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Thursday, June 7, 2012

सतभैंया पोखरि‍ :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


सतभैंया पोखरि‍

पोखरि‍ कहि‍या खुनौल गेल, के खुनौलनि‍? मि‍थि‍लांचलक इति‍हासे जकाँ अखन धरि‍ हराएले अछि‍ मुदा एते गामक सभ मानैत अछि‍ जे पोखरि‍क बतारी ने एकोटा गाछ-बि‍रीछ अछि‍ आ ने आन कोनो। ओना पोखरि‍ नमहर रहने रंग-बि‍रंगक कि‍स्‍सा-पहानी अछि‍ये। कि‍यो दैंतक खुनौल कहैत अछि‍ तँ कि‍यो राजा-रजवारक। मुदा जे होउ, हजार बर्खसँ ऊपरक पोखरि‍ जरूर अछि‍ जे सभ मानैत अछि‍। शुरूमे पोखरि‍क महार वा अग्‍नेय जेहेन रहल हुअए मुदा अखन महारो झड़ि‍-झुड़ि‍ गेल अछि‍ आ पोखरि‍क पेटो गदि‍याह भऽ गेल अछि‍। गाममे एकेटा पोखरि‍ मुदा एहेन अछि‍ जे एते सघन गाम रहि‍तो पोखरि‍क अभाव गौआँकेँ नै हुअए दैत अछि‍। चाकर-चौड़गर पेट अखनो अछि‍ये। मुनहर जकाँ दर्जनो ठेक-बखारी सदृश तँ अछि‍ये।
गाममे सभसँ पुरानो आ झमटगरो परि‍वार मात्र सतभैंयाकेँ रहलनि‍। पोखरि‍यो हुनके सबहक छि‍यनि‍। केना भेलनि‍ से तँ नीक जकाँ कि‍नको नै बूझल छन्‍हि‍ मुदा जहि‍यासँ देखै छी तहि‍यासँ हुनके सबहक कब्‍जामे रहलनि‍ अछि‍। ओना पोखरि‍ तँ गामे-गाम अछि‍ मुदा आन गामक पोखरि‍सँ अलग पहि‍चान अखनो अछि‍ये। ने एते नमहर कोनो गामक पोखरि‍ अछि‍ आ ने एना चारू महार घाट अछि‍। एक घाट रहने पारो नै लगैत जेना आन-आन गामक पोखरि‍मे अछि‍। आन गामक पोखरि‍मे बड़ बेसी अछि‍ तँ एकटा दूटा घाट अछि‍। एकटा मरद लेल आ दोसर जनाना हेतु। तहूमे रंग-बि‍रंगक बेवहार बनल अछि‍। जइक चलैत जँ कहि‍यो गाममे आगि‍-छाइ लगैए तँ गामे सुन भऽ जाइए, मुदा एकोटा पोखरि‍ आइ धरि‍क इति‍हासमे कहि‍यो ऐ गाममे नै भेल अछि‍। ओना गामक बनाबटि‍ आन गामसँ भि‍न्न अछि‍। कते गाम पूबे-पछि‍मे सूर्यमंडल गढ़नि‍क बनल अछि‍ जइसँ पूर्बा-पछबाक झोंकमे, आगि‍ लगने धुआ-पोछा जाइए।
बि‍नु जाठि‍क पोखरि‍ रहने, अनगाैआँ तँ पोखरि‍ मानबे ने करैत मुदा पोखरि‍क सभ काजक पूर्ति होइत, तँए गौआँ लेल धैन-सन। कि‍यो अनगौआँक गपपर धि‍यानो ने दैत। सभ यएह मानि‍ चलैत जे कि‍यो अपन मुँह दुइर‍ करैए। नीककेँ अधला कहने थोड़े अधला भऽ जाएत आ अधलाकेँ नीक कहने थोड़े नीक भऽ जाएत जँ एहेन बजनि‍हार अछि‍ तँ ओ अपन मुँह दुइर करैए। सभकेँ अपन-अपन गुण-धर्म होइ छै से तँ अछि‍ये। चारू महार घाट रहने सबहक काजो चलि‍ते अछि‍। तहूमे आन गाम जकाँ कोनो रोक-राक अछि‍ये नै जे ई घाट पुरुखक छि‍ऐ तँ ई घाट जनानाक। ई फल्‍लांक खुनौल छि‍यनि‍ तँए दोसरकेँ नहा देथि‍न आकि‍ नै, ई हुनकर मन-मरजी छि‍यनि‍। कि‍यो जाठि‍ गाड़ि‍ पोखरि‍क पहि‍चान बनौने छथि‍ तँ छथि‍। पोखरि‍क पहि‍चान भलहिं जाठि‍ होउ मुदा झील, सरोवर आ धारमे जाठि‍ कहाँ रहैए। तँए कि‍ ओकरा कुमार कहि‍ कात कऽ देबै। आम खेनि‍हारकेँ आम चाही आकि‍ गाछ आ गाछी गनत। हँ, ई बात जरूर जे आमक गाछ केना होइ छै, केना लगौल जाइ छै, केना ओकर सेवा कएल जाइ छै एकर जानकारी रहक चाही। जइ जाठि‍ लऽ लऽ अनगौआँ नचै छथि‍ ओ तँ ईहो कहता ने जे जाठि‍क काज की होइ छै? जँ बीच पोखरि‍क पानि‍क नाप मानल जाए तँ जइ पोखरि‍क कि‍नछड़ि‍येमे उपयोग करै जोकर -नहाइ-धोइ-क पानि रहत ओकर बीचक नाप नपैक जरूरते की रहत। ओहन पोखरि‍क मानि‍ये कते हएत जे एकटा घाट, जे भलहिं सि‍मटि‍ये-ईटाक कि‍अए ने होउ, बना बाकी भागमे मोथी रोपि‍ खेत बना लेब। जँ कहीं आगि‍ लागत तँ‍ छूत-अछूत कहि‍ गामे जरा देब, मुदा आगि‍ लगबे ने करै से ने सोचब आ करब। जनि‍येँ कऽ पोखरि‍केँ अघट बना दुइर कऽ लेब, नहाइ-धोइ जोकर नै रहए देब तँ ओइमे दोख केकर? खएर जे होउ मुदा चारू महार घाटो आ बि‍नु जाठि‍क पोखरि‍ तँ अछि‍ये।
शुरूहेसँ गामक सतभैंया परि‍वार जोतल-चौकि‍औल खेत जकाँ समतल रहल अछि‍। बीच-बीचमे बाढ़ि‍-भुमकममे थोड़-बहुत ऊवर-खावर बनबो कएल तँ ओकरा पुन: सरि‍या समतल बना लेल गेल। मुदा भवि‍ष्‍य दि‍स नै देखि‍, भूते दि‍स देखने तँ भूत लगबे करै छै। मुदा तेकरो भगबैक तँ उपाए होइते अछि‍। बाबेक अमलदारीसँ सतभैंया अपन परि‍वारक पहि‍चान परोपट्टामे बनौने रहल अछि‍। ओना सात भाँइक भैयारीमे तीन भाँइक परि‍वार नावल्‍द भऽ गेलनि‍ जइसँ अगि‍ला पीढ़ी अबैत-अबैत सातसँ चारि‍ भैयारी रहि‍ गेल। सात भाँइसँ सतरह हेबाक चाहै छल से नै भऽ चारि‍पर उतरि‍ गेल तेकर कारण भेल जे एक भाँइ बेटीक बाढ़ि‍मे दहा गेलाह। ढेनुआर नक्षत्र जकाँ बेटीक आगमन जोड़ा-पल्‍ला जे अाबए लगलनि‍ से ठीके सातसँ सतरह तँ नै मुदा  एकसँ एगारह जरूर भऽ गेलनि‍। मुदा एकसँ एगारह होइतो हुनकर मुँह कहि‍यो मलीन नै भेलनि‍। मनक वि‍श्वास अंत धरि‍ बनले रहि‍ गेलनि‍ जे प्रकृति‍केँ अपन गति‍ छै, ओ अपन नि‍अम-नि‍ष्‍ठासँ चलैत अछि‍। से नै तँ एक कम्‍पनीक वस्‍तु एक रंग होइ छै मुदा तइमे ओहन मेल-पाँच केना भऽ जाइ छै जे मेल-पाँच भेलोपर चारि‍-पाँच वा पाँच-छहसँ आगू-पाछू नै होइत अछि‍। भऽ तँ ईहो सकैत छल जे एक रंगाहे होइत वा एकसँ पाँचो होइत वा आरो अन्‍तर भऽ सकैत छल। मुदा से कहाँ होइए। जहि‍ना एकसँ सय धरि‍ गनू आ सएसँ एक दि‍स गनू पचास तँ बीचेमे रहत। तँए बेटा-बेटीक बाढ़ि‍ आबौ कि‍ रौदी होउ, मुदा अपन व्‍यासक अनुकूले रहैत आएल अछि‍ आ रहबो करत।

दोसर भाए जे बच्‍चेमे कुभेला भेलासँ गाम छोड़ि‍ परदेश गेलाह। से पुन: घूमि‍ कऽ नहि‍ये एलाह। बाल-बोधकेँ सेवाक जरूरति‍ होइ छै, होइत एलैए आ सभ दि‍न होइत रहतै। मुदा जखन वएह बाल-बोध चेतन भऽ जाइ छथि‍ तखन हुनक वि‍वेक कि‍ कहै छन्‍हि‍ से तँ आनक-आन नै बूझि‍ सकत। ओ अपने अपन कर्तव्‍यकेँ ि‍नर्धारि‍त कऽ जीवन-पथपर चलताह। खैर जखन धड़ति‍ये भूमि‍ छी तँ जतए बास करब ओकरे मातृभूमि‍ बना लेब। तहूमे ओइ बच्‍चाक तँ अधि‍कार बनि‍ये जाइए जेकर जन्‍म जतए बनि‍ गेल हुअए। मुदा प्रश्‍न तँ अहूसँ आगू अछि‍। जँ धरती स्‍वर्ग वा वैकुण्‍ठ बनए चाहए तखन अपनामे बँटि‍ कऽ बनत आकि‍ सम्‍मलि‍त भऽ कऽ? जँ से नै तँ हम कतए छी, ई तँ देखए पड़त। मुदा मि‍थि‍लांचलोक भूमि‍ तँ वएह भूमि‍ छी जे सभ दि‍न प्रकृति‍ प्रदत्त रहल अछि‍, अखनो अछि‍ आ आगूओ रहबे करत। जँ से नै तँ कहाँ अरब-करोड़पर लटकल वा करोड़ लाखपर। सभ दि‍न जहि‍ना रहल तहि‍ना अखनो अछि‍। भलहि‍ं कतौसँ हमहूँ कहि‍ऐ जे छीहे।

तेसर भाइक परि‍वार ऐ लेल आगू नै बढ़लनि‍ जे शरीरसँ ि‍नरोग रहि‍तो मनसनक बच्‍चेसँ भऽ गेलखि‍न। जइसँ ने बि‍आह केलनि‍ आ ने कोनो भाइक बात-वि‍चारमे कहि‍यो रहलनि‍। तहि‍ना बाँकी भाय मि‍लि घरक मोजरे समाप्‍त कऽ देलकनि‍। मुदा तइले हुनको मनमे कहि‍यो दुखो नहि‍ये जन्‍म लेलकनि‍। जखन भाय सभ लगमे बैसथि‍ तँ गरजि‍-गरजि‍ बजथि‍ जे मने सभ कि‍छु छी। जे मनक मालि‍क ओ सबहक मालि‍क। मुदा भाइयो सभ बि‍ना कि‍छु टोकारा देने चुपे-चाप सुनि‍ लैत जे अनेरे टोकने आरो बरदि‍आएब। से नै तँ एक झोंक बाजि‍ नारद जकाँ वीणा हाथमे लेताह आ जेमहर मन हेतनि‍ तेमहर वि‍दा हेताह। असगरूआ परि‍वारमे एककेँ बौड़ने परि‍वारेक उसरन होइए मुदा गनगुआरि‍ जकाँ एकटा टाँग टुटनहि‍ कि‍ हएत। एक तँ परि‍वार, टोल, समाज गढ़ि‍ लइए। हम सभ तँ कहुना तैयो चारि‍ भाँइ बँचल रहबे करब। बाॅझी लगने डारि‍ फड़ै नै छै मुदा तँए ओ गाछसँ हटल रहैत एहेन तँ नै होएत।
पि‍ताक अमलदारीमे चाकर-चौड़गर, चौघारा घरक आंगन हथि‍सार सन दरबज्‍जा, चन्‍द्रकूप सदृश इनार, सरोवर सदृश बि‍नु जाठि‍क पोखरि‍क बीच जि‍नगि‍यो संयमि‍त तँए हर-हर खट-खटक प्रश्ने कि‍अए उठत। ओना सातो भाँइक सातो काज सात रंगक। जि‍नगीक लेल सातो उपयोगी मुदा गुण, बेवहार आ उपयोगक हि‍साबसँ छोट-पैघ। हर-हर खट-खट नै होइक कारण एकटा दोसरो छल जे अपन-अपन बुधि‍क उपयोग कऽ स्‍वतंत्र रूपसँ अपन-अपन काज सम्‍हारैत छलाह। एक काजमे ने करैक बखेरा ठाढ़ होइत जे एना-हेतइ, एना नै हेतइ। मुदा एक वि‍चारमे तँ से नै होएत। समटल बि‍छानक सुख जेहेन सुति‍नि‍हारकेँ होएत, तहि‍ना ने समटल परि‍वारोकेँ होएत। छोट ओसार रहत आ बच्‍चा बेसी रहत तँ ओंघरा-ओंघरा खसबे करत। खाइ काल भि‍न्ने छि‍पली-बाटी फुटत जहि‍ना वस्‍तु व्‍यापारक सहायक छी तहि‍ना व्‍यापार उपयोगक। जइ वस्‍तुक जते उपयोग जि‍नगीक लेल होएत ओ व्‍यापार ओते चतड़ैत अछि‍। मुदा प्रश्न अछि‍ जँ सभ फूल फूले छी तँ देवताक बीच बटाएल कि‍अए अछि‍? जँ देवताक परसाद परसादे छी तखन महादेव कि‍अए बॉतर।
अखन धरि‍ सतभैंया परि‍वारमे घराड़ीसँ लऽ कऽ बाध धरि‍क जमीनमे दुइये बेर बटबारा भेल छलनि‍ जे खूटे-खूट भेल छलनि‍ मुदा ऐबेर रूप बदलि‍ गेलनि‍। भीतरि‍या गुमराहटि‍ आबि‍ गेल छलनि‍। मुदा खुलि‍ कऽ आगू भऽ बजैले कि‍यो डेग आगू नै बढ़बए चाहैत। जहि‍ना सूखल जरनाक बीच आगि‍ हवा पबि‍ते धधकि‍‍ उठैए तहि‍ना पोखरि‍क लहरि‍ जकाँ उठए लगलनि‍। कारणो छन्‍हि‍ जे कहि‍या कतए जे कँचका ईटापर खपड़ा घर बनौलनि‍ सएह अखनो धरि‍ चलि‍ अबैत छन्‍हि‍‍। नि‍च्‍चा जहि‍ना मुसहनि‍ माटि‍ भरल तहि‍ना अकासक तरेगन जकाँ फुटल खपड़ा लग इजोत होइत। शुद्ध कि‍सानक घर। चाहे खेतमे रहि‍ बरखा हुअए आकि‍ सुतली राति‍क बरखा हुअए कोनो अन्‍तर नै। जहि‍ना गोनरि‍क दुनू भाग एक्के रंग भेने उनटा-पुनटाक प्रश्ने नै। पहि‍लुका चद्दरि‍क चारू भाग बराबरे होइत छलै आ जे बँचल अछि‍ ओ अखनो अछि‍ये। तहि‍ना धोति‍योक मुदा आजुक जे सि‍ंह-मांगबला चद्दरि‍ वा अन्‍य जे वस्‍त्र अछि‍ ओ एकभग्‍गुए नै, संयुक्‍त परि‍वारक एकांकी रूप जकाँ बनि‍ गेल अछि‍! जहि‍ना जनमौटी बच्‍चा छोटसँ पैघ बढ़ैत ि‍सर्फ मानवे नै महामानवो बनैत अछि‍ मुदा वएह मनुष्‍य मृत्‍युक पश्चात अछि‍यामे जखन जरबए जाए लगैत अछि‍ तँ पैघसँ छोट बनैत-बनैत लोथरा जकाँ बनि‍ जाइत अछि‍ तहि‍ना ने भऽ रहल अछि‍। ओना खूटे-खूट बटनौं छुतकाक केश कटबैकाल सभ बराबरे भऽ जाइत छथि‍। बाधक जमीनमे कनी घटि‍यो-बढ़ी भेलनि‍ मुदा घराड़ी आ पोखरि‍मे कोनो तरहक कमी-बेशी नहि‍ये भेल छलनि‍। अपन-अपन उपयोगक अनुकूल रहैत आएल छथि‍। मुदा सतभैंया परि‍वारकेँ गामक लोक एके परि‍वार बूझि‍ ने कि‍यो कि‍छु बजैत आ ने कि‍छु पुछैत। जइसँ पूर्बा-पछबाक कोनो लसरि‍ नहि‍ये लगल छलनि‍। जखन लसरि‍ये नै तँ असरि‍ कि‍अए। ततबे नै ईहो बुझैत जे जहि‍ना गाछक डारि‍ फुटने -छि‍टकने- फूल-फड़ थोड़े बदलि‍ जाइ छै। अनेरे देह रगड़ने तँ अपनो रगड़ा लगबे करै छै। मुदा से नै भेल, भऽ ई गेल जे सात भैयारीमे तीन भाँइकेँ सुखने गाछक डारि‍ जकाँ चारि‍ये टा रहि‍ गेलनि‍। तहू चारि‍मे दूटा बँझि‍आइये गेलनि‍ तँए फल-फूलक असे नै रहलनि‍। मुदा दुइयो भाँइ रहने चारि‍ भैयारीक परि‍वार पसारै जोकर तँ भइये गेलनि‍। गड़बड़ एतबे भेल जे एक भायकेँ एक आ एक भायकेँ तीन बेटा भेलनि‍। एक रहि‍तो मानवीय वि‍चार आर्थिक वि‍चारमे बदलि‍ते रगड़ा-रगड़ी शुरू भेल। जखने तीन भाँइ एक दि‍स हएत आ दोसर दि‍स कि‍यो असगरे पड़त तँ नि‍श्चि‍ते छह हाथ पएरक जगह दूटा हाथ-पएर झँपेबे करत। मुदा चद्दरि‍ तँ ओइठाम ने झाँपि‍ चारूकात अड़ि‍अबैत जइठाम ओढ़ि‍नि‍हारसँ डेढ़ि‍या-दोबर होइत, से तँ परि‍वारमे भइये गेल छन्‍हि‍।
वि‍चारवान परि‍वार सभ दि‍नसँ रहलनि‍ जँ से नै रहलनि‍ तँ आन-आन गाममे एहेन-एहेन परि‍वार मटि‍यामेट भऽ गेल। मटि‍येमेट नै कते जहल भोगलक तँ कते अस्‍पताल, कते फाँसीपर लटकल तँ कते कपार फोड़ा मरल। मगर वि‍चारेक चलैत ने परि‍वारमे ने कहि‍यो सम्‍प्रादायि‍क आ ने जाति‍क हवा कनि‍यो डोलौलकनि‍। समैक प्रभाव तँ सभ कि‍छुपर पड़ि‍ते अछि‍ से तँ परि‍वारोमे भेलनि‍। ओना जेकरा समए कहै छि‍ऐ -दि‍न-राति‍- ओइमे ओते बदलाव कहाँ आएल, कि‍एक तँ अखनो बारहो मास आ छबो ऋृतु होइते अछि‍। अपन-अपन गुण-धर्म तँ सभ बचौने अछि‍। मुदा एकटा गड़बड़ तँ परि‍वारमे भइये गेलनि‍। ओ ई जे एक भाइक बेटा श्‍याम, भैयारीमे असगरे छथि‍न। असगर भेनाइ तँ बड़ पैघ बात नहि‍ये भेल मुदा पि‍ताक भैयारीमे छोट भाइक बेटा रहने कि‍छु गड़बड़क संभावना तँ जनमि‍ये गेलनि‍।

बाबाक अमलदारीमे सातो भाँइक बीच बटबारा भेलनि‍ मुदा ओ पुन: समटा गेलनि‍। कारण ई जे शुरूमे तँ बटबारा भेलनि‍ मुदा तीन भाँइक परि‍वार घटने फेर समटा गेलनि‍। केना नै समटाइत, तीनूकेँ कियो पानि‍यो देनि‍हार तँ नहि‍ये रहलनि‍।
चारू भाँइक बीच एहेन संबंध बनल रहलनि‍ जे भीन-भीनौजीक परि‍स्‍थि‍ति‍ये पैदा नै लेलकनि‍। तेकर कारण भेल जे चारू भाँइक चारि‍ तरहक कारोबार रहलनि‍। एक काजमे चारि‍ गोटेकेँ रहने वैचारि‍क मतभेद होइक संभावना रहै छै। कि‍एक तँ एक्के काज कते ढंगसँ कएल जा सकैत अछि‍। तहूमे जखन समैक मोड़ अबै छै तखन काजोमे मोड़ अबै छै। सभठाम भलहि‍ं नै आबौ मुदा नहि‍ये अबै छै सेहो नै कहल जा सकैए। चारू भायकेँ परोछ भेने परि‍वारमे भि‍नौजि‍क संभावना बनलनि‍। संभावनाक कारण भेलनि‍ जे एक भायकेँ एकेटा बेटा जखन कि‍ दोसरकेँ तीन भेलनि‍। दू भाँइ तँ मेटाइये गेलखि‍न।
छोट भाइक बेटा रहि‍तो श्‍याम भैयारीमे सभसँ जेठ खाली भैयारि‍येमे जेठ नै पढ़ै-लि‍खै दि‍स वि‍शेष झुकान रहनि‍। एक तँ पढ़ैक लगन दोसर सुभ्‍यस्‍त परि‍वार रहबे करनि‍। मुदा तीनू भाँइ घनश्‍याम खेलौड़ि‍या बेसी। सदि‍खन सि‍नेमे-पत्रि‍का आ खेले-पत्रि‍का उनटा-पुनटा देखैत। पढ़ैपर तँ ओते नजरि‍ नै, मुदा फोटोपर बेसी नजरि‍ पड़ैत। ओना अखन धरि‍ श्‍यामक वि‍चारमे कोनो दूजा-भाव नै आएल छलनि‍ जइसँ कोनो तरहक नीक-अधलाक प्रश्ने नै उठल छल। जे कि‍छु कारोबार छलनि‍ सामूहि‍क छलनि‍। तहूमे एकटा जबर्दस्‍त गुण श्‍याममे छन्‍हि‍ जे घरसँ बाहर धरि‍क जे कोनो काज होइ छन्‍हि‍ ओ तीनू भाँइ -अपना लगा चारू- केँ जरूर जानकारीमे दइये दैत छथनि‍। मुदा भैयारीक संग दि‍यादनि‍यो तँ बराबर भइये जाइत अछि‍। एक बाप-माए वा सहोदर पीती-पि‍ति‍आइनि‍क बीच जे सि‍नेह रहैत ओ तँ चारि‍ गामक चारि‍ दि‍यादि‍नी एने तँ कि‍छु-ने-कि‍छु गड़बड़ भइये जाइत अछि‍। कारणो अछि‍ मि‍थि‍लांचलोमे एक सीमा कातक गाम आ दोसर सीमा कातक गामक बीचक दूरी कि‍छु-ने-कि‍छु खान-पान, रहन-सहन, बोली-वाणीमे कि‍छु-ने-कि‍छु दूरी बनले आबि‍ रहल अछि‍। तहूमे जइ इलाकामे बाढ़ि‍क उपद्रव कम छै आ जइ इलाकामे बेसी छै, दुनूक जीवन शैलीमे बदलाब अबै छै। जखने जीवन-शैली बदलत तखने जीवन पद्धति‍ बदलत। जखने जीवन पद्धति‍ बदलत तखने जीवन लीला बदलए लगैत अछि‍। तहि‍ना गाममे अखड़ाहा रहने कि‍छु-ने-कि‍छु लूरि‍ कुस्‍तीक भइये जाइ छै।
तहि‍ना मध्‍य मि‍थि‍लांचलक भाषामे पश्चि‍म भोजपुरी सीमा क्षेत्रक सुआसि‍न एने भाषामे कि‍छु-ने-कि‍छु रूप बदलले रहै छै। जइसँ भाषा -बोली-वाणी- पर प्रभाव पड़ै छै। तहि‍ना पूवरि‍या इलाका वा दछि‍नवरि‍या इलाकाक प्रभावसँ पड़ि‍ते आबि‍ रहल अछि‍। जहाँ धरि‍ कुटुमैतीक प्रश्न अछि‍ ओ तँ भागलपुरसँ मोति‍हारी आ जनकपुरसँ सि‍मरि‍या धरि‍ होइते आबि‍ रहल अछि‍।
एकाएक श्‍यामक मनमे भाइक प्रति‍ सि‍नेह कि‍छु कमए लगलनि‍। सि‍नेहमे कमी एने काजमे कमी आबए लगलनि‍। जेना शुरूसँ परि‍वारक काजक जानकारी सभकेँ दैत अबैत छेलखि‍न तइमे कि‍छु कमी आबए लगलनि‍। तीनू भाँइ खेलौड़ि‍या स्‍वाभावक रहबे करनि‍, तइ बीच काजक आदेश कम पाबि‍ आरो खेलौड़ि‍या भऽ गेल। अखन धरि‍ घनश्‍यामक नजरि‍मे श्‍याममे कोनो कमी नै देखि‍ पड़नि‍। हि‍साबक जरूरते ने बुझथि‍। श्‍यामक मनमे िसनेह कमैक कारण भेल जे पत्नी सदति‍ काल कानमे घोरि‍-घोरि‍ पि‍अबनि‍ जे सम्‍पत्ति‍ अपन आ सुख-मौज दि‍याद सभ करैए। पहि‍ने तँ श्‍याम पत्नीकेँ सेवक बुझैत आबि‍ रहल छलाह। ई नै बुझैत छलाह जे दि‍आदि‍नीसँ दि‍यादि‍यो ठाढ़ करैत अछि‍। मुदा वि‍चारो तँ कि‍छु छिऐ अड़ि‍ कऽ पत्नी पूजे करैकाल खि‍सि‍या-खि‍सि‍या बाजए लगलखि‍न-
जइ पुरुखकेँ कोनो बात बुझैक ज्ञाने ने छै, ओ पुरुख नै पुरुखक झड़ छी।
पत्नीक बात श्‍यामकेँ छातीमे धक्का देलकनि‍। मन कहए लगलनि‍ जे झड़क अर्थ तँ ओ होइत जे कखन अछि‍ आ कखन अपने झड़ि‍ जाएत तेकर कोनो ठेकान नै। जे पाछू दि‍स ससरत ओ पौरुष केना पाबि‍ सकैए। मुदा अखन मुँह खोलैक तँ समए नै अछि‍ ि‍सर्फ सुनैक समए अछि‍। जहि‍ना बाल्‍टी भरि‍ पानि‍मे नेबो आ चीनी रखि‍ये देने तँ सरबत नै बनैत अछि‍। नेबोकेँ काटि‍ कऽ गाड़ि‍ रस मि‍लौल जाइत अछि‍ तहि‍ना चीनि‍योक अछि‍। जहि‍ना एक शब्‍द वा एक पाँति‍ पढ़लासँ बूझि‍मे नै अबैत तँ या तँ दोहरा-दोहरा पढ़लासँ वा अगि‍ला-पछि‍ला पाँति‍क मि‍लानसँ बूझल जाइत अछि‍ तहि‍ना अगि‍ला बातक प्रतीक्षामे श्‍याम आँखि‍ उठा पत्नीपर देलनि‍। नजरि‍क पानि‍ देखि‍ पत्नी बूझि‍ गेलखि‍न जे अगि‍ला बात सुनैक प्रतीक्षा कऽ रहल छथि‍‍। जहि‍ना मधुमाछीक सभ छत्तामे एक्के रंग मधु नै रहैत छैक, कोनोमे कम तँ कोनोमे बेसि‍यो रहैत आ संग-संग नव-पुरान -पहि‍लुका-पछि‍ला- सेहो रहैत अछि‍। तँए ठि‍कि‍या कऽ ओइ छत्ताकेँ पकड़ब बुद्धि‍यारी छी जइमे डगडगी भरल नवका मधु रहैत अछि‍। पुरना तँ दवाइ-दारूक लेल नीक, खेबा लेल तँ नवके नीक। वकील जकाँ अपन पक्ष रखैत पत्नी बजलीह-
अखन धरि‍ अहाँ एतबो ने बुझै छि‍ऐ जे चारू भाँइक बीच पनरहटा बाल-बच्‍चा आंगनमे अछि‍। पनरहोक खर्च तँ सम्मि‍लि‍तेसँ चलैए। एके रंग लत्ता-कपड़ा, खेनाइ-पीनाइ अछि‍ मुदा ई बुझै छि‍ऐ जे ऐमे अपन कते हएत आ दि‍याद-वादक कते हएत?”
श्‍यामक नजरि‍ धसए लगलनि‍। पत्नीक वि‍चारमे कि‍छु तत्व बूझि‍ पड़लनि‍ मुदा स्‍पष्‍ट नै भऽ सकलनि‍। प्रतीक्षाक नजरि‍ उठा आगू तकलनि‍। अवसरक लाभ उठबैत पत्नी दोहरौकनि‍-
पनरहटा बाल-बच्‍चामे अपन तीनटा अछि‍। बाकी बारह तँ भैयारि‍येक भेल। तइ संग अपने दू परानी छी आ ओ छह परानी अछि‍। कनी जोड़ि‍ कऽ देखि‍यौ जे अधा हि‍स्‍सामे अपन कते हएत आ कते हुनका सबहक।
श्‍यामक मन सहमलनि‍। मन कहलकनि‍ जे पत्नी अक्षरत: सत्‍य कहलनि‍। सम्‍पत्ति‍क अर्थ होइत छै सुख-भोग आकि‍ परसादी बाँटब।
पूजासँ उठि‍ भोजन कऽ श्‍याम घनश्‍यामकेँ सोर पाड़ि‍ कहलखि‍न-
घनश्‍याम, दुनि‍याँक तँ बेवहारे भैयारीमे भीन होएब रहल अछि‍। अपनो सभकेँ कम नै नि‍महल। गाममे देखै छि‍ऐ जे कते छौड़ाकेँ मोछक पम्‍हो ने आएल रहै छै आ बापसँ भि‍न भऽ जाइए अपना सभ तँ सहजहि‍ धीगर-पूतगर भेलौं। भीन भऽ जाह।
जेना धनश्‍यामो प्रतीक्षेमे रहए तहि‍ना धाँइ दऽ बाजल-
भैया, सभ दि‍न अहाँक आदेश मानैत एलौं, आइ नै मानब से उचि‍त हएत। मुदा अहाँ जहि‍ना जेठ भाय छी तहि‍ना तँ रामो-बलराम अछि‍। भलहि‍ं ओ छोट भाए छी, जे कहबै से करत। मुदा तैयो बि‍ना पुछने कि‍छु नै कहब।
बड़ बढ़ि‍या, अखन जा कऽ पूछि‍ लहक। सुति‍ कऽ उठै छी तखन फेर गप करब।
घनश्‍याम उठि‍ कऽ वि‍दा भेल।

भैयो, तीनू दि‍यादनि‍यो आ दुनू भाएओकेँ एकत्रि‍त कऽ घनश्‍याम बाजल-
सबहक बीचमे कहै छी। भैया बजा कऽ कहलनि‍ जे भीन भऽ जाह। से कि‍ वि‍चार?”
बलराम- वि‍चार की भैया, ओ असगर छथि‍ तँ जीवि‍ये लेताह आ हम तँ सहजहि‍ तीन भाँइ छी। हुनका जे मनो खराप हेतनि‍ तँ ने कि‍यो डॉक्‍टरो ऐठाम लऽ जाइबला नै हेतनि‍ आ ने बजारसँ दवाइ कीनि‍ कऽ अनैबला हेतनि‍।
घनश्‍याम- अहाँ सबहक की वि‍चार?”
पहि‍ल दि‍यादि‍नी- अपन परि‍वार बूझि‍ नौरी जकाँ दि‍न-राति‍ खटै छी तइपर जे पाँचो मि‍नट चाहमे देरी हेतनि‍ तँ साँढ़-पाड़ा जकाँ गर्द करए लगताह। भने नीक हएत। जानो हल्‍लुक हएत।

सुति‍ उठि‍ चाह पीब पान खा श्‍याम घनश्‍यामकेँ सोर पाड़लखि‍न। अबि‍ते घनश्‍याम लगमे बैसि‍ बाजल-
जे वि‍चार अहाँक अछि‍ भैया, से हमरो अछि‍। अखने बाँटि‍ लि‍अ।
घनश्‍यामक बोली सुनि‍ श्‍याम सहमलाह। मनमे उठलनि‍ जे हम जे बुझै छि‍ऐ तइसँ भि‍न्न ने तँ बुझैए। मुदा बात तँ आगू बढ़ि‍ गेल आब जँ पाछू हटब सेहो नीक नै।
श्‍याम- बटवारामे कोनो बेवधान तँ छहे नै। सभ कि‍छु अधा-अधी भेलह। तखन बाप-पुरुखाक बनौल जेठांश होइए से तँ तोहीं बजबह?”
श्‍यामक वि‍चार सुनि‍ घनश्‍याम बाजल-
अहाँ पि‍तासँ हमर पि‍ता जेठ छलाह। संयोग नीक रहलनि‍ जे भि‍नौजी नै भेलनि‍। जखन पि‍ताक अधि‍कारक हि‍साबसँ आइ बटै छी तँ हुनकर जेठांश कते हेतनि‍ से तँ हमर हएत कि‍ने।
श्‍याम- देखह, तमसा कऽ नै बाजह। सभ दि‍न अपन सतभैंया परि‍वार वि‍चारक परि‍वार मानल जाइत रहल अछि‍, तइठाम कनी-मनी चीज ले झगड़ब नीक नै।
घनश्‍याम- बात तँ बड़ सुन्‍दर आ बड़ सोझगर कहलौं मुदा एक वंशक सभ रहि‍तो अहाँ अइल-फइलसँ रही आ हम सभ बटाइत-बटाइत एते बँटा जाइ जे घसाएल सि‍क्का जकाँ सभ कि‍छु रहि‍तो चलबे ने करी, से केहेन हएत?”
श्‍याम- तोहर की वि‍चार?”
घनश्‍याम- तीनू भाँइक वि‍चार अछि‍ जे घरसँ घराड़ी, खरि‍हानसँ खेत धरि‍ चारू भाँइ एकरंग कऽ लि‍अ। से नै तँ.....।
श्‍याम- तँ की?”
घनश्‍याम- ई तँ माटि‍क चर्च केलौं। पोखरि‍ सेहो तहि‍ना बाँटब। जँ से दइले तैयार नै हएब तँ जमीनक फैसला जमीनपर हएत।
श्‍याम- सएह।
घनश्‍याम- हँ, सोलहन्नी सहए।
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