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Saturday, August 31, 2019

ठोररंगू (रचनाकार श्री जगदीश प्रसाद मण्डल)



जहिना जेठुआ बीआ, अधखरूआ रोप, आसिनक सिहकी पाबि अगते कातिकमे रंगवा धान  ठोररंगू हुअ लगैत तहिना बीस बर्खक पछाइत परदेशसँ घुमि गाम एलापर सुवोधकेँ भेल। होइतो अहिना छै जे कोनो बात-विचार पेटमे घुरियाइत रहत आ मुँहमे एबे ने करत...। अनभुआर जकाँ सुवोध पत्नीकेँ कहलक-  जेना किछु भेट रहल अछि तहिना मनमे उठैए।
किछु भेट रहल अछिसुनि श्यामाक मन चमकलैन। एतेटा दुनियाँमे एते चीज अछि, तइमे किछु भेट रहल अछिई की भेल? दुनियाँक तँ सभ किछु सोझेमे अछि, तखन हरेलैन कथी जे भेट रहल छैन? श्यामाक मन अपने विचारमे ओझरा गेलैन तँए किछु जवाब फुरबे ने केलैन। चीजक कमी छै जे दुनियाँमे किछु ने भेटत। मुदा एते तँ अनुभव श्यामाकेँ रहबे करैन जे केता बेर लॉटरी टिकटसँ भाग्य अजमाएले छैन, जे किछु ने भेटल आकि भेटैबला अछि। तखन एहेन विचार मनमे उचरलैन केना? उचरब आ उचारब दुनू होइए। एकटा भेल उचड़ीन जे खोंखैर-खांखैर खाइए से आ दोसर भेल रटनमा जे सदैत रटिते रहैए से। मुदा अखैन धरिक, बाइस बर्खक जिनगी, श्यामा सुवोधक संग गुजारि चुकल छेली, तँए तीत-मीठक बहुत किछुसँ परिचित भऽ चुकल छेली। तँए अगुता कऽ किछु बाजऽ नै चाहलैन। मुदा दू गोरेक बीच जँ सवाल-जवाब, उत्तरा-चौड़ी नै भेल, तँ दुनू गोरेक बात-विचारक रस की रहल। मुदा अनरनेबामे आमक रसक सुआद आ केरामे बेलक सुआदो तँ नहियेँ कहल जा सकैए। तखन? तखन की! पतिक विचारक धारकेँ मुँह बान्हब नीक हएत, कनी किनछरि दबि किए ने देख कऽ अजमा ली। बजली-
ठेकना कऽ देखियौ, अहाँक भेटलाहा की हमर नइ भेल?”
भिनसुरका समय चाहक बैसारपर दुनू परानी सुवोध गप-सप्प उठौने। पत्नीक बात सुवोधकेँ ने तीते लागल आ ने मीठे। मनमे उपकलै- ई की भेल जे ठेकना कऽ देखियौ? ठेकानो की सदैत ठेकाने रहैए, ठेकान-बेठेकानक कोनो आड़ि-धूर छइ। सदैत जिनगीक धारमे चीत-पट, उनटैत-पुनटैत प्रवाहित होइत चलैए। मुदा आड़ा केतौ थोड़े लगै छइ। श्यामो अपन विचार-वाण छोड़ि चुप भऽ गेल छेली। मुदा सुवोधक मन पाछू घुसैक कऽ नाचल। नाचल ई जे जिनगी दू दिशामे प्रवाहित होइए, एक स्‍वावलम्‍वी दोसर परावलम्‍वी।
कियो अपन मनोनुकूल जिनगी तखने पाबि सकैए जखन ओ स्‍वावलंवी हएत। अपन सभ किछु रहतै, कर्मक संग सदैत विचड़ैत रहत, अपनाकेँ चलबैत रहत। मुदा हमरा तँ से नै भेल। घर छोड़ि जहिया निकललौं तहियासँ कारखानामे नोकरी करैत एलौं। फेर मन आगू बढ़लै, आगू ई बढ़लै जे नोकरी करैक विवशता किए आएल। ऐठाम आबि सुवोध ठमैक गेल। अपने बाजल बातमे जेना किछु भेटए लगलै, वाण बनि आगूसँ आपस आबि छाती खोधए लगलै। जेना रोड़ा-पत्‍थरक चोट माथमे लगलासँ चौन्ह आबि आँखिमे इजोत छिटकैत, तहिना सुवोधकेँ सेहो भेल। नजैर उठा पत्नीपर गाड़लक तँ बुझि पड़लै भरिसक पत्नी झुट्ठा बुझि विचारकेँ पाछूए दिस गुड़का देलैन। गुड़काएब उचित भेल? मुदा उचित मनमे अबिते अनुचितो उठि कऽ ठाढ़ भऽ अपन पक्ष रखलक। पक्ष ई रखलक जे अनुचिते की भेल? जे प्रेमी-प्रेमिकाक जिनगीक वादा कऽ हाथ पकैड़ संग आएल, ओ कहाँ पूर भऽ सकलै। सभ दिन किछु ने किछु अभाव रहबे कएल जे से खगता रहल, खगैत रहल। निच्‍चाँ खसैत सुवोधक मन पाछू खर्ग बनि खगता उनैट तकलक तँ सुवोधकेँ बुझि पड़लै जे खसैत जरूर एलौं, मुदा खसि पड़लौं, सेहो तँ नहियेँ कहल जा सकैए। संग मिलि सृष्टिक सिरजन केबे केलौं, पेटसँ लऽ कऽ बर-बेमारीक बिपैत भगैबते एलौं, फेर मन किए धिक्कारि रहल अछि? हँ एते जरूर भेल जे अनका जकाँ खर्च कऽ बच्चाकेँ नै पढ़बै छी, अनका जकाँ बर-बेमारीक इलाज नै करबै छी, एकर माने तँ ईहो नहियेँ भेल जे बाल-बच्चाकेँ नै पढ़बै छी आकि बर-बेमारीसँ रक्षा नै करै छिऐ। मुदा तँए ईहो तँ नहियेँ कहल जाएत जे जे सपना सभ देख पुरबऽ चाहैए, से नै भेल। मुदा नै भेल सेहो केना मानल जाएत, आगू-पाछू, अगल-बगल ऊपर-नीचाँ सभतरि तँ सपने लटकल अछि, तैठाम केते सपना लोक पुरौत। मुदा सेहो केना कहल जेतइ, केकरो सपना सपनौती बनि जिनगीक बाट देखबै छै तँ केकरो सपना सपनाइते ससैर जाइ छइ। पुन: सुवोधक नजैर पत्नीपर गेलै तँ बुझि पड़लै जे श्यामा भरिसक निराश भऽ गेल छैथ। जिनगी तँ वएह ने भेल जे आशाक बाट पकैड़ आशावान बनि जीवन गुदस करए। जखने आशा छुटल तखने निराशाक आगमन भेल। निराशे ने मृत्यु सदृश भेल...! एहेन स्थितिमे सुवोध गाम आएल छल। मुदा जहिना श्यामा निराश छैथ तेकर विपरीत तहिना सुवोध आशावान अछि। बीस बर्खक कारखानाक नोकरी सुवोधकेँ जिनगीक बहुत किछु देलक, बहुत किछु लेलक। मुदा दुनू लाभे सुवोधकेँ भेल। पहिल जीबैक ढंग- सीमित आयमे चलब- देलकै, तँ अनकर देखौंस लेबो केलकै। अवगुण गेने आमदनी केता गुणा बढ़ि जाइ छइ। अखैन सुवोध ओ सुबोधक सीमापर आबि ठाढ़ अछि, जेतए परिवारमे माइक संग पत्नी आ तीनटा बच्‍चो छइ। आब सुवोध ओ सुबोध नै जे स्कूल-कौलेजक जिनगीमे छल।
आब सुवोधकेँ अपन हारल जिनगीक कथा पत्नीओंकेँ सुना अपन कलंक धोऐमे कनियोँ लाज नै हएत। मन ठमकलै। पिता-पीढ़ीक इतिहास आ अपन इतिहासक बीच विचार आबि लटैक गेल। किम्‍हरो देखबे ने करै जे परिवार अपन खेतीक उपार्जनसँ समयानुसार  हमरा बी.ए. तकक शिक्षा देलैन। ओ परिवार आइ बेठेकान भऽ गेल अछि। अपन पुश्‍तैनी सम्पैतक संग अपन श्रमकेँ जोड़ि चलैक छल से नै भेल? मुदा से किए ने सोचि पेलौं!
किए ने सोचि पेलौं!लग अबिते सुवोध ठकमूड़ भऽ गेल। ठकमूड़ ई जे साधारण पढ़ल पत्नी छैथ, अपने तँ से नै छेलौं मुदा चुकलौं तँ दुनू गोरे। दुइए गोरे किए, परिवारे। परिवारक स्तर तँ गवाही दाइए रहल अछि। धिये-पुतेकेँ केहेन पढ़ै-लिखै, खाइ-पीऐक ओरियान कऽ पेलौं अछि। अपन भार फेकैत सुवोध मुस्‍की भरैत बाजल-
संग मिलि हारब आ संग मिलि जीतब, ने हार भेल आ ने जीत भेल।
सोझ-साझ पतिक बात सुनि श्यामा सकपकेली। मुदा मुँहमे बोल हेराएले रहैन। की बाजब! मुदा संगिनीक रूपमे तँ हमहीं छिऐन, जँ हंस-हंसिनीक लोलक घोघ नै भरि पेलौं तखन संगीयेँ की? सभ दिनसँ पुरुखक ढाठी रहल जे नीक भेल तँ हम केलौं आ अधला भेल ते पत्नीपर झाड़ि देलौं। मुदा अनठेकानी किछु बाजबो तँ नीक नहियेँ हएत। तखन? हँ तखन किए ने! हार कि जीत की भेल, आ तइमे केते हम केलौं आ केते ओ- पति- केलैन तइ हिसाबे हार-जीत हएत आकि सहरगंजा..? गर अँटबैत-अँटबैत श्यामा बजली-
मने-मन गुर-चाउर खेने नइ हएत। नर-मेदक बात छी, जँ कनियोँ छह-पाँच भेल तँ नरकोमे घीचम-तीर हएत।
पत्नीक बात सुनि सुवोध अपन पढ़ब-लिखब दिस नजैर बढ़ौलक। गामक स्कूलमे जखन पढ़ैत रही, सभ चटियासँ नीक हमर कियारी रहए। जइमे फूलो-गाछ लगबी आ आनो-आनो चीजक। मिडिल स्कूल अबैत ओ छूटि गेल। मुदा एते तँ मनमे आबिये गेल रहए जे मैट्रिक पास करि कऽ नोकरी करब।
मैट्रिक पास केला पछाइत अपनाकेँ निम्न कोटिक नोकर बुझि आगू पढ़ैक विचार केलौं। पिता दिससँ कोनो बाधा कहियो उपस्थित नै भेल। आने गारजन जकाँ ओहो पढ़ै-लिखैकेँ धर्मक काज बुझि अन्धभक्‍त छला। बी.ए. केला पछाइत हम अपनाकेँ अपन श्रम बेचैले अपनाकेँ पूर्ण तैयार कऽ लेलौं। ओना, पितोजीक एहेन इच्छा नहियेँ रहैन जे बेटा आगू नै बढ़ए। तँए ओ पूर्ण स्‍वतंत्रता देने रहैथ। सभ माए-बाप चाहैए जे बेटा जेहेन कमासुत हएत तेहेन परिवार हरल-भरल बनत। समय पाबि बिआहो कइये देलैन। जेना अपन सोलहन्नी भारसँ निचेन भऽ गेला। दू सालक पछाइत दुरागमन भेल। तैबीच नोकरीक पाछू रेठान शुरू केलौं। एक तँ अहुना गाम-घरमे जे काज छै ओकरा पढ़ल-लिखल लोक करै ने चाहैए। साल भरि समय निकैल गेल। गाम छोड़ैले बाध्य भऽ गेलौं। मनमे बाध्य अबिते सुवोधक नजैर पुन: दोहरा कऽ श्यामाकेँ निहारए लगलै। अपन तिनवटी जिनगीपर आबि अँटैक गेल। तिनवटी माने एक अपन परिवार, दोसर दिस सासुरक परिवारसँ आएल पत्नी आ दुनू परिवार, दुनू परिवारसँ हटि महानगरक नव परिवार बनाएब। मुदा उमंगक लहैर तीनू परिवारमे। मनमे अबिते सुवोध बाजल-
जहिना महानगर जिनगीमे आएल आ गेल तहिना देखते-सुनिते जिनगियो चलि जाएत। तइले जे मनहानि करब तइसँ किछु भेटत।
सुवोधक बात जेना श्यामाकेँ छातीमे लगलैन। लगिते छाती धकधकेलैन। बजली-
कहियो ठर-ठेकानसँ केतौ नइ रहलौं।
पत्नीक बात सुनि सुवोधकेँ नोकरीक बीसो बर्खक समय मनमे नाचि उठल। केते खुशी ओइ दिन अपना संग परिवारोकेँ भेल रहै मुदा भेल की? एना किए भेल? एक तँ कारखानादार अपने बड़का कारखानाक शिकार भेल, तैपर ओहो चलौनिहार- श्रमिक-केँ शिकार कैरते रहए। जइके चलैत तीन बेर हड़ताल भेल। बिना कोनो हँ-निहँसक दू-बेरक हड़ताल समाप्‍त भेल। मुदा तेसर खेप, जखन श्रमिक ऐगला श्रमिककेँ नोकरी समाप्‍त होइक समय भेल तखन ओ सभ आगूक अन्‍हार जिनगी देख अगुआ कऽ तड़तालक संग तालाबंदी केलक। कारखाना बन्द भेल आ नोकरी केनिहारक नोकरियो गेल।
नोकरी छुटला पछाइत सुवोध अपनाकेँ ओहन करताइत बुझलक जे ने दोसर तरहक कारखानामे काज कऽ सकैए आ ने अपन बपौती छह बीघा जमीनकेँ उपयोग कऽ सकैए। पिताक मृत्युक पछाइत खेत-पथारक कोनो थीरी-थमन नै रहलै। मुदा गाम एलाक आठ दिनक पछाइत सुवोधक मन संकल्‍पक संग उठि कऽ ठाढ़ भेल। ठाढ़ ई भेल जे जखन दुनियाँक सभ बाट बन्न भऽ गेल अछि, तैबीच आगू केना जिनगी चलत। मुदा जखन छह बीघा खेतक कीमत अँकलक तखन मनमे बिसवास जगलै जे एते पूजीक मालिक अपने छी जे ठाठसँ अपन कारोबार ठाढ़ कऽ परिवार चला सकै छी। यएह विचार सुवोधक मनमे उपकल। जोरक उधुक्का मनमे लगिते सुवोध बाजल-
मूलवान वस्‍तु भेट गेल। आब खगता अछि दुनू गोरे विचारि कऽ अपन-अपन काजक भार उठा चली। जेहेन चालि चलब तेहेन ढालि धरब। जेहेन ढालि धरब तेहेन माइन पाएब।
पतिक बात सुनि श्यामा बजली-
अपन जिनगी जे भेल से भेल, मुदा बालो-बच्चा हँसैत जीबए सएह ने कहब।
पत्नीक विचार सुनि सुवोध विह्वल भऽ गेल। मुदा अपन हारल लोक बाजए तँ नै चाहैए जे सुवोध बाजत। तरसँ जेना मन उपकलै, उपैकते फुटलै-
हमरा सन जे छह से हमरो बात सुनह, मानह नै मानह, ई तोहर मनक बात भेलह। मुदा हमरो मनक तँ यएह ने बात भेल।
पतिक बात सुनि श्यामा सुवोध श्याम देखए लगली। हंस-हंसिनीक जोड़ीक जोड़।
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तिथि : 23 जनवरी 2015, शब्द संख्या : 1531

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