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Saturday, August 31, 2019

जाड़ फाटि गेल (कथाकार श्री जगदीश प्रसाद मण्डल)



माघ मासक अनहरिया पख। रातिक आठ बजेक रेडियो-समाचार सम्पन्न भऽ गेल छल मुदा नअ नै बजल रहए। ओना, मौसमक चकर-चालिसँ कखनो वसुधा हरित-भरित भऽ जाइ छैथ तँ कखनो वेनग्‍न बनि ज्‍वालामुखीक लाबा सेहो छिड़िऐबते छैथ। मुदा से नै भेल, तँए तेसराँ जकाँ अदहा फागुन तक लोक सीरके नै ओढ़ने रहत। हँ, एते तँ जरूर भेल रहै जे केता सालक पछाइत एहेन शीतलहरी तेसराँ साल भेल छेलै, जे रेकर्ड गिनीज-बुकमे तँ अछिए। सेयोगो नीक बैसलै। एक तँ भदवरिया बाढ़ि आबि धरतीकेँ तेना डुमौलक जे गहुमक चासकेँ चसिया देलक आ दलहन-रब्‍बीकेँ बसिया देलक। मात्र चसियौलक-वसियौलक से नै गामेसँ बैला देलक। तैपरसँ तिला सकराँइतिक प्रात तेहेन बरखा भेल जे वातावरणे पथरा गेल, जे पानि बनबैत शीतक संग सिहकी भरैत रहए।
ओना, अष्टमीक एक पहर राति बीतल छल मुदा साँझक फड़िछौट पछुआएले रहए, किएक तँ तीन घन्टाक पहरमे नअ बजलापर एक पहर होइत अछि ने। जेना छहसँ नअ। मुदा सेहो सभ दिन थोड़े होइए। जेठ अपन दिनका हिस्सा बेसी लऽ रातिकेँ रतिया कऽ मतिया दइ छइ। जइसँ पुरुखो आ नारियोक मतिये रतिया कऽ मतिया जाइ छइ। तँए की माघो पाछू हटै छै? ओहो रातिकेँ बढ़ियाँ आ दिनकेँ दीनमा बना दइते छइ। मुदा जेकरा रातिक पहिल घड़ी कहियौ आकि पहिल, दोसर, तेसर साँझ कहियौ...।
मुदा नअ बजैमे किछु मिनट बाँकी जरूर अछि। जहिना आन किसान परिवार-सभ अपन रातिक पहिल पहरकेँ अरामक समय बना भवितव्य जिनगीक सूत्र जोड़ैक अवसर तँ बना लइ छैथ तहिना स्कूलो-कौलेजक विद्यार्थी पठन-पाठनक बनैबते छैथ। ओहो खेला पछाइत सुतिते छैथ। सबहक अपन जिनगीक सूत्र छैन। ओसारक ओछाइनपर करोट गरे पड़ल, माथ तर सिरमा नेने बीरू काका लूड़ू-खूड़ू करैत पत्नीकेँ कहलखिन-
भरि दिन जहिना अहाँ छिछियाइत रहै छी तहिना रातियो-बिराति अराम करब से नहि। जाबे एकठाम भऽ कऽ चिड़ै जकाँ मुँह-मिलानी नै करब ताबे चेहराकेँ चहरा केना पेटमे जाएत?”
वीरू कक्काक बातकेँ नेसनी काकी नीक जकाँ नै बुझि पेली, मुदा कोनो प्रश्नक जवाब कियो जे दइ छथिन से तँ किछु चढ़ाइए कऽ, भलेँ पुछनिहारक प्रश्न बुझने हुअए आकि नै बुझने हुअए। हाँइ-हाँइ कऽ नेसनी काकी बेटीकेँ दालि छौंकैक सरंजाम- करौछ, तेल, मिरचाइ, लसुन इत्यादि- चुल्हि लग रखि अपने ससरैत पति लग आबि किछु आगूए-सँ कहलखिन-
अहाँकेँ ते खाली पेटबे की लोटबे रहैए, हमरा तइसँ निमहत?”
चढ़ल बोल जेहने नेसनी काकीक छेलैन, जे जहिना कोनो गोल वस्‍तु आगूसँ गुड़कैत अबैत हुअए आ अपनो कनी तिरछिया पाछू हटि सह मारने जहिना गति तेज होइ छै, तहिना वीरू काकाकेँ भेलैन। बजला-
अहाँ जकाँ हम मायावी थोड़े छी जे भरि दिन, भरि राति मये पसारब। घरमे जखन बेटी अछि, तखन जँ ओकरा चुल्हि-चिनवार नै सुमझा देबै तँ की सभ दिन अपने धेने रहब?”
वीरू कक्काक ऐगला बातपर नेसनी काकीक धियान गेबे ने केलैन। मुदा पहिलुका बात मयावीपर धियान ओहिना छह-छह करैत रहैन जहिना कोनो रूप-सुन्नरि बिनु आभूषणे, बिनु वस्‍त्रे छह-छहाइत रहैए। पुछलखिन-
की मयावी?”
ओना, अपन मनक विचारकेँ तर पड़ैत वीरू काका देखलैन। केना ने देखितैथ। तेहेन मायाक मायामे पड़ि गेलौं जे बजैक वेगमे अपनो मायाधीन, मायातीत, मायाधीशक बीच अनेरे ओझरा जाएब। बजा गेल मायावी! मनमे रहैन जे हँसी-खुशीक बात करब, से तर पड़ि गेलैन। मुदा संगियोँ तँ संगीए छी, छने रूष्ट, छने तुष्ट! सूपक गोलका भाँटा जकाँ कखैन थीर रहत आ कखैन गुड़ैक जाएत, तेकर कोनो ठीक अछि। तखन तँ नीक हएत जे अपन हारि मानी, बजला-
दुनियाँमे के नै मायावी अछि जे अहाँकेँ अधला लागि गेल। भगवानो सभ की जोग-मायावी कम छैथ।
भगवानक नाओं अबिते नेसनी काकीक मन हरहरा कऽ हरिअर कचोर बनि गेलैन। बजली-
बेटी-पुतोहुक जँ आगू-पाछू करैत अपन नजैर बरतन-बासनपर नै राखब, तँ किछु भेल तँ अनकर हाथ भेल किने। जे मुँह सभ दिन अपन हाथ देखलक, ओकरा जँ प्रवोधि कऽ नै राखब तँ ओ अनेरे कलह करत किने जे...।
नेसनी काकीक विचारकेँ काट-खोँट करबसँ नीक वीरू काका पशे बदलब बुझलैन। बजला-
जड़कल्‍ला फटि गेल। ई साल खेप गेलौं। 
ई साल खेप गेलौंपतिक मुहसँ सुनिते नेसनी काकीक साँस जेना तेज हुअ लगलैन। बजली-
एना किए मुहसँ अवाच बात निकाललौं? जाबे माँगमे सिनूर रहत ताबे खेपबै नै जीबै।
पत्नीक विचारमे वीरू काकाकेँ गर अँटलैन। अधखिल्‍लू मनक फूलक सुगन्ध बिखेरैत बजला-
छौंक ले की सभ रेशमा लगमे देलिऐ?”
नेसनी काकीकेँ जेना ठोरेपर रहैन तहिना बड़बड़ेली-
माघ मास छिऐ, नेनमैत बेटी अछि, जँ ओकरा ई नै सिखा-पढ़ा देबै जे बेटी लसुनक लोक चटनियोँ पीस कऽ खाइए, मसल्लो खाइए आ आन-आन वस्‍तुक संग रसायनो बनै छइ। मुदा तेलमे भूजि जँ दमा, दुखताह, सरदीआह देह खाएत तँ ओकरा-ले ओ अमृत होइए। ओकरा जँ समयपर नै कहबै ते बाल-बोध अछि, बिसैर जाएत।
ओना, वीरू कक्काक मन अपन जिनगी आ खेतीक जिनगी देख हलसल-फुलसल रहैन। अपन हँसी-खुशी पत्नीक हँसी-खुशीमे मिलबए चाहै छला मुदा नेसनी काकी अपने पाछू वेहाल। सुनैक कान कहाँ रहलैन। आँखि-कान-नाक-मुँह सभटा वेहाल भऽ गेलैन। वीरू कक्काक मन फेर बदललैन। बदैलते बजला-
लसुनक जे एते बड़ाइ केलौं से कएल-खाएल अछि आकि उड़ाएल-खाएल अछि?”
ओना, पतिक प्रश्न नीक जकाँ नेसनी काकी नै बुझली, मुदा विषयोकेँ विचारैक तँ अपन रस छइ। तइमे नेसनी काकी रसाएल छैथे। रसाएल ई जे अपन चालीस बर्खक पतिकेँ अठारह बर्खक दमा रोगीक रूपमे सेवा करैत आबि रहल छैथ। तँए नितराएब, वेहाल हएब सोभाविके छेलैन। वीरू कक्काक मन ठमकलैन, ठमकलैन ई जे जहिना सेवा केनिहार सेवक अपन-अपन जिनगीक अनुकूल जीवन दर्शन पबैए, तहिना ओहो ने भेली। दमा रोगक शिकाइत बारहो मासक सालमे, कोन मौसममे रोगक रूप बढ़ै छै, कोनमे समगम रहै छै आ कोनमे कमै छइ। एकर पहचान नेसनी काकीकेँ बेवहारमे आबि गेल छेलैन। तँए अन्नसँ लऽ कऽ तीमन-तरकारी, मर-मसल्‍ला, समयानुकूल हुअए, एहेन इच्छा नेसनी काकीकेँ सदैत काल मनमे रहै छैन। मुदा डेढ़ बीघाबला किसानी जिनगी केहेन होइ छै ओ तँ वएह किसान बुझि सकै छैथ। नेसनी काकीक वौड़ाहा मन केतौ ठाढ़ हुअ नै चाहैन। बजली-
रेशमा बेटीकेँ अपन सभ लूरि-बुधि सिखा दोसर घर पठेबै, नै तँ बास हेतइ। अनेरे अनका मुहेँ सुनौत जे माए केहेन धमधुसरी छेलइ। तँए साँझेसँ चुल्हि लग बैस चीजो-बौसक जोगाड़ कऽ दइ छिऐ, आगियो तपै छी आ कोन ताके की बनत सेहो सिखबै छिऐ।
पत्नीक बात सुनि वीरू कक्काक मनमे उठलैन माइयोक तँ नमहर विद्यालय बाल-बच्चा लेल अछि। मन खुशी भेलैन। मुदा तैसंग ईहो भेलैन जे कोनो वस्‍तुकेँ विधिवत उपयोगी बनाएबे ने लूरि भेल। ओना, पति-पत्नीक जिनगीमे दिनानुदिनक जे किरिया अछि ओ हँसी-खेलक भेल। मुदा जखन दुनू बेकतीक देहमे कोनो काए लगै छै तखन ओकरा छोड़बै वा पचबैले जे सेवा लगै छै, ओतइसँ ने सेवाक प्रादुर्भाव होइए।
मन अपन जिनगी दिस घुसकलैन। तेसर सालक जे शीतलहरी रहै, जँ ओ नै रहितैथ तँ नहियेँ जीब पेतौं। जिनगीक लीलाक अन्त भऽ जइतए। मनमे उठिते वीरू काका नेसनी काकीक ओ रूप देखए लगला जे केना बारह बजे रातिमे हुर-हुर-धुतहुरक पातक कुच्ची बना छातीक मालिश करै छेली। जँ संगी बनि ओ नै ठाढ़ रहितैथ तँ की आजुक दुनियाँ देख पबितौं? मुदा जहिना दुखमे मन वौराइ छै तहिना सुखोमे तँ वौराइते छइ। सोना पेनौं मन वौराइ छै आ धुथुरो खेने तँ वौराइते छइ। मुदा नाओं तँ दुनूक...। जे सेवा अठारह बर्खसँ पत्नी करैत एली अछि ओकरा सुतलो नीने नै नकारि सकै छी...।
नेसनी काकी बजली-
भगवान केकरो ने अधला केलखिन आ ने केकरो अधला करै छथिन। मुदा आगू-पाछू जे दूत रखने छैथ तिनका सबहक किरदानीसँ लोक तबाहीमे पड़ैए।
ओना, अपन चास-बास, बाड़ी-झाड़ीक रंग-रूप नेसनियोँ काकीक मनकेँ हरियेनहि छैन, मुदा जे हरिअरी वीरू काकाकेँ छैन ओइसँ कम नेसनी काकीकेँ छैन। मुदा बड़का महाजनकेँ जहिना अरब-खरबमे मन नचैत रहै छै तहिना छोटकोकेँ तँ साइयो-सैंकड़ामे नचिते छइ। तहूमे अन्नक खर्चक हिसाब जोड़ब ने पुरुख-पातरक काज भेल, तीमन-तरकारी जँ उपजल रहत तँ किए ने जनानियोँ चटनी-भुरतासँ लऽ कऽ सन्ना-सन्नी करैत भुजल, रसगर, झोड़गर, लटपट-सटपट करैत तरूआ तक लऽ कऽ चुल्हिक पूजा, जूड़शीतल पाबैन जकाँति करत।
ओना, वीरू कक्काक परिवार जेते अपना भरे ठाढ़ होइत गेलैन तही हिसाबे विचारो दौड़ैत मजगूती पकड़ैत गेलैन अछि। से ओहिना नै भेलैन, अपन जिनगीकेँ चीन-पहचिन कऽ जीबैक बाट जेना-जेना ताकि-ताकि पकड़ैत गेला तेना-तेना विचारो आ परिवारो अपना भरे उठैत गेलैन अछि। नेसनी काकीकेँ अपन पेटक टटका जेतेक बात रहैन ओ उझैलते मन खलियेलैन।
मन खलियाइते अँकुरलैन। अँकुरलैन ई जे अपने किए सोर पाड़ने छला से तँ बिसरिये गेल छेलौं। जँ कहीं मने सोगाएल कि रोगाएल होइन, तखन तँ चूक भेल किने। मुदा उपाय? हँ उपाय अछि, मन कलशलैन। मुँहक रूप छिटकलैन। छिटकबैक कारण जे बाल-बोध माए-बापकेँ हँसैत देख हँसि अपन सभटा कानब-खीजब बिसैर जाइए, तहिना ने बालकृष्‍णदेव पति छैथ। जँ संगे-संग खिल जाइथ तँ प्राश्चित कटत की नै? मन मानि गेलैन, मकै-धानक लाबा जकाँ छँहोछित तँ नै मुदा केराउ-मटरक भुज्जा जकाँ अठनियाँ मुस्‍की दैत नेसनी काकी बजली-
हाय रे बा...! अहाँ किए सोर पाड़ने छेलौं से एको बेर बजलौं। दुनू बेकतीक बीचक बात छी केते रंगक काज अछि हमरा सूढ़िपर जे छल से बजलौं, अहाँ किए मुँह दाबि लेलौं। अच्छा कहू जे मन नीक अछि किने?”
अखैन धरि वीरू काका नेसनी काकीक लहैरमे लहराइत रहैथ तँए अपन सुधि-बुधि हेरा गेल छेलैन मुदा पत्नीक बात सुनिते मन पड़लैन। बजला-
जरकल्ला फटि गेल!
ओना, वीरू कक्काक अपन प्रश्नक इशारा रहैन जे परिवारक अखैन धरिक जे समस्या रहल अछि ओकर समाधान भऽ गेल। मुदा नेसनी काकीक अपन जान हल्‍लुक होइक कारण रहैन, बेमरियाह पतिक सेवासँ माघक मुक्ति भऽ गेल। मुक्ति मनमे उठिते बुदबुदेली-
एहेन-एहेन सँए-खौंक कालकेँ तँ सतबन्‍हाँ बाढ़ैनसँ झँटबै!
जिनगीक अधिकांश समस्याक सामधान वीरू काका, नेसनी काकी मिलि कऽ केलैन। जे कल्‍पना लोकक मनमे विचड़ै छै वएह जखन साकार भऽ जाइ छै तखन ओ काल भागि भूत भऽ जाइ छइ। मुदा भूतो तँ भूत छी, कखैन भूत बनि जाएत आ कखैन वर्तमान, सएह ने बुझि पेबइ। जहिना सत् कखैन रज् आ रज् कखैन तम् भऽ जाइए तेकर ठेकान नै छै तहिना भूतो-वर्तमान आ भविसक अछि। 
बिहुसैत वीरू काका नेसनी काकीक बातकेँ टोनियबैत पुछलखिन-
कोन कालकेँ सतबन्‍हाँ बाढ़ैनसँ झँटबै?”
जहिना कियो केनिहार अपन काजकेँ प्रफुल्लित होइत देखैए आ मनमे खुशी होइ छै, तहिना वीरू कक्काक मनमे खुशी रहबे करैन। पुरुखक हथियार लाठी छी जे पानिमे तकछक-रकछक बनि जाइए आ मोटा तर भार। मुदा तेना नहि, नारीक अपन अनुकूल हथियार बाढ़ैन छइ। सालकेँ तीन मौसममे बाँटि, तीनू मनसूनकेँ तीन-तीन अवस्थामे खाँति कऽ तेना खोंटिया लेलैन जइसँ नेसनी काकीकेँ अपनापर भरोस जागि गेल छैन, विचारमे गुरुत्व आबि गेल छैन। तँए अपनापर नै नाचैथ, सेहो केहेन हएत?
विचारकेँ समटैत वीरू काका बजला-
भेल, बहुत भेल, तिला-सकराँइतसँ फगुआ धरिक खेल खेलि लेलौं। आब पति-पत्नी बनि परिवारमे खेलू।
जहिना कोनो पनचैतीमे बजक्कर उझैक-उझैक अपन समय गमेला पछाइतो बजैत रहैए तहिना उधियाइत मन नेसनी काकीक रहबे करैन। बजली-
खेलेटा किए खेलब! धुरखेलो किए ने खेलब। अपन घर छी, अपन परिवार छी तइमे पाहुन बनि थोड़े आएल छी जे पहुनाइ करब। संग मिलि सभ खाएब, सभ पसरब, सभ मलरब।
नेसनी काकीक बात फेर, नागीन फुलझड़ी जकाँ वीरू काकाकेँ नेसि देलकैन। मने-मन सोचए लगला जे भेल, बात फेर छिड़िया गेल! जे बात कहए चाहै छिऐन ओ तर पड़ि गेल। जे लगसँ दौग कऽ आगू बढ़ि गेल तेकरा बिना दौड़ कऽ पछुएने थोड़े घेरि पाएब, तइले तँ कनी दौड़ै पड़त। बजला-
की धुरखेल कहलिऐ?”
पतिक सेवा जेना नेसनी काकीक पतिव्रत-रूप आगूमे ठाढ़ भऽ गेलैन। बजली-
एकटा भेल खेल, दोसर भेल धुरखेल। अहाँक देहमे दम्माक काए लागल अछि, एकरा केना छोड़ा कऽ नीरोग बना संग मिलि जीब लेब, वएह जीअब भेल धुरखेल।
पत्नीक प्रश्नकेँ गंभीरतासँ लैत वीरू काका बजला-
केना रोग छोड़ा कऽ निरोग बना राखब?”
अपन गुरुत्वक एहसास नेसनी काकीकेँ भेलैन। बजली-
नअ बर्खक अखिहास केने ई लूरि हमरा भऽ गेल जे ता-औरुदा ई दम्मा किछु ने बिगाड़ि पौत।
पत्नीक बात सुनि वीरू काकाकेँ अपन जिनगीक आशा बढ़लैन। आशा बढ़िते आशक्त भऽ पुछलखिन-
की कहलिऐ नअ बर्खक अखिहास?”
जहिना स्कूल-कौलेजमे शिक्षक धुर-झाड़ बुझबै छथिन तहिना नेसनी काकी धुरा झाड़ैत बजली-
बारह मासक सालमे देखार तीनटा मनसुन अछि। जाड़, गरमी, बरसात। अही तीन मनसुनक बीच लोक जीबो करैए आ मरबो करैए।
बिच्चेमे वीरू काका मुड़ी डोला सुहकारैत बजला-
हँ से तँ सएह देखै छिऐ।
पतिकेँ सुहकारिते नेसनी काकीक सूढ़ि चढ़लैन। समरथाइ जगलैन। समरथाइ जैगते अपन सामर्थ देखबैत बजली-
ओना, सालक गति एकहरियो अछि दोहरियो आ तेहरियो अछि मुदा...।
नेसनी काकीकेँ आगू बजैले मुँह खुजले रहैन आकि बिच्चेमे वीरू काका टोकि देलखिन-
की एकहरी, दोहरी आ तेहरी?”
जेना बरीक सभ कथू ठोरेपर ओरियाएल रहैन तहिना खोंटैत बजली-
गोटे साल खूब जाड़ भेल, शीतलहरियो भेल, तहिना गोटे साल खूब झमझमौआ बरखो भेल जइसँ बाढ़ियो आएल। तहिना गरमियोँ भेल जइसँ लू सेहो चलल...। मुदा ई भेल एकहरी। दोहरी भेल जे लगातार साले-साल शीतलहरीक संग जाड़ो भेल आ बर्खाक संग बाढ़ियो आएल।
ओना, नेसनी काकी अपन बात अपना जनैत सोझराइए कऽ बजैत रहैथ मुदा वीरू कक्काक मनमे अपन बात बजैले औढ़ मारैत रहैन, तँए जल्‍दबाजीमे पत्नीक बातपर विराम दिअ चाहैत रहैथ। बजला-
एना ओझराएल बात नै बाजू, सोझ-साझ करि कऽ बाजू।
पतिक बात सुनि नेसनी काकी ठमकली। ठमकली ई जे पतिदेव तँ पेटक बात बुझए चाहै छैथ। मुदा नीक जकाँ केना घोरि कऽ पीयेबैन, जइसँ मन मानि जाइन। मनमे उठलैन जखन एकटा अक्षर एकटा काज बुझा सकैए, एकटा आँगुर भगवानसँ राक्षस तक देखा सकैए तखन हमरा बुते किए ने हएत। कहलखिन-
देखियौ, जखन कम जाड़ रहल वा मध्यम जाड़ रहल वा अधिक जाड़ रहल तँ ओ तीनूक तीन सूत्र भेल। तीनू सूत्रक अपन-अपन खेल-वेल छइ। तँए ओ खेल-वेल जखन पकड़ाएत तखने ने ओकर नीक जकाँ कूटन-पीसन करबइ।
पत्नीक विचारकेँ सुहकारि वीरू काका बजला-
हँ, से तँ हेतै?”
अपन विचार मनैबते नेसनी काकीक मन नेसा गेलैन। बजली-
आब अपन बाजू जे की कहै छेलौं?”
बाजू जे की कहै छेलौंसुनि वीरू काकाकेँ अरिकोंच जकाँ कब-कब तँ नै लगलैन मुदा ओल जकाँ मन घोल कऽ देलकैन! पति-पत्नीकेँ प्रेम-प्रेमीक प्रेमास्पदक आसनपर बैसबैत आँखिक बुइआ नजैरकेँ बदैल देलकैन! आँखिमे सुगबुगाइत दुनू बुइआ मुँह-मिलानी केलक। मुँह मिलानी कैरते दुनू दिस नाच करए लगल। वीरू कक्काक मनक तार-तंत्र तनतनेलैन। माथक टीक केतेकाल धरि टिकल अछि? जेतेकाल पत्नी छैथ। देवीरूपा पत्नीयेँक दयासँ ने अपन मान-समान बँचा पाबि सकै छी। तहिना दोसर दिस नेसनी काकीक मन अपन मांगक सिनूर देख-देख नचबो करैत आ गेबो करैत। जा धरि लुल्हो-नांगर आकि रोग-वियाधिसँ ग्रसित पुरुख संगी रहता ताबैए धरि ने ऐ सिनूरमे चमक रहत! अपने-अपने बेथा-कथा दुनूक मनकेँ चुरम-चुर करैत। गुमा-गुमी, चुपा-चुपी पसरल। पझाएल आगिकेँ जहिना खोंरनीसँ खोरि भनसिया नव आगि बना धधकबैए तहिना नेसनी काकी धधकबैत बजली-
खाइयो-पीबैक बेर भेल जाइए, झबदे काजकेँ उसारू।
तैबीच रेशमा नेसनी काकीकेँ सोर पाड़ैत बाजल-
माए, भानस भऽ गेल! जाड़क मास छी धीपले-धीपल नीक हएत।
एक दिस नेसनी काकी पतिक पाशमे फँसि बेदम भेल तँ दोसर दिस बेटीक बातक आशमे झूलए लगली। तैबीच वीरू कक्काक मन उमड़लैन। बजला-
रेशमोकेँ सोर पाड़ि लिऔ। बच्चा अछि, असगरमे डर हेतै। एतेकाल काजक अनमेनामे छल मन नचै छेलै, मुदा काज सम्पन्न भेनौं ओकर मनक काज चलबे करतै।
पतिक विचार पाल-पाल कऽ पाबि नेसनी काकी बीच-बचाउमे बजली-
बुच्ची, सभ कथूकेँ झाँपि दहक आ तोहूँ एतै चलि आबह। बुड़हाक गप-सप्प सुनहुन हेन।
वाह रे दुनियाँ! केतौ संगिनी बुड़हा कहि सम्मानित करैए, तँ केतौ हिप्पीबला बर, कोठाबला घर! ओना, पति-पत्नीक किछु बात एहनो अछि जे बाले-बोध-बच्चा किए ने हुअए मुदा ओहो घेरा दाइए दइए। जइसँ दुनूक सिनेह ससैर सन्तानो दिस बढ़ैए। वीरू काका बजला-
रेशमा माए, जड़कल्‍ला फटि गेल।
रेशमा माए कहने जहिना रेशमाक कान ठाढ़ भेल तहिना नेसनी काकीकेँ अपन ओसताजीपर खुशी उपकलैन। उपैकते बजली-
ऐबेर भगवानो दहिन छला, शीतलहरियो नै भेल आ जाड़ो कम खसल। ओना, हम जाड़ोक सभ सरंजामक ओरियान कइये नेने रही। मुदा ओहो सभ बँचिये गेल!
नेसनी काकीक बात सुनि वीरू कक्काक मनमे भेलैन जे फेर पत्नी अपना दिस ससैर रहली अछि। मुदा अपनो तँ किछु कहब अछि। टोकारा दैत बजला-
साँझसँ बहुत धमगज्जर भेल। एकटा बात सुनि लिअ।
माए दिस रेशमा तकलक। नेसनी काकीक नजैर घुमिते मनमे भेलैन, बाल-बोध लगमे बैसल अछि, ओ की बुझत जे बाबूक बातकेँ माए कनवाहि नै करैए। पाछू घुसकैत बजली-
अहाँ ते अपने बेर-बेर बजए चाहै छी आ बिच्चेमे बिसैर जाइ छी। मन पाड़ि कऽ बाजू।
माइक बात सुनि रेशमाक मन खनहन भेल। खनहन ई जे बीचमे माए बाधक नै बनती। वीरू काका बजला-
मरैत-जीबैत बुझू आकि हारैत-जीतैत, दुनू गोरे एतेटा जिनगी तँ काटि लेलिऐ मुदा आगू केना खेपब सेहो ते अपने दुनू गोरे ने विचारब।
पतिक बात नेसनी काकीकेँ जेना नेसि देलकैन। नेसि ई देलकैन जे जखन लोक मरिए जाएत आकि हारिए जाएत तखन जीतत केना? जीतैक बाटमे केतौ-केतौ लोककेँ मरैओ पड़ै छै आ हारैओ पड़ै छै...। झिझकैत नेसनी काकी बजली-
एना किए मरदुआर जकाँ बजै छी? पोखरा-पाटन जकाँ चौकोर किए ने बजै छी। एना कहियौ जे एन-मेन जहिना पाछूओ कटल तहिना आगूओ खेपब।
माइक बात रेशमा नै बुझि पेलक जे एन-मेनकी भेल? बाजल-
माए, आनी-मानी हम नइ जानी।
भेल भानसमे पहपटि रेशमा ठाढ़ कऽ देलक। नेसनी काकी मने-मन सोचए लगली, बेर परहक भदवा ठाढ़ भऽ गेल। आब एकर आनी-मानी लगाएब आकि पतिक बात सुनब। तँए किछु बजैसँ परहेजे नीक हएत। जँ अपने आगू बढ़ि किछु बजता तँ रेशमाकेँ प्रवोधि लेब। ने ओ केतौ पड़ाएल जाइए आ ने अपने, तखन निचेनेसँ किए ने दुनू माए-बेटी मुँह-मिलानी करि लेब।
मुदा वीरू काका ऐ ताकमे जे लगक बेटी तँ हुनके  छिऐन तँए हुनकर बुझाएब बेसी नीक। तँए सबहक मुँह सभ ताकए लगल। नअ-बजिया घड़ी-घण्‍ट रामो-जानकी मन्दिरमे आ रधो-कृष्‍ण मन्दिरमे बाजि गेल। मुदा ऐठाम तँ भेल भानस बरतनमे कनैए।
थोड़े कालक पछाइत मौन भंग करैत वीरूकाका बजला-
बुच्ची, बहुत दिनक पछाइत बदलल रूप जिनगीक पेलौं। तँए तोरा प्रश्नक उत्तर पछाइत देबह, पहिने अपन फटेहाल जिनगी सुनि लएह।
मुदा बाल-बोध रेशमाक मनकमना लगले केना मेटा-जाएत आकि दबि जाएत। बाजल-
बाबू, पहिने अपन बात कहियौ खाइबेर हमरा बुझा देब।
सबुरिया बात रेशमाक सुनि वीरू कक्काक मन नचलैन। नचलैन अपन दायित्वपर। कोन बाप एहेन हएत जे रेशमाकेँ कुसुमा बनैत नै देखए चाहत। जेहेन कामना असान तेहेन दुनूक बीच दूरीक तफान। वौड़ाइत मन मुदा लगले देखलेहे जगहपर आबि गेलैन। हम पिता रेशमाक छिऐ, पोसै-पालैक भारबला। मुदा एहेन के रेशमा अछि जेकरा पिता नै होइन, रेशमा-कुसुमा बनि परिवारसँ लऽ कऽ गाम-समाजकेँ कुसुमित केना करत, तेतबे ने अपन दायित्व भेल? बजला-
बुच्ची, माए तँ संगे छेलखुन, मुदा तूँ बाल-बोध छह तँए कहि दइ छिअ। अखैन तकक किसानी जिनगीमे तीनियेँ साल किसानी भेल!
ओना, मिडिल स्कूलक सातम कक्षाक छात्रा रेशमा, मुदा पिताक भाषा नीक जकाँ नै बुझि पाबि रहल छलि। बाल-बोध रेशमा पिताक आँखिपर आँखि चढ़ा अपन विवशता देखबए लगलैन, ओना, वीरूओ काका रेशमाक नजैरक क्रिया पढ़ैत रहैथ मुदा थाह नै पाबि रहल छला जे रेशमाक जिज्ञासाक रूप की अछि। दू-दिसिया रूप देख बिच्चेमे बौआइत रहैथ। मुदा कोनो प्रश्न नै उठैत देख वीरू काका आगू बजला-
बुच्ची, एतेटा किसानी जिनगीमे एक साल समगम बरखा भेने समगम उपज भेल, जइसँ समगम जिनगी भेटल। दोसर बेर शुरूहे बैशाखमे धारक मुँह सौंसे गौंआँ बन्हबौलैन तइ साल सेहो भेल आ ऐ साल अपन बोरिंग गरौने भेल अछि।
बाल-बोध रेशमाक जिज्ञासा फानि उठल-
बाबू, तीनू तँ तीन रंगक भेल, तखन तीनू बरबैर केना भेल?”
बेटीक गंभीर बात सुनि वीरू काका ठमकला। ठमकला ई जे तीनूक तीन दिशा अछि, मुदा मिलानी एकठाम भऽ जाइए। तैसंग ईहो भइये जाइ छै जे तीनूक क्षमतो तीन रंगक छइ। समगम बरखाक माने भेल अखारसँ आसिन, जखन कि धारक भेल छह मास। मुदा बोरिंग तँ भेल बारहो मासक।
तेतबे किए, समगम समय भेने धान नीक हएत, अदहा-छिदहा रब्‍बी-राइ हएत, मुदा खेतीक मौसम तँ एकेटा पकड़ाइए, जखन कि तीन मौसममे तीन रंगक चास-बास- अन्नसँ फल-फलहरी आ तीमन-तरकारी धरि- लगने तीन गुणाक अन्तर भऽ जाइए। बोरिंग बारहो मासक ऐ दुआरे भेल जे खेतक कोनो उपजा लेल पानिक खगता होइ छै चाहे ओ जेमहरसँ आबए। अकाससँ बरखा बनि आबए, धारक पेटसँ आबए चाहे पतालक पेटसँ बोरिंग होइत आबए। आरो केते रंगक विचार सभ मनमे उठए लगलैन।
रेशमाक प्रश्नपर वीरू काकाकेँ मन विचरण करैत देख नेसनी काकी खोंरना चलौलैन-
भरि दिनक थाकल-ठेहियाएल बाल-बोध अछि, खाएत-पीअत-सुतत आकि भरि राति सोंखैर सुनैत रहत।
मनक पसरल विचारक जालकेँ समेट वीरू काका बजला-
बुच्ची, परिवारक नव सिरासँ जन्‍म भेल।
रेशमाक मनक ललक लड़कल-
की नव सिरा?”
रेशमाक प्रश्न सुनि वीरू काका फेर ठमकला। ठमकला ई जे फेर प्रश्नक मुँह पाछूए दिस घुमि रहल अछि। एक सिरा भेल जइसँ नव सिराक जन्‍म भेल आ दोसर सिरा भेल आगू बढ़ैक। लगले मन फनैक गेलैन। फनैक ई गेलैन जे जहिना सभ अपन जिनगी हँसी-खुशीसँ आनन्दित होइत चलऽ चाहैए, से चाहे हौ आकि नै हौ, ई दीगर भेल। मुदा से होइ की छै? होइ तँ ई छै जे लगले खुशी, लगले गम आ लगले दुखी! मुदा आनन्द तँ ओ भेल जे सदैत बढ़ैत रहत। तहिना किसानी जिनगी लेल किसानीक जे मूल समस्या छै, तेकर समाधान भेला पछाइते ने किसानक देहपर रोहानी औत, जइसँ रोहानियाँ रूप बनैत रोहनियाँ फलक आशा करत। पतिकेँ गुमे-गुम देख नेसनी काकी फेर टिपलैन-
समैयक ठेकाने ने करै छी आ सिरा-भट्ठामे दहाइ छी।
वंशीक लहकी जकाँ पत्नीक बात सुनि वीरू काका लपैक कऽ बजला-
दहाइ कहाँ छी, फाटल जाड़क वेगमे नहाइ छी।
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तिथि : 09 जनवरी 2015, शब्द संख्या : 3328

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