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Friday, May 31, 2019

अगुताइ भेल_Jagdish Prasad Mandal_बेरमा, मधुबनी_सम्पादन एवम् संकलन- Umesh Mandal


अगुताइ भेल  
दस सालक पछाइत रघुनीबाबाक भाग्य जगलैन जे जीतन बाबा जकाँ एकठाम समटल परिवारसँ भेँट भेलैन। माने, पोता-पोती, बेटा-पुतोहुसँ एक घर-ऑंगनमे भेँट भेलैन। असगरेक दुनू परानीक जे घर-आँगन छेलैन ओ भरल-पुरल बुझि पड़लैन।
दस बजे भिनसुरका उखड़ाहाक समय, जेठ मासक अन्तिममे रघुनीबाबा फलबाड़ीक सेवामे लागल मने-मन सोचि रहल छला- यएह ओ समय छी जे पाँतरमे पैसल पियासे बटोहीक प्राण लइए, यएह ओ समय छी जइमे पाइनिक तृष्णासँ मालो-जालक आ आनो-आन जीव-जन्तुक जान जाइए। यएह समय ने हमरो आ हमर जिनगियोक जान-प्राण लइत अछि।
फलबाड़ीक हहरैत किछु गाछकेँ देख रघुनीबाबाक मन मानि गेल छेलैन जे जेठक ताप सन्ताप बनि जरूर अहू सबहक जीवन लेबे करत..! रघुनीबाबाक हृदय सिहैर गेल छेलैन जे एकरे जीवन किए, ओ तँ फलदाता छी, फलित तँ अपन होइए, तँए अपनो जीवन ने लेब भेल। जहिना रस्ता-बाट वा घाट-बाट मरल वा मरनासन्नक जीवनक ओगरवाही करैत ओगरवाह अधमरू जकाँ भऽ जाइए तहिना दारीमक अधमरू गाछक छाहैरमे बैस अपन जीवन रघुनीबाबा देख रहल छला।
दस बर्खक पोता, पेन्ट-शर्ट पहिरने बाबाक फलबाड़ी देखए आएल। ओना, प्राइवेट शिक्षण संस्थानक विद्यार्थी वोआजी, जेकरा शिक्षक सिखा देने छेलखिन आकि अपन संस्थानक बेवहारसँ सीख चुकल छल से नइ बुझि रहल छी। मुदा एते तँ भेबे कएल जे वोआजी रघुनीबाबा लग पहुँचल। ऐठाम एकटा बात आरो अछि, वोआजी, शब्द, अपना सभ बौआजी कहै छिऐ से नहि वोआजी शब्द अछि। आजुक परिवेशमे सभ कथुक नस्ल जहिना बदैल रहल अछि तहिना भाषा-भाषिक सेहो भइये गेल अछि। अंगरेजीक शब्द वोआआ तइमे जीलागल अछि तँए दोगला नस्ल भेने वोआजीशब्द अछि।
जेठक दसबजिया रौद, दारीमक गाछक अधमरू छाहैरमे बैसल रघुनीबाबा अपन पाँच कट्ठाक मछपोसा पोखैरकेँ सेहो देख रहल छला। छाती भरि मोट केचलीक संग चिलमिल इत्यादिक सुखल बोन-झाड़ पोखैरमे देख रहल छला। जहिना खुट्टापर मरल गाए देख पोसनिहार अपन दूधक आशा तोड़ि लइ छैथ, तहिना रघुनी बाबाकेँ सेहो टुटि रहल छैन।
पैछला शताब्दीक जे सातम-आठम दशकक बीचक समय, जे किसानक जागरणकाल छल। ओही समय रघुनीबाबा कौलेजक पढ़ाइ समाप्त करैत किसानी जिनगी जीबैक संकल्प लेलैन। जहिना दुनियाँक सभ कथुक गति-विधि अछि तहिना अपन जिनगीकेँ रघुनी बाबा शुरूहेसँ बनौने, दुनियाँक संग चलि आबि रहल छला। ओना, पोखरिक दशा देख टुटल मनमे खुशीक हिलकोर सेहो उठिये रहल छेलैन जे जे छुटि कऽ टुटि गेल छल ओहो अनुकूल समय पेबैक अन्तिम सीमापर पहुँचिये रहल अछि।
वोआजी बाजल-
बाबा, बहुत गरमी पड़ि रहल अछि, आब काज करैक समय नहि अछि।
ओना, आजुक परिवेशमे जे शिक्षण संस्थान सबहक रूतबा भऽ गेल अछि, ओ एहेन भऽ गेल अछि जे जेते नव-नव संस्था (शिक्षण संस्था) बढ़ि रहल अछि ओते नव-नव चालि-ढाइलिक संस्कारो आ मनुखोक निर्माण भइये रहल अछि। खाएर जे अछि, वोआजीकेँ तइसँ कोन मतलब। बेठेकान जिनगीकेँ ठेकान लगा जीबि लेब तेतबे मतलबक जरूरत जहिना सभकेँ अछि तहिना वोआजीकेँ सेहो छइ। ओना, रघुनीबाबाक मनमे ईहो उठि रहल छेलैन जे अपना सभ ने चूरा-दही-चिन्नी-अचार पबै छी आ बारह मासोक आ तेकर अधिया रीतुओ आ चारि मासक मौसमोक बारहमासा, छहमासा आ चरिमासा ओछाइनपर पड़ल-पड़ल गबिते छी, मुदा धरतीपर एहनो तँ देश अछिए जैठामक बासीकेँ जेहेन अपना सबहक जेठुआ रौद होइए तइसँ बेसिये रौद सालो भरि होइ छै, जहिना माघक शीतलहरीक जाड़ होइए तेहेन जाड़सँ ऊपरेक जाड़ सालो भरि–माने तीन साए पेंइसैठो दिन होइए। तहूठाम जँ मनुख जीवन धारण केनहि अछि, तइसँ नीक तँ अपना सभ, सभ दिनसँ रहिते आबि रहल छी। मुदा बाल बोध पोताकेँ एते भरिगर विचार देब उचित नहि। मनमे बेसी दाव पड़ि जाइत। तहूमे अखन तक भरिपोख गपो-सप्प ने भेल छेलैन, जे तहूसँ किछु अनुमान लगैबतैथ। तखन तँ भेल जे जइ हिसाबे वोआजी बाजल तइ हिसाबक उत्तर देबे ने नीक हएत। सोझ-साझ जोड़-घटाउकेँ अनेरे दसमलवमे टुकड़ी-टुकड़ी करब उचित नहि। ओ तँ अपन जीवन सूत्र छी, जेहेन जीवन तेहेन सूत्र। अखन तँ वोआजी अठमा क्लासक विद्यार्थी अछि। तहूमे जँ रघुनीबाबाक जुग-जमानाक रहैत तँ ओहिना धड़िया पहिर पीपरक गाछ लग गुल्ली-डण्टा खेलैत, नहि तँ फुटबॉल-भोलीबॉल खेलाइत रहैत। ओना, वोआजीकेँ देख रघुनीबाबाक मनमे ईहो उठैत रहैन जे एहेन समयमे जीन्स पेन्ट पहिरने अछि आ आदेश..! मुदा पोता तँ पोते छी, तेसर पीढ़ीक निच्चाँकेँ तीन पीढ़ी ऊपर जेबाक छइ।
वोआजीक विचारमे विचारकेँ मिलबैत रघुनीबाबा बजला-
बौआ, काज तँ छोड़ि कऽ बैसले छी। तहूमे भगवान तेहेन फेरी लगा देलैन जे अधासँ बेसी फलक गाछ सुखि जाएत।
बाबाक बात सुनि बाल-बोध वोआजीकेँ जिज्ञासा जगल, बाजल- बाबा! ओ पुबरिया खेत जे अछि, तइमे की लगौने छी?”
माछ पोसैक पोखरिक गति देख रघुनीबाबा मने-मन कुही हुअ लगला। महाभारतक अन्तिम दिनक लड़ाइ जकाँ बाबाक मन अपन जीवनक संघर्षमे ओझराए लगलैन। अनेको विचार घनघोर बरखा होइत कालक पाइनिक बुलबुला जकाँ मनमे उठए लगलैन। 1970 ई.मे कौलेजसँ निकललौं। जे किछु अध्ययन कौलेजमे भेल ओ स्वावलंबी जीवनक भेल। ओना, स्वावलंबी सेहो अनेको रंग-रूपक अछिए मुदा से सभ किछु ने। अपन पैत्रिक जमीन रघुनीबाबाकेँ अपनो छेलैन। किसानक जागरण काल छल...। मिथिलांचलक किसान कोसी नहैरक मुख्य शाखा कोसी धारसँ जयनगर तक जुड़ि गेल देख आशान्वित भइये गेल छल। इलाकासँ रौदी मेटा जाएत.., नहैरक सस्ता पानि सालो भरि खेती-बाड़ी लेल हएत.., जनकजीक मिथिला पुन: स्थापित हेबे करत...। तैसंग रंग-रंगक आशाक गीतो समाजमे गओले जाइ छल- छिटा-कोदारि ले चल-चल...।
ओही उठानिक समय रघुनीबाबा सेहो पाँच कट्ठा खेतकेँ पानिमे उसरैग देलैन। पोखैर खुनबैमे बेसी भीड़ो ने भेलैन, किएक तँ गामक बीचमे खेत छेलैन, लोककेँ माइटिक खगता छेलैहे, खुनि-खुनि लऽ गेल। जइसँ मछपोसा पोखैर बनि गेल।
रौदी तँ अपना ऐठामक बुझल अछिए जे 19म शताब्दीमे पचीस बेर भेल। औसतन चारि बर्खमे एकबेर। तहिना बाढ़िक उपद्रव सेहो इलाका-इलाकामे रहबे कएल। जइसँ सदिकाल किछु-ने-किछु उजार-पुजार होइते आबि रहल अछि। असुविधाक चलैत रघुनीबाबाकेँ कहियो समुचित बेवस्था नहि भऽ सकलैन जे समुचित उपजा पोखैरसँ पबितैथ। बरसात समय पानिसँ भरै छल, अखुनका जकाँ रंग-रंगक माछोक किस्म नहियेँ छल, अखाढ़क जीरा कातिक तक कते उमझत। पोखैर सुखि जाइ छेलैन। ओना, अपना बोरिंग रहैन, मुदा तेलबला दमकल रहने खर्च बेसी भऽ जाइ छेलैन, तँए सम्हारि नै पबै छला। मुदा बिजली भेने मन पुन: अपन जुआनीक संकल्प जगि चुकलैन अछि। मन मानि चुकल छैन जे अगुताइ भेल...।
हारि-जीतक बीच रघुनीबाबा छेलाहे, पोताकेँ कहलैन-
बौआ, आगू साल फेर अबिहह। पुरना रहुओ आ गाइयक दूधो-दही भरि मन खुएबह।
वोआजी बाजल- अच्छा चलू। जे भेल सेहो बड़बढ़ियाँ, जे नइ भेल सेहो बड़बढ़ियाँ। काल्हि-ले काल्हि विचारि लेब।
पोताक विचारमे अपन विचार मिलिते रघुनीबाबाक मनमे तीन पीढ़ी[i] ऊपरसँ तीन पीढ़ी निच्चाँ धरिक रूप-रेखा आबए लगलैन। एबो केना नहि करितैन, मनुख मशीन नइ ने छी जे सालेमे सात-गुणा बढ़ि जाएब, मनुख तँ मनुख छी। हँ! तखन माल-जाल जकाँ सात पीढ़ीमे तँ नहि, मुदा मनुख तीन पीढ़ीमे सोलहन्नी केचुआ जरूर छोड़ए। मुदा बाबाक मनमे ईहो शंका होएत रहैन जे नवतुरिया छौड़ासँ जँ मुँहमिलानी नइ राखब तँ अनेरे बकठाँइमे समय जाएत। विदा होइत बजला-
चलह।
q शब्द संख्या : 1054, तिथि : 22 फरवरी 2019


[i] वंशगत परिवारमे

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