Pages

Thursday, June 7, 2012

घरदेखि‍या :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


नीन्न टुटिते लुखियाक नजरि दिन भरिक काजपर पड़लनि। काज देखि मनमे अबूह लागए लगलनि। असकता गेलीह। मुदा तैयो हूबा कऽ कऽ उठए चाहलनि आकि आँखि पुबरिया घरक छप्परपर गेलनि। बिहाड़िमे मठौठ परक खढ़ उड़िया गेल छलैक। हड्डी जकाँ बाती झक-झक करैत। मनमे अएलनि जे “की कहत बड़तुहार?” कहत जे मसोमातक घर छिऐ तेँ मठौठ उजड़ल छैक। खौंझ उठलनि। ठोर पटपटबैत- “जेहने नाशी डकूबा बिहाड़ि तेहने झड़कलहा कारकौआ। जुट बान्हि-बान्हि आओत आ लोलसँ खढ़ उजाड़ि-उजाड़ि छिड़िऔत।नजरि निच्चाँ होइते दछिनबरिया टाटपर पड़लनि। बरसातमे टाटक आलन गलि कऽ झड़ि गेल छलैक। मात्र कड़ची-बत्ती टा झक-झक करैत। जइसँ ओहिना दछिनबरिया बँसबिट्टी देखि पड़ैत। बेपर्द आंगन। मन खिन्न हुअए लगलनि। मनमे अएलनि जे पुरना साड़ी टाटमे टांगि देबै। मुदा बड़तुहारक आँखिमे की कोनो गेजर भेल रहतै जे नहि देखत। तहूमे साड़ीसँ कते अन्हराएत। ओहिना सभ किछु देखत। आरो मन निच्चा खसैत जाइत। बाप रे की कहत बड़तुहार? नागेसर दिओरपर तामस उठै लगलनि। कोन जरुरी छलनि जे कौल्हुके दिन दऽ देलखिन। घर-अंगना चिक्कन कऽ लइतौं तहन अबैक दिन दैतऽथिन। कोनो की हमर बेटा बाढ़िमे दहाइल जाइत छलए। पाँच दिन आगुएक दिन भेने की होइतै? तामस बढ़लनि। तइ बीच आँखि टाट परसँ निच्चा उतरलनि। नजरि पड़लनि अंगनाक पनिबटपर। झक-झक करैत झुटका। उबड़-खाबड़ सौंसे आंगन। तहूमे जे झुटका सरिआममे अछि ओ तँ नहि मुदा जे अलगल अछि ओ तँ चुभ-चुभ गरैत अछि। सौंसे अंगना सरिअबैमे कमसँ कम, दस छिट्टा माटि लागत। दस छिट्टा माटि उघि, ढ़ेपा फोड़ि, सरिया कऽ पटबैमे तँ भरि दिन लगि जाएत। तखन आन काज केना हएत? काजक तरमे दबाए लगलीह। तामस आरो लहरै लगलनि। अबूहो लगनि। ओछाइनेपर पड़ल-पड़ल भारसँ दबैत जाएत। दुइये माए-पूत की सभ करब? तहूमे आइ ऐ छौड़ाकेँ केना किछु करैले कहबै। ओकरे देखैले ने घरदेखिया आओत। छौड़ाकेँ तँ अपने मारिते रास काज हेतै। कानी छटौत। अंगा-घोती खीचत। आइरन करबैले गंजपर जाएत। गमकौआ साबुनसँ नहाएत। तेल लेत। बाबरी सीटत। तेहेन ठाम कोदारि-खुरपी चलबैले केना कहबै। लोहे छिऐ जँ किनसाइत लागिये जाए। तखन तँ आरो पहपटि हएत। कथकिया जे हाथ-पएरमे पट्टी बान्हल देखतै तँ की कहत? मनक तामस निच्चाँ मुँहे ससरए लगलनि। तामस उतरि‍ते नजरि घरदेखियाक खेनाइ-पीनाइपर पहुँचलनि। आन काज तँ रहियो-सहि कऽ भऽ सकैत अछि मुदा दूध तँ एक दिन पहिने पौड़ल जाएत। जँ से नहि पौड़ब तँ दही केना हएत। शुभ काजमे जँ दहिये नहि होएत तँ काजक कोन भरोस। एक तँ महींसबला सभ तेहेन अछि जे दूधसँ बेसी पानिये मिला दैत छैक। नबका मटकुरियो ने अछि, जे पानियो सोखि लइतैक। मनमे खौंझ उठए लगलनि। मुदा नजरि चाउर-दालि दिस बढ़ि‍ते तामस दबलनि। बेटाक घरदेखिया आओत, हुनका केना खेसारी दालि आ मोटका चाउरक भात खाइले देबनि। लोको दुसत आ अपनो मन की कहत। कियो किछु कहऽ वा नहि मुदा कुल-खानदानक तँ नाक नहि ने कटा लेब। जँ इज्जतिए नहि तँ जिनगिये की? मन पड़लनि घैलमे राखल कनकजीर चाउर। कनकजीर चाउरक भात आ नवका कुटुम मनमे अबिते लुखियाक हृदए पघिलल केरा जकाँ पलड़ए लगलनि। मने-मन भातक प्रेमी दालिक मिलान करए लगलीह। मेही भातमे मेही दालिक मिलान नीक हएत। मुदा खेरही-मसुरी दालि तँ भोज-काजमे नहि होइत। होइत तँ बदाम-राहड़िक। मुदा राहड़ि तँ घरमे अछि नहि। बोङमरना बाढ़ियो तेना दू सालसँ अबैत अछि जे एक्को डाँॅट राहड़ि नहि होइत अछि। तत्-मत् करैत फेर मन झुझुआ गेलनि। बिना आमिले राहड़िक दालि केहेन हएत? आमक मास रहैत तँ चारि फाँक कँचके आम दऽ दितिऐ। सेहो नहि अछि। फेर मन आगू बढ़लनि, पहिल-पहिल समैध-समधीन बनब आ एगारहो टा तरकारी खाइले नहि देबनि से केहेन हएत। गुन-धुन करए लागलीह। गुन-धुन करिते बर-बरी-अदौरी मन पड़लनि‍। एक्के दिनमे केना ओरियान हएत? घाटिये-बेसन बनबैमे तँ तीन दिन लागत। तखन केना होएत? फेर तामस पजरए लगलनि। मन फेर खौंझा गेलनि। बजै लागलीह- “ई सभटा आगि लगौल नगेसराक छी। जाबे ओकरा छितनीसँ चानि नहि तोड़ब ताबे ओकरा बुधि‍ नहि हेतै। तमसाइले नागेसरक आंगन दिस बजैत बढ़लीह। पुरुख छी आकि पुरुखक झड़। जहि पुरुखकेँ काजक हिसाबे नहि जोड़ए आओत ओहो कोनो पुरुखे छी। ओइसँ नीक तँ मौगी।
नागेसर नदी दिस गेल छलाह। नागेसरकेँ नहि देखि लुखिया डेढ़िये पर अनधुन बजए लागलि। मुदा नागेसरक पत्नी भुरकुरिया चुप-चाप सुनैत। किछु बजैत नहि। किएक तँ मने-मन सोचैत जे दिओर-भौजाइ बीचक बात छी, तइ बीच हम किएक मुँह लगबी। बजैत-बजैत लुखियाक पेटक बात सठलनि। बात सठिते तामसो उतरलनि। बोलीक गरमीकेँ कमैत देखि भुरकुरिया बाजलि- “अंगना चलथु दीदी। बीड़ी पीबि लेथु, तखन जइहथि।
घरसँ बीड़ी-सलाइ निकालि दुनू गोटे ओसारपर बैसि गप-सप्‍प करए लागलि। सलाइ खरड़ैत भुरकुरिया बाजलि- “दीदी, आब पीहुओकेँ जुआन होइमे देरी नञि लगतनि। कंठ फूटि गेलै।
भुरकुरियाक बात सुनि लुखिया हरा गेलीह। जुआन बेटाक सुख मनमे नचए लगलनि। लुखियाकेँ आनन्दित होइत देखि पुनः भुरकुरिया बाजलि- “भइयोसँ बेसी भीहिगर जवान पीहुआ हेतनि।
खुशीसँ लुखियाक हृदए बमकि गेलनि, बजलीह- “कनियाँ, खाइ-पीबैमे छौड़ाकेँ की कोनो कोताही करै छिऐ। एक तँ भगवान नउऐं-कउऐं कऽ एकटा बेटा देलनि। तेकरो जँ सुख नै होए तँ एते खटबे केकरा लेल करै छी। बापक मन तँ परुँके बिआह करैके रहै मुदा तइ बीच अपने चलि गेल। आब साल लगलै तँ ऐबेर जेना-तेना बिआह कइये देबै।
कहि आंगन दिस बिदा भेलीह। अंगनासँ निकलिते मन नागेसरपर गेलनि। सोचए लागलीह, नागेसर बेचाराक कोन दोख छैक। ओहो की कोनो अधलाह केलक। हुनको मनमे ने होइत हेतनि जे झब दे पुतोहु घर आबनि। अखन तँ वएह ने बाप बनि ठाढ़ छथिन। मुदा काज अगुताइल केलनि। गरीब छी, तेकर माने ई नहि ने जे इज्जति नहि अछि। इज्जति कऽ तँ बचा कऽ राखै पड़ैत छैक। नव कुटुमैती भऽ रहल अछि। नव कुटुम्ब दुआरपर औताह। हुनका जँ पाँच कौर खाइयो ले नहि देबनि से केहेन हएत। स्वागत की कोनो धोतिये-टाका टा सँ होइत छैक? आकि दूटा बोल आ दू कौर अन्नोसँ होइत छैक। जेहेन पाहुन रहताह तेहने ने बेवहारो करए पड़त। फेर मनमे तामस उठए लगलनि। एहेन पुरुखे की जिनका धियो-पुतोक बिआह करैक लूरि नहि होन्‍हि‍। तइ बीच मन पड़लनि चाह-पान। चाहो-पानक ओरियान तँ करए पड़त। एहेन नहि ने हुअए जे एक दिस करी आ दोसर दिस छुटि जाए। चाहे-पानटा किअए, बीड़ीओ-तमाकुलक ओरियान करए पड़त ने। ई की कोनो शहर-बजार छिऐ जे लोक एक्के- आधे टा अम्मल रखैत अछि। ई तँ गाम छिऐक, ऐठाम तँ एक-एक आदमी पनरह-पनरहटा अमल डेबैत अछि। अपनहि विचारमे लुखिया ओझरा गेलीह। किछु फुड़बे ने करनि। बुकौर लगै लगलनि। आँखिमे नोर ढबढ़बा गेलनि। मनमे उठए लगलनि जे घर तँ पुरुखेक होइत छैक। एते बात मनमे अबिते लुखिया बाटपर आबि नागेसरक बाट देखए लगलीह। नदी दिससँ अबैत नागेसरपर नजरि पड़लनि। नजरि पड़िते बजलीह- “काल्हि घरदेखिया औताह आ अहाँ निचेनसँ टहलान मारै छी।
नागेसर- “अच्छा चलू। बैसि कऽ सभ विचारि लैत छी।
दुनू गोटे आंगन दिस बढ़ल। ओचाओन खरड़ैत पीहुआकेँ देखि नागेसर कहलखिन- “अखन तू ऐंठार चिक्कन करै छेँ की जा कऽ बाबरी छँटा अयमे? काजक अंगना छियौ तेँ पहिने बाहरक काज समेटि लेमे की घरे-अंगनाक काज करै छेँ। जो, जल्दी जो।
खरड़ा राखि पीहुआ बिदा भेल। लुखियाक नजरि बदललनि। जहिना चश्माक शीशाक रंग दुनियाँक रंगकेँ बदलि दै छै, तहिना लुखियाक नजरि नागेसरक बदलल रूपकेँ देखलक। बदलल रूप देखिते सिनेह उमड़ि पड़लनि। सिनेहसँ बजलीह- “एते लगक दिन किअए देलिऐ? चारि दिन आगूक दितियनि। भरिये दिनमे सभ काज सम्हारल हएत?”
लुखियाक समस्याकेँ हल्लुक बनबैत नागेसर कहलखिन- “आइ पहिल दिन घरदेखिया घर-बर देखए औत आकि खाइन-पीउन करै ले? पसिन्न हेतनि तँ खेता-पीताह, नहि तँ अपना घरक रस्ता धरताह। अखन तँ ओ बटोही बनि कऽ औताह। तेँ हमरो ओते सुआगतक ओरियान करैक जरुरत नहि अछि। जखन पीहुआ पसिन हेतनि, बिआह करब गछताह, तखन ने किछु, आकि समधीन बनैले बड़ अगुताइल छी? होइए जे कखैन समैधिक संग होरी खेलाइ?”
समधिक संग होरी खेलाएब सुनि लुखियाक मन उड़िऐ लगलनि। बजलीह- “हम की कोनो समैधिये भरोसे फगुआ रखने छी, दिअर कोन दिनले रहत?”
लुखियाक मनसँ चिन्ता पड़ा गेलनि। मुस्की दैत बजलीह- “बाटो-बटोही जँ दुआरपर औताह तँ एक लोटा पानियो नहि देबनि?”
नागेसर- “से तँ देबे करबनि। यएह इज्जति तँ हमरा सबहक बाप-दादाक देल अमोल धरोहर छी।
खुशीसँ भसिआइत लुखिया कहलनि- “पुरुषक थाह हम नहि पाएब।
नागेसर- “कनी कालमे बजार जाएब। जे सभ जरुरीक बस्तु अछि से सभ कीनि आनब। तइले एते माथा-पच्ची करैक कोन जरुरी। अतिथिक सुआगत मात्र नीक-निकुति खुऔनहि होइत? आकि प्रेम-पूर्वक तुकपर खुऔने होइत। बैसैक लेल चद्दरि साफ केलौं? सिरमो खोल खीचि लेब।
“सिरमामे खोल कहाँ अछि? ओहिना पुरना साड़ीक बनौने छी। ओहूले दूटा खोल किनने आएब।
“बड़बढ़ियाँ।
दोसर साँझ आंगनमे बैसि नागेसर पीहुआकेँ पुछलक- “तोरा जे नाम पुछथुन्ह तँ की कहबुहुन?”
पीहुआ- “से की हमरा नाम नइ बुझल अछि। बउओक, माइयोक आ गामोक नाम बुझल अछि।
“ओते नै पुछै छियौ। अपने टा नाम बाज?”
“पीहुआ
“धुर बुड़िबक। पीहुआ नहि पुहुपलाल कहिहनु।
“से हमर नाम पुहुपलाल कहाँ छी। पहिने सभ कहैत रहए आब तँ सभ पीहुए कहैत अछि। एहिना ने लोकक नाम बदली होइत रहै छै।
मुँह बिजकबैत लुखिया कहलक- “हँसी-चौलमे लोक तोरा पीहुआ कहै छौ आकि जनमौटी नाओँ छियौ।
छठियार राति, दाइ-माइ पुहुपलाल नामकरण केलखिन। जखन ओ आठ-दस बर्खक भेल, तखन जाड़क मास बाधमे फानी लगबै लगल। गहींर खेत सभमे सिल्लियो आ पीहुओ आबि-आबि धान चभैत। जेकरा ओ फानी लगा-लगा फँसबैत। अपनो खाइत आ बेचबो करैत। कछु दिनक बाद स्त्रीगण सभ पीहुआबला कहै लगलैक। फेर किछु दिनक पछाति भौजाइ सभ पीहुआ कहए लगलैक। मुदा तेकर एक्को मिसिया दुख ने पीहुएकेँ होइत आ ने पीहुआ माये-बापकेँ। तेँ पुहुपलाल बदलि पीहुआ भऽ गेल।
मने-मन नागेसर बिचारलनि जे ई पीहुआ एना नहि सुधरत। अखन सिखाइयो देबै तैयो बजै कालमे बाजिये देत। से नहि तँ दोसर गरे काज लिअए पड़त। लुखियाकेँ कहलखिन- “मोटरी खोलि सभ समान मिला लिअ।
दुनू दिओर-भौजाइ सभ समान मिलबए लगल। धोती देखि दुनूक बीच मतभेद भऽ गेलनि। कन्यागतक विदाइक लेल एक्के जोड़ धोती नागेसर कीनि कऽ अनने छलाह। किएक तँ बुझलनि जे बेटीबला धोती नहि पहिरैत अछि। मुदा से बात लुखिया बिसरि गेल छलीह। तेँ बजलीह- “दू गोटे औताह, तखन एक जोड़ धोतीसँ की हएत? कमसँ कम तँ जोड़ो कऽ केँ करबनि। जेकरा बेसी रहै छैक ओ पाँचो टूक कपड़ा बिदाइ करैत अछि।
सामंजस्य करैत नागेसर- “हमरो सासुरक धोती रखले अछि। काज पड़त तँ दऽ देबनि।
 “गुलाबिये रंगमे रंगल अछि। एकरो गुलाबियेमे रंगि लेब। रंगो कीनि कऽ नेनहि आएल छी।
दोसर दिन, सवेरे सात बजे कन्यागत दुनू बापुत पहुँचलाह। कन्यागतकेँ
अबैसँ पहिनहि नागेसर एकचारीमे बिछान बिछा, तैयार केने छलाह। नबका खोलक सिरमो सिरा दिस देने छलाह। कन्यागतकेँ अबिते नागेसर ठेेंगा-छत्ता रखि पएर धोएले लोटा बढ़ौलकनि। चाह-पान आनए लुखिया पछुआरे बाटे लफड़ल चौक दिस बिदा भेल। जाधरि दुनू बापुत डोमन हाथ-पएर धोए कुशल-क्षेम करैत, बिछानपर बैसलाह ताधरि लुखियो चौक परसँ चाह-पान कीनि अनलक। नागेसरक दुनू आँखि दुनू दिस। तेँ देखि लेलनि जे चाह आबि गेल। पीहुआकेँ कहलनि- “बौआ, चाह नेने आबह?”
पीहुआ- “पानो।
“पहिने चाह लाबह। पछाति पान अनिहह।
पीहुआक बोली डोमन सुनि लेलनि। तेँ नाम-गाम पुछैक जरुरते नहि रहलनि। दोहारा नमगर देह। मने-मन डोमन लड़िका पसन्द कऽ लेलनि। आँखिक इशारासँ डोमन बुचनकेँ पुछलखिन। आँखिएक इशारासँ बुचन सेहो स्वीकृति दऽ देलकनि। दुनू बापूतक मुँहमे हँसी नाचि गेलनि। मुदा लगले डोमनक मनमे एकटा शंका पैसि गेलनि। शंका ई जे मरदा-मरदी परिवार नहि अछि तेँ हो ने हो कोनो छोट-छीन बाधा ने बीचमे आबि भंगठा दिअए। चाह पीबि पान खा डोमन नागेसरकेँ कहलखि‍न- “समैध, जाधरि भानस होइत अछि ताधरि बाध दिससँ घुमि अबैले चलू। हँ, एकटा बात तँ कहबे ने केलौं, तीमन-तरकारी बेसी नै करब। सात-आठ दिनसँ लगातार माछ खेलौं, पेट गड़बड़ भऽ गेल अछि। गाममे रहितौं तँ मड़बज्झू भात आ केेरा चाहे भांटाक सन्ना संगे खइतौं। मुदा से तँ ऐठाम नहि हएत। तेँ दालि-भात एकटा तरकारी-सजमनि चाहे झिंगुनीक- बना लेब। तहूमे बेसी मसल्ला नै देबैक।
बीड़ी-सलाइ गोलगलाक जेबीमे रखि नागेसर लुखियाकेँ कहए आंगन गेलाह। ओना टाटक अढ़सँ लुखियो सुनि लेने छलीह। तेँ जबाब दैले मन उबिआइत रहनि। अवसर पाबि लुखिया बजलीह- “एते रास जे तीमन-तरकारीक ओरिआन केने छी से की हएत। अपने नै खेताह तँ आंगनवालीले मोटरी बान्हि देबनि।
अपिआरीमे फँसैत माँछ जकाँ लड़िकाक माएकेँ फँसैत देखि डोमन बजलाह- “तइले की हेतैक, हिनको मोटरी बान्हि कन्हापर नेने जेबनि।
आँखि दाबि नागेसर लुखियाक बोली रोकै चाहलनि। मुदा लुखिया मुँहक बात बरतुहार दिस नहि बढ़ि नागेसरे दिस खसलनि- “बड़ बुधियार छथि। बुझब जे बेटाक बिआह केलौं तँ गामो-घर आ समधियो नीक भेटलाह। तेँ जेना-तेना कुटमैती कइये लेब।
लुखियाक बात सुनि नागेसरक मन हल्लुक भेलनि। लुखिया अपन भार दऽ बाधा हटौलक। नहि तँ बेर-बेर बाता-बाती होइत। समए पाबि डोमन जोरसँ बजलाह- “समधीने लग नुड़िआइल रहब आकि चलबो करब?”
लुखियाक मन भीतरसँ चप-चप होइत। बजैक लेल लुस-फुस करैत। डोमनक बात सुनि बजलीह- “हिनके टा समधीन लगड़गर छन्हि, आनकेँ कि किछु छैक?”
मुस्की दैत नागेसर आंगनसँ निकलि बाध दिस बिदा भेलाह। आँखि उठा-उठा डोमन गाम-घर देखैत जाइत। टोलसँ निकलि पछिम मुँहे एक पेड़िया धेलनि। गाछी टपि हाथक इशारासँ पच्छिम मुँहे देखबैत नागेसर कहलकनि- “पछबारि भाग जे चतरलाहा गाछ देखै छिऐक ओएह गामक सीमा छी।
दुनू बापुत देखि डोमन पुछलखिन- “उत्तरबरिया सीमा?”
ओंगरीसँ देखबैत नागेसर- “ओ ढ़िमका जे देखै छिऐ, सएह छी।
“दछिनबरिया।
“तीन चारिटा जे छोटका गाछ एक ठाम देखै छिऐ ओ सीमेपर अछि। पीरारक गाछ छिऐक।
बाधकेँ हियासि डोमन आँखिक इशारासँ बुचनकेँ देखलखिन। दुनू गोटे मने-मन अन्दाजलनि जे दू सए बीघासँ उपरेक बाध अछि। तइ बीच नागेसर बजलाह- “बुझलौं, बाबूक अमलदारीमे तँ सम्मिलिते छल मुदा हमरा दुनू भाँइमे बँटबारा भऽ गेल। उत्तरसँ हमर छी आ दछिनसँ भातिजक।
डोमन- “खोपड़ी कतऽ बनौने छी?”
नागेसरकेँ पैछला घटना मन पड़लनि। ओंगरीसँ देखबैत कहए लगलखिन- “ओइ बँसबाड़ि आ गाछीक बीच एकटा खाधि छैक। जहिमे बिसनारिक गाछ सभ छैक। भदवारिमे पानि भरि जाइत छैक। बाँसोक पात आ गाछो सबहक पात ओइमे खसि-खसि सड़ैत अछि। बिसनारियोक गाछ सभ सरि जाइत छैक। जइसँ कारी खट-खट पानि भऽ जाइत छैक। ढाकीक-ढाकी मच्छर फड़ि जाइत अछि। ओइ खाधिमे भैयाकेँ कालाज्वरक मच्छर काटि लेलकनि। कतबो दवाइ-बिरो भेलनि, मुदा नहि ठहरलखिन।
डोमन पुछलखिन- “अहाँ सभकेँ सरकारी अस्पतालमे दवाइ नहि दइए?”
नागेसर कहलखिन- “से जँ दैतैक तँ एत्ते लोक मरबै करैत। बीस आदमीसँ उपरे हमरा गाममे कालाजारसँ मरलहेँ। अस्पतालमे किछु छैक थोड़े, ओहिना ईंटाक घर टा ठाढ़ अछि। दवाइकेँ के कहए जे कुरसियो-टेबुल बेचि नेने अछि।
जैत-बजैत नागेसरक आँखि नोरा गेल। गमछासँ आँखि पोछि आगू बढ़ि गेला। तीनू गोटे खोपड़ी लग पहुँचलाह। बाधक बीचमे कट्ठा दुइएक परती, परतियेपर दुनू फरीकक खोपड़ियो आ पाँचटा अनेरुआ गाछो, दूटा साहोरक, दू-टा पितोझिया आ एकटा बज्र-केराइक। साहोरक गाछ सभसँ पुरान मुदा देखैमे सभसँ छोट। बज्र-केराइ सभसँ कम दिनक मुदा सभसँ नमहर। पितोझिया गाछक निच्चामे तीनू गोटे दुबिपर बैसि गप-सप्‍प करए लगलाह।
डोमन पुछलखिन- “रखबाड़ि–-राखी- केना गिरहत सभ दैत अछि?”
नागेसर बजलाह- “बीधामे पाँच घुर धानो आ गहुमो।
“रब्बी, राइ माने दलि‍हन-तेलहन?”
“अंदाजेसँ देलक। अपनो सभ उखाड़ि दै छिऐ। जइसँ बोइनो भेल आ राखियो।
दुनू बापूत डोमन मने-मन हिसाब जोड़ए लगलाह। अगर कट्ठामे एक
क्बीन्टल उपजत तँ पच्चीस किलो बीघामे भेल। जँ से नहि पचासो किलोक कट्ठा हएत, तैयो साढ़े बारह किलो बीघा भेल। सए बीघासँ उपरेक बाध अछि। तहिसँ या तँ पच्चीस क्वीन्टल, नहि तँ साढ़े बारह क्वीन्टल राखी -धान- सालमे जरुर
होइतै हेतनि। तेकर बाद गहुम भेल, मड़ुआ भेल, आरो-आरो दलिहन-तेलहन भेल। दुइये माइ-पूत कते खाएत? हमरो बेटीकेँ अन्नक दुख नहि हेतै। मुस्की दैत डोमन बेटा दिस तकलक। बेटो बाप दिस ताकि आँखियेसँ गप-सप्‍प कऽ लेलक।
कनी काल चुप रहि डोमन नागेसरकेँ पुछलखिन- “कथी-कथीक खेती बाधमे होइत अछि?”
नागेसर बजलाह- “पान साल पहिने तक तँ अन्ने टाक खेती होइत छल। टो-टा कऽ सेरसो-तोड़ीक खेती। मुदा आब खेती बदलि रहल अछि।
मुस्की दैत पुन: आगू बजलाह- “की कहब, बुझू तँ राजा छी। दू सए बीघाकेँ अपन बपौती सम्पति बुझैत छी। दुनू सए बीघाक मालिक छी। एक बेर टाँहि दैत छलिऐक तँ जुआन-जुआन घसवहिनी सभ नाङरि सुटुका कऽ पड़ा जाइत छलि। मुदा आब से नहि करैत छी। खसल-पड़ल खेत, आड़ि पड़क घास कटैले केकरो मनाही नहि करैत छिऐ......।
किछु मन पाड़ि फेर बजलाह- “हँ तँ कहै छलौं जे जहि दिनसँ लोक बोरिंग गरौलक आ कोशियो नहरि एलैक तइ दिनसँ तँ बूझि पड़ैत अछि जे घरसँ बाध धरि लछमी सदिकाल नचिते रहैत छथि। केकरो देखबै धानक बीआ पाड़ैत अछि तँ कियो रोपएले बीआ उखाड़ैत अछि। कियो कमठौन करैत अछि तँ कियो धान कटैत अछि, तँ कियो बोझ उघैत अछि। कियो दाउन करैत अछि, तँ कियो धान ओसबैत अछि, तँ कियो अगोँ रखैत अछि। कियो धान उसनियो करैत अछि तँ कियो पथार सुखबैत अछि। कियो मिलपर धान कुटबैत अछि तँ कियो चाउर फटकैत अछि। कते कहब।
डोमन बजलाह- “आनो-आनो चीजक खेती हुअए लागल होएत?”
नागेसर बजलाह- “ऐँह की कहब! पचासो किस्मक तँ धानेक खेती हुअए लगल अछि। ओते धानक की नामो मन अछि। धानक संग-संग खाद-पानि दऽ कऽ गहुम, दलिहनक खेती सेहो होअए लगल अछि। एते दिन तँ सरिसोए-तोड़क खेती होइत छल। आब सूर्यमुखीक खेती सेहो होइत अछि। राशि-राशिक तीमन-तरकारी सेहो हुअए लगल अछि। बीघा दसेकमे पनरह-बीस गोटे नवका आमक कलम सेहो लगौलक अछि। ऐँह, की कहब, आन्ध्राक आम, मद्रासी आम सभ सेहो लोक लगौलकहेँ। अजीब-अजीब आमो सभ अछि। ऐबेर रोपू तँ पौरुकेँ सँ फड़ए लगत। जेहने देखैमे लहटगर लागत तेहने खाइयोमे।
डोमन पुछलखि‍न- “आमक ओगरबाहि केना दैत अछि?”
नागेसर कहलखिन- “तीन आममे एक आम सरही आ चारि आममे एक आम कलमी। से जहि दिन तोड़ल जाएत तइ दिनक कहलौं, तइ बीच खसल-पड़ल आमक हिसाब नहि। तेहेन आम सभ अछि जे टुकलेसँ धिया-पुता खाए लगैत अछि। खटहो आमकेँ चून लगा कऽ मीठ बना लैत अछि। धियो-पुतो तते बुधियार भऽ गेल अछि जे अंगनेसँ चून नेने जाएत आ आममे लगा कऽ खाएत।
डोमन पुछलखिन- “आरो की सभ आमदनी बाधसँ अछि?”
नागेसर बजलाह- “सभटा की मनो अछि। (ओंगरीसँ देखबैत) दछिनबारि भाग बीघा बीसेक गहींर खेत छल। चौरी। गोटे साल नहि, ने तँ पहिने सभ साल धान दहाइये जाइत छलैक। मुदा आब, जहियासँ पानिक सुविधा भेल, सभ गिरहत अपन-अपन खेतकेँ आरो खुनि कऽ पोखरि जकाँ बना-बना माछ पोसए लगलहेँ। आन्ध्र प्रदेशक एकटा माछ छै “इलिस। ऐँह, की कहब, (मुँह चटपटबैत) अपना सभ कहै छिऐ रौह, मुदा ओइ इलिस आगूमे किछु नहि। जहिना बढै़मे तहिना सुआद। हमरा की कोनो रोक अछि, हमहीं ओगड़ै छिऐ ने, जहिया मन भेल तहिया बन्सीमे दूटा मारि लेलौं। आ सभ खेलौं। सभसँ मुश्किल आब बनौनाइ भऽ गेल। काजेसँ ने छुट्टी। के ओते मेठैन कऽ कऽ खाएत। आब सुर्ज माथपर आबि गेल। चलू। भानसो भऽ गेल हएत। गरमे-गरम खाइमे नीक होइ छै।
तीनू गोटे बाधसँ घर दिसक रास्ता धेलनि। थोडे़ आगू बढ़ल तँ बँसवारिमे एकटा चिड़ै बजैत सुनलनि। बाजबो अजीब ढ़ंगक। मुस्की दैत नागेसर डोमनकेँ पुछलखिन- “कहू तँ ई चिड़ै की बजैत अछि?”
कने अकानि कऽ डोमन बजलाह- “ई तँ पान-बीड़ी सिगरेट बजैत अछि।
बात सुनि नागेसर ठहाका दऽ हँसल। कने काल हँसि बजलाह- “ई चिड़ै अहाँ गाम सभ दिस नहि अछि। जहिया कोसीक बाढ़ि अबैत छलैक तहियेसँ ई चिड़ै हमरा गाममे अछि। ई बजैत अछि- बढ़मा, बिसुन, महेश।
विचारक भिन्नताक कारणे डोमन पुनः चिड़ैक बोली अकानए लगल। बुचन सेहो अकानए लगल। अपना बातमे मजबूती अनैक लेल नागेेसर सेहो अकानए लगल। दुनू चुप। दुनू अपन-अपन दुविधामे। डोमन बुचनकेँ पुछलक- “बौआ, तूँ तँ इसकुलो देखने छहक, तांेही कहह?”
मामूली सवालमे हारि मानब केकरा पसिन्न होइत। डोमनक मन विचारकेँ मथैत।
डोमनक बात सुनि बुचन बाजल- “बाबू, हमरा बूझि पड़ैत अछि जे “तुलसी, सूर, कबीरकहैत अछि।
तीनूक तीन मत, तँए विवादक प्रश्ने नहि, तीनू अपन-अपन रमझौआमे ओझड़ाएल। तँए तीनू चुपचाप आगू-पाछू घर दिस बिदा भेलाह।
घरपर अबिते डोमन बजलाह- “लोटा नेने आउ। कनी डोल-डाल दिससँ भऽ अबैत छी।
नागेसर आंगनसँ दू लोटा पानि आनि कऽ देलकनि। लोटामे पानि देखि बुचन बाजल- “बाबू, आगूमे कल-तल नै छैक?”
डोमन बजलाह- “अखन तूँ बच्चा छह, नहि बुझल छह?” कहि आगू मुँहे गाछी दिस बिदाह भेलाह। गाछी पहुँचि एकटा सरही आमक गाछक निच्चाँमे दुनू बापूत बैसि विचार-विमर्श करए लगलाह।
बुचन- “बाबू, कुटुमैती करै जोकर परिवार अछि। समलाइके मे बिआह-सादी, दुश्मनी आ दोस्ती छजैत छैक। लड़िकाक बाप नहि छैक तँ की हेतै। गाम-घरमे लोक मइटुगरकेँ अधलाह बुझैत छैक।
डोमन बुचनक बातो सुनैत आ मुड़ि‍यो डोलबैत मुदा मने-मन परिवारक आमदनी आ ओइ आमदनीकेँ समटैक लूरि सोचैत रहथि। जहि हिसाबसँ आमदनीक जड़ि देखि रहल छी ओइ हिसाबसँ सम्हारैक लूरि नहि छैक। जँ दुनू एक सतहपर आबि जाए तँ परिवारकेँ आगू मुँहे ससरैमे बेसी समए नहि लगत। एतेटा बाध छैक। अलेल घास सभ दिन रहतै। बाध ओगड़ैमे की लगैत छैक? एक-दू बेर ऐ भागसँ ओइ भाग घुमब मात्र छैक। अगर जँ अपनो काज ठाढ़ कऽ लिअए तँ बैसारियो नहि रहतैक आ आमदनियो बढ़ि जएतैक। हमरा बेटीकेँ ऐ घर अएलासँ एकटा काजुल आ बुधियार समांग बढ़ि जेतै। जानकीकेँ सभ हिसाब-कनमा, अधपेइ, पौवा, असेरा, सेर, अढ़ैया, पसेरी, धार आ मन सँ लऽ कऽ बोरा-क्वीनटल धरि, जोड़ैक लूरि छै। तहिना कोड़ी -बीस वस्तु, सोरे- सोलह, सोरहा -सोलह सोरे, दर्जन–बारह, ग्रुस-बारह दर्जन, जोड़ा -धानक आँटी, दस, गाही–पाँच, गंडा–चारि, जोड़ा–दू, पल्ला- एक सभ बुझैत अछि। मनमे खुशी एलै। बाजल- “बौआ, ओना जानकी गिरहस्तीक काज सम्हारि दूटा गाइयोक सेवा कऽ लेत। मुदा तहिसँ दूधे टाक आमदनी बढ़त। जरुरत छैक खेतिओ बढ़बैक। तँए नीक हएत जे एकटा गाए आ एकटा बड़द दऽ दिऐक। एकटा बड़द आ एकटा हरबाह भेने दू समांग अपन भऽ जेतै। जइसँ बीघा दू बीघा खेतियो कऽ सकैत अछि।
बुचन- “अपना खेत जे नहि छैक?”
बुचनक बात सुनि डोमन हँसए लगलाह। हँसैत बजलाह- “बौआ, समए एहेन आबि गेल अछि जे खेतोबला सभ खेती छोड़ि नोकरियेक पाछू बौआ रहल अछि। जइसँ खेती केनिहारक अभाव भऽ रहल छैक। गिरहस्तीक हाल बिगड़ि गेल छैक। जबकि जरुरत छैक खेतमे मेहनतिक। जे सभ किसान नहि बूझि रहलाह अछि।
बुचन- “केना बुझत?”
डोमन गंभीर होइत बजलाह- “बौआ खेतीमे बड़ बुधि‍क काज छै मुदा खेती दिन-दिन मूर्खेक हाथमे पड़ल जाइ छै, से सोचलहकहेँ?”
तर्क-वितर्क कऽ दुनू बापुत तँइ कऽ लेलक जे कुटमैती करबे करब। मुदा
एकटा जटिल प्रश्न आबि कऽ आगूमे ठाढ़ भऽ गेलनि। ओ ई जे बिआह उट-पटाँग ढ़ंगसँ नहि होइ? रस्तासँ पाइक उपयोग होइ। गुन-धुन करैत दुनू बापूत घर दिस बिदा भेलाह।
जाधरि डोमन पैखाना दिससँ अबैत ताधरि लुखिया चारि-पाँच बेर दौड़ि-दौड़ि आंगनसँ बान्हपर जा-जा देखलनि। मनमे उड़ी-बीड़ी जेना लगल रहनि। जे कुटमैतीमे कोनो तरहक गड़बड़-सड़बड़ नहि हुअए। नहि तँ लोक पीकी मारत। कहत जे मौगीक मुख्तिआरी छी ने। बिनु मरदक मौगी बेलगामक होइते अछि। कहलो गेल छै- “राँड़ मौगी साँढ़।फेर मनमे उठलनि जे किछु होउ बिआह तँ हमरे बेटाक होएत। तँए केकरो ओंगरी बतबैक रस्ता नहि रहए देबैक। जहिना बड़तुहार कहताह तहिना हमहूँ करब। जँ दुनू गोटेक मिलान रहत तँ किअए कोइ आँखि उठाओत। एते बात मनमे अबिते बड़तुहारकेँ लुखिया अबैत देखलनि। बान्ह परसँ दौड़ले आंगन आबि हाँइ-हाँइ कऽ थारी साँठए लगलीह।
हाथ-पएर धोइते नागेसर डोमनकेँ कहलकनि- “पहिने भोजने कऽ लिअ।
आगू-आगू लोटा नेने नागेसर आ पाछू-पाछू दुनू बापुत डोमन आंगन ऐलाह। पीढ़ीपर बैसिते नागेसर थारी आनि आगूमे देलकनि। आँखि घुमा कऽ देखि डोमन बजलाह- “समैध, समधीनियोकेँ अढ़मे बजा लिअनु। बि‍आहक सभ गप पक्का-पक्की कइये लेब। बैसारपर जखने गप उठाएब आकि चारु दिससँ लोक आबि अन्टक-सन्ट गप चालि देत।
आँखिक इशारासँ नागेसर भौजाइकेँ सोर पाड़ि बैसैले कहलक। तइ बीच डोमन कहलखिन- “समैध, समधीनकेँ पुछिअनु जे केना बेटाक बिआह करतीह?”
नागेसरकेँ अगुआ लुखिया बजलीह- “अहाँ सभ मरदा-मरदी गप करु। हमरा कोनो चीजक लोभ नहि अछि। नीक मनुक्ख घर आबए, बस एतबे लोभ अछि।
मने-मन नागेसर सोचैत जे हमर कतबो मोजर अछि, तइसँ की? कोनो की हमरा बेटा-बेटीक बि‍आह हएत? तँए हम अनेरे मुँह दुरि किअए करब। बाजल- “समैध, अहाँ अपने मुँहसँ बजियौक जे केना करब?”
भात-दालि सनैत डोमन बजलाह- “समैध, जहिना अहाँक भातिजक बिआह हएत तहिना तँ हमरो बेटीक हएत.....। लुखियाकेँ खुश करै दुआरे पुन: आगू बजलाह- “हमर बेटी साक्षात् लछमी छी। साल भरि की दसोसाल घुमि कऽ लड़की ताकब तँ ओहन नहि भेटत। तहूमे आब? आब तँ लोक मनुक्ख थोड़े घर अनैत अछि, अनैत अछि रूपैया।
नागेसर टाटक अढ़मे बैसलि भौज दिस तकैत बाजल- “खर्च-बर्च करै लेल किछु तँ चाहबे करी....।
नागेसरक बातकेँ कटैत लुखिया बजलीह- “नै! हम केकरो बेटीकेँ पाइ लऽ कऽ अपना घर नै आनब।
नागेसर भौजक गप्प सुनि चुप भऽ गेल।
मुस्की दैत लुखिया बजलीह- “जखन दुआरपर आबि बेटा मंगलनि तँ हम दऽ देलियनि। आब हमरा की अछि। दू कौर अन्न आ दू बीत कपड़ा टा चाही। घर तँ आब ओकरे सबहक -बेटे-पुतोहुक- हेतै।
डोमन बजलाह- “समैध, पाँच गोटे जे बरिआती चलब, हुनकर सुआगत हम नीक जकाँ करबनि। बड़-कनियाँकेँ, जे नव घर ठाढ़ करैक वस्तु अछि से तँ देबे करब। तेकर अतिरक्ति एकटा बड़द आ एकटा लगहरि गाए सेहो देब।
सबहक मुँहसँ हँसी निकलल। बिआहक दिन तँइ भऽ गेल। मुस्की दैत लुखिया बजलीह- “आब की हम कहबनि जे समधीनो हमरे दऽ दोथु।
ठहाका दैत डोमन उत्तर देलकनि- “बाह-बाह, तब तँ दुनू रोटी चाउरेक।
चारि बजे सूति-उठि चाह पीबि, पान खा डोमन नागेसरकेँ कहलखिन- “समैध, सभ बात तँ तइये भऽ गेल। आब चलब।
दुनू जोड़ धोती नागेसर आंगनसँ आनि आगूमे रखि देलकनि। धोती देखि डोमन बजलाह- “समैध, कतबो गरीब छी तँए की मुदा इज्जति बचा कऽ रखने छी। बेटीक दुआरपर केना धोती पहिरब?”
टाटक भुरकी देने लुखिया देखैत रहथि। डोमनक बात सुनि दोगसँ बाजलीह- “समैधकेँ कहिअनु जे जखन बेटी आओत तखन ने बेटीक घर हेतनि, ताबे तँ हमर छी कीने। हम दैत छि‍यनि‍।
ठहाका दैत डोमन बजलाह- “जखन हमर बेटी ऐ घर आओत तखन ने ओ समधीन हेतीह आकि अखने?”
तइ बीच पीहुआ, सभकेँ गोड़ लगलक। एक्कैस रूपैया डोमन पीहुआ हाथमे देलखिन।
थोड़े दूर अरिआति नागेसर घुमैत बाजल- “समैध, आब बढ़िऔक। नवम् दिनक दिन भेल। अहाँ काजमे लगि जाउ आ हमहूँ लगि जाइ छी।
डोमन दुनू बापुत बिदा भेलाह। आगू बेटीक बिआहक ओरिआओन रहनि किन्तु मनपर नचैत रहनि लुखियाक गप्प- “केकरो बेटीकेँ पाइ लऽ कऽ अपन घर नै आनब।देह सिहरि गेलनि बेटा दिश तकलनि। ओहो आब बि‍आह जोगर भऽ गेल रहए।

No comments:

Post a Comment