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Wednesday, December 23, 2015

समरथाइक भूत कथा संग्रहक तेसर संस्‍करणसँ ''खटहा आम'' कथा

खटहा आम

तीन मास पहिने अर्थशास्‍त्र विभागक प्रोफेसर छीतन भाय रिजाइन लगा गाम आबि गेला। गामेमे रहब, रट लगि गेलैन। रट ई लगलैन जे अनेरे नगद-नारायणक फेड़मे पड़ि अपन देव-पितर बिसैर गेल छी, मुदा कौलेजक भाषामे बजै छला, जइसँ गामक लोक बुझिये ने पबै छल जे की बजै छैथ। भायगामो-घरक लोकक तँ जिनगी बदललै आब, टी.बी.मे नङ्गटा नाच देखैत रहैए आ मने-मन गुनगुनाइत रहैए-
नन्‍द भवनसँ निकलल हे गिरिधर गिरधारी...।
भाय! कोन गिरिधर गिरधारी से तँ ओ जानए। बहुरूपिया कृष्‍ण कखनो महाभारतक शंख फुकै छैथ, तँ कखनो गोपीक संग वृन्‍दावनक रास करै छैथ, कखनो मक्‍खन चोरा कऽ खाइ छैथ, तँ कखनो घाट परहक साड़ी लऽ कऽ भगै छैथ, तँ कखनो गाइयक चरबाहि करैत गोबरक पहाड़ बनबै छैथ...।
दरबज्‍जापर बैसल छीतन भायकेँ अपन नोकरी छोड़ब मनमे उठलैन। दस बर्खक अनुभवी शिक्षक जखन अप्‍पन अर्थशास्‍त्र पढ़लैन तखन मन उड़ैज गेलैन जइसँ उर्जावान भऽ गेला। अपन शक्‍तिक बोध होइते अपन भवितव्‍य देखलैन। देखते तियाग पत्र दऽ कऽ गाम चलि एला...।
छोट भाए बूझि अपन फर्मेल्‍टी निमाहैले छीतन भाय लग पहुँच, चिक्कारीमे कहलयैन-
भाय, असगरे की विचारि रहल छी?”
चिक्कारी ई जे बुझल रहबे करए जे प्रोफेसरक जिनगी असगरूआक भऽ जाइ छै। गाम थोड़े छी, जे चाहक चौखरी, पानक चौखरी, ताड़ीक चौखरी, तासक चौखरी हजारो किसिमक चौखरी लगा दस गोरे एकठाम हब-गब करैत रहता। एकांत बूझि पड़लैन तँए, कि की, आकि मन बेथाएल रहैन तँए, हमरो अर्थशास्‍त्रेक बात कहए लगला! आकि बजैक वेगमे जनु अपन कौलेजक किलास धियानमे चलि एलैन तँए, ओही लहजामे बाजब शुरू केलैन-
बौआ, पहिने चाह पीबह। जेते हल्‍लुक माथ रहतह तेते नमहर मोटा उठबैमे हल्‍लुक बूझि पड़तह।
जहिना चिल्‍होरिक टाँहि सुनि लोक बूझि जाइए तहिना भोजियो बूझि गेल रहथिन। भौजीकेँ अपन काजपर बिजलोका जकाँ नजैर रहै छैन। सेरिया कऽ नीक जकाँ बैसबो ने कएल रही, माने सोझहा-सोझही बैसी आकि कनछिया कऽ बैसी। कहुना भेला तँ जेठ भाय भेला तैपर पढ़ौनीक काज करै छैथ। तहूमे बामा भाग किनछिया कऽ बैसी आकि दहिना भाग। अही तारतम्‍यमे रही। तइ बिच्‍चेमे भौजी चाह नेने आबि मान नेने मान करैत बजली-
गामक पुरुखकेँ बैसैयोक लूरि नै!”
मुदा धड़फड़ा कऽ किछु बाजबो नीक नहियेँ होइए। एके शब्‍द अगियाएलमे अगिया जाइए आ पानियाएलमे ठिठुरि जाइए। तँए कखन रज तम भऽ जाएत आकि सत भऽ जाएत, तेकर कोन ठेकान। तेतबे किए, तमो रज आ सत बनिते अछि...।
मुदा चुटकी तँ चुटकी छी। एक बेरे थोड़े फरिआइए, ओ तँ दोहरा कऽ फरियाएत नै तँ तेहरा कऽ। जँ एक बेरे फरियाइत तँ तुलसी पात तोड़ैकाल तीन बेर किए बजबए पड़ै छै..?
बजलौं-
भौजी, आब वसन्‍ती रंग चढ़ल हेन। बिआह मन पड़ैए की नै, हमहीं परोफेसर-भैयाक लोकनियाँ रहिऐन।
तइ बिच्‍चेमे छीतन भाय बजला-
तहूँ केते नाङैर भारी केने छह। एते दिन प्रोफेसर छेलौं, आब भैयारी भेलौं।
हमरो सुतरल कहलयैन-
भैया, अहीं सभ गाममे कटा-कटी कऽ गामकेँ दुइर कऽ देलिऐ, सभ दिन भैया कहैत एलौं जँ आब प्रोफेसर भैया नइ कहब तँ अहूँकेँ मनमे की हएत। भैयाक पाछू प्रोफेसरक नाङैर सटि गेल किने।
छीतन भायकेँ जनु किछु बजैक मन रहैन, तँए हँसी-मजाककेँ हटबैत बजला-
बौआ, हम तियाग-पत्र किए देलौं से तँ कहबे ने केने छेलिअ आ तोहूँ ने पुछलह?”
कहलयैन-
भैया, अहाँकेँ की कहब, सभ गप लोक सभठाम बजैए मुदा पाइ-कौड़ीबला बात थोड़े बजैए। तँए अगुरबार पुछब अहूँकेँ थोड़े नीक लगितए।
एकमुहरी विचार छीतन भाइक मनमे अँटकल रहैन तँए दोसर बातपर मने ने अँटकलैन।
बजला-
बौआ, जड़ियेसँ कहै छिअ। जइ दिन नोकरी छोड़लौं तइसँ आठ-नअ दिन पहिलुका गप छी। मखना तारीकपर लहेरियासराय गेल रहए, घुमतीकाल डेरापर आएल। ऐबते बाजल प्रोफेसर साहैब, अहाँ तँ राजा भऽ गेलौं...।
राजा सुनि अपन मन तँ कनी आगू-पाछू करए लगल जे राजा तँ भेल भूपति! से कहाँ अछि! मनमे भेल जे भरिसक राति-बीच दुआरे गाम नै जा हेतै तँए रहत। अपन डेरा अछि, ओढ़ना-बिछौना सभ ऐछे। किछु ने बजलौं।
बिच्‍चेमे टोकि देलिऐन-
भैया, ई तँ धरमक काज भेल। अनका जकाँ नै ने जे गौआँ-घरूआकेँ देखब तँ मुँह घुमा लेब जे दस टाका खरच ने भऽ जाए।
हमर गप छीतन भायकेँ नीक लगलैन। बाढ़िक पलाड़ी जकाँ मन उमैड़ गेलैन। अपने मने बाजए लगला-
राजा सुनि अपन मन तँ नै तर-ऊपर भेल मुदा पत्नीक मन भऽ गेलैन।
मुस्‍की दैत पुछलयैन-
की भऽ गेलैन, भौजीकेँ?”
बजला-
भऽ ई गेलैन जे जहिना बिनु पढ़ल-लिखल गुरुक पत्नी गुरुआइन आ डाक्‍टरक पत्नी डाक्‍टर-साहिबा बनि जाइ छैथ। तहिना हुनको भऽ गेलैन। हमरा लगसँ मखनाकेँ उठा चुल्हिये लग बैसा फदर-फदर गपो करए लगली। बीच-बीचमे हँसबो करैथ आ नेपो झाड़ैथ। तैसंग केता बेर चाह दुनू गोरे पीलैन तेकर ठेकान नै।
बूझि पड़ल जेना छीतन भाइक मन औरो पला गेलैन अछि। टोकलयैन-
मखनासँ कोनो गप भेल की नै?”
बजला-
बड़ीकालक पछाति जखन भानस लगिचा गेल, चुल्हि-चीनमार बहारै बेर भेल तखन ओ लगमे आएल। पुछलिऐ- सोझे भाटक राजा मखन बना देलह आकि माटिक जड़ियोमे किछु छै?”
मखनोक मन फुलाएल रहबे करइ, बाजल-
भाय साहैब, करोड़-पति भेने लोक राजा भऽ जाइए, से ते अहूँ भाइए गेल छी।
मखनाक बात नीक जकाँ नै बूझि पेलौं जे की कहि देलक। मुदा अपनो मन धिक्कारए लगल जे एकटा साधारण आदमीक बात नीक जकाँ नै बूझि पेलौं! मुदा दोहरा कऽ पुछबो नै सोहाएल। नै ऐ दुआरे सोहाएल जे केना कऽ एकटा बुझौनिहार[1] अपने मुहेँ बाजी जे बातक गूढ़केँ नै बुझलौं। मन ठमकल। ठमैकते कनियेँ ठहरलौं आकि मन जिराएल। जिराइते उठल। किए ने मखनाक बाजल बात नै बुझलौं। मुदा जहिना बाउ शब्‍दक अर्थ बुझैले आगू-पाछूक शब्‍दक ताल मिलबए पड़ै छै, नै तँ बाउक माने बेटा भेल आकि बाप से बुझिये ने पेबै तहिना भऽ गेल...।
चपाड़ा भरैत मखनाकेँ कहलिऐ-
मखन, तूँ ते बड़का कवि बनि गेल छह। तोहर दोहाइ जरूर पड़बे करत। हमरा सबहक कमाइये की अछि जे तोरा सन-सन लोकक सुआगत करब।
एक दिस जहिना पत्नीक मन रानीक गद्दीपर बैसल तहिना मखनोक। तहूमे केता बेर चाह पीलक तेकरो ठेकान नै, मन गरमाएल रहबे करइ, बाजल-
भाय साहैब, अपने तँ आब राजा भऽ गेलिऐ। कोन चीजक कमी भगवान देने छैथ जे अनेरे बजरूआ लोहा महींसिक दूध खाइ छी, दही भोजे-काजमे खाइत हएब? ललमुहाँ रहुओ तँ बिसरिये गेल हएब?”
मखनाक एक-एक शब्‍द जेना हमरा छातीकेँ बेधैत रहए। विद्यापतिक उगना जकाँ अनेको विचार मनकेँ अलगा देलक। आगू की बाजी से विचारेमे उपरौंझ हुअ लगल। विचारक क्षेत्र आ सच्‍चाइक क्षेत्रक बीच एते दूरी बनि गेल अछि जे बेसी गोरे अही कटारिमे खसिते अछि। मुदा पत्नीक फुलाएल मन फगुआ-जोगिराक भोलाबाबा जकाँ अन-धन सोनमा लूटबैले तैयार रहैन। तैयारो केना ने हेती वा रहितैथ, राजगद्दीक खुशनामामे जँ पमरियोकेँ साड़ी पहिरा नै नचैबतैथ तँ खुशीए की भेल। केबाड़क अढ़ेसँ बजली-
मखन, भगवान अहाँ मुँह अमरीत बरसाबैथ।
मखना की जानए गेल जे अमृताएले मुँह ने अमृत बिलहत। अमृत सुनियेँ कऽ मन उधिया गेल छेलइ। कहलकैन- 
भौजी, अहूँ ससैर कऽ लगमे आउ। जे बात काना-कानीक छी ओ दोसराइतकेँ सुनब नीक नै हएत।
मखनाक बात सुनि विस्‍मित भेल रही। मुदा पत्नीक जिज्ञासा आगूए-आगू गाइक ओइ बच्‍चा जकाँ रहैन जे दौड़ कऽ गाएसँ दू-लग्‍गा-चारि-लग्‍गा आगू जा ठाढ़ भऽ पाछू माए दिस तकैए आ आँखि मिलिते गाए अपन मातृत्‍व शक्‍तिक बोधक अमृत पीब आगू डेग उठबैत रहैए...।
तहिना लगमे ऐबते मखना हिनका कहलकैन-
हम बीचमे बैसब।
ओना मखनाक मनमे उचड़ैत रहै जे हिनको सन-सन लोक ते गाम उजारलक, भैयारीक सम्‍बन्‍धकेँ मेटौलक...। मुदा लगले मनमे एलै जे ई कु-नजरिये देखब भेल। सती-सावित्री, सीता, अहिल्‍या, सुनयना इत्‍यादि सन-सन किए बिसरा रहलौं अछि। मुदा लगले मनमे एलै जे शहर-बजारमे के केकरा रहए दइए, तैठाम जँ भाय साहैब एते सुआगत केलैन ई हम हिनका विचारकेँ बधाइ दइ छिऐन। बाजल-
भाय साहैब, अहीं सन-सन धरमतमा लोक सबपर ई दुनियाँ ठाढ़ अछि।
बैशाख-जेठमे जहिना गैवार-महींसवार बाधमे तामल खेतक गोलापर गोला चढ़ा देबाल ठाढ़ करैए, तहिना हमरा मनपर गोला चढ़ल जाइत रहए, तँए गुम्‍मी लधने रहलौं। मुदा पत्नी अपना मनक फुलवाड़ीमे माइलिक बीच अपनाकेँ देख आरो भकराड़ भऽ कऽ फुलाए लगली। तैपर चाहक चुमकी सेहो चढ़िये गेल रहैन। कहलखिन-
बौआ, अहीं सभ ने भाए-बोन भेलौं, हाथ-पएर भेलौं। अहिना जहिया-जहिया दरभंगा आबी तहिया तहिया अबैत रहब।
ओना हिनकर जेहेन बोल निकललैन तेहेन बेवहार नै छैन। भलेँ वृन्‍दावनेक राधा अपनाकेँ किए ने मानैथ, मुदा अधलो केना कहेती। जे बेवहार मखनाक संग कऽ रहली अछि, ओकरा कम नै आँकल जा सकैए। भलेँ जँ काज आगूओ शेष अछि तँ आगू समैयो तँ शेष ऐछे। की हुनका मनमे आबो नै आबि सकै छैन जे रोगाएल-टटाएल परिवारक मखन छी, किछु भड़ो-किराया-ले आकि किए कचहरीक चक्करमे पड़ल अछि, ओकरो मेटबैक उपय सोचितैथ। खैर जे से...। हमहूँ गुम्‍मे रहलौं। ओना हमर गुम्‍मी आ हिनकर चढ़ल मन देख मखनोक मनक मृदंग, मृदंगे नै ढोल-मृदंग दुनू चढ़ल जाइत रहइ। कहलकैन-
भौजी, देखले दिनमे जइ जमीनक दाम तीन हजार रूपैए कट्ठा छेलै ओ आइ तीन लाख रूपैए कट्ठा भऽ गेल। तहूमे अहाँकेँ तेहेन ओ चौक परहक बड़का कोला अछि, ओ तँ बूझू जे रजधानी भऽ जाएत। तेहेन जगजियार चौक भऽ गेल जे ओइठाम चाहब तँ बजार लगा देब। कमसँ कम बान्‍हक कात दिससँ दू सए घर बना दिऐ तँ लाखो भाड़ा हएत। अनेरे भाय साहैबकेँ अहाँ अपनो नोकर आ अनको नोकर बनौने छिऐन।
मखनाक बात सुनि अपने उठि कऽ टहलए लगलौं। हजार-लाखमे फानि गेल! मुदा तखनो जँ अपने नै ताकब तँ केकरा के तकलक जे हमरे ताकत। मुदा अखन दरबज्‍जापर आएल गामक भैयारीकेँ छोड़ि..., विचारो करैक उचित समए नहियेँ अछि। फेर घूमि कऽ आबि बैसलौं। तैबीच मखना बाजि चुकल छल, भौजी, उ बड़का खरहोरि जे अछि, ओइमे एकटा बोरिंग गड़ा देबै आ बीघो भरि हमरा खेती करैले जहिया दऽ देब तहियासँ दुनू साँझक तरकारीक भार अखने गछि लइ छी।
मने-मन मखनाक बातकेँ हमहूँ नोट कऽ लेलौं। मुदा लगले मन उझैट गेल। उझैट ई गेल जे यएह मक्‍खन चोरि तँ वृन्‍दावनक लीला छी! मुदा घड़ीक चालिसँ चालि मिला पत्नीकेँ कहलयैन-
दुनू भैयारी एकेठाम बैस कऽ खेबो करब आ किछु गाम-घरक गपो-सप्‍प करब आ अहाँ रूक्‍मिणी जकाँ बिअनि हौंकब।
बिअनिक नाओं सुनि पत्नी उठैत बजली-
मखन बौआ, अहूँ की पानिक मक्‍खन थोड़े छी, बकेनमा महींसिक ने दूधक मक्‍खन छी। ऐठामसँ गाम पहुँचते कोला-कोली सेरिया जोत-कोर करए लागब। जहिया हम सभ गाम आएब तहिया देखब।
जेहने भूख जगल हुअए तेहने अनुकूल जगह जँ भोजनो-आरामोक हुअए तँ एहने संयोग संयमक बाटे चलैए। सएह भेल, चौपेतल कम्‍मलक आसनपर बैसते जहिना अपन मन मखनाक मन पढ़ए लगल तहिना पत्नी हाँइ-हाँइ कटोरा-कटोरी साँठए लगली। पानि ऐ दुआरे चढ़ि गेल रहैन जे मखनाक संग जखन भोजनक दौन[2]मे ओझराएल रहब किने तैबीच अपन मैलकियतक गप पत्नी चला लेती। किएत हमरा परोछेमे मखनाकेँ खेतक जुआन दऽ देने छेलखिन। मखनो खेती करैक भार उठा नेने छल...।
मनमे बेर-बेर उठए लगल जे अनेरे लोक अपन सम्‍पैतकेँ नै जगा दुनियाँ घूमि रहल अछि। मुदा से अपने बुझने हएत आकि अनको विचारमे विचार साटि विचारैत करैयो पड़त? तहिना मखनोक मन जगलै। जगबो केना ने करितै, जखने दूध तखने मक्‍खन, जखने मक्‍खन तखने घी। मुदा भेड़ी-घी आब केतए भेटत जे माथमे लगा दरद भगाएब। भानसे बेर मखना माछक कुटियापर हीक गाड़ि अँखिया नेने छल। भाय, भोजमे तँ वएह खेनिहार ने ठकाइए जेकरा पातपर भोजनक विन्‍याश आगू-पाछू परसल जाइए। मुदा मखनाक सोझमे भानस भेल, जँ जीबलाह जँ रहैत तँ लोहियेसँ निकालि-निकालि लोलक पानि मिझा नेने रहितए, मुदा मखनो अपनो अपन अस्‍तित्‍व तँ जनिते अछि। आखिर किछु छी तँ पुरुखक बेटा पुरुख तँ छीहे। एतबोकाल धिरित नै राखल हेतइ। एक तँ ओहिना अनठिया चाह पीनिहार जकाँ लोभे पेट फुला नेने अछि। मुदा भानसक संगी सेहो मखन रहबे करैन। केते खिस्‍सा-पिहानी कहि-सुनि दुनू गोरे एकबट्ट भऽ गेल, तँए अपनाकेँ भनसिया बूझि मखना आदर करैत हमरा लग आबि बाजल-
भाय साहैब, केतए गेल ओ पीड़ी सेरसोक तेल-मसल्‍ला[3] आ केतए गेल ओ ललमुहाँ रहु आ बुआरीक पेटी?”
तैबीच पत्नी थारी नेने आबि गेली। जहिना हाट लगौनिहार हटवार अपन-अपन चीज-बौस पसारि हाट सजा तराजू पकैड़ हाथ पसारैए तहिना अपन काज उसारि पत्नी ओइ ताकमे लगि गेली जे पहिने दुनू गोरे मुहमे लऽ मुहकेँ बरदाबौथ ने तखन खुलल मुँहक सोहर केहेन होइ छै से सुना देबैन। जे कोन सोहर छी, जन्‍मौटी छी आकि मूड़नक, बिआहक छी आकि असमसानक। मुदा हमरा ऊपर एकटा आरो बड़का चेका माटिक चढ़ि गेल। चढ़ि ई गेल जे केना अपनो पिताक देल पनरह बीघाक किसान परिवारक छी, हमरा सन लोक[4] अपनो आर्थिक विश्लेषण जँ अपने नै करत तँ जे कहियो स्‍कूल-कौलेजक आँखि नै देखलक ओ केते दूर धरि आगू लऽ जा सकैए? अपना सभ किछु अछि। मुदा मखना कोन नजरिये देख रहल अछि! ई तँ भने दुनू गोरेक[5] बीचक बात छी भने मुहोँक काज नै बरदाएत आ जीहो चलबे करत। तँए सुनबे नीक। अपने चुप भऽ गेलौं...।
मुदा पत्नी तँ अपने नियारे तबाह जे धान-दौनक बरद जकाँ जहाँ दाँत, ठोर, जीह चौकल्‍ला चलए लगलैन आकि अपन प्रस्‍ताव पेश कऽ देबैन। प्रस्‍ताव ई जे अखन तक पुरुखक बिनु विचारल बात अछि तँए तीनू गोरेक बीच विचारो पक्का-पक्की भऽ जाएत आ काजोमे हाथ लगत। हेबो तँ अहिना ने करतै जे जे जहिना कले-कले लोक गाम छोड़लक तहिना कले-कले धरबो करत। प्रश्‍न तँ ओतए अँटैक गेल अछि जेतए संकल्‍पक दृढ़ताक बात अछि...।
पत्नी मखनाकेँ कहलखिन-  
मखन, अहाँ हमरा जे सोल्हो कट्ठा खरहोरि उपजबैक बात कहलौं, से अखन मालिको छैथे, मुहाँ-मुहीं कऽ लिअ।
पत्नीक बात अपना कोनो उझट नै बूझि पड़लैन, मुदा खरहोरियो तँ खढ़क खेतीए छी, तखन ओकरा उपटौल किए जाएत? प्रश्‍न मनमे उठल। मुदा तइमे हमर कोन दोख। जहियासँ हाइ-स्‍कूल धेलौं आ गाम छोड़लौं तहियासँ छोड़नहि छी, जँ कोनो काज उदेममे गाम एबो करै छी तँ काजे भरि अपनाकेँ समेट खँति नेने छी, मुदा परिवारो तँ पाँच सदस्‍यक देशे छी, जखने मातृ-भूमि भेल तखने राष्‍ट्र-भूमि सेहो भेल। जँ से खत्ती दऽ कऽ नै राखल जाएत तँ हूरारेक चालि पकैड़ ने मनुखो चलत जइसँ केमहर हुरैक जाएत तेकर कोनो ठेकान छै। तँए गुमे-गुम सुनैक जिज्ञासासँ कान ठाढ़ केने रहलौं।
पत्नीक प्रश्‍न नीक जकाँ धरतीपर खसलो ने छेलैन आकि बानर जकाँ मखना बिच्‍चेमे लोकैत हमरा दिस तकैत बाजल-
भाय साहैब, परिवारक भार जँ अहाँ उठा ली तँ अहूँक परिवारक भार हम उठा लेब।
मखनाकेँ निच्‍चाँ-ऊपर देखए लगलौं। मनमे छगुन्‍ता लगल जे कहू एते पढ़ि-लिखि कऽ एतेटा नोकरीक आमदनी अछि तखन ते सदिकाल भूर फुटले रहैए, जे धिया-पुताक पढ़ौनीक फीस पछुआ गेल अछि तँ भारामे नून सठल अछि...। माल टेनक डिब्‍बा जकाँ ढकर-ढकर करैत परिवार चलैए। छगुन्‍तामे पड़ल रही तैयो मखनाकेँ पुछैक विचार भेल मुदा सोझे नै, कैरम-बोडक उल्‍टा गोटी जकाँ। अपन दुखसँ लोक आनोक दुख बुझैए आ आनेक दुखक उपायसँ अपनो दुख मेटबैए, मेटबैक लूरि सीखैए। पुछलिऐ-
मखन, केते खर्चसँ तोहर घर चलि सकै छह?”
प्रश्‍न सुनिते मखन बकरी-घी जकाँ टभैक कऽ फद-फदाएल-
दिन-रातिक समए तँ दिन-रातिक काजसँ चलै छै, भाय साहैब। तखन भेल धिया-पुताकेँ जिनगी चलै जोकर बना दुनियाँकेँ देब। ई कोन बड़का खर्चक काज भेल।
गमैया पनचैतीमे जहिना मुँह-दुबरा पञ्चकेँ रेलबे स्‍टेशनमे टिकट कटौनिहार जकाँ धकियबैत धकिया अपन काज मुँह-गरहा ससारि लइए तहिना पत्नीकेँ हमरा धकिया मखनाकेँ अपना दिस करैत बजली-
बौआ, ओइ सोल्‍हो कट्ठा खरहोरिमे की सभ उबजेबै?”
एक तँ ओहिना मखनाक मन थारीक आगत-भोगसँ गद्-गद् रहैन। तैपर एक विचारवान जकाँ विचारै जोकर काज सेहो आगूमे आबि गेलइ। मुदा कोनो प्रश्‍नक जवाब ओइठाम देब भारी होइ छै जैठाम हजारो प्रश्‍न छै मुदा ओइठाम किए भारी रहत जैठाम एकेटा प्रश्‍न रहत। यएह तँ भेल हल्‍लुक आ भारी मनक ओझरी-सोझरी। एक तँ ओहुना मखनाक छोट जिनगी, तीन गोरेक परिवार। दू गोरे समकस कमौनिहार तेसर दू सालक बच्‍चा तँ अपने देह झाड़ि हँसुआ-खुरपी लऽ कऽ संगे-संग खेलाइत रहै छै, तँए किए मनपर कोनो भर पड़ल रहतै। पत्नीक बात सुनि मखनाकेँ कि कोनो विधाता जकाँ विचारैक जरूरत रहइ, जे देरी लगितै ओ तँ मात्र खरहोरि तोड़ि खेती करैक रहइ। बाजल-
भौजी, बारहो मास तीमन-तरकारीक धनमण्‍डल घरमे लागल रहत। जक्खैन जे मन फुरत तक्खैन से अपना बाड़ीसँ तोड़ि आनब आ टटका-टटकी खाएब।
मखनाक बात सुनि हिनकर मन लोहियामे पड़ल मक्‍खन जकाँ टभकलैन। विहुँसैत बजली-
से केना बारहो मास तरकारीक धनमण्‍डल लागत। ऐठाम बरसातमे तरकारी खाइले जी-जरैत रहैए आ अहाँ केना धनमण्‍डल लगा देब?”
प्रश्‍न सुनि मखनाक मनमे कोनो हिलकोर नै उठलै। एतबे उठलै, उपजाक बात तँ अन्‍तिम भेल, पहिने खरहोरि जे कहियो कहियौ आकि अखुनका कहियौ, घर बनबैमे आकि बरैब छाड़क भार उठौने छल आकि अछि ओ आब कमि रहल अछि। घरोपर सीमटी, गिट्टीसँ लऽ कऽ चदरा-खपड़ा धरि चढ़ि रहल अछि, तैठाम खढ़क उपजाक की उपयोग? मुदा माटि उपयोगी नै अछि एहनो तँ नहियेँ कहल जाएत। तहूमे माटियो अपन-अपन गुण अपन-अपन शक्‍तिक अनुकूल सेहो होइते अछि। खेतक अनेको किसिम अनेको गाममे अछि। केतौ पानिक बाढ़ि तँ केतौ माटिक। मुदा अखन खरहोरिक बात अछि। कोनो गाममे गाछी-कलम आकि खरहोरि ऊँचरस जमीनमे लगौल जाइए, नीचरस जहिना पताल दिस ससरैत अन्नसँ निच्‍चाँ उतैर माछक उपजामे पहुँच जाइए तहिना ऊँचरस जमीन उपजाक अकास लगबैए आ तहिना घर ठाढ़ कऽ घराड़ी सेहो बनबैए। मखनाक मनमे, जेठुआ फुलाएल धारक अवारि जकाँ रंग-रंगक बात उठए लगलै। उठबो केना ने करितै, बारहो मास उपजबैबला खेतमे नजैर वौआइत रहै किने। वौआइत ई रहै जे जगहो तँ जगहे छी। मुहसँ फुटल तँ कहलयैन करोड़ पति राजा छी, मुदा अपनो तँ ओइसँ कम नहियेँ हएब। जे जमीन भौजी देलैन, ओ तँ घराड़ी छी, दस लाख-पनरह लाख रूपैए कट्ठा। जँ दसो लाखे कट्ठा जोड़ै छिऐ तेयो 16x10160 लाख भेल। एक करोड़ साठि लाख...।
मुदा लगले मखनाक मन घुमलै बाजल-
भौजी, भैयाकेँ तइले तामसो उठतैन। तहूमे खाइकालमे। अनेरे मनमे हेतैन जे केहेन पतित अछि जे खेबो करैए आ घिनेबो करैए। मुदा से बात नै भैया। खटहा आमक गाछीमे पड़ि गेल छी। यएह ने सोचैत हेबै जे विद्या-दान करै छी। मुदा विद्या केतए हेराएल छैथ? जैठाम नै छैथ। कोनो काज बिना बुधिये थोड़े चलैए, जेते अहाँ नोकरीक दरमाहा उठबै छी तइसँ बेसी हएत। ओना अपन सम्‍पैत बैंकोमे जमा रखि सकै छी, मुदा अनका हाथक काजो आ सम्‍पैतोक अशे केते। मुदा दुनूसँ नीक जे अपन सम्‍पैतकेँ सम्‍पैत बना जिनगीमे ठार करी।
कहलिऐ-
बौआ मखन, बिनु विचार केने किछु निर्णए करब उचित नै, मुदा भौजीसँ पुछहुन जे गाममे रहथुन?”
ता अपन मनक उष्‍मा उष्‍मित भऽ उर्जवान बनबए लगल। एक-एक वस्‍तुपर नजैर उमड़ए लगल। जँ केकरो किछु बुझबैक अछि आकि कहैक अछि ओकरा बान्‍हि कऽ किए बाजब। किए ने अपन बोधक परीक्षण करैत चलब। पत्नीकेँ अपन गामक आ बजारक बाससँ पहिनेक, एक-एक कौशल जे माए जिनगीक लेल सीखौने रहथिन जे सागो खोंटि कऽ खेनिहारक जिनगी मिथिलाक धरती दैत आबि रहल अछि। चाहे वेपारीक दृष्‍टिए बारहो मास साग देखिऐ आकि भोजनक रूपे, मुदा होश तँ अपने राखए पड़त जे जाड़क मासमे पटुआ-पोरो आ गरमी मासमे सूआ-मेथी खाइ आकि नै खाइ।
एक तँ ओहुना घरक बान्‍हल स्‍त्रीगण बाहर घुमबो-ले आ देखबो-ले फड़फड़ाइत रहिते छैथ तैपर अपन नव शक्‍ति जगैत जमीन, तैपर सासुरक गाम, जे अपन गाम भेल, तैपर हमर आग्रह सुनि  दस-अनियाँ मुस्‍की दैत बजली-
ऐमे पुछैक आ विचारैक कोन खगता अछि। जहिना पति घर जेबाले पत्नीकेँ कियो रोकिनिहार थोड़े होइए तहिना ई अप्‍पन घर छी। अइले पुछै आकि विचारैक कोन प्रयोजन अछि।
बिच्‍चेमे ढकार करैत मखना कहलकैन-
भौजी एतेकाल अपना मने कहियौ आकि भूखल पेटे कहियौ मुदा आब अहाँक बलजोरी खेनाइ खाएब। ओना आगूमे आबि गेल अछि, छुताएब अन्नक अपमान भेल, तहूमे जे अन्न सभसँ ऊपरक ईश्वारत्‍वक शक्‍ति पौने अछि, तेकर अपमान करब मनुखता नै ने हएत।
दोसर दिन कौलेज गेलौं, पढ़बैमे मन ओझरा गेल। ओझरा ई गेल जे जे किछु किताबमे पढ़ने छेलौं सएह विद्यार्थीकेँ पढ़बैत रहलौं! मुदा आइ अपना नजरिये दुनियाँ दिस देख पढ़बए चाहलौं। जइमे सामंजस[6] नै भेने ओझरी लगि जाइ छल। मुदा जहिना नव ओझरी मनमे लगैत रहए, तहिना दोसर ओझरी खुजितो छल। खुजैत र्इ छल जे जइ बच्‍चाकेँ मनक विचारसँ मन भरैत रहलौं, कहि देब जे बौआ मन आइ बेधाएल छह तँए पढ़बै दिस मन नै बढ़ि रहल अछि।
अनमनस्‍क भेल डेरा आबि पत्नीकेँ कहलयैन-
कनी नीक जकाँ कॉफीबला चाह बनाउ।
जहिना लाबा भुजनिहारि उड़ैत लाबाकेँ लारैन सँ मारि-मारि दबैत रहैए तहिना लारैन चलबैत कहलैन-
एकर माने आन दिन मनमाफित चाह नै बनबै छेलौं।
पत्नीक लारैनपर धियान नै दैत कहलयैन-
किछु विचार करबाक अछि, तँए अखन दोसर बात नै करू।
अनायास हिनका मनमे सौनक गुम्‍हरैत मेघक शंका भेलैन जे भरिसक ठनका खसत। बजली किछु ने। गैस-चुल्हि, लगले चाह आनि आगूमे ऐ आशासँ कान ठाढ़ केली जे आगूक की आदेश होइए। मुदा जेना-जेना चाह पीबैत गेलौं तेना-तेना विचारक गम्‍भीरता बढ़ैत गेल। चाह पीब गिलास रखैत पान मुँहमे लेलौं। जेना-जेना पान मुँहमे फुलाए लगल तेना-तेना मनो फुलाए लगल...।
पुछलयैन-
स्‍वतंत्र जिनगी की?”
मुँहक फटाहि तँ छथिये, हमरे प्रश्‍नक पुछरियो पाछूसँ पछुआएले रहैन, बिच्‍चेमे पकैड़ बजली-
हमर की स्‍वतंत्रता। एतबे ने जे अहाँ संग कखनो बाल-बोध लग बैस भाए-बहिन जकाँ रहब, कखनो बाबा-दादी जकाँ घर-परिवारक विचार करब, कखनो संगे-संग आगि-पानिमे मरब, मुदा सभ कथुक बाबजूद एक मनुख बनि केना जीब, यएह ने भेल स्‍वतंत्र जिनगी। जाबे स्‍वतंत्र जिनगी नै ताबे स्‍वतंत्र नन्‍दन वन केना?”
पत्नीक विचार आरो ओझरा देलक। जेना मनक कोनो ससे-बस ने चलए दिअए। दौगैत घोड़ा जकाँ पत्नीक विचारक घोड़ाक छोर खिंचैत बजलौं-
गाममे नीक लगत?”
अपन सम्‍पैतक आर्थिक विश्लेषण मने-मन कऽ रहल छेलौं जे जहिना भारत सरकारकेँ माटि छै, पानि छै तहिना तँ गाममे पनरह बीघाक चास-बास अपनो अछि। जेकरे अमार लागल अछि तेहीले नोकरी-चाकरी करै छी। मुदा तखन लोक जँ नोकरी नै करता तँ संस्‍था चलत केना? ऐठाम संस्‍था नै चलबक प्रश्‍नक पाछू वेरोजगारी सेहो देखए पड़त। तँए बौद्धिक समुचित बँटवारा। आठ बजैत-बजैत रातिमे निर्णएपर पहुँच गेलौं जे खटहा जिनगीसँ मीठहा किए ने जीब। कोनो कि अपना ओकाइत नै अछि जे स्‍वतंत्र जिनगी बना स्‍वतंत्र देशक नागरीक बनि बिनु मोलक ज्ञान-दान करब! मन दृढ भऽ गेल। काल्हि नोकरी छोड़ि देब। लगले मनमे भेल जे काल्‍हिक बीच राति शेष अछि तँए ओते बिलमब उचित नै। नीक रहत जे अखने फोनसँ कार्यालय सूचित कऽ दिऐ। जँ कनियोँ भनक बहराएत तँ रंग-रंगक दूत-भूत पहुँच मन-मोहैन चलबए लगत। मुदा तइसँ की, कियो अपन काजक मालिक अछि। काजे ने नीक बनैत-बनैत कर्म बनैए आ कर्म बनि धर्मक संगे चलए लगैए।
दोसर दिन कौलेजक ठीक समैपर घरसँ निकलैसँ पहिनहि पत्नीकेँ कहलयैन-
अहाँक मनक बात मन मानि लेलौं। आगूक बात घूमि एला पछाति कहब।
¦¦
22 नवम्‍बर 2014, शब्‍द संख्‍या- 3515


[1] विद्यार्थीकेँ पढ़ौनिहार
[2] मुँहक दौन
[3] तेल- रस, मसल्‍ला- सौंस सेरसोक पीसल
[4] अर्थशास्‍त्रक विद्वान
[5] पत्नी आ मखन
[6] समन-जश

समरथाइक भूत कथा संग्रहक तेसर संस्‍करणसँ ''खटहा आम'' कथा

खटहा आम

तीन मास पहिने अर्थशास्‍त्र विभागक प्रोफेसर छीतन भाय रिजाइन लगा गाम आबि गेला। गामेमे रहब, रट लगि गेलैन। रट ई लगलैन जे अनेरे नगद-नारायणक फेड़मे पड़ि अपन देव-पितर बिसैर गेल छी, मुदा कौलेजक भाषामे बजै छला, जइसँ गामक लोक बुझिये ने पबै छल जे की बजै छैथ। भायगामो-घरक लोकक तँ जिनगी बदललै आब, टी.बी.मे नङ्गटा नाच देखैत रहैए आ मने-मन गुनगुनाइत रहैए-
नन्‍द भवनसँ निकलल हे गिरिधर गिरधारी...।
भाय! कोन गिरिधर गिरधारी से तँ ओ जानए। बहुरूपिया कृष्‍ण कखनो महाभारतक शंख फुकै छैथ, तँ कखनो गोपीक संग वृन्‍दावनक रास करै छैथ, कखनो मक्‍खन चोरा कऽ खाइ छैथ, तँ कखनो घाट परहक साड़ी लऽ कऽ भगै छैथ, तँ कखनो गाइयक चरबाहि करैत गोबरक पहाड़ बनबै छैथ...।
दरबज्‍जापर बैसल छीतन भायकेँ अपन नोकरी छोड़ब मनमे उठलैन। दस बर्खक अनुभवी शिक्षक जखन अप्‍पन अर्थशास्‍त्र पढ़लैन तखन मन उड़ैज गेलैन जइसँ उर्जावान भऽ गेला। अपन शक्‍तिक बोध होइते अपन भवितव्‍य देखलैन। देखते तियाग पत्र दऽ कऽ गाम चलि एला...।
छोट भाए बूझि अपन फर्मेल्‍टी निमाहैले छीतन भाय लग पहुँच, चिक्कारीमे कहलयैन-
भाय, असगरे की विचारि रहल छी?”
चिक्कारी ई जे बुझल रहबे करए जे प्रोफेसरक जिनगी असगरूआक भऽ जाइ छै। गाम थोड़े छी, जे चाहक चौखरी, पानक चौखरी, ताड़ीक चौखरी, तासक चौखरी हजारो किसिमक चौखरी लगा दस गोरे एकठाम हब-गब करैत रहता। एकांत बूझि पड़लैन तँए, कि की, आकि मन बेथाएल रहैन तँए, हमरो अर्थशास्‍त्रेक बात कहए लगला! आकि बजैक वेगमे जनु अपन कौलेजक किलास धियानमे चलि एलैन तँए, ओही लहजामे बाजब शुरू केलैन-
बौआ, पहिने चाह पीबह। जेते हल्‍लुक माथ रहतह तेते नमहर मोटा उठबैमे हल्‍लुक बूझि पड़तह।
जहिना चिल्‍होरिक टाँहि सुनि लोक बूझि जाइए तहिना भोजियो बूझि गेल रहथिन। भौजीकेँ अपन काजपर बिजलोका जकाँ नजैर रहै छैन। सेरिया कऽ नीक जकाँ बैसबो ने कएल रही, माने सोझहा-सोझही बैसी आकि कनछिया कऽ बैसी। कहुना भेला तँ जेठ भाय भेला तैपर पढ़ौनीक काज करै छैथ। तहूमे बामा भाग किनछिया कऽ बैसी आकि दहिना भाग। अही तारतम्‍यमे रही। तइ बिच्‍चेमे भौजी चाह नेने आबि मान नेने मान करैत बजली-
गामक पुरुखकेँ बैसैयोक लूरि नै!”
मुदा धड़फड़ा कऽ किछु बाजबो नीक नहियेँ होइए। एके शब्‍द अगियाएलमे अगिया जाइए आ पानियाएलमे ठिठुरि जाइए। तँए कखन रज तम भऽ जाएत आकि सत भऽ जाएत, तेकर कोन ठेकान। तेतबे किए, तमो रज आ सत बनिते अछि...।
मुदा चुटकी तँ चुटकी छी। एक बेरे थोड़े फरिआइए, ओ तँ दोहरा कऽ फरियाएत नै तँ तेहरा कऽ। जँ एक बेरे फरियाइत तँ तुलसी पात तोड़ैकाल तीन बेर किए बजबए पड़ै छै..?
बजलौं-
भौजी, आब वसन्‍ती रंग चढ़ल हेन। बिआह मन पड़ैए की नै, हमहीं परोफेसर-भैयाक लोकनियाँ रहिऐन।
तइ बिच्‍चेमे छीतन भाय बजला-
तहूँ केते नाङैर भारी केने छह। एते दिन प्रोफेसर छेलौं, आब भैयारी भेलौं।
हमरो सुतरल कहलयैन-
भैया, अहीं सभ गाममे कटा-कटी कऽ गामकेँ दुइर कऽ देलिऐ, सभ दिन भैया कहैत एलौं जँ आब प्रोफेसर भैया नइ कहब तँ अहूँकेँ मनमे की हएत। भैयाक पाछू प्रोफेसरक नाङैर सटि गेल किने।
छीतन भायकेँ जनु किछु बजैक मन रहैन, तँए हँसी-मजाककेँ हटबैत बजला-
बौआ, हम तियाग-पत्र किए देलौं से तँ कहबे ने केने छेलिअ आ तोहूँ ने पुछलह?”
कहलयैन-
भैया, अहाँकेँ की कहब, सभ गप लोक सभठाम बजैए मुदा पाइ-कौड़ीबला बात थोड़े बजैए। तँए अगुरबार पुछब अहूँकेँ थोड़े नीक लगितए।
एकमुहरी विचार छीतन भाइक मनमे अँटकल रहैन तँए दोसर बातपर मने ने अँटकलैन।
बजला-
बौआ, जड़ियेसँ कहै छिअ। जइ दिन नोकरी छोड़लौं तइसँ आठ-नअ दिन पहिलुका गप छी। मखना तारीकपर लहेरियासराय गेल रहए, घुमतीकाल डेरापर आएल। ऐबते बाजल प्रोफेसर साहैब, अहाँ तँ राजा भऽ गेलौं...।
राजा सुनि अपन मन तँ कनी आगू-पाछू करए लगल जे राजा तँ भेल भूपति! से कहाँ अछि! मनमे भेल जे भरिसक राति-बीच दुआरे गाम नै जा हेतै तँए रहत। अपन डेरा अछि, ओढ़ना-बिछौना सभ ऐछे। किछु ने बजलौं।
बिच्‍चेमे टोकि देलिऐन-
भैया, ई तँ धरमक काज भेल। अनका जकाँ नै ने जे गौआँ-घरूआकेँ देखब तँ मुँह घुमा लेब जे दस टाका खरच ने भऽ जाए।
हमर गप छीतन भायकेँ नीक लगलैन। बाढ़िक पलाड़ी जकाँ मन उमैड़ गेलैन। अपने मने बाजए लगला-
राजा सुनि अपन मन तँ नै तर-ऊपर भेल मुदा पत्नीक मन भऽ गेलैन।
मुस्‍की दैत पुछलयैन-
की भऽ गेलैन, भौजीकेँ?”
बजला-
भऽ ई गेलैन जे जहिना बिनु पढ़ल-लिखल गुरुक पत्नी गुरुआइन आ डाक्‍टरक पत्नी डाक्‍टर-साहिबा बनि जाइ छैथ। तहिना हुनको भऽ गेलैन। हमरा लगसँ मखनाकेँ उठा चुल्हिये लग बैसा फदर-फदर गपो करए लगली। बीच-बीचमे हँसबो करैथ आ नेपो झाड़ैथ। तैसंग केता बेर चाह दुनू गोरे पीलैन तेकर ठेकान नै।
बूझि पड़ल जेना छीतन भाइक मन औरो पला गेलैन अछि। टोकलयैन-
मखनासँ कोनो गप भेल की नै?”
बजला-
बड़ीकालक पछाति जखन भानस लगिचा गेल, चुल्हि-चीनमार बहारै बेर भेल तखन ओ लगमे आएल। पुछलिऐ- सोझे भाटक राजा मखन बना देलह आकि माटिक जड़ियोमे किछु छै?”
मखनोक मन फुलाएल रहबे करइ, बाजल-
भाय साहैब, करोड़-पति भेने लोक राजा भऽ जाइए, से ते अहूँ भाइए गेल छी।
मखनाक बात नीक जकाँ नै बूझि पेलौं जे की कहि देलक। मुदा अपनो मन धिक्कारए लगल जे एकटा साधारण आदमीक बात नीक जकाँ नै बूझि पेलौं! मुदा दोहरा कऽ पुछबो नै सोहाएल। नै ऐ दुआरे सोहाएल जे केना कऽ एकटा बुझौनिहार[1] अपने मुहेँ बाजी जे बातक गूढ़केँ नै बुझलौं। मन ठमकल। ठमैकते कनियेँ ठहरलौं आकि मन जिराएल। जिराइते उठल। किए ने मखनाक बाजल बात नै बुझलौं। मुदा जहिना बाउ शब्‍दक अर्थ बुझैले आगू-पाछूक शब्‍दक ताल मिलबए पड़ै छै, नै तँ बाउक माने बेटा भेल आकि बाप से बुझिये ने पेबै तहिना भऽ गेल...।
चपाड़ा भरैत मखनाकेँ कहलिऐ-
मखन, तूँ ते बड़का कवि बनि गेल छह। तोहर दोहाइ जरूर पड़बे करत। हमरा सबहक कमाइये की अछि जे तोरा सन-सन लोकक सुआगत करब।
एक दिस जहिना पत्नीक मन रानीक गद्दीपर बैसल तहिना मखनोक। तहूमे केता बेर चाह पीलक तेकरो ठेकान नै, मन गरमाएल रहबे करइ, बाजल-
भाय साहैब, अपने तँ आब राजा भऽ गेलिऐ। कोन चीजक कमी भगवान देने छैथ जे अनेरे बजरूआ लोहा महींसिक दूध खाइ छी, दही भोजे-काजमे खाइत हएब? ललमुहाँ रहुओ तँ बिसरिये गेल हएब?”
मखनाक एक-एक शब्‍द जेना हमरा छातीकेँ बेधैत रहए। विद्यापतिक उगना जकाँ अनेको विचार मनकेँ अलगा देलक। आगू की बाजी से विचारेमे उपरौंझ हुअ लगल। विचारक क्षेत्र आ सच्‍चाइक क्षेत्रक बीच एते दूरी बनि गेल अछि जे बेसी गोरे अही कटारिमे खसिते अछि। मुदा पत्नीक फुलाएल मन फगुआ-जोगिराक भोलाबाबा जकाँ अन-धन सोनमा लूटबैले तैयार रहैन। तैयारो केना ने हेती वा रहितैथ, राजगद्दीक खुशनामामे जँ पमरियोकेँ साड़ी पहिरा नै नचैबतैथ तँ खुशीए की भेल। केबाड़क अढ़ेसँ बजली-
मखन, भगवान अहाँ मुँह अमरीत बरसाबैथ।
मखना की जानए गेल जे अमृताएले मुँह ने अमृत बिलहत। अमृत सुनियेँ कऽ मन उधिया गेल छेलइ। कहलकैन- 
भौजी, अहूँ ससैर कऽ लगमे आउ। जे बात काना-कानीक छी ओ दोसराइतकेँ सुनब नीक नै हएत।
मखनाक बात सुनि विस्‍मित भेल रही। मुदा पत्नीक जिज्ञासा आगूए-आगू गाइक ओइ बच्‍चा जकाँ रहैन जे दौड़ कऽ गाएसँ दू-लग्‍गा-चारि-लग्‍गा आगू जा ठाढ़ भऽ पाछू माए दिस तकैए आ आँखि मिलिते गाए अपन मातृत्‍व शक्‍तिक बोधक अमृत पीब आगू डेग उठबैत रहैए...।
तहिना लगमे ऐबते मखना हिनका कहलकैन-
हम बीचमे बैसब।
ओना मखनाक मनमे उचड़ैत रहै जे हिनको सन-सन लोक ते गाम उजारलक, भैयारीक सम्‍बन्‍धकेँ मेटौलक...। मुदा लगले मनमे एलै जे ई कु-नजरिये देखब भेल। सती-सावित्री, सीता, अहिल्‍या, सुनयना इत्‍यादि सन-सन किए बिसरा रहलौं अछि। मुदा लगले मनमे एलै जे शहर-बजारमे के केकरा रहए दइए, तैठाम जँ भाय साहैब एते सुआगत केलैन ई हम हिनका विचारकेँ बधाइ दइ छिऐन। बाजल-
भाय साहैब, अहीं सन-सन धरमतमा लोक सबपर ई दुनियाँ ठाढ़ अछि।
बैशाख-जेठमे जहिना गैवार-महींसवार बाधमे तामल खेतक गोलापर गोला चढ़ा देबाल ठाढ़ करैए, तहिना हमरा मनपर गोला चढ़ल जाइत रहए, तँए गुम्‍मी लधने रहलौं। मुदा पत्नी अपना मनक फुलवाड़ीमे माइलिक बीच अपनाकेँ देख आरो भकराड़ भऽ कऽ फुलाए लगली। तैपर चाहक चुमकी सेहो चढ़िये गेल रहैन। कहलखिन-
बौआ, अहीं सभ ने भाए-बोन भेलौं, हाथ-पएर भेलौं। अहिना जहिया-जहिया दरभंगा आबी तहिया तहिया अबैत रहब।
ओना हिनकर जेहेन बोल निकललैन तेहेन बेवहार नै छैन। भलेँ वृन्‍दावनेक राधा अपनाकेँ किए ने मानैथ, मुदा अधलो केना कहेती। जे बेवहार मखनाक संग कऽ रहली अछि, ओकरा कम नै आँकल जा सकैए। भलेँ जँ काज आगूओ शेष अछि तँ आगू समैयो तँ शेष ऐछे। की हुनका मनमे आबो नै आबि सकै छैन जे रोगाएल-टटाएल परिवारक मखन छी, किछु भड़ो-किराया-ले आकि किए कचहरीक चक्करमे पड़ल अछि, ओकरो मेटबैक उपय सोचितैथ। खैर जे से...। हमहूँ गुम्‍मे रहलौं। ओना हमर गुम्‍मी आ हिनकर चढ़ल मन देख मखनोक मनक मृदंग, मृदंगे नै ढोल-मृदंग दुनू चढ़ल जाइत रहइ। कहलकैन-
भौजी, देखले दिनमे जइ जमीनक दाम तीन हजार रूपैए कट्ठा छेलै ओ आइ तीन लाख रूपैए कट्ठा भऽ गेल। तहूमे अहाँकेँ तेहेन ओ चौक परहक बड़का कोला अछि, ओ तँ बूझू जे रजधानी भऽ जाएत। तेहेन जगजियार चौक भऽ गेल जे ओइठाम चाहब तँ बजार लगा देब। कमसँ कम बान्‍हक कात दिससँ दू सए घर बना दिऐ तँ लाखो भाड़ा हएत। अनेरे भाय साहैबकेँ अहाँ अपनो नोकर आ अनको नोकर बनौने छिऐन।
मखनाक बात सुनि अपने उठि कऽ टहलए लगलौं। हजार-लाखमे फानि गेल! मुदा तखनो जँ अपने नै ताकब तँ केकरा के तकलक जे हमरे ताकत। मुदा अखन दरबज्‍जापर आएल गामक भैयारीकेँ छोड़ि..., विचारो करैक उचित समए नहियेँ अछि। फेर घूमि कऽ आबि बैसलौं। तैबीच मखना बाजि चुकल छल, भौजी, उ बड़का खरहोरि जे अछि, ओइमे एकटा बोरिंग गड़ा देबै आ बीघो भरि हमरा खेती करैले जहिया दऽ देब तहियासँ दुनू साँझक तरकारीक भार अखने गछि लइ छी।
मने-मन मखनाक बातकेँ हमहूँ नोट कऽ लेलौं। मुदा लगले मन उझैट गेल। उझैट ई गेल जे यएह मक्‍खन चोरि तँ वृन्‍दावनक लीला छी! मुदा घड़ीक चालिसँ चालि मिला पत्नीकेँ कहलयैन-
दुनू भैयारी एकेठाम बैस कऽ खेबो करब आ किछु गाम-घरक गपो-सप्‍प करब आ अहाँ रूक्‍मिणी जकाँ बिअनि हौंकब।
बिअनिक नाओं सुनि पत्नी उठैत बजली-
मखन बौआ, अहूँ की पानिक मक्‍खन थोड़े छी, बकेनमा महींसिक ने दूधक मक्‍खन छी। ऐठामसँ गाम पहुँचते कोला-कोली सेरिया जोत-कोर करए लागब। जहिया हम सभ गाम आएब तहिया देखब।
जेहने भूख जगल हुअए तेहने अनुकूल जगह जँ भोजनो-आरामोक हुअए तँ एहने संयोग संयमक बाटे चलैए। सएह भेल, चौपेतल कम्‍मलक आसनपर बैसते जहिना अपन मन मखनाक मन पढ़ए लगल तहिना पत्नी हाँइ-हाँइ कटोरा-कटोरी साँठए लगली। पानि ऐ दुआरे चढ़ि गेल रहैन जे मखनाक संग जखन भोजनक दौन[2]मे ओझराएल रहब किने तैबीच अपन मैलकियतक गप पत्नी चला लेती। किएत हमरा परोछेमे मखनाकेँ खेतक जुआन दऽ देने छेलखिन। मखनो खेती करैक भार उठा नेने छल...।
मनमे बेर-बेर उठए लगल जे अनेरे लोक अपन सम्‍पैतकेँ नै जगा दुनियाँ घूमि रहल अछि। मुदा से अपने बुझने हएत आकि अनको विचारमे विचार साटि विचारैत करैयो पड़त? तहिना मखनोक मन जगलै। जगबो केना ने करितै, जखने दूध तखने मक्‍खन, जखने मक्‍खन तखने घी। मुदा भेड़ी-घी आब केतए भेटत जे माथमे लगा दरद भगाएब। भानसे बेर मखना माछक कुटियापर हीक गाड़ि अँखिया नेने छल। भाय, भोजमे तँ वएह खेनिहार ने ठकाइए जेकरा पातपर भोजनक विन्‍याश आगू-पाछू परसल जाइए। मुदा मखनाक सोझमे भानस भेल, जँ जीबलाह जँ रहैत तँ लोहियेसँ निकालि-निकालि लोलक पानि मिझा नेने रहितए, मुदा मखनो अपनो अपन अस्‍तित्‍व तँ जनिते अछि। आखिर किछु छी तँ पुरुखक बेटा पुरुख तँ छीहे। एतबोकाल धिरित नै राखल हेतइ। एक तँ ओहिना अनठिया चाह पीनिहार जकाँ लोभे पेट फुला नेने अछि। मुदा भानसक संगी सेहो मखन रहबे करैन। केते खिस्‍सा-पिहानी कहि-सुनि दुनू गोरे एकबट्ट भऽ गेल, तँए अपनाकेँ भनसिया बूझि मखना आदर करैत हमरा लग आबि बाजल-
भाय साहैब, केतए गेल ओ पीड़ी सेरसोक तेल-मसल्‍ला[3] आ केतए गेल ओ ललमुहाँ रहु आ बुआरीक पेटी?”
तैबीच पत्नी थारी नेने आबि गेली। जहिना हाट लगौनिहार हटवार अपन-अपन चीज-बौस पसारि हाट सजा तराजू पकैड़ हाथ पसारैए तहिना अपन काज उसारि पत्नी ओइ ताकमे लगि गेली जे पहिने दुनू गोरे मुहमे लऽ मुहकेँ बरदाबौथ ने तखन खुलल मुँहक सोहर केहेन होइ छै से सुना देबैन। जे कोन सोहर छी, जन्‍मौटी छी आकि मूड़नक, बिआहक छी आकि असमसानक। मुदा हमरा ऊपर एकटा आरो बड़का चेका माटिक चढ़ि गेल। चढ़ि ई गेल जे केना अपनो पिताक देल पनरह बीघाक किसान परिवारक छी, हमरा सन लोक[4] अपनो आर्थिक विश्लेषण जँ अपने नै करत तँ जे कहियो स्‍कूल-कौलेजक आँखि नै देखलक ओ केते दूर धरि आगू लऽ जा सकैए? अपना सभ किछु अछि। मुदा मखना कोन नजरिये देख रहल अछि! ई तँ भने दुनू गोरेक[5] बीचक बात छी भने मुहोँक काज नै बरदाएत आ जीहो चलबे करत। तँए सुनबे नीक। अपने चुप भऽ गेलौं...।
मुदा पत्नी तँ अपने नियारे तबाह जे धान-दौनक बरद जकाँ जहाँ दाँत, ठोर, जीह चौकल्‍ला चलए लगलैन आकि अपन प्रस्‍ताव पेश कऽ देबैन। प्रस्‍ताव ई जे अखन तक पुरुखक बिनु विचारल बात अछि तँए तीनू गोरेक बीच विचारो पक्का-पक्की भऽ जाएत आ काजोमे हाथ लगत। हेबो तँ अहिना ने करतै जे जे जहिना कले-कले लोक गाम छोड़लक तहिना कले-कले धरबो करत। प्रश्‍न तँ ओतए अँटैक गेल अछि जेतए संकल्‍पक दृढ़ताक बात अछि...।
पत्नी मखनाकेँ कहलखिन-  
मखन, अहाँ हमरा जे सोल्हो कट्ठा खरहोरि उपजबैक बात कहलौं, से अखन मालिको छैथे, मुहाँ-मुहीं कऽ लिअ।
पत्नीक बात अपना कोनो उझट नै बूझि पड़लैन, मुदा खरहोरियो तँ खढ़क खेतीए छी, तखन ओकरा उपटौल किए जाएत? प्रश्‍न मनमे उठल। मुदा तइमे हमर कोन दोख। जहियासँ हाइ-स्‍कूल धेलौं आ गाम छोड़लौं तहियासँ छोड़नहि छी, जँ कोनो काज उदेममे गाम एबो करै छी तँ काजे भरि अपनाकेँ समेट खँति नेने छी, मुदा परिवारो तँ पाँच सदस्‍यक देशे छी, जखने मातृ-भूमि भेल तखने राष्‍ट्र-भूमि सेहो भेल। जँ से खत्ती दऽ कऽ नै राखल जाएत तँ हूरारेक चालि पकैड़ ने मनुखो चलत जइसँ केमहर हुरैक जाएत तेकर कोनो ठेकान छै। तँए गुमे-गुम सुनैक जिज्ञासासँ कान ठाढ़ केने रहलौं।
पत्नीक प्रश्‍न नीक जकाँ धरतीपर खसलो ने छेलैन आकि बानर जकाँ मखना बिच्‍चेमे लोकैत हमरा दिस तकैत बाजल-
भाय साहैब, परिवारक भार जँ अहाँ उठा ली तँ अहूँक परिवारक भार हम उठा लेब।
मखनाकेँ निच्‍चाँ-ऊपर देखए लगलौं। मनमे छगुन्‍ता लगल जे कहू एते पढ़ि-लिखि कऽ एतेटा नोकरीक आमदनी अछि तखन ते सदिकाल भूर फुटले रहैए, जे धिया-पुताक पढ़ौनीक फीस पछुआ गेल अछि तँ भारामे नून सठल अछि...। माल टेनक डिब्‍बा जकाँ ढकर-ढकर करैत परिवार चलैए। छगुन्‍तामे पड़ल रही तैयो मखनाकेँ पुछैक विचार भेल मुदा सोझे नै, कैरम-बोडक उल्‍टा गोटी जकाँ। अपन दुखसँ लोक आनोक दुख बुझैए आ आनेक दुखक उपायसँ अपनो दुख मेटबैए, मेटबैक लूरि सीखैए। पुछलिऐ-
मखन, केते खर्चसँ तोहर घर चलि सकै छह?”
प्रश्‍न सुनिते मखन बकरी-घी जकाँ टभैक कऽ फद-फदाएल-
दिन-रातिक समए तँ दिन-रातिक काजसँ चलै छै, भाय साहैब। तखन भेल धिया-पुताकेँ जिनगी चलै जोकर बना दुनियाँकेँ देब। ई कोन बड़का खर्चक काज भेल।
गमैया पनचैतीमे जहिना मुँह-दुबरा पञ्चकेँ रेलबे स्‍टेशनमे टिकट कटौनिहार जकाँ धकियबैत धकिया अपन काज मुँह-गरहा ससारि लइए तहिना पत्नीकेँ हमरा धकिया मखनाकेँ अपना दिस करैत बजली-
बौआ, ओइ सोल्‍हो कट्ठा खरहोरिमे की सभ उबजेबै?”
एक तँ ओहिना मखनाक मन थारीक आगत-भोगसँ गद्-गद् रहैन। तैपर एक विचारवान जकाँ विचारै जोकर काज सेहो आगूमे आबि गेलइ। मुदा कोनो प्रश्‍नक जवाब ओइठाम देब भारी होइ छै जैठाम हजारो प्रश्‍न छै मुदा ओइठाम किए भारी रहत जैठाम एकेटा प्रश्‍न रहत। यएह तँ भेल हल्‍लुक आ भारी मनक ओझरी-सोझरी। एक तँ ओहुना मखनाक छोट जिनगी, तीन गोरेक परिवार। दू गोरे समकस कमौनिहार तेसर दू सालक बच्‍चा तँ अपने देह झाड़ि हँसुआ-खुरपी लऽ कऽ संगे-संग खेलाइत रहै छै, तँए किए मनपर कोनो भर पड़ल रहतै। पत्नीक बात सुनि मखनाकेँ कि कोनो विधाता जकाँ विचारैक जरूरत रहइ, जे देरी लगितै ओ तँ मात्र खरहोरि तोड़ि खेती करैक रहइ। बाजल-
भौजी, बारहो मास तीमन-तरकारीक धनमण्‍डल घरमे लागल रहत। जक्खैन जे मन फुरत तक्खैन से अपना बाड़ीसँ तोड़ि आनब आ टटका-टटकी खाएब।
मखनाक बात सुनि हिनकर मन लोहियामे पड़ल मक्‍खन जकाँ टभकलैन। विहुँसैत बजली-
से केना बारहो मास तरकारीक धनमण्‍डल लागत। ऐठाम बरसातमे तरकारी खाइले जी-जरैत रहैए आ अहाँ केना धनमण्‍डल लगा देब?”
प्रश्‍न सुनि मखनाक मनमे कोनो हिलकोर नै उठलै। एतबे उठलै, उपजाक बात तँ अन्‍तिम भेल, पहिने खरहोरि जे कहियो कहियौ आकि अखुनका कहियौ, घर बनबैमे आकि बरैब छाड़क भार उठौने छल आकि अछि ओ आब कमि रहल अछि। घरोपर सीमटी, गिट्टीसँ लऽ कऽ चदरा-खपड़ा धरि चढ़ि रहल अछि, तैठाम खढ़क उपजाक की उपयोग? मुदा माटि उपयोगी नै अछि एहनो तँ नहियेँ कहल जाएत। तहूमे माटियो अपन-अपन गुण अपन-अपन शक्‍तिक अनुकूल सेहो होइते अछि। खेतक अनेको किसिम अनेको गाममे अछि। केतौ पानिक बाढ़ि तँ केतौ माटिक। मुदा अखन खरहोरिक बात अछि। कोनो गाममे गाछी-कलम आकि खरहोरि ऊँचरस जमीनमे लगौल जाइए, नीचरस जहिना पताल दिस ससरैत अन्नसँ निच्‍चाँ उतैर माछक उपजामे पहुँच जाइए तहिना ऊँचरस जमीन उपजाक अकास लगबैए आ तहिना घर ठाढ़ कऽ घराड़ी सेहो बनबैए। मखनाक मनमे, जेठुआ फुलाएल धारक अवारि जकाँ रंग-रंगक बात उठए लगलै। उठबो केना ने करितै, बारहो मास उपजबैबला खेतमे नजैर वौआइत रहै किने। वौआइत ई रहै जे जगहो तँ जगहे छी। मुहसँ फुटल तँ कहलयैन करोड़ पति राजा छी, मुदा अपनो तँ ओइसँ कम नहियेँ हएब। जे जमीन भौजी देलैन, ओ तँ घराड़ी छी, दस लाख-पनरह लाख रूपैए कट्ठा। जँ दसो लाखे कट्ठा जोड़ै छिऐ तेयो 16x10160 लाख भेल। एक करोड़ साठि लाख...।
मुदा लगले मखनाक मन घुमलै बाजल-
भौजी, भैयाकेँ तइले तामसो उठतैन। तहूमे खाइकालमे। अनेरे मनमे हेतैन जे केहेन पतित अछि जे खेबो करैए आ घिनेबो करैए। मुदा से बात नै भैया। खटहा आमक गाछीमे पड़ि गेल छी। यएह ने सोचैत हेबै जे विद्या-दान करै छी। मुदा विद्या केतए हेराएल छैथ? जैठाम नै छैथ। कोनो काज बिना बुधिये थोड़े चलैए, जेते अहाँ नोकरीक दरमाहा उठबै छी तइसँ बेसी हएत। ओना अपन सम्‍पैत बैंकोमे जमा रखि सकै छी, मुदा अनका हाथक काजो आ सम्‍पैतोक अशे केते। मुदा दुनूसँ नीक जे अपन सम्‍पैतकेँ सम्‍पैत बना जिनगीमे ठार करी।
कहलिऐ-
बौआ मखन, बिनु विचार केने किछु निर्णए करब उचित नै, मुदा भौजीसँ पुछहुन जे गाममे रहथुन?”
ता अपन मनक उष्‍मा उष्‍मित भऽ उर्जवान बनबए लगल। एक-एक वस्‍तुपर नजैर उमड़ए लगल। जँ केकरो किछु बुझबैक अछि आकि कहैक अछि ओकरा बान्‍हि कऽ किए बाजब। किए ने अपन बोधक परीक्षण करैत चलब। पत्नीकेँ अपन गामक आ बजारक बाससँ पहिनेक, एक-एक कौशल जे माए जिनगीक लेल सीखौने रहथिन जे सागो खोंटि कऽ खेनिहारक जिनगी मिथिलाक धरती दैत आबि रहल अछि। चाहे वेपारीक दृष्‍टिए बारहो मास साग देखिऐ आकि भोजनक रूपे, मुदा होश तँ अपने राखए पड़त जे जाड़क मासमे पटुआ-पोरो आ गरमी मासमे सूआ-मेथी खाइ आकि नै खाइ।
एक तँ ओहुना घरक बान्‍हल स्‍त्रीगण बाहर घुमबो-ले आ देखबो-ले फड़फड़ाइत रहिते छैथ तैपर अपन नव शक्‍ति जगैत जमीन, तैपर सासुरक गाम, जे अपन गाम भेल, तैपर हमर आग्रह सुनि  दस-अनियाँ मुस्‍की दैत बजली-
ऐमे पुछैक आ विचारैक कोन खगता अछि। जहिना पति घर जेबाले पत्नीकेँ कियो रोकिनिहार थोड़े होइए तहिना ई अप्‍पन घर छी। अइले पुछै आकि विचारैक कोन प्रयोजन अछि।
बिच्‍चेमे ढकार करैत मखना कहलकैन-
भौजी एतेकाल अपना मने कहियौ आकि भूखल पेटे कहियौ मुदा आब अहाँक बलजोरी खेनाइ खाएब। ओना आगूमे आबि गेल अछि, छुताएब अन्नक अपमान भेल, तहूमे जे अन्न सभसँ ऊपरक ईश्वारत्‍वक शक्‍ति पौने अछि, तेकर अपमान करब मनुखता नै ने हएत।
दोसर दिन कौलेज गेलौं, पढ़बैमे मन ओझरा गेल। ओझरा ई गेल जे जे किछु किताबमे पढ़ने छेलौं सएह विद्यार्थीकेँ पढ़बैत रहलौं! मुदा आइ अपना नजरिये दुनियाँ दिस देख पढ़बए चाहलौं। जइमे सामंजस[6] नै भेने ओझरी लगि जाइ छल। मुदा जहिना नव ओझरी मनमे लगैत रहए, तहिना दोसर ओझरी खुजितो छल। खुजैत र्इ छल जे जइ बच्‍चाकेँ मनक विचारसँ मन भरैत रहलौं, कहि देब जे बौआ मन आइ बेधाएल छह तँए पढ़बै दिस मन नै बढ़ि रहल अछि।
अनमनस्‍क भेल डेरा आबि पत्नीकेँ कहलयैन-
कनी नीक जकाँ कॉफीबला चाह बनाउ।
जहिना लाबा भुजनिहारि उड़ैत लाबाकेँ लारैन सँ मारि-मारि दबैत रहैए तहिना लारैन चलबैत कहलैन-
एकर माने आन दिन मनमाफित चाह नै बनबै छेलौं।
पत्नीक लारैनपर धियान नै दैत कहलयैन-
किछु विचार करबाक अछि, तँए अखन दोसर बात नै करू।
अनायास हिनका मनमे सौनक गुम्‍हरैत मेघक शंका भेलैन जे भरिसक ठनका खसत। बजली किछु ने। गैस-चुल्हि, लगले चाह आनि आगूमे ऐ आशासँ कान ठाढ़ केली जे आगूक की आदेश होइए। मुदा जेना-जेना चाह पीबैत गेलौं तेना-तेना विचारक गम्‍भीरता बढ़ैत गेल। चाह पीब गिलास रखैत पान मुँहमे लेलौं। जेना-जेना पान मुँहमे फुलाए लगल तेना-तेना मनो फुलाए लगल...।
पुछलयैन-
स्‍वतंत्र जिनगी की?”
मुँहक फटाहि तँ छथिये, हमरे प्रश्‍नक पुछरियो पाछूसँ पछुआएले रहैन, बिच्‍चेमे पकैड़ बजली-
हमर की स्‍वतंत्रता। एतबे ने जे अहाँ संग कखनो बाल-बोध लग बैस भाए-बहिन जकाँ रहब, कखनो बाबा-दादी जकाँ घर-परिवारक विचार करब, कखनो संगे-संग आगि-पानिमे मरब, मुदा सभ कथुक बाबजूद एक मनुख बनि केना जीब, यएह ने भेल स्‍वतंत्र जिनगी। जाबे स्‍वतंत्र जिनगी नै ताबे स्‍वतंत्र नन्‍दन वन केना?”
पत्नीक विचार आरो ओझरा देलक। जेना मनक कोनो ससे-बस ने चलए दिअए। दौगैत घोड़ा जकाँ पत्नीक विचारक घोड़ाक छोर खिंचैत बजलौं-
गाममे नीक लगत?”
अपन सम्‍पैतक आर्थिक विश्लेषण मने-मन कऽ रहल छेलौं जे जहिना भारत सरकारकेँ माटि छै, पानि छै तहिना तँ गाममे पनरह बीघाक चास-बास अपनो अछि। जेकरे अमार लागल अछि तेहीले नोकरी-चाकरी करै छी। मुदा तखन लोक जँ नोकरी नै करता तँ संस्‍था चलत केना? ऐठाम संस्‍था नै चलबक प्रश्‍नक पाछू वेरोजगारी सेहो देखए पड़त। तँए बौद्धिक समुचित बँटवारा। आठ बजैत-बजैत रातिमे निर्णएपर पहुँच गेलौं जे खटहा जिनगीसँ मीठहा किए ने जीब। कोनो कि अपना ओकाइत नै अछि जे स्‍वतंत्र जिनगी बना स्‍वतंत्र देशक नागरीक बनि बिनु मोलक ज्ञान-दान करब! मन दृढ भऽ गेल। काल्हि नोकरी छोड़ि देब। लगले मनमे भेल जे काल्‍हिक बीच राति शेष अछि तँए ओते बिलमब उचित नै। नीक रहत जे अखने फोनसँ कार्यालय सूचित कऽ दिऐ। जँ कनियोँ भनक बहराएत तँ रंग-रंगक दूत-भूत पहुँच मन-मोहैन चलबए लगत। मुदा तइसँ की, कियो अपन काजक मालिक अछि। काजे ने नीक बनैत-बनैत कर्म बनैए आ कर्म बनि धर्मक संगे चलए लगैए।
दोसर दिन कौलेजक ठीक समैपर घरसँ निकलैसँ पहिनहि पत्नीकेँ कहलयैन-
अहाँक मनक बात मन मानि लेलौं। आगूक बात घूमि एला पछाति कहब।
¦¦
22 नवम्‍बर 2014, शब्‍द संख्‍या- 3515


[1] विद्यार्थीकेँ पढ़ौनिहार
[2] मुँहक दौन
[3] तेल- रस, मसल्‍ला- सौंस सेरसोक पीसल
[4] अर्थशास्‍त्रक विद्वान
[5] पत्नी आ मखन
[6] समन-जश