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Saturday, August 31, 2019

चास-बास दुनू गेल (कथाकार : श्री जगदीश प्रसाद मण्डल)


बहुत दिनक पछाइत देवलाल काका भेटला। तइ भेटैमे देवलालो कक्काक दोख नै छैन, से बात नइ। ओना, दोख अपनो नै अछि सेहो नहियेँ कहल जेतइ। ई तँ कहले जाएत जे गामक जुआन-जहान जँ बुढ़-बुढ़ानुसक हाल-चाल नै पुछैन, तँ की ओ रजे-दैवक भरोसे रहि जाइथ तेकरो तँ नीक नहियेँ कहल जाएत। मुदा दोखो किए लागत, किए ने टहैल-बूलि कऽ सभसँ भेँट-घाँट करैत, हाल-चाल बुझैक कोशिश करब। तीन किलोमीटर चक्कर मारैले पएर दुरुस अछि, मुदा ओही पएरे किनकोसँ भेँट करब से मनहानि हएत। मुदा तइमे देवलालो बाबाक दोख ई तँ छैन्‍हे जे हुनका लग समैयक ठेकान नै छैन। आब कहू जे सभ चाहैए जे लखिया छी तँ करोड़िया बनी, करोड़िया छी तँ अरबिया बनी आ हम काका लग बैस जे समय गमाएब से उचित हएत। गोर लागि पुछलयैन-
काकाजी, की हाल-चाल रखने छी?”
जेना पहिनेसँ बुझैत रहथिन कि की, ऐगला बात अपन पछुआएले रहए जे किछु हमरो सभकेँ दिअमुदा बिच्चेमे बजला-
चास-बास दुनू गेल।
देवलाल काका सरकारी नोकरीसँ निवृत साहित्यसँ रूचि रखैबला छैथ। ओना, जहिना अपन कीर्तमे रंग-रंगक नाउओं आ आभूषणो पहिरा-पहिरा ठाढ़ करै छैथ तहिना गामोक लोक नाउओं आ आभूषणोसँ हुनका सजौनहि छैन। माने ई जे साइयो नाओंसँ अपनो विभूषित छैथ, कखनो जोगिया तँ कखनो भोगिया कहले जाइ छैथ। तइमे मिसियो भरि कुवाथ मनमे नै होइ छैन। जहिना लोकक नाओं हम बीछिलौं तहिना हमरो बीछलक। ओना, नाओं तँ कतेको लोक पहिरौने छैन मुदा बेसी लोक कविजी कहै छैन। ओना, कियो झामोलाल कहै छैन तँ कियो कथाकार। कियो नटकिया कहै छैन तँ कियो फटकिया सेहो कहिते छैन। मुदा तइ सभले मन साफ छैन, भाय! भगवान जखन बजैले सभकेँ मुँह देने छथिन तँ कियो अपना मुहेँ बाजत किने, तइले अनका तामस किए उठत। जे कियो हमर कविता पढ़लक आकि सुनलक, ओ जँ कवि कहलक, तँ कोन अनरगल कहलक। तहिना जँ कियो नाटक पढ़ि नटकिया कहैए तँ कोन अनुचित कहैए। आ जे किछु ने पढ़लक ओ जँ झामेलाल कहैए तँ कोन बेजए कहैए। कियो नाटक देखलक मुदा पढ़लक नहि, ओ जँ फटकिये कहैए तँ कोन अनुचित कहैए। तहिना जँ कियो कथोकारे कहैए तँ किए लागत। गौंआँ-घरुआ जकाँ हम की कथाकेँ गारि बुझै छी जे हमरा लागत।
तीन साल पहिने देवलाल काका जिला कार्यालयसँ सेवा-निवृत भेला। गामेमे रहै छैथ। ओना, नोकरियो-समय गामसँ सम्बन्ध बनौने रहला, मुदा सेवा-निवृत्तिक पछाइत सोलहन्नी गामेमे रहै छैथ। स्पष्ट विचार छैन जे जइ जगहक चर्च रचनामे करै छी, जँ ओइ जगहपर ठाढ़ भऽ रची तँ ओ बेसी नीक हेबे करत। किरानीक नोकरीमे रहितो देवलाल कक्काक मन कहियो ने अलसेलैन। जे भरि दिन ऑफिसक फाइल तैयार करैत-करैत हाथक पाँचो आँगुर काजे ने करैए। भरि दिनक तेते थकान अछि जे ने पेन दिस आँखि उठैए आ ने कागज दिस। मुदा तइसँ फराक जिनगी देवलाल कक्काक रहलैन। अपन नियमित काजक सिलसिला रखने छला जइसँ ऑफिसोक काज नै बेसिआइ छेलैन। तइमे एकटा ईहो गुण बनौने छला जे आन संगी-साथी जकाँ नै जे आनो-आनो ऑफिसक फाइलक ठिकौती लइ छला। दरमाहापर संतोख छेलैन। ओना, घूस कहि कऽ घूस नइ लइ छला, मुदा जहिना सरकारी रेट काजमे बान्हल अछि तहिना ऑफिसक कर्मचारीक फीस काजे-काज बान्हल रहिते अछि। जे सभ बुझै छैथ। तेकरा देवलाल काका अधला नै बुझि उलफी कमाइ करैत रहला, आ स्पष्ट बजबो करै छला जे खाइते-पीविते रामलला। जे आएल से खाइ-पीबैमे गेल। दरमाहा दिन दरमाहा भेटबे करत। तइसँ ई छेलैन जे ऑफिसक जेते साहित्यसँ रूचि रखैबला छला तिनका सबहक बैसार एकठाम कैरते छला। जे से एकटा समदर्शी समाज बनले छेलैन। तइमे खर्चो होइते छेलैन, तैसंग ईहो छेलैन जे अपनो पत्र-पत्रिका आ किताब पढ़ैक चसकी लगले छैन। परिवारक लेल एते जरूर केलैन जे बेटा-बेटीकेँ पढ़ौनाइ-लिखौनाइ आ बिआह-दान दरमाहाक पैसासँ करा कऽ निचेन भऽ गेल छैथ। अपनो बुझले छेलैन जे फल्‍लाँ दिन तक दरमाहा भेटत, पछाइत पेंशन भेटत। तैसंग जे जमा-जिगिर अछि सेहो भेटबे करत, निचेनसँ जिनगी खेप जाएब। तँए जहिया तक सेवा निवृत भेला तहिया तक ने मनमे मलिनता आ ने मुँहमे उदासी आएल छेलैन। एबो केना करितैन। दरमाहा अधिया हएत, तेकर भरपाइ तँ जमासँ भइये जाएत। सोझ हिसाब रहैन जे बैंकक सूदि ओकरा भरि देत, तँए जिनगीमे केतौ टुट-फाँट नै बुझि पड़ैन। जखन टुटे-फाँट नै तखन मुहेँ किए मलिन। मुदा से भेलैन नहि, कचहरिया जमाए, धुरुफन्‍दा लोक, अपन हिस्सा-ले विरोध कऽ देलकैन। भाय, सर्वे भवन्‍तु सुखिन: ई सूत्र भेल, मुदा अपन बेटो-भातिज आकि दियादोवाद किए बेइमान कहैए, घेँटकट कहैए? जखन बेटा-बेटीक बीच बाप एकरूपता नै आनि सकैए तखन दुनियाँक सभ मनुख मनुखे छी से केना भऽ सकैए? आ केते सम्भव अछि? जखने जमाए विरोध केलकैन कि दुनू बेटा फाँड़ बान्‍हि विरोधमे तैयार भऽ गेलैन। किछु छी तँ माल-पत्तर छी किने। अपने देवलाल काका पाछू हटि देखैथ तँ हिसाब केतौ ने गड़बड़ बुझि पड़ैन। तहूमे रामायणमे पढ़नहि छैथ जे रावणकेँ एक लाख बेटा, सवा लाख नाइत छेलैन। बेटा-नातिक चर्च अछि नइ कि बेटा-पोता आकि बेटी-नातिक। माने ई जे बेटा संग पुतोहु तेकर धिया-पुता पोता-पोती भेल, तहिना बेटी संग जमाए आ धिया-पुता नाइत-नातिन भेल। दुनू तँ एकरंगाहे भेल तैबीच अपने पड़ि गीजम-गीज हएब से नीक नै बुझलैन, जे से दुनूकेँ- बेटो आ बेटीओकेँ- कहि देलखिन जे अहाँ सभले कमेबो केलौं आ जमो केलौं हमरा ओइसँ कोनो मतलब नहि। जमा छोड़ि पाछू ऐ खियालसँ हटला जे दरमाहा जकाँ नै महीने-महिना पेंशन भेटबे करत तखन चिन्ते कोन अछि। अनेरे जे बूढ़ देहकेँ कोट-कचहरीमे रगड़नियाँ देब तइसँ नीक ने भेल जे कमसँ कम केकरोसँ ने मुहाँ-ठुठी हएत आ ने अपन दौड़-धुप। बुझले अछि जे कोट-कचहरीक रगड़ केहेन होइ छइ। नामक एकटा अक्षरक गलती सही करैमे तीन बर्ख लगै छइ। तहूमे पाइ-कौड़ीक बात छी रगैड़ते-रगैड़ते सभटा झाड़ि लेत। अनेरे फेड़मे पड़ब हएत।
मनमे भेल जे जहिना मन खसल छैन तहिना मुहसँ निकललैन जे चास-बास दुनू गेल।गिरहस्तक चास जोता जमीन भेल आ बास धराड़ी भेल मुदा जे जिनगी भरि नोकरी केलैन, नोकरी जीवनक आधार छेलैन, तिनका मुहसँ निकैल रहल अछि जे चास-बास दुनू गेल!हिनकर चास भेलैन दरमाहा आ बास भेलैन भाड़ाक डेरासँ लऽ कऽ अपन घर-दुआर, तखन किए एहेन बात बजला? फेर मन चनकल, चनकल ई जे साहित्‍यिक लोक छैथ, जँ किछु घुमा कऽ कहि देने होइथ जे बुझिये ने पबैत होइ। मुदा अनेरे एते मनकेँ बोन-झाँखुरमे किए वौआएब, जखन सोझहेमे छैथ तखन पुछिए किए ने ली जे अनेरे गुन-धुनमे पड़ल रहब। पुछलयैन-
काका, की चास-बास चलि गेल। देखै छी जे केहेन निरोग बनि सेवा-निवृत भेलौं, अनका जकाँ ने कहियो घूस-घास दुआरे जहल गेलौं, आ ने कहियो एको दिनक दरमाहा कटेलौं आ ने एकोबेर सस्‍पेंड-डिसचार्ज भेलौं, तखन किए एहेन अशुभ बात मुहसँ खसल?”
हमर बात केते नीक लगलैन आकि अधला लगलैन से तँ ओ जानैथ मुदा मन छ-पाँच करए लगलैन से बुझि पड़ल। किछु बाजि नै रहला अछि, एना किए भऽ गेलैन, से नै बुझि पबै छेलौं। ओना, देवलाल काका बजैक वेगमे तँ बाजि गेला जे चास-बास दुनू गेलमुदा पछाइत मनमे एलैन जे अनेरे एहेन बात किए बजलौं। जैठाम मुहेँसँ सभ काज होइ छै तैठाम अधला काजक चर्चे फाजिल। केकरो कियो एक साँझ खाइयोले दइ छइ जे पेट जुड़ेने मनो जुड़ाएत, आ जुड़ेलहा मने नीक-अधलाक विचार करत। मुदा देवलाल काकाकेँ जिनगीक संघर्ष तोड़ि देने छेलैन। बाल-बच्चाकेँ पोसै-पालैसँ लऽ कऽ पढ़बै-लिखबै, बिआह-दान करैमे कहियो अर्थक अभाव नै खटकलैन, तेकर कारणो छेलैन जे जाबे तक परिवारमे रहि बाल-बच्चा पढ़लकैन ताबे तक कोनो बेसी भारो ने बुझि पड़लैन, तहिना कौलेजक शिक्षामे सरकारी लोन उठा पढ़ेबो-लिखेबो केलैन आ बिआहो-दान केलैन। ओना, लोनक असुली दरमाहामे सँ होइन मुदा सबदिना आमदनी रहने कहियो बुझि नै पड़ैन। मनोमे बेसी भार कहियो ने पड़लैन जे से कनी ठेकानसँ जिनगीक बात बुझितैथ, ऊपरे-ऊपर चलैत रहलैन। हँसी-खुशीसँ मन मगन रहलैन। मुदा सेवा-निवृत्तिक पछाइत जेना अट्ठा-बज्जर मनमे खसलैन। केतबो बेटा-पुतोहु आ बेटी-जमाइक बीच अपनाकेँ समान्‍य राखए चाहलैन ओ नै रहलैन। नै रहैक कारण ई भेलैन जे जखन बेटा आ जमाइक बीच, जमा रूपैआक हिस्सा-ले मुकदमाबाजी भेलापर सबहक मुहसँ यएह निकलै जे सभटा बुड़हेक चकरचालि छिऐन। एमहर बेटा-पुतोहुक तर्क होइ जे दुनियाँमे कोन बापक सम्पैत बेटी-जमाएकेँ भेल जे हमर नै हएत। जँ बुड़हा स्वीकारि लितैथ तँ की होइतै। तहिना बेटी-जमाइक तर्क होइत जे सभ दिन ऑफिसेमे रहला आ कानून-कायदासँ भेँटे ने भेलैन। परिवारक सबहक मुहेँ गंजन सुनि मन गीजम-गीज भऽ गेल रहैन। तहूमे जहिना लूटमे चरखा नफा होइए तहिना दोसर नफा ईहो भेलैन, ने बेटा-पुतोहु घुरि कऽ तकै छैन आ ने बेटी-जमाए। मुदा तैयो जँ भरि पोख अन्न, भरि पोख अराम भेट गेलापर मन थीर होइत-होइत थीर भऽ जाइए, सेहो ने भेलैन। बेर-बेर पत्नी कहैन-
सभ दिन हमरा नवकिये कनियाँ बनौने रहब आकि साउसो बनए देब?”
मुदा देवलाल कक्काक कोन शक जे मन मानि गेल छेलैन जे देहसँ लऽ कऽ परिवार-समाज सभटा तँ लंके छी। मनुखक सूत्र सबहक मनसँ लंक लऽ कऽ पड़ा गेल अछि। घोर-मट्ठा भेल मने देवलाल काका बजला-
बौआ, एतेटा जिनगीमे जे कमेलौं, सबटा चलि गेल।
मसुआएल बोले देवलाल कक्काक बात सुनि अपनो मन मसुआ गेल। पुछलयैन-
केना चलि गेल?”
बेथाएल मन देवलाल कक्काक, कुहैर-कुहैर बजला-
बौआ, तीनटा अपन चास छल आ तीनटा बास छल, मुदा सब चलि गेल।
तीनटा चास आ तीनटा बासक अरथे ने बुझलौं, जे दृष्टिकूटमे काका की बाजि गेला? मुदा हमर अकबकी देख ओ बुझि गेला। बुझि ई गेला जे तीन चास आ तीन बासक अर्थ नै बुझलक। व्याख्या करैत बजला-
तीन चासक माने भेल, तीन सीराउ, जइमे एकटा भेल परिवारिक जिनगी, दोसर भेल- अपन श्रम लगा जे पाइ कमेलौं आ तेसर भेल- साहित्यसँ रूचि रहने जे किछु सिरजन केलौं।
सोझ-साझ कक्काक बात सुनि कहलयैन-
केहेन बढ़ियाँ तँ तीनू चासो अछि आ तीनू बासो अछि।
मुदा जेना ओ बुझि गेला तहिना बजला-
परिवारमे तेहेन कटौज शुरू भऽ गेल अछि जे बेटा बेटी दिस टाड़ैए आ बेटी बेटा दिस। सूप महक बैंगन भेल छी। की कहियह, पाँच रंगक किताब नोकरी-समय छपबौने छेलौं आ हाथसँ लिखि घरोमे रखने छेलौं। पाइक कहियो अभाव नै रहल तँए उद्गारसँ जे छपेलौं, विलैह देलिऐ। अपना-ले किछु ने बँचल, सभटा हेरा गेल। दोहरा कऽ छपबैक तागत आब रहल नै जे छपाएब...।
कहि जेना किछु सोचए लगला। मुदा सोचो तँ सोच छी केमहर बहैक जाएत तेकर ठीक नहि। तँए पुछलयैन-
बास की कहलिऐ?”
बाससुनि देवलाल विस्‍मित होइत विह्वल भऽ गेला। बिहुसैत बजला-
बौआ, कोन मुँह लऽ कऽ अपना बासपर  जाएब। किछु ने रहल।
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तिथि : 29 जनवरी 2015, शब्द संख्या : 1615

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