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Friday, May 31, 2019

किसुनपुराक हाट_Jagdish Prasad Mandal_बेरमा, मधुबनी_सम्पादन एवम् संकलन- Umesh Mandal


किसुनपुराक हाट
मधुबनीसँ देवकृष्ण आएले रहैथ कि समय खटियाइत देख लालभौजी जेना मन पाड़ैत होथि तहिना बजली-
आइ हाटो छिऐ।
देवकृष्ण सुतिहार जिनगीक लोक, पत्नीकेँ अँगनेमे एते काज सिरजबाए देने छथिन जे खगते भरि दुनू परानीक बीच गप-सप्प होइ छैन। हाट-बजारक काज देवकृष्ण अपने हाथमे रखने छैथ। तइसँ कहियो काल एहनो भइये जाइए जे कोनो-कोनो काज बिथुत रहि जाइ छैन। मुदा मनमे की गड़ि चुकल छैन से तँ अपने जनता। पत्नीक विचार सुनि देवकृष्ण भाइक मनमे उठलैन- दू दिनक मधुबनी कोर्टक थाकल छी तैपर आइ नहेबो ने केलौं हेन, साढ़े पाँच बजि रहल अछि, घन्टा भरिक पछाइत हाटो उसैर जाएत। जखने हाट उसरत तखने अपन काजो खगबे करत...।
पत्नीकेँ देवकृष्ण कहला-
बौआ केतए अछि, गामेक हाट छी, कहुना ते आब दस बर्खक भइये गेल, हेरा थोड़े जाएत। ओकरे पठा दइ छिऐ।
मनमोहन अछि ओना दसे बर्खक मुदा हाइ स्कूलमे तँ पढ़िते अछि। कोनो कि पहिलुका हाइ स्कूल छी, जे साले-साल धिसियौर कटेला पछाइत अगुअबैत रहइ। लगमे अबिते मनमोहन बाजल-
की कहै छी?”
देवकृष्ण बजला-
बौआ, हाटपर सँ तीमन-तरकारी अनैक छह, से हेतह किने?”
हाटसँ खरीद-बिक्रीक कोन बात जे गामक हाट रहितो मनमोहन देखनौं ने अछि। ओना, रस्ते-रस्ते ओइ दऽ कऽ जाइ-अबैए जरूर मुदा जखन हाट उसरल रहै छै तखन, तँए हाटक किछु मनमोहन देखनहि ने अछि। संजोग बनल, देवकृष्ण भाइक पितियौत भाए केतौसँ आएले रहैथ कि लालेभाय जकाँ हुनको पत्नी मन पाड़ि देलकैन। हुनकर अपन सोचो छैन आ किरियो कलाप अपन छैन्हे। पत्नीक गपकेँ रतिदेव कोनो हुक्मरानाक आदेश नइ मानै छैथ। मुदा नहियोँ नहियेँ कहै छथिन। अपन सोच छैन जे अपन बेकतीगत काज तँ आगू-पाछू हेबे करत, तइले कोनो धड़फड़ी अछि, मुदा पत्नीक काजकेँ जँ बाधक बनि जाए, सेहो केहेन हएत। तँए धड़फड़ाएल बाहरसँ एला पछातियो रतिदेव झोरा लेलक आ हाटपर विदा भेल। रतिदेवकेँ देखते देवकृष्ण कहला-
हाटपर जाइ छह रतिदेव?”
रतिदेव- हँ।
देवकृष्ण- मनमोहनोकेँ संगे नेने जाहक।
ओना, देवकृष्ण नहाइक विचार मनमे कऽ नेने छला मुदा थाकल-ठेहियाएल देह, मन भरिया गेलैन जइसँ देहकेँ उठैये ने दैन। मनमे उठलैन- गामक हाट केना बनल..!
देवकृष्णकेँ मन पड़लैन ब्रह्मदेव, दुनू गोरे बच्चेसँ कौलेज धरिक संगी रहलौं। अखनो छी। पढ़ैमे ब्रह्मदेव हमरासँ नीक जहिना अखनो अछि तहिना पहिनौं छल। तेकर कारण छल जे ओकरा अखियास बेसी रहै छै, हम बिसराह अखनो छीहे। अर्थशास्त्रक विद्यार्थी दुनू गोरे, तँए नेतागिरी करैक विचारे मनमे किए उठैत, ओ तँ उठै छै राजनीतिशास्त्रक विद्यार्थीमे। समाजो तँ सएह छी जे समाजक अर्थनीतिकेँ अगुआइ-पछुआइक बात बुझैये नहि चाहैए, ओकरा चाही चौक-चौराहा परहक मसल्ला। ओ बुझैए अमेरिकोसँ बीस थाइलेंडकेँ, जे क्रिकेटमे पचास रनसँ हेरा पचास गुणा नीक भेल की नहि। समाजक नेतो तँ वएह ने नीक जे भाषणसँ लिपिस्टिक कीनैले बैसलसँ उठा कऽ बजार दिसक रस्ता पकड़ा दिऐ।
ब्रह्मदेवो आ देवकृष्णो भाय कौलेज छोड़ि गाममे पाँच बरख जखन गिरहस्ती केलैन तखन अनुभव भेलैन जे उत्पादन लेल बजारो चाही। कहब जे जखन गामक खगताकेँ पूर्ति भऽ जेतइ तखन ने समान बाहर भेजब नीक हएत। मुदा अही संग ईहो प्रश्न तँ उठबे करत किने जे एक किलो मीटरमे पसरल भरि गाममे वस्तु केना पहुँचत। तँए, एकटा केन्द्र स्वरुप स्थानक खगता भइये जाइए। जइसँ आनो-आन गामक लोक आ गामोक लोक कीनबो-बेसाहबो करबे करत।  
चारि बजे बेरुका समय, नरक-निवारण चतुर्दशीक हुमेला देवालय दिस सहनिहारो आ सहनिहारियोक आवाजाही बढ़ि गेल। जइसँ घर-आँगन पतरा रस्ता भरिया गेल छल। ब्रह्मदेव देवकृष्ण भाइक ऐठाम पहुँचला तँ देखलैन जे देवकृष्णो भाय सेहो दरबज्जेपर बैस रस्ते दिस देख रहल छैथ।
ब्रह्मदवेकेँ देखते देवकृष्ण बजला-
संगी, एक सालमे एक गोरे केते पाप करैए जे ओही पापक निवारण करैले मेला जकाँ लोकक ढबाहि लागल अछि।
ब्रह्मदेवक मन चकुआ गेल। मर्र ई की देवकृष्ण पुछि रहल अछि! कोनो कि यमराजक हम ठिक्का-स्टाफ छिऐ जे धरम-पापक लेखा-जोखा भरि दिन करैत रहब आ जखने आदेश कानमे पड़ल कि ओकर हिसाब-वाड़ी जोड़ि बाजब। ब्रह्मदेव बाजल-
संगी आइये नहि, सभ दिनसँ अपना दुनू गोरेक बीच एक विचारक सम्बन्ध रहल अछि। जइसँ काजोमे एकरूपता आ जीवनोमे एकरूपता आबिये गेल अछि। तँए जे बात बुझल नइ अछि तइमे किछु बजने अड़ंगा लगत। चतुर्दशीक सम्बन्धमे एतबे बुझल अछि जे नरकसँ निवारण करैए।
देवकृष्ण-
संगी, स्त्रीगण सभकेँ देखबहक जे जहिना धान-दे पुछबहक तँ बजबे ने करतह आ गोबरक चोत लग राखल भुस्सा-दे[i] टनाटन चानीबला रूपैआ जकाँ बजए लगतह। तूँ तँ जिनगी भरिक संगी रहलह, जहिना कोनो देशक अपन उत्पादन शक्ति जेतेक बढ़ैए, बुनियादी ढंगसँ ओकर उन्नतियो तहिना होइ छइ। कोनो मनुखकेँ कोनो विषय ओते जानै-बुझै आ करैक तँ अछिए जेतेटा ओकर जीवनभूमि अछि।
देवकृष्ण भाइक विचार सुनि ब्रह्मदेवक मन पनपना गेल। पनपनाइते बाजल-
ऐसँ बेसी किछु ने नरक निवारण चतुदर्शीक सम्बन्धमे बुझल अछि।
मुस्की दैत देवकृष्ण बजला-
ई बुझल छह जे नरकक केते घाटक ई चतुर्दशी घटवार छी?”
देवकृष्ण भाइक विचार सुनि ब्रह्मदेवक मन जेना उग्र हुअ लगलैन तहिना बजला-
आइ तक एकोटा ने नरक निवारण चतुर्दशीक उपास केलौं हेन आ ने नरकक घाट बुझै छी। ऐसँ मतलबे की अछि।
देवकृष्ण बुझि गेला जे ब्रह्मदेवक मन उग्र भऽ रहल अछि। मुदा बाजि किछु ने रहल अछि। जहिना धारक धाराकेँ बगलक कनबह बना कम कएल जाइए तहिना पत्नीकेँ सोर पाड़ैत देवकृष्ण बजला-
सुनै छिऐ! चाह पीना बड़ीकाल भऽ गेल।
देवकृष्ण भाइक बातकेँ लाल भौजी जहिना सभ दिन चुहैट कऽ पकैड़ एली अछि तहिना चुहैट कऽ पकैड़ते बुझि गेली जे शास्त्रार्थमे केतौ दृष्टिकूट आबि गेलै हेन तँए चाहक खगता भेलैन। जहिना ब्रह्मदेव गुमे-गुम तहिना देवकृष्ण सेहो गुमे-गुम एक दोसरकेँ निहारियो रहल छला आ समाज विकासक गुम भेल रस्ताकेँ सेहो गमि रहल छला।
चाह पीबिते जेना दुनू गोरेक चाह जगलैन तहिना पहाड़ी नोकरएकबोलिया बहादुर–जकाँ तँ नहि, मुदा अपन चाह जगजिआर होइत जरूर जगलैन। देवकृष्ण भाय बजला-
संगी, गामक आवाजाही जाबे बाहरसँ नहि बढ़त ताबे अपना सबहक मेहनत सदिकाल सड़िते रहत। तँए गाममे एकटा हाट लगबै पाछू पड़ह।
ब्रह्मदेव- विचार तँ बढ़ियाँ उठौलह। मुदा हएत केना?”
देवकृष्ण- तोहर की विचार?”
ब्रह्मदेव-
जइसँ अपनो आ समाजोक बढ़बाढ़ि हएत ओ बेकता-बेकतीटा केने नइ ने हएत।
देवकृष्ण भाय बजला-
चलह गाममे पहिने एकर जानकारी दहक। जखने जानकारी छिड़ियाएत तखने ने रंग-रंगक विचार सभ सेहो बितिआएत, वृद्धि करत।
सएह भेल। कोनो काजक शुरूआत उकड़ू होइते अछि मुदा अपनो दिस ने देखए पड़त जे हमहूँ तँ एक्कैसमी सदीक मनुख छिऐ। उकड़ूकेँ सुकड़ू केना बनौल जाए, यएह ने भेल समाजक भार।
q शब्द संख्या : 995, तिथि : 25 फरवरी 2019


[i] गोरहा-चिपरीक कच्चा माल

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