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Friday, May 31, 2019

धनखेतीक बैगन_Jagdish Prasad Mandal_बेरमा, मधुबनी_सम्पादन एवम् संकलन- Umesh Mandal


धनखेतीक बैगन      
विचारपुरक हाट। नमगर-चौड़गर आँट-पेट हाटक अछिए। तँए ने एकहट्टा नै कहि बहुहट्टा कहल जाइए। एकहट्टा भेल ओहन हाट जइ हाटमे एक्के रंगक वस्तुक खरीद-बिक्री केनिहार होइथ। भलेँ ओ रंग-रंगक डिजाइनमे सइयो रंगक किए ने हुअए। मुदा से नहि, हरिहर क्षेत्रक हाट जकाँ हाथी-घोड़ासँ लऽ कऽ चिनियाँ-मुनियाँ[i] तकक खरीद बिक्री विचारपुर हाटमे तहियेसँ होइए जहियासँ हाट लगल। ओना, केते लोक हाटक सम्बन्धमे ईहो कहै छैथ जे विचारपुरक हाट बहबाँड़िक हाट छी! नीक लोकक हाट नइ छी।
नीक लोकक माने जानकार लोक। जानकार भेला ओ, जेकर मात्र एक वस्तुक उदाहरण लिअ। पाकल केरा अछि, कियो प्रसाद बुझि बँटितो छैथ आ कियो परसाद मानि पेबितो छथिए। मुदा से नहि, जानकार भेला ओ जे केराक वंश-वृक्षसँ लऽ कऽ धरतीपर केना स्थापित भेलसँ लऽ कऽ पातपर भोज-भात, फूलसँ बिआही मरबा सजबैक संग-संग भोज्यक अमृत अंशकेँ–पौष्टिक तत्त्वकेँ–जानि ओकरा अंगीकार केनौं छैथ आ करैबतो छैथ। जनकपुर राजधानीक मिथिलामे केराक ओ महात्म जानि महात्मा/चिन्तक केराकेँ नबेद[ii] स्वरूप सभठाम सभ जगह स्थापित करैत भूमिमे एहेन स्थापित केने छैथ जे सौंसे मिथिला पसरले अछि। भलेँ ओ आधुनिक परिवेशमे बिरहा किए ने गेल हुअए। बिरहाइक माने भेल उपैट जाएब।
तीस साल बंगलोरमे इंजीनियरक जिनगी बितौला पछाइत नवीननाथ सेवा निवृत्त भऽ गाम एला। ढहल-ढनमनाएल घर सभकेँ तोड़ि नबघर-आँगन सेहो बना लेलैन।
जिनगीक अन्तिम पड़ावमे पहुँचल नवीननाथ शहरी जिनगी आ गामक जिनगीक बीच जे अनेको धारा प्रवाहित होइत बीच-मझधारमे जहिना कियो उगडुम करैत रहैए तहिना नवीननाथ सेहो अपन जिनगीक धारमे उगडुम जखन करए लगला तखन निर्णयात्मक मनमे विचार जगलैन जे नइ किछु जानी तँ बहुजन मानी। माने भेल जइ समाजमे अधिकांश लोकक जे बेवहार छै जँ तेकरा अङ्गेजै छी तँ कोनौं समाजमे अँटावेश भइये जाएत। तहिना अपनाकेँ नवीननाथ सेहो अङ्गेज लेलैन। जइसँ एते गुण तँ बेवहारमे आबिये गेल छैन जे जहिना गंजी-लूँगी वा सोझे[iii] धोती पहिरने कन्हापर गमछा नेने लोक अपन गामक हाटक काज करै छैथ तहिना नवीननाथ धोती पहिरैक आदती तँ नहि, मुदा लूँगी, चट्टी आ गंजी पहिरने कान्हपर गमछा नेने हाटपर पहुँचला।
विचारपुरक जहिना नमहर हाट तहिना लोकक भीड़ो। तरकारी किनैक विचारसँ नवीननाथ हाटपर एला। सभ तरकारीक फुट-फुट पतियानी लगल दोकानक बजार देखलैन। ओना, गमैया हाटमे एहनो होइते अछि जे एकोटा बेचनिहार अनेको रंगक वस्तु बेचै छैथ। एहेन छोट हाटमे होइए। नमहर हाटमे वस्तुक संख्या समटा एकठाम आबि जाइए। तइले ईहो जरूरी अछिए जे ओकर वस्तुक निकास बेसी नहि तँ ओते हेबै करै छै जे जेते ओकर मेहनताना हेबा चाही। सभ तरहक तरकारीक पतियानी फुट-फुट।
कातेसँ जखन नवीननाथ हिया कऽ देखलैन तँ बैगनक हाट नम्हरो आ बेसी भरिगरो बुझि पड़लैन। सहैट कऽ नवीननाथ बैगनक पतियानी लगल बजार दिस बढ़ला। रंग-रंगक बैगनसँ सजल बजार। जहिना गोलकीसँ गोलका भाटिन धरि अनेको रंगमे, तहिना नमकी सुतपुतियासँ लऽ कऽ हाइ ब्रिडक दू-हत्था बैगन धरि। अनेको रंग, अनेको मोटाइमे बैगन सजल छेलैहे। आगू बढ़ि नवीननाथ अपने सन उमरदारक दोकानपर पहुँच ठाढ़ भेला। अपने सन दोकानदारक दोकानपर जाइक कारण नवीननाथक ई छल जे नव-तुरियाक बेवहार हिनका पसिन नइ छैन। ऐगला गहिंकीक लेन-देन देख बुझि गेल छला जे की दरमे बैगन चलैए।
गहिंकीकेँ पतराइते माने पहिलुका गहिंकीकेँ समान लइते नवीननाथ अगुएला। दोकानदार अपन वस्तुक परिचय दैत बजला-
भाय, धनखेतीक बैगन छी, निरोग बैगन अछि। देखै छिऐ केतौ भूर-भार छइ?”
आइ पहिल दिन नवीननाथ धनखेतीक बैगनक नाओं सुनलैन, तँए बुझैक जिज्ञासा सेहो जगलैन। ओना, अपन जिनगी दिस आ गामक हाटक दृश्यकेँ मिलौलैन तँ बुझि पड़लैन जे जेते बैगनक पीठपर हमर नाम लिखल छल तेते भरिसक नइ पुरल अछि। कहब जे बैगनक पीठपर नाम की भेल? तँ जहिना नेपालीजी अन्नक पीठपर लिखलैन तेकर कारणो अछिए जे पाइबलाक लेल जहिना महग तरकारी नीक भेल तहिना कम पाइबलाक लेल सस्त तरकारी नीक भेल। ई तँ जेबीपर निर्भर करैए। तैसंग ईहो तँ अछिए जे इलाका-इलाकाक अपन खान-पान सेहो अछिए। तँए अमेरिकामे रहने अमेरिकन बनि अमेरिकी भोजन करए पड़ै छइ। तैठाम तँ अपन बाप-दादाक मिथिलाक अदौड़ी, बड़ी, सकरौड़ी, तिसियौड़ी, बियौड़ी, फुलौड़ी-पकौड़ी तँ बिसरै पड़त किने।
बंगलोरमे रहने नवीननाथक भोजन बदैल गेल छेलैन तँए जेतेक बैगनक पीठपर नाओं लिखल छेलैन से नइ पुरलैन। अपन दोख जहिना मने-मन रखि दोसरकेँ नहि कहए चाहै छी तहिना नवीननाथ सेहो अपन दोखकेँ बिना दुख केने मनेमे रखि नेने छला।
ओना, आन दोकानसँ कम गहिंकियो आ दोकानमे समानो कम अछिए। अपन तीन कट्ठा बैगन खेतक पाड़क हिसाबसँ समानो कम हेबे करत। किए तँ छह-सात दिनपर बैगन तोड़ैक पाड़ होइए तइ हिसाबे कम्मे खेतक बैगन भेल। रोहित सेहो संतुष्ट भऽ गेल छैथ जे चलितो-चलितो बिका जाएत। तँए नवीननाथसँ बैगनक विषयमे गपो करैक विचार भेलैन तँ जेबीसँ तमाकुलक चुनौटी निकालि नवीननाथकेँ दोहरबैत पुछबो केलखिन-
भाय, तमाकुलो खाइ छी?”
नवीननाथक मनमे बिहाड़ि जकाँ उठि गेल छेलैन जे एकटा साधारण किसानक मुँहक बात..! तँए अपन मनकेँ स्वच्छ करैक खियालसँ बजला-
गहिंकियो पतराएले अछि ताबे बैसै छी। पहिने अहॉं तमाकुल खाउ। काजसँ मन भरिआएल हएत।
नवीननाथक बात रोहितकेँ कठाइन लगलैन, कठाइन ई लगलैन जे मुँह फोरि कहिऐन रेहल-खेहल काज केनिहारकेँ मन नइ भरिआइ छै!’ मुदा चुपे रहला। चुनौटीसँ चुन-तमाकुल निकालि जखने रोहित तरहत्थीपर औंठा देलैन कि मनमे तेजी एलैन। हाँइ-हाँइ तमाकुलपर औंठो रगड़ैत आ मने-मन आगूक गपो-सप्प करैले तैयार होइते रहैथ कि बिच्चेमे बजला-
अहाँ, अनठिया गहिंकी जकाँ बुझि पड़ै छी।
पढ़ल-लिखल नवीननाथ एते तँ बुझिते छला जे गप-सप्पक क्रममे अपन बिनु बुझल बात बाजि देब नीक नहि। किए तँ, धारक पानि जकाँ बजनिहारक धार सेहो फुटिते अछि। ओही क्रममे जवाब आबि जाएत, बुझैले मुँह छोहैनो ने करए पड़त आ बिनु मंगने भेटियो जाएत। नवीननाथ बजला-
हँ! बंगलोरमे सौंसे जिनगी बीत गेल, गामक सभ किछु बिसैर गेलौं। तँए अनठिया भइये गेलौं।
तैबीच रोहित तमाकुल मुँहमे दैत ओकर रससँ अपन विचारक रस मिला नेने छला। बजला-
मिथिलाक सभ गुण जग-जाहिर अछि जे सभ तरहेँ मिथिला सम्पन्न अछि, मुदा..?”
नवीननाथक जिज्ञासा बढ़बैले रोहित बजला आकि अपन मिथिलाक अनुभव बँटैले बजला से रोहित जानैथ। मुदा बजला एतबे जे लोक एकरबा बानर जकाँ एकरबा किसान हमरो कहै छैथ।
प्रश्न-पर-प्रश्नक बर्खासँ नवीननाथ ठकठका कऽ ठमैक गेला। ठमकैत बजला-
से की?”
रोहित बजला-
बैगन बरहमसिया तरकारी छी। जेकरा छहमसिया बना उपजौनिहार अपना ऊपरमे ओढ़ि लेलैन। गाममे जे ऊँचगर जमीन अछि, जेकरा भिट्ठा कहै छिऐ, मात्र ओहन खेतमे बरसाती बैगनक खेती होइत आबि रहल अछि। ओइ छहमसिया खेतीकेँ बरहमसिया हम बनौने छी। आसिनी धान काटि कातिकमे बैगन रोपै छी आ ओ पूससँ फड़ए लगैए।
नवीननाथ बजला- बाह..!”
रोहित बजला-
भाय, अहाँ सभ बुझनुक लोक समाजक भेलौं। एकार कहि हमर काजकेँ जे सभ छँटलक वएह सभ एकार कहि गामक खेतीकेँ सेहो रोकलक। चलू आब अपन काज करू। केते बैगन लेब?”
नवीननाथ- मन ते होइए जे सभटा लऽ ली, मुदा पत्नीकेँ विन्यास बनबैक लूरियो रहैन तखन ने। एक किलो दऽ दिअ।
q शब्द संख्या : 1051, तिथि : 28 फरवरी 2019


[i] छोट चिड़ै
[ii] नवेद्य
[iii] केबल

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