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Saturday, November 22, 2014

खुदियाएल

खुदियाएल






जिनगीक तीसम बर्खमे जइ नजरिए धीरेन्‍द्र आ महेन्‍द्रकेँ जिनगीक अकलवेरामे भेँट भेल ओ अखनि तक नै भेल छल। भेँट होइते धीरेन्‍द्र  बाजल-
महिन्‍दर भाय, केते जुगक पछाति दुनू संगी एकठाम भेलौं!”
जहिना लुल्हा-नेंगराकेँ भगवानक भेँट जगरनाथमे होइए तहिना महेन्‍द्रकेँ मनमे उठल, किमहर सुरूज उगल जे एहेन विचार धीरेन्‍द्रक मनमे एलै। सदिकाल संग रहै बला संगी भेल आकि तीस बर्खक पछाति भेँट भेला पछाति संगी भेल? भरिसक केतौ ने केतौ जिनगी खुदियाएल अछि! मुदा दरबज्‍जापर अाएल अभ्‍यागतकेँ रहि-रहि, मुँह खोलब शंकाक जनम देत। जखनि संगी छी तखनि धारक हेलिनिहार जकाँ चीत हेलह आकि पट मुदा हेलह धरि। अपने ने धारक धारा चीतसँ पट आ पटसँ चीत करैत रहत। चीत-पट बीच पड़ल महेन्‍द्रक मन धीरेन्‍द्रक मुहसँ खसिते जहिना जेठुआ तबल जमीन बिहरिया पानिकेँ ऊपरे लोकि लइए तहिना लोकैत महेन्‍द्र  बाजल-
भाय, दिन-ठेकान तँ डायरी लिखिनहारक हिसाबमे लिखाइ छै, ऐ मानेमे हम सिलौट-लोढ़ी छी। नै मर-मसल्‍ला खाइ छी तँए नै बुझै छी, मुदा बहु दिनक पछाति भेँट भेलौं ई तँ मन मानिते अछि।
धारक वेगमे जहिना नहेबाकाल हियासए पड़ैत जे केते वेग आकि धारा तक अपनाकेँ थीर रखि नहा सकै छी, आ कखनि अगम भेने डुमि जाएब। मुदा से तँ समतल-सरोवर पानिमे नै होइत। धीरेन्‍द्रक मन गवाही देलक। मन मोहियेलै। बाजल-
भाय, किछु विचार करब अछि।
विचार सुनिते महेन्‍द्र बाजल-
भाय, अगुताएल ते ने छह। देखबे केलह जे बाड़ीसँ अबिते छेलौं, हाथमे खुरपी छेलएहे आकि तोरापर नजरि पड़ल। खुरपी ने ओतै पटकि देलिऐ आ दरबज्‍जाक कुरसी सोझ केलौं, मुदा हाथो-पएर धोब आ कनी चाहो पीबैक मन ने होइए।
महेन्‍द्रक रूखि अनुकूल देखि धीरेन्‍द्रक मन मानि गेल जे मनक बात (हृदए रूपी) करै जोकर स्‍थानपर पहुँच गेल छी। बाजल-
भाय, तोहर-हमर देह आकि परिवार, कोनो दू छी जे तोहर बात हम नै बुझिऐ आ हमर बात तूँ नै बुझह। हमरा सबहक काजे कोन गाममे रहि गेल जे अौगताइ रहत?”
धीरेन्‍द्रक बात सुनिते महेन्‍द्रक मन मानि गेल जे ओतेकालक पलखति भाइए गेल जेतेकाल चलैत-फिड़ैत अपन काज सम्‍हारि लेब। काजे जकाँ विचारो ने सम्‍हारल जाइए। जँ बैसब तखनि ने दोखी हएब, ई तँ भेल अपन जिनगीक दिनकेँ उसारब ताबे गोधूल वेलो मेटाइ छै। संध्‍याबन्‍धनक बेर सेहो होइए। तैसंग ईहो मनमे होइ जे जखनि बैसि कऽ किछु सोचब तखनि ने कोनो शंको धीरेन्‍द्रक मनमे हेतै। जाबे अनमेनामे लागल रहब ताबे तँ बुझबे करत जे सेना जकाँ थोड़े चलत, बड़ चलत तँ मेना-अनमेना चालि चलत। तँए अपन जिनगी आ अपन परिवारक जिनगी की रहल जेकर उपज अपने छी, आ ओहो[1] अछि। जिनगीक भौको तँ हरही-सुरही नहियेँ अछि, ई तँ ओहन अछि जेकरा पकड़बो असान नहियेँ अछि। असानो केना रहत, जहिना लोकक बुधि छै तहिना ई दुनियाँ अछि। मरूआे भरिसँ कम बुधि किए ने हुअए मुदा मन तँ कहिते छै जे दुनियाँमे ऐ बुधिक जोड़ा नै छै। टिटही जकाँ बुझिते अछि जे अकासो आ दुनियोँ ठाढ़ अछि। जँ से नै अछि तँ किए कियो बजैए जे दुनियाँमे जहिना चोर अछि, तहिना साधुओ अछि, जहिना बेइमान अछि तहिना इमानदारो अछि, जहिना पापी अछि तहिना धरमतमो अछि, मुदा अपने की छी से बुझी की नै बुझही। मुदा तेतबे किए जहिना बुधिक भण्‍डार (मनुख) केँ भगवान (विधाता) निरमा कऽ दुनियाँ भरि देने छथिन तहिना दुनियोँकेँ तेते झमटगर बना कऽ रखि देने छथिन जे केतए माटिक तर सीर छै आ केतए ऊपर, से थाहबो कठिन अछिए। जइमे लोक औनाइत रहैए। मुदा सभ कियो कि औनेबे करत, जेकरा ई सबुर छै जे मुट्ठी बान्‍हि कऽ आएल छी पसरल हाथ नेने जाएब, तइले अनेरे भरि दिन रोडपर आकि गाड़ी-सवारीमे आकि धुँआ-धुकुर होइत कारखानामे भूत बनि किए भुतिआइत रहब। भाय! लोढ़ि लाएब, कुटि खाएब, निरोग बनि काल्हि फेर जाएब। केकरो ज्ञान ने ज्ञान-शक्‍ति पबैए, मुदा भक्‍ति-शक्‍ति तँ श्रमे पबैए। ओना दुनू तेहेन एक-दोसरमे सटल अछि जे एकक बिना दोसर नै चलत मुदा दुनूक बीच ई रस्‍सा-कस्‍सी तँ अछिए जे एकटा कहै छै दुनियाँक मालिक छी, दोसर कहै छै मािलकक कामतक कमतिया अपने छी। अनेरे अनका पाछू जे हरान रहब से कि ओकरा अपना बुते अपनाकेँ सम्‍हारि कऽ चलल नै हेतै जे कन्‍हापर लदने चलब। गाइक थैरमे घूरपर नजरि पड़िते महेन्‍द्र देखलक जे खढ़-पात जरि कऽ झोली भऽ गेल अछि मुदा गोरहा-करसीक आगि सुनगैए। घूर लग जा खोंरनासँ करसीकेँ उसका देलक। दरबज्‍जापर बैसल धीरेन्‍द्र अपनो दिस देखै संगे अपना परिवारो आ समाजोकेँ देखै तँ काजर घोरल रातिक अन्‍हार जकाँ बूझि पड़ै। दिनमे कियो अनेको कोस धरि देखैए। मुदा अन्‍हारमे अपनो देह-हाथ हेरा जाइ छै। तेहने सन धीरेन्‍द्रो हेराएल जकाँ वौआइत रहए। मन पड़लै अपन पनसल्‍ला संगी महेन्‍द्र। जखनि दुनू गोरे गामक लोअर प्राइमरी स्‍कूलमे नाआंे लिखेलक। मुदा लगले मन आगू बढ़ि अपन तीन दिनक गाम-बास दिस बढ़ल। एका-एकी पचासोसँ ऊपर लोकसँ विचारक समुचित उत्तर पाबए चाहै छी, मुदा कहाँ भेटि रहल अछि। राँइ-बाँइ जवाब दैत अन्‍तमे सभ यएह कहै छथि जे तोरा मनकेँ महेन्‍द्रेटा मना सकैए। फेर उलटि कऽ मन घुमलै अपन लोअर स्‍कूल दिस। शुरूहेसँ  नीक विद्यार्थी रहलौं, शिक्षको परिवारेमे रहै छला, दिन-राति स्‍कूलसँ घर धरि पढ़बै छला, इंजीनियर बनलौं, हमहींटा नै बनलौं तीनू भाँइ नीक जगहपर पहुँचल छी। तइ बीचक विवाद अछि। विवादो तँ विवादे छी। केतौ विचारसँ विचारि हल कएल जाइए, तँ केतौ कपार फोड़ाैलो पाछू बे-हले रहैए। तहूमे अपना तँ आरो साँप-छुछुनरिक पइर भऽ गेल अछि। भैयारीमे जेठ छी, सभ दिन पिता तुल्‍य ओहो (दुनू छोट भाए) सभ बुझैत आबि रहल अछि अपनो अोहने (िपता जकाँ) बेवहार बना निमाहैत एलौं। मुदा अखुनका जे घुरछी, ओझरी तीनू भाँइक बीच सम्‍पतिक अछि ओ जँ विचारसँ नै सोझराएत तँ एक सीढ़ी निच्‍चाँ खसबे करब। माने ई जे पितृ तुल्‍यसँ भातृ तुल्‍य भैयारीक सीढ़ी दियादीमे बदलि जाइ छै। तँए मनक सोगसँ सोगाएल धीरेन्‍द्र। मुदा अनका लग जह-पटार हाथो तँ नहियेँ पसारल जा सकैए, ओ तँ ढंगेसँ पसारल जाएत। घूरक करसी उसका खोंरना महेन्‍द्र रखबो ने केलक आकि मन चनकि गेलै। चनकि ई गेलै जे दरबज्‍जापर धीरेन्‍द्रकेँ बैसा आएल छी, हाथ-पएर धोइक बहाने। तैठाम घूर, खोंरैमे समए लगि गेल। चाहोक बहाना जे बनबए चाहब सेहो की आब ओ जुग-जमाना रहल जे काँच-सूखल जारनिसँ लोहियामे बनत जे कनी बेसी देरीओ लगत, आब तँ तेहेन गैसपर चुल्हि अछि जे केतलीमे दूध-पानि-चाहपत्ती दियौ अा गिलास कि कपमे चीनी दऽ छन्ना लिअ हाथमे, नै लेब तँ दूधे-पानि जरि जाएत। उठि कऽ कलपर पहुँचबो ने कएल छल आकि मनमे उठलै। जुगो पछाति भेटलोपर धीरेन्‍द्र संगी बनि बाजल, दरबज्‍जापर किछु िवचारए आएल अछि, एहना स्‍थितिमे अपन केहेन स्‍वरूप हेबा चाही। ओना संगी, भैयारी, दोस्‍ती, मित्रताक मिलल-जुलल प्रयोग होइए जे सभ जनैए मुदा सबहक अपन-अपन जगह छै। की एकरा नकारि सकै छी जे एके समाजक दुनू गोटे छी? तहूमे गामक स्‍कूलसँ साल भरि कौलेजोमे संगे बितेलौं, जबारी भोज, आकि सौजनिया आन गामक संगे-संग गामक सराध-बिआहक भोज एक सत्तरिमे बैसि कऽ खेनौं छी आ खाइओ सकै छी। तैठाम तँ विचारणीय विचार तँ अछिए जे जोलहाक बनौल वस्‍त्र जकाँ केतौ सूते ने कहीं घुरछी लगा गिरह बना दिअए! मुदा लगले मन उड़ि कऽ आगू बढ़ि गेलै। बढ़ि ई गेलै जे समुद्र जकाँ संगीओ, भैयारीओ, दोसो-महिम आ सरो-समाज अछिए। चाहक संगी, पानक संगी, गपक संगी, काजक संगी, यात्राक संगी...। ने जानि केते रंग-बिरंगक संगी होइए। तहिना भैयारीओ अछि। सहोदर भाए, बेमातर भाए, पितियौत भाए, पिसियौत भाए, ममियौत भाए...। ने जानि केते रंगक अछि। तहिना ने दोसो-महिम आ सरो-समाज अछि। तखनि तँ भेल जे ओ एक बेर संगी कहलक हम हजार बेर संगी कहबै। संगीओ तँ संगीए भेल, एक कल्‍प लोकक भेल तँ दोसर भाव लोकक, तेसर अभाव लोकक भेल तँ चारिम विचार लोकक आ तेतबे किए! तखनि? तखनि तँ यएह ने जे पुरबा-पछबा ने रेड़ दिअए। जँ अपने रेड़ैत रस्‍ता नै चलब तँ केतौ आंेघरा जाएब। तहूमे बिनु देखैत हवा धरतीसँ अकास धरि घेरने अछि। हाँइ-हाँइ कऽ कलपर हाथ-पएर धोइ महेन्‍द्र दरबज्‍जापर पहुँचबे कएल आकि दस बर्खक मझिली पोती चाह नेने सेहो पहुँचलनि। थारीमे सँ गिलास उठा महेन्‍द्र धीरेन्‍द्रक हाथमे देलनि। हाथमे चाह तँ धीरेन्‍द्र पकड़ि लेलनि, मुदा मनमे ई नै उठलनि जे दस बर्खक बच्‍चिया कियो आन भेल, जँ दुनू गोरेकेँ हाथमे दैत तँ बराबरीक विचार तँ आबिए जाइत। मुदा तँए कि धीरेन्‍द्रो चुकल? नै, नै चुकल। दुनूक अपन-अपन तीर-कमान, गुल्‍ली-गुलेती। जहिना महेन्‍द्र  धीरेन्‍द्रक विचार पकड़ि लेलक तहिना अपना विचारे धीरेन्‍द्रो अपन विचार पकड़ने। पकड़ने ई जे लोअरे स्‍कूलसँ सभ तरहेँ महेन्‍द्रसँ बीस रहलौं। जेहने पढ़ैमे बीस, तेहने पढ़ैक बेवस्‍था बीस, किए कहियो किताबक ऊपर चढ़ि चारू दिस नजरि खिड़ा किताब लेल कानए पड़ैत। गामक जेठ-रैयतिक परिवार। नोकर-चाकर परहक जिनगी।
एक घोंट चाह पीविते महेन्‍द्र, ओना एका-एकी धीरेन्‍द्रक तेसर घोँट छल, बाजल-
संगी चाह केहेन बनल, हमर परिवार तँ गमैया रहल, तहूमे परिवारमे चाह हाले-सालमे आएल अछि। पोतीकेँ अखनि नीक जकाँ बनौलो ने होइ छै अभियास नहियेँ जकाँ छै।
महेन्‍द्रक विनीत विचार सुनि धीरेन्‍द्र फौर्मेल्‍टी निमाहैत बाजल-
बड़ सुनर! बड़ सुनर चाह अछि!!”
मुदा जिनगीक खान-पान सेहो तँ मनमे एकटा सीमा बान्‍हिए लइए। जे एक-रंगाह स्‍तरेटा मे सम्‍भव छै। जँ कम स्‍तरक परिवार देखौंस करए लगत तँ परिवार दिशाहीन हुअ लगतै। चाह सठलो ने छल आकि धीरेन्‍द्रकेँ महेन्‍द्र पुछलकनि-
संगी, हम तँ चाहक बाद पान खाइ छी, अहाँ की खाइ छी?”
महेन्‍द्रक आग्रह सुनि धीरेन्‍द्रक मनमे उठल जे खाइ छी से जँ मुहसँ निकलि जाए जे ऐठाम उपलब्‍ध नै होइ, तखनि तँ घरक महतपर पड़त, मुदा तैसंग अपनो परीछा तँ भाइए जाएत, तेतबे नै ओइसँ दुनू परिवारक दूरी सेहो बढ़त। तरे-तर धीरेन्‍द्रक मन पसिज गेल, पसिझिते बाजल-
भाय, मन अछि की नै जे अहूँकेँ पिताजी अा हमरो पिताजी एक्के दिन स्‍कूलमे नाआंे लिखौने रहथि।
धीरेन्‍द्रक स्‍मृतिक संग भाषा सुनि महेन्‍द्रोक मन हलचलाएल। हलचलेबो केना ने करैत, बाल-स्‍मृति भेल! तहूमे डायरी मेन्‍टेन नै करै छी। सेहो तँ जखनि खर्चासँ बेसी आमद फेकए लगैत तखनि ने डायरीक खगतो होइत, जनम, मुड़न, बिआह, दुरागमन किए लोक डायरीमे लिखत, ओ तँ विधातेक डायरीमे छन्‍हि। किछु मन पाड़ैत महेन्‍द्र बाजल-
भाय, कनी ठेकना कऽ कहब से, कनी-मनी मन अछि, मुदा बीचमे कटारि जकाँ भऽ जाइए।
महेन्‍द्र जे विचारि बाजल हुअए, मुदा विचारक दुनियाँक भारी प्रश्न तँ उठिए गेल। उठि ई गेल जे स्‍कूलमे पिता एक्के दिन, दुनू गोटेकेँ दाखिल करौलकनि, मुदा विद्यालयमे दुनूक बीच केते दूरी बनल आ केते लगीच आएल?
धीरेन्‍द्रक सम्‍पन्न परिवार, दियादो-वाद तहिना, मुदा जेहेन परिवारक महेन्‍द्र छल, ओ छेहा श्रमजीवी किसानक परिवार। श्रमजीवी किसान ओ भेला जे अपन नियमित समए किसानी जिनगीमे लगबैत। अतिरिक्‍त काज भेलापर अतिरिक्‍त उपजो-वाड़ी बढ़ैए आ अतिरिक्‍त लोकक खगतो बढ़ै छै। मुदा अपनाकेँ आगू बढ़ैसँ पहिने रोकि महेन्‍द्रक मनमे उठल जे जरूर धीरेन्‍द्र किछु बजता। ओ की बजता अही गुमा-गुमीमे महेन्‍द्रक बोल बाधित भऽ गेल। स्‍कूलमे संगे नाआंे लिखेलौं, सभ लिखबैए तइसँ सभ संगीए थोड़े होइए? संगी तँ वएह ने हएत जे संगे-संग एकठाम बैसि गुरुजीक विचार सुनि अपनोमे विचारि एक मत बनाएब, से तँ कहियो ने भेल। जैठाम धीरेन्‍द्रक घरमे किताबक अलमारी भरल, तैठाम महेन्‍द्रक दरबज्‍जाक ओसारक खुट्टीमे गीता, रामायण ललका कपड़ामे बान्‍हि ओइ आशासँ टाँगल जे हमरो घरमे घर्म-ग्रन्‍थ अछि। मिथिलांचलक मिथि-मालिन किसान परिवार ओ परिवार रहल अछि जैठाम अतिथि-अभ्‍यागतकेँ ओकातिनुसार सुआगत-सत्‍कार खेबेटा-ले नै, जिनगीक क्रिया-कलापकेँ सेहो मथि-मथि एक-दाेसरक विचारकेँ अनुकूल बनबए लेल सतति अग्रसर रहैत छल। बाढ़ि आएल आकि रौदी भेल, एक संग एक गामेक नै एक इलाकाकेँ विपति पड़ैत, तैठाम तँ ई ने विचार कएल जाए जइसँ दुनूक नीक समाधान होएत। जइसँ समए पबिते बाढ़ि-रौदीक काेनो झटका-झुटकी शेष नै रहैत। गाछ-बिरिछ जँ खसबो करैत तँ नबका लगा पोसि-पालि फड़ै जोकर बनौल जाइत। अपन दस पीढ़ीक इतिहास[2] एक-दोसरसँ महेन्‍द्र पबैत आएल छल। केना केते मेहनतिसँ खेत कीनल गेल आ धुआँ जकाँ हवामे उड़िया गेल, फेर केना भेल आ केना गेल। दैवी प्रकोपसँ बेसी दानवी प्रकोप किसानकेँ झेलए पड़लै। मुदा लगले मनमे उठलै जे अनेरे खनदानी थीसिसमे ओझरा गेलौं। जइ दिन पिताजी दुनियाँ छोड़लनि पाँच बीघा जमीनबला परिवार देने गेला। ओही पाँच बीघाक सीमामे गामक सम्‍पन्न परिवार बनौने छला। जोतसिम जमीनक संग गाछी-कलम, वास-अगवास सभ किछु। दरबज्‍जापर गुमा-गुमी देखि अगुरवारे महेन्‍द्र बाजल-
भाय, गामेक स्‍कूल किए मन पाड़ै छी, हाइ स्‍कूल आ कौलेज किए बिसरै छी। पढ़ला-लिखला पछाति ने अहाँ गाम छोड़लौं?”
सह पबैत धीरेन्‍द्र बाजल-
जहिना सभ बात तोरा मन छह तहिना ने हमरो अछिए।
धीरेन्‍द्रक सहटैत विचार देखि महेन्‍द्र बाजल-
भाय, तूँ साइंस पढ़लह, हम हायर सेकेण्‍ड्री तक एवरी-डे-साइंस[3] पढ़लौं, सएह ने, तँए कि संगी नै भेलौं।
संगीक सह पबैत धीरेन्‍द्र बाजल-
भाय, परिवारमे एहेन मारूख स्‍थिति ठाढ़ भऽ गेल अछि जे किछु केने किछु ने बनैए।
जिज्ञासु होइत महेन्‍द्र बाजल-
से की! से की भाय?”
धीरेन्‍द्र बाजल-
भाय, चिक्कारी-चौकारी बहुत भेँट भेल अछि। गामो तँ एहने सबहक छिऐ। मुदा मननुकूल समाधान केना हएत, सएह नै बूझि पाबि रहल छी।
धीरेन्‍द्रक विचारमे महेन्‍द्रकेँ किछु बुझैक जिज्ञासा बढ़िते मनमे उठलै। उठिते गाछक जड़िक लगल गराड़-पिल्‍लूकेँ जहिना कोनो खोंरनीसँ खोरि निकालल जाइए तहिना खोंरनी चलबैत बाजल-
भाय, एना झाँपल-तोपल बातसँ काज नै चलत।
महेन्‍द्रक प्रश्न सुनि धीरेन्‍द्रक मन चोट खएल साँप जकाँ नांगरि पटकए लगल। परिवारक बात छी, केना दोसरकेँ कहब जे भाए-भैयारीमे सामंजस्‍य (समान जश, साम्‍य जश) अपना बुते नै होइए। कहू जे तीनू भाँइ, ऊपरा-ऊपरी छी। जहिना पढ़ल-लिखल तहिना पद-पतिष्‍ठामे। तखनि जे परिवारक ओझरी नै सुलझि रहल अछि! धीरेन्‍द्रक मन ओझरा गेल। आगू किछु बजैक फुड़बे ने करै। धीरेन्‍द्रकेँ चुपी साधल देखि महेन्‍द्रक मन महकि गेल। महकि ई गेल जे भाय, पढ़ल-लिखलकेँ इशारा काफी। अपने ने बी.ए. पास करि कऽ खेती-पथारीमे लगने स्‍कूल-कौलेजक बात बिसरि गेलौं, मुदा धीरेन्‍द्र  तँ से नै रहल। ओ तँ सभ दिन कागजेक कीड़ा बनल रहल। तेहेन ठाम लिखतन-बखतनक भेद तँ अछि। तइसँ नीक हएत जे पाँचो आंेगरीसँ इशारा कऽ दिऐ, जे आरो ओझरा जाएत। जे से चाहे तँ अपने अगिला समए माङ्गत, नै तँ अपन पनचैती अपने करत। जँ लोक अपन पनचैती अपने करत ई तँ घीओसँ चिक्कन हएत। मुदा से हएत केना? बाजल-
धीरेन्‍द्र भाय, खेत-पथार जमीन-जाल छी। अनेरे सब ओइमे अोझरा जाइए। खेतेक बात सुनि लिअ। गाम-गामक माटि भिन्न-भिन्न अछि, गाम-गामक नै, एक्के गाममे सेहो तेहनो अछि आ एक-रंगाहो अछि। ई तँ भेल मािट। आब चलू माटिक उर्वरा शक्‍तिक पाछू- उस्‍सर आ बालु, सभसँ गेल गुजरल अछि, मुदा तँए कि ओहो आँखि नै देखौत? एतबो तँ बजबे करत जे केते प्रतिशत तागत अधिक अछि आ केते प्रतिशत कम अछि। बेसी उस्‍सर हएब तँ सज्‍जी उपजत, तइसँ कम हएत तँ कुश उपजत, तहूसँ कम हएत तँ मरूआ-कुरथी उपजत, नै जे तहूसँ कम हएत तँ धारक कातक खेत जकाँ दोसर माटियो पचा कऽ अपन बना लेत। जहिना डोह-डाबर, नदी-नालाक ठेकान नै तहिना ने माटियोक अछि। पानिक सोहे-सोहे धनीक जकाँ घराड़ी दफना लइए। तहिना तँ बालुओ अछि, ओकरो खचरपनी कम छै, एक दिस जहाँ कहिऔ जे हाथी पिआसल, घोड़ा पिआसल, दल-दल पानि। आकि दलदला कऽ थभैक जाएत, जहिना लिखैकाल कलम बोकरि ढबैक जाएत, तँ दोसर दिस पानिक बदला तेल निकालैए। ओहो केना अपने हरदा बाजि देत जे कियो मरूभूमि कहतै? भाय, दुनियाँ अनन्‍त छै। अनेरे मनमे सोग-पीड़ा रखने छह, निकालि कऽ फेकि दहक।  
महेन्‍द्रक बात सुनि धीरेन्‍द्रक हबटूटू मन हूबगर भेल। हूबगर होइते हूबा करैत बाजल-
भाय, पचास-पचपनक उमेर भऽ गेल, तोरो भाइए गेल हेतह, केते दिन जीबे करब। मुदा तेतबो दिन बाप-दादाक घराड़ी नै बँचा सकब, मान-समान नै बँचा सकब, तेकरे दुख बुझह आकि सोग!”
धीरेन्‍द्रक पसिझैत हृदए देखि महेन्‍द्रक मन मसैक गेल। मसैकिते तोष-भरोस दैत बाजल- 
भाय, की ओझरी भैयारीमे भऽ गेल अछि से सोझरा कऽ बाजू।
धीरेन्‍द्र-
अहाँकेँ बुझले अछि जे अपने सरकारमे इंजीनियर छी, सुरेन्‍द्र बैंकमे छथि आ छोट भाए अन्‍तर्राष्‍ट्रीय एजेंसीमे छथि।
धीरेन्‍द्रक विचारमे सहमति जतबैत महेन्‍द्र बाजल-
हँ से तँ छथिए। भगवान कोन कमी देने छथि। अखनि तँ अहीं सबहक दिन-दुनियाँ जागल अछि।
मलसारि भरल महेन्‍द्रक विचार नीक जकाँ धीरेन्‍द्र नै बूझि पेला, महेन्‍द्रक झाँपल विचार रहनि जे राम नामक लूट अछि लूटि सके से लूटए आ दोसर दिस तेकरे ओझरी! खेतोक की अधिकारेटा ओझरी होइ छै, ओकरा तँ अपने जोत-कोर करए पड़ै छै, फसिल लगौल जाइ छै। जखनेसँ फसिल धरतीसँ उठै छै आकि खढ़-पात दाबए लगै छै। कीड़ी-फतींगी भिन्न अबै छै, तैपर सँ भेल जअ मे पाथरो खसिते छै।
धीरेन्‍द्र-
भाय, की दिन-दुनियाँ जागल रहत, ओ ते ने जागल अछि आ ने सूतल। जँ सुतलो रहैत तैयो निचेन रहितौं, सेहो ने अछि। ने घरक आ ने घाटक।
महेन्‍द्रक सिनेह उमड़ि पड़ल, बाजल-
भाय, एना नै काज चलत, तीनू भाँइक जीवन देखए पड़त। जेहेन लोकक जीवन होइ छै तेहने विचार ओकरा मनमे अबै छै। तँए थामि-थामि मनक बात बाजू।
हृदए खोलि धीरेन्‍द्र बाजल-
भाय, मनक बात कहै छी नोकरी करए बाहर गेलौं मुदा सेवा- निवरित भेला पछाति गामेमे रहैक विचार अछि।
बिच्‍चेमे लोकैत महेन्‍द्र बाजल-
ऐसँ नीक विचार की हएत! अाइए नै अदौसँ मिथिलाक लोक ढाका-बंगाल तक कमाइ-खटाइले जाइ छला, तँए कि हुनका सबहक परिवार बिलटि गेल? अखनो ठाढ़ अछि!”
अपन सह पबैत सौनक मेघ जकाँ धीरेन्‍द्रक मन उमड़ि घनघोर बरिसए लगल-
भाय, मझिला भाए- सुरेन्‍द्रक विचार अछि जे अपन हिस्‍सा  सभटा जमीन बेचि बैंकमे जमा कऽ लेब। तहिना दोसरो भाइयक विचार सएह छै, मुम्‍बैमे फ्लैट कीनब तँए गामक जमीन बेचि लेब।
महेन्‍द्र-
अपन हिस्‍सा कियो किछु करता, अहाँक हिस्‍सा कियो थोड़े लेता?”
धीरेन्‍द्र-
तेतबे बात रहैत तँ कहितियनि जे जेते कुल्‍लम जमीन अछि, भाग लगा बेचि लिअ, मुदा तीन-तसिया सभ तेहेन भऽ गेल अछि जे घराड़ीए पर डाक करए चाहैए। आब कहू जे अखनि अपने तँ पान-सात बरख गाम नहियेँ आएब, तेकर पछातिए आएब। मुदा जे तीन-तसिया डाक करत ओ बहरबैया बूझि घराड़ीक नाके-कान नै काटि लेत?”
महेन्‍द्र-
भाय, बहुत नमहर घुरछी अछि। एक दिने नै फरिछाएत कल्हुका समए फेर रखू।
बजैक वेगमे महेन्‍द्र तँ तत्काल टारि देलक मुदा काल्हि तँ फेर वएह चर्च हएत। सम्‍पति सम्‍पति छी, मुदा ओकरो अपन विभिन्न रूप छै। चालबाजक तँ चालि चलिते अछि। ओना ओहो अपना गतिए ओइ संस्‍कारमे अाबि गेल अछि जे खेत-पथार इज्‍जत-प्रतिष्‍ठा छी। केना इज्‍जत बूझल गेल, ई भिन्न बात। आइ ओइ मोड़पर पुश्‍तैनी सम्‍पति[4] परिवारक बीच पहुँच गेल अछि जेकरा नव सिरा चाही। जँ से नै भेल तँ एते भँसिया जाएत जे बेकाबू भऽ जाएत। जहिना चुल्हि परहक दूधकेँ खुदियाइते जिनगी बदलए लगै छै, भलहिं ओहने छेना किए ने भऽ जाए जेकर रसगुल्‍लो ने बनत, तहिना चाउर टुटने खुदियाइए, जेकर फल वेचाराकेँ भोगए पड़ै छै जे भातक जगह छोड़ि रोटीक जगह पकड़ै छै तहिना ने जिनगीओ अछि।
¦२८९४¦
१७ नवम्‍बर २०१४



[1] धीरेन्‍द्र
[2] जिनगीमे घटित मुखौटी इतिहास
[3] सामान्‍य विज्ञान
[4] जमीन-जयदाद

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