Pages

Tuesday, July 15, 2014

उझट बात

उझट बात




चारि‍ बजि‍ कऽ पाँच मि‍नट भऽ गेल। राजमि‍स्‍त्रीक संग काज केनि‍हारि‍ आने संगी-साथी जकाँ बुधनीओ बहि‍न दरबज्‍जेक चापाकलपर देह-हाथ धो कऽ ओसारपर राखल झोरा लि‍अ एली। ओसारपर बैसल प्रोफेसर साहैब, मि‍स्‍त्रीकेँ कहलखि‍न-
सभ कि‍यो चाह-पीब लि‍अ तखनि‍ जाइ जाएब।
चाह पीबैक प्रति‍क्षामे दुनू मि‍स्‍त्री आ दुनू सहयोगी ओसारक आगूमे, जैठाम चबुतरा बनि‍ रहल अछि‍, बैस गप-सप्‍प जे आइ केते काज भेल आ काल्हि‍ की सभ करैक अछि‍, शुरू केलक। आठ बजे भि‍नसरसँ चारि‍ बजे बेर तक काज चलैए। पाँच गोटेक मेरि‍या अछि‍। ओना प्रोफेसर साहैबक नजरि‍ बुधनी बहि‍नपर आठे बजे, जखनि‍ काजपर आएले छेली, पड़लनि‍ मुदा बजला कि‍छु ने। बजबे की करि‍तथि‍, रंग-रंगक वि‍चार तँ मनमे छेलनि‍हेँ। बुधनीक उमेर जरूर पचास-पचपनक हएत, पचास-पचपनक उमेर जि‍नगी उतरैक समए भेल। परि‍वारोमे बेटा-पुतोहु हेबे करतै। मुदा हेबे करतै, तेकरो कोनो ठीक थोड़े अछि‍, नहि‍योँ भऽ सकै छै। मुदा हाथक चुड़ी आ माथक सेनुर तँ कि‍छु गवाही दइते अछि‍। मुदा ई गवाही तँ पति‍क भेल, बेटाक नै। जहि‍ना कोनो काजक अपन समए होइए तहि‍ना कि‍छु बजबोक तँ अपन समए होइते अछि‍। तँए मि‍स्‍त्रीकेँ गि‍ट्टी, ि‍समेंट, बालु इत्‍यादि‍ सभ समान सुमझा काज देखा अपना काजमे प्रोफेसर साहैब लगि‍ गेला। मुदा बुधनी बहि‍न प्रोफेसर साहैबक मनकेँ पकड़ि‍ लेलकनि‍। लाली गोराइ, गठल देह, काज करैक वएह चुमकी जे जुआनीमे रहैक। मुदा बि‍ना गप-सप्‍प केने बुझि‍ओ तँ नहि‍येँ सकै छी। सभ अपन-अपन जि‍नगीमे काजक चक्कीक संग चलि‍ रहल अछि‍ तैठाम अनका बाधि‍त कऽ गपो-सप्‍प करब नीक नहि‍येँ हएत। ठेकनबैत प्रोफेसर साहैब बेरुका चाह पीबैक समए गर अँटौलनि‍। गर अँटौलनि‍ जे दस बजेमे कौलेज जाएब, अबैक कोनो ठेकाने ने अछि‍, चारि‍ बजेक पछाति‍ओ आबि‍ सकै छी, आ लगलो आध घंटा पछाति‍ घूमि‍ कऽ आबि‍ सकै छी। अपनो परि‍यास करब जे चारि‍ बजेक चाह संगे पीब जइसँ चाहे पीबैकाल बुधनी बहि‍नकेँ लगेमे बैसा चाहो पीब आ गपो सभ करब। ट्यूसनि‍याँ वि‍द्यार्थी जकाँ प्रोफेसर साहैब अपन समैपर तैयार भऽ गेला। बुधनी बहि‍नकेँ अपनो संगी साथी आ रस्‍ताे-पेरामे चि‍न्‍हारए सभ संग-संग बजारक दोकानदारो सभ बुधनीए बहि‍न कहैत, मुदा प्रोफेसर साहैब गामक नाओं लऽ कऽ राधोपुरवाली कहै छथि‍न। झोरा लैतेकाल प्रोफेसर साहैब बुधनी बहि‍नकेँ कहलखि‍न-
ऐ राघोपुरवाली, अहाँसँ कि‍छु गपक काज अछि‍, तँए अहाँ एतै बैस कऽ चाह पीबू।
बुधनी बहि‍नक मनमे कोनो मेख-वृख नै। दुनू परानी प्रोफेसर साहैब जहि‍ना कुरसीपर बैसला तहि‍ना बुधनीओ बहि‍न चौकीपर बैसलि‍। प्रोफेसर साहैबक बेटी चाह बना पहि‍ने चारू मि‍स्‍त्री-हेल्‍परकेँ देलक। पछाति‍, दुनू परानी प्रोफेसर साहैब आ बुधनी बहि‍न लेल चाह अनलक। एक घोँट चाह पीब प्रोफेसर साहैब मि‍स्‍त्रीकेँ कहलखि‍न-
सिंहेसर, काजक पछाति‍ एकेठाम सभ हि‍साब दऽ देब, जइसँ कि‍छु आनो काज परि‍वारक भऽ जाएत।
सभ दि‍न काज करैबला श्रमि‍क अपन जि‍नगी अपन कमाइपर ठाढ़ केने चलैए। मुदा जि‍नगी चलैले तँ सहयोगीक सहयोग पड़ि‍ते अछि‍। तँए बजारक साइओ दोकानक बीच लोक अपन कारोबार कि‍छु सीमि‍त तँ काइए लैत अछि‍। जैबीच अपन काज चलबैए। नगद-उधारक बीच तँ जि‍नगी चलि‍ते अछि‍। तँए केकरो प्रोफेसर साहैबक वि‍चार अधला नै लगल। चाह पीब सभ-मि‍स्‍त्री-हेल्‍पर- चलि‍ गेल। बेटीक संग प्रोफेसर साहैब दुनू परानी आ बुधनी बहि‍नक बीच गप-सप्‍प शुरू भेल। प्रोफेसर साहैबक पत्नी- जूही- बुधनी बहि‍नकेँ पुछलखि‍न-
बेटा-पुतोहु नै अछि‍ जे अहाँ अहू उमेरमे एते भारी काज करै छी?”
पत्नीक बात प्रोफेसरो साहैबकेँ नीक लगलनि‍। नीक ई लगलनि‍ जे कतारबंदी गप तँ ओतए ने चलैए जेतए पहि‍नेसँ निर्धारि‍त रहैए। मुदा जैठाम से नै तैठाम तँ रोटीक मुड़ी बनबै पड़त।
जूहीक प्रश्न सुनि‍ बुधनी बहि‍नक मनमे जेना रीश उठलनि‍। मुदा परि‍वारक बात सभठाम बजलो तँ नहि‍येँ जाइ छै। तँए रीशकेँ दबैत बुधनी बहि‍न बाजलि‍-
बेटा-पुतोहु अछि‍ आ पति‍ओ छथि‍ए। मुदा...?”
‘मुदा’ सुनि‍ जूही चौंकैत पुछलखि‍न-
मुदा की?”
वि‍समि‍त होइत बुधनी बहि‍न बाजलि‍-
जहि‍ना अखनि‍ काज करैत देखै छी तहि‍ना सभ दि‍न करैत एलौं अछि‍। मुदा जइ दि‍न पुतोहु कहलक, सासु सन कोनो लछने नै छन्‍हि‍, तही दि‍नसँ बेटा-पुतोहुकेँ छोड़ि‍ अपन अपंग पति‍ओक भार उठा चलि‍ रहल छी।
बुधनी बहि‍नक उत्तर पाबि‍ जेना प्रोफेसर साहैबकेँ बजैक गर भेटलनि‍। गर भेटि‍ते बजला-
ओइ चारू गोरेकेँ रोज नै देलि‍ऐ, एकेबेर अंतमे फरि‍छा देबै। मुदा अखनि‍ तँ अहाँ असगरे रहि‍ गेलौं। जँ पाइक जरूरी हुअए तँ अहाँकेँ अझुका रोज सम्‍हारि‍ सकै छी।
प्रोफेसर साहैबक बात सुनि‍ बुधनी बहि‍नक मनमे उठल एक दि‍नक के कहए जे सालो भरि‍ नि‍रमलीक कोनो दोकानदारसँ उधार मांगब तँ एको बेर नै नहि‍येँ कहत। उधार लऽ लेब हि‍साब फड़ि‍छौट भेला पछाति‍ दऽ देबै। तँए मनमे मि‍सि‍ओ भरि‍ चि‍न्‍ता नै। मुदा जखनि‍ प्रोफेसर साहैब मुँह खोलि‍ बजला तखनि‍ अपन कमाइक बोइन लेब कोन अधला भेल। बुधनी बहि‍न बाजलि‍-
भाय साहैब, अखनि‍ फुटा कऽ हमरा कहलौं मुदा जखनि‍ ओहो सभ छला तखनि‍ समए कि‍ए लऽ लेलि‍ऐ?”
नि‍भर, नि‍रभय होइत अपन बात रखैत प्रोफेसर साहैब उत्तर देलखि‍न-
आन प्रोफेसर जकाँ हम नै छी, जे अनेरो दूधबलाक तगेदा, तरकारीवालीक तगेदा आ हि‍त-अपेछि‍तक तगेदा सुनैत रहब। ओना तगेदो सभ अधले होइए सेहो बात नहि‍येँ अछि‍। जेना केकरो कोनो वि‍चार करैक समए बना लेलौं, मुदा काजक दवाबमे समैपर नै जा सकलौं, तैठाम जँ दोबारा-तेबारा तगेदो भेल तँ अधला नहि‍येँ भेल।
प्रोफेसर साहैबक वि‍चार बुधनी बहि‍न नीक जकाँ नै बूझि‍ सकल। दोहरी बात बूझि‍ पड़लै। एक दि‍स केकरो तगेदा नै दोसर काजक पछाति‍ हि‍साब देब। बाजलि‍-
भाय साहैब, हमरा रोज दइक बात कहै छी आ संगी सभकेँ काजक पछाति‍क बात कहलि‍यनि‍?”
जेना अपन हृदए खोलि‍ प्रोफेसर साहैब बजला-
अहाँसँ लाथ कोन राघोपुरवाली। पान सौ हजार बेर-बेगरता लेल हाथमे रखै छी, जँ अहाँकेँ दू सौ दाइए दइ छी तैयो तीन सौ बँचैए। मुदा पाँचो गोरेक नै पुरैत, तँए बजलौं।
प्रोफेसर साहैबक बात सुनि‍ते बुधनी बहि‍नक मन मानि‍ गेल जे हमरासँ कोनो कलछपन नै केलनि‍। बाजलि‍-
भाय साहैब, दोकानदार सभ हमरा ओहेन गहिंकी नै बुझै छथि‍ जे खाइओ लइए आ दसटा गारि‍ओ पढ़ि‍ दइए। जखने दोकानपर जाइ छी तखने आन गहिंकीकेँ छोड़ि‍ पहि‍ने समान दइ छथि‍।
बुधनी बहि‍नक बात सुनि‍ जूही टि‍पलनि‍-
ई उचि‍त भेल?”
जूहीक प्रश्न सुनि‍ मुस्‍की दैत बुधनी बहि‍न बाजलि‍-
यएह तँ चलाकी छी। दोकानमे पचासो गहिंकी अछि‍, रंग-रंगक जि‍नगीक बीच चलि‍ रहल अछि‍, जेकरा दोकानदार नै चि‍न्‍है-जनै छै, मुदा ओहेन चि‍न्‍हारकेँ तँ जनि‍ते अछि‍ जेकर बनहौटा जि‍नगी छै। अहाँ ऐठामसँ छूटब दोकानपर जाएब, राति‍सँ काल्हि‍ दि‍न धरि‍क खर्च होइबला चीज-बौस कीनब, दू कोस जाइओ पड़त, गामपर जाएब तखनि‍ मुरही-कचड़ी पति‍देवकेँ जलखै करए देबनि‍। अपने चुल्हि‍-चि‍नवारक काजमे जुटि‍ जाएब। जँ सबेर-सकाल खा-पी सूतब नै, तँ दि‍नका ठेही केना कमत।
एके साँसमे बुधनी बहि‍नक गप सुनि‍ प्रोफेसर साहैब सहमि‍ गेला। बजला-
केते दि‍नसँ ई काज करै छी?”
बुधनी बहि‍न-
आठ बर्खसँ।
प्रोफेसर साहैब-
तइसँ पहि‍ने?”
घर-अँगनाक काजो सम्‍हारै छेलौं आ खेत-पथारमे बोइनो-बुत्ता करै छेलौं।
पति‍ की करै छला?”
तइसँ पहि‍ने ओ बजारेमे रि‍क्‍शा चलबै छला। साँझू पहर दोकान-दौरीक काज केने घरपर पहुँचै छला। मुदा जइ दि‍न जीपक ठोकर रि‍क्‍शामे लगल आ जाँघ टुटलनि‍, तइ दि‍नसँ जीबै तँ छथि‍ मुदा चलै-फि‍ड़ैक तागति‍ नै छन्‍हि‍।
बाल-बच्‍चा कएटा अछि‍?”
तीन भाए-बहि‍न अछि‍। दुनू बहि‍न सासुर बसैए आ बेटा लगमे रहैए।
बेटा-पुतोहु भीन अछि‍?”
अपने भीन भऽ गेलौं।
कि‍ए?”
पुतोहुक ओ बात अखनो मन पड़ैए तँ ओहि‍ना रीश उठैए। पुतोहु बाजल जे सासुक लछने ने छन्‍हि‍। बाजल-तँ-बाजल। अपन बेटा-बेटी जकाँ थोड़े बाजल। मुदा बेटा ओकरा कि‍छु ने कहलकै, तेकर आनि‍-पीड़ा बरदास नै भेल। तही दि‍नसँ बजारक काज पकड़लौं।
अपना खेत-पथार नै अछि‍?”
नै।
¦¦¦


२६ जुन २०१४

No comments:

Post a Comment