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Saturday, August 31, 2019

लगबे ने कएल (कथाकार श्री जगदीश प्रसाद मण्डल)



फगुआसँ एक दिन पहिने झंझारपुर बजार गेल रही। थाना चौकक काते चाहक दोकानपर देवानन बैसल रहए, साइकिलपर देखते दोकानसँ हल्‍ला केलक-
किसुन भाय, आउ-आउ चाह पीब लिअ।
चाह पीब लिअई तँ सोझे चाह पीब नइ भेल। चाहक संग समैयक उपयोगो होएत। चाहे ओ कोनो समाचार सुनब हुअए आकि काज करब। रूकि कऽ चाहक दोकानपर गेलौं।
अपने पँजरा लगा ब्रेंचपर जगह बना बैसैक ओरियान देवानन केलक। ओना, जगह सिकेस बुझि पड़ल, बगलक दोसर ब्रेंच खाली रहै, मुदा मनमे भेल जे चाहेक दोकान छिऐ, रंग-बिरंगक लोकक अड्डा छीहे, भऽ सकैए जे कोनो तेहेन विचार देवाननक होइ जे ओ दोसरसँ बचा कानमे फुसफुसा कऽ कहऽ चाहैत हुअए। देह-हाथकेँ पातर बना घोंसिया कऽ बैसलौं। चाहो आबि गेल। ताबे तक देवानन पाबैनक उपहार दैत रहल।
मुदा मनमे ईहो हुअए जे एते उपहारे लऽ कऽ की करब। जखन मोबाइलेसँ बाल-बच्चाकेँ ढाकीक-ढाकी उपहार आ बच्चाक बापकेँ पोस्‍ट ऑफिसक हाथे बहिन राखी बन्है छैन, तखन जँ शुभे-शुभ नै तँ अशुभ की...।
अदहा गिलास चाह सठैत-सठैत जेना देवानन बुझि गेल जे अपन गप-जोकर चाह गिलासमे छैन्‍हे। अहुना तँ अपना सभकेँ बुझले अछि जे खाइ-पीबैकाल बाजी नहि। एकतरफा सुनैक काज अछि। तहूमे जेकर नोन खाइऐ, तेकर सरियत सेहो देबे करिऐ। बाजल-
भाय, एकटा बात सुनि मन बिसाइन-बिसाइन भऽ गेल अछि!
देवाननक शब्दो आ शक्‍लोक सुर्खी देख जिज्ञासासँ खढ़िया जकाँ कान ठाढ़ केलौं। पुछलिऐ-
की बिसाइन?”
देवानन बाजल-
भाय, बेंगवाकेँ छौड़ा सभ फगुआ पाबैन कहि ताड़ी पीआ देलकै आ मनमे बैसा देलकै जे पाबैनक सभ किछु माफ होइ छै, श्याम भायकेँ अनधुन गरिया, खूब गरियौलकैन!
चाहक दोकान तँए सभ बात एतए कएलो ने जा सकैए। केना पुछितिऐ जे किए गरियबऽ कहलक। मनमे भेल कोनो कनाइर हेतइ। मुदा चुपे रहलौं।
चाह पीबैक घर छिऐ, एक औत एक जाएत। मुदा तइ बिच्चेमे दोसर ब्रेंचपर मारि-पीटक गप उठि गेल। पास-परोसक मारि-पीट छी, किए भेल? ई जिज्ञासा भेबे कएल। मुदा बजलौं किछु ने, खाली सुनैत रहलौं। सुनलौं जे बगले गाममे एकटा छौड़ा फगुआक उपहार कहि कागजक एकटा पन्नापर लिखि, चौमैतपर साटि देलक। ओइमे सोलहन्नी उनटा-पुनटा बात लिखल रहइ। गाममे जे सभसँ धनीक, ओकरा भिखमंगा आ जे सभसँ बेसी ज्ञानी हुनका मुरुख ललका रोशनाइसँ लिखि देने छेलइ। तहीले लिखनिहारकेँ भँजिया पान-सात थप्पर लगा देलकै। सएह मारि-पीट छल।
मुदा एतबेपर थमि गेल। पाबैनक समय रहने सभ थोम-थाम लगबैत कहलकै, सभ खेने-पीने अछि तँए पाबैनक पछाइत बुझारत हएत। दोकानपर सँ उठि विदा भेलौं। देवानन सेहो संगे विदा भेल। पाबैनक बजार, तहूमे फगुआ सन मध्यमासक उछाही कहियौ कि वसन्‍तीक वहार कहियौ, गज-गज करैत लोकक भीर। रंग-रंगक लोक, जेबीमे खुदरा पाइ जहिना झनझनाइए तहिना लोको झनझनाइत, तैबीच दोकानसँ रस्‍ता धरि पसरल फगुआक वस्‍तु-जात। रंग-रंगक डम्‍फा, ढोलक, तबला, मिरदंग इत्यादि-इत्यादि ओहन बनि पसरल जे चाहक कप जकाँ पीओ-फेको अछि। कोनो एक दिन टिकत तँ कोनो एक्के दिनमे तीनटा फूटत। तहिना रंग-रंगक वस्त्र-जात, देश-देशक वस्त्रसँ भरल। एहनो-एहनो गंजी-अंगा जइमे पाँच गोरे एक्केटामे अँटि जाएत आ एहनो जे अदहो देह नै हएत। जेकरो झाँपन देब सेहो ने झँपाएत। तहिना माथ परक टोपीओ। कोनो हाथी छाप तँ कोनो घोड़ा छाप। कोनो हीरो संग जीरो छाप तँ कोनो हिरोइन संग जोकर छाप। तहिना रंगो आ अबीरोक बजार। खेबो-पीबोक विन्यासक कमी नहियेँ, मुदा सबहक दाम तेते चढ़ल जे जे पाबैन दहाइमे होइ छल ओइमे हजार-बजार चलि आएल।
चेतन बुझेलासँ बुझियो सकैए मुदा बाल-बोध तँ नै मानत। ओ तँ धिया-पुताक जेरमे अँगने-अँगने टहैल-टहैल रंग-अबीर खेलबे करत। तैठाम जँ ओकरा रंग-अबीर नै रहतै तँ ओ आनक मुहतक्की करत की नहि। तँए ओकरो मन बुझबैले तँ किछु करैए पड़त। तहूमे तेहेन-तेहेन लोक सभ भऽ गेल अछि जे अनेरे कहत फल्‍लँमाक धिया-पुताकेँ रंगोक उपए नै छइ।
एकटा दोकानपर चीज-वौस मोलबैत रही कि देवानन एक चक्कर लगा घुमि कऽ लगमे आबि बाजल-
बजारमे आगि लगल छइ।
आगि लगल छैसुनि देवानन दिस देखए लगलौं जे चीज-वौसक दाम सभ बाजत। मुदा दोकनदारो उड़नबाज, बिच्चेमे टाँहि देलक-
एहेन अगिमुत्तू जकाँ गप किए होइ छह।
दोकनदारक गप सुनि देवानन चुप भऽ गेल। चुपो केना ने होइत, दुनियोँ तँ अजीव छइ। कियो जुगानुकूल जीवन स्तरकेँ अगुआएब बुझैए तँ कियो स्‍वर्गक सुखकेँ। यात्री दुनू दिस अछि। यएह छी पाबन पाबैन। गमैया लोकक फगुआ पाबैन। जहिना पएरक कोनो आँगुरमे घाओ भेने बेर-बेर चोट लगैत तहिना मनपर मनक-मन चोट पड़ैत रहए। मन मानि गेल जे केकर मुँह देख विदा भेल छेलौं जे अशुभे-अशुभ भेटैए। मुदा उपाइए की? चीज-वौस पुरबै दुआरे- संख्याक हिसाबे- कटौती करैत बजारसँ निकललौं। पाबैनक सभ वस्‍तुक जोगाड़ भेने मनमे, क्षणिके सही मुदा चैन तँ भेबे कएल। जहिना काजक दौरमे लोक अमल पान कऽ किछु थकान मारैए, तहिना मनक थकान कमबे कएल। देवाननकेँ संगैतिया सभ भेट गेल, तँए ओकरो केना कहितिऐ चलैले। असगरे विदा भेलौं। जहिना नख-सिखक वर्णन होइ छै तहिना सिख-नखक वर्णन करैक मन बनेलौं। मन कि बनत जे आरो बगदिये गेल। मन बनब भेल काजमे प्रवृत हएब। चाहे ओ शारीरिक हुअए आकि मानसिक। मन भन-भना गेल। कोन चकरचालिमे पड़ि गेल छी, एक दिस कियो पुरखाक सारापर मन्दिर बना फूल चढ़बैए तँ दोसर दिस हुनकर विचारकेँ जीविते सारामे सजबए चाहैए। फेर जेना मन घुमल। अनेरे कोन रफू करैक चक्करमे पड़ि गेलौं। नइ पान तँ पानक डण्‍टियो लऽ कऽ नइ सम्‍हारैत चलब तँ जेहो अछि सेहो थोड़े रहत। उपनायनिक मेघ-डम्मरकेँ बड़ुआ केना बारह इंचक बैगमे राखत? मनमे फेर भेल जे गामपर पहुँचते पहिने श्याम भाइक जिगेसा करबैन। कियो केकरो गारि पढ़लक तँ किए पढ़लक। समाज होइक नाते हमरो दायित्व बनैए जे अनेरे जे कियो केकरो गारि पढ़त तेकरा किए ने विरोध करब। जँ कोनो गारि पढ़ैबला काज केने हुअए तँ गारियो नै पढ़ब अनुचित हएत, मुदा से बुझब केना? फेर भेल जे एक पंथ दू काज। जिगेसो भऽ जाएत आ पुछियो लेबैन। जखने अपन पक्ष रखि बाजब तखने ने ऊहो अपने अपन विचार देबे करता तइ हिसाबे समाजक बीच राखब। चीज-वौसक झोड़ो आँगनमे आ साइकिल दरबज्जापर रखलौं। साइकिलक चालिसँ कने गरमा गेले रही। कपड़ा बदैल विदा भेलौं। 
दरबज्‍जेपर तीन-चारि गोरेक बीच बैसल श्याम भाय ठहाकापर ठहाका मारैत रहैथ। मनमे भेल जे मर्र ई की देखै छी। पीताएल मन रहबे करए, तैपर कनी साइकिलक थकान सेहो भऽ गेल रहए, केतबो मनकेँ थीर करी जे कनी श्याम भाइक गपमे टोकारा दिऐन, मन से राजीए ने हुअए। मुदा तैयो सहैट कऽ लगमे बैस चुपे-चाप बातकेँ घोंटए लगलौं जे कहुना गरम पानिमे ठण्‍ढा पानि मिलेने ओहो ठण्‍ढेता। एक दिस श्याम भायकेँ देखिऐन जे चौराहापर गारि सुनलैन आ दोसर दिस देखै छिऐन, हिनका-ले धैन-सन। मनमे हुअए जे ई की भेल? जिनका बेथे हम बेथाएल छी, जे देवोनन कहने रहए, मन बिसाइन-बिसाइन भऽ गेल अछि, आ हिनका-ले कोनो गमे ने! मुदा अनेरे कोनो विचारक दौरमे टभैक जाइ, सेहो नीक नै बुझि पड़ए। बजारसँ अबिते सोझे ऐठाम चलि आएल रही। दिशो-मैदान दिस जाएब पछुआएले अछि। मुदा बीचमे परिस्थिति बदलल। बदलल ई जे रूक्‍मिणी भौजी पहिने पानिक लोटा-गिलास पहुँचा गेली, पछाइत तस्तरीमे चाहक कप नेने पहुँचली। एक तँ फगुआक रंग लोककेँ ओहिना चढ़ि जाइ छै तैपर जँ किछु खेबा-पीबाक वौस आगूमे आबि जाइ छै तखन तँ मन आरो बमछऽ लगै छइ। श्यामो भाय पैछला गपक पराग्राफ बदललैन। पत्नीकेँ कहलखिन-
चाहमे कनी अफीम नै मिला देलिऐ। फगुआक समय छी जहिना राधा संग कृष्‍ण धुरखेल करै छैथ, रामो जइ सीता-ले बोनमे की-की ने केलैन, ओहो तँ धुर-खेल खेलबे करै छैथ, तखन अपने दुनू गोरे किए बँचब।
रूक्‍मिणी भौजी चुपचाप सुनैत रहली। बजली किछु ने। अपन बात रखैत श्याम भायकेँ पुछलयैन-
भाय, सुनलौं जे चौकपर खूब धुर-खेल केने छेलौं।
जेना हमर बात श्याम भाय सुनबे ने केलैन तहिना अनमनाएल जकाँ बजला-
हम कहाँ केने छेलौं। सुनैमे आएल जे छौड़ा सभ बेंगवाकेँ ताड़ी पीआ बकबै छल।
पुछलयैन-
एना जँ बका-बकी समाजमे हुअए से नीक हएत?”
उनैट कऽ वएह पुछि देलैन-
केना नीक हएत, की नीक हएत?”
असमनजसमे पड़ि गेलौं। जे पुछए चाहै छेलिऐन, से वएह उनैट कऽ पुछि देलैन। कोनो गर देखबे ने करी। मनमे जेना छटपटी उठए लगल। कहलयैन-
ओते बात-विचार करैक अखैन समय नै अछि। ओइ गारिक की हँ-निहँस केलिऐ?”
ले बलैया, हँ-निहँसक उत्तर देबे ने केलैन आ बजला-
हमरा लगबे ने कएल।
मनमे हुअए जे ई की कहि देलैन। पुछलयैन-
केना नइ लागल से कनी हमरो कहू।
श्याम भाइक मनमे मिसियो हलचल नहि। बजला-
गारियोक दू रूप होइए। एक होइए अधला काज केला पछाइत सुनब, दोसर होइए अनेरे केकरो ऊपर शब्दवाण फेकब।
कहलयैन-
कनी फरिछा कऽ कहू।
जेना ठोरेपर उत्तर रहैन, तहिना धाँइ-दऽ बजला-
कियो अपन कर्मक कर्ता होइए, जे नीक-अधलाक भागी बनत। मुदा अपन किछु कएले ने अछि, तखन गारि लगत किए। अनेरे जे पढ़लक ओ बकलेले भेल। ओकरा ताड़ी पीआ कियो भूतलग्‍गू जकाँ बकौलक, तइसँ हमरा की? जँ हमर नामे लेलक तँ लेलक। अपन मन ते अखनो यएह कहैए जे गारि सुनैबला कोनो काजे ने केलौं तँ गारि लागत किए।
ओना, श्याम भाइक विचार जँचल मुदा तैयो मन थीरे ने हुअए। कहलयैन-
निचेनसँ कखनो आरो गप करब। मुदा एकरा छोड़ब उचित नै बुझै छी।
हँसैत श्याम भाय बजला-
बाट चलैकाल कियो अपन जिनगीकेँ नजैरमे रखि चलैए, बाटपर जँ काँटे-कुश आकि गन्‍दे-मैला रहैए ते ओइसँ बगैल कऽ बढ़बे नीक हएत किने। मुदा अहूँक विचार समाज लेल विचारणीय अछिए।
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तिथि : 25 जनवरी 2015, शब्द संख्या : 1449

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