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Saturday, November 28, 2015

भँसैत नाह (अप्‍पन-बीरान कथा संग्रहसँ, तेसर संस्‍करण) कथाकार : जगदीश प्रसाद मण्‍डल

भँसैत नाह







बेर-बेर ऐ घाटपर नाह-डुम्‍मीक घटना होइ छै तैयो आन घाटसँ बेसी चलती ऐ घाटक रहि‍ते छै। बेसी चलतीक कारण ई अछि जे यात्रीक एहेन धारणा बनले छैन जे छह मासक रस्‍ता नै चली साल भरि‍क चली। भलेँ कोनो धार कि‍ए ने छह-मसुए हुअए।
छह-मसुआ ई भेल जे, जे धार जेठ-अखारमे मोजैर‍-फुला सौन-भादोमे पूर्ण जुआनी पाबि‍ दुब्‍बर-दानर सल-सलि‍आ धारकेँ तेना ने झाँपि‍ दइ छै जे ओ सल-सलि‍आ धार ऊपरेसँ झँपा जाइत अछि‍। तेकर कारण ईहो छै जे बादलो बेइमानी करैए, जेना समुद्र ओकरा जल-वायु रूपमे जलधार बनबै छै तेना ओ (मेघ) बेइमानी करै छै जे केतौ फाटि‍-फाटि‍ बरसै छै तँ केतौ झकसबो नदारथ कऽ दइ छै। मुदा तैयो अपन दोख कहाँ मानैए। बुर्ड़ाक भऽ छाती खोलि‍ बजैए जे समुचि‍त दि‍शामे बढ़ए चाहै छी, मुदा हवाक झोंक तेना ने छि‍ड़ि‍या दइए जे राइ-छीती भऽ जाइ छी।
मेघक दमगर वि‍चार सुनि‍ धार पार करब यात्री मानियेँ लइए। ओना घाटक चलतीक दोसरो कारण छै जे दोसर-तेसर घाट पार करैमे कनी समैओ बेसी लगै छै आ रस्‍तो कनी बलुआह टपऽ पड़ै छै। तँए ओइ घाट सबहक कम चलती रहै छै।
ओना तीन बेर नाह-डुम्‍मी भेल, से सभ यात्रीकेँ बूझल छै मुदा पानि‍मे कि‍ कोनो गाछक घटना होइ छै जे हाड़-पाँजर टुटत, तँए जि‍नगीक तँ एते गारंटी भाइए जाइ छै हाड़-पाँजर तोड़ि‍ काहि‍ काटि‍ जे मरब तइसँ नीक ने भेल जे पानियोँ पीब आ डुमकी कटैत प्रवाहो भाइए जाएब।
ओना एहेन घटना पहि‍नौं भेल मुदा औझुका जकाँ नै भेल छल। जेहने वैतरणी पार करैबला माझी तेहने यात्री। कहू जे कनीए हटि‍ चौरगर धारक पेट छै। चौरगर भेने ऊपर आबि‍, गहींरसँ समतल भऽ गेने पार करब अधि‍क बि‍सवासू होइ छै, से नै चलि‍ साँकर होइत पार करब उकड़ू होइते अछि‍। नैयाकेँ ने खेबाक चि‍न्‍ता होइ छै आ ने मरैया-जीबैयाक। ओ ने कहि‍यो मरत आ ने घाट छोड़त। तँए जँ गीत गाबि‍ नाह नै चलबए तँ मरदानी की आ बि‍नु मरदानी जि‍नगानी की। तहूमे जलतरंगसँ लऽ कऽ कठतरंग धरि‍क साज-सजल रहत आ बौक भेल देहकेँ कठुऔने रहत तँ कठुआइत-कठुआइत तेना कठुआ जाएत जे बुझबे ने करबै जे कठुआएल छी आकि‍ कठगर। मुदा कठगर बेसी गति‍गर होइ छै।
ओही साँकर पेट देने यात्री सभ ओइ पार जेबाक जोर केलक। ओना नैयाक मन खतरापर जरूर रहै मुदा यात्रीए जुति‍सँ चलब अपन कर्तव्‍य बूझि‍ बेसी जोरो ने केलक। तेतबे नै रहै, मनमे ईहो रहै जे धार पार करब कर्तव्‍य छी आकि‍ ई घाट-उ घाट करब। अपनाकेँ भीतरे-भीतर नैया अपमानि‍त जकाँ होइत देखलक। से केना मानैत।
बीच धारक पानि‍ ओहने समटा कऽ तेज भऽ गेल छल जेकरा तोड़ि‍ नाह पार करब कठि‍न बूझि‍ पड़लै। मुदा यात्रीक ढीठपाना एहेन जे जलप्रवाह भऽ जाइ तँ भऽ जाइ मुदा रस्‍ता नै छोड़ब। बीच धारमे नाहकेँ पहुँचते नैया बाजल-
यात्री भाय, समधान भऽ जाउ, भऽ सकैए बीचमे कहीं भकमोड़ ने लऽ लि‍अए। अपन-अपन भार अपना-अपना ऊपर रहल। हमर केकरो ने।
यात्रीक बीच कटौझ शुरू भेल। कि‍छु आगूसँ बानर जकाँ काटब शुरू केलक तँ कि‍छु पाछूसँ मूस जकाँ कटनि‍याँ करए लगल। मुदा तही बीच एकटा यात्री जोरसँ बाजल-
जखन‍ नाहमे सवार भेलौं तखन‍ ओइ पार गेने बि‍ना नै छोड़ब।
ओइ यात्रीक गपक अन्‍ति‍म वि‍राम भेबो ने कएल छल आकि‍ अपनेमे कुकुड़-कटौझ शुरू भेल। जोर-जोरसँ एक-दोसरकेँ पकड़बो केलक आ चांगुरक संग दाँतोसँ दकड़ब शुरू केलक। नाह हि‍लडोल करए लगल। नैया बाजल-
यात्री भाय, जेकरा जेहेन लूरि‍-बूधि‍‍ अछि से तेना बँचब, नै तँ नाहक संग बि‍च्‍चेमे डूमि‍ जाएब।
नैयाक बात सुनि‍ पहि‍लुके यात्री दोहरबैत बाजल-
कि‍यो करए आपले माएले ने बापले।
बजैत‍ धारमे कूदि‍ गेल।
भकमोड़क नाह चकभौर काटए लगल। बामी-दहि‍नी जलधार पाबि‍ एकोशि‍या भऽ गेल, बानरक तराजू जकाँ यात्री दोसर दि‍स झूकि‍ गेल। एकोशि‍या भार पड़ने नाहो एकोशि‍या होइत-होइत पनि‍आ गेल। नाहक संग यात्री आ पनि‍आएल पेट, बि‍च्‍चे धारमे डूमि‍ गेल।¦¦

तिथि : 26 मार्च 2014, शब्‍द संख्‍या : 597

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