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Friday, May 31, 2019

धुआ साड़ी_Jagdish Prasad Mandal_बेरमा, मधुबनी_सम्पादन एवम् संकलन- Umesh Mandal


धुआ साड़ी
जिनगीक पचपनम बर्खमे आइ कीर्त्तिनाथ स्वाधीन-जिनगीक साँस लेलैन। पाँच बजे भोरक समय, कीर्त्तिनाथक नीन टुटि गेल छेलैन मुदा ओछाइनेपर पड़ल छला। नीन टुटिते अनायास मनमे अपन स्वाधीन-जिनगीक भविसक विचार खसलैन। ओछाइनपर सँ उठला पछाइत जिनका जे जीवन क्रिया सबहक रूप मनमे अबैए, कीर्त्तिनाथकेँ से नइ एलैन, ओछाइनपर पड़ले-पड़ल अखन धरिक जिनगी मनमे धमैक उठलैन। धमैकते मन कहलकैन, ‘आइ समाजमे हम ओहन बेकती छी जे समाजकेँ सभ दिन सेवा करैत एलौं, मुदा से केते लोक बुझि रहल छैथ। रंग-बिरंगक लोकक बीच बनल समाज अछि, समाजमे जहिना समाजक एक टुकड़ी लेल नीक सेवा तहिना दोसर लेल नीक कुसेबो भइये जाइए, तैठाम समाजक बीच आड़ि-मेड़ तँ पड़िये जाइए आ मुँह फुल्ला-फुल्लीसँ लऽ कऽ केस-मोकदमा, मारि-पीट, गारि-गरौवैल सेहो होइते रहैए। तँए नीक-बेजाए-क बीच जीबैले मजबूरन लोक बाध्य भइये जाइए..!’
कीर्त्तिनाथक मन समाजक रमझौआसँ आगू बढ़ि अपन भविसक राम-धाम दिस विदा भेलैन। जिनगीक अन्तिम पड़ाव तकक कुघट सीढ़ीक अन्तिम सीढ़ी कीर्त्तिनाथ काल्हि टपि गेला। काल्हि तकक जिनगी जे अनेको छान-बान्हमे पड़ल छेलैन, रसे-रसे ओ सभटा मनसँ पड़ा गेलैन। माने, पैंतीस साल पूर्वमे भेल अगिलग्गी केस[i]क फैसला काल्हि भेल। ओइ केसक जे मुद्दइ छैथ ओ एकटा विधवा हरिजन, जनिक उम्र अस्सी बर्खसँ ऊपर छैन। ओना, कीर्त्तिनाथकेँ खाली बुझलेटा छेलैन जे एक खण्ड धुआ साड़ी रंगिया लेत तखन ओ कोर्टमे अपन विचार नकारत। सएह भेबो कएल। ओछाइनेपर पड़ले-पड़ल कीर्त्तिनाथ मनमे रोपि नेने छला जे घरसँ निकलला पछातिक पहिल काज यएह भेल जे रंगियाकेँ पुछबै- अपन जे जिनगी गमेलौं से तँ गमेबे केलौं, जे अनको कम रगड़ा नइ देलिऐ मुदा तइसँ भेटल की?’
अपन विचारकेँ कर्मक दिशामे बढ़िते कीर्त्तिनाथक मनमे खुशीक लहर लहैर उठलैन। बदलैत-बदलैत कीर्त्तिनाथक विचार तेना बदलए लगलैन जे अपन जिनगीक हर रूपमे बदलावक झलकी उठए लगलैन।
ओछाइनपर सँ उठि कीर्त्तिनाथ अपन नित्य-कर्म दिस बढ़ैत पत्नीकेँ कहला-
बहुत काज सभ अछि तँए चाह ओतेकालमे जरूर बना लिअ जेतेकालमे हम मुँह-हाथ धोइत नित्यकर्मसँ निवृत्त हएब।
ओना, अखन धरि कीर्त्तिनाथकेँ जेहेन प्रेमस्वरुप पत्नीक बेवहार हेबा चाही तइमे कमी जरूर रहलैन, जे बात कीर्त्तिनाथ तहेदिलसँ बुझितो छैथ मुदा ऐगला उलझनक आगू पत्नीक बेवहारकेँ गौण बुझि मनमे दाबि कऽ रखने रहला। एकाएक उगैत समस्याकेँ देख कीर्त्तिनाथक मन हरहरा कऽ ठमकए लगलैन। एकर कारण भेल जे बाहर निकलैसँ पूर्व सभसँ पहिने परिवार आ परिवारक समस्या आगू अबैए, मुदा तोहूसँ पहिने अपन मन-बुधिक अनुकूल अपन वैचारिक समस्या सेहो रहिते अछि। माने भेल जे कीर्त्तिनाथक मनमे रंगियासँ जे पुछैक विचार छैन तइसँ पहिने पत्नीक जे अखन धरिक बेवहारक कमी आँखिक सोझमे रहलैन, नजैर तैपर पड़लैन।
पत्नीक बेवहारपर नजैर दौड़बैसँ पहिने कीर्त्तिनाथ अपनापर अपने नजैर नजरौला तँ अपनो दोख ओहिना बुझि पड़लैन जहिना आन-आनमे देख रहल छला। एकाएक मनमे हरहरा कऽ अखन धरिक सभ किछु हारल-हारल सन बुझि पड़लैन। सभठाम जखन दोखे-दोख अछि, तैठाम दुख बाँटब कि मेटब बाल-बोधक खेल थोड़े छी। तलावक तलावमे आकि धारक मोनिमे बसैबला गोहिक मुँह जहिना गहुआएल रहैए तहिना ने सभठाम सभमे अछिए..!
कीर्त्तिनाथक मनमे अपन जिनगी अपना अनुकूल जीबैक संकल्प जगलैन। तेकर कारण ई भेल जे जइ स्तरसँ समाजकेँ नजैरमे रखि सेवा भावना जगेलौं ओइ स्तरक समाज वैचारिक रूपमे नइ छल। ओना, एहनो होइते अछि जे परती-परात जमीनकेँ खिलतोड़ होइते ओइमे ठेकानोक वा बेठेकानोक जँ कोनो बीआ छीटबै तँ ओ धुधुआ कऽ जनैमते अछि, समाजोक बीच तहिना तँ होइते अछि।
नव जागरणक भोर, कीर्त्तिनाथक छैन्हे तँए अपन जिनगीक मोड़ केतए-केतए छैन आ पत्नीक बीच केतए छैन, ओइ मोड़केँ मोड़ैक की उपाय अछि इत्यादि-इत्यादिपर नजैर दौड़ए लगलैन। जे कीर्त्तिनाथ आजुक पहिल काज रंगियासँ पुछैक विचार मनमे केने छला ओ मनेमे दबा गेलैन आ पत्नीक पैछला जिनगीक बेवहारपर नजैर दौड़ैक उपक्रम करए लगलैन। मुदा पत्नीपर नजैर दौड़बैसँ पहिने कीर्त्तिनाथ अपनापर दौड़ौलैन तँ बुझि पड़लैन जे दोख अपनो अछि। पत्नीक मनकेँ कहियो अपना मनमे पूर्णरूपेण मिलए नहि देलिऐन जइसँ सभ दिन खण्डित रहली। की जानिकऽ नहि मिलए देलिऐन आकि परिस्थितिवश बधो छल..? समाजक बीच फँसल परिवर्त्तनक रणक्षेत्र, जइमे समाज दू फाँक भऽ दुनूकात ठाढ़ भऽ गेल! तैठाम अपन की दायित्व बनैए? एहेन परिस्थितिमे परिवार अभावग्रस्त हेबे करत, जे पति-पत्नीक मनक दूरी बनबैक मूल कारण सेहो बनबे करत किने। खाएर जे भेल ओ काल्हि धरिक जे परअधीनक जीवनमे छेलौं तँए भेल। आइ स्वाधीन-जिनगीक सीमापर ठाढ़ छी, तँए विचारशील बाट पकैड़ चलैक अछि। अन्हा-गाहींस जँ जिनगीकेँ चलाएब तँ ओ कहियो थीड़ी-थमन नइ हएत।
नव भोरक नव विचारक फुलवाड़ी दिस कीर्त्तिनाथ विदा भेले छैथ तँए अपन पछुआएल जिनगीक हारि-जीतक झोराकेँ कन्हासँ उतारि, नव संकल्पक संग अपन जिनगीकेँ संकल्पित बनबए लगला।
अखन धरि नमहर-नमहर काजक संकल्पकथा कीर्त्तिनाथक मनमे उगडुम करिते छेलैन। परिवारक बीच क्रियाशीलता अनैमे पहिने अपन समैयक क्रियाशीलतासँ जोड़ए पड़ै छइ। कीर्त्तिनाथक मनमे एकाएक उठलैन- ओछाइनसँ उठि पहिल डेगक बीच छी, जहिना पत्नीकेँ चाह बनबैक काजमे बान्हि देलिऐन तहिना अपनो चाह बनबैक समय बुझिते छी, तेतबे समय ने अपनो अपन नित्य कर्मसँ निवृत्त हेबाक भेल। तैबीच जँ अपने मुँह तकैत पत्नीक डेग-डेगकेँ गिनए लगब तखन अपन जिनगीक क्रिया की भेल? खाएर जे भेल से भेल, ओ तँ पति-पत्नियेँक बीचक बात भेल किने, तँए नान्हिटा भेबे कएल। किएक तँ दुनू गोरे मड़बापर बैस आगि-पानि छुबि शपथ खेनहि छी जे दुख-सुख काटि ता-जिनगी संगे रहब। देखते छी, तीन दिनक संगी जे कोनो रस्ता-बाटक होइए तइमे तँ लोक हेरा-फेरी करि रक्का-टोकी करबे करैए जे तूँ चोर ते तूँ चोर मुदा तइयो–कहितो-कहितो–तँ संग मिलि रस्ता कटिते अछि। ऐठाम तँ सहजे अपन घरक बात भेल। ओना, पत्नियोँ कनसोहवाली छथिये। कोर्टमे केसक फैसला होइसँ पहिनहि बुझि गेल छेली जे केस हमहीं सभ जीतलौं। माने हमरे पार्टी जीतल। एकर गदगदी मनमे रहबे करैन, जइसँ कोर्ट-कचहरीक हवा-पानिमे पत्नीक विचार फँसले रहैन तँए पतिक आदेशकेँ ओही रूपमे क्रियान्वित केलैन।
चाह पीब कीर्त्तिनाथ जखने घरसँ विदा भेला कि अपन इतिहासक संग पैछला समाजोक इतिहास आँखिक सोझमे एलैन। रंगिया गामक बेटी छी, मात्र दूटा सन्तान भेला पछाइत वेचारी विधवा भऽ गेल। पाँच हाथक हरगर-लमगर देह-दशा छेलइ। बुधिसँ रंगिया ओत्तै छल जेतए जिनगी भरि बकरी चरौनिहार-चरौनिहारिक रहै छइ।
पैंतीस-चालीस बर्ख पूर्व मिथिलांचलमे जमीन्दारीक जाल-फाँस तोड़ैक जोरदार हवा बहल। जइसँ विचारक संग बेवहारोमे बदलाव आएल। सभ गाममे सभ रंगक जमीन्दारीक जाल-फाँस छेलैहे। ओही जमीनक जालक लड़ाइ गाममे भेल। जमीन्दार दिससँ अगिलग्गी केस ठाढ़ कएल गेल। ठाढ़ करैक उदेस ई छेलै जे समाजक (गामक) ओइ शक्तिकेँ तेना मसैल दिऐ जे समाजक नव रूप दिस आँखि नइ उठतै। पैंतीस आदमीपर अगिल्लगी मुकदमा कएल गेल जइमे रंगियाकेँ खेबो-पीबोक आ खेतो-पथारक लोभ देल गेलइ। बिनु लिखा-पढ़ीक तत्काल किछु जमीन देलो गेलइ। अबूझ रंगिया, अगिलग्गी केसक मुद्दई बनि ठाढ़ भऽ गेली।
आइ अगिलग्गी केसक एक दिसक जेतेक कर्त्ता-धर्त्ता माने जमीन्दारसँ लऽ कऽ भाँज-भजैत पुरनिहारक संग केसक सभ गवाहो सभ छल ओ मरि गेल आ तैसंग मुद्दालह दिससँ सेहो पाँच बेकती मरि गेला मुदा बँचल तीस बेकती जे जीबै छैथ ओ तँ अपन ऐतिहासिक रूप देखिये रहल छैथ किने।
अथबल दुआरे सवारियेसँ रंगिया कोर्ट गेल छेली। कोर्टसँ आबि रंगिया दरबज्जाक एकचारीमे ओछाइनपर पड़ल मृत्युक बाट देख रहली अछि...।
कीर्त्तिनाथक मनमे जे प्रश्न छेलैन ओ मनक फुलवाड़ीसँ फलवाड़ीमे केतौ नुका गेलैन। रंगियाकेँ देखते कीर्त्तिनाथ बजला-
रंगिया..!”
अपन टुटैत जिनगीक बीच रंगिया कनैत बाजल-
भैया, तोरे सबहक देल धुआ साड़ी पहिर जाबे जीबै छी ताबे पहिरबो करब आ मरैकाल अहीमे लटपटाएल मरबो करब।
कीर्त्तिनाथ रंगियाक मुँह दिस टकटक देखैत रहला।
q शब्द संख्या : 1132, तिथि : 06 मार्च 2019


[i] सेशन केस

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