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Sunday, December 14, 2014

जगदीश प्रसाद मण्‍डलक कथा यात्रा- २२.१२.१३-सँ-११.१२.१४ धरिक

२२ दिसम्‍बर २०१३ सँ २२ दिसम्‍बर २०१४ धरिक कथा-लेखन-क्रम, शब्‍द संख्‍या सहित... :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल

१. पाइक मोल- (२४१२) - २२ दिसम्‍बर २०१३
२. चोरूक्का झगड़ा- (५३८) २४ दिसम्‍बर २०१३
३. अपसोच- (५४८) २६ दिसम्‍बर २०१३ 
४. पतझाड़- (२५८७) ३१ दिसम्‍बर २०१३
५. झीसीक मजा- (४५३) १ जनवरी २०१४
६. मति-गति- (१८०७) ०७ जनवरी २०१४
७. अपन सन मुँह- (५६९६) २५ जनवरी २०१४
८. रिजल्‍ट- (२३४३) १६ जनवरी २०१४
९. सुमति- (३०५२) ३० जनवरी २०१४
१०. फेर पुछबनि- (३४६) ३१ जनवरी २०१४
११. माघक घूर- (१६८३) ०६ फरवरी २०१४
१२. खर्च- (३३०) ०७ फरवरी २०१४
१३. अखरा-दोखरा- (३४२) १० फरवरी २०१४
१४. पेटगनाह- (५९३) १४ फरवरी २०१४
१५. बड़की माता- (१२२४) १८ फरवरी २०१४
१६. धरती-अकास- (१८४) १९ फरवरी २०१४
१७. बकठाँइ- (८८३) २४ फरवरी २०१४
१८. चैन-बेचैन- (९३६) ०९ मार्च २०१४
१९. हथि‍याएल खुरपी- (६५०) ११ मार्च २०१४
२०. अलपुरि‍या बरी- (२८७) १२ मार्च २०१४
२१. नीक बोल- (५७०) १३ मार्च २०१४
२२. सुआद- (६२४) १४ मार्च २०१४
२३. गंगा नहेलौं- (६८६) १९ मार्च २०१४
२४. भोँटक गहमी- (५०८) २४ मार्च २०१४
२५. भँसैत नाह- (५९२) २६ मार्च २०१४
२६. पान पराग- (१७०४) २९ मार्च २०१४ 
२७. सि‍रमा- (७६०) ३१ मार्च २०१४
२८. नौमीक हकार- (१११६) ०३ अप्रैल २०१४
२९. फोंक मकड़- (१,७५५) १० अप्रैल २०१४
३०. केते लग केते दूर-(१२५५) १४ अप्रैल २०१४
३१. अभि‍नव अनुभव- (३२६) १६ अप्रैल २०१४
३२. खोंटकर्मा- (११८४) १९ अप्रैल २०१४
३३. कि‍छु ने- (५०१) २२ अप्रैल २०१४
३४. झकास- (१५८९) २६ अप्रैल २०१४
३५. अप्‍पन-बीरान- (२,८९४) ०१ मई २०१४
३६. सजमनि‍याँ आम- (६११) ०४ मई २०१४
३७. अर्जुन रोग- (१००३) ७ मई २०१४
३८. गरदनि‍ कट्टा बेटा- (५७५) १० मई २०१४
३९. नैहराक धाड़- (८८१) १४ मई २०१४
४०. अवाक- (१०४१) १७ मई २०१४
४१. पोखरि‍क सैरात- (९२३) २० मई २०१४
४२. दनि‍याँ डाबा- (४०९) २२ मई २०१४ 
४३. धरम काँट- (३९९) २३ मई २०१४
४४. पल भरि- (१११६) २४ मई २०१४
४५. कि‍रदानी- (५२९६) १४ जुन २०१४
४६. सगहा- (२८६७) २२ जुन २०१४
४७. अकाल- (१२३८) २४ जुन २०१४
४८. उझट बात- (११५२) २६ जुन २०१४
४९. कर्जखौक- (११७५) २ जुलाई २०१४
५०. उनटन- (११८७) ६ जुलाई २०१४
५१. रेहना चाची- (१३०७) ९ जुलाई २०१४
५२. बुधनी दादी- (१२५६) ११ जुलाई २०१४
५३. अउतरि‍त प्रश्‍न- (१२२९) १४ जुलाई २०१४
५४. हारि- (१२४०) १६ जुलाई २०१४ 
५५. सोनाक सुइत- (११३५) १७ जुलाई २०१४
५६. मरूभूमि‍- (१२१४) २० जुलाई २०१४
५७. असगरे- (१५५७) २४ जुलाई २०१४
५८. पुरनी नानी- (१३०४) २७ जुलाई २०१४
५९. कटा-कटी- (११४०) ३० जुलाई २०१४
६०. केते लग केते दूर-(१२०६) ३ अगस्‍त २०१४
६१. गलती अपने भेल-(३३८६) ०६ अगस्‍त २०१४
६२. चोरक चोरबती- (८८४) ६ अगस्‍त २०१४
६३. घर तोड़ि‍ देलि‍ऐ- (१५२७) १० अगस्‍त २०१४
६४. सजल स्‍मृति- (२३६३) १४ अगस्‍त २०१४
६५. सनेस- (२६५४) १६ अगस्‍त २०१४
६६. सए कच्‍छे- (४८८) १९ अगस्‍त २०१४
६७. एक मुठी घास- (४११) २१ अगस्‍त २०१४
६८. करि‍छौन मुँह- (३१८) २४ अगस्‍त २०१४
६९. पुरस्‍कार- (२४१४) २४ अगस्‍त २०१४
७०. गावीस मोइस- (६८७) २९ अगस्‍त २०१४
७१. मनकमना- (६११८) १९ सि‍तम्‍बर २०१४
७२. घरवास- (४८८४) २६ सि‍तम्‍बर २०१४
७३. समधीन- (६०९६) ०४ अक्‍टुबर २०१४
७४. चापाकलक पाइप- (१६१६) ७ अक्‍टुबर २०१४
७५. कलम हानि कऽ-(२२२६) १० अक्‍टुबर २०१४
७६. लतियाएल जिनगी-(११८४),१४ अक्‍टुबर २०१४
७७. गामक शकल-सूरत-(२५९६),२०अक्‍टुबर २०१४
७८. जितिया पावनि- (३७०६) २४ अक्‍टुबर २०१४
७९. सुखाएल सूरत- (३६९०) ३० अक्‍टुबर २०१४
८०. भैयारी हक- (३१३१) ४ नवम्‍बर २०१४
८१. ठकुआएल भुसवा- (३३५६) १३ नवम्‍बर २०१४
८२. खुदियाएल- (२८९४) १७ नवम्‍बर २०१४
८३. खटहा आम- (३५२८) २२ नवम्‍बर २०१४
८४. ढकरपेँच- (३७४०) ३० नवम्‍बर २०१४
८५. असहाज- (२८५३) ०४ दिसम्‍बर २०१४ 
८६. समरथाइक भूत- (३८३२) ०७ दिसम्‍बर २०१४
८७. विदाइ-(५१०३), १७ दिसम्‍बर २०१४
८८. खलओदार- (७३१), १९ दिसम्‍बर २०१४
८९. मनुखदेवा (१०१६), २२ दिसम्‍बर २०१४

Saturday, November 22, 2014

खुदियाएल

खुदियाएल






जिनगीक तीसम बर्खमे जइ नजरिए धीरेन्‍द्र आ महेन्‍द्रकेँ जिनगीक अकलवेरामे भेँट भेल ओ अखनि तक नै भेल छल। भेँट होइते धीरेन्‍द्र  बाजल-
महिन्‍दर भाय, केते जुगक पछाति दुनू संगी एकठाम भेलौं!”
जहिना लुल्हा-नेंगराकेँ भगवानक भेँट जगरनाथमे होइए तहिना महेन्‍द्रकेँ मनमे उठल, किमहर सुरूज उगल जे एहेन विचार धीरेन्‍द्रक मनमे एलै। सदिकाल संग रहै बला संगी भेल आकि तीस बर्खक पछाति भेँट भेला पछाति संगी भेल? भरिसक केतौ ने केतौ जिनगी खुदियाएल अछि! मुदा दरबज्‍जापर अाएल अभ्‍यागतकेँ रहि-रहि, मुँह खोलब शंकाक जनम देत। जखनि संगी छी तखनि धारक हेलिनिहार जकाँ चीत हेलह आकि पट मुदा हेलह धरि। अपने ने धारक धारा चीतसँ पट आ पटसँ चीत करैत रहत। चीत-पट बीच पड़ल महेन्‍द्रक मन धीरेन्‍द्रक मुहसँ खसिते जहिना जेठुआ तबल जमीन बिहरिया पानिकेँ ऊपरे लोकि लइए तहिना लोकैत महेन्‍द्र  बाजल-
भाय, दिन-ठेकान तँ डायरी लिखिनहारक हिसाबमे लिखाइ छै, ऐ मानेमे हम सिलौट-लोढ़ी छी। नै मर-मसल्‍ला खाइ छी तँए नै बुझै छी, मुदा बहु दिनक पछाति भेँट भेलौं ई तँ मन मानिते अछि।
धारक वेगमे जहिना नहेबाकाल हियासए पड़ैत जे केते वेग आकि धारा तक अपनाकेँ थीर रखि नहा सकै छी, आ कखनि अगम भेने डुमि जाएब। मुदा से तँ समतल-सरोवर पानिमे नै होइत। धीरेन्‍द्रक मन गवाही देलक। मन मोहियेलै। बाजल-
भाय, किछु विचार करब अछि।
विचार सुनिते महेन्‍द्र बाजल-
भाय, अगुताएल ते ने छह। देखबे केलह जे बाड़ीसँ अबिते छेलौं, हाथमे खुरपी छेलएहे आकि तोरापर नजरि पड़ल। खुरपी ने ओतै पटकि देलिऐ आ दरबज्‍जाक कुरसी सोझ केलौं, मुदा हाथो-पएर धोब आ कनी चाहो पीबैक मन ने होइए।
महेन्‍द्रक रूखि अनुकूल देखि धीरेन्‍द्रक मन मानि गेल जे मनक बात (हृदए रूपी) करै जोकर स्‍थानपर पहुँच गेल छी। बाजल-
भाय, तोहर-हमर देह आकि परिवार, कोनो दू छी जे तोहर बात हम नै बुझिऐ आ हमर बात तूँ नै बुझह। हमरा सबहक काजे कोन गाममे रहि गेल जे अौगताइ रहत?”
धीरेन्‍द्रक बात सुनिते महेन्‍द्रक मन मानि गेल जे ओतेकालक पलखति भाइए गेल जेतेकाल चलैत-फिड़ैत अपन काज सम्‍हारि लेब। काजे जकाँ विचारो ने सम्‍हारल जाइए। जँ बैसब तखनि ने दोखी हएब, ई तँ भेल अपन जिनगीक दिनकेँ उसारब ताबे गोधूल वेलो मेटाइ छै। संध्‍याबन्‍धनक बेर सेहो होइए। तैसंग ईहो मनमे होइ जे जखनि बैसि कऽ किछु सोचब तखनि ने कोनो शंको धीरेन्‍द्रक मनमे हेतै। जाबे अनमेनामे लागल रहब ताबे तँ बुझबे करत जे सेना जकाँ थोड़े चलत, बड़ चलत तँ मेना-अनमेना चालि चलत। तँए अपन जिनगी आ अपन परिवारक जिनगी की रहल जेकर उपज अपने छी, आ ओहो[1] अछि। जिनगीक भौको तँ हरही-सुरही नहियेँ अछि, ई तँ ओहन अछि जेकरा पकड़बो असान नहियेँ अछि। असानो केना रहत, जहिना लोकक बुधि छै तहिना ई दुनियाँ अछि। मरूआे भरिसँ कम बुधि किए ने हुअए मुदा मन तँ कहिते छै जे दुनियाँमे ऐ बुधिक जोड़ा नै छै। टिटही जकाँ बुझिते अछि जे अकासो आ दुनियोँ ठाढ़ अछि। जँ से नै अछि तँ किए कियो बजैए जे दुनियाँमे जहिना चोर अछि, तहिना साधुओ अछि, जहिना बेइमान अछि तहिना इमानदारो अछि, जहिना पापी अछि तहिना धरमतमो अछि, मुदा अपने की छी से बुझी की नै बुझही। मुदा तेतबे किए जहिना बुधिक भण्‍डार (मनुख) केँ भगवान (विधाता) निरमा कऽ दुनियाँ भरि देने छथिन तहिना दुनियोँकेँ तेते झमटगर बना कऽ रखि देने छथिन जे केतए माटिक तर सीर छै आ केतए ऊपर, से थाहबो कठिन अछिए। जइमे लोक औनाइत रहैए। मुदा सभ कियो कि औनेबे करत, जेकरा ई सबुर छै जे मुट्ठी बान्‍हि कऽ आएल छी पसरल हाथ नेने जाएब, तइले अनेरे भरि दिन रोडपर आकि गाड़ी-सवारीमे आकि धुँआ-धुकुर होइत कारखानामे भूत बनि किए भुतिआइत रहब। भाय! लोढ़ि लाएब, कुटि खाएब, निरोग बनि काल्हि फेर जाएब। केकरो ज्ञान ने ज्ञान-शक्‍ति पबैए, मुदा भक्‍ति-शक्‍ति तँ श्रमे पबैए। ओना दुनू तेहेन एक-दोसरमे सटल अछि जे एकक बिना दोसर नै चलत मुदा दुनूक बीच ई रस्‍सा-कस्‍सी तँ अछिए जे एकटा कहै छै दुनियाँक मालिक छी, दोसर कहै छै मािलकक कामतक कमतिया अपने छी। अनेरे अनका पाछू जे हरान रहब से कि ओकरा अपना बुते अपनाकेँ सम्‍हारि कऽ चलल नै हेतै जे कन्‍हापर लदने चलब। गाइक थैरमे घूरपर नजरि पड़िते महेन्‍द्र देखलक जे खढ़-पात जरि कऽ झोली भऽ गेल अछि मुदा गोरहा-करसीक आगि सुनगैए। घूर लग जा खोंरनासँ करसीकेँ उसका देलक। दरबज्‍जापर बैसल धीरेन्‍द्र अपनो दिस देखै संगे अपना परिवारो आ समाजोकेँ देखै तँ काजर घोरल रातिक अन्‍हार जकाँ बूझि पड़ै। दिनमे कियो अनेको कोस धरि देखैए। मुदा अन्‍हारमे अपनो देह-हाथ हेरा जाइ छै। तेहने सन धीरेन्‍द्रो हेराएल जकाँ वौआइत रहए। मन पड़लै अपन पनसल्‍ला संगी महेन्‍द्र। जखनि दुनू गोरे गामक लोअर प्राइमरी स्‍कूलमे नाआंे लिखेलक। मुदा लगले मन आगू बढ़ि अपन तीन दिनक गाम-बास दिस बढ़ल। एका-एकी पचासोसँ ऊपर लोकसँ विचारक समुचित उत्तर पाबए चाहै छी, मुदा कहाँ भेटि रहल अछि। राँइ-बाँइ जवाब दैत अन्‍तमे सभ यएह कहै छथि जे तोरा मनकेँ महेन्‍द्रेटा मना सकैए। फेर उलटि कऽ मन घुमलै अपन लोअर स्‍कूल दिस। शुरूहेसँ  नीक विद्यार्थी रहलौं, शिक्षको परिवारेमे रहै छला, दिन-राति स्‍कूलसँ घर धरि पढ़बै छला, इंजीनियर बनलौं, हमहींटा नै बनलौं तीनू भाँइ नीक जगहपर पहुँचल छी। तइ बीचक विवाद अछि। विवादो तँ विवादे छी। केतौ विचारसँ विचारि हल कएल जाइए, तँ केतौ कपार फोड़ाैलो पाछू बे-हले रहैए। तहूमे अपना तँ आरो साँप-छुछुनरिक पइर भऽ गेल अछि। भैयारीमे जेठ छी, सभ दिन पिता तुल्‍य ओहो (दुनू छोट भाए) सभ बुझैत आबि रहल अछि अपनो अोहने (िपता जकाँ) बेवहार बना निमाहैत एलौं। मुदा अखुनका जे घुरछी, ओझरी तीनू भाँइक बीच सम्‍पतिक अछि ओ जँ विचारसँ नै सोझराएत तँ एक सीढ़ी निच्‍चाँ खसबे करब। माने ई जे पितृ तुल्‍यसँ भातृ तुल्‍य भैयारीक सीढ़ी दियादीमे बदलि जाइ छै। तँए मनक सोगसँ सोगाएल धीरेन्‍द्र। मुदा अनका लग जह-पटार हाथो तँ नहियेँ पसारल जा सकैए, ओ तँ ढंगेसँ पसारल जाएत। घूरक करसी उसका खोंरना महेन्‍द्र रखबो ने केलक आकि मन चनकि गेलै। चनकि ई गेलै जे दरबज्‍जापर धीरेन्‍द्रकेँ बैसा आएल छी, हाथ-पएर धोइक बहाने। तैठाम घूर, खोंरैमे समए लगि गेल। चाहोक बहाना जे बनबए चाहब सेहो की आब ओ जुग-जमाना रहल जे काँच-सूखल जारनिसँ लोहियामे बनत जे कनी बेसी देरीओ लगत, आब तँ तेहेन गैसपर चुल्हि अछि जे केतलीमे दूध-पानि-चाहपत्ती दियौ अा गिलास कि कपमे चीनी दऽ छन्ना लिअ हाथमे, नै लेब तँ दूधे-पानि जरि जाएत। उठि कऽ कलपर पहुँचबो ने कएल छल आकि मनमे उठलै। जुगो पछाति भेटलोपर धीरेन्‍द्र संगी बनि बाजल, दरबज्‍जापर किछु िवचारए आएल अछि, एहना स्‍थितिमे अपन केहेन स्‍वरूप हेबा चाही। ओना संगी, भैयारी, दोस्‍ती, मित्रताक मिलल-जुलल प्रयोग होइए जे सभ जनैए मुदा सबहक अपन-अपन जगह छै। की एकरा नकारि सकै छी जे एके समाजक दुनू गोटे छी? तहूमे गामक स्‍कूलसँ साल भरि कौलेजोमे संगे बितेलौं, जबारी भोज, आकि सौजनिया आन गामक संगे-संग गामक सराध-बिआहक भोज एक सत्तरिमे बैसि कऽ खेनौं छी आ खाइओ सकै छी। तैठाम तँ विचारणीय विचार तँ अछिए जे जोलहाक बनौल वस्‍त्र जकाँ केतौ सूते ने कहीं घुरछी लगा गिरह बना दिअए! मुदा लगले मन उड़ि कऽ आगू बढ़ि गेलै। बढ़ि ई गेलै जे समुद्र जकाँ संगीओ, भैयारीओ, दोसो-महिम आ सरो-समाज अछिए। चाहक संगी, पानक संगी, गपक संगी, काजक संगी, यात्राक संगी...। ने जानि केते रंग-बिरंगक संगी होइए। तहिना भैयारीओ अछि। सहोदर भाए, बेमातर भाए, पितियौत भाए, पिसियौत भाए, ममियौत भाए...। ने जानि केते रंगक अछि। तहिना ने दोसो-महिम आ सरो-समाज अछि। तखनि तँ भेल जे ओ एक बेर संगी कहलक हम हजार बेर संगी कहबै। संगीओ तँ संगीए भेल, एक कल्‍प लोकक भेल तँ दोसर भाव लोकक, तेसर अभाव लोकक भेल तँ चारिम विचार लोकक आ तेतबे किए! तखनि? तखनि तँ यएह ने जे पुरबा-पछबा ने रेड़ दिअए। जँ अपने रेड़ैत रस्‍ता नै चलब तँ केतौ आंेघरा जाएब। तहूमे बिनु देखैत हवा धरतीसँ अकास धरि घेरने अछि। हाँइ-हाँइ कऽ कलपर हाथ-पएर धोइ महेन्‍द्र दरबज्‍जापर पहुँचबे कएल आकि दस बर्खक मझिली पोती चाह नेने सेहो पहुँचलनि। थारीमे सँ गिलास उठा महेन्‍द्र धीरेन्‍द्रक हाथमे देलनि। हाथमे चाह तँ धीरेन्‍द्र पकड़ि लेलनि, मुदा मनमे ई नै उठलनि जे दस बर्खक बच्‍चिया कियो आन भेल, जँ दुनू गोरेकेँ हाथमे दैत तँ बराबरीक विचार तँ आबिए जाइत। मुदा तँए कि धीरेन्‍द्रो चुकल? नै, नै चुकल। दुनूक अपन-अपन तीर-कमान, गुल्‍ली-गुलेती। जहिना महेन्‍द्र  धीरेन्‍द्रक विचार पकड़ि लेलक तहिना अपना विचारे धीरेन्‍द्रो अपन विचार पकड़ने। पकड़ने ई जे लोअरे स्‍कूलसँ सभ तरहेँ महेन्‍द्रसँ बीस रहलौं। जेहने पढ़ैमे बीस, तेहने पढ़ैक बेवस्‍था बीस, किए कहियो किताबक ऊपर चढ़ि चारू दिस नजरि खिड़ा किताब लेल कानए पड़ैत। गामक जेठ-रैयतिक परिवार। नोकर-चाकर परहक जिनगी।
एक घोंट चाह पीविते महेन्‍द्र, ओना एका-एकी धीरेन्‍द्रक तेसर घोँट छल, बाजल-
संगी चाह केहेन बनल, हमर परिवार तँ गमैया रहल, तहूमे परिवारमे चाह हाले-सालमे आएल अछि। पोतीकेँ अखनि नीक जकाँ बनौलो ने होइ छै अभियास नहियेँ जकाँ छै।
महेन्‍द्रक विनीत विचार सुनि धीरेन्‍द्र फौर्मेल्‍टी निमाहैत बाजल-
बड़ सुनर! बड़ सुनर चाह अछि!!”
मुदा जिनगीक खान-पान सेहो तँ मनमे एकटा सीमा बान्‍हिए लइए। जे एक-रंगाह स्‍तरेटा मे सम्‍भव छै। जँ कम स्‍तरक परिवार देखौंस करए लगत तँ परिवार दिशाहीन हुअ लगतै। चाह सठलो ने छल आकि धीरेन्‍द्रकेँ महेन्‍द्र पुछलकनि-
संगी, हम तँ चाहक बाद पान खाइ छी, अहाँ की खाइ छी?”
महेन्‍द्रक आग्रह सुनि धीरेन्‍द्रक मनमे उठल जे खाइ छी से जँ मुहसँ निकलि जाए जे ऐठाम उपलब्‍ध नै होइ, तखनि तँ घरक महतपर पड़त, मुदा तैसंग अपनो परीछा तँ भाइए जाएत, तेतबे नै ओइसँ दुनू परिवारक दूरी सेहो बढ़त। तरे-तर धीरेन्‍द्रक मन पसिज गेल, पसिझिते बाजल-
भाय, मन अछि की नै जे अहूँकेँ पिताजी अा हमरो पिताजी एक्के दिन स्‍कूलमे नाआंे लिखौने रहथि।
धीरेन्‍द्रक स्‍मृतिक संग भाषा सुनि महेन्‍द्रोक मन हलचलाएल। हलचलेबो केना ने करैत, बाल-स्‍मृति भेल! तहूमे डायरी मेन्‍टेन नै करै छी। सेहो तँ जखनि खर्चासँ बेसी आमद फेकए लगैत तखनि ने डायरीक खगतो होइत, जनम, मुड़न, बिआह, दुरागमन किए लोक डायरीमे लिखत, ओ तँ विधातेक डायरीमे छन्‍हि। किछु मन पाड़ैत महेन्‍द्र बाजल-
भाय, कनी ठेकना कऽ कहब से, कनी-मनी मन अछि, मुदा बीचमे कटारि जकाँ भऽ जाइए।
महेन्‍द्र जे विचारि बाजल हुअए, मुदा विचारक दुनियाँक भारी प्रश्न तँ उठिए गेल। उठि ई गेल जे स्‍कूलमे पिता एक्के दिन, दुनू गोटेकेँ दाखिल करौलकनि, मुदा विद्यालयमे दुनूक बीच केते दूरी बनल आ केते लगीच आएल?
धीरेन्‍द्रक सम्‍पन्न परिवार, दियादो-वाद तहिना, मुदा जेहेन परिवारक महेन्‍द्र छल, ओ छेहा श्रमजीवी किसानक परिवार। श्रमजीवी किसान ओ भेला जे अपन नियमित समए किसानी जिनगीमे लगबैत। अतिरिक्‍त काज भेलापर अतिरिक्‍त उपजो-वाड़ी बढ़ैए आ अतिरिक्‍त लोकक खगतो बढ़ै छै। मुदा अपनाकेँ आगू बढ़ैसँ पहिने रोकि महेन्‍द्रक मनमे उठल जे जरूर धीरेन्‍द्र किछु बजता। ओ की बजता अही गुमा-गुमीमे महेन्‍द्रक बोल बाधित भऽ गेल। स्‍कूलमे संगे नाआंे लिखेलौं, सभ लिखबैए तइसँ सभ संगीए थोड़े होइए? संगी तँ वएह ने हएत जे संगे-संग एकठाम बैसि गुरुजीक विचार सुनि अपनोमे विचारि एक मत बनाएब, से तँ कहियो ने भेल। जैठाम धीरेन्‍द्रक घरमे किताबक अलमारी भरल, तैठाम महेन्‍द्रक दरबज्‍जाक ओसारक खुट्टीमे गीता, रामायण ललका कपड़ामे बान्‍हि ओइ आशासँ टाँगल जे हमरो घरमे घर्म-ग्रन्‍थ अछि। मिथिलांचलक मिथि-मालिन किसान परिवार ओ परिवार रहल अछि जैठाम अतिथि-अभ्‍यागतकेँ ओकातिनुसार सुआगत-सत्‍कार खेबेटा-ले नै, जिनगीक क्रिया-कलापकेँ सेहो मथि-मथि एक-दाेसरक विचारकेँ अनुकूल बनबए लेल सतति अग्रसर रहैत छल। बाढ़ि आएल आकि रौदी भेल, एक संग एक गामेक नै एक इलाकाकेँ विपति पड़ैत, तैठाम तँ ई ने विचार कएल जाए जइसँ दुनूक नीक समाधान होएत। जइसँ समए पबिते बाढ़ि-रौदीक काेनो झटका-झुटकी शेष नै रहैत। गाछ-बिरिछ जँ खसबो करैत तँ नबका लगा पोसि-पालि फड़ै जोकर बनौल जाइत। अपन दस पीढ़ीक इतिहास[2] एक-दोसरसँ महेन्‍द्र पबैत आएल छल। केना केते मेहनतिसँ खेत कीनल गेल आ धुआँ जकाँ हवामे उड़िया गेल, फेर केना भेल आ केना गेल। दैवी प्रकोपसँ बेसी दानवी प्रकोप किसानकेँ झेलए पड़लै। मुदा लगले मनमे उठलै जे अनेरे खनदानी थीसिसमे ओझरा गेलौं। जइ दिन पिताजी दुनियाँ छोड़लनि पाँच बीघा जमीनबला परिवार देने गेला। ओही पाँच बीघाक सीमामे गामक सम्‍पन्न परिवार बनौने छला। जोतसिम जमीनक संग गाछी-कलम, वास-अगवास सभ किछु। दरबज्‍जापर गुमा-गुमी देखि अगुरवारे महेन्‍द्र बाजल-
भाय, गामेक स्‍कूल किए मन पाड़ै छी, हाइ स्‍कूल आ कौलेज किए बिसरै छी। पढ़ला-लिखला पछाति ने अहाँ गाम छोड़लौं?”
सह पबैत धीरेन्‍द्र बाजल-
जहिना सभ बात तोरा मन छह तहिना ने हमरो अछिए।
धीरेन्‍द्रक सहटैत विचार देखि महेन्‍द्र बाजल-
भाय, तूँ साइंस पढ़लह, हम हायर सेकेण्‍ड्री तक एवरी-डे-साइंस[3] पढ़लौं, सएह ने, तँए कि संगी नै भेलौं।
संगीक सह पबैत धीरेन्‍द्र बाजल-
भाय, परिवारमे एहेन मारूख स्‍थिति ठाढ़ भऽ गेल अछि जे किछु केने किछु ने बनैए।
जिज्ञासु होइत महेन्‍द्र बाजल-
से की! से की भाय?”
धीरेन्‍द्र बाजल-
भाय, चिक्कारी-चौकारी बहुत भेँट भेल अछि। गामो तँ एहने सबहक छिऐ। मुदा मननुकूल समाधान केना हएत, सएह नै बूझि पाबि रहल छी।
धीरेन्‍द्रक विचारमे महेन्‍द्रकेँ किछु बुझैक जिज्ञासा बढ़िते मनमे उठलै। उठिते गाछक जड़िक लगल गराड़-पिल्‍लूकेँ जहिना कोनो खोंरनीसँ खोरि निकालल जाइए तहिना खोंरनी चलबैत बाजल-
भाय, एना झाँपल-तोपल बातसँ काज नै चलत।
महेन्‍द्रक प्रश्न सुनि धीरेन्‍द्रक मन चोट खएल साँप जकाँ नांगरि पटकए लगल। परिवारक बात छी, केना दोसरकेँ कहब जे भाए-भैयारीमे सामंजस्‍य (समान जश, साम्‍य जश) अपना बुते नै होइए। कहू जे तीनू भाँइ, ऊपरा-ऊपरी छी। जहिना पढ़ल-लिखल तहिना पद-पतिष्‍ठामे। तखनि जे परिवारक ओझरी नै सुलझि रहल अछि! धीरेन्‍द्रक मन ओझरा गेल। आगू किछु बजैक फुड़बे ने करै। धीरेन्‍द्रकेँ चुपी साधल देखि महेन्‍द्रक मन महकि गेल। महकि ई गेल जे भाय, पढ़ल-लिखलकेँ इशारा काफी। अपने ने बी.ए. पास करि कऽ खेती-पथारीमे लगने स्‍कूल-कौलेजक बात बिसरि गेलौं, मुदा धीरेन्‍द्र  तँ से नै रहल। ओ तँ सभ दिन कागजेक कीड़ा बनल रहल। तेहेन ठाम लिखतन-बखतनक भेद तँ अछि। तइसँ नीक हएत जे पाँचो आंेगरीसँ इशारा कऽ दिऐ, जे आरो ओझरा जाएत। जे से चाहे तँ अपने अगिला समए माङ्गत, नै तँ अपन पनचैती अपने करत। जँ लोक अपन पनचैती अपने करत ई तँ घीओसँ चिक्कन हएत। मुदा से हएत केना? बाजल-
धीरेन्‍द्र भाय, खेत-पथार जमीन-जाल छी। अनेरे सब ओइमे अोझरा जाइए। खेतेक बात सुनि लिअ। गाम-गामक माटि भिन्न-भिन्न अछि, गाम-गामक नै, एक्के गाममे सेहो तेहनो अछि आ एक-रंगाहो अछि। ई तँ भेल मािट। आब चलू माटिक उर्वरा शक्‍तिक पाछू- उस्‍सर आ बालु, सभसँ गेल गुजरल अछि, मुदा तँए कि ओहो आँखि नै देखौत? एतबो तँ बजबे करत जे केते प्रतिशत तागत अधिक अछि आ केते प्रतिशत कम अछि। बेसी उस्‍सर हएब तँ सज्‍जी उपजत, तइसँ कम हएत तँ कुश उपजत, तहूसँ कम हएत तँ मरूआ-कुरथी उपजत, नै जे तहूसँ कम हएत तँ धारक कातक खेत जकाँ दोसर माटियो पचा कऽ अपन बना लेत। जहिना डोह-डाबर, नदी-नालाक ठेकान नै तहिना ने माटियोक अछि। पानिक सोहे-सोहे धनीक जकाँ घराड़ी दफना लइए। तहिना तँ बालुओ अछि, ओकरो खचरपनी कम छै, एक दिस जहाँ कहिऔ जे हाथी पिआसल, घोड़ा पिआसल, दल-दल पानि। आकि दलदला कऽ थभैक जाएत, जहिना लिखैकाल कलम बोकरि ढबैक जाएत, तँ दोसर दिस पानिक बदला तेल निकालैए। ओहो केना अपने हरदा बाजि देत जे कियो मरूभूमि कहतै? भाय, दुनियाँ अनन्‍त छै। अनेरे मनमे सोग-पीड़ा रखने छह, निकालि कऽ फेकि दहक।  
महेन्‍द्रक बात सुनि धीरेन्‍द्रक हबटूटू मन हूबगर भेल। हूबगर होइते हूबा करैत बाजल-
भाय, पचास-पचपनक उमेर भऽ गेल, तोरो भाइए गेल हेतह, केते दिन जीबे करब। मुदा तेतबो दिन बाप-दादाक घराड़ी नै बँचा सकब, मान-समान नै बँचा सकब, तेकरे दुख बुझह आकि सोग!”
धीरेन्‍द्रक पसिझैत हृदए देखि महेन्‍द्रक मन मसैक गेल। मसैकिते तोष-भरोस दैत बाजल- 
भाय, की ओझरी भैयारीमे भऽ गेल अछि से सोझरा कऽ बाजू।
धीरेन्‍द्र-
अहाँकेँ बुझले अछि जे अपने सरकारमे इंजीनियर छी, सुरेन्‍द्र बैंकमे छथि आ छोट भाए अन्‍तर्राष्‍ट्रीय एजेंसीमे छथि।
धीरेन्‍द्रक विचारमे सहमति जतबैत महेन्‍द्र बाजल-
हँ से तँ छथिए। भगवान कोन कमी देने छथि। अखनि तँ अहीं सबहक दिन-दुनियाँ जागल अछि।
मलसारि भरल महेन्‍द्रक विचार नीक जकाँ धीरेन्‍द्र नै बूझि पेला, महेन्‍द्रक झाँपल विचार रहनि जे राम नामक लूट अछि लूटि सके से लूटए आ दोसर दिस तेकरे ओझरी! खेतोक की अधिकारेटा ओझरी होइ छै, ओकरा तँ अपने जोत-कोर करए पड़ै छै, फसिल लगौल जाइ छै। जखनेसँ फसिल धरतीसँ उठै छै आकि खढ़-पात दाबए लगै छै। कीड़ी-फतींगी भिन्न अबै छै, तैपर सँ भेल जअ मे पाथरो खसिते छै।
धीरेन्‍द्र-
भाय, की दिन-दुनियाँ जागल रहत, ओ ते ने जागल अछि आ ने सूतल। जँ सुतलो रहैत तैयो निचेन रहितौं, सेहो ने अछि। ने घरक आ ने घाटक।
महेन्‍द्रक सिनेह उमड़ि पड़ल, बाजल-
भाय, एना नै काज चलत, तीनू भाँइक जीवन देखए पड़त। जेहेन लोकक जीवन होइ छै तेहने विचार ओकरा मनमे अबै छै। तँए थामि-थामि मनक बात बाजू।
हृदए खोलि धीरेन्‍द्र बाजल-
भाय, मनक बात कहै छी नोकरी करए बाहर गेलौं मुदा सेवा- निवरित भेला पछाति गामेमे रहैक विचार अछि।
बिच्‍चेमे लोकैत महेन्‍द्र बाजल-
ऐसँ नीक विचार की हएत! अाइए नै अदौसँ मिथिलाक लोक ढाका-बंगाल तक कमाइ-खटाइले जाइ छला, तँए कि हुनका सबहक परिवार बिलटि गेल? अखनो ठाढ़ अछि!”
अपन सह पबैत सौनक मेघ जकाँ धीरेन्‍द्रक मन उमड़ि घनघोर बरिसए लगल-
भाय, मझिला भाए- सुरेन्‍द्रक विचार अछि जे अपन हिस्‍सा  सभटा जमीन बेचि बैंकमे जमा कऽ लेब। तहिना दोसरो भाइयक विचार सएह छै, मुम्‍बैमे फ्लैट कीनब तँए गामक जमीन बेचि लेब।
महेन्‍द्र-
अपन हिस्‍सा कियो किछु करता, अहाँक हिस्‍सा कियो थोड़े लेता?”
धीरेन्‍द्र-
तेतबे बात रहैत तँ कहितियनि जे जेते कुल्‍लम जमीन अछि, भाग लगा बेचि लिअ, मुदा तीन-तसिया सभ तेहेन भऽ गेल अछि जे घराड़ीए पर डाक करए चाहैए। आब कहू जे अखनि अपने तँ पान-सात बरख गाम नहियेँ आएब, तेकर पछातिए आएब। मुदा जे तीन-तसिया डाक करत ओ बहरबैया बूझि घराड़ीक नाके-कान नै काटि लेत?”
महेन्‍द्र-
भाय, बहुत नमहर घुरछी अछि। एक दिने नै फरिछाएत कल्हुका समए फेर रखू।
बजैक वेगमे महेन्‍द्र तँ तत्काल टारि देलक मुदा काल्हि तँ फेर वएह चर्च हएत। सम्‍पति सम्‍पति छी, मुदा ओकरो अपन विभिन्न रूप छै। चालबाजक तँ चालि चलिते अछि। ओना ओहो अपना गतिए ओइ संस्‍कारमे अाबि गेल अछि जे खेत-पथार इज्‍जत-प्रतिष्‍ठा छी। केना इज्‍जत बूझल गेल, ई भिन्न बात। आइ ओइ मोड़पर पुश्‍तैनी सम्‍पति[4] परिवारक बीच पहुँच गेल अछि जेकरा नव सिरा चाही। जँ से नै भेल तँ एते भँसिया जाएत जे बेकाबू भऽ जाएत। जहिना चुल्हि परहक दूधकेँ खुदियाइते जिनगी बदलए लगै छै, भलहिं ओहने छेना किए ने भऽ जाए जेकर रसगुल्‍लो ने बनत, तहिना चाउर टुटने खुदियाइए, जेकर फल वेचाराकेँ भोगए पड़ै छै जे भातक जगह छोड़ि रोटीक जगह पकड़ै छै तहिना ने जिनगीओ अछि।
¦२८९४¦
१७ नवम्‍बर २०१४



[1] धीरेन्‍द्र
[2] जिनगीमे घटित मुखौटी इतिहास
[3] सामान्‍य विज्ञान
[4] जमीन-जयदाद

ठकुआएल भुसवा

ठकुआएल भुसवा







छठि-परमेशरीक घाटपर सुरूजक आगमन भऽ गेल। घाटपर छिड़ियाएल बाल-बोधसँ लऽ कऽ सियान-चेतन तकक मनमे पावनिक पाबन परसाद पेबाक आशा जगल। जगबो केना ने करैत, एक तँ सरदीक सुरूजक अर्घ्‍य दोसर कुश-उपारसँ लऽ कऽ जल-अर्पण मतर-पितर भोजन दानक संग नवमी-दशमी, कोजगरा-दियारी, भरदुतियाक पतियानीक सजल छठि-परमेशरीक सतमीक सुरूजक दर्शन ने छी। एते दिन कुश अर्पणक प्रक्रिया छल मुदा आब कुशियारक प्रक्रिया ने चलत। पोखरिक चारू भीरक गाछ-बिरिछ, तलावक जलक जाठिक संग जलकर ऊपर चमचमाइत सुरूजक चमकी पसरि गेल। पसरि गेल घाटपर सजल छठिक डाली ऊपर। एकसँ एकैस सूप, डगरा, डगरी, कोनियाँ, सुपती सजल घाटपर ठकुआएल भुसवा मने-मन छगुन्‍तामे पड़ल अछि। कनकनाइत मन पटपटेलै-
कहू, एहेन हेबा चाही?”
अपने फुड़ने भुसवा बड़बड़ाइत, मुदा कियो डालमे सुनिनिहार नै। ओना रंग-रंगक वस्‍तुसँ सजल डाल। जहिना बरसा-जाड़क बीच संगमक चान-सुरूज शीतसँ शीताएल तहिना घाटपर पसरल सूप, डगरा आ कोनियाँ-सुपती सेहो। भिनसुरका अर्घ्‍यक सुरूज जकाँ उगैत आदी, हरदी, अरूआ, खमहरूआ, सुथनी माटिक तरक, माटिक ऊपर पसरल खीरा, सजमनि, नारिकेल, केरा इत्‍यादि, तहिना धरतीसँ अकास धरिक सजल आगन्‍तु   कुशियारक संग भुसवा-ठकुआ पँचमुखी दीपक आगू। मुदा छठिक सँझुका अर्घ्‍य जकाँ ठकुआक गहुमक संग तेलक सेरसोकेँ तँ जेबाक सेहो छइहे। तेतबे किए अँकुरैत अँकुरी तँ ऊपरेसँ अपन बलिदान करैले तन-फन सेहो करिते अछि। कुशियारो कौल्हमे पेराइले तैयारे अछि। जँ से नै रहत तँ मिसरी केना बनत। असगरे भुसवा बुदबुदाएल मुदा कियो ने कान देलक आ ने बेथा बुझलक। फेर ठोर पटपटबैत भुसवाक मुहसँ निकलल-
कहू! जे आगूक जनमल ठकुआ छी, तखनि केहेन कड़ुआएल बात छै जे जहिना सभ दिन गुड़कैत रहलेँ तहिना गुड़कैत रहमेँ। हमरा जकाँ तोरा आसन-बासन हेतौ।
बुदबुदाइक वेगमे भुसवा बुदबुदा तँ गेल मुदा लगले मन घुमलै। घुमिते उठलै, मनोक तँ यएह ने चालि छै, जखनि खुशी रहैए तखनि नचबो करैए, गेबो करैए। नाचियो-नाचि आ गाबियो-गाबि दुनियोँकेँ देखबैए आ दुनियोँकेँ देखैए। मुदा वएह मन जखनि कोनो बाएबे दुबराए लगैए तखनि अपनो दुबराइत रहैए आ दोसरोकेँ दुबरबिते छै। भरिसक तहिना ठकुआकेँ भऽ गेलै। आकि धन-बुबकी पकड़ि लेलकै। मुदा जहिना बिनु गाड़लो बाँसक खुट्टाकेँ जँ दुनू भाग[1] डोर पकड़ि खींचल जाइ छै तखनि असथिरसँ ठाढ़ भऽ जाइ छै। असथिर होइत अपन पुरखा दिस तकलक तँ बूझि पड़लै जे हुनकर सिरजनमे केतौ भेद-कुभेद नै भेल छन्‍हि। पृथ्वी जकाँ गोल-मोल बना गुड़काउ बनौने छथि किए केकरो ऊपर अपन पसरल भार देब, तँए कि ओकरा[2]सँ कम भारी छी। ने नै दौड़ कऽ चलल हएत, नहियोँ तँ नहियेँ चलल हएत। नै डेगे-डेग मुदा गुड़कुनियाँ कटैत नै चलल हएत से केकरो कहने थोड़े हेतै, एते तँ अपनो अपन परिचए अछिए। जखनि बिनु पएरे ठाढ़ होइते छी, गुड़कैत चलिते छी तखनि किए केकरो आँखि गुरेड़ब अाँखि दबि दाबि लेब। मनक उष्‍मा  जगलै। आगू तकलक तँ केतौ किछु ने नजरि पड़लै। जखनि कि फूल-पात, तीमन-तरकारीसँ लऽ कऽ फल-फलहरी धरिसँ सजल डाली अछि। होइतो अहिना छै जे हजारो-लाखोक भीड़मे जहिना प्रेमी अपन प्रेमिका छोड़ि किछु ने देखैए तहिना भुसवाकेँ ठकुआ छोड़ि किछु ने नजरिपर एलै। खसल आँखि जहिना उठि कऽ आगू देखए चाहैए तहिना भुसवाक नजरि सेहो उठल। उठिते हिया कऽ ठकुआ दिस तकलक। तकिते देखलक जे जहिना नजरि दाबि ठकुआ बाजल छल तहिना किछु आगूओ बाजए चाहैए। जखनि आगूओ बजैले मन लुसफुसाइते छै तखनि किए ने कनीकाल बिलमि देखिए लिऐ जे की बजैए। जेहेन मुँह तेहेन बोल, आकि जेहेन मुँह तेहेन थापर, दुनूक बीच तँ समगम अछिए। जिज्ञासु नजरि भुसवा ठकुआ दिस नजरेलक। अपना ताले बेहाल ठकुआ जे बाल-बोध हुअए आकि चेतन जखने डालीक उत्‍सर्ग हएत तखने पहिल हाथ एम्‍हरे ने बढ़त। ई प्रतिष्‍ठा केकरा छै, से कियो बाँटि लेत। तँए कियो मुँहक बात छीन लेत। केहेन गबदी मारि भुसवा बजै छल, जेना बूझि पड़लै जे कियो सुनबे ने केलक। जेकर असार-पसार एते छै तेकर कान हाथी जकाँ नै तँ बिज्जी जकाँ हेतै। जेना-जेना ठकुआक मनमे भुसवा गुड़कैत रहै तेना-तेना ठकुआक रीश बढ़ल जाइ। रीशसँ रीशिया ठकुआ बाजल-
केतबो बानर जकाँ नांगरि पटैक कऽ रहि गेलेँ कहाँ एको धूर जमीन-जत्‍था अपनो पएर रोपैले भेलौं, जहिना बाप-दादा गुड़कैत एलौ तहिना गुड़कैत रहमेँ।
ठकुआक बात सुनि भुसवा मने-मन कोशाएल, बाजल किछु ने। मनमे उठलै, क्रोधमे किछु बाजब आकि करब, दुनू अनुचित हएत। मुदा लगले फेर भेलै जे एकर माने ई नै ने जे ने किछु बाजी आ ने किछु करी। फेर भेलै जे अखनि तामसमे छी अखनि ने किछु बाजब आ ने करब। जखनि मन असथिर हएत तखनि ठकुआक विदाइक विचार करब। लगले मनमे उठलै, कहू जे केहेन हरामी अछि जे जेते गुरुत्‍व  हमरा अछि तेकर अदहो हेतै कि नै हेतै। मुदा हाथीक सिकड़ी डोलबिते अछि। आब कि काेनो ओ जुग-जमाना रहल जे पौआही भुसवा आ पौआही ठकुआ लोक बनौत। आब तँ ग्रामक हिसाबसँ लोक बनबैए। मुदा ई बुझबे ने करैए जे रोट रोटी कहि देने रोट रोटी भऽ जाइ छै, रोटक अपन सभ किछु छै ओहिना ने घड़ी पावनिक परसाद छी। तेतबे किए...। सबा सेर चिक्कसक ओहन भोज्‍य भक्ष बनौल जाइए जे पावनिक पावन छी। फेर मन बदललै। बदलिते उठलै, जहिना पृथ्‍वी गोल, तहिना सूर्य-चान गोल, तही देखि कऽ ने विधाता हमरो गढ़ि गुड़का धरती दिस ढकेलि देलनि। अनेरे ठकुआक बातकेँ बतंगर बना मनकेँ ओझरौने छी। मुदा जहिना ठकुआ हमरा आँखि देखबैए तहिना तँ अनको देखौतै, एका-एकी आकि एकेबेर देखा तँ सभकेँ सकैए। मुदा से देखेबो केना करत, जेते जगह ठकुआ पकड़ने अछि तइसँ बेसी माटिओ तरक छी तैयो अरूआ तँ पकड़नहि अछि। तहिना सजमैनो आकि नारिकेलो कम छेकने अछि। मुदा अपनो दादा[3] तँ धरतीसँ अकास धरि पकड़नहि अछि, तँए अपन बेथा अपने घर किए ने राखब जे अनेरे चौगामा बान्‍हब। चाउरक संगी विधाता गुड़केँ मिला पठौलखिन तहिना ने ठकुओकेँ गहुमक चिक्कसक संग गुड़ो आ चिकनैओ मिला देलखिन। अइमे ठकुआक अपन गलती नै विधाताक चाकक दोख भेल। तइले अनेरे किए मन मर्दन करब। मुदा चुपचाप सहियो लेब नीक हएत? सहबो तँ लोक ओइ पावनिमे करैए जइमे फल-फलहरी पबैए! तखनि? तखनि यएह नीक जे डालीक सभकेँ अनेरे किए बुझारतमे बरदेबै, अपन वंशक कुशियार भेला, किए ने ओहए ठकुओकेँ अा हमरो बुझा-सुझा कऽ मेल-मिलान करा देता। कोनो एक दिनक नै ने छी, जे झगड़ा करि कऽ चाहे तँ गामे छोड़ि देब आकि गामे छोड़ा देबै। तइसँ तँ पावनियेक नोकसान हएत। साले-साल संग मिलि रहैक अछि, जखनि केकरो कमाएल कियो ने खाइए तखनि किए केकरो कियो आँखि बरदास करत। किए ने अपना आँखिए अपन रस्‍ता देखैत डेग उठौत। नीक सएह हएत, कुशियारो दादा की कम बुझनुक छथि, हुनका कि नै बुझल छन्‍हि जे केना नेना-भुटकाक स्‍कूलमे, आ तिला संक्रान्‍तिमे चाउरक संग बँटेला। जखनि पिसाएलो ने छेलौं, तहियेसँ संगी छथि। आब तँ सहजे तेना मिलि गेल छथि जे विलगाएबो कठिन अछि। फेर ललका चीनी बनैत, गुड़क सुआद कम करैत उजरा चीनीबनि, रंग-रंगक मिठाइ बनैत मिसरी गोला बनि देवालय पहुँच गेला, आब तँ सहजे जुग बदलल, जमाना बदलल, जइसँ वेचारा मिसरीओ गोलासँ टूटि मोटका चीनी-दाना जकाँ सुपारी-टुक भऽ पान-फूल भऽ गेला। मुदा तँए कि छठि-परमेशरीक घाटपर ओधिक िसर सहित फुनगीक गोभ धरि धाट नै धड़ै छथि? धड़िते छथि। अखनो गंगा-घाटमे साइयो बोझ कुशियार तँ छठिक घाट छेकिते अछि। ई दीगर भेल जे गुड़ बनि जखनि ठकुआ संग रहए लगला तखनि फेँट-फाँट शुरू भऽ गेल। कियो गुड़ घाउ दुआरे गुड़ छोड़लनि तँ कियो डोमीन कहि-कहि छोड़ि उजरा चीनीसँ चिनराबए लगला। मुदा तँए कि मिसरीक उसरन भऽ गेल, भलहिं कतरा सुपारी जकाँ किए ने बनि गेल हथु।
छठि पावनिक प्रेमी मनमोहन कौलेजक छुट्टी पेब गाम आएल। ओना गाम ई अजमा कऽ आएल जे नीक जकाँ छठिक सँझुका-भोरूका अर्घ्‍य  दानक दर्शन करब। धड़फड़ीमे एक दिन पहिने आबि खरना दिनक रबाइस-फटाकाक अवाज सुनि मन बहमि गेलै। मुदा दिल्‍लीक लड्डू जकाँ ने छोड़ने बनत आ ने खेने बनत। जेते पोखरि-झाँखरि चिक्कन करै छी तइसँ बेसी हवामे भोक्कन सेहो करिते छी। छठिक अर्घ्‍य उठैसँ घण्‍टा   भरि पहिने मनमोहन घाटपर उपस्‍थिति दर्ज करेबा लेल तैयार भऽ दरबज्‍जापर बैसल। रबाइस-फटाकाक अवाजसँ मन दलमलित भऽ गेलै, आँखि बन्न कऽ साहोर-साहोर करए लगल। लोको तँ लोके छी एकटा बीत भरिक ठण्‍का डरे तँ गाम-गाम लोक साहोर-साहोर करैए आ जैठाम ठण्‍केक बाढ़ि आबि रहल छै तैठाम जँ ओछाइन धएल बुढ़-बुढ़ानुस पावनि बिगाड़िए देता तँ तइमे हुनकर कोन दोख। मुदा तैयो गारि-फज्‍झति तँ सुनबे करता जे ढंश कऽ देलक। ओही अवाजमे मनमोहन अकानए लगल जे अखनि तक कोनो घाटक ढोलक अवाज कहाँ कहै छै जे ठकर-ठकर ठकुआ द दे। ओ तँ अर्घ्‍य दानसँ पहर भरि पहिने अवाज दिअ लगै छल। ओह, भरिसक अखनि देरी अछि। मने-मन विचारिते रहए कि अंग्रेजी बाजाक अवाज एकटा घाट दिससँ उठल। ओना जेबिए-जेबी मोबाइलोक उठिते छल। ढोलियाक केतौ दरस नै पाबि मन आगू बढ़लै, बढ़िते उठलै छठि-सतमीक सुरूजक अर्घ्‍य। आइ डुमैत सुरूजक अर्घ्‍य  दान हएत आ काल्हि उगैत सुरूजक। मुदा की सतमीए सुरूजक अर्घ्‍य   छठिक साँझमे पड़ल आकि एक दिन पहिलुका? छठि-सतमीक बीचक बोनमे मनमोहनक मन उमड़ए-घुमड़ए लगल। उमड़ैत-घुमड़ैत एकटा गाछ तर पहुँचिते देखलक जे अदौसँ मिथिलाक चलनि रहल जे दरबज्‍जापर आएल पाहुनकेँ अबितो आ जाइतो मधुर मुस्‍कानसँ काजक महिमाक संग नमस्‍कार-पाती होइत अाबि रहल अछि। जनमो सोहर मरनो साेहर। मुदा पहिने एबा काल अबैक सोहर होइ छै पछाति जेबाक कालक। तैसंग ईहो तँ अछिए जे छठियेक सतमी होइ छै। भूते-वीर्तमान आ वर्तमाने भविस। विचारमे डुमल मनमोहनक भक्क तखनि खुजल जखनि घाटसँ घुमल डाली आँगन पहुँच गेल। सेहो कि ओहिना खुजलै? नै! जखनि अँगनाक धिया-पुता ठकुआ-केरा ले काँइ-किच्‍चरि करए लगल। भक्क टुटिते हरेलहा लोक जकाँ मनमोहन उठि कऽ लगले आँगन दिस जाए तँ लगले दरबज्‍जापर आबए, बाजए किछु ने। अपन हारल के बजैए जे मनमोहन बाजत। मुदा मनमे कचोट तँ उठिते रहै जे केतए एलौं तँ केतौ ने। मुइला पछाति जहिना लोक बुझैए। से जहिएसँ ज्ञान-परान भेल तहिएसँ मनमे छल जे छठि-परमेशरीक घाटक अर्घ्‍यक दर्शन करब। फेर मनमे भेलै जे दुनू साँझक अर्घ्‍यक अपन-अपन महत आ महिमा छै। कूर चढ़ल चौमुखी, पँचमुखी दीपक रोशनीक रोसनाइ जेहेन छठिक घाटक हएत तेहेन सतमी-घाटक थोड़े हएत। कियो भरि दिन हेराएल साँझमे पहुँच गृह विश्राम करैए तँ कियो भरि राति हेरा भोरमे पहुँच गृह विश्राम करैए। भेल तँ एके स्‍वर, एकटा भेल भरि राति आ एकटा भेल भरि दिन। तैसंग पहुँचबो एके भेल, मुदा भेल संधिस्‍थलपर। हारि-जीतक बीच संधियो तँ दोहरी अछिए, एकटा अछि भिनसुरका आ दोसर अछि सँझुका। ओना भलहिं किछु काज भिनसुरकामे बरजित अछि तँ किछु सँझुकोमे तँ अछिए। तँए एकनाम संधिभूमि रहितो दुनू एक्के रंग घटकेँ घटवार बना घाट थोड़े पार करत। एकटा असीम इजोत तँ दोसर असीम अन्‍हार। अन्‍हार-इजोतक बीच अबिते मनमोहनक मन हटैक गेल। ने आगू डेग उठै अाने पाछू। एक दिस अकास ठेकल पहाड़ तँ दोसर दिस पताल टुटल समुद्रमे वौअए लगल। मुदा मनुखो तँ मनुखे छी जेहने ओकरा-ले पहाड़ तेहने पहाड़ो आ पहाड़क किनछरिक बोनो। तहिना समतल भूमिओ आ डोहो-डावरक संग पोखरिओ-झील, सरोवर, नाला, नाली, मुइल-जीत धार-धुरक संग पताल टुटल समुद्रो! मनमोहनक मन ठमकि गेल। ठमकिते मन ठनकलै। ठनकलै ई जे औझुका नीक-बेजए केलहाक काजो तँ भुताइए जाएत, मुदा जाइके तँ अछि काल्हि दिस। फेर मन भोथियेलै। भोथियेलै ई जे हमहींटा एहेन भोथियेनिहार छी कि आरो लोक अछि? ओना केकरो अपन दिन-रातिक काज-भार थोपल छै मुदा भोथियेलहोक बोन तँ छोट-छीन नहियेँ अछि। भोथियाएबो कि एक्के रंगक अछि। एक रंगक रहैत तँ मौसमक अनुकूल ओ उपटियो सकै छल माने ई जे अपना ऐठाम मालदह आम साइवेरियामे थोड़े हएत, मुदा एकर माने ई नै ने जे साइवेरियाबलाकेँ आम सन फल नै भेटैत होइ। मनमोहनक मन फेर भटकल। भटकलेपर ने कियो हेराइतो आ भोथियाइतो अछि। फेर भेलै जे अनेरे दुनियाँ दिस तकै छी। अपन घर इजोते ने, आनक इजोत करब। ई बात जरूर जे बोनमे हमरा सन बहुत भोथियाएल हेराएल अछि, जखने डेग उठाएब आकि भोथियेलहा भेटए लगत। अनेरे तँ दुनू गोरे संगी हएब। जखने संगी हएब तखने दू-दूटा हाथ-पएर, आँखि, कान, नाक भेटत, मुँह ने एकेटा भेटत, तइले की हेतै, बेरा-बेरी दुनू गोरे बाजब। बेरा-बेरीक माने ई थोड़े हएत जे ओ किछु बाजत आ अपने किछु बाजब। काेनो चीजकेँ ओकरो आँखि देखतै, कान सुनतै आ अपनो तँ देखबे-सुनबे करब। ओकरे जड़ि पकड़ि दुनू गोरे गप-सप्‍प करब। जखने दुनू गोरे अपन-अपन विचार व्‍यक्‍त करब तखने ने दुनूकेँ मेदहा भऽ जाएत। फेर मन ठमकलै। ठमकलै ई जे एक गोरे ओहेन होइए जे काजक भीरे ने जाइए, मुदा अपन तँ से नै भेल। कौलेजमे अही[4] निविते छुट्टी भेल, हमरेटा-ले नइ, सभले भेल। मुदा भेटलै तँ ओकरेटा जे छठि-परमेशरीक सँझुका अर्घ्‍यक दर्शन केलक। मुदा हम तँ नियारिते रहि गेलौं, देख नै पेलौं। आखिर एना भेल किए? उपासककेँ अपन उपासक संग संकल्‍पो करए पड़ै छै। संकल्‍पे व्रती बनबै छै, जइसँ व्रत उपास करैए। हम तँ ओहन हेरेनिहार भऽ गेलौं जे जखनि हाथमे घड़ी, मोबाइलमे घड़ी, रेडियोमे घड़ी, टाबरक ऊपर घड़ी छल मुदा तखनो समए ससरि गेल आ बूझि नै पेलौं! किछु हएत तँ दीयाक ज्‍योति जे सँझुका घाटकेँ ज्‍योतिर्मय करत ओ भिनसुरका थोड़े करत! करबो केना करत? कोनो वस्‍तुक आनन्‍द ओकरा बेसी भेटै छै जेकरा अभाव छै। मुदा हूसल-बीतल कालपर बेसी अपसोचो करब आकि कानबो-खिजबो करब सेहो तँ बेसी नीक नहियेँ हएत, मुदा घड़ी-पहर देखि कऽ घाटपर पहुँचब अछि, जँ आनक आशा-बाट देखए लगब तँ अपनो आशक-बाट भटैक जाएत। मनमोहन मनमे रोपि लेलक जे समए-पहर देखि भोरमे घाटपर जरूर पहुँचब।
हारि-थाकि मनमोहन अन्‍तिम विचार कऽ लेलक जे नियत समैपर घाटपर पहुँचब अछि, ओना जे पहिने गेनिहार रहत ओ तँ रहबे करत, पछुएलहा ने पाछूकेँ जाएत मुदा अपनेने उजगुजेलहा जकाँ नै ने पहिने पहुँचल रहब, तइसँ की हेतै, समैपर पहुँचला जकाँ सभ कथुक दर्शन तँ हेबे करत।
सुतैबेर रातिमे जखनि मनमोहन सिरमापर मुड़ी रखलक आकि भुक दऽ भोरका काज मनमे उचरि गेलै। उचड़िते ठेकनबए लगल जे तीन बजे भोरमे घाटपर पहुँचब अछि। जाबे पहुँचब नै ताबे कौलेजसँ एलहा फल की भेटत। मुदा तीन बजेमे नीन टुटत? ओ तँ असली सुतै बेर छी! ओही कालमे ने वसन्‍ती राग चलै छै, विराग चलै छै, अनुराग चलै छै, चिराग चलै छै, नै जानि आरो की सभ चलै छै। फेर मन ठमकलै। ठमकलै ई जे अनेरे अखनि मन-मर्दन करब तँ मने उजगुजा जाएत जइसँ नीने ने औत, जँ कनी-मनी भको लगत तँ चहाएल मन चहा-चहा उठत। जखने से भेल तखने आाँखि कड़ुआ जाएत, भोरमे जे घाटपर पहुँचबो करब तँ यएह ने हएत जे कड़ुआएल नजरि नजरा करिया सियाही पकड़ा देत। ओह! तइसँ नीक जे मन मारि अखनि आँखि मूनि ली। अन्नक निशाँ चढ़बे करत, नीन एबे करत। मुदा अधनीनाकेँ कहि देबै जे भाय, तीन बजे घाटपर जाइके अछि, कनी-काल अङ्गोछो-मङ्गोछोमे लगत, तँए अढ़ाइ बजे तूँ हटि जाइहऽ। जान छोड़ि दीहऽ। कौलेजसँ छुट्टी अही दुआरे भेल अछि।
ओना घड़ीओमे आ मोबाइलोमे एलार्म भरि देलक, मुदा अढ़ाइ बजेमे जखनि घड़ीओ आ मोबाइलोमे घड़ी-मिनट बाँकीए रहै आकि नीनियाँ देवी अपने ससरि गेलखिन। ससरिते घड़ीओ बाजल आ मोबाइलो बाजल। एक तँ मनक घड़ी-घण्‍ट दोसर घड़ीक घोल आ तेसर मोबाइलिक घोल। मनसँ मशीन तक अनघोल कऽ उठल। समए पेब मनमोहन फुड़-फुड़ा कऽ उठल। काजक रूटिंग दिस तकलक तँ बूझि पड़लै जे नीन हटला पछाति पहिने लेटरीन जाइ छी, हाथमे ब्रश नेने जीह-दाँत मजैत चारि डेग टहलि अबै छी, तखनि कुर्ड़ा-आचमन कऽ लोटा भरि पानि पीबै छी, चाह पीबै छी, पान खाइ छी, तखनि ने कोनो काज दिस तकै छी। मुदा अाइ तँ काज दिस ताकब नै, दर्शन करब अछि। तँए रूटिंग बदलब जरूरी अछि, दरसनियाँ घाटपर बिना मुँह धोने केना जाएब। लेटरीन समैमे चारि घण्‍टा देरीओ अछिए। सहए केलक। चारि मज्‍जन कऽ मुँह-हाथ धोइसँ निवृत होइत असगरे घाट दिस मनमोहन विदा भेल। दरबज्‍जासँ उतरिते कानमे ढोलक अवाज एलै। ढोल छी आकि ढोलक? जँ ढोल हएत तँ छठिक घाटक हएत नै जँ ढोलकक हएत तँ केतौ नाच-तमाशाक हएत। ओना छठियो घाटपर नाच-तमाशा सेहो होइते अछि। जे दरसनियाँ छल से देखनियाँ भऽ गेल। मुदा जेतए जे भेल से होउ, अनेरे मनकेँ मरूअबै छी। कानक पाछू हाथ रखि देवालय स्‍थानक अवाज अकानलक तँ बूझि पड़लै जे ढोलेक अवाज छी। एक लय एक सूर, अष्‍टयामक राम-धुन जकाँ अछि। ठकर-ठकर ठकुआ दे। ठकुआ मगैए पूरी नै। तहूमे पूरी तँ आरो गजपट भऽ गेल अछि, केतौ चीनियाँ पूरी, तँ केतौ गुड़िया पूरी, तँ केतौ दलिया संग नोनपुरिया बनि गेल अछि, मुदा ठकुआ अखनो अनोना रवि जकाँ नोनसँ परहेज केने अछि। ओ ठकुआ। वएह-वएह पौआही, जे झँप्‍पासँ नापल रहैए। मनमोहनक मन मानि गेलै जे घाटक ढोल बाजि रहल अछि। आकि तही बीच बड़का रबासिक अवाज उठलै। एक-घाट, दू-घाट, पोखरिक चौबगली घाटपर। दूषित घुआँ गाम भरिमे अपन महक पसारि रहल छल। छठिक डाली पसरल परसादक सुगंध नै, बारूदक गंध। मुदा मनमोहनक मनमे रमल नै। रमबो केना करैत, जखनि एक रसक रसिक रसिया रास करत तँ ओ वृन्‍दावन छोड़ि जाएत केतए। जेतए वृन्‍दावनेश्वरी छोड़ि दोसरक बास नै होइ।
घाटपर पहुँचिते मनमोहन महारसँ ससरि पानिक किनछरिमे डाला-डाली सजल देखि सहजि गेल। चौमुखी-पँचमुखी दीप-कूरपर अनहरिया पखक तिरोदसीक चान सन मलिन होइत दीयाकेँ देखि अपनो मन मलिन हुअ लगलै। मुदा पानिक बीच तँ देखि पड़िते रहै। सुपती-कोनियाँ बदलि, पित्तरिबला कोनियाँ घाट पकड़ि रहल अछि, भलहिं अगहनक धानसँ भेँट हुअए आकि नै मुदा सूप-कोनियाँ तँ नीक भाइए गेल अछि, जइसँ जिनगी भरि चलैक आशा तँ अछिए। हाथीओ जेना हहरि गेल। ओ तँ राजा-रजवारकेँ हहरने भरिसक हहरल। मुदा केराक घौड़ आ कुशियारक मन मुस्‍की मारिए रहल अछि। केना ने मुस्‍की मारत, जहियासँ छठि आएल तहियाक संगी दुनू अपन साम्राज्‍य सेहो भकराड़ बनौनहि अछि, तँए दुनूक मन खुशी। जे केरा एक छीमी, एक छीमी करि कऽ कुरबा, कोशियामे परसाएल रहै छल से अपन साम्राज्‍य बढ़ा छीमीक संग सौंसे घौरे पकड़ि लेलक। तहिना कुशियारो अपन गृहवासू जकाँ टोनीक संग अपनो अकास पकड़ने ठाढ़ अछि। तैसंग गुड़ बनि भुसवा-ठकुआ पकड़ि चीनीक खाजा, लड्डू धरि पकड़नहि अछि तँए खुशी अछिए। मुदा भुसवापर नजरि पड़िते देखलक जे रूष्‍ट भेल भुसवा चुपचाप एकवाहि भेल गुड़कि कऽ कतवाहि धेने अछि। मुदा मन तम-तमाइते छै। ओना कुशियारकेँ पंच मानि ठकुआपर पनचैती बैसेबे करत। एक टकसँ मनमोहन भुसवाकेँ देखि अँकुरी सभ दिस नजरि बढ़ौलक तँ बूझि पड़लै जे अपने मोने सभ मगन अछि, कियो केकरोसँ लागि-भागि नै रखने अछि, सभ शरणागतिक अवस्‍थामे पवनियाँ-मनकमना पुरबै पाछू लगल अछि, केकरा एते छुट्टी छै जे गामे-गाम पनचैती केने घुरत। एक दिस बेटीकेँ बापक सम्‍पतिमे हिस्‍सेदारी छै, तँ दोसर दिस सासुरक दहेज बाधित छै! केना ओझरी छूटत। कियो पिता अपना बेटीकेँ जेते अधिक पढ़बै पाछू समए आ पाइ खरच करै छथि तेते ओ नै बुझै छथिन जे दहेजो ओते बेसी दिअ पड़त। जइ जमाएकेँ पढ़ल-लिखल कन्‍या भेटल, तैसंग ओकातिक हिसाबसँ दान-दहेज भेटल, शुरूसँ अन्‍तिम समए-बिआह धरि जेकर सेवा पाछू माता-पिता अपन शक्‍ति लगौलनि तइ बेटी-जमाएसँ माता-पिताकेँ की भेटलनि? लगले मनमोहनक मन हटकल। हटकिते भुसवापर नजरि गड़ौलक। वेचारा किए रूष्‍ट अछि?
सूपमे राखल सीम जकाँ नै, गोलका भाँटिन जकाँ भुसवा गुड़ैक कऽ सूप-कोनियाँमे कोणसँ कनखियाइत डालीमे रखल कुशियारक टोनीकेँ पकड़लक। पकड़िते बाजल-
भाय, तोरे खनदानक हमहूँ छी आ ठकुओ अछि...।
बिच्‍चेमे कुशियारक टोनी समर्थन दैत बाजल-
एकरा के काटत, सभकेँ बूझल छै।
कुशियारक सह पाबि भुसवाक मनमे जगल, नीक संगी भेटल। अपन नचारी सुनबैत भुसवा कुशियारक टोनीकेँ कहलक-
भाय, अपनैती बात छी, बदना हाल बदनियाँ जानए आ बदनियाँ हाल बदना जानए।
फेर सह दैत कुशियार बाजल-
तेहेन समए-साल भऽ गेल अछि जे अपनामे मीलि कऽ नै रहब तँ दोसर भगाइए देत।
कुशियारक तोष-तुष्‍टि देखि भुसवाक सम्‍बन्‍ध आरो बढ़ल। प्रेमी प्रेमिकाक पहिने जहिना मनक टोबनियाँ करैत, तहिना आसे-आसे मन घुसकबैत भुसवा बाजल-
भाय की कहबह, अपन मारि खाएल केकरा कहबै, आ जँ नै कहबै तँ मनक रोग छी, मनरोग भेल जँ कहीं मृत्‍यु भेल तँ नरक छोड़ि सरग जा हएत?”
भुसवाक बातक भाँज कुशियार बुझबे ने केलक। बिनु बूझल-गमल बातक उत्तर देब अनुचित छी। मुदा ईहो जँ खोलि कऽ बाजब जे भाय, तोहर बात नीक नहाँति नै बुझलिअ, कनी नीक जकाँ बुझा दैह। मुदा एते सुनै अा बुझैक पलखति अछि, कनी कालमे घाट उसरत। सबहक अपन-अपन दुनियाँ छै, अपन-अपन संगी छै। पान-सात बर्खक धिया-पुता भुसवा-ठकुआ पकड़त आकि नमहर देखि कुशियारक टोनी पकड़त। मुदा बेरादरीक बात छी, केना मुँह फोड़ि कहबै जे तूँ कष्‍टमे पड़ल रहऽ। बाजल-
भुसवा भाय, अहाँ कनै किए छी, बड़का भैया[5] ठाढ़े छथि, हुनका अखनि कियो छूतनि, जखनि डालीक सभ सठि जाएत तखनि हुनकर भाँज औतनि, तँए हुनका बेसी पलखैतियो छन्‍हि, चलू हुनकासँ भेँट करा हमहूँ अहाँ दिससँ समर्थन कऽ देब। ओ निवटा देता।
भुसवाक मन दस-आना-छह-आना हुअ लगलै। तेहेन समाजमे पड़ि गेल छी जे के केकर सुनत। अपने बेथे बेथाएल अछि। मुदा तँए कि हमर हक-हिस्‍सा नै अछि। छठिमे ठकुआ भलहिं आँखि देखबए मुदा दुरगमनियाँ कनियाँ संग महिना-दू-महिना हमरा छोड़ि कऽ जीवि सकैए। फेर मनमे भेलै जे अपनापर नै नितराइ। ई कि कोनो झूठ छिऐ जे आब दुरागमने ने अछि तँ तेकर साँठ-उसार कथी हएत। मनमे उठिते भुसवा ठकुआ गेल। ठकुआइते नजरि ठकुआपर पड़लै। मनमे खुशी भेलै, जे जेहने गति हमर भेल जाइए तेहने तँ अोकरो भेल जाइ छै, तखनि रूआबे केते दिन चलतै। मुदा लगले मनमे उठलै, जहिना हम तहिना ठकुआ लोकक हाथक बनौल छी। विचार बदलतै हाथ बदलतै, हाथक बौस बदलतै। मुदा हमरे सन गुणगर वेचारा शरीफा किए घाट छोड़ि देलक? छठि घाटक डालीक तँ फल छी शरीफा? भुसवाक मन शरीफाक दुर्दिनपर गेल। जँ छठिक घाटक फलक अधिकार केकरो छै तँ शरीफोकेँ छै। जेठक तपल कलशक फूलक फल छी शरीफा। बच्‍चामे जे रौद-तपलक बरसातक झाँट-पानि सहलक, शरद पबिते सरदिया अपन जुआनी निखारि रंग-रूप सुआद, सभ किछुसँ भरि लेलक। ओ केतए चल गेल? की शरीफा सन फल धरोहर नै छी?
छठि-परमेशरीक कथा भेल। अँकुरी छीटान भेल। बिसर्जनक छिट्टा सजल। सभ घरमुहाँ भेल।¦३३५६¦
१३ नवम्‍वर २०१४



[1] नीक-बेजाए
[2] ठकुआ
[3] कुशियार
[4] छठि पावनि
[5] कुशियारक छड़