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Friday, May 31, 2019

राजरोग_Jagdish Prasad Mandal_बेरमा, मधुबनी_सम्पादन एवम् संकलन- Umesh Mandal


राजरोग
जेठ मासक दस बजेक समय। एक्के-दुइये रस्तापर दच्छिनसँ उत्तर-मुहेँ लोक सभकेँ रामसरूप भाय जाइत देख रहल छला। अखन धरि बिहड़िया छोटो-छीन हाल[i] नइ भेल छल तँए समयमे तापक तेजपनो बेसी आ तीखपनो-झड़कपन छेलैहे।
रामसरूप भाय अपन खेतमे रामझिमनी तोड़िये रहल छला कि रौदक झड़कसँ मनमे तेना झड़कबाहि उठलैन जे कम्मे काजरामझिमनी तोड़ब–शेष छेलैन तैयो छोड़ि कऽ ठण्ढाएब नीक बुझि पड़लैन। मुदा ऐ भाग-दौड़क दुनियाँमे जेते काज निपैट जाइए, माने सम्पन्न भेल जाइए ओते भाग-दौड़क रस्तो तँ कमबे करैए, ई सोचि रामसरूप भाय काजकेँ छोड़ि जाइयो नइ चाहै छला। मने-मन विचार केलैन जे जहिना जट्ठर पानिकेँ गर्म होइमे आगिक ताउक संग समैयो बेसी लगैए तहिना जँ किछु समय आमक गाछतर ठण्ढाए लेब तँ पछाइत जे शेष काज सम्पन्न करब ओइसँ मनो ने अकछाएत आ कम्मे समयमे काजो भऽ जाएत।
यएह सोचि रामसरूप भाय खेतक काज छोड़ि रस्ता परहक आमक गाछक निच्चाँमे छहराइले पहुँचला। रस्ताक किनछैरमे आमक गाछक जड़ि अछि मुदा ओ सौंसे रस्ताक–माने रस्ताक चौड़ाइ भरि–अकासोमे पसरल अछि आ निच्चाँमे छाहैरियो करिते अछि।
आमक गाछक निच्चाँमे बैसल रामसरूप भाइक मन जेना-जेना जीराए लगलैन तेना-तेना विचारक[ii] नव-नव रूप मनमे सेहो उठए-बैसए लगलैन।
जिड़ाइत-जिड़ाइत–ठण्ढाइत-ठण्ढाइत–जखन रामसरूप भाइक मन पानि-पानि भेलैन तखन ऐगला काज–माने रामझिमनी तोड़ब–केँ सम्पन्न करैक विचार एकाएक जोर मारलकैन।
विचारक जोरसँ काजक जोर मने-मन जोड़ाए लगलैन। जोड़ाइत-जोड़ाइत रामसरूप भाइक मन जिनगीक धारमे पहुँच गेलैन। काजेक बाधा जिनगीक बाधा बनि सबहक जिनगीक गतिकेँ बाधित करैए जइसँ ओकर जिनगी राइ-छित्ती होइत राइ-छित्ती भाइये जाइए...। तहीकाल सड़कपर एक्के-दुइये लोककेँ दच्छिनसँ उत्तर-मुहेँ लफड़ल अबैत लोक सभकेँ रामसरूप भाय देखलैन। लोकक चालिसँ रामसरूप भायकेँ बुझि पड़लैन जे ई चालि नियमित चालि नहि, कोनो खास अवस्थाक चालि छी..! मनमे उठलैन जे भरिसक केतौ-किछु भेल हेन तँए लोक देखए जा रहल अछि।
रामसरूप भाइक मनमे आने सभ जकाँ भेलैन जे केकरो पुछि दिऐ जे केतए सभ जा रहल अछि वा अहाँ केतए जाइ छी।मुदा लगले अपने मन रोकलकैन जे हो-न-हो जँ कोनो एहेन घटना गाम-समाजमे भेल हुअए, जइ आगू अपन काज[iii] महत्-हीन बुझि पड़ए, तखन तँ अपन काज बाधित करइ पड़त। लोको लाज तँ किछु छी। जँ से नइ छी तँ पति-पत्नीक बीचक प्रेमलीला सार्वजनिक जगहपर किए ने होइए। तैसंग मनमे ईहो उठैत रहैन जे जँ दुनियाँक गति-विधिसँ सम्बन्ध-सरोकार नइ राखब तखन तँ दुनियाँ आगू बढ़ि जाएत आ अपने पाछूमे टिटियाइत रहब।
असमंजसमे पड़ल रामसरूप भाइक मनमे भेलैन जे गाछक निच्चाँमे सड़कपर बैसले छी आ जे कियो जा रहल अछि सबहक मुहसँ अवाज सेहो निकलिये रहल अछि...।
जेना थाकल-ठेहियाएल लोक हवा आ छाँह पेबिते अलिसा जाइए तहिना आँखि बन्न करि साधक जकाँ कानक दरबज्जा खोलि रामसरूप भाय गाछक जड़िक भागमे ओङ्गैठ गेला। तहीकाल टिटही आ कोइलीकेँ गप-सप्प करैत आभास पौलैन। आँखि खोलि देखबो केला। दुनू गोरे रस्ता टपि रहल छेली। ओना, टिटहियो आ कोइलियो दुनू गोरेक उपनाम छिऐन। असल नाओं छिऐन- तेतरी आ मधुरिया।
प्रेमी-प्रेमिकाक बात थोड़े छी जे कियो फुसराहैट करत। गामक बात छी तँए अपन-अपन जीवन्त आचार-विचारक हिसाबे बजबे करत। टिटही टाँहि दैत बजली-
बहिन, लोको अखज होइए..! कहू जे पनरह दिन पहिनहि सुनलौं जे राघोकाका अस्पतालेमे मरि गेला आ आइ सुनलौं हेन जे निरोग भऽ कऽ एला हेन।
तीन मास पहिनहि राघोकाका पटना अस्पतालमे भर्ती भेल छला, के-ने-के हवामे उड़िया देलक जे राघोकाका इलाजेक दौड़मे मरि गेला।
सामंजस करैत कोइली बाजल-
बहिन! लोककेँ मरैत तँ देखलिऐ हेन मुदा मरल लोककेँ जीबैत नइ देखने छेलौं, से तँ कम-सँ-कम देख लेब किने।
गप-सप्प करैत दुनू–टिटही-कोइली–आगू बढ़ि गेल, जइसँ रामसरूप भाइक मनक पह फटलैन। राघोकाका ऐठाम सभ जा रहल अछि, से स्पष्ट भऽ गेलैन।
गाछक छाहैरसँ उठि रामसरूप भाय मने-मन विचारलैन जे अखन देखबैयाक ढबाहि लगले अछि, हाँइ-हाँइ कऽ अपन काज सम्हारि पाछू-पाछू चलि जाएब। यएह ने बेसी-सँ-बेसी हएत जे पाछू जाएब तँ पैछला बात सुनब, मुदा एक्के-दुइयेक मुहसँ तँ सेहो ने एक्के-दुइये पैछला बात निकलबो करबे करत।
राघोकाका सुभ्यस्त परिवारक छैथ। ओना, सुभ्यस्तक अनेको रूप अछि, जेना पढ़ल-लिखल सुभ्यस्त, धन-सम्पैतिक सुभ्यस्त, समांगक सुभ्यस्त इत्यादि-इत्यादि। मुदा ऐठाम से नहि, राघोकाका धन-सम्पैतिक सुभ्यस्त लोक छैथ। ओना, धनोक सुभ्यस्त-परिवार दू रंगक सेहो होइते अछि। पहिल श्रम-सँ-श्रमित धनक सुभ्यस्त आ दोसर होइए बिनु-श्रम-सँ-श्रमित सम्पैतिक सुभ्यस्त। राघो कक्काक सम्पैत बिनु-श्रमित छेलैन। नोकर-चाकरक बीच राघो कक्काक जीवन शुरू भेलैन। नोकरी करैक रहैन नहि, तँए पढ़ैमे बेसी मेहनतक बेगरतो नहियेँ छेलैन। बैसारीक जिनगी, तँए बैसारी काज दिस राघोकाका झुकला। खाइ-पीबैक कमी कहियो ने भेलैन। पिताक परोछ भेला पछाइत जखन राघोकाकाकेँ अपना ऊपर भार पड़लैन तखन एक-एक करि पिताक देल सम्पैत टुटए लगलैन। टुटैत-टुटैत ओतेक टुटि गेलैन जे भीख मंगैक नौबत राघोकाकाकेँ बनि गेलैन।
ओना, दू रंगक गुण अखनो राघोकाकामे छैन्हे। पहिल, सभ साजो बजबैक (पुरान साज, जेना- हारमोनियम, तबला इत्यादि) आ चित्रकलाक ज्ञान सेहो भरपूर छैन्हे। सभ दिसक दरबारी ठाठ-बाठ रहने केतौ जाइक जरूरत नहि रहलैन, जइसँ अछैते गुणे निर्गुन बनि गेला...। तही बीच उत्तरसँ दच्छिन-मुहेँ अगिलबहान भाय पास करैत रहैथ। ओना, रामसरुपो भाय आँखि ताकि चुकल छला मुदा काज करै दिस बढ़ल नहि छला। अगिलबहानक माने रघुवीर भाय, अगिलबहान गाममे लोक अही दुआरे रघुवीर भायकेँ कहै छैन जे गामक कोनो घटनाक समाचारकेँ ओ अपन विचारानुकूल प्रचारित-प्रसारित करै छैथ। भगत भगतैक जे रूप हुअए मुदा अगिलबहान भाय ओकरा समाजिक नजैरसँ देखै छैथ, जइसँ समाजक समरूप सदिकाल हिनक ठोरपर रहिते छैन। रामसरूप भाय सेहो बुझै छैथ जे अगिलबहान भायसँ सभ बात गहराइसँ बुझि लेब। ...रामसरूप भाय बजला-
भायजी, किमहर-किमहर टहैल रहल छी?”
कहबियो छै जे गाए-गौरुक मिलान तँ ठेहुनो पानि दुहान, तहिना भेल। रामसरुपो भायकेँ लोकक ढबाहिक बात बुझब छेलैन आ दोसर दिस अगिलबहानो भायकेँ अधिक-सँ-अधिक लोक तक विचार पहुँचाएब छैन्हे।
रामसरूप भाइक विचारक नॉंगैर पकैड़ अगिलबहान भाय बजला-
किमहर-किमहर की टहलब जे गामे लोकक तेहेन चकरचालि[iv] देखै छी जे अछैते औरुदे सभ मरैले करमान लगल अछि।
अगिलबहान भाइक विचार रामसरूप भाय नीक जकाँ नहि बुझि पेला तँए अपनाकेँ संयमित करैत बजला-
से की, भाय साहैब?”
दिलखोलि अगिलबहान भाय बजला-
बौआ, हम ओहो दिन राघो कक्काक देखने छिऐन, जखन रण्डी नचबै छला आ ईहो दिन देखलौं जे बेटा सभकेँ ने स्कूल देखा सकला आ ने सेवे कऽ सकला। बचकानीए उमेरमे ओ सभ दिल्ली धऽ लेलकैन। रोडक काज–सड़क बनबैक काज–सँ जीवन शुरू केलक। कम कमाइ तँए कम्मे रूपैआ घर पठबै।
बिच्चेमे रामसरूप भाइक मुहसँ निकललैन-
बाह बेटा..!”
अगिलबहान भाय विचारकेँ मोड़ैत बजला-
औझुके बेटा ने काल्हि बापो होइए, राघोकाका की भेला?”
प्रश्न भारी बुझि पड़लैन आकि की अगिलबहान भाइक ऐगला विचार बुझै दुआरे, रामसरूप भाय बकर-बकर मुँह देखैत चुपे रहला। अगिलबहान भाय बजला-
कियो-ने-कियो राघोकाकाकेँ कहि देलकैन जे बेटा सभ तेते कमाइए जे फ्लैट कीनत। यएह गरमी हुनका मनमे तेना उठि गेलैन जे पहिलुका सभ केलहा-खेलहा मन पड़ि गेलैन।
अगिलबहान भाइक मुँहक बात केलहा-खेलहासुनि रामसरूप भाय बिच्चेमे टोकि देलखिन-
से की भाय साहैब?”
अगिलबहान भाय मुस्की मारि मुस्कियाइत रामसरूप भाय दिस नजैर गड़ा मुस्की मारए लगला।
रामसरूप भाय टोकलैन-
भाय साहैब, अपने गुड़-चाउर खाइ छी आ हमरा सुदामा जकाँ सुखलो चाउर नहि!”
जहिना कोनो विचार वा काजकेँ जड़ि-मूलक बोध बनाएबे ओकर रस लेब होइए तहिना रसिक बनि अगिलबहान भाय बजला-
तीन मास पहिने राघोकाका ओछाइनेपर पड़ल खूब जोर-जोरसँ कानए लगला। दिल्लीसँ दुनू बेटा आबि पटना लऽ गेलैन। पाँच घन्टा धरि लगातार परीक्षणक पछाइत डॉक्टर बुझि गेला जे शारीरिक रोग तँ तेहेन नइ छैन मुदा मानसिक रूपेँ जवानी डिरिआइ छैन।
जवानी डिरिआइ छैन सुनि रामसरूप भाय बिच्चेमे टोकैत बजला-
जवानी डिरिआएब की भेल?”
रामसरूप भायकेँ बुझबैत अगिलबहान भाय बजला-
अखन दोसर बात चालबह तँ पहिलुका तर पड़ि जाएत। तँए सरकारी ऑफिसक फाइल जकाँ नहि करह, अखन राघो कक्काक बात सुनह।...डॉक्टर जवाब देलकैन जे अहाँकेँ कोनो रोग नहि अछि। अपने बाजू जे की सभ होइए।
तैपर राघोकाका कहलखिन-
डाक्टर सहाएब, पचीस बर्ख पहिने एकटा डाक्टर कहि देने छेला जे अहॉंकेँ राजरोग भऽ गेल अछि, तँए पथ्य-पानि ठीक राखब।
राघो कक्काक बात डॉक्टर साहैब बुझि गेला। बजला-
तीन मासक बेडरेस्टो आ बेडफूडोक ओरियान करि दइ छी।
आशा हारि आकि आशा जीत राघोकाका बजला-
बड़बढ़ियाँ।
वएह तीन मासपर पटनासँ गाम एला अछि।
q शब्द संख्या : 1274, तिथि : 10 मार्च 2019


[i] बर्खाक-पानिक
[ii] कार्यगत विचार
[iii] रामझिमनी तोड़ब
[iv] कएल जिनगी

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