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Friday, May 31, 2019

संकल्प_Jagdish Prasad Mandal_बेरमा, मधुबनी_सम्पादन एवम् संकलन- Umesh Mandal


संकल्प
कोनो अविकसित वा अर्द्धविकसित देशो आ गाम-समाजक संग परिवारो आ बेकतियोक बीच बेरोजगारियो आ पछुपनो रहिते अछि। अपनो समाज आ देशोमे अछिए। कियो जानि-बुझि एहेन परिस्थितियो आ परिवेशोक सामना करैत अपन जीवनकेँ संचालित करै छैथ आ कियो कखनो अपनो, कखनो परिवारोकेँ आ कखनो देशो-दुनियाँकेँ दोख लगा मन शान्त करिते छैथ। विचारपुर गाममे रामलाल एहने एक किसान परिवारक बेकती छैथ जे सइयो समस्या, सइयो छान-वान आ खगल बेर-बेगरताक बीच अपनाकेँ ठाढ़ केने डेगे-डेग ससैर रहल छैथ। जहिना एक दिस रामलाल अनेको बेर-बेगरताक अभावमे खगल जिनगीक गाड़ी खिंच रहल छैथ तहिना विचारक दुनियाँमे ईहो जानि-मानि रहल छैथ जे जइ देशमे उपजाऊ भूमि-सम्पदाक बाहुल्य अछि तइ देशक किसानमे ओहन अपरिमित शक्ति सेहो अछिए जे किसानी जिनगीकेँ जिनगीक रूपमे जीवाइये सकैए।
रस्तेकातमे रामलालक अँगनो-घर छैन आ दरबज्जा तँ सहजे रस्ते कातमे, रस्तेक रूखिये सेहो छैन्हे। जइसँ जेते अपन दुआर-दरबज्जाक लज्जैत बनौने छैथ तेते रस्तोक बनौनहि छैथ। ओना, गामक केतेको लोक ई उपराग दइते छैन जे जेते फुलक गाछ रामलाल अपन दरबज्जापर नइ लगौने छैथ तइसँ बेसी रस्तापर–सार्वजनिक भूमिमे–रोपने छैथ। मुदा तइ सभ बातकेँ रामलाल ने कहियो कान-बात देलैन आ ने बाते कानमे धेलैन। किएक तँ अपनो मन कहिते छैन जे फुलक गाछ भलेँ हम रोपने छी मुदा देवी-देवताक पूजा करैले आनो-अपन अपने रोपल जकाँ तोड़ियो कऽ आ बीछियो कऽ लइये जाइ छैथ, तइले हम किनको मनाहियो तँ नहियेँ करै छिऐन। तखन ओ सबहक भेल आकि हमरेटा...।
आइ ओही रस्ता परहक फुलक गाछक जड़िकेँ निहारि-निहारि रामलाल देख रहल छला जे हालक[i] अभावमे एना भेल कि कोनो कीड़ाक आगमन भेलै जे एना दिनो-दिन गाछक बढ़बारिक बदला घटबाहि भेल जा रहल अछि...। गाछक जड़िकेँ खोदि कऽ देख रामलाल मुड़ी उठा मने-मन विचारए लगला कि रस्तापर एक गोरेकेँ अबैत देखलैन।
अनगौंआँ रहने रामलाल चिन्ह नहि सकला। ओना, मनुख तँ मनुखे भेला जे एकरूपिया देवियो-देवताकेँ चीन्हब कठिन अछिए। किएक तँ कखन देवी दुर्गा बनि जेती आकि लछमिये-सरस्वती, से जानब तँ कठिन अछिए।
मनक विकारकेँ रामलाल विचारि-विचारि सुविचार बनबैले मन ओरियेबिते छला कि ओ आदमी आगूमे आबि ठाढ़ भऽ गेलैन। रामलाल चीन्हि नहि सकला। ओना, कखनो-कखनो चिन्हारो अनचिन्हार भइये जाइए, मुदा अनगौंआँ तँ सहजे अनचिन्हार जगहक भेबे केला तँए अनचिन्हार सोभाविके...। दरबज्जाक आगूक रस्ताक विचार करैत रामलाल जखन पाछू उनैट ओइ आदमी दिस तकलैन तँ किछुओ परेखमे नहि एलैन जे ओ पीड़ित अवस्थामे छैथ आकि बेपीड़ित अवस्थामे। तैबीच अपन संक्षिप्त परिचय दैत ओ बेकती अपने बजला- हम बगले गाम रहै छी, किसुनलाल नाम भेल।
परिचय सुनि रामलाल विचार कइये नहि पेब रहल छला जे किसुनलाल ऐठाम आबि रूकि कऽ चुपचाप ठाढ़ किए भेला। गाछक जड़िक जँ जानकार रहितैथ तँ किछु विचार दइतैथ, नहि जँ किछु जानए चाहितैथ तँ सेहो किछु बजितैथ मुदा से दुनूमे सँ किछु ने..!
अपनाकेँ सम्हारि रामलाल बजला-
चलू, दरबज्जापर।
दरबज्जापर चलू कहैत रामलाल उठि कऽ ठाढ़ भेला। रामलालकेँ ठाढ़ होइते किसुनलाल बजला-
किछु संकल्पक संग हम घरसँ निकलल छी, तँए..!”
संकल्पक संग घरसँ निकलल छीसुनिते रामलालक मन, अकासमे उड़ैत नमहर चिड़ै जकाँ चकभौर लेलकैन। संकल्पक विकल्प तँ दुनू दिस अछि। केहेन विकल्प, केहेन संकल्पवान बनबैक दिशामे बढ़ौत आ केहेन संकल्पक समाधानक केहेन विकल्प हएत? असमंजसमे पड़ल रामलाल पुन: बजला-
जेतेकाल ऐठाम रूकि गप करब तेतेकाल किए ने दरबज्जेपर बैस गप-सप्प करब?”
ओना, नव पीढ़िक पढ़ल-लिखल किसुनलाल तँए मनमे उठि चुकल छेलैन जे  सार्वजनिक पथ–माने गामक रस्ता–पर मान-अपमानक प्रश्न नहि रहैए ओ तँ अधिकार-कर्तव्यक बीच बास करैए। मुदा दरबज्जा तँ से नहि, ओ तँ बेकती-विशेषक भऽ जाइए। ओना, दरबज्जाक सेहो सार्वजनिको रूप अछि आ बेकती-विशेषक सेहो अछिए। खाएर जे अछि तइसँ रामेलाल आकि किसुनेलालकेँ कोन मतलब छैन। भाय किछु छी, मनुख तँ छीहे किने। जँ मनुख विचारक आदान-प्रदान नइ करता तखन तँ मनुखक आकार रूप भऽ सकता मुदा मानव मानब तँ कठिन भइये जाएत।
एकाएक किसुनलालक मनमे पाइनिक बेग जकाँ विचारक बेग उठलैन। उठलैन ई जे आन जीव-जन्तु अपन सुख-दुखकेँ भोगि सकैए मुदा केकरो कहि तँ नइ सकैए। ओना, कहब जे अधिकसँ अधिक दुखकेँ अपने-आपमे अङ्गेजब महानता भेल, मुदा ऐठाम से नहि, ऐठाम बस एतबे जे जाबे अपन दुख आन लग नइ बाजब ताबे जँ ओ सुखदातो होथि तँ बुझता केना जे हमरा चलैत दोसरकेँ एते कष्ट भऽ रहल छैन...।
किसुनलाल सहर्ष बजला-
भाय साहैब! अपनो पियास लगल अछि, चलू एक गिलास पानियोँ पीब।
किसुनलालकेँ अगुएने रामलाल दरबज्जापर पहुँच चौकीपर बैसबैत बजला-
अहाँ बैसू, हम पानि नेने अबै छी।
आँगन दिस रूखि करिते रामलालक मनमे उठलैन जे ई तँ मिथिला छी। ऐठाम अतिथि-अभ्यागतक सेवा जहिना अनिवार्ये नहि धरमो मानल जाइत अछि तहिना निमाहबो तँ कठिन अछिए। हमरा हाथक पानि हाथमे लइसँ पहिने जँ किसुनलाल बाजि जाथि जे केहेन पियास बुझबैक पानि छी, तखन तँ कठिन परीक्षाक घड़ी आबिये जाएत..! भाय, परिस्थिति केहनो किए ने हुअए मुदा मनुखो तँ रगड़ी होइते छैथ किने, किछु-ने-किछु समाधानक बाट ताकिये लइ छैथ, भलेँ ओ सुफाँइट हुअए कि कुफाँइट।
रामलाल मन सक्कत केलैन। पानि नेने दरबज्जापर किसुनलाल लग आबि बजला-
पहिने किछु अन्न ग्रहण करितौं तेकर पछाइत जँ पानि पीबितौं तँ बेसी नीक होएत।
अन-पानिपर किसुनलालक मन नइ रीझल मुदा अपन मनक संकल्प अपने विचारकेँ फोड़ैत निकलल-
आने-आन पढ़लो-लिखल आ बिनु पढ़लो-लिखल युवक जकाँ हमहूँ पढ़ल-लिखल युवक छी। बी.ए. केला सात बर्ख भऽ गेल, नोकरीक पाछू वौआइत रहलौं। आइ घरसँ संकल्पित भऽ कऽ निकलल छी जे चाहे जे काज हुअए, बिना अपनौने घुमब नहि।
एक तँ नोकरीक संकल्प, तोहूमे घर छोड़ि घुड़मुड़िया..! रामलालक मन बिहुसलैन। बिहुसते बजला-
संकल्प तँ सक्कत अछि मुदा अछि भरिसक नरकक ठेलम-ठेल जकाँ..!”
रामलाल बजला एतबे, मुदा मनमे ईहो बात रहैन जे एक तँ परतंत्रक जिनगी अङ्गेजब, सेहो लाखक-लाख घूस दऽ कऽ।
ओना, किसुनलालक चेहरा भीतरसँ जहिना चमैक रहल छेलैन तहिना बाहरसँ दमैकियो रहले छेलैन। चमकै-दमकैक कारण किसुनलालक मनमे ई छेलैन जे जहिना अपन जिनगीक बुड़ैत नैयाक नाह देखै छला तहिना संकल्पित जिनगीक कटिवद्धता सेहो छेलैन्हे।
तैबीच रामलालक पत्नी–सुकन्या–चाह नेने पहुँचली। सुकन्याकेँ देख किसुनलालक छाती दड़कए लगलैन। पत्नीक संग जीवन-यापनक की पैघ-पैघ अरमान मनमे छल आ आइ की भऽ रहल अछि..! मुदा अपन पीड़ा पीड़ितसँ जरिते किसुनलालक मनसँ नोकरीक संकल्पक बुलबुला, बरखाकालक पानिक बुलबुला जकाँ धीरे-धीरे फुटि-फुटि पानिमे विलीन हुअ लगलैन आ जिनगी जीबैक संकल्प मनमे उठए लगलैन जइसँ दुनू गोरेक बीच चुपा-चुपी पसैर गेलैन।
चुपा-चुपी देख रामलालक मन कछमछेलैन। बजला-
पहिने चाह पीबू, पछाइत जे टुट-नफाक गप अछि ओ होइत रहत।
अदहा कप चाह किसुनलाल पीब नेने छला मुदा रामलाल अतिथि आग्रह देख चौथाइयोसँ कम्मे चाह पीने रहैथ। तैबीच किसुनलाल बजला-
ऐगला जिनगी-ले..?”
बिच्चेमे किसुनलालक बोली थकथका गेलैन। थकथकाएबो सोभविके छल, की तँ सात बर्खसँ धाँगल-टुटल जिनगीक ने भुक्तभोगी रहि चुकल छैथ।
थकमकाइत-धकमकाइत किसुनलालकेँ देख रामलाल बजला-
अखन अहाँ नवयुवक छी! ओना, किछु समय बीचक जरूर नष्ट भऽ गेल मुदा जखने जागी तखने परात।  
जखने जागी तखने परात सुनि किसुनलालक मन सुगबुगेलैन। सुगबुगाइक कारण भेलैन जे एक तँ पढ़ल-लिखल नौजवान, दोसर सात बर्खसँ देश-समाजक बाढ़िक थपेड़सँ नीक जकाँ थपड़ा सेहो गेले छला जइसँ मनुखक चतुर्दिक जिनगीक रूप-रंग सेहो बहुत किछु अनुभव कराइये देने रहैन। सुगबुगाइत किसुनलालक मनमे सभसँ बेसी गाम-घरक खेतिहर किसानक जिनगी जोर मारलकैन। खेतिहर किसानक वृत्ति किसुनलालक मनमे अबिते अपने फुटलैन-
वाह रे खेतिहर किसान! एक दिस पढ़ि-लिखि खेतीकेँ हँसियापर बैसा छोड़ि-छोड़ि परतंत्रक नोकरी पाछू बेहाल छैथ आ दोसर दिस कृषि-वृत्तिकेँ स्वतंत्र जिनगीक इज्जत-धर्म सेहो मानियेँ रहल छैथ..!”
किसुनलालक विचार सुनि रामलालक मनमे विचारक सुप्रभात झलकी देलकैन। मुदा विचारो-विचारक बीच जे खाँच अछि ओकरा समतल बनबैमे किछु कठिनाइयो आ बाधा सेहो अछिए। तँए विचारक जड़ि दिस रामलालक मन बढ़िये रहल छेलैन कि दोहरी बाट नजैरपर चढ़लैन। बजला-
किसुनलालजी, मनुखकेँ सभसँ पहिने अपन ओकातिक अनुभव करक चाही, पछाइत ओइपर जिनगी केना ठाढ़ हएत तइ दिस नजैर बढ़ेबाक चाही। जखने से हएत तखने मनुखकेँ कोनो-ने-कोनो रस्ता भेटबे करत।
रामलालक विचार किसुनलाल नीक जकाँ नहि बुझि पेला मुदा एहेन तँ आशा मनमे रहबे करैन जे जँ नीक विचार एक बेरे नहि बुझी तँ दोहराइयो-तेहराइयो कऽ बुझैक कोशिश जरूर करी। जखने मनक विचार सोझरा जाएत तखने हाथ-पैरक काज सेहो रस्ता पकड़बे करत...।
मुँह फोड़ि किसुनलाल बजला-
नीक जकाँ नहि बुझि पेलौं।
कोनो विचार जखन अपन विचाररूपमे चलैए आ राही-बटोहीक बीच ओझल हुअ लगैए तखन एक नहि अनेको उदाहरणसँ जहिना ओकरा फरिछाएल जाइ छै तहिना रामलाल बजला-
अपना ऐठाम समर्पणक विचार खाली[ii] विचार नहि जिनगी जीबैक मूल तत्त्व सेहो छी। तँए अपनाकेँ...।
किसुनलाल- की समर्पण?”
ओना, शॉर्ट-कटमे रामलाल बाजि गेला जे अपनाकेँ अपने-आपमे समर्पण मुदा किसुनलालक चेहराक सुर्खीमे कोनो सुखपन नहि अबैत देख रामलाल फरिछबैत पुछलखिन-
अपन बपौती सम्पैत की सभ अछि?”
ओना, सात बर्ख पहिने तक किसुनलाल बपौती सम्पैतिक अर्थ खाली खेते-पथार आ धने-सम्पैतटा केँ बुझै छला, मुदा सात बर्खक जिनगीक हिलकोरसँ विचारोमे थोड़ेक हिलकोर आबिये रहल छैन जइसँ बपौती सम्पैतिक माने खाली जमीने-जायदादटा नहि, परिवारिक-समाजिक सम्बन्धक संग बेकतीगत जवाबदेही सेहो जुड़ल अछि, से किछु-किछु बुझिमे आबए लगलैन। तँए किसुनलाल धकमकाइत बजला-
बपौती सम्पैत तँ केतेको रंगक अछि।
किसुनलालक विचार रामलाल बुझि गेला। तँए लगले हाथ फरिछबैत बजला-
अखन जइ तरहक समस्या बेरोजगारीक अछि मात्र ओतबेपर विचार करू। अपना केते खेत-पथार अछि?”
किसुनलाल बजला-
पाँच बीघा।
रामलाल-
 भैयारी केते छी?”
किसुनलाल-
 दू भाँइक भैयारी अछि।
रामलाल-
अपन देश कहियौ कि राज्य आकि गामे कहियौ, खेतक कुल सम्पदा आ लोकक कुल सम्पदाकेँ एकठाम हिसाब जोड़ियो तँ...।
किसुनलालक मन विचारक घाटसँ जेना लगले असनान करिकऽ निकलल होनि, तहिना पवित्र सेहो भइये गेल छेलैन। मुदा अन्तक अन्तिम बात जे अपना विचारसँ नोकरीक संकल्प लऽ कऽ निकलल छला आ रस्तामे कियो वौस कऽ घुमेनिहारो ने होनि सेहो केहेन हएत...।
किसुनलाल बजला- आब की करी?”
रामलाल- गामक रस्ता पकड़ू।
किसुनलाल- सहए।
रामलाल- हँ तँ आरो की...। 
q शब्द संख्या : 1520, तिथि : 12 मार्च 2019


[i] नमीक
[ii] सिर्फ

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