Pages

Sunday, September 20, 2020

#मुराम_जगह #श्री_जगदीश_प्रसाद_मण्डल #मैथिली_साहित्य

     आने गाम जकाँ कुमारघाट सेहो एकटा गाम अछि। गामक चौबगली गाम जहिना ऊँचगर अछि, जइसँ चासक संग बासो ऊँचगर रहने नीक सेहो अछिए। ओना, गाममे अखन, वर्तमानमे कोनो धार-धुर नहि अछि, जे अछियो से गामसँ आठ-दस किलोमीटर हटले अछि, मुदा गामक किछु गहींर जमीन, जे उत्तरसँ दच्छिन मुहेँ अछि, ओकरा लोक अखनो नदीए कहैए। आन-आन खेतसँ माटियो भिन्न अछिए। माने ई जे गामक जेते जमीन अछि, ओ अछि मटियार, खरिआइ, चिक्कैन इत्यादि, आ नदीक बगलक जे जमीन अछि ओ दोरस, दोमट अछि आ नदी पेटक जे माटि अछि ओ गोंगा बाउल आ दोखरा बालुक तँ नहि अछि मुदा मेहिकी कोसिपुरिया बाउल जरूर अछि। गहींरगर रहने आने गहींर खेत जकाँ फसल सेहो होइते अछि। लोकक अबाहि भेने गाम-समाजक जनसंख्या सेहो बढ़िते आबि रहल अछि। जखने जनसंख्याक बढ़ोत्तरी हएत तखने भीनौज भेने, परिवारमे भीन-भीनौज भेने घर-अँगना बढ़बे करत, जइसँ घराड़ीक खगता बढ़बे करैए। से कुमारघाटमे सेहो भेल जइसँ नदीकेँ, माने मुइलहा नदीकेँ भरि-भरि घर-अँगना सेहो करीब पचास गोरे बना नेने छैथ। गामक माटिये जकाँ गाममे अनेको जातिक बास सेहो अछिए। ऐठाम ई नहि कहए चाहै छी जे गाम भलेँ सभ जाइतिक किए ने हुअए मुदा कहबैए खास जातिक गाम, कारण जे होइ, बस एतबे कहए चाहै छी जे जहिना सभ गाममे खूबलाल, बिपैतलाल आ कारीलाल छैथ तहिना कुमारघाटमे सेहो खूबलालो, बिपैतलालो आ कारियोलाल छथिए। नाम भलेँ एहने आन गाममे नहि हुअए, मुदा लोक तँ ओहन छेबे करैथ जेकर किरिया-करम आ चालि-ढालिमे एकरंगाहे जकाँ अछि।

परोपट्टामे पान-सातटा सभसँ ऊँचगर गाम अछि, ऊँचगर गामक माने ऐठाम भौगोलिक अछि। भौगोलिक ई अछि जे एकोठामक दू गाम एहेन अछि जे एकटा गाम खूब ऊँचगर अछि आ दोसर गाम नीचरस। जइसँ विपरीत परिस्थिति एकठाम दूटा गामकेँ रहितो भइये जाइ छै। जँ बरखा-बाढ़िक प्रभाव बेसी पड़ल तँ ऊँचगर गामक मुँह-कान लाल भऽ जाइ छै आ नीचरस गामक मुँह मलिन भऽ कारी भऽ जाइ छै। मुदा लगले विपरीत परिस्थिति सेहो बनिते अछि। ओ बनैए जे जँ बरखा कम भेल, जइसँ बाढ़ियो ने आएल आ रौदी भऽ गेल तखन नीचरस गामक, उपजा-बाड़ी भेने, मुँह-कान लाल भऽ जाइए आ ऊँचगर गामक मुँह मलिन भऽ करिया सेहो जाइते अछि।

परोपट्टाक पाँचो-सातो गामक एहेन सौभाग्य बनियेँ गेल अछि जे उपजाक दृष्टिसँ परोपट्टामे खुशहाल गाम मानले जाइए। मानलो केना ने जाएत, अहाँ आमक बजार जाइ छी, जाइते अपन मिथिलाक आम मोन पड़बे करैत हएत। जखने मोन पड़त तखने करपुरियाक करपुरक सुगन्ध आ बेलबाक बेलक सुगन्ध मनमे लगबे करत। जखने से भेल, माने आमक प्रति आकर्षण बढ़ल तखने ने विचारए पड़त जे गाम अछि कोसी-कमलाक सासुर बनल आ अपने मन दौड़बै छी फल-फुलवनक..! ऐठाम एकटा विचारणीय प्रश्न अछि, ओ अछि जे की ओहन गाम जे गामक बीच गाम अछि, माने कोसी-कमलाक झमारसँ बाहरक गाम अछि, तेही गामटा मे करपुरियाक आ बेलबाक सुगन्ध लगि सकैए आ बाँकी गाममे नहि लागि सकैए, सेहो बात नहियेँ अछि। जँ नीचरस गाम अछि तँ ओइमे किछुकेँ विशेष गहींर बना माछ, मखान, सिंगहार, बर्ड़ी इत्यादि उपजौल जा सकैए आ भरोठापर फल-फुलवन सेहो लगौले जा सकैए।

आने-आन गाम जकाँ कुमारघाटक लोक सेहो एहने छैथ जे पढ़ैक माने नोकरीए बुझै छैथ। गुलटेन आ तेतर सेहो कँवरिया जकाँ, गाम लग माने पैरक नापसँ दू कोसपर कौलेज खुजने बी.ए. तक पहुँच गेल। पाछुआएल लोक जँ सिहन्ते करत तँ ओते ओजार-पाती जुटा केना पाबि सकैए। तखन तँ भेल जे साँपो मरि जाए आ लाठियो ने टुटए। स्नातक सेहो भऽ जाएब आ बेसी ओजार-पातीक ओरियानसँ सेहो बँचि जाएब। तँए जहिना तेतर दर्शनशास्त्र, मैथिली विषय रखि स्नातक बनए जा रहल अछि तहिना गुलटेन सेहो बनए जा रहल अछि। गामक स्कूलसँ कौलेज धरि दुनूक एके रंग जिनगी रहल तँए परिस्थिति दोस्तीक लग आनिये देने छेलइ। दुनूक बीच दोस्ती भइये गेल। ओना, दुनू दू जाइतिक मुदा परिवारक अर्थ-उपार्जनक एकरंग साधन रहने जिनगीक आचार-विचार, बेवहारमे एकरूपता आबिये गेल अछि।

संजोग बनल, बी.ए.मे जखन दुनू गोरे माने तेतरो आ गुलटेनो पढ़ै छल, दर्शनशास्त्रक शिक्षक ट्यूटोरियल क्लासमे पहुँचला, तखन मात्र दूइयेटा विद्यार्थी, तेतर आ गुलटेनकेँ दीनानाथ बाबू देखलैन। देखते दीनानाथ बाबूक मन मुसैक गेलैन। मुसकैक कारण भेलैन जे संजोग नीक अछि। आइये किए ने दुनूकेँ जिनगीक मुराम जगह देखा दिऐ।

सामान्य क्लासमे शिक्षक पढ़बै छैथ, मुदा ट्यूटोरियल क्लास तँ से नहि छी, शिक्षके विद्यार्थीकेँ पुछै छैथ। भेल तँ जइ मुहेँक प्रश्न उठल, उत्तर देनिहार तइ मुहेँ विदा हएत। सएह भेल। शिक्षक प्रश्न रखलैन-

अध्यात्म दर्शन की छी?”

अध्यात्मक नाओं जहिना तेतर सुनने तहिना गुलटेन सेहो सुननहि रहए मुदा दार्शनिक शिक्षक लग जवाब देब असान नहियेँ छी, मुदा तैयो जहिना तेतर जाइतिक आधारपर अध्यात्मक उत्तर देलकैन तहिना गुलटेन सेहो सम्प्रदायिक आधारपर उत्तर देलकैन।

दुनूक उत्तर सुनि शिक्षक बिगड़ला नहि, ओना दर्शनशास्त्रक शिक्षककेँ क्रोध लगले उठि जाइ छैन से गुण दीनानाथ बाबूमे नहि छैन। धिया-पुताक गलती देख जहिना माता-पिता हँसि कऽ कहै छैथ- धुर बकलेल’, तहिना दीनानाथ बाबू बजला-

धुर बकलेल, अध्यात्म दर्शन जीवनक ओ दिशा देखबैए जे जीबैक कलामे सभसँ असान अछि।

दीनानाथ बाबूक विचार सुनि जहिना तेतरकेँ उत्कण्ठा जगल तहिना गुलटेनकेँ सेहो जगल। उत्कण्ठा जगिते जेना दुनूक मनमे, माने गुलटेनोक मनमे आ तेतरोक मनमे अनेको जिज्ञासा जगि गेल, जे प्रश्न बनि मुहसँ निकलए चाहि रहल छेलै, तँए दुनू अपन-अपन प्रश्न उठबैले उठि कऽ ठाढ़, माने ब्रेंचपर सँ निच्चॉंमे दुनू गोरे ठाढ़ भेल। दुनूक जिज्ञासा देख, दीनानाथ बाबू दुनूकेँ कहलैन-

अपन-अपन प्रश्न कागजपर लिखू।

टटका प्रवाह तँए लिखबोक लेल अनुकूले भेल, दुनू अपन-अपन प्रश्न अपन-अपन कागजपर लिखि दीनानाथ बाबूक हाथमे दऽ देलकैन।

दुनूक प्रश्न देख दीनानाथ बाबू मने-मन विहियबैत विचारलैन जे किए ने आमक आँठीए लग पहुँच, धरतीसँ अकास धरिक वृतान्त बुझा दिऐ। दीनानाथ बाबू बजला-

बौआ, एकरा नीक जकाँ बुझि लेब जे मनुख अपने काज (किरिया, कर्म) केने सुखो पबैए आ दुखो पबैए, यएह जवाब भेल अध्यात्म ज्ञान आ मानव भेल दर्शन।

दीनानाथ बाबूक परिभाषाक शब्द एतेक असान छेलैन जे शब्दक ओझरौठ विचार दुनूमे सँ केकरो ने उठल। तँए कि परिभाषाक बीज परेख सकल, सेहो नहियेँ भेल। मुदा दुनूक मन जेना मस्त होइत आगू मुहेँ बढ़ए लगल तहिना दुनूकेँ भइये रहल छल। ओना, दीनानाथ बाबूक मनमे सेहो एकटा भ्रम पैदा लऽ लेलकैन। भ्रम ई जे अपने मने ने बुझलैन जे जहिना अपने अध्यात्म दर्शनक बाहरी रूप बुझि रहल छी तहिना गुलटेनो आ तेतरो बुझने हएत। मुदा से तँ भेल नहि, परिभाषा तँ जीवन-धारा नहि छी, जीवन-सूत्र छी, जैपर दीनानाथ बाबूक नजैर नहि गेलैन, नजैरियो केना जइतैन अपन जानब, मानब आ करब माने अपन बुधि, विचार, बेवहार एक बनि चलै छैन तँए नजैरसँ फड़ैक गेल छेलैन।

अध्यात्म दर्शनक परिभाषा सुनि जहिना गुलटेनकेँ भेल जे जीवनक रत्न भेट गेल तहिना तेतरोकेँ भेल। मुदा ई बुझबे ने केलक जे जखन देव-दानव समुद्र मथन केलैन तखन नूनगरहा पानिकेँ मथैत-मथैत जखन समुद्रक पेनी देखलैन माने समुद्रक थाह पौलैन तखन ने रत्न सभक खान भेटलैन। खाएर जे बुझलैन, मुदा एते आशा तँ मनमे आबिये गेलैन जे अध्यात्म दर्शन जीवनक पूर्ण सूत्र छी तँए जँ एहि सूत्रकेँ पकैड़ जीवनक घाट पार करए चाहब तँ पार भइये सकै छी। गुलटेन बाजल-

श्रीमान्, सूत्रक धागाक धारण केतएसँ शुरू होइए?”

गुलटेनक प्रश्न सुनि दीनानाथ बाबूक मनमे दोहरी विचार जगि गेलैन, पहिल आत्मात्मिक जिनगीक शुरूआत आ दोसर जगलैन रंगमंचपर (नाटकक मंचपर) जहिना सूत्रधार नाटकक रहस्यकेँ कवित्व स्वरमे सुना दइ छैथ, तहिना सुना देब।

..दुनूक बीच माने दुनू विचारक बीच, दीनानाथ बाबूक मनमे द्वन्द्व उठिये गेल छेलैन। मुदा तेकरा ओ दर्शनक दृष्टिसँ मनेमे समाधान केलैन। समाधान केलैन जे अन्हार-इजोतक बीच द्वन्द्व रहैए, मुदा जहिना अन्हारकेँ मेटाइते द्वन्द्व समाप्त भऽ जाइए तहिना सभ किछुमे अछि। अपनाकेँ निरविचार दार्शनिकक रूपमे स्थापित करैत दीनानाथ बाबू बजला-

बौआ सभ सुनह। दुनियाँकेँ देखैसँ पहिने अपनाकेँ देख लएह। जखन अपन रूपक थाह पेब जेबह तखन दुनियोँक, ऐठाम दुनियाँक माने अपन जीवनक दुनियाँसँ अछि, थाह पेब सकबह।

जहिना तेतर अधा-छिधा विचार दीनानाथ बाबूक बुझलक तहिना गुलटेनो बुझलक। जखने अधा-छिधा विचार बुझलक तखने दुनूक मनमे उठल, जे नइ बुझलौं से दोहरा कऽ किए ने बुझि ली। तँए दुनू अपन-अपन प्रश्न लऽ लऽ उठि कऽ ठाढ़ भेल।

दुनूकेँ उठि कऽ ठाढ़ होइत देख दीनानाथ बाबूक मन हलैस कऽ कलैस गेलैन। कलैसते विचार जगलैन जे किए ने पहिने अपन जिनगीकेँ अपना हाथमे रखि चलैक विचार बुझा दिऐ। जखन लोककेँ जीबैक लूरि हएत तखने ने ओ आगू ताकत जे परिवार की छी, समाज की छी, कला की छी आ संस्कृति की छी...। दीनानाथ बाबू बजला- बौआ सभ, अखन तोरा दुनू गोरेकेँ माता-पिता कोन तरहक जीवन बनेने छथुन?”

जीवनक आँकक ठेकान ने तेतरेकेँ छल आ ने गुलटेनेकेँ छल। नइ रहैक कारणो स्पष्ट अछिए। जन्मसँ लऽ कऽ अखन तक माता-पिताक आश्रयमे रहल अछि। सभ माता-पिता अपन बाल-बच्चाकेँ छातीमे सटा ऊपरसँ ऊपर पहुँचैक कामना ता-जिनगी करिते छैथ जा-जिनगी बाल-बच्चाकेँ बाल-बोध बुझै छैथ। ऐठाम बाल-बोधक माने अछि, एकबट्टू दिशाक। मुदा जैठाम बाल-बच्चामे अगर-मगर पनपए लगै तखने ओइमे मोड़ दैत सोझ करैक चली। जेकर अभाव मातो-पितामे भइये जाइ छैन। जइले कोनो साकार-स्वरूपक उदाहरण जरूरी भइये जाइए। ओना, उदाहरण आदि मानवसँ आजुक मानव धरिक वृतान्तसँ शास्त्र-पुराण भरले अछि, अपन जीवनक करीबक घटना तँ दोसरठाम भेट सकैए मुदा स्वयं घटिक घटना तँ अपन-अपन होइते अछि। विचारक गहराइमे दीनानाथ बाबूक मन जेना-जेना तरियाइत गेलैन, तेना-तेना नव-नव प्रश्नो सभ सोझमे अबैत गेलैन। विचारसँ विचार जहिना जन्म लइए तहिना दोसरो विचार बनैए आ दोसरक सहायक सेहो होइते अछि, तँए कहब जे विचारकेँ विचार उला-पका नहि खाइए, सेहो बात नहियेँ अछि, सेहो अछिए। ..द्वन्द्वमे पड़ल दीनानाथ बाबूक मन कखनो सफेदसँ लाल हुअ लगैन तँ लगले लालसँ करियाइयो लगलैन। बेसी रंग पड़ने एना होइतो अछिए।

द्वन्द्वसँ विचार निर्द्वन्द्व होइते दीनानाथ बाबूक मन गवाही देलकैन जे अपनो तँ दोसरेक अनुकरणसँ अनुक्रमित भेलौं, तहिना गुलटेनो आ तेतरो किए ने भऽ सकैए। तैसंग मन ईहो कहलकैन जे राम-रावणक थाह अथाह अछि, ने अयोध्याक ठेकान अछि आ ने लंकाक। जखन धरतियेक ठेकान नहि अछि तखन धरती-धारकक ठेकान की रहत। मुदा अपनो मिथिला जीवनदायिनी जानकीक जन्मभूमि नहि छी सेहो तँ नहियेँ कहल जा सकैए। ..जानकीक जीवन दर्शन पेबिते दीनानाथ बाबूक मन तड़तड़ा कऽ फड़फड़ा उठलैन। फड़फड़ाइते बजला-

बौआ, लक्ष्मीनाथ गोसाईक नाम सुनने छुहुन?”

दुनू गोरे अपन-अपन मने लक्ष्मीनाथ गोसाईकेँ ताकए बुधिक वनमे बिचड़ए लगल। लकड़ी खोजनिहारकेँ वनमे लकड़ी नइ भेटै छै आ घर दिस जखन विदा होइए तखन जहिना आशा टुटि गेल रहैए तहिना गुलटेनोकेँ भेल। ओना, तेतरक मनक चुहचुही थोड़-थाड़ जरूर चुहचुहा गेल छेलइ। चुहचुहाइक कारण भेल जे जखन अपना गामसँ मात्रिक  जाइए तखन लखनौरमे लक्ष्मीनाथ गोसाईक स्थानक दर्शन होइ छै, जेकरा आगुए देने रस्ता अछि। जइसँ स्थान बुझि जेबोकाल माने मात्रिक जेबाकाल, आ एबोकाल लक्ष्मीनाथ गोसाईक स्थानकेँ गोड़ लगिते अछि, तँए नाम मोन छेलै, जइसँ मनक चुहचुही चुहचुहा गेल छेलइ...। तेतरक हरियर मन देख दीनानाथ बाबू बुझि गेला जे जरूर किछु देखल वा सुनल बात तेतरकेँ अछि। दुखीकेँ दुख बेसाहब नीक नहि, तँए जेत्तै दुख गुलटेनक मनमे छै, ओकरा ओतै रोकि, ओइसँ काते-कात दोसर दिशा मोड़ि किए ने जीवनक प्रवाहकेँ प्रवाहित कऽ दिऐ...।

तेतरकेँ दीनानाथ बाबू पुछलैन- बौआ, तोरा लक्ष्मीनाथ गोसाईक विषयमे की सभ बुझल छह?”

ओना, दुनू गोरे माने तेतरो आ गुलटेनो अखन कौलेजक बी.ए.क ट्यूटोरियल क्लासमे दीनानाथ बाबूक संग गप-सप्प कऽ रहल छैथ, मुदा जीवनो तँ जीवन छीहे।

तेतर बाजल-

श्रीमान्, स्थानक घर तँ खढ़े-पातक छैन मुदा कुट्टीक बीचमे एक जोड़ खराम सेहो छैन।

ओना, दीनानाथ बाबू लक्ष्मीनाथ गोसाईक अनेको कुट्टी (स्थान) देखनहि छैथ, तँए किए मनमे उठितैन जे वन गमनक बीच जहिना रामक खराम अयोध्याक राजधानीकेँ सुशोभित केने रहल तहिना लक्ष्मीनाथ गोसाईक खराम सेहो मिथिलाक धरतीकेँ सुशोभित केनहि अछि। दीनानाथ बाबू बजला- आरो किछु?”

तेतर-

नहि।

जहिना कोनो किसानकेँ आँखिक देखल कोनो फसलक खेती रहल से अनुभव आ सोझे कानसँ सुनल रहल तइ विचारमे अन्तर आबिये जाइए। एक भेल अनुभवयुक्त विचार, दोसर भेल अनुभवहीन विचार। दीनानाथ बाबू बजला-

बौआ, एक्के घन्टाक घण्टीमे केते कहि सकबह आकि तोहीं सुनि सकबह। तँए लक्ष्मीनाथ गोसाईक जे मुराम चारि जगह छैन, तेते तँ कहि देब आवश्यके नहि अनिवार्य सेहो अछि।  

दीनानाथ बाबूक विचार सुनि गुलटेनक मनमे उठल जे जँ श्रीमान् एकलखाइते–एक प्रवाहमे–जँ चारू बात संगे बजता तखन अपनेसँ अड़ियाएब कने भारी भऽ जाएत। भारीए टा नहि भऽ सकैए, एक-दोसरमे ओझरा सेहो सकैए, तँए नीक हएत जे किए ने श्रीमानेसँ चारू बातकेँ फुटा-फुटा कहैले पहिनहि कहि दिऐन। गुलटेन बाजल-

श्रीमान्, चारू बातकेँ अड़िया-अड़िया कऽ कहबै तँ अपना बुझैमे बेसी नीक हएत।

ओना, गुलटेनक विचारपर दीनानाथ बाबू ओते धियान नहि देलैन, जइ धियानसँ गुलटेन प्रश्न रखने छला। तेकर कारण दीनानाथ बाबूक मनमे ई एलैन जे एक-दू-तीन-चारि, विषयमे प्रवेश करैसँ पहिने अंकसँ खतिया देब। एतबो जँ नहि बुझि सकत तँ लक्ष्मीनाथ गोसाईक जीवन-दर्शन बुझि सकत। दीनानाथ बाबू बजला-

पहिल अंक, लक्ष्मीनाथ गोसाईक जन्म सत्तरह साए तिरानबे (1793) इस्वीमे भेलैन। ओना, किछु गोरे 1788 सेहो इस्वी मानै छैन। परसरमा वासी श्री बच्चा झाक ओ कनिष्ठ पुत्र छला। हिनकर बच्चाक नाओं लच्छन छल। जिनकर जेठ भाए रघुनाथ झा छला। दरभंगा जिलान्तर्गत सोखदत ठाकुरक कन्याक संग विवाह भेलैन। हिनक मृत्यु अगहनक पंचमी, 5 दिसम्बर 1872 इस्वीमे भेलैन। 1811 इस्वीसँ रचना करए लगला।

अपना जनैत गुलटेनो आ तेतरो अपन बुझबकेँ अँकलक। जइ हिसाबसँ दीनानाथ बाबू बजला ओइ हिसाबमे दुनूकेँ केतौ चमत्कार वा आश्चर्यचकित करैबला बात नजैरमे नहि आएल। एक अंक समाप्त करैत दीनानाथ बाबू श्रोताक प्रतिक्रियाक प्रतीक्षा करिते रहैथ कि तेतर बाजल-

श्रीमान्, लक्ष्मीनाथ गोसाईक जीवन तँ एक साधारणे मनुख जकाँ छेलैन।

तेतरक विचारकेँ समर्थन करैत गुलटेन बाजल-

हमरो सएह बुझिमे आएल।

तेतरो आ गुलटेनोक विचारक जे एकरूपता छल ओकरा पकैड़ दीनानाथ बाबू बजला- सोल्होअना सही बुझलह। एकटा साधारण परिवारमे लक्ष्मीनाथ गोसाईक जन्म भेल छेलैन। जहिना सबहक जन्म परिवारमे होइए।

ऐगला विचार दीनानाथ बाबू ऐ दुआरे ने अनलैन जे भने खत्ती दैत चलब जइसँ जिनगी खँतिया जाएत। जखने जिनगी खतियाइ छै आकि अनेरे ने लोक बुझए लगैए जे भाय पढ़ैमे अनठेलिऐ तँए भुसकौल भेलौं आ काजमे अनठेलौं तँए काजक चोर भेलौं। आब अहाँ कहब जे सर्टिफाइड कॉपी देखाउ, से हम केतएसँ देखाएब, ओ तँ अपन जीवने ने दर्शन करौत।

तुलसीदास, कबीरदास, सूरदास इत्यादिकेँ अपन मनक पीपासा जहिना जगि गेल रहैन तहिना लक्ष्मीनाथ गोसाईकेँ सेहो आध्यात्मिक चेतना तेना प्रवल रूपमे जगि गेलैन जे कवित्व शक्ति पैदा सेहो लऽ लेलकैन। अपनाकेँ ऊँच्चकोटिक आत्मिक जीवन धारण करैक पाछू लक्ष्मीनाथ गोसाई संघर्षशील जीवनमे डेग बढ़ौलैन, जकरा ता-जीवन माने अन्तिम समय तक निर्वहन केलैन। सएह निरविचारी महात्मा लक्ष्मीनाथ गोसाईजी छैथ।

तेतरो आ गुलटेनोकेँ दीनानाथ बाबू ई सोचि पुछए चाहलैन जे भोजैत केहनो अकवाली किए ने होथि मुदा भोजक भाग्य लिखता भोज खेनिहार। तँए एकबेर जस-अजसक विचार बुझि ली। दीनानाथ बाबू बजला-

लक्ष्मीनाथ गोसाई सोल्होअना मनुख छला, तइमे केतौ शंको छह?”

दुनू गोरे बाजल-

नहि।

दीनानाथ बाबू बजला- पहिने हुनकर विचार बुझि लएह, पछाइत देवत्व शक्ति केना जगलैन आ अपना जीवनमे ओ की सभ केलैन से कहबह।

ओना, दुनूक मनमे माने तेतरो आ गुलटेनोक मन क्रमसँ आगू बढ़ि ओइ सीढ़ीपर पहुँच गेल जेतए हुनका देवत्व शक्ति प्राप्त भेलैन। मुदा तेकरा नजरअन्दाज करैत दीनानाथ बाबू बजला-

लक्ष्मीनाथ गोसाईकेँ समाजमे पसरल रूढ़िवादी विचारधारा जेना पसरल अछि तेना जँ ओकरा तोड़ल (हटौल) नहि जाएत तँ समाजक प्रवाह अन्धकार दिस बढ़ि जाएत।

दीनानाथ बाबूक विचार सुनि दुनू गोरे–माने, तेतरो आ गुलटेनो–सकपका गेल। सकपकाइक कारण दुनूकेँ दुनू भेल, पहिल विषयक गम्भीरता आ दोसर शब्दक गम्भीरता नहि बुझि सकल जे बात दीनानाथ बाबू सेहो मने-मन आँकि लेलैन, मुदा प्रश्नक बरखा दुनूक मनमे तेना झहैर रहल अछि जेना बदरीहन मेघ अकासमे मर्ड़ाइत रहैए। तँए प्रश्नक टोहकेँ टोहियबैक सीमापर दीनानाथ बाबू अपनाकेँ ठाढ़ केलैन।

विचारक गम्भीरताकेँ ने तेतरे सोझरा कऽ बुझि सकल आ ने गुलटेने बुझि सकल तँए अपन-अपन मनक आशा हारि दुनू संगे बाजल-

श्रीमान्, नीक जकाँ नहि बुझि पेलौं तँए नीक जकाँ कनी...।

दीनानाथ बाबू बजला-

गमैया भाषामे बुझा दइ छिअ। दूटा विचारक प्रश्न अछि, पहिल- लक्ष्मीनाथ गोसाईकेँ जाइतिक रूपमे जे जागरण छेलैन आ दोसर- सम्प्रदायकेँ सघन धार्मिक सीमाक रूपमे जे जागरण कएल छेलैन।

गुलटेन बाजल- श्रीमान्, नीक जकाँ नहि बुझि पेब रहल छी।

गुलटेनक विचारकेँ दीनानाथ बाबू मने-मन आँकि लेलैन जे समाजक जे तलहत्थी छै तइमे आ वैचारिक जे धरातल समाजमे अछि तइमे अकास-पतालक अन्तर अछिए। तेकरा अकानैत दीनानाथ बाबू बजला- दुनू गोरे नीक जकाँ सुनह। लक्ष्मीनाथ गोसाईक जन्म जहिया भेलैन तहिया अंगरेजी शासन देशमे पसैर गेल छल। तैसंग राजा-रजबारक राजशाही शासन सेहो पहिनहिसँ आबि रहल छल। पैछला जे इतिहास रहल सेहो राजे-रजबारसँ होइत आबि रहल छल।

इतिहासक नव बात सुनने, नव बातक माने भेल विद्यार्थी तेतर आ गुलटेनक रूपमे जहिना तेतरक जिज्ञासा जगल तहिना गुलटेनक सेहो जगल। गुलटेन बाजल-

कनी आरो फरिछा कऽ कहियौ।

विचारकेँ विराम दैत दीनानाथ बाबू बजला-

जेतबे समय घन्टीक शेष बँचल अछि तेतबे ने अखन कहि सकबह, तँए आन दिन नीक जकाँ कहबह। अखन एतबे बुझह जे समाजमे पसरल जे जाति-सम्प्रदाय अछि तइसँ बहुत ऊपर उठल विचार लक्ष्मीनाथ गोसाईक छेलैन। देशक जहिना प्रमुख देवस्थानक भ्रमण केलैन तहिना मिथिला-भ्रमण सेहो केलैन। अखन से सभ नहि। लक्ष्मीनाथ गोसाईकेँ जहिना क्रिश्चन धर्मबला शिष्य जौन-वरिआही कोठीक छेलैन तहिना मुसलमानी सम्प्रदायक मुंगेरक मुहम्मद गौस सेहो छेलैन, तहिना प्रयागक (उत्तर-प्रदेश) राजाराम शास्त्री सेहो छेलैन। अखन एतबे। किए तँ जन-जनमे बास करैबला लक्ष्मीनाथ गोसाई जन-जागरण केना केलैन, मुख्य विषय से अछि।

ओना, जन-जागरण शब्द दुनू गोरे, तेतरो आ गुलटेनो सुनने अछि मुदा ओकर बेवहारिक पक्ष की अछि तइसँ ने तेतरेकेँ आ ने गुलटेनेकेँ भेँट भेल छल। एक तँ नव शब्द, दोसर ओइ शब्द माने जन-जागरण शब्दक बेवहारिक रूप सुनि दुनूक मनमे एकटा आरो नव चेतनाक जन्म भेल। ओ भेल ई जे जेते शब्द अछि की ओकर बेवहारिक पक्ष माने क्रियागत पक्ष सेहो अछि? मुदा बाजल दुनूमे सँ कियो ने किछु। तेकर कारण भेल जे दीनानाथ बाबूक मुहेँ सुनि चुकल छल जे जेतबे समय घन्टीक (ट्यूटोरियल क्लासक) शेष बँचल अछि तेतबे ने कहि सकबह। दुनूक मनमे छलैहे जे पहिनहिसँ जे कहैत आबि रहला अछि पहिने ओ सुनब प्रमुख भेल। गुलटेन बाजल-

तीनटा बात तँ मोटा-मोटी आबिये गेल, शेष चारिम बाँकी अछि। तेकर उत्तर बुझला पछाइत जँ समय बँचत तँ रस्तो-रस्तो ऐ पश्नकेँ बुझि लेब।

गुलटेनक बात सुनि दीनानाथ बाबूक मनमे उठलैन जे जखन मनक पिपासा एते उग्र भऽ जगि गेल छै तखन अपनो किए ने स्वाती नक्षत्रक बून जकाँ बरैसिये जाइ। मुदा लगले मन बिचड़ैत विचार देलकैन जे कोनो रोगक दबाइ खोराके-खोराक देब अधिक हितकर होइए, तहूमे जे समाजिक रोग गाम-समाजक बीच पसरल अछि तेकरा जँ रानी सरंगाक खिस्सा जकाँ भरि राति सुनाइये देब तइसँ जे लाभक इच्छासँ सुनबए चाहि रहल छी, से थोड़बे हएत। ओ तखने हएत जखन एक-एक डेगकेँ हाथसँ नापि, हाथकेँ बीतसँ नापि आ बीतकेँ आँगुरसँ नापि ओकर रूप प्रकट करब। से तँ तखने सम्भव अछि जखन ओकर वैचारिक पक्षक संग बेवहारिक पक्ष सेहो राखल जाए। दीनानाथ बाबू बजला-

पहिल आ दोसर-तेसर विचार बुझैमे केतौ कोना बाधो बुझि पड़ि रहल छह?”

गुलटेन बाजल-

नहि।

तेतरकेँ सकपकाइत देख दीनानाथ बाबू बजला-

तेतर तोरा?”

तेतर बाजल-

हँ। दोसर आ तेसर माने जाति आ सम्प्रदायक बीच स्पष्ट अन्तर नहि बुझिमे आएल।

समयकेँ नजैरमे रखैत दीनानाथ बाबू बजला- दुनूक बीच अन्तर की अछि से नहि बुझि पेलह। मुदा दुनू की छी, केहेन अछि से तँ बुझबे केलह?”

तेतर-

हँ।

दीनानाथ बाबू बजला- चलह आगू चारिम बात (विचार)मे आबह। साधारण परिवारमे जन्म नेने लक्ष्मीनाथ गोसाई बच्चेसँ गाइयक चरवाहि करै छला। बच्चेसँ ज्ञानक पिपासा जगि गेलैन। जगैक अनेक कारणमे एकटा कारण ईहो रहलैन जे, ओना जन्म अठारहम शताब्दीमे भेल छेलैन, मुदा से भेल छेलैन शताब्दीक उत्तरार्द्धमे। मात्र साते-आठे बर्खक अवस्थामे अठारहम शताब्दी समाप्त भऽ गेल रहैन। मिथिलांचलमे उन्नैसमी शताब्दीमे पच्चीसटा रौदी भेल अछि।

रौदी सुनि गुलटैन बाजल-

बहुत रौदी भेल..!

विचारक प्रवाहमे तँ गुलटेन बाजि गेल मुदा रौदीक प्रभाव की होइए, से थोड़े बुझैत रहए। मुराम जगह देख दीनानाथ बाबू बजला-

पहिने एक सालक रौदीक फलाफल सुनि लएह। पछाइत दू-सलिया, तीन-सलिया, चरि-सलिया, केते कहबह, अपना ऐठाम माने मिथिलामे बारह बर्ख तकक रौदी भेल अछि। बुझले हेतह जे सीताक जन्म जखन भेलैन तखन मिथिला बारह बर्खक रौदीमे चलि रहल छल।

अखन तक जहिना गुलटेन तहिना तेतर, किताबमे तँ रौदी-दाही पढ़ने छल मुदा रौदी-दाहीक प्रभाव की होइ छै से थोड़े बुझै छल। दीनानाथ बाबूकेँ विषयमे आगू बढ़ैत देख तेतर बाजल- श्रीमान्, पहिने एक-सलिया रौदीक प्रभाव कहियौ, पछाइत दू-सलिया-तीन-सलियाक विषयमे कहबै।

तेतरक खँतियाएल विचार सुनि दीनानाथ बाबू बजला- बेस मोन पाड़ि देलह। एक-सलिया रौदीक भरपाइ (पूर्ति) करैमे परिवारकेँ पाँच साल लगैए। ओना, समय कम अछि, मोटी-मोटी ई बुझह जे आजुक जे परिवेश अछि, माने आर्थिक रूपेँ, ओ बाबा लक्ष्मीनाथ गोसाईजीक समयमे नहि छल। मुदा मनुखक की मूल समस्या अछि से नहि बुझै छला, सेहो बात नहियेँ अछि। जन-जनकेँ चिन्हैक चेतना लक्ष्मीनाथ गोसाईकेँ छेलैन। एक तँ ओहुना दस-एगारह बर्खक पछाइत लक्ष्मीनाथ गोसाई घरसँ निकैल विद्वत समाजक बीच अपन मनक जिज्ञासाकेँ पूर्ति करै छला, तैसंग अपन चिन्तन-मननकेँ सेहो प्रवाह-पूर्ण बनबैत आगू बढ़ैत रहला। नेपालक यात्राक बीच नाथ सम्प्रदायबला सभसँ सेहो भेँट भेलैन जइसँ विचारमे सेहो परिपक्वता एलैन।

ओना, लक्ष्मीनाथ गोसाई देशक प्रमुख धार्मिक तीर्थ-स्थानक भ्रमण सेहो केलैन, मुदा से दोसर-तेसर भ्रमणकर्तासँ भिन्न विचारक रूपमे केलैन। ओ भिन्न-रूप छेलैन देश-कोससँ लऽ कऽ ओइठामक जीवन-दर्शनकेँ (मनुक्खक जीवन दर्शन) देखब परिखब। तैबीच कवित्व शक्ति प्राप्त भेने अपन जीवन-दर्शनक हिसाबसँ गीत-भजन सेहो रचना करै छला। अपन जीवन-दर्शनक माने भेल उच्चकोटिक आध्यात्मिक दृष्टिकोण। एक राम वा कृष्ण वा कोनो आने ईश्वर किए ने होथि मुदा बेवहारिक रूपमे जे चलैन समाजक बीच, माने मनुक्खक बीच, भावात्मक रूपमे चलि रहल अछि तइसँ गम्भीर दृष्टिये लक्ष्मीनाथ गोसाई अपन रचना केने छैथ।

उन्नैसमी शताब्दीमे पच्चीसटा रौदी एक-सलियासँ चरि-सलिया-पन-सलिया धरिक भेल छल, तइ शताब्दीक तीन-चौथाइ समय लक्ष्मीनाथ गोसाई अपना आँखियो आ नजैरियोसँ देख कऽ नीक जकाँ परेख चुकल छला जे जीव-जन्तु ले पानिक की महत्व अछि आ ओकरा प्राप्त करैक उपाय की अछि। जन-जनमे जागरण अनैले लक्ष्मीनाथ गोसाईजी जान अरोपि लागि गेला। लोककेँ जीबैक उपायक जड़ि-मूलकेँ पकैड़ लोकक बीच अपनाकेँ रखि टोली बनबए लगला। जेकर उपयोग दू दृष्टिये करए लगला। पहिल, वैचारिक रूपमे आ दोसर बेवहारिक रूपमे। जखने लोक बेवहारिक जीवनकेँ पकैड़ चलए लगैए तखने जीवनक जे बाधा-रूकाबट अछि ओ हल हुअ लगैए। से साधारण जन-गणक बीच भेल। जइसँ गाम-गाममे लक्ष्मीनाथ गोसाईक स्थानक (रहैक स्थान) निर्माण भेल। स्थानक निर्माणक संग-संग पाइनिक उपाय सेहो कएल गेल। जन-सहयोगसँ पोखरिक निर्माण सेहो भेल। अखन तक बत्तीस स्थानक चर्च अछि। घुमन्तु सोभावक रहबे करैथ। घुमन्तु सोभाव लक्ष्मीनाथ गोसाईक ऐ दुआरे बनि गेल छेलैन जे मन तेते ललैक गेलैन जे होनि एक्के दिनमे मनुखक सभ दुख हेरि ली। मुदा जुग-जुगसँ अबैत जन-समाजक पराधीन जीवन रहल, जइसँ जहिना विचारक रूपमे तहिना बेवहारमे, जीवन टुटि कऽ एते निच्चाँ गिर पड़ल जे चिन्ह-पहचिन्ह लोकक मेटा गेल।

दीनानाथ बाबूक मुँह बन्न होइते गुलटेन बाजल-

एते पैघ महात्म्य लक्ष्मीनाथ गोसाईमे छेलैन?”

हँसैत दीनानाथ बाबू बजला-

जेते बुझै छहुन बौआ तहूसँ बेसी छेला, मुदा समाजो सत्ता आ शासनो सत्ता तेना ग्रसित करैत रहलैन जे जेते मनमे छेलैन तेते तँ नहि मुदा एते जरूर केलैन जेते एक साधारण मनुक्खक लेल असाध्य अछि। समैयो भऽ गेल, ऐगला विचार दोसर दिन करब।

q

शब्द संख्या : 3575, तिथि : 31 अगस्त 2020