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Sunday, August 10, 2014

घर तोड़ि‍ देलि‍ऐ (नारी वि‍मर्श)

घर तोड़ि‍ देलि‍ऐ




पति‍-पुत्रक दुरघटनाक तीन मास पछाति‍ प्रमि‍ला कोठरीमे असगरे बैसल अपन भवि‍तब दि‍स देखि‍ रहल छथि‍। ओना अखनि‍ तक प्रमि‍लाकेँ एहेन वि‍चार मनमे कहि‍यो ने उठल छेलनि‍। नव-नव वि‍चार मनमे उठलनि‍। ओना ईहो कहि‍ सकै छी जे जहि‍ना दुनि‍याँमे हजारो रोग-वि‍याधि‍ (दैहि‍क, मानसि‍क) पसरल अछि‍, मुदा भेँट तँ तहि‍ये ने होइए जइ दि‍न ओकर आक्रमण होइ छै। डाक्‍टर तँ बेवसायी भेला, तँए ओ अपन पूजी बढ़बै दुआरे अनको रोग-वि‍याधि‍क आ ओकर दवाइ-औषधि‍क अध्‍ययन करै छथि‍, मुदा रोगीकेँ ओइसँ आकि‍ जेकरा ओइसँ भेँट नै, तेकरा कोन मतलब छै जे अनेरे पेनक्रि‍याज‍क कैंसरक इलाज कथीसँ हएत, से बूझत। ओना बूझब जरूरी छै कि‍ नै छै ई अलग बात भेल। दुनू छै। बूझब ऐ दुआरे अछि‍ जे रोग-वि‍याधि‍क कोनो ठेकान अछि‍, केकरो भऽ सकै छै तँए बूझब जरूरीओ अछि‍, मुदा नहि‍योँ बुझने हानि‍ओ तँ नहि‍येँ अछि। हानि‍ ऐ दुआरे नै अछि‍ जे जँ ओइसँ भेँटे नै हुअए। ओना, जि‍नगी अमरलत्ती जकाँ जहि‍ना बि‍नु जड़ि‍-मुड़ीक होइए तहि‍ना दुनि‍योँ अछि‍। तखनि‍ तँ भेल जे ओतबे अध्‍ययनक ने जरूरति‍ अछि‍ जेतेकक जरूरत जि‍नगी चलैक क्रि‍यामे होइए। अखनि‍ तक जे प्रमि‍लाक जि‍नगी रहल ओ सपाट रहल। सपाट ई जे बि‍आहसँ पहि‍ने माता-पि‍ताक आश्रयमे रहली, आ सासुर बासक दौड़ान सरकारी भवनमे रहली, तँए घर बनबैक ने जरूरति‍ पड़ल आ ने मन बौएलनि‍। मोने बौएला पछाति‍ ने लोक बाड़ी-झाड़ीमे रंग-रंगक साग तोड़ि‍ पेटक आगि‍ दबैए। जँ से नै तँ अनेरे कि‍ए कि‍यो अल्‍लू-परोड़ छोड़ि‍, कि‍-कहाँक साग खाएत। भलहिं पौष्‍टि‍क दृष्‍टि‍ए सागो अपन ओहेन कुबत बनौने हुअए जइमे अल्‍लुओ-परोड़सँ बेसी सुआदो आ शक्‍तीओ देहमे दाबि‍ कऽ रखने हुअए। परसू जखनि‍ प्रमि‍ला सरकारी भवनसँ नि‍कालि‍ देल गेली आ भाड़ाक घरमे एली तखनि‍ मनक अन्‍हरि‍याक एकादशी दि‍न वि‍चार उठलनि‍। अनायास मुहसँ नि‍कललनि‍-
परि‍वार तेना राँइ-वाँइ भऽ गेल जे केतए रहब। भाड़ा घर अपन थोड़े भेल चारि‍ दि‍न चान फेर अन्‍हरि‍या राति‍। मुदा नहि‍योँ भेने की हएत, केतौ तँ रहए पड़त।
आठ बीधाबला कि‍सान जयकान्‍त छला। गामे नै आनो गामक कि‍सान जयकान्‍तकेँ सचरगर कि‍सान मानै छेलनि‍। ओना आठ बीघा जमीनबला गाम छोड़ि‍ दि‍ल्‍ली-कलकत्ता ओगरने छथि‍, मुदा से जयकान्‍तकेँ ने कहि‍यो मनमे उठलनि‍ आ ने ओइ दि‍स तकला। आठ बीघामे एक बीघा गाछी-कलमसँ लऽ कऽ घर-घराड़ीमे बाझल छेलनि‍, बाँकी सात बीघा जोतसीम छेलनि‍। सातो बीघा एकठाम रहने एकेटा बोरिंगसँ काज चलि‍ जाइ छेलनि‍। चौमाससँ लऽ कऽ धनहर धरि‍क खेतक आकार छेलनि‍। जइसँ नगदीसँ लऽ कऽ जीवन-यापनक सभ फसि‍ल उपजबै छला।
अपन घरमे अबि‍ते प्रमि‍लाक वि‍चार जगलनि‍। अपन घर अछि‍ केतए? नैहर तँ ओही दि‍न छूटि‍ गेल जइ दि‍न माए-बाप दान-दछि‍ना दऽ डोलीमे बैसा अरि‍याइत गामक सीमान टपा देलनि‍। सासुरकेँ अपने आगि‍ लगा जरा देलि‍ऐ। भेल ई जे ससुरक अमलदारीमे आठे बीघा जमीनक उपजासँ जयकान्‍त अपन सम्‍पन्न परि‍वार बनौने छला। सम्‍पन्न ई जे स्‍तरक हि‍साबसँ खेनाइ-पीनाइ, लत्ता-कपड़ा, घर तँ स्‍थायी रूपे बनौनै छला जे अस्‍थायी रूपे बेमारीक इलाजो आ बाल-बच्‍चाकेँ पढ़ेबाएबो-लि‍खाएबक सम्‍पन्नता बनौने छला। तीनटा बेटा- गि‍रि‍धर, मुरलीधर आ श्रीधर। जेठ बेटा गि‍रि‍धरकेँ पढ़ब दि‍स बेसी झुकाउ। एक तँ अनुकूल परि‍वार (अनुकूल ई जे परि‍वारकेँ कौलेज धरि‍ पढ़बैक ओकाइत) दोसर अपन लगन। गि‍रि‍धर ग्रेजुएशन कऽ प्रति‍योगि‍ता परीछा पास कए प्रशासनि‍क अफसर बनला। ओना अपना हि‍साबे गि‍रि‍धरकेँ पढ़ल-लि‍खल कन्‍याक संग बि‍आह नै भेल छेलनि‍। मुदा चि‍ट्ठी-पतरी तँ प्रमि‍लाकेँ पढ़ऽ अबि‍ते छेलनि‍। बच्‍चेसँ मुरलीधरक झुकाउ परि‍वारक काज दि‍स बेसी रहने जयकान्‍त अपने संग बेसी काल रखि‍ खेती-पथारीक लूरि‍ सि‍खा देलखि‍न। तेसर श्रीधर। ओना पढ़ै-लि‍खै दि‍स श्रीधरोक झुकाउ बेसी, मुदा दुनि‍याँ-दारीक वि‍षयसँ कम आ भक्‍ति‍-भजनक बेसी तँए गीत-संगीतसँ बेसी सि‍नेह। जेकरा ने जयकान्‍ते आ ने मुरलीधरे अधला बुझै छला। अधला ऐ दुआरे नै बुझै छला जे जँ दरबज्‍जापर दस गोटे बैसि‍ कीर्तन-भजन करए ओ तँ साक्षात् देवालयक धरमशाला भेल।
गि‍रि‍धरकेँ बी.डी.ओ. भेला पछाति‍ प्रमि‍लाक जि‍नगीमे एकाएक समुद्री लहरि‍ जकाँ उछाल आएल। बदलल बदलल जि‍नगी।
सौझुका चाह दुनू परानी प्रमि‍ला-गि‍रि‍धर कुरसीपर बैसि‍ पीबैत अप्‍पन गप-सप्‍प उठौलनि‍। अपन गप-सप्‍पक माने ई जे अपन जि‍नगी अपन परि‍वार। प्रमि‍ला बजली-
गाममे जे अपन हि‍स्‍साक खेत-पथार अछि‍, ओइसँ जे उपजा वाड़ी होइए तइसँ अपना की भेटैए।
पैसा पाबि‍ गि‍रि‍धर खाइ-पीऐ दि‍स ससरि‍ गेल छला। भरि‍ पेट खेला पछाति‍ जहि‍ना अरामक आवश्‍यकता बूझि‍ पड़ैत तहि‍ना ने सुरा संग सुन्‍दरीक सुन्‍दर बोलो। बि‍हुँसैत गि‍रि‍धर बजला-
अहाँक जे वि‍चार हएत सएह ने हमरो हएत। आकि‍ अपनसँ हटल बुझै छी।
बंसी खेलि‍नि‍हार जकाँ तड़ेराक खोंटी बूझि‍ प्रमि‍ला बजली-
ई तँ देखि‍ते छी जे सात गोटेक परि‍वार माझि‍लकेँ आ छ गोटेक परि‍वार छोटकाकेँ छन्‍हि‍। ओही खेत-पथारक उपजासँ ने दुनूक गुजर होइ छन्‍हि‍। अपने एते दरमाहा उठबै छी, महि‍ना जाइत-जाइत केतए चलि‍ जाइए? तखनि‍ तँ ई ने भेल जे अपन जे हि‍स्‍सा अछि‍, से वएह सभ खाइ छथि‍।
जहि‍ना एकि‍क नि‍अम आ त्रैराशि‍क नि‍अम अछि‍ जे एके बातकेँ एकटा घुमा-फि‍रा जोड़ैत आ दोसर सोझे जोड़ैत, तहि‍ना प्रमि‍लाक जोड़ गि‍रि‍धरकेँ बूझि‍ पड़लनि‍। हँूहकारी भरैत बजला-
हँ से ते खाइते छथि‍।
ई उचि‍त भेल?”
‘उचि‍त’ सुनि‍ गि‍रि‍धर थकमकेला। थकमकेला ई जे ओ तँ खानदानी परि‍वारक चास-बास छी, चलैत आएल चलैत रहत। अखनो अपन परि‍वार छी आ आगुओ रहत। मुदा नि‍सारल मन, पत्नीक बातमे हँूहकारी भरलनि‍-
उचि‍त तँ नहि‍येँ भेल।
प्रमि‍ला-
जखनि‍ उचि‍त नै भेल, तखनि‍ उनुचि‍तकेँ अंगेज रखब नीक भेल?”
गि‍रि‍धर-
नै।
बातक धारमे गि‍रि‍धर तँ भँसि‍ गेला मुदा वि‍चार जखनि‍ जगलनि‍ तखनि‍ भाए-भैयारी, कुटुम-परि‍वार, सर-समाज सभ सि‍नेमाक रील जकाँ मनमे चलए लगलनि‍। मुदा मनो तँ दुनू दि‍शामे, वि‍कार रहि‍तोमे आ वि‍कार सहि‍तोमे चलि‍ते अछि‍। पति‍क गंभीरता देखि‍ प्रमि‍लाकेँ मनमे संशय जगलनि‍। संशय ई जगलनि‍ जे हो-ने-हो कहीं अपन गलती कबुल कऽ वि‍चार ने बदलि‍ लथि‍। तँए अवसरकेँ गमाएब पछाति‍ पछताबाकेँ नौत देब हएत। तँए अवसरकेँ ओत्ते आगू ससारि‍ ली, जे पाछू हटब पाछू उकड़ू हेतनि‍। बजली-
आॅफि‍समे छुट्टी लऽ लि‍अ आ गाम जा अपन हि‍स्‍सा बखरा कऽ लि‍अ।
जहि‍ना अधला वृत्ति‍ कमबैत-कमबैत कि‍यो खेतक घास जकाँ फसि‍लकेँ साफ बना लैत तहि‍ना ने नीक वृत्ति‍केँ कमबैत-कमबैत कि‍यो घासेक खेत बना लइए। जहि‍यासँ गि‍रि‍धर नोकरीक मोटा-मोटी दरमाहा आ ऊपरफटकी आमदनी पाबए लगला तहि‍यासँ अपनो आ परि‍वारोक खर्चमे बढ़ोत्तरी हुअ लगलनि‍। दबसँ नीक दि‍स बढए लगला। मनो तँ मने छी, धारक पानि‍ जकाँ केतौ पेटे-पेट चलैत तँ केतौ महार तोड़ि‍ दोसर मुँह बना शकले बदलि‍ लैत तँ केतौ पछि‍ला आमदनी (धारक पछि‍ला पानि‍क बेग जकाँ जे बरखो आ बरफोक रहैत) पर उछलि‍ धारे जकाँ खेतो-पथारकेँ बना अपन शकले छि‍पा लैत। मुदा तइसँ फराक गि‍रि‍धरक मन चललनि‍। मन चललनि‍ ई जे ‘साँपो मरि‍ जाए आ लाठीओ ने टुटए।’ परि‍वारक भैयारी अपन ने भेल, पत्नीक की भेलनि‍। मुदा तँए कि‍ ओ हि‍स्‍सेदारि‍नी नै छथि‍, सेहो तँ नहि‍येँ कहल जा सकैए। काजक गर देखि‍ गि‍रि‍धर बजला-
अखनि‍ चुनावक समए आबि‍ गेल अछि‍। तीनि‍ए मास रहलैए। शासनक रूप-रेखा बदैल गेल अछि‍, एको दि‍न के कहए जे एको क्षण छुट्टी भेटब कठि‍न भऽ गेल अछि‍। तँए अहीं जा कऽ अपन भैयारी हि‍स्‍सा बाँटि‍ लि‍अ।
अवसर पाबि‍ प्रमि‍ला मने-मन खुशी भेली। खुशीओ केना ने होइतथि‍, राहड़ि‍क दालि‍ आ दि‍याद जेते गलै छै तेते ने लोककेँ नीक लगै छै। लोको तँ लोके ने जे लगले गदहा बनि‍ जात लाधि‍ लइए तँ लगले हँस बनि‍ दूध-पानि‍ बि‍लगा दइए।
पति‍क बात सुनि‍ प्रमि‍ला मानि‍ गेली। शनि‍केँ पछि‍म मुहेँक यात्रा नीक होइ छै तँए परसू गाम जेबाक वि‍चार पति‍सँ मना लेलनि‍। ओना गि‍रि‍धरक मन गामक सम्‍पति‍सँ हटि‍ आॅफि‍सक काज दि‍स बढ़ि‍ गेलनि‍, मुदा प्रमि‍लाकेँ जेना देवस्‍थानक डोर डोरि‍या लैत तहि‍ना भैयारीक सम्‍पति‍ डोरि‍या लेलकनि‍। मनमे रंग-बि‍रंगक वि‍चारक तरंग तरंगि‍त हुअ लगलनि‍। सभ बेचि‍-बि‍कि‍न बैंकमे जका कऽ लेब, सुइदि‍क नीक आमदनी हएत। जँ से नै तँ खेतक उपजासँ अन्नक बेसाहे खतम हएत। तैयो भेल। ओना बेसाहमे पाइक खर्च नहि‍येँ छेलनि‍, डीलरे सभ उपहार पढ़बै छेलनि‍।
तेसर दि‍न, शनि‍ दि‍न, प्रमि‍ला सासुर पहुँचली। जेठ दि‍यादि‍नी होइक नाते परि‍वारक पूज्‍य छेलीहे। दुनू भाँइ मुरलीधर आ श्रीधर दि‍अरे आ दुनू छोटकी दि‍यादि‍नी। परि‍वारक सीढ़ीओ तँ रूआबी होइते अछि‍। तहूमे आब माता-पि‍ता परोछे भऽ गेलनि‍। खेला-पीला पछाति‍ प्रमि‍ला दुनू दि‍अरकेँ कहलखि‍न-
हम केतए एलौं, से अखनि‍ धरि‍ कि‍यो पुछलौं?”
संगति‍या श्रीधर बजैमे फरकोर रहबे करथि‍। बजला-
ई थि‍क मि‍थि‍ला रीत, ई थि‍क मि‍थि‍ला गीत, सुनि‍यौ यौ मीत, आगूसँ पुछैक नै छी रीत।
श्रीधरक लयात्‍मक बोल जेना प्रमि‍लाकेँ छूबि‍ देलकनि‍। तरेगन जकाँ आँखि‍ तरंगलनि‍। मुदा दबने रहली। बजली-
अखनि‍ कोनो बि‍आह दान आकि‍ मूड़न नै छी जे गीत-नाद हएत। अपन हि‍स्‍सा बाँटए आएल छी।
‘अपन हि‍स्‍सा’ सुनि‍ श्रीधर बौआ गेला। बौआ ई गेला जे मनुखकेँ तँ अपन-अपन हि‍स्‍सा अपन-अपन गुण होइ छै ओ केना बँटाएत। केकरो देल जा सकैए। मुदा मुरलीधर सम्‍पति‍क बात बुझलनि‍। अदौसँ परि‍वारमे बँटबारा होइत आएल अछि‍, सुहरदे मने कि‍ए ने बाँटि‍ देबनि‍। कि‍ए अनकर देखौंस करब जे एक हाथ- आध हाथ खेत ले कपर-फोरौबलि‍ करब। बजला-
परि‍वारमे आठ बीगहा जमीन अछि‍। दू बीगहा तेरह कट्ठा छ धूर दू पौआ, दू कनमा दस कनइ हि‍स्‍सा भेल, कागतपर नक्‍शा  बना कऽ लऽ लि‍अ। काेनो मन-मलान नै अछि‍।
अखनि‍ धरि‍ मुरलीधरक मनमे यएह रहनि‍ जे गि‍रि‍धर भैया थोड़े खेत-पथारक आड़ि‍पर औता, तखनि‍ तँ कागजी बँटबारा भेल रहत। मुदा से भेलनि‍ नै। प्रमि‍ला अपन सभ कि‍छु अलग देखए चाहै छेली। बजली-
हमर सभ कि‍छु अलग करि‍ दि‍अ।
घरसँ लऽ कऽ वाड़ी-झाड़ी खेत-पथार सभ कि‍छु प्रमि‍ला अपन खँति‍या लेली। खँतेला पछाति‍ छोटकी दि‍यादि‍नी कहलकनि‍-
दीदी, सब कि‍छु तँ बँटाइए गेल। आन जे आबि‍ घराड़ीपर भाँटा रोपत आ अनेरो साँझ-भोर आबि‍ जे गरि‍औत से केहेन हएत। मनहुण्‍डे सब खेतक उपजा साले-साल दइत रहबनि‍, अनका नै देथुन।
जेना कोनो लाभ पौने लोककेँ खुशीए टा नै उत्‍साहो उमकै छै तहि‍ना प्रमि‍ला उमकैत बजली-
बाँटल भाए पड़ोसि‍या दाखि‍ल। अपना हि‍स्‍साक घरमे जेकरा मन फूड़त तेकरा बसाएब, तइले अहाँकेँ कि‍ए छाती फटैए।
जेठ दि‍यादि‍नी, मातृ तुल्‍य प्रमि‍लाक बात सुनि‍ सबरी आँखि‍ नि‍च्‍चाँ  कऽ लेलनि‍। मन कहलकनि‍, ‘एहेन लोकक मुँह देखब पाप छी।’
¦¦¦

१० अगस्‍त २०१४

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