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Sunday, August 3, 2014

सोच (नन्‍द वि‍लास राय)

सोच
बाबूजी आइ.आइ.टी. प्रति‍योगि‍ता परीक्षाक तैयारी लेल कोचिंग करब। राजस्‍थानक कोटामे नाओं लि‍खाएब। ओतए नीक तैयारी करौल जाइ छै। तइले एक लाख टाका चाही। अजीत दरभंगासँ अबि‍ते पि‍ताकेँ कहलकनि।
बेटाक बात सुनि‍ शीतल राय बिगड़ैत कहलखि‍न-
हरि‍दम टाका केतएसँ औत, पाँचमे दि‍न तँ तोरा पाँच हजार टाका देने रहि‍यौ। ऐतए कि‍ रूपैआक गाछ अछि‍। जखनि‍ मन भेल झखा लिअ। देखै नै छि‍ही दादाक इलाजमे केते खरच भऽ रहल छौ। ओ कि‍छुए दि‍नक मेहमान छथि‍न। अखनि‍ धरि‍ दबाइए बले जीबैत रहला अछि‍। मुदा आब बेसी दि‍न नै खेपता।
अजीत बाजल-
सुजीत भाय, कोटामे नाओं लि‍खौलनि‍। ओ हमरा कोटेसँ फोन केने छला। कहलनि‍ जे सत्तरि‍ हजार एडमि‍शनमे लगत आ रहै-खाइक खर्च अलगसँ। सुजीत तँ अपना सभसँ गरीबे छथि‍न। हुनकर पि‍ताकेँ तँ चारि‍ए बीघा खेत छन्‍हि‍। धि‍या-पुताकेँ ट्यूशन पढ़ा काज चलबै छथि‍न। अपना तँ दस बीघासँ बेसीए खेत हएत। रूपैआ नै अछि‍ तँ पाँच कट्ठा खेते बेचि‍ लिअ।
शीतल राय जोरसँ बजला-
देख, बेसी हमर दि‍माग नै चाट। हम खेत नै बेचब। लोक की कहत। कहत ने जे शीतलो खेत बेचि‍-बेचि‍ खाए लगल। परुकाँ साल गीताक बि‍आहमे बीघा भरि‍ खेत बि‍कले रहए। हरि‍दम जँ खेत बेचब तँ गाम-समाजमे कोन इज्‍जति‍ रहत।
बाबू जीकेँ अपन गप नै मानैत देखि‍ अजीत माए लग पैरवी लगौलक। माए सभ बात बूझि‍ पति‍ लग जा बड़ खुशामद केलखि‍न मुदा शीतल राय साफे तैयार नै भेला।
  शीतल रायकेँ दस बीघा खेत। एकटा बेटा आ एकटा बेटी। जेकर बि‍आह-दुरागमन सभटा भऽ गेल छन्‍हि‍। ओ अपना दुल्‍हा संग राँचीमे रहै छथि‍न। शीतल रायक पि‍ता तँ जीवि‍ते छथिन मुदा माए मरि‍ गेल छथि‍न। पि‍ता दम्‍माक पुरान रोगी छथि‍न। बेटा अजीत पढ़ैमे होशगर छन्‍हि‍। मैट्रि‍को आ आइ.एस.सी.मे नीक नम्‍बर अनने अछि‍। मुदा शीतल राय पढ़ाइकेँ बेसी महत नै दइ छथि‍न। हुनकर सोच छन्‍हि‍ एकटा बेटा अछि‍, दस बीघा जमीन अछि‍। कोन जरूरी छै बेसी पढ़बाक। आब पढ़ाइ छोड़ि‍ खेती-गि‍रहस्‍तीक काज देखह। अजीतकेँ रूपैआ नै देलखि‍न तँए ओ खेनाइ-पीनाइ छोड़ि‍ देलक। तीनि‍ए दि‍न पछाति‍ शीतल रायक पि‍ता मरि‍ गेलनि‍। आब भोज-भातक चर्च हुअ लगल।
  शीतल रायक पि‍ता जोखन मरड़ गामेमे मात्र नै परोपट्टामे नामी बेकतीमे एक छला। जाति‍क मैनजन सेहो छला। शीतल राय सोचए, बाबूजी मैनजन छला। तँए हुनकर श्राधक भोज खुब नीक आ नमहर हेबाक चाही। रसगुल्‍ला-लालमोहनक भोज करब। भोज आ क्रि‍या-कर्ममे दू लाख टाकासँ बेसी खर्च हएत। मुदा हाथपर तँ नै अछि‍। से नै तँ दस कट्ठा खेते बेचि‍ लेब। ई काज दोहरा कऽ फेर थोड़े हएत। अपनो नाआंे कऽ लेब। अजीत सभ गप सुनैत रहए मुदा बाजए कि‍छु नै। ओकरा दि‍मागमे कोटाक अलाबे कि‍छु एबे ने करैत।
  भोज-भातक इंजामक लेल शीतल राय अपन सार बेचनजी केँ बजौला। बेचनजी हाइ स्‍कूलमे शि‍क्षक छथि‍न। ओ अबि‍ते बहनोइसँ कहलखि‍न-
जेतबे सकर्ता हुअ तेतबे भोज करू। जमीन बेचि‍ भोज केलासँ कोन लाभ।
तैपर शीतल राय बजला-
यौ मास्‍टर साहैब, बाबूजी जाति‍क मैनजन छला। परोपट्टामे हुनकर नाम छन्‍हि‍। नीकसँ भोज नै भेने लोक की कहत?”
जखनि‍ ई गप-सप्‍प दुनू सार-बहनोइमे होइ छल तखनि‍ अजीतो ओतै रहए। पि‍ताक बात सुनि‍ अजीत बाजल-  
मामा यौ, बाबूजी हमरा कोचिंग करैले एक लाख टाका नै देता मुदा दादाक भोजमे खेत बेचि‍ कऽ दू लाख टाका खर्च करथि‍न?”
तैपर शीतल राय टोकलखि‍न-
पहि‍ने हमरा भोज करए दे। तेकर पछाति‍ आर कि‍छु सोचब।
बहनोइक बात सुनि‍ बेचनजी बजला-
अँइ यौ पाहुन, अहाँ कोन मनुख छी। बेटाकेँ इंजीनि‍यरिंगक प्रति‍योगि‍ता परीक्षाक तैयारी लेल टाका नै देबै आ भोज-भात खुब ऐल-फइलसँ करब? धूर जी! केहेन अहाँक सोच अछि‍। छोड़ू भोज-भात। पहि‍ने अजीतकेँ रूपैआक इंजाम कऽ दि‍यौ। तेकर पछाति‍ भोज-भातक गप सोचब। बेटा जे इंजीनि‍यर भऽ जाएत तँ बड़ पैघ बात हएत।
शीतल राय सोचए लगला, बेचन बाबू नीके कहै छथि‍।

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