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Friday, May 31, 2019

स्वनिर्मित जिनगी_Jagdish Prasad Mandal_बेरमा, मधुबनी_सम्पादन एवम् संकलन- Umesh Mandal


स्वनिर्मित जिनगी  
जिनगीक दू छोरक बीच बैसल यात्री जकाँ जगरनाथ काका सेहो अपनाकेँ बुझिते छैथ। जिनगीक दू छोरमे पहिल जहिना माटिमे गाड़ल अछि तहिना दोसर सेहो ओकरे[i] पछाड़ि अपनाकेँ गछाड़ि, गाछ जकाँ ठाढ़े अछि। ऐ मानेमे जगरनाथ काका निरविकार लोक समाजमे मानल जाइ छैथ। हिनक अपन चालियो-ढालि आ किरियो-कलापक चित्र कखनो विचित्र नहि होइ छैन। तँए सदिकाल मनमे एहेन विचार जगले रहै छैन जे दुनियाँमे रही आकि नइ रही, मुदा दुनियाँ जखन अपन हिसाब मांगत तँ ओकरो पाक-साफ कइये देबइ। दुनियाँक हिसाबे केतेक अछि। बस एतबे ने जे हम दुनियाँसँ की लेलिऐ आ की अपने दुनियाँकेँ देलिऐ। तीनियेँ तरहक ने कारोबार दुनियाँक लोक करैए- पहिल, दुनियासँ की लेलिऐ माने दुनियाँ हमरा की देलक, दोसर- की दुनियासँ लेलिऐ आ की अपने दुनियाँकेँ देलिऐ। माने बेसी लेलिऐ आकि बेसी देलिऐ। तेसर, दुनियाँकेँ की देलिऐ...। ओना, कहब जे जखन दुनियाँमे जन्म लेलौं, दुनियाँक बीच रहलौं तखन जँ दुनियाँक नइ रहलै, सेहो सम्भव नहियेँ अछि। मुदा से नहि, जगरनाथ काकाकेँ अपन पालल-पोसल जहिना जिनगी छैन तहिना पलित-फलित अपन विचारो छैन्हे। अपन विचारसँ जगरनाथ काका यएह मानि रहल छैथ जे दुनियाँ जहिना सबहक छी आ सभ मिला कऽ जहिना दुनियाँ अछि तहिना हमहूँ छी आ हमरो दुनियाँ अछिए। ओकरो माने दुनियोँक अपन हिसाब छइ। अपन हिसाब छै जे अहाँकेँ केते दुनियाँ देलक आ केते अहाँ लेलिऐ। किए तँ समाजमे जहिना लेन-देन केतए तक कर्जक श्रेणीमे अबैए आ केतए तक कर्जक श्रेणीसँ बाहर अछि माने ओ कर्ज लेब नहि भेल, से खाली अर्थेक[ii] सम्बन्धटा मे नहि अछि, तहिना जीवनोमे अछिए। जेना, ओतए तकक अनुचित कार्यकेँ अनुचितक ओइ कोटिक श्रेणीसँ निच्चाँ ने राखल जाइए जे अपराधक कोटिक श्रेणीसँ निच्चाँ अछि। खाएर जे अछि एते तँ प्रमाणित अछिए जे जहिना माण्डवी ऋृषि जखन यमराज लग पहुँच अपन बारह बर्ख पूर्वक घटनाटिकुलीकेँ नाँगैरमे कटकी भोंकि अकासमे उड़ा देने छलास्वयं कबूल केलो पछाइत अपनाकेँ अपराधी नहि मानलैन। तहिना ने सभ-ले दुनियाँ अछि। तँए ओकरा[iii] देख कऽ अपन हिस्साक हिसाबपर नजैर राखए पड़त किने।  
पचास सालक जिनगी पार केला पछाइत, पचासक माने ई अछि जे साए बर्खक अपन अधारित जिनगीकेँ आधार मानि अदहा पार केला पछाइत, असगरे जगरनाथ काका दरबज्जापर बैसल छला। तीन-चारि बजे बेरुका समय छेलइ, सुर्ज ढलानपर पहुँच गेल छला जइसँ रौदमे सेहो शीतपनक संग मीठपन आबिये गेल छल।
बदलैत काजक परिवेश देख सुचिता काकी, दरबज्जापर पहुँच नजैर उठा जगरनाथ काकापर देलैन।
कोनो विचारमे विचरण करैत जगरनाथ काकाकेँ बदलैत परिवेशपर नजैर पड़लैन। बदलैत परिवेश, बदलैत परिवेशक माने भेल संक्रमित समय। मुदा ओ कोन रूपे संक्रमित अछि तैपर तँ नजैर राखए पड़त...। विचार मग्न जगरनाथ कक्काक मनक मुनि विचरण करैत जीवनक वृक्ष मुनि लग पहुँच गेलैन। वृक्ष मुनि वएह भेला जे वंशधर छैथ। ऐठाम एहेन धोखा ने हुअए जे केहेन वंश, वंशोक तँ अनेक रूपो अछि आ रंगो तँ अछिए। ओना, वृक्ष मुनिकेँ मनमे अटूट बिसवास छैन्हे जे जँ वंशधर नइ रहब तँ दुनियाँ मेटा देत। लोक भलेँ रातिकेँ सुतनमा समय बुझह, अपन मन छै, अपन मियादि छै, जे मन फुरै से करह। मुदा तँए दुनियाँक सभ किछु सुति रहैए सेहो बात नहियेँ अछि। ऐठाम हम रौतुका चोरक चर्च नहि करै छी। किएक तँ ओकरा सुतलेहेक संग बेसी सुतरै छइ।
मनवृक्षक दूटा डारिपर बैसल हंसराज आ वंशराज अछि। हंसराज हँसैत वंशराजकेँ कहलक-
भैया हौ, सुनलिअ जे कहाँ-दन तूँ भीख मंगै छह?”
ओना, हंसराजक बात सुनि वंशराज कने घबड़ेबो कएल आ कनी तमतमेबो कएल मुदा दालि-भात जकाँ विचारकेँ सानैत बाजल-
बौआ, कहाँ, कहाँ बौआ!”
हंसराज बाजल-
भैया! तूँ जेठ छह तँए तोरा लग बजैमे हमरा कोनो धड़ी-धोखा नइ अछि।
हंसराजक बात सुनि वंशराजक मन जहिना पिनपिनाएल तहिना पनपनेबो कएल। मुदा संयमित रहैत बाजल-
बौआ, कहाँ केतौ भीख मांगए गेल छेलौं, काल्हि कनी मैयाक दरबार गेल छेलौं।
हंसराज- अपन करनी मैयाकेँ की सभ कहलुहुन आ अपन भरनी की सभ मंगलुहुन?”
हंसराजक मुहसँ सुनल- ‘करनी-भरनीक बातसँ वंशराजक मन ठमकल। ठमकैक कारण भेलै जे एकाएक नरकक फोटो मन पड़ि गेलइ। नर्कक फोटोमे रंग-बिरंगक करनीक भरनी देखौल गेल अछि जइमे झूठ बजैक सेहो छइ। तँए वंशराज धकमकाएल। झूठकेँ सत् बनबैत वंशराज बाजल-
बौआ, जहिना सभ मैयाक दरबारमे पहुँच बजै छैथ जे हम अपराधी छी, पापी छी, अपने तँ दाता छिऐ। तैसंग पापो निवारक आ अपराधो निवारक तँ छिऐहे। जहिना सभकेँ धन, जन, मन, सेर-सम्पैत दइ छिऐन तहिना हमरो दिअ।
हंसराजक मनक मणि फुटल। फुटिते बाजल-
भैया हौ, जहिना बिना किछु केने सोल्होअना अपराधियो आ पापियो अपनाकेँ मानलह तहिना ने सोल्होअना बिनु केलहे मंगलहुन।
हंसराजक बात सुनि वंशराजक मुँह अपने बन्न नहि भेल। विचारक बिचड़ैत वाण लगलासँ तेना सकपका गेल जे बकारे हरण भऽ गेलइ।
दरबज्जापर बैसल जगरनाथ काका सेहो अपन जिनगीक वृक्षकेँ हिया-हिया हियासि-हियासि देखिये रहल छला कि सुचिता काकी चाह नेने पहुँचलैन।
सुचिता काकीक हाथमे चाह देख जगरनाथ कक्काक मनक पियासमे थोड़ेक तृप्ति जरूर एलैन मुदा लगले ईहो आबि गेलैन जे पत्नीक उपारजित[iv] चाह पीबैसँ पहिने हुनकर चाहोकेँ ऑंकब तँ जरूरी अछिए। मुदा अपन मनक-विचारक धारकेँ तत्क्षण अवरोध करब नीक नहि बुझि बाहरी धाराकेँ मनमे नहि धड़ैत पत्नीक हाथमे चाह देख जगरनाथ काका बजला-
जहिना अपना मनमे चाहक पियास छल तहिना अहाँक चाहो आ चाहक रंगो तँ रंगोलीए जकॉं अछि।
ओना, जगरनाथ कक्काक मनधारकेँ सुचिता काकी नीक जकाँ बुझिते छैथ। किएक तँ कोनो धार किमहर मुहेँ बहैए आ किमहर मुहेँ घुमि जाएत, एहेन-एहेन जिनगीक भकमोड़ सभ सुचिता काकी जगरनाथ कक्काक मुहेँ केतादिन सुनि चुकल छेली। तहूमे ई बात आँखिक देखलो छैन्हे जे जखन दुनू परानी कोनार्कक सूर्य मन्दिरक संग समुद्रक कातमे कबीरक गाड़ल खन्ती देख कऽ घुमल छेली आ कलकत्ता देखैक विचारसँ हबड़ा स्टेशनपर उतैर कलकत्तामे रूकली तखन एहनो धार[v] तँ देखनहि छेली जे सोलह घन्टा उत्तरसँ दच्छिन आ आठ घन्टा दच्छिनसँ उत्तर मुहेँ बहिते अछि। जइसँ मन मानि गेल छेलैन जे एको धार दू-मुहाँ होइते अछि। तँए, अपन विचारकेँ सुचिता काकी अपना मनेमे  स्थापित करैत बजली-
अनेरे दुनियाँक कोन जालमे मनकेँ वौआबै छी, आब जिनगीए केते बाँकी[vi] अछि जे तइले एना मनकेँ मारि रहल छी।
सुचिता काकीक विचार सुनि जगरनाथ काका बजला-
ओना, बहुत रास बात विचार करैक अछि, मुदा पहिने अपन मनक धारणानुकूल जिनगी पेलौं की नहि, ई विचार तँ करि लिअ पड़त किने।
विचारक प्रवाहमे सुचिता काकी बहि गेली। तँए बहैत-बहैत भँसियाइत बजली- हँ, से तँ करब अछिए
पत्नीक मनक बीहकेँ बिहियबैत जगरनाथ काका बजला-
अहाँक हथौटी केकरो किछु लेनो-देन बाँकी अछि?”
अपन स्वनिर्मित जिनगीक शक्ति देखबैत सुचिता काकी बजली-
जेकर पति परदेश रहै छै से ने दोसर परिवारसँ सम्बन्ध जोड़ैए मुदा हम तँ सभदिन...।
पत्नीक विचार सुनिते जगरनाथ कक्काक मनक संकल्प शक्ति सेहो सक्कत भेलैन, जइसँ मनमे उठलैन जे जहिना अपन जिनगीक भारकेँ अपना कन्हापर कन्हेठ अपन जिनगीक विचारकेँ पालैत-पोसैत अखन धरि एलौं, तहिना...।
अखन धरिक जिनगीमे जगरनाथ काका अपन पूर्णताकेँ सभ दिन देखैत आबि रहल छैथ आ अखनो ओहिना देख रहला अछि जेहेन मन बना देखैत आबि रहल छला, तँए मनक तुष्टि विचारकेँ संतुष्ट केनहि छैन।
q शब्द संख्या : 1091, तिथि : 22 मार्च 2019


[i] पहिलकेँ
[ii] सम्पैतियेक
[iii] दुनियाँकेँ
[iv] उपअर्जित
[v] हुगली
[vi] उमेरक हिसाबे

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