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Friday, May 31, 2019

एतए बसव कठिन अछि_Jagdish Prasad Mandal_बेरमा, मधुबनी_सम्पादन एवम् संकलन- Umesh Mandal


एतए बसव कठिन अछि
पान-सात दिनसँ गुरुकाका भेँट नहि भेल छला। ओना, बिनु बुझनौं एते तँ बुझिते छी जे गुरुकाका नीके-ना अपन रामधुनिक धुन्नी लगा अपना धुनिमे लगल रहिते छैथ। जँ से नहि तँ कोनो एहेन समाचारो सुनबामे नहियेँ आएल अछि जे गुरुकाकाकेँ किछु भऽ गेलैन। हँ, कहियोकाल बजैक झाँइ चढ़ि जाइ छैन, से बुझले अछि जे एना आइये नहि तहियेसँ आबि रहल छैन जहियासँ मनमे एलैन। ओना, उड़न्ती समाचार सुनबे केने छेलौं जे पान-सात दिनसँ मन-मियाद[i] उनटल रहै छैन, मुदा तहूमे कोनो अप्रिय घटना नहियेँ सुनलौं। तथापि अपन मनकेँ केतबो थतमारि राखए चाहलौं मुदा से नहियेँ मानलक। घीच-तीड़ कऽ गुरु कक्काक ऐठाम लइये अनलक।
गुरुकाका जहिना समयानुसार सभ दिन अपन झूठ-फूसमे लागल रहै छैथ तहिना लगल छैथ। ऐठाम झूठ-फूसक माने झूठ-फूस नहि, घरक छोट-सँ-छोट काजमे लागल रहब अछि। दरबज्जापर पहुँचते कनडेरिये आँखिये गुरुकाकाकेँ हिया कऽ देखलौं जे अखन गुरु कक्काक वृत्ति केहेन चित्र गढ़ैत रहल छैन। मुदा से भेल नहि, गुरु कक्काक जहिना श्वास क्रिया तेज छैन तहिना चक्षुक क्रिया सेहो तेज छैन्हे। जेते अंगक क्रियामे तेजी रहत ओही अनुकूल ने मनक मननो-माननो आ मानबो-मानब बनल रहत। दरबज्जाक ओसारक निच्चेमे रही कि गुरुकाका चाँइ जकाँ बजला- किसुन, तोरे हम तकै छेलियह..!”
अपना सभमे तँ सभ दिनसँ एहेन विचार बास केनहि अछि जे केकरो मन नइ दुखाबी, तहूमे गुरु कक्काक मनकेँ। फेर मनमे भेल जे ई नै ने कहलैन जे तोरा दुआरे हमर कोनो काज बिथुत भऽ गेल!’ तँए जहिना रही तहिना रहैत आत्मज्ञानी जकाँ बजलौं-
गुरुकाका! हमर अपनो ब्रह्म कहै छल जे पान-सात दिनसँ भेँट नइ भेला हेन गुरुकाका। तँए भेँट करब जरूरी अछिए।
हमर विचार जेना गुरुकाकाकेँ पचलैन तहिना पुछलैन-
अपना दिसक की हाल-चाल छह?”
जखन अपन हाल-चाल पुछलैन तँ झूठ नहि बाजब। तोहूमे गुरुकाका लग झूठ बजने तँ स्वर्गक कोन गप जे नरकोमे ठेलम-ठेल हएत..! बजलौं-
काका, की हाल-चाल रहत। सबै नचाबे राम गोसॉंई..! कियो ब्रह्म राम बनि ब्रह्मानन्दमे लीन रहै छैथ जइसँ ब्रह्ममय दुनियाँ देखै छैथ तँ कियो बजितो अछि आ करितो तँ अछिए जे जे राम से राम, जान लेबइ कि देबइ।
रामायणिक प्रेमी गुरुकाका छथिए, हमर व्याख्यासँ रसेला आकि रामायणिक पाँतिसँ, से तँ गुरुए-कका जनता, मुदा मुँहक चुहचुहीसँ लऽ कऽ मनक चुहचुही धरि चहचहा उठलैन मुदा बजला किछु नहि, झूमए लगला। तेना झूमए लगला जे मुँह फुस-फुसा गेलैन-
केशव कही न जाए किछु कहिये। देखब तब रचना विचित्र, समुझ मने-मन रहिये...। केशव कही न जाए...।
गुरु कक्काक रूप देख अपने मन झुझुआए लगल जे अनेरे लोकक मुहेँ उड़न्ती बात सुनि मनकेँ दुखबै छेलौं जे गुरु कक्काक मन चढ़ल रहै छैन। ओना, पान-सात दिनसँ भेँट नहि भेल छला तँए मोनसँ भेँट भेबे केला जइसँ कोनो-ने-कोनो घाट भेटबे करत। एहेन जिज्ञासा मनमे छेलए-हे। तैपर देखते गुरुकाका कहलैन- तोरे तकै छेलियह!’ किए हमरा तकै छला? एहनो तँ सम्भव अछिए जे कोनो काज बिथुत भऽ गेल होइन। मुदा एते तँ अपनो बुझले अछि जे गपक वाणकेँ गप नहियोँ रोकि सकैएमाने विचारक वाणकेँआ रोकियो तँ सकिते अछि। ओ निर्भर करैए सुननिहारपर, मुदा काजकेँ तँ काज रोकिये सकैए...। बहाना ठाढ़ करैत बजलौं-
काका, की कहब! तेहेन समय आबि गेल अछि जे बापो-बेटाक[ii] भेँट छह मास-साल भरिपर होइए, मुदा एहनेमे ने अपनो जिनगीक सभ किछु चलाएब अछि। बिमारीक चक्करमे पड़ि गेल छेलौं तँए भेँट नइ भेल छेलौं।
जिनगीक लेल बिमारीक महत्-केँ अपन बिथुत काजक संग आँकि कऽ गुरुकाका विचारलैन आकि की से गुरुकाका जनता मुदा मनक मियादि जरूर पसिझ गेलैन। गुरुकाका बजला-
किसुन, आब हमर बास ऐठाम कठिन अछि।
अपना मने गुरुकाका जे बाजल होथि मुदा हम अपना मने अपने बुझि बजलौं-
ऐठाम बसव कठिन अछि तँ दुनियाँमे हल्लुक केतए अछि?”
हृदयवेधी वाण जकाँ हमर बोल गुरुकाकाकेँ लगलैन आकि अपने मनक बम फुटलैन से तँ गुरुए-कका जनता, मुदा बजला एतबे-
किसुन, जखन परिवारेक बेवहार-विचार दुषित हुअ लगैए तखन ओही परिवारजनक दायित्व बनैए जे ओइ दुषितपनसँ अपनाकेँ साकांच करी।
ओना, अखन तक गुरुकाका अपन मनक पूर्ण भरास नहि निकालने छला तँए बजैमे धकमकाइते छला मुदा गपक संग विचार-रसक रस्सीकेँ पकैड़ बजलौं-
उचिते किने..!”
उचित-अनुचितक विचार सेहो लोक अपना-अपना मने करिते अछि, गुरुकाका सेहो केनहि हेता। अपन मनक भरास निकालैत बजला-
किसुन, लोककेँ बुझि पड़ै छै जे हमरे उनटौने दुनियाँ उनैट जाएत आ रामहिलोरापर चढ़ल जकाँ बुझैए जे अकासमे ठेक जाएब।
इशारे-इशारामे गुरुकाका नाचि रहल छला, मुदा अपनो तँ बुझल अछिए जे गुरुकाका ओहन शिकारी छैथ जे मूसक वंश केना बाघक वंशमे पहुँच गेल आ बाघक वंश केना मूस बनि गेल, दुनू बात बुझै छैथ तँए उटपटांगो बाजब नीक नहियेँ होएत। बजलौं-
केना साकांच परिवार बनत, गुरुकाका?”
बजैत-बजैत मन रोकि देलक जे भने गुरुकाका अपने बाजल छला जे बसव कठिन अछि।गुरुकाका तँ गुरुए-कका ने भेला, अपन गड़ूकेँ अपने खोलता। से खोललैन-
किसुन, जहिना विचारपर सदिकाल चोट पड़ि रहल अछि तहिना परिवारोक सभ बतकहल जकाँ भेल जा रहल अछि..!”
ओना, बजैसँ गुरुकाका मनकेँ चेतलैन आकि मने मनकेँ चेतौलकैन से गुरुकाका जानैथ। बजला-
किसुन, आब गाममे एकोदिन बसव कठिन अछि। मन होइए गामेसँ चलि जाइ।
गर भेटल। गर ई भेटल जे गुरुकाका केता दिन बाजल छला जे जेतए बसी सएह सुन्दर देश भेल। तेकरा छोड़ि जँ गुरुकाका अपने भागैले तैयार भऽ गेला, तखन मुँह बन्न राखब उचित नहि। बजलौं-
काका, दुनियाँकेँ हेरै-हरबै पाछू सभ हरान अछि मुदा तइसँ नइ ने हएत, जखने जीता-जीती हुअ लगत तखने गाँधीजी जकाँ दोसर दोसराक आगू कान देबइ।
हमर बात जेना गुरुकाकाकेँ नीक लगलैन तहिना मनक फुल-फुली जगलैन। बजला- किसुन, जिनगीक दू पाटक फाट बनल अछि। एक वैचारिक आ दोसर बेवहारिक। अही दुनूक बीच सभ उगडुम कऽ रहला अछि।
गुरु कक्काक बात नीक जकाँ नहि बुझि पेलौं, तेकर माने ई नइ जे गुरुकाकाका झूठ बजला। तेकर माने ई जे अपने अखन तक विचारो आ विचारक बेवहारक दूरियो ने बुझै छेलौं। फेर मनमे भेल जे बीचमे टोक-टाक केने विचारकेँ ओंघराइक सम्भावना सेहो बनि सकैए, तँए बाजबकेँ अनुचित बुझि मुँह बन्ने रखलौं।
जेना पतिआनी पूर भेलापर पूर्ण विराम देल जाइए तहिना अपन विचारपर पूर्ण विराम दैत गुरुकाका बजला-
किसुन, जिनगीक वैचारिक स्तरक संग बेवहारिक स्तर सेहो अछि, मुदा ओइ बीचक जिनगीक लेल अपन बेवहारिक जिनगीकेँ कटिया-काट काटि अपन जिनगीक संग जोड़ि ली। वएह भेल अपन जीवनसंगी, जेकर कर्त्ता अपने स्वयं छिऐ।
एकसूरे गुरुकाका बाजि रहल छला मुदा अपने किछु-किछु बुझबो करै छेलौं आ बाँकी साढ़े-बाइसो होइते छल। बजलौं-
काका, अखन धड़फड़ीमे छी, काल्हि निचेनसँ आएब।
q शब्द संख्या : 1010, तिथि : 19 मार्च 2019


[i] मनक मियाद
[ii] छोट बच्चाक

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