Pages

Monday, July 15, 2019

कोसी कमला भुतही बलान क्षेत्रक वाढ़ि, बाढ़ि, बाइढ, रौदी, सुखार इत्यादि विषयक मैथिली कथासँ ल' क' किछु पाम्फलेट

स्वतंत्राक पूर्व जमीनदारक मलिकाना गाम छल। मालगुजारीक लेन-देनमे सबहक जमीन निलाम भऽ जमीनदारक हाथमे चलि गेल छेलइ। ओना, कियो अपन खेतक दखल तँ हुनका नै देलकैन मुदा बँटेदार बनि उपजा बाँटि-बाँटि दिअ लगलैन। जागल गामक लोक देख जेतबे-तेतबे दाम लए मालिक खेत घुमा देलकैन। अपन खेतकेँ स्थायी पूजी बुझि ओइमे श्रमक पूजी जोड़ि लोक जिनगीकेँ ठाढ़ करए लगला।
बाढ़ि-रौदीक प्रकोप सालो-साल होइते रहै छेलै मुदा विचार आ कर्म बदलने ओहो अभिशाप नै वरदान बनि गेल। बाढ़ि देख माथपर हाथ लऽ नै बैस, ओकर प्रतिकार करैक रस्ता अपनौलैन। तहिना रौदियोक प्रति केलैन। जइसँ बाढ़ि-रौदीसँ बँचैक उपाय कऽ लेलैन। सबहक एहेन धारणा बनि गेलैन। जे बाढ़िक उपद्रव मात्र सौन-सँ-कातिक चारि मास होइए बाँकी बारह मासक सालमे आठ मास तँ बँचैए। जँ आठ मास जमि कऽ मेहनत‍ कएल जाए तँ बारहो मास हँसी-खुशीसँ गुजर चलि सकैए। तेतबे नहि, पानि तँ आगि नै छी जे सभ किछुकेँ जरा देत। पानि तँ उत्पादित पूजी छी, तँए जरूरत अछि ओकर उपयोग करैक। तहिना रौदियोक सम्बन्धमे धारणा बनौने छला। खेतमे रंग-बिरंगक अन्न, फल, तरकारी अछि। ने सभ अन्न-ले एक रंग पानिक जरूरत होइए आ ने फले-तरकारी लेल। अधिक बरखा भेने अधिक पनिसहू फसल होइए आ कम बरखा भेने कम पनिसहू हएत। तैपर थोड़ेक सुविधा सरकारो देलक। नब्बे प्रतिशत अनुदानमे बोरिंग आ पचास प्रतिशत अनुदानमे पम्पसेट देलक। जइसँ पर्याप्त बोरिंग-पम्पसेट गाममे भऽ गेल। किसानक हाथमे पानि चलि आएल। समाजक किसानक कान्ह-मे-कान्ह मिला शिवनाथो चलए लगला। कम खेत रहितो हुनका अन-पानि उगरिये जाइ छैन।छह बजे भोरे रघुनाथ धीपल-सराएल पानि मिला अदहा-छिदहा नहा, कपड़ा पहिर, चाह-बिस्कुट खा ड्यूटी चलि जाथि आ असगरे श्यामा डेरामे रहि जाइ छेली। ने अंग्रेजी भाषाक बोध छेलैन जे दोकानो-दौरीक काज कऽ सैकतैथ आकि दोसरोसँ गप-सप्प करैत समए बितैबतैथ। ओना, बगलेक फ्लैटमे आरो-आरो भारतीयइण्‍डियनसभ रहैए। मुदा ओहो कियो केरलक तँ कियो मद्रासक छैथ। भाषाक दूरी देख श्यामा मने-मन सोचए लगली जे मनुखसँ नीक पशु होइए जे अपन सोभावसँ एक-दोसरासँ मेलो रखैए। मनुख तँ मनुक्खे छी जे बोलेसँ राजा बनि जाइए...। जहिना पिजराक सुग्गा अकासमे उड़ैत सुग्गाकेँ देख कनैए तहिना कोठरीमे बैसल श्यामाकेँ मने-मन कुही होइ छेलैन। मनमे उठैन, कोन जन्‍मक पाप कएल अछि जे एहेन गति भऽ गेल अछि! नैहरसँ सासुर धरिक सभ किछु हेरा गेल..!
भिनसरे डेरासँ निकैल रघुनाथ कार्यालय पहुँच‍ जाइ छैथ। कार्यालयेमे खाइ-पीबैक बेवस्था सेहो छैन। मशीनेक संग रघुनाथ बारह घन्‍टा बीतबै छैथ। बुधिसँ लऽ कऽ हाथ धरि मशीनेक संग भरि दिन रहैत-रहैत मशीन बनि गेलैन। संवेदनशून्य मनुख। जइमे दया, श्रद्धा, प्रेमक केतौ जगह नहि। मुदा आइ रघुनाथकेँ कार्यालय पहुँचते मनमे उड़ी-बीड़ी लगि गेलैन। काजक दिस एको-मिसिया धियाने नै जाइ छेलैन। छुट्टीक दरखास दऽ कार्यालयसँ डेरा विदा भेला। डेरा आबि, देहक कपड़ा आ जुत्ता बिनु खोलनहि पलंगपर, चारू-नाल चीत भऽ ओंघरा गेला। जहिना जेठ मासक तबल धरतीपर बिहरिया बर्खाक बून खसिते गरमी-सरदीक बीच घनघोर लड़ाइ शुरू भऽ जाइए तहिना रघुनाथक मनमे वैचारिक संघर्ष हुअ लगलैन। एहेन जोरसँ वैचारिक बिहारि मनमे उठि गेलैन जे बुधि चहकए लगलैन। चहकैत बुधिसँ अनासुरती निकललैन-
हमरासँ सैयो गुना ओ नीक छैथ‍ जे अपना माथपर पानिक घैल उठा मातृभूमिक फुलवाड़ीक फूलक गाछ सींचि रहल छैथ, अपन माए-बाप आ समाजक संग जिनगी बिता रहल छैथ। आइ जे दुनियाँक रूप-रेखा बनि गेल अछि ओ किछु गनल-गूथल लोकक बनि गेल अछि। जिनगीक अन्तिम पड़ावमे पहुँच आइ बुझि रहल छी जे ने हमरा अपन परिवार चिन्हैक बुधि भेल आ ने गाम-समाजकेँ...।
#जगदीश प्रसाद मण्डल 














No comments:

Post a Comment