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Saturday, August 31, 2019

उकड़ू समय (कथाकार श्री जगदीश प्रसाद मण्डल)



मास डेढ़क करीबसँ सहदेव बाबासँ भेँट नै भेने मन उवियाइत रहए। गाम-घरमे होइतो अहिना छइ। अखनो तँ गाम गामे छी मुदा गामे तँ समाजो छीहे। शहर-बजारसँ फराक अछिए। फराको होइक कारण अछि। जे शहर जेते नमहर तइमे तेते दूर-दूरक लोक आबि बसैए जइसँ ने पैछला कोनो इतिहास रहै छै आ ने वर्तमानक कोनो एकरूपते रहै छइ। सबहक अपन-अपन धंधाक काज, अपन-अपन विधि-बेवहार, जइसँ चालि-ढालिमे दूरी भइये जाइ छइ। मुदा गाम-समाजक से नै अछि। भूतसँ वर्तमान धरिक उचित-उपकारक सम्बन्ध बनल चलि आबि रहल अछि।
लोकमे एहेन धारणा रहिते अछि जे फल्‍लाँक बाबा हमरा बाबाकेँ बेरपर काज देने रहथिन तँए हमरो उचित बनैए जे फल्‍लाँकेँ बेरपर ठाढ़ होइऐ। मुदा से सभ नै रहै, जहिना सभकेँ सभसँ भेँट-घाँट भेने देखा-देखी हूबा बढ़ैए तैसंग मनसूबो बढ़िते अछि। ओना, गाम-घरमे चौक-चौराहा भेने पहिलुका अपेक्षा भेँट-घाँट हएब असान भऽ गेल अछि मुदा एहनो लोकक कमी तँ नहियेँ अछि जे अनेरे समय नै गमबै छैथ।
सहदेवो बाबा तेहनेमे सँ छैथ। ओना, भेँटो-घाँटक केते उपाय अछिए। आनोसँ भेँट भेने जानकारी भेटते अछि, तैसंग नीक-अधला काज भेने सेहो चरचामे एने भेँट होइते अछि। मुदा जे भेँट मुहाँ-मुहीं कुशल-छेम बुझने होइए ओ तँ दोसर नहियेँ होइए। तहूमे जे सहदेव बाबा एक-ने-एक बेर दिनमे जरूर भेँट भऽ जइ छला, डेढ़ मास तिनकासँ नै भेँट भेने मन उवियेबे करत। सहए भेल। ओना, नै भेँट हेबाक कारणो चोराएल नहियेँ अछि। समैये उकड़ू भऽ गेल अछि। सभ अपने-अपने व्यस्त भऽ गेल छैथ। ओना, उकड़ू समय भेने व्यस्तता बढ़ितो अछि आ घटितो अछि। जे सोभाविको अछिए। एक दिस हाथक काज छीना गेने व्यस्तता कमैए तँ दोसर दिस दोसर काज उपस्थित भेने बढ़ितो अछि। सहदेव बाबासँ भेँट करैले मन एते उविया गेल जे कोनो काजमे नजैर सन्‍हियेबे ने करए। जाबे मनमे काज नै सन्‍हियाएत ताबे देहो-हाथ अलसाएले रहत। मनमे भेल जे अनेरे माथमे भेँट करैक बोझ बनल अछि, से नै तँ जा कऽ भेँट कऽ अबयैन। मुदा फेर हुअए जे भेँटो करैक तँ किछु बहाना होइ छै, से कथी बहाना बनाएब। अनेरे भेँट करए जाइ आ पुछि दैथ जे केमहर आएल छेलहतँ की कहबैन?
ओना, समय जेहेन उकड़ू भऽ गेल अछि तेहेनमे काजक बहाना नइ बल्कि बोल-भरोसक जरूरत तँ अछिए। तकले काजो आ तकले बहन्नो तँ अछिए। विदा भेलौं...।
रस्‍ता कातमे तीन-चारिटा दोकान एकठाम अछि। सहदेव बाबाकेँ दोकानपर देखलयैन। देखते मनमे खुशी भेल जे रस्‍तेमे बाबा भेट गेला। भेटला तँ मुदा भेँट होइमे समय लागत। किछु कीनए दोकान आएल छैथ। दोकानक हिसाबे भीड़ बेसी। ओही भीड़मे सहदेव बाबा ठाढ़। हुनका ठाढ़ देख मनमे कनी कठाइनो लागल, कठाइन ई लागल- दोकनदार केहेन अछि जे बुढ़ो-बुढ़ानुसक विचार ने करैए। जुआने-जहान जकाँ ठाढ़ केने छैन। मुदा किए केने छैन से तँ ओ जानए। दोकनदारपर सँ तामस घुसैक कऽ धियो-पुतो आ चेतनोपर गेल। कहू जे केहेन धिया-पुता आकि चेतने भऽ गेल अछि जे सभ अपने-ले हाँइ-हाँइ करैए। जेना सबहक पेटमे मूस कुदैत होइ। आखिर सभ उजि-माइल किए करैए। कनी आगू बढ़ि देखलौं तँ दोकनदार डण्‍डी धेने बेसाह जोखैमे एते तवाह रहए जे पाइयोक हिसाब नै जोड़ि होइ। तैठाम बुधि-विवेकक हिसाब तँ आरो भारी अछि। वेचारा दोकनदारे की करत। ओकरे चावस्‍सी दी जे नगद कि उधार गामक पैत बँचौने अछि। तहीकाल एक दस-बारह बर्खक बच्चिया दोकनदारकेँ कहलक-
हमरा राइतो ने भानस भेल, तँए पहिने हमरा दू किलो आँटा दिअ।
बच्चियाक बात सुनि मन सहैम गेल। हाइ-रे मनुख! दस-बाहर बर्खक बच्चियाक जँ पेट जरत तँ ओ केहेन जननी बनत। मुदा उपाय? सहदेव बाबा आगू दिस घुमल ठाढ़ रहैथ, मुदा मुँहमे बोल नै रहैन आकि पेटमे घुरिया रहल रहैन से तँ ओ जानैथ, मुदा हमरा बुझि पड़ल जे भरिसक बेसौहुआ सबहक संग बाबा अपन बेथा ने तँ विलैह रहला अछि। अनका पेटक आगिक संग अपनो पेटक आगि जनु बाँटि-विलैह रहला अछि। 
पाँच किलो चाउर आ सात किलो गहुमक चिक्कस कीनि दुनू झोरा दुनू हाथमे नेने सहदेव बाबा पाछू दिस घुमला कि हमरापर नजैर पड़लैन।
नजैर मिलते दुनू हाथ जोड़ि बजलौं-
बाबा गोर लगै छी।
मुदा हुनका मुहसँ किछु ने निकललैन। आगू बढ़ैत निच्‍चाँ एला। खसल चेहरा देख मन कलैप गेल। ताबे लग आबि गेल छला। ओना, बाबामे ई आदत छैन जे चिन्‍हारकेँ देखते किछु-ने-किछु पुछि दइ छथिन। एहेन मान-रोख मनमे छैन्‍हे नइ जे जे टोकत तेकरे टोकबै। स्पष्ट विचार छैन जे झगड़ा ने दन तँ चुन-तमाकुल किए बन्न। भाय, झगड़े जँ अछि तँ झगड़ा किए अछि, ओ तँ जे जीबैए, सहए करत। ने पैछला देखए औत आने ऐगला भोगए औत। तखन तँ भेल जे झगड़ा कथीक। जँ वैचारिक झगड़ा रहत तँ ओ विचारि कऽ विचार करए पड़त, तहिना जँ खेत-पथारक रहत तँ ओकरो अपन सूत्र छै, तहिना जँ अधिकारक अछि तइले संविधानो अछि आ संविधान बनौनिहारो। तखन कोन कारण शेष रहल जइले समाजमे विग्रह बनल रहत।
मनमे भेल जे केना बाबाकेँ कहबैन जे अहींसँ भेँट करए जा रहल छी। एक तँ अपने बेसौहुआ छैथ तैपर भार किए देबैन। मुदा मनक जे उमकी रहए ओ तँ रहबे करए, जे विचार विनिमय भेनहि हटत...।
कहलयैन-
बाबा अहीं घर दिस जाएब।
मनमे भेल जे से कहलासँ एते मनमे हेबे करतैन जे रस्‍ते-रस्‍ते कुशलो-छेम कऽ लेब आ जइ काजे जाइए से काजो...। ओना, अपना तँ बुझले अछि जे जखन कोनो विचारक गुण बाबा पकैड़ लइ छैथ तखन सिरा-भट्ठा बिसैर जाइ छैथ। ओना, भट्ठामे गुनक कोन खगता छै, ओ तँ अनेरे पानिक वेगमे भँसियाइत चलत, मुदा सिरा दिस चढ़ने तँ धारक वेग बुझिये पड़ै छइ। गुणियो तँ गुणीए छी, जखने मनमे गुणकेँ रोपि लेत अनेरे ने गुणीसँ गुनी भऽ जाएत। घर दिस विदा होइते कहलयैन-
बाबा अहाँक दुनू हाथ बरदाएल अछि चलैमे बाधा हएत।
ओना, बाबाक मनमे जे रहल होइन मुदा बजला-
कोनो बेसी भारी कहाँ अछि, सात किलो आँटा आ पाँच किलो  चाउर अछि।
बाबाक बात सुनि ओना, बहुत आश्चर्य नहियेँ भेल, किएक तँ अपने सेहो ओही रमा-कठोलामे छी। मुदा जबरदस आश्चर्य ई भेल जे जे बाबा अपने सभ दिन अन्न बेचै छैथ, आइ ओ कीननिहार भऽ गेल छैथ, मुदा जिनगीसँ तेते प्रेम छैन, तँए दुखे-कि-सुखे जीबए चाहिते छैथ। रस्‍ता दुआरे आकि की, अपन घर लग तक गामेक चर्च बाबा करैत रहला अपन बात किछु ने बजला। घर लग तक अपन बात किछु ने सुनि भेल जे समय तँ रीब-रीबेमे चलि गेल। बाबा अपन कहाँ किछु कहलैन। जे सोचि आएल छेलौं सहए हेराएल रहि गेल।
मुदा सुतरल, सुतरल ई जे घर लग अबिते बाबा बजला-
बहु दिनसँ भेँट नइ भेल छेलह दरबजेपर चलह किछु आरो गप करैक अछि। अखैन कि कोनो काज-परोजन अछि, भने किछु समैयो कटि जाएत। समय तँ काजे काटि लेलक, मुदा अपनो तँ ओकरा काटक अछिए। जाबे से नै हएत, ताबे जीब केना पाएब।
आँगनमे झोरा रखि सहदेव बाबा दरबज्जापर एला। ताबे चाहो आबि गेल। दुनू गोरे चाह पीबए लगलौं। मनमे हुअए जे बाबाकेँ किछु पुछिऐन, मुदा बाबा अपने बजैमे ओझरा गेल रहैथ, जइसँ अपन घरक बाते हेरा जाइन।
मुदा गर लगल। बजला-
बौआ, गामक दूरदिन आबि गेल।
बाजि कऽ कनीकाल चुप भऽ फेर बजला-
जखन गामेक दूरदिन आबि गेल, तखन गामक लोक बँचि केना सकैए।
गामक की दूर्दिन आबि गेल से बुझिये ने पेलौं। मुदा जँ कोनो विचारक कोनो शब्द भरियाएल रहत तँ ओकरा हल केला पछाइते ने आगू नीक होइ छइ।
पुछलयैन-
बाबा की दुरदिन?”
शब्दकेँ महियबैत बजला-
दूरदिनमे दू शब्द छै, दूर आ दिन। दूरदिनक एक माने भेल भविसक दिन, आगूक दिन आ दोसर माने दुतकारैबला दिन सेहो भेल।
बाजि सहदेव बाबा जेना किछु सुनैक जिज्ञासामे चुप भऽ गेला। मनमे हुअए जे केना काटलपर नोन छीटब। माने जे एक तँ सहदेव बाबाक दिन एते घटि गेलैन जे बेचनिहार से कीननिहार भऽ गेला तैपर अन-पानिक चर्च करब नीक थोड़े हएत। मुदा ईहो हुअए जे ई तँ जिनगीक सत् छी, एकरा छोड़बो नीक नहियेँ...।
अही अग-दिगमे मन पड़ल रहल। मुदा जेना अपने मनमे उचरलैन। बजला-
अपन गाम नाश भऽ गेल।
नाश भऽ गेलतैपर नजरिये ने पहुँच सकल। किसान लेल पानिक की महत अछि आ ओकर दुरूपयोग भेने केते पैघ खतरा सेहो छइ। तइ दिस नजरिये ने गेल। मुदा एते तँ आश्चर्य लगबे कएल जे गामे नाश भऽ गेल, की नाश भेल? पुछलयैन-
की नाश भेल?”
बजला-
गाम देने जे कोसी नहरक शाखा अछि, ओ भारी नोकसानदेह बनि गेल अछि। जहिया गाममे नहरक खुनाइक नाओं लेल गेल तहिया भरि दिन देखते-सुनिते, अपन भूत-वर्तमान आ भविसक विचार करैमे दिन बित गेल, तेते मनक आशाक श्रृंग उपकने खुशीसँ हृदए नाचि गेल रहए जे...। मन भेल रहए अपने नै गामोक सुदिन आबि रहल अछि मुदा सुदिन केना कुदिन भऽ गेल।
बाजि कऽ बाबा जेना ठमैक गेला। बकार बन्न भऽ गेलैन। मुदा अपन जिज्ञासा एते बढ़ि गेल जे अनेरे मुहसँ निकैल गेल-
जँ सुदिन कुदिन बनि सकैए तँ कुदिनो तँ सुदिन बनियेँ सकैए।
सहदेव बाबा बजला-
हँ निसचित बनि सकैए। अपने गामक जे चुहचुही अछि ओ अहिना रहितए। देखते छहक जे नहैरक एहेन बेवस्था अछि जे धानो दहा जाइए आ गहुमो दहा गेल। ऐबेर की कोनो धारक बाढ़ि आएल कि नहरेक पानिसँ दहार भेल!
कहलयैन-
हँ से तँ भेल।
हमरा बातमे बाबाकेँ की भेटलैन से तँ ओ जानैथ, मुदा जेना हृदैक धड़कन तेज भेलैन। मुँहक सुरखीमे एकाएक खूनक लाली पसरए लगलैन। बिहुसैत बजला-
बौआ, जाके मतिभ्रम होइ खगेसा, सो कह पच्छिम उगे दिनेशा।
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तिथि : 27 जनवरी 2015, शब्द संख्या : 1467

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