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Monday, January 18, 2016

एक घोंट पानि

एक घोंट पानि
पहिल पृष्‍ठसँ- 

बहत्तैर बर्खक वयसमे विलास बाबू अपन पैंतीस बर्खक संसदीय जिनगीक संग पचपन बर्खक राजनीतिक जिनगीकेँ तिलांजलि दैत, बिना किछु केकरो कहने घरसँ निकैल गेला। जेना गाम-घरमे होइए जे कोनो बाते दुनू परानीमे झगड़ा भेने एक परानी नैहरक बाट पकैड़ नैहर दिस विदा ई सोचि भऽ जाइ छैथ जे भीखो-दुख मांगि माइयो-बापक सेवा करब, मुदा एहेन घर आ घरबलाक मुँह नइ देखब। ओना विलास बाबूकेँ से नइ भेलैन, मुदा एते तँ भेबे केलैन जे एतेटा दुनियाँ अछि, तइमे एते बड़का-बड़का समुद्र अछि, पानिक भण्‍डार अछि तखन हमरा एक घोंट पानि नइ भेटत जे मरि जाएब, तखन अनेरे किए एहेन जिनगी बनौने जा रहल छी जे जैठाम मनुखक सेवाक उदेससँ कौलेजक जिनगीमे राजनीतिक जिनगीक बीच पएर रोपलौं, जे अबैत-अबैत आइ ने लगमे एकोटा लोक बिसवास पात्र अछि आ ने लोके आकि परिवारेक बिसवास पात्र अपने बनल रहलौं..!
यएह सभ विचार विलास बाबूक मनकेँ तेना ने ममोरि देलकैन जे एक घोंट पानिक आशा करैत वेरागी-सन्‍यासी जकाँ घरसँ निकैल गेला।
ओना, ने केकरो–समाजसँ लऽ कऽ राजनीतिक संगी तक–ऐ बातक जानकारीए देलखिन आ ने केकरोसँ विचारबे केलैन। तइसँ कियो किए बुझत जे विलास बाबू पैछला जिनगीक सभ किछु छोड़ि नव जिनगीक खोजमे घरसँ निकैल गेला। तँए अपना मनमे नव विचारक नव दशा-दिशा रहितो आन लेल–माने अखन धरिक संगियोँ-साथी आ कुटुमो-परिवार–ओहिना छैथ जहिना अखन धरिक जिनगी अङैजने आबि रहल छला...।
घरसँ निकलला पछाइत विलास बाबूक मनमे एलैन जे जखन पैछला जिनगीक सभ किछु छोड़ि देब तखन केकरो ऐठाम जाएब उचित नहि। ओना, जिनगी जेहेन हुअए मुदा खाइ-पीबैले अन्न-पानि, रहैले घर, पहिरैले वस्‍त्र चाहबे करी, से तँ सभठाम राखल नइ अछि, जे जेतै मन फुड़त तेतै रहि जाउ आ सभ किछु आगूमे मौजूद रहत। ओना दुनियॉं अही सभसँ भरल अछि मुदा तैयो तँ अपना–ले सभकेँ अपन-अपन ठौर-ठेकान बनबैए पड़ै छै।
घरसँ निकैल रस्‍ता टपैत विलास बाबूक मनमे उठलैन जखन सभ किछु छोड़ि एक घोंट पानिक आधार बना जीबैले ठानि लेलौं, तखन अनेरे किए छिछिआएल घुमब। से नइ तँ भने पीपरक गाछ रस्‍तापर ऐछे, ऑक्‍सीजनक भण्‍डार छीहे, एतै किए ने चैनसँ अरामो करब आ रस्‍तो ताकब...। 

अन्‍तिम पृष्‍ठसँ- 

लगले विलास बाबूक मन अनुचितसँ आगाँ बढ़ि उचितपर चलि गेलैन। आइ जेकरा अनुचित मन मानि रहल अछि ओ ओइ दिन किए ने बुझलौं। एम.ए. पास तँ तहू दिनमे रही। चूक केतए भेल..?
बोनमे वौआइत बटोही जकाँ विलास बाबूक मन अपन जिनगीक उचित-अनुचित रस्‍ताकेँ पकैड़ जखैन पैछला जिनगीमे किछु डेग आगू बढ़ला, तखन देखलैन जे समैयक हवाक धारमे भँसिया गेलौं। भँसिया ई गेलौं जे अपनासँ पछुआएल लोकक जिनगीकेँ अपना छातीमे नइ सटाएब तखन अपन प्रगतिशीलते की रहल। मुदा के केकरा छाती लगाबए ईहो तँ एकटा जटिल प्रश्‍न ऐछे। जँ अपना पत्नी, बाल-बच्‍चा नइ रहैत तखन जँ पछुआएलकेँ उठा छाती लगैबतौं तखन अपनो मन कहैत आ आनो कहैत जे एकटा गिरल (खसल) परिवारकेँ उठैक अवसर भेटल। मुदा से कहाँ भेल। तखन की भेल? मुदा, अखनो अपन मन ई कहाँ चाहैए जे अनुचित भेल। किछु लोक तँ नीक कहिते छैथ...।
थकिआइत विलास बाबूक मन थथमारि अपन जिनगीक विचार करए लगला। भकुआएल लोककेँ जहिना भक्क खुजिते करियाएल दुनियाँ फरिच देखैमे आबए लगै छै तहिना भेलैन। फरिच होइते मन कहलकैन
हर मनुखकेँ जिनगी चाही, तैबीच खाँच-खरोंच किछु-ने-किछु अधिकांशकेँ ऐछे, जइसँ अतीतक पतीतमे पहुँच गेल अछि, जँ ओकरा भविसक पवित्रक ढंग धरौल जाए तँ निसचित कल्‍याण हेबे करत।
मुहसँ निकैलते विलास बाबू नमहर साँस छोड़लैन। साँस छुटिते मनमे एलैन जे सही-गलतीक बीचक रस्‍तासँ जिनगी चलैए। जेते सही तागैतवर अछि तइसँ कनियेँ कम माने लंकाक उनचास हाथ गलतियो तँ तागैतवर अछि, तहूमे हवाक जे झोंक उठै छै, ओ मनुखक कोन बात जे देशक-देशकेँ कखनो सही दिशामे तँ कखनो विपरीत दिशामे तेना ठेल दइए जेकरा भरपाइ करैमे पीढ़ियो समाप्‍त भऽ जाइए। तखन?
अपन कृत्‍य तँ आइयो जीवित अछि जे ओहन छेड़खानी आजुक कौलेज-जिनगीमे नइ अछि। विकास भाय हमर बाल संगी छैथ, जँ हुनका ओतए जाएब तँ जरूर ओ छाती लगा एक घोंट पानिक आग्रह करबे करता...।
मनमे ऐबते विलास बाबू उत्‍कण्‍डित होइत उठि कऽ ठाढ़ भेला। ठाढ़ होइते बूझि पड़लैन जे भरिसक जिनगीक पहिल शुभ दिन छी...।
शब्‍द संख्‍या : 2522, तिथि : 10 जनवरी 2016

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