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Thursday, July 24, 2014

मरूभूमि‍

मरूभूमि



जहि‍ना मनुखक तीन अवस्‍था- सूतल, जागल आ सपनाएल- होइए, तहि‍ना भूमि‍क सेहो होइ छै। कौलेजक छात्रा गीता जेहने जागल तेहने रीता मरि‍याएल, मुदा दुनूक दि‍यादी परि‍वार तँए घनि‍ष्‍ठता बेसी। बेसी घनि‍ष्‍ठताक आरो-आरो कारण छै, एकठाम घर सेहो छै, बच्‍चेसँ, जहि‍येसँ स्‍कूल जाए-अबए लगल आ एक्के कि‍लासमे नाओं लि‍खा पढ़ए लगल, तहि‍येसँ दुनू स्‍कूलक संगी बनि‍ आरो घनि‍ष्‍ठताक घनत्‍वकेँ बढ़ौलक। ओना दि‍यादीक डाह सेहो होइ छै। माने कटा-कटी, मारा-मारी, गारा-गारी, मुदा से रीता-गीताक परि‍वारक बीच कहि‍यो ने रहल तँए दुनू बहि‍न रीता-गीताक बीच कि‍ए हएत। एक तँ ओहुना गामो-समाजमे बेटाक अपेक्षा बेटीक बीच घनि‍ष्‍ठता बेसी होइए, तहूमे दुनू पढ़बो-ि‍लखबो करि‍ते अछि‍। ओना एकरंगाह वेपारीओ आ गि‍रहस्‍तोक बीच जि‍नगीक दौड़मे मुँह फुल्‍ला-फुल्‍ली होइए जे से एक-दोसरसँ आगू बढ़ैले कि‍छु उचि‍त अनुचि‍त भाइए जाइ छै, मुदा तैयो आगूक दि‍लाशामे प्रति‍योगि‍क रूप पकड़ि‍ए लइ छै। से एके दि‍स नै, दुनू दि‍स पकड़ै छै। उचि‍तो दि‍स पकड़ै छै आ अनुचि‍तो दि‍स। दुनूक अपन-अपन लक्ष्‍य सेहो छै। तँए कि‍ सभ वेपारीओ आकि‍ सभ गि‍रहस्‍तोमे अहि‍ना रहै छै? नै! एना रहबो केना ने करत? सभ दि‍नसँ होइत आएल अछि‍ जे फनि‍गा[1]केँ चुट्टी बीछि‍-बीछि‍ खाइ छै, चुट्टीकेँ बीछि‍-बीछि‍ बेंग, बेंगकेँ बीछि‍-बीछि‍ साँप आ साँपकेँ‍ गरूड़, तँए ने पर्यावरण नि‍यंत्रणमे अछि‍। तहि‍ना जँ छोट वेपारीकेँ आकि‍ गि‍रहस्‍तेकेँ मझोलका नै बीछि‍-बीछि‍ खाए, मझोलकाकेँ पुरलाहा नै खाए, पुरलाहाकेँ परपुरलाहा नै तखनि‍ पर्यावरण नि‍यंत्रणमे रहत केना! बच्‍चेसँ दुनू दि‍यादी बहि‍नक बीच रहल जे जखनि‍ जे काज करै छी तखनि‍ तहीपर नजरि‍ गड़ा करब, जइसँ दीन दि‍न दि‍नो-दि‍न नीक बनैत जाएत। नीक आकि‍ अधला केतौ एकेबेर हड़-हड़ा कऽ थोड़े भऽ जाइए, ओ तँ होइत-होइत होइए। दुनू दुनूक बीच सम्‍बन्‍ध बच्‍चेमे एहेन बनि‍ गेल जे बि‍ना संग केने स्‍कूलो ने जाइत। भलहिं तैयार भेलो पछाति‍ कि‍ए ने एक-आध घंटा बि‍लमए पड़ै। मुदा से कोनो अधला नै। निरर्थक घोड़-दौड़मे समैक महते की रहैए, जे अनेरे कि‍यो समैक नांगरि‍ पकड़ि‍ दौड़ा-दौड़ीमे हकमैत रहत। घरसँ बहराइते दुनूक बीच एहेन बनि‍ गेल छै जे बाटमे जेकरे नजरि‍ कोनो नब वस्‍तुपर पड़तै तँ ओ ओकरे जि‍नगीक खेलौना बूझि‍ एक-दोसरकेँ पूछि‍, बक-झक करैत एक सीमापर अँटकि एक राय बना सीमान दऽ दइए।
जेना-जेना वि‍द्यालय घुसकैत गेल तहि‍ना-तहि‍ना रीता-गीताक जि‍नगी आ जि‍नगीक वि‍चार सेहो घुसकैत गेल। आब, दुनू कौलेजमे पढ़ैए। घरेक गोसाउनि‍क गीतटा नै भूगोल पढ़ि‍ दुनियोँक गप-सप्‍प करए लगल अछि‍।
जहि‍ना घरसँ स्‍कूलक रस्‍तामे नि‍कलि‍ते कोनो वस्‍तुकेँ ज्ञान बूझि‍ धि‍यानक करखानामे दुनू औंट-पौर दूधकेँ दही जनमबैत। ओना बच्‍चेक वि‍द्यालयसँ दुनू भूगोल पढ़ने, मरूभूमि‍क चर्च कि‍ताबोमे देखने आ कानोसँ सुनने। मुदा भूगोलमे दुनू ओही दि‍नसँ भरमि‍ गेल जइ दि‍न कि‍ताबमे पढ़लक जे दुनि‍याँ गोल छै, आँखि‍क सोझमे उतरे-दछि‍ने आकि‍ पूबे-पछि‍मे खूब नमती धरती छै। ऊपर अकास छै तँ ने ओकरे ठेकान छै जे केते ऊपरमे अछि‍ आ ने तरे दि‍स पताल छै तँ केते तरमे अछि‍। एक भग्‍गू नाप, मानि‍ दुनू एक राय बना नेने छल जे कि‍ताबक बात दोसर होइ छै आ आँखि‍क सोझक बात दोसर। तँए मरूभूमि‍केँ कि‍ताबक बात मानि‍ दुनू गोटे ओइ काैपीक पन्नामे लि‍खि‍ कऽ रखि‍ लेलक जे भूगोलक छल। दुनू आइ कौलेजक कि‍लासमे नब सि‍रासँ मरूभूमि‍ सुनलक। ओना कि‍लासक मरूभूमि‍क चर्च पहि‍ल दि‍न भेल तँए प्रोफेसर साहैब मरूभूमि‍क भूमि‍के बान्‍हि‍ वर्ग-वि‍सर्जन केलनि‍। सेहो भूमि‍का साहि‍त्‍यक भूमि‍का जकाँ नै, भूगोलक भूमि‍के की हएत। मुदा भूमि‍केमे रीतो आ गीतो मरूभूमि‍क अगि‍ले आखरमे चोन्‍हि‍या गेल, तँए नीक जकाँ दुनूमे सँ कि‍यो ने बुझलक। मुदा तैयो मनमे सबूर बन्‍हलक जे आइ भूमि‍के ने छल, असल तँ आगू औत तँ अनेरे मनहूस कि‍ए करब। अखनि‍ हूसबे केते कएल हेन। पहि‍ने प्रोफेसर साहैब भूमि‍के देलखि‍न, आगू आरो कहथि‍न जे बुझैमे नै औत से पूछि‍ लेबनि‍, पछाति‍ ने अंति‍म सीढ़ीपर पहुँचब। छुट्टी होइसँ पहि‍ने दुनू दुनूक ताक ताकि‍ आँखि‍-मि‍लौनी कऽ मनमे प्रश्न रोपि-गाड़ि‍‍ लेलक। एक्केक नाओं रोपब आ गाड़ब दुनू छी। एकटा भेल कोनो गाछकेँ माटि‍मे गाड़ब, आ वएह भेल रोपब। छुट्टीक घंटी बाजल। दुनू कि‍लाससँ नि‍कलल। वि‍द्यार्थीक जेरक बीचसँ जहि‍ना रीता एकबाहि‍ होइत गीता दि‍स बढ़ल तहि‍ना दोसर दि‍ससँ गीतो कनछि‍याइत रीता दि‍स भेल। एकठाम होइते दुनू एकांत बूझि‍ गप-सप्‍प करैक स्‍थान चुनलक। एकान्‍ते स्‍थलमे ने जोगीओ दुनि‍याँ देखैए आ भोगीओ। मुदा से नै रीता-गीता दुनू सांसारि‍क मनुख, तँए अपन जीवनक लेल सुनल प्रश्नक उत्तर तकै दि‍सक वि‍चार करैत रहए। प्रश्नक उत्तर तकैमे बाट-घाट सेहो ताकए पड़ै छै, जे कोनो चि‍कनो होइ छै आ कोनो उबरो-खाबड़बला। ओना, जहि‍ना रीता गीताक चेहरा देख-देख परखैत जे बात सुनै जोकर मन खनहन छै आकि‍ नै, तहि‍ना गीतो रीताकेँ परेखि‍ लेलक। दुनूक अपन-अपन बात मनमे उज-मारि‍ करै जे पहि‍ने हम आगू हएब तँ पहि‍ने हम। बात रहै जे रीताक मनमे ‘भूमि‍का’ शब्‍द ओझराएल आ गीताक मनमे ‘मरूभूमि‍’ शब्‍द। ओना प्रश्नोक दू सोभाव होइ छै, एक होइ छै जानैक खि‍यालसँ आ दोसर होइ छै जँचैक खि‍यालसँ। मुदा से जहि‍ना कोनो थलकमल गाछक डारि‍ एके दि‍न जनमि‍ संगे बढ़ैत संगे फुलाइए तहि‍ना दुनू गोटेक बि‍चक सम्‍बन्‍ध, तँए दोसर कोनो मलि‍नता नहि‍येँ। दुनू अपन-अपन बजैक सूर मि‍ला सुनि‍नि‍हार दि‍स देखि‍ आँखि‍ उठा-उठा एक-दोसरकेँ देखलक। तानी-भरनी मि‍लते रीता बाजल-
बहि‍न गीता, हम-तूँ तँ ओहि‍ना ने छी जेना रीतक संग गीत चलैए आ गीतक संग रीत।  
रीताक बातमे गीता हूँहकारी भरलक। कि‍एक तँ मन इशारा कऽ देलकै जे एके-हूँहकारीमे रीता गदगदा जाएत जइसँ अपन प्रश्न अगुआ लेब। गरो सुतरलै। हूँहकारीक खि‍ल-खि‍ली खतमो ने भेल छेलै तइ बि‍च्‍चेमे गीता बाजि‍ उठल‍-
मरूभूमि‍ की?”
अपन पछुआइत प्रश्नक समए देखि‍ रीता बाजल-
बहि‍न, जहि‍ना तोहर प्रश्न तहि‍ना हमरो मनमे एकटा उचड़ैए।
जखने प्रश्नपर-प्रश्न लधाएत तखने‍ कोन केहेन रहत आकि‍ सभटा बेदरंग भऽ जाएत तेकर कोन ठेकान छै। मुदा प्रश्नक उत्तर होइत जँ प्रश्न चलत तँ ओ चलन्‍त प्रश्न भेल जे उचि‍तो छै। अपन प्रश्नपर दोहरी जोर दैत गीता बाजल-
बहि‍न, समए केतौ पड़ाएल नै जाइ छै, अखनि‍ कौलेजसँ नि‍कलबे केलौं अछि‍, प्रश्ने केतेटा अछि‍ जे घर तक पहुँचैमे नै फड़ि‍छाएत।
रीताक मनमे होइ जे पहि‍ने भूमि‍काक चर्च जँ नै हएत तब तँ गड़बड़ाएत, मरूभूमि‍ तँ अगि‍ला भेल। पहि‍ने कोनो चीज जनमत तखनि‍ ने मरत। जँ मरले जनमत तँ मरले-जनम ने भेल। तँए अपन प्रश्नकेँ अगुआएब नीक बुझैत। गीताकेँ नै चाहि‍तो रीता अपन प्रश्न रखलक-
भूमि‍का की?”
प्रश्न सुनि‍ गीता समगम होइत बाजल-
बहि‍न, जेहने प्रश्न अहाँक तेहने हमरो। जहि‍ना अहाँ सुनलौं तहि‍ना हमहूँ सुनलौं। भरि‍ बाट अहँू औंटू आ हमहूँ औंटै छी। जेते औंट लागत तेते रस गढ़ाएत।
समुचि‍त बात सुनि‍ रीता वि‍चार मानि‍ बाजल-
बड़ बढ़ि‍याँ।
कहि‍ चुप होइत मरूभूमि‍ दि‍स नजरि‍ देलक। एक भेल जीवि‍त भूमि‍, दोसर भेल मरूभूमि‍। मुदा अपन प्रश्न अछि‍ भूमि‍का। पहि‍ने भूमि‍क चर्च हएत तखनि‍ ने ओकर मरन-जि‍अनक।
जहि‍ना रीता चुपी लाधि‍ देलक तहि‍ना गीतो लाधि‍ लेलक। धि‍या-पुताक खेल जकाँ चुप्‍पा-चुप, धुप्‍पा-धुप पसरि‍ गेल। मुदा मन औना गेलै। साँपक बीख झाड़नि‍हार मनतरि‍या घरसँ नि‍कलि‍ते अपन देहकेँ भूमि‍ मानि‍ बान्‍हि‍ बजैए, ‘जल बान्‍हो, थल बान्‍हो, बान्‍हो अपन काया...।’ आब ऐठाम की बूझब। दोसर दि‍स देखै छी जे भूमि‍के बान्‍हि‍ घटक सभ दि‍न-राति‍ गरदनिकट्टी करैए।
कौलेजसँ घर दुनू पहुँच गेल मुदा केकरो उत्तर भेटबे ने कएल। अँगनाक रस्‍ता जैठाम फुटै छै तैठाम आबि‍ गीता बाजल-
बहि‍न, उत्तर नै भेटल तँ नै भेटल, कौल्हुका समैओ तँ पछुआएले अछि‍। तइले वि‍द्यालयकेँ थोड़े अबलट जोड़ब जे केकर मुँह देखि‍ वि‍दा भेलौं जे जतरे खराप भऽ गेल। घरसँ वि‍द्यालय गेलौं वि‍द्यालयसँ घर एलौं, जँ अहि‍ना जि‍नगी चलैत रहए, तँ ऐसँ आगू की चाही।
गीताक वि‍चार सुनि‍ रीता हँूहकारी तँ भरि‍ देलक मुदा मन झुरझुराइते रहलै। मनो केना नै झुरझुरैतै? पहि‍ने जी आकि‍‍ पहि‍ने दाँत? देखलो पछाति‍ तँ लोक बजि‍ते अछि‍ जे जी-दाँत देखि‍ पसिन करू। मुदा तैयो मनकेँ थीर करैत रीता बाजल-
बहि‍न, खुरपी लेमे आकि‍ बेंट?”
रीता-
हमरा-तोरा काल्हि‍ कौलेजमे प्रोफेसर साहैबक सोझहामे, अपन-अपन प्रश्नक हएत भेँट।
मुस्‍कीआइत दुनू गोटे मुहथरि‍सँ आगू बढ़ल।
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२० जुलाइ २०१४



[1] छोट-छोटकेँ कि‍ड़ी-फतिंगी

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