपन बदलैत नाउक-नाङैर सुनिते गुलेतीक मन भगवान रामक धनुषपर पहुँचल। ..पियाससँ छीतनो-दास आ दुखियो दासक कण्‍ठ सुखिते रहैन। तैबीच गुलेती दासकेँ देखलैन जे हाथ बागि माने पानि पियाएब छोड़ि विचार सुनैमे वौआ रहल अछि। अपनो-ले अपने मुँह नइ उठाएब तखन तँ अन-पानि बेतरे मरिये जाएब आ कियो पुछनिहारो ने हएत। बजला»
गुलेती भाय, पहिने जल पिआउ तखन गुलेतीक फट्ठाकेँ धनुषक फट्ठा बनाएब।
छीतन दासक व्‍यंग्‍य-वाण सुनि श्‍याम सुन्‍दर दासक मसुएलहा मन मकइ जकाँ जे खापैड़ पड़िते भरभरा जाइए तहिना बत्तिसो दाँतकेँ छिटकबैत भरभरा गेलैन। बजला»
छीतन दास, बहुत दिनक पछाइत एहेन संगी भेटल।
गोसाँइ साहैबक वाणीक वाण जेना छीतन दासक छातीकेँ पघिला देलकैन। मनमे एलैन- जहिना असगरूआ अपने छी, तहिना गुलेतियो दास अछि मुदा जाबे अपन बात गुलेतीकेँ कहि नइ देबै ताबे ओ ओते लग केना औत। माने ई जे जाबे अपन दृदयक दर्द कहबै नइ ताबे अनका दर्दक संग अपन छातीक दर्द घुलत-मिलत केना।
..छीतन दास बाजल»
गुलेती भाय, पहिलुका जे पनरह बर्खक बेटा रहए जे पड़ा कऽ बिराटनगर चलि गेल ओ जीबैए कि मरैए से अखनो ने बुझै छी। तैबीच डेढ़-साल-दू-सालपर पान-सातटा धिया-पुता भेल, नीक जकाँ मनो ने अछि।
बिच्‍चेमे गुलेती टोकलकैन»
अपनो धिया-पुता मन नइ अछि?”
मुस्‍कियाइत छीतन दास बाजल»
एकोटा जीवैत रहितए तखन ने। कोनो तीनियेँ मासमे, तँ कोनो साल भरिपर, तँ कोनो तीन सालक भऽ भऽ कऽ मरि गेल।
मुस्‍की दैत गुलेती बाजल»
घरवाली अछि किने?”
छीतन»
सएह ने कहै छी, अन्‍तिम बेर जौंआ बेटा भेल, मुदा बेटाक संग घरोवाली सोइरियेमे मरि गेल। तेकर पछाइत हमहूँ गोसाँइये साहैबसँ भेख लऽ बेरागी बनि साधु-सेवामे लगल छी।
धड़फड़ाइत गुलेती बाजल»
बाबा महराज, अपन सभ अरजाल-खरजाल समैट कऽ अखने आँगन-के रखि अबै छी। अही पाखैरक गाछक निच्‍चाँमे अपनेसँ भेख लेब आ अपने संग सेहो जाएब।   
शब्‍द संख्‍या : 5996, तिथि : 12 अगस्‍त 2016


[1] पोना