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Tuesday, May 29, 2012

ति‍लकोरक तरूआ :: जगदीश्‍ा प्रसाद मण्‍डल


ति‍लकोरक तरूआ

जहि‍ना नमहर दोकानमे प्रवेश करि‍ते जीवनोपयोगी वस्‍तु देखि‍ मन उबि‍आए लगैत जे ईहो कीन लेब, आेहो कीन लेब। मुदा पाइयो आ वि‍चारो तँ ओतै रहैए जतए पहि‍नेसँ वि‍चार भेल अबैए। इच्‍छा रहि‍तो कि‍सुनलाल डेरामे डाइनिंग टेबुल नै लगा ओसारेपर अपनो दुनू परानी आ अति‍थि‍यो-अभ्‍यागतकेँ खुअबैत। कम दरमाहा साधारण जि‍नगी। शहरमे रहि‍तो गामक चालि‍-ढालि‍ बेसी, कारणो स्‍पष्‍ट जे शहरी बनैले शहरी जि‍नगी बनबए पड़ैत। जे ओहि‍ना नै पाइक हाथे बनैत। पाइयक काज मुँहसँ थोड़े होइ छै। भलहिं मुँहक आगू पाइक मोल जेहेन होइ। खास्‍ता कचौड़ी मुँहमे लाड़ैत-चाड़ैत गर लगबैत देवकान्‍त बजलाह-
आह, बुझलह कि‍ने कि‍सुनलाल कि‍छु होउ, दुनि‍याँ सात बेर कि‍अए ने उनटै-पुनटै मुदा अपना ऐठाम गामक जे ति‍लकाेरक तरूआ अछि‍, ओकर तुलना कतए हएत?”
देवकान्‍त भाइक बात सुनि‍ कि‍सुनलालक मनमे कनि‍यो हि‍लकोर नै उठलै। कि‍एक तँ मनमे यएह नाच होइत रहै जे डेरामे गौआँ एलाहेँ तँए ई नै अजस हुअए जे खेनाइयोमे ठकि‍ लेलक। नीक कि‍ दब भरि‍ पेट कहुना खाथि‍। जँ से नै हेतनि‍ तँ दसठाम बजताह जे खाइयो ले भरि‍ पेट नै देलक। तही बीच मनमे उठलै जे पूछि‍-पूछि‍ खुआएब नीक। जे कम-सँ-कम पहि‍लबेर तँ कहता जे हँ इच्‍छापूर्ण खेलौं आब कने अराम करैक ओरि‍यान करह आ तोहूँ सभ खा-पीअह, काज-उदम देखहक। दैन्‍य दृष्‍टि‍ये देखि‍ कि‍सुनलाल बाजल-
भाय सहाएब, खेबा जोकर बनल छै की नै। कहाँ खाइ छि‍ऐ चारि‍टा आरो नेने आबी?”
पहि‍लुक ढकार ढेकड़ैत देवकान्‍त उत्तर देलक-
अँए हौ, तँू हमरा राक्षस बूझै छह जे आगूमे एत्ते वस्‍तु ढेरि‍या देलह हेँ आ तइपर सँ परसन लइले कहै छह?”

जहि‍ना डारि‍मे लागल मचकीक पहि‍ल आस होइत तहि‍ना, कि‍सुनलालक मनमे आस जगि‍ते बाजल-
भाय सहाएब, कनि‍ये-कनि‍ये समान सभ परसै ले घरवालीकेँ कहने छलि‍ऐ। जेना-जेना भोजन करैत जेताह तेना-तेना परसि‍-परसि‍ दैत जेबनि‍।
तहसाना जकाँ तहि‍आएल भोजन पाबि‍ देवकान्‍त भाइक मन गदगदाएल। कि‍सुनलालक बात अंतो ने भेल छलै आकि‍ बि‍च्‍चेमे देवकान्‍त बाजि‍ उठलाह-
अँए हौ कि‍सुनलाल, तँू अनठि‍या बूझै छह। अपन घर छी जे खगत आकि‍ बेसी खाइक मन हएत ओ मांगि‍ कऽ लेब। तइले तोरा मनमे कि‍अए होइ छह जे भुखले उठि‍ जाएब। हम ओहन लोक नै ने छी जे खाइओ लेब आ दुसि‍यो देब।
तखने कि‍सुनलालकेँ पत्नी- सिंहेश्वरी हाथक इशारासँ शोर पाड़ि‍ कहलखि‍न-
ति‍लकोरक तरूआ दऽ भैया की कहलखि‍न?”
कि‍अए?” कि‍सुनलाल पुछलक।
ति‍लकोरक साग आ चटनी तँ खाइ छी, बनबैयोक लूरि‍ अछि‍ मुदा तरूआ नै खेने छी।

ओना सिंहेश्वरी देवकान्‍तसँ अढ़ भऽ कहैत मुदा बोलीमे एहेन टाँस देने जे देवकान्‍तो बुझथि‍न। साग आ चटनी सुनि‍ते मनमे उठलनि‍ जे साग तँ कत्ते दि‍न खेने छी। तहूमे जखन पेशाबक गड़बड़ी रहए तँ पथ्‍यमे यएह चलैए। मुदा चटनी तँ नै खेने छी। लाज-संकोच तँ ओकरा ने होइ छै जेकरा बूझि‍ पड़ै छै जे भारी छी। मुदा हम कोन भारी छी जँ भारी रहि‍तौं तँ बुझले रहैत। नै बुझल अछि‍ तँ बूझि‍ लेब कोन अधला हएत। जँ कहि‍यो खाइयेक मन हएत, बुझलेहे ने काज देत। अचार मुँहमे लैत मुँहक कर समेटि‍ कऽ घोटैत बजलाह-
कि‍सुन, ई की कोनो गाम-घर छी जे कनि‍याँ एत्ते संकोच करै छथि‍। एतै आबह कने एकटा बातो बुझैक अछि‍।
देवकान्‍तक बात सुनि‍ कि‍सुनलाल तँ ससरि‍ कऽ लगमे आबि‍ गेल। मुदा सिंहेश्वरी -पत्नी- कि‍छु आगू बढ़ि‍, कि‍छु पाछू दि‍स आबि‍ कऽ ठाढ़ भऽ गेलीह। जहि‍ना कोनो बच्‍चोसँ कोनो गप बुझए बेरमे रंग-रंगक प्रश्न, पूरक प्रश्न पूछि संतुष्‍ट होइत अछि‍। तहि‍ना देवकान्‍तोक मनमे होन्‍हि‍ जे कोनो बात‍ बूझैले सोझा-सोझी नीक होइ छै लजकोटर तँ बहुत बात छोड़ि‍ये दैत अछि‍ आ बहुत बि‍सरि‍यो जाइत अछि‍। दोखाह तँ दुनू भेल। अपनाकेँ नि‍च्‍चा उतरि‍ सिंहेश्वरीकेँ ऊपर चढ़बैत देवकान्‍त कहलखि‍न-
कनि‍याँ आइ ने कि‍सुनलाल दू-पाइ कमाएल हेँ तँ फुलपेंटो पहि‍रने देखै छि‍ऐ, मुदा जखन गाममे छल तखन तँ वएह एकटा चरि‍हत्थी गामछा छै। डाँड़मे लपेटने रहै छल। गप-सप्‍प करैमे कोनो-लाज-धाक नै हेबाक चाही। हम जे बुझै छि‍ऐ से अहूँ पूछू आ जे नै बुझै छि‍ऐ से हमहूँ कि‍अए ने पूछब। तइले लाज-संकोचक कोन काज छै।
कि‍सुनलाल- भाय सहाएब, कहैले तँ गाममे नै छी मुदा गामे जकाँ एतौ छी। ने ओते कमाइ होइए जे होटल घुमब, ज्‍वेलरी घुमब। बस डेरासँ कारखाना आ कारखानासँ डेरा अबै-जाइ छी। अठबारे -छुट्टी दि‍न- कनी-मनी घूमि‍ लइ छी सेहो पएरे।
पति‍क बात सुनि‍ सिंहेश्वरी पाछूसँ ससरि‍ कनी आगू बढ़ि‍ ति‍रछि‍या कऽ ठाढ़ भऽ बजलीह-
कि‍ कहलखि‍न?”
देवकान्‍त- कहलौं यएह जे ति‍लकोरक चटनी केना बनबै छि‍ऐ?”
देवकान्‍तक प्रश्न सुनि‍ सिंहेश्वरी बजलीह-
भैया, हि‍नका कि‍ कोनो नै बुझल हेतनि‍।
देवकान्‍त- कनि‍याँ, कोनो कि‍ हमरा जँचैक अछि‍, धरमागती कहै छी, नै बुझल अछि‍।
तइ बीच सामंजस्‍य करैत ि‍कसुनलाल बाजल-
भाय सहाएब, ओना हम तरूओ खेने छी, सागो खेने छी आ चटनि‍यो खेने छी। धीया-पुतामे पाकल ति‍लकोरक फड़ सेहो खेने छी। जाबे माए जीबैत रहए ताबे आन दि‍न तँ नहि‍ये मुदा जुरशीतल पाबनि‍मे ति‍लकोरक तरूआ अवस्‍से तड़ए। बड़ खर्चाक चीज छी। ओते खर्च कऽ खाएब असान थोड़े छै।
पति‍क सह पबि‍ते सि‍ंहेश्वरी बजलीह-
भैया, हमर माए-बाप बड़ गरीब छलाह। भरि‍ पेट अन्नो नै भेटैत छलनि‍ तखन जे तरूआ-बगहरूआक सेहन्‍ते करि‍तथि‍ से पार लगि‍तनि‍।
सि‍ंहेश्वरीक बात सुनि‍ मुड़ी डोलबैत देवकान्‍त बजलाह-
हँ, से तँ ठीके। हमहूँ की कोनो बेसी खेने छी। जहि‍या कहि‍यो घरदेखीमे कतौ जाइ छी तखन खाइ छी। सेहो आब उठाबे भेल जाइए। आब तँ सहजहि‍ लोक तेहेन चि‍कनि‍या भऽ गेल जे अल्‍लुऐक पाँचटा पूरा लइए। नवका तूर तँ खाइक कोन गप जे बुझबो ने करैत हेतइ। पात-पुत कहि थोड़े खाएत। अच्‍छा छोड़ू ऐ सभकेँ, असल बात तँ छुटले अछि‍।
वि‍चारक सामंजस्‍य पाबि‍ सि‍ंहेश्वरीक उत्‍साह जगलनि‍, बाजलीह‍-
भैया, साग तँ बुझले हेतनि‍ जहि‍ना कदीमा पात, अड़ि‍कंचन पातकेँ कत्तासँ काटि‍ भुजल जाइ छै तहि‍ना ति‍लकोरो पातक होइ छै।
हूँहकारी भरैत सि‍ंहेश्वरीक बातकेँ मानि‍ देवकान्‍त बजलाह-
हँ-हँ, ति‍लकोरक साग तँ केत्ता दि‍न खेने छी। मुदा चटनी नै।
जहि‍ना नव काज केने, नव जगहपर पहुँचने वा नव लोकसँ दोस्‍ती भेने मनमे खुशी होइत तहि‍ना दस बर्ख पहि‍लुका खेलहाक चरचा करैमे सि‍ंहेश्वरीकेँ सेहो मनमे खुशी उपकलनि‍। मुस्‍कुराइत बजलीह-
भैया, अड़ि‍कंचन पातकेँ कदीमा पात वा आन पातक तरमे दऽ पतौड़ा बना आगि‍मे पकौल जाइ छै, तहि‍ना ति‍लकोरो पातकेँ पकौल जाइ छै। जखन उपरका पात झड़कि‍ जाइ छै तखन बूझि‍ जाइऔ जे ति‍लकोरोक पात सीझ गेल हएत। ओकरा चुल्हि‍सँ नि‍कालि‍ चाहे पानि‍क वर्तनमे दऽ दि‍औ नै तँ कनीकाल सराइले छोड़ि‍ दि‍औ। जखन सरा जाएत तखन ओकरा पतौड़ासँ नि‍कालि‍ सि‍लौटपर थकुचि‍ कऽ पीसि‍ लि‍अ। बहुत मसल्‍लाक काजो नै पड़ै छै। चसगरसँ नून मि‍रचाइ दऽ दि‍औ। बस भऽ गेल। ओना लोक भातोमे खाइए मुदा रोटीक तँ बुझि‍औ जे जहि‍ना भातक दालि‍ तहि‍ना रोटीक ति‍लकोरक चटनी छी।
सि‍ंहेश्वरीक बात सुनि‍ तेसर ढकार ढेकरैत देवकान्‍त लोटा उठा पानि‍ पीबि‍ बजलाह-
कि‍सुनलाल, बहुत खेलि‍अह समानक आगू खेनि‍हार थोड़े ठठत। बड़ ओरि‍यान केने छेलह।
जहि‍ना नीक वि‍द्याथी बोर्ड वा युनि‍वर्सिटीमे टॉप केलोपर झुड़झुड़ाइत जे दुइयो प्रति‍शत नम्‍बर आरो रहैत तँ अस्‍सी प्रति‍शत पूरि‍ जइतए। तहि‍ना कि‍सुनलाल कहलकनि‍-
भाय सहाएब, कनि‍ओ आर खाइऔ।
आग्रह सुनि‍ देवकान्‍त बजलाह-
हम कि‍ कोनो राक्षस छी जे कतबो खाएब तँ पेटे ने भरत। मनुखक जे भोजन छि‍ऐ से तँ खेबे केलौं। तो नै अंदाज केलहक जे लोक कते खाइए। पेटेक कोन बात जे मनो भरि‍ गेल। अच्‍छा एकटा बात कहह जे अपन गौआँ के सभ ऐठाम, बम्‍बइमे रहै छथि‍?”
देकान्‍तक प्रश्न सुनि‍ कि‍सुनलाल मने-मन सोचए लगल बम्‍बइ सनक शहरमे के कतए रहैए ई भाँज तँ मात्र दुइये गोटोकेँ रहै छै। पहि‍ल जे काज नै करैए, दोसर जे कोनो कम्‍पनीक एजेंसी करैए। बाकीकेँ कोन जरूरत छै। अठबारे छुट्टी होइए तइमे कि‍ सभ करब। कपड़ा-लत्ता खींचब आकि‍‍ सप्‍ताह भरि‍क अधखड़ुआ नीन पुराएब, आकि‍ दुनू परानी मि‍लि‍ कोनो नव जगह देखि‍ लेब, आकि‍ भेँट-घाँट करब। तखन तँ ओहुना कि‍यो-ने-कि‍यो दर्शनीय जगहपर भेँट-घाँट भइये जाइ छथि‍। गाम-घरक हालो-चाल बूझि‍ लइ छी आ संग मि‍लि‍ चाहो-पान कऽ लइ छी। अपन मजबूरीकेँ छि‍पबैत कि‍सुनलाल बाजल-
भाय सहाएब, अहूँक जेठजन तँ परि‍वारे लऽ कऽ रहै छथि‍, हुनकासँ सभ भाँज लगि‍ जाएत। तखन हम एत्ते जरूर कहब जे जइ करखानामे काज करै छी‍ तइमे तीन गोटे छी। कहैले तँ उठे काज अछि‍ मुदा सभ दि‍न काजो लगैए आ एकेठाम सात दि‍नक पगारो भेटैए। तइमे रवि‍ दि‍नक सेहो भेटैए।
देवकान्‍त- अझुका तँ छुट्टी लि‍अए पड़ल हेतह?”
कि‍अए छुट्टी लि‍अए पड़त। कोनो कि‍ ओकर दरमाहाबला नोकरी करै छि‍ऐ। अझुका बदला रवि‍ दि‍न काज कऽ देबै। कोनो की स्‍कूल-आँफि‍स छी जे सोलहन्नी बन्न होइए। करखाना छि‍ऐ ने। सभ दि‍न चलि‍ते रहै छै।
परि‍वार कि‍अए गामसँ लऽ अनलहक ऐठामसँ कमे खर्चमे गामक परि‍वार चलैए?”
भाय सहाएब, अहूँ अनठा कऽ बजै छी। गाम-घरक लोकक कि‍रदानी नै देखै छी जे ताड़ी-दारू पीब-पीब कि‍ सभ कि‍रदानी करैए। अपन इज्‍जत अपने सोझामे नीको होइ छै आ लोक बचाइयो सकैए। तखन देखि‍यौ ज मनमे तँ अछि‍ये जे जखने गाममे रहै जोकर, कोनो काज ठाढ़ करै जोकर पूजी भऽ जाएत चलि‍ जाएब।
कते महीना बचै छह?”
एते दि‍न तँ बूझू जे कहुना कऽ गुजल केलौं मुदा आब छह माससँ गोटे महीना हजार रूपैया आ गोटे पनरहो सौ बचि‍ जाइए।
बैंकमे जमा करैत जाइ छह कि‍ने?”
बैक जाएब से छुट्टी होइए। एजेंट-फेजेंट तँ ढेरी अबैए मुदा ओकरा सबहक भाँजमे नै पड़ए-चाहै छी।
कमो पूजीसँ तँ गाममे काज चलै छै। बि‍नु पूजि‍योक चलै छै।
हँ से तँ चलै छै। जेकरा अपन कारोबार नै छै ओ दोसराक काज करैए। मुदा देखते छि‍ऐ जे कते बोनि‍ दइ छै। तहूमे आब कहुना-कहुना दुनू परानीमे आठ हजार महीना उठबै छी, ऐठाम महगी अछि‍ तँए कम बचैए। मुदा गाममे तँ कमसँ कम ओते कमाइ हुअए जे जहुना गुजर कटै छी तहुना पूरा सकी।
अपन कि‍ अन्‍दाज छह जे कते दि‍नमे पूरा लेबह?”
जँ भगवान नि‍केना रखलनि‍ तँ डेढ़-दू साल मे जरूर पूरि‍ जाएत। अहाँ भाय-सहाएब सबहक दोसरे दि‍न-दुनि‍याँ छन्‍हि‍।
भाय सहाएबक नाओं सुनि‍ते जहि‍ना भरल पेटक गरमी होइ छै तहि‍ना देवकान्‍तकेँ फूकि‍ देलकनि‍। मुदा अपनाकेँ सम्‍हारैत बजलाह-
सुथनी भाय-सहाएब। मन भेल जे कनी बमै देखी, दरभंगामे टि‍कट कटेलौं चलि‍ एलौं। तोहर नाओं-ठेकान लऽ लेने रहि‍हह। तँए तोरा डेरापर चलि‍ एलौं। भाइये छि‍आह तँ कि‍ ओइसँ सतरह-बर नीक तँू छह। कम-सँ-कम समाज बूझि‍ तँ सुआगत केलह।
अपन प्रशंसाा सुनि‍ कि‍सुनलाल वि‍ह्वल भऽ गेल। बाजल-
भाय सहाएब, ओते तँ कमाइये ने अछि जे‍ अइल-फइलसँ खर्च करब मुदा समाजक जँ कि‍यो डेरापर औताह तँ अनका जकाँ मुँह नै घुमा लेब।
कि‍सुनलालक सह पबैत देवकान्‍त बजलाह-
कि‍सुनलाल परि‍वारे सभ कोकणि‍ गेल तँ समाज केहेन हएत। मुदा तँए सोलहो आना परि‍वार कोकणि‍ये गेल सेहो बात नइए। जाबे धरतीपर धरम नै छै ताबे चलै केना-ए‍।
कि‍सुनलाल- भाय सहाएबक भेँट करबनि‍ की नै?”
मन तँ एको पाइ नै अछि‍ मुदा जखन ऐठाम आबि‍ गेलौं तखन नहि‍यो भेँट करब उचि‍त नहि‍ये हएत। तोरा तँ हुनकर मोबाइल नम्‍बर बूझल हेतह कि‍ने?”
हँ से तँ लि‍खल अछि‍। मुदा मोबाइल अपना कहाँ अछि‍?”
बुथपर सँ तोहीं कहि‍ दहुन जे देवकान्‍त गामसँ ऐला अछि‍। जँ गप करए चाहता तँ अपने कहथुन नै तँ जानकारी तँ भेटि‍ये जेतनि‍।
भायपर बि‍गड़ल देखि‍ सि‍ंहेश्वरी देवकान्‍तकेँ पुछलकनि‍-
भैया, एना खि‍सि‍आएल कि‍अए छथि‍न?”
देवकान्‍त- कनि‍याँ, की कहब कहैले तँ पाइ-कौड़ीबला कहबै छथि‍। तहि‍ना घरक घरोवाली छथि‍न। अपना तँ कनी-मनी कुल-खनदानक लाजो होइ छन्‍हि‍ मुदा घरवाली जे छथि‍न से तँ भगवाने देल छथि‍न।‍
सि‍ंहेश्वरी- जखन अपने नीक छथि‍ तखन हुनका घरवालीसँ कोन मतलब छन्‍हि‍?”
देवकान्‍त- मतलब पुछै छी। की कहब, बजि‍तो लाज होइए जे एके परि‍वारक छी तखन एना कि‍अए बजै छी। मुदा नहि‍यो बाजब सेहो तँ गलति‍ये हएत। अपने जे भाय सहाएब छथि‍ से मरदे-ने-मौगि‍ये, बलि‍गोबना छथि‍। जहाँ कि‍छु बाजए लगताह आ पत्नीक आँखि‍पर नजरि‍ पड़तनि‍ आकि‍ बोलि‍ये बदलि‍ जाइ छन्‍हि‍।

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