Pages

Saturday, August 31, 2019

गलगर भैंस (रचनाकार श्री जगदीश प्रसाद मण्डल)


गलगर भैंस
राति जुआ गेल रहै, दुपहरिया टपि गेल रहै, चैत मासक अमवसिया तँए गरदा-माटिसँ अन्‍हार आरो भरि गेल रहइ। ओना, ओसकणसँ सेहो माघक राति आ पनिकणसँ भादवक अन्‍हारक अमवसिया होइ छै, से नै चैत मासक अन्‍हार! बारह तँ बित चुकल छल, सिन्धुनाथ आ जलेसरीक जिनगीमे जहिना बारह बजि चुकल छल तेना नहि, मुदा एक नै बाजल छल। जहिना अन्‍हारसँ एक-दू-तीन-चारि दिन बढ़ने इजोत अपनामे चारि-चान लगबैत मुस्‍की मारैत मेलाक रेड़ामे रगड़ लैत-दैत-पबैत ससरैत तहिना ने इजोतोसँ अन्‍हार एक-दू-तीन-चारि होइत चतुर्थी-मिलनक सिनेहासिक्‍त प्रेमक मधुर स्‍वरमे जिनगीक ओहन वृक्ष लगेबाक इच्छारोपण करैए जइमे पलास सिम्मर जकाँ बिनु पाते-फूलसँ भरल रहैए। मुदा...।
आध पहर राति बीतला पछाइतो ने सिन्धुनाथक आँखिमे नीन अबै छैन आ ने जलेसरीक आँखिमे। ओना, दू घन्टा पहिने ओछाइनपर एला पछाइत दुनू गोरेक बीच दिनक काजक लेखा-जोखा भऽ गेल छेलैन, जइसँ ओइ लेखा-जोखाकेँ उसारि नीनक आवाहन-ले गहवरमे गुहारि लगा दुनू गोरे अपन-अपन मुँह समेट मनमे घोंसिया लेलैन। मुदा जागलमे करक  फेर-फार बेसी होइए, से तँ दुनूकेँ रोकनौं नै रूकैत, मुदा अपन-अपन चलाकीकेँ हूँहकारी भरि अपन-अपन बहाना बनैबते छला। ओछाइनपर सँ उठि सिन्धुनाथ लघु-शंकाक बहाने बहरेला, मुदा जलेसरी जे ओछाइनपर सँ तजबीज केलैन तँ बुझि पड़लैन जे ओ मालक घर दिस जा रहल छैथ। भरिसक कोनो काज दिनमे बिसैर गेला से करैले। जँ काज भारी होइ आ असगर बुते नै होइन तखन हम कोन इनार-पोखैर खुनबैले तकैत रहब। मनमे अबिते जलेसरियो ओछाइनसँ उठि एक-लग्‍गा भरि पाछू पएर मारि चलि पड़ली। एक तँ ओहिना अन्‍हारमे लोक जेमहर जाइए तेमहर टार्च बाड़ैए, अगुऐत-पछुऐत बाड़ैए, चौबगली बारैए। गरमी मास छिऐ, अकाससँ धरती धरि देखैक प्रश्न अछि, जहिना रतिचर इजोतेपर झपट्टा मारि भोजन पबैए आ फनिगा फुनगी पाबि, तहिना ने धरतीपर कीड़ी-कमौड़ी पएरक धमक सुनि भागबो करैए आ झपटबो करैए। मुदा से सभ नहि, सिन्धुनाथक मन टाँगल छेलैन चारि बजे जे खुट्टापर महींस कीनि कऽ अनने छला तेकर गालपर। भैयाकाका विचार देने छला जे गाए-महींसकेँ गालेमे अमृत बसै छै, जे जेते गलगर रहत ओकरा ओते बेसी दूध हेतइ। जेकरा जेते बेसी दूध हेतै ओकरा ओते बेसी बच्‍चो पलेतै आ मलिकारो पलेतै। आगू बढ़ि सिन्धुनाथ मालक घरसँ पहिने डेढ़ियापर सँ चारूकात टॉर्चसँ देखलैन जे कुकुर-नढ़िया तँ ने अछि। गाए-महींसक बच्चाकेँ नष्ट करैबला छी, मुदा से केतौ ने देखलैन। चारूकात टॉर्चसँ देख जोरसँ खखास केलैन। जइसँ मालकेँ बोलीक परेखि आबि जाइ। जखने बोली परेखि लेत तखने ओकर पशुमत जगि जेतै जइसँ बोनैया रूप बदैल घरैया घर करए लगतै।
खखासक अवाज सुनि महींसो तेना साँस छोड़लक जे बाहरेसँ सिन्धुनाथ सुनि बुझि गेला जे ओहो माने महींसो जागि गेल। मालऽ घरक मुँहपर बत्तीक जाफरी दुनू कातक खुट्टामे बान्हल ढाठमे सटल। घरक मुँहपर सँ सिन्धुनाथ ठिकिया कऽ महींसक गालपर टॉर्चक इजोत फेकलैन। पौज करैत भैंस। मनमे भेलैन जे तिसियौटाक घूर केने छेलौं, ओना, मिझा तँ देनहि छेलिऐ मुदा हो-ने-हो जमि कऽ फेर ने कहीं सुनैग गेल हुअए। खरमास छी, आगिक डर मानी। चैत-बैशाखक घूर थोड़े पूस-माघक घूर होइए जे माछी-मच्छरक संग जाड़ोसँ रक्षा करत। लऽ दऽ कऽ माछी-मच्छर भगबै दुआरे घास-पातक घूरसँ काज चलि जाइए।
एक लग्‍गी पाछू जलेसरी ठाढ़ भेल पतिकेँ हियासैत जे कोन काज दिस बढ़ि रहला अछि। जाफरी खोलि सिन्धुनाथ मालऽ घर जा पहिने महींसक बच्चाक देहपर हाथ देलैन। झबड़ल केश, एकमुहरी खसल, बच्चाक देहपर हाथ देख महींस दुनू आँखि गरा मलकार केँ देखैत। जीह निकालि बच्चा सिन्धुनाथक हाथक आँगुर चाटैक ओरियान करए लगल। वएह आँगुर ने थुथुनमे दूध भरैए। 
आगू ससैर जलेसरी घरक मुँहपर खुट्टा लगा खुट्टे जकाँ ठाढ़ भऽ गेली। मुँहमे कोनो बोल नहि। पीठपर सँ जहाँ सिन्धुनाथ बच्चाक देहपर हाथ आगू बढ़ौलैन आकि बच्चा फुर्र-फुर्रा कऽ उठि, जीह निकालि सिन्धुनाथकेँ चाटैक ओरियान केलक आकि डाँर लिबा गोंतए लगल। गोंत पड़ैक खियालसँ सिन्धुनाथ उठि कऽ महींस दिस बढ़ला। तैबीच बच्चाकेँ गोंतैत देख महींसो उठि कऽ ठाढ़ भेल, आ बोली देलक।
आगू ससरैत सिन्धुनाथ महींसक थुथुनपर हाथ फेड़ैत गाल निहारए लगला। ओना, पौज करैत देख नेने छला। ठाढ़ो महींस पौज करैए। खास कऽ खेलोपरान्त। मुदा जखन मलकार बच्चाकेँ चुचुआ भैंस दिस बढ़बैए तखन महींसक मातृत्व जगि जाइ छै, आ जेतबे थनमे दूध रहै छै तही लऽ कऽ ओ तैयार भऽ जाइ छइ। थुथुनसँ आगू हाथ ससारैत सिन्धुनाथ ऐगला राग देने महींसक थन लग हाथ बढ़ौलैन। पनहाइत छीमड़ि देख, बिनु हाथ बढ़ौने निहारए लगला। यएह लक्ष्‍मी थिकीह! यएह सरस्‍वती थकीह! वुद्धि रूप सरस्‍वती, भोज्य रूप लक्ष्‍मी! हाथ आगू बढ़बैक विचार केलैन आकि जलेसरीक मन तड़पि गेल।
एकटा छोट-छीन माटिक ढेप सिन्धुनाथक आगूमे ऐ खियालसँ फेकली जे भूतक ढेप बुझि पाछू तकता। होइतो अहिना आएल अछि, कता गाममे रातिक अन्‍हारमे राकश सभ गोला-ढेपा बरिसबै छल। अल्‍लापुरमे अखनो कोनो-कोनो गाम अछि...। तेतबे नै बाधक धान-रबी ओगरनिहार रखबारकेँ भरि-भरि राति तामल खेतक गोला उघबबै छल। मुदा जुग बदलल, जमाना बदलल, लोक बदलल लोकक खेल बदलल...।
ढेपा महींसक आगूमे खसिते भड़कऽ लगल मुदा मलकारकेँ आगूमे देख मात्र सिंगहौटीए टा डोलौलक। गोला कातमे असथिरसँ बैस गेल। सिन्धुनाथ टॉर्चक इजोत आगू फेकलैन तँ बुझि पड़लैन जे कियो स्त्रीगण आगूमे ठाढ़ छैथ। मुदा चिन्हैमे देरी नै लगलैन, बजला-
ईहो कि आन जगह छी, ओइठाम किए ठाढ़ छी, ऐठाम आउ। अहाँ बुझै छी जे हिनकर (पतिक) छिऐन, से नै अहूँक छी, मुदा अहाँक ताधैर नै छी, जाधैर देहपर हाथ नै देबै आ थनसँ दूध नै निकालबै।
अपन बँटाइत सिनेह देख जलेसरीक मन झुझुआएल। झुझुआएल ई जे ई राति तँ दुनू गोरेकेँ एकठामक छी। पिय मिलन बेर छी। तखन, जँ असगरे अपन ओछाइनपर चलि जाए तँ पति विलाप केकरा हेतइ? मुदा ई कि झूठ जे जेतए बसी सएह मातृवत पवित्र भूमि आ जइसँ जीवन-धार बहए वएह पवित्र सरिता भेली।
दुआरि टपि जलेसरी आगू बढ़ली, जहिना एक नारी-दोसर नारीसँ मुँह फुला फुफकार कटै छैथ तहिना जलेसरीकेँ देख महींस फुफकार छोड़लक। जलेसरी सहैम गेली। सहैमते पाछूए मुहेँ दू डेग बढ़ली। तही बीच सिन्धुनाथ थनक छीमी टॉर्चक इजोतमे हिसासए लगला, जे दूध-धारमे कोनो खैंठी-तैंठी तँ ने भऽ गेल अछि। ओना, साँझमे दुहैबेर देख नेने छला, मुदा तखन धियानमे नै रहलैन जे अखैन मनमे उठि गेलैन। जलेसरी दू-डेग पाछू हटि ओहिना फेर ठाढ़। महींस लगसँ सिन्धुनाथ ससैर जलेसरीक लग पहुँच हाथ पकैड़ बजली-
चलू हमरा सने। धार-साज छी, जेते धाड़त तेते ताड़त। तँए छोड़ि कऽ पड़ाउ नहि।
जहिना बाँहि पकैड़ पुरनिहार संगी भेट जाइ छै तहिना जलेसरीकेँ सेहो नव काजक संगी भेटलैन। मुदा मनमे एते शंका तँ रहबे करैन, जे किछु छी तँ सिंगे-मांग छी। मुदा किछु रहह, जखन करताइत संगी आगू-आगू छैथ तखन पाछूसँ जाइमे की लागत। जेना-जेना ओ हाथ बढ़ा-बढ़ा आगू-आगू बढ़ता तेना-तेना पाछू-पाछू बढ़ैमे कथीक डर। हाथ पकड़ने जलेसरीक हाथ महींसक थुथुनपर रखैत सिन्धुनाथ कहलकैन-
यएह छी एकर गाल, जेते गलगर रहत आ ओकरा जेते भरबै, तेते ओहो अहाँक गाल भरि अपनो गाल भरत। लछमी छी सदय: लछमी!
बजैत-बजैत सिन्धुनाथक मनमे उत-उत उत्साह तेना जगलैन जे पत्नीक गरदेन बाँहिसँ जकैड़ महींसक चारू पएरक बीचक जगहमे बैसबैत सिन्धुनाथ चारू छिमड़िक धार देखबैत बजला-
यएह सरिता छी, ओइमे जँ नित स्‍नान करैक अवसर भेट जाए तँ ओकरे जिनगीक धार बुझि हेलैत चली, बहैत चली...।
ओना, चारू टाँगक बीच सिन्धुनाथो बैसल मुदा तैयो जलेसरीकेँ मनमे डर होइते रहइ। कारण घुरियाइत रहै जे माल-जाल लथराह होइए ओना, गाइयक वंशमे जेते लथरपन छै ओते महींसक वंशमे नहियेँ छै मुदा देहमे जहिना अलंकार अलंकृत करै छै जेकर धार दू-दिसिया होइ छै, तँए गाए- महींसक संयुक्‍त उच्चारण किए ने नव लोकक मनमे उचारत जे महींसो लथराह होइ छइ।
सिन्धुनाथ जलेसरीक मन आँकि लेलैन बजला किछु ने। नै बजैक कारण भेलैन जे जहिना कोनो चिकित्सक कोनो रोगकेँ ठिकिया दवाइ फेकैए जइसँ मनमे एतेक श्रद्धा  जगै छैन, जइसँ किछु बजबाक समयकेँ अनुपयुक्‍त बुझैत तहिना सिन्धुनाथक मनमे भऽ गेल रहैन। मुदा हेराएल लोककेँ जँ किछु तोष-भरोस देल जाए तँ हेराएब कमै छइ। तही खियालसँ सिन्धुनाथ पाशा बदलैत बजला-
केते दूधक बखारी बीच बैसल छी?”
ओना, डेराएल जलेसरीक मन तँए दूधक बखारी नै बुझि पेली। गाममे धाने-मरूआ टाक बखारी देखने-सुनने तँए। मुदा दूधोक बखारी होइ छै एहेन विचार तँ विचड़िये गेल-
केते दूधक बखारी छी?”
पत्नीक गंभीर जिज्ञासा देख सिन्धुनाथक मनमे समुद्र जकाँ जुआरि उठि गेलैन। मुदा केना समुद्रमे जुआरि उठि फेर अपने जगहपर घुमि जाइए। तैठाम तँ समुद्रक ओइ लहैरक पानिकेँ ओतबे उमेद ने करब जेते घेरि कऽ रोकि लेब। मुदा रोकब असान अछि? हँ असान अछि। जँ जोगी नख-सिख देखै छैथ तँ कि ओहन देखनिहारक कमी अछि जे सिख-नख नै देखैत अछि। अतीतक सेर- सम्पैतसँ मान-प्रतिष्ठा धरि गेलो पछाइत कि लोकक रोब-दोब आकि रूआब-रिसाव थोड़े चलि गेल अछि? मुदा अपन ओझरीकेँ सोझरबैत सिन्धुनाथ बजला-
अखैन दुइए बेकती छी। अपने दुनू बेकतीक जिम्माक सेवा भेल। जखन सेवा करब तखन ने मेबा पाएब।
फूलक कली जकाँ फूलक सभ रूप-गुण समटा जहिना रहैए तहिना जलेसरीकेँ सभ किछु रहितो समटाएल रहैन। तँए किछु बाजि नै पेली। मन अक-बका कऽ सक-पका गेलैन। अकबकेबो केना ने करितैन घर-घराड़ीक नव रूप देख रहनिहारक मन अकबकाइते छइ। अकबकाएबो सोभाविके अछि। सोभाविक ई जे अखैन घराड़ी केर बगलक सड़क पूब दिससँ अछि, नवका रोडक नापी उत्तर देने भेल, तखन घराड़ीक मुँह केमहर बनाएब नीक हएत? पत्नीकेँ गुम्म देख सिन्धुनाथ पुछलखिन-
गुम्म किए भेलौं। जहिना मनुखक दुनू मातृकोष अमूल्‍य धन-धान्‍यसँ भरल अछि, तहिना ई महींसो अप्पन छी।
अप्पनसुनि जहिना बिऔहती कनियाँक मन अपन गहना देख-सुनि फङ्गैत तहिना जलेसरियोक मन फँगलैन-
दुनू गोरेकेँ पेट भरि जाएत?”
अवोध, अनपढ़ पत्नीकेँ देख अपना माथपर हाथ फेड़ैत सिन्धुनाथ अपन बेथा-कथा नै कहि, बजला-
दुइए परानीक पेट किए कहै छी, पाँचो परिवारक पेटे नै जिनगियो भरत।
पेट तँ जलेसरी खेनाइकेँ बुझैत तँए कोनो शंके ने भेल मुदा जिनगियो भरतई तँ मनमे खट-खुट करैए लगलैन, बजली-
की जिनगियो भरत?”
प्रश्नक दोहरी रूप देख पहिल एक-एक खलकेँ खोलब दोसर मुख-दुआर खोलब। राति सेहो बेसी भऽ गेल। दिनक थकान सेहो अछिए। मुदा प्रश्नक उत्तर जँ पत्नीकेँ नै दऽ देबैन आ राति-विराति जँ केकरो किछु हेतै आ काज बाधित हएत तखन तँ विचारे तर पड़ि जाएत। तँए मोटो-मोटी तँ अपन मनक भार हटा लेब किने, नै तँ अनेरे अस्‍सी मनक पाथर जे दबने अछि ओ ओहिना दबने रहत। जहिना कलाकार मूड बना कऽ मंचपर जाइ छैथ तहिना सिन्धुनाथोक मन मेक-अप रूमसँ बाहर पहुँचलैन। मेक-अप होइते वाचब शुरू केलैन-
दुनू साँझ मिला पनरह किलो दूध हएत।
पनरह किलो केते भेल? अपना सबहक जे बरहगण्‍डी सेर अछि तइसँ केते भेल?” -जलेसरी बजली।
पत्नीक दोहरी प्रश्न, एक बरहगण्‍डीकेँ किलोमे आनब, तइमे जे घटबी भेल से केतए जाएत। दोसर हिसाब सेर-कनमामे आ तौल किलो-ग्राममे, विचारकेँ समटैत सिन्धुनाथ बजला-
राति बेसी भऽ गेल। चलू ओछाइनेपर गपो-सप्प करब। जेतेकाल ऐठाम रहबै तेतेकाल महींसो आ बच्‍चो ठाढ़े रहत, अपनो सभ अराम करब आ ईहो दुनू बैस कऽ पौज धड़त।
थनतरसँ दुनू बेकती उठि विदा भेला। आगू-आगू जलेसरी आ पाछू-पाछू सिन्धुनाथ। पर्ड़ू लग पहुँच सिन्धुनाथ मुँह चुमि दू-तीनबेर थपथपा देलैन। पाछू उनैट जलेसरी सेहो देखली। घरसँ निकैल ढाठ-जाफरी बन्न कऽ आगू बढ़ि टॉर्चसँ सिन्धुनाथ चारूकात इजोत फेकलैन। अन्‍हार राति छोड़ि किछु ने। गाछ-बिरीछ कनी हटल तैपर धुराएल मेघ, जेतए टॉर्चक इजोत पहुँचबे ने कएल। आगू बढ़ैत सिन्धुनाथ पत्नीकेँ कहलखिन-
रातिक केहेन रंग बुझि पड़ैए।
पतिक प्रश्न सुनि जलेसरीकेँ फबलैन। बजली-
अन्‍हार तँ अपने रंग छी जेकरा सियाही गुण छइ। तखन ओकर रंग की हेतइ?”
फगुआक जोगिरा जकाँ सिन्धुनाथ डम्‍फा संग ताल मिलबैत  बजला-
यएह छी दुनियाँ। अन्‍हार गुज-गुज अछि, मुदा अन्हरो-लूल्हा तँ एहनो अन्‍हारमे अखज जकाँ अखनो जीविते अछि।
ओछाइनपर अबिते सिन्धुनाथ दूधक फल जोड़ैत बजला-
पनरह किलो दूधक दाम- ३०x१५= ४५० भेल। एतेक आमदनी परिवारमे भेल। जे अखैन धरि बोइन-बुत्तापर ठाढ़ छेलौं। दुनू साँझक अन्नक खर्च सौ रूपैआसँ कम भेल। एते तँ आशा भइये गेल किने जे नूनो-रोटी आकि छुच्‍छो भात खा जीवि सकै छी! यएह जीबैक आशा जिनगी पाएब भेल।
बिसवासु जिनगीक आश पाबि जलेसरीक मन छड़पि उठलैन-
आमदनी हएत ते खरचो हएत किने?”
हँ से तँ हेबे करत। जे अनिवार्य काज अछि ओ अनिवार्य खर्चमे एबे करत बाँकी खगताक हिसाबसँ औत।
तइ बिच्चेमे जलेसरीकेँ हाफी भेल। हफुआइत देख सिन्धुनाथ मने-मन सोचलैन जे आब सुतबे नीक हएत। बजला-
बड़ राति भऽ गेल, फेर सबेरे जगबो अछि। सुतू।
जहिना कोनो विद्यार्थीकेँ पढ़ैक कीड़ा पकैड़ लइ छै, तहिना जलेसरीकेँ जेना पकैड़ लेलकैन। जहिना कखनो नीन तोड़ैले देह डोलौल जाइ छै, तँ कखनो बाँहि, तँ कखनो जाँघ पकैड़ झमारल जाइ छै, तहिना बीतैत राति अबैत नीनकेँ रोकैक परियास करैत जलेसरी बजली-
अपना हाथक राति छी, नीनोकेँ की सीमा नाँगैर छै, अपन छोटकी बहिनक बिआहमे तीन राति आँइखो ने मुनलौं। कहाँ तइसँ काजमे घटबी भेल। एक होइ छै काजकेँ घटबी करब आ दोसर होइ छै बढ़वी करब।
पत्नीक गंभीर विचार सुनि सिन्धुनाथक मनमे सेवाक गाछ अँकुरब बुझि पड़लैन। कहैले सालक राजा वसन्त ऋृतु छी, मुदा जेकरा वसन्तसँ भेँटे नै? छोट जिनगी रहने, माने ई जे वरसाती तरकारी अछि जेकर खेती जेठक पछाइत शुरू होइ छै आ कातिकसँ पहिने खतम भऽ जाइ छइ। जेकरा वसन्त ऋृतुसँ भेँटे ने होइ छै ओ केना बुझि पौत जे कोकिलक तान, हवा सुगंधक मुस्कान, रंग-अबीरसँ भरल आगमन केहेन होइ छै, वसन्त पंचमी आकि सरस्‍वती केना होइ छइ। जैठाम समैये-सँ भेँट नै भेल तँ फड़त-फुलाएत केतए आ कथी?
समुद्रक लहैरमे जहिना करोड़ो हीरा-मोती-सितुआ-घोंघा दहलाइत रहैए तहिना सिन्धुनाथक मन सेहो दहलए लगलैन। एक तँ ओहिना सिन्धुनाथक विचार रहैन जे पत्नी सुतती तँ काल भागत, किछु जीबैक आशामे कदमक गाछक डारिमे झूला लगा झूलब आकि मचकी लगा मचकैत चलब। मुदा से भेलैन नहि। मनो गवाही देलकैन जे जेते काल गप-सप्पसँ काज धरि, दुनू बेकती एक संग रहब, यएह ने भेल जिनगीक असल प्रेम जे संगे-संग शरीरसँ नि:सृत होइत रहत। बजला-
जेकरा अहाँ भैंस बुझहै छिऐ ओ भैंस नै लछमी छी। जेते खुएबै-पीएबै तेते ओकर मन चैन रहतै, जइसँ खुशीक पाउजो करैत रहत आ हँसितो रहत।
हँसब सुनिते जलेसरी, जहिना अनाड़ी-धुनाड़ी शिकारी धड़फड़ा कऽ तीर फेकैत तहिना, धड़फड़ा कऽ बजली-
तखन तँ कनितो हएत!
हँसब-कानब दुनियाँमे केकरा ने होइ छै, मुदा हँसब-कानबक बीच दूरी नै देख पबैए जइसँ कननी बेसी अछि हँसनी कम अछि। खिलैत फूलक शकल-सूरत देख सिन्धुनाथ बजला-
हँ, हमर-अहाँक यएह भक्ति कहियौ आकि जिनगी जीयब कहियौ सभसँ पैघ काज भेल।
जलेसरीक चहकैत मन चहचहा उठल-
जहिना सभसँ पैघ धन कहै छिऐ तहिना तँ नँगर-डोलौन सेहो ने छिऐ, एकर केते बिसवास कएल जा सकैए।
सिन्धुनाथक मन ठमैक गेलैन। ठमैक ई गेलैन जे समाजक खिस्सा-पिहानीमे तँ एहेन ऐछे जे माल-जाल नँगर डोलौन छी। जेकरा अहाँ नँगर डोलौन कहै छिऐ ओ तँ प्रकृति प्रदत्त सम्पैत छिऐ, जेकर उपयोग मनुख अपन जिनगी लेल करै छैथ।
मुदा ई तँ अपने ने बुझए पड़त जे ढेनुआर गाए-महींसकेँ कोन तरहक सेवाक जरूरत अछि। कखैन कोन रोग-वियाधिक प्रकोप भेल, खेनाइ-पीनाइमे दुख-तकलीफ भेल, एकरा जँ पोसिनदार नै बुझता तँ जिनगी जीबैक दोसर उपय करए पड़तैन। मनुखक अवस्‍थे केते अछि, महींसक केते अछि, केते गाइयक अछि आ केते बकरीक अछि...।
ओहीमे ने देखए पड़त जे एकटा महींस केते दूध दऽ सकैए आ हमरा केते दइए।
यएह भेल जिनगीक प्रतियोगिता। जे सनातन अछि। सभ दिन होइते रहत। मुदा पति बनि जखन पत्नी लग कोनो विचार-विमर्श करए लगब तखन जाधैर पत्नीक मन प्रवोधि कऽ नै पतियाएब ताबे छोड़लो तँ नहियेँ जा सकैए।
सभ बातकेँ झाँपैत-तोपैत सिन्धुनाथ बजला-
अनेरे कोन मगजमारीमे नीन बरदौने छी, भरि दिन तँ खटबे केलौं, ओछाइनोपर तँ चैनक नीन लिअ। 
मुदा ले-बलैया! सिन्धुनाथक अपन मनक विचार दबा गेलैन। दबा ई गेलैन जे मनमे रहैन जे खाइ-पीबैक जोगाड़ केना करब। भोरे उठि कऽ तँ काजेमे लगि जाएब, तखन विचारि केना पाएब। मुदा से नै भेलैन बिच्चेमे जलेसरी टपकि गेली-
सींग-नागरिक कोन ठेकान, कखैन अछि आ कखैन जाएत। दस दुआरी छी एकठाम केतौ थोड़े, लंकाक हनुमानजी जकाँ नाँगैर दाबि कऽ बैसत।
सिन्धुनाथक मनमे उठलैन कोनो काजकेँ विचारानुसार रोपित करैमे पहिने बिसवास अगुवाबए पड़ै छै, पछाइत वएह बिसवास सकताइत-सकताइत श्रद्धाक रूपमे अँकुरित होइ छै, जे बढ़ैत-बढ़ैत श्रद्धाक पात्र बना जिनगीकेँ पवित्रता प्रदान करै छइ। मुदा से जलेसरीक मन थोड़े मानत..?
मन नचलैन बजला-
कोन लाइ-लपटाइमे लटपटाइ छी। अखने फड़िछा लिअ जे महींस पोसैमे की-की प्रक्रिया अछि, तेकरा दुनू गोरे बाँटि लिअ। सभ काज जँ सभ करब तँ एँड़ी-दौड़ी बेसी लागत। काज फड़िछा नेने चौड़गर जगहो भेटत आ दुनू गोरेक काज दुनू गोरे देखबो करब। जइसँ कोनो तरहक शंको ने हएत।
सिन्धुनाथक विचार जेना जलेसरीकेँ बेधलकैन। बेधलकैन ई जे दुनू-परानीक बीच मुट्ठी-रूपैआ छी, परीक्षा लइए लिअ जे केकर मुट्ठी खोलि के रूपैआ पकैड़ लेब।
मुदा पीठिया मिलान तँ छी नहि, ओलती मिलान छी। बजली-
बुझलौं, अहाँ हारि गेलौं, सुतू। मुदा एते तँ कहबे करब जे जे पोसलौं से दस-दुआरिया छी। कखैन रहत कखैन उड़त तेकर कोन ठेकान।
जलेसरीक दहलाइत मनकेँ पकैड़, पीपर आकि बरक गाछमे जहिना भूतकेँ काँटीसँ ठोकल जाइ छै तहिना ठोकैत सिन्धुनाथ बजला-
दस दुआरी छी तँ आरो नीक भेल किने जे दसो दुआरि गाए-महींसक रहैत दूधक धार बहए, तइमे अहाँक कोन जमा-जिगीर चलि जाएत जे एना बोनैया कुकुड़ जकाँ औनाइ छी? अपन घर-गिरहस्तीक ठेकाने ने अछि आ...।
जलेसरीक मन सहैम गेल। मने-मन समझौता करैत बजली-
हँ राइतो बहुत भऽ गेल।
दुनू परानीक बोली-चाली तँ बन्‍हा गेलैन मुदा आँखिमे झपकी एबे ने केलैन। तैयो दुनू अपन-अपन गर पकैड़ सुतैक उपक्रम केलैन। मुदा दुनूक आँखिक नीन उड़ल।
जहिना छोट-छोट बच्चा रस्‍ता परहक गरदा समेट थुम्‍हा बना अपनाकेँ संकल्पित चुपा-चुप, धुपा-धुप व्रत चुपीसँ करैत जे पहिने बाजत से चोर।
मुदा ओ सभ संकल्‍पकेँ निमाहबो करैए। निमाहैए एना जे जे चोर भेल ओकर दुनू हाथ जोड़ि लपमे माटि भरैत अछि तैपर शिवलिंग जकाँ दू-तीन इंचक कटकी गोबि दइत। आ दुनू आँखिकेँ दुनू हाथसँ दाबि अनभुआर जगहपर लऽ जा रखा, आँखि बन्ने केने घुमा कऽ ओही जगहपर आनि कहैत जे जो ओइ रखलाहाकेँ ताकि कटकी उखाड़ने आ।ओहो जखन ताकए जाइए तखन बौआइत-बौआइत ताकियो लइए आ केते हेराइयो जाइए...।
मुदा से सिन्धुनाथकेँ नै भेलैन। चुपा-चुप करैत अपन जीवन सूत्र पकैड़ चलैक विचार केलैन। जहिना जागल लोककेँ काज रहने काजमे मन लगैए आ काज नै रहने उकस-पाकस करैए तहिना किछु-कालक पछाइत जलेसरीकेँ भेलैन। कनीयेँ जोरसँ सिन्धुनाथकेँ बिठुआ कटलकैन। ओना, सिन्धुनाथो जगले तँए बुझि गेला मुदा अपन काज दुआरे अपनाकेँ सुतल घोषित करैत हँ-हूँ किछु ने बजला।
जहिना छिड़िआइत आकि कोनो छिड़ियाएल वस्‍तुकेँ पकैड़- पकैड़ समेटलो पछाइत फेर छछैल कऽ आकि गुड़ैक कऽ पुन: छिड़ियाइते रहैए तहिना सिन्धुनाथ छिड़िया गेला। मुदा तैयो जलेसरी जोर दैत दोहरी बिठुआ कटलकैन जे कोनो कीड़ी-फतिंगीक नाओं कहि फेर एकबेर महींस घर देख आएब। किछु छी तँ दूधक बखारी छी किने? मुदा सिन्धुनाथ बुझितो अनठौलैन। बुझबो केना ने करितैथ जे दाँतक काटब आ बिठुआ काटब एकरंग थोड़े होइए। काटबो तँ रंग-रंगक ऐछे, केतौ विचार काटब, तँ केतौ जिनगी काटब, केतौ सम्बन्ध काटब, तँ केतौ बिठुआ काटब। जलेसरीक चुटका चुटकीएमे रहि गेलैन जइसँ चुटकियाइते रहि गेली।
 मुदा से भेलैन नै सिन्धुनाथक मनमे उठलैन जे आफदक अन्त भेल की नहि। माने जाबे पत्नी जागल रहती ताबे आफत बनल रहती, नीन पड़ि जेती तखन ने बुझब जे सोल्होअना निचेन होइ-जोकर भऽ गेलौं, जँ से नै परेखि लेब तँ जागल लोक उकस-पाकस कैरते अछि, से जँ भेल तखन तँ अनेरे पानिक लकीर जकाँ केतए-सँ-केतए दहला कऽ चलि जाएत। मनमे अबिते सिन्धुनाथ नरमेसँ पत्नीकेँ बिठुआ कटलैन।
मुदा तँए कि जलेसरी मानिनि नै जे लगले मानि जइतैथ हुनका कि नै बुझल छैन बिठुओ-बिठुआक मोल छइ। खीर आ खिच्‍चैड़केँ एक कहि-कहि बाल-बोधकेँ लोक ठकि लइए जे बौआ दलियाहा-नुनियाहा खीर छिऐ। मुदा बिठुआक मोल जलेसरी नै बुझै छैथ से बात नहियेँ अछि। मुदा सुतरलैन। सुतरलैन ई जे ओहो ऊह-आँह नै केलैन। दुनू जागल कि दुनू सुतल से तँ वएह बुझता, जँ अहूँकेँ परेखब हुअए तँ अजमा कऽ देखियौ।
सिन्धुनाथकेँ अपन कएल काज आ अपन विचारपर खुशी भेलैन। खुशी ई भेलैन जे अपन पुश्‍तैनी खेतक इतिहासमे पाँच कट्ठा खेतक मालिक सिन्धुनाथो। पुश्‍तैनी परम्परानुसार माए-बापक संग जे बोइन-बुत्ता करब शुरू केलैन ओही बीच परिवार छोट रहने आ आमदनी बढ़ने घराड़ी छोड़ि पाँच कट्ठा खेत पिता कीनि देलकैन। अपन जिनगीक अन्त सियावरकेँ भेलैन।
सिन्धुनाथक संग जलेसरियो ओहने जिनगी पकड़ने अपन पैंतीस बर्खक उमेरपर पहुँच गेली। अपन जे सम्पैत- पाँच कट्ठा खेत- छेलैन तेकरा समुचित ढंगे खेती नै केने उपजा-वाड़ीक कोनो ठेकान नहि, जइसँ जिनगीक कोनो पहिया घुसकै-फुसकैक आशा नै दइ छेलैन।
बदलैत परिवेसमे मन विचड़लैन। विचड़िते मनमे भेलैन जे अपन जिनगी अपना-भरे ठाढ़ करब। तइले श्रम-साधनक खगता हएत। श्रम तँ ऐछे भलेँ कम्मे किए ने हुअए, रहल साधनक, ओ केना औत? जमीनक मोल पहिने जे छल, आब ओइसँ बेसी कता-गुणा भऽ गेल, मुदा अधिक पूजी भेलौ पछाइत आमदनीमे बढ़ोतरी नै भेल। साधन दू-दिसिया अछि। एक अछि बैंक आ दोसर अछि बपौती सम्पैत।
पाँच कट्ठा खेतक उपज बैंकक सूदियो बरबैर नै अबैत अछि तैपर मलगुजारीक देनी अछि, एहेन स्थितिमे की नीक? बैंकक पूजी दिस बढ़िते मन भिन-भिना गेलैन। भिन-भिना ई गेलैन जे कोनो कारोबारकेँ बैसैक पूजी नै बना ओझरा गेल अछि। बैसैक पूजीक माने भेल जैठामसँ काज शुरू हएत। मुदा सालक-साल घुमलो पछाइत, श्रम-साधनकेँ लूटबैत, कियो-कियो ठाढ़ होइमे सफलो होइ छैथ मुदा अधिकांश असफले। सिन्धुनाथ विचारि लेलैन जे पाँच-कट्ठामे सँ एक कट्ठा बेच लेब। पचास हजार रूपैआ हएत, दस हजार बेना लऽ रहैक ठौर बना, किछु दिनक खोराकी जोड़िया लेब। पछाइत एक-मुश्‍त रूपैआ लऽ कऽ महींस कीनि आनब।
तीन पूजी एक संग औत- दूध, बच्चा आ महींस। ओकरे सेवा केने जिनगी आगू मुहेँ ससरत। केकरा ने मन होइ छै जे बच्चेसँ हवाइये जहाजकेँ सवारी बनावी, मुदा...।
चालीस हजारक गुजराती भैंस कीनि आनि, खुटापर बान्‍हि नव जीवनक नव वर्षक नव कामनाक संग सिन्धुनाथ दुनियाँमे पएर रोपैक परियास केलैन।
q
तिथि : 04 जनवरी 2015, शब्द संख्या : 3392

No comments:

Post a Comment