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Tuesday, February 20, 2018

सुभिमानी जिनगी (किन्नड़ विषयक कथा)


सुभिमानी जिनगी

भोरे सुति-उठि जीवन काका दरबज्जासँ गाम दिसक रस्ता जे फुटल अछि तैठाम अपन डेढ़हत्थी ठेंगासँ डाँरि खिंचैत बुदबुदेला-
परिवार आकि समाज एक दिस जुटि आगूमे किए ने ठाढ़ हुअए मुदा एको इंच पाछू अपन विचारसँ नइ घुसकब।
ओना, जहिना आन दिन तीन बजे भोरे नीन तोड़ि ओछाइनेपर पड़ल-पड़ल जीवन काका अपन बीतल दिनक हिसाब जोड़ि अबैबला दिनक मुँह-मिलानी करैत भरि दिनक हिसाब लगा लइ छला तहिना आइयो केलैन। मुदा आन दिनक हिसाब आ औझुका हिसाबमे किछु अन्तर आबि गेल छैन। माने ई जे आन दिन जीवन काका अपन भरि दिनक हिसाब परिवारक लीलामे रखै छला मुदा आइ से नइ केलैन। परिवारक संग समाजोक चलैक रस्तापर ठाढ़ भऽ अपन विचारक लकीर खिंचलैन। ओना, जीवन कक्काक अपन विचार ई छैन जे जहिना सभ दिन नव सुर्जक उदय होइए तहिना अपनो जिनगीमे सभ दिन हुअए। जखने दूध नवनीत[1] बनि घृत बनैक दिशामे ऐ आशाक संग बढ़ैए जे अपनो जिनगी घीवाह बनत आ जखन जिनगी घीवाह बनत तखने ने ओकर सार्थकता हएत।
अपन संकल्पक विचार मनमे रोपि जीवन काका डेढ़ियापर डेढ़हत्थी ठेंगासँ डाँरि खींचि दरबज्जाक चौकीपर आबि बैसला। बैसते व्रती जकाँ अपन व्रत मनमे रोपि दृढ़ हुअ लगला जे दुनियाँ किए ने एकभाग भऽ जाए मुदा पर्वतेश्वर[2] जकाँ एक्को डेग पाछू नइ घुसकब। पाछू नइ घुसकैक दृढ़ विचार मनमे रोपाइते जीवन कक्काक नजैर अपन तेसर सन्तान- श्यामापर गेलैन। श्यामा..! श्यामा मनमे अबिते विचड़लैन-श्यामो तँ हमरे सन्तान छी..!’
श्यामाक प्रति विचार मनमे जगिते जीवन कक्काक देहमे जेना उमंगक फुनफुनी जगलैन। फुनफुनी जगिते देह कँप-कँपा उठलैन जइसँ एक दिस दुनियाँ[3]क भय आगूमे ठाढ़ भेलैन तँ दोसर दिस अपन दृढ़ संकल्प सेहो समकक्ष भऽ जिनगीक सोझमे ठाढ़ भेलैन।
जीवन कक्काक तेसर सन्तान श्यामाक लिंग परिचय अखन धरि स्पष्ट नहि भेल छल। बालपनक जिनगी रहने श्यामाकेँ ने खाइ-पीबैमे कोनो तरहक असोकर्ज आ ने मल-मूत्र तियाग करैमे। बच्चा सबहक संग खेलबो करैए आ पढ़ैले स्कूलो जाइते अछि। ओना, रंग-रंगक समाचार अखबार-रेडियोमे अबिते रहैए जे अमुख डॉक्टर ऐठाम लड़का-लड़की भऽ गेल आ लड़की लड़का...।
दस बर्ख बीतला पछाइत आने बाल-बच्चा जकाँ श्यामाक शरीरमे सेहो किशोरी-रूप झलकी दिअ लगल। शरीरो फौदाए लगलै आ मनक झुकाव सेहो लड़की सभ दिस झुकए लगलै। ऐठाम एकटा प्रश्न अछि, प्रश्न अछि जे बच्चा बाल-बुधि धरि लड़का-लड़की संग-संग संगी जकाँ खेलबो-धुपबो करैए आ खाइतो-पीबितो अछिए। ओकरा सभमे लिंग-भेदक कोनो आशंका मनमे रहिते ने छइ। तत्पश्चात लड़काक झुकाव लड़का दिस आ लड़कीक झुकाव लड़की दिस हुअ लगै छइ। ई अवस्था लड़का-लड़कीक प्रेम-मिलनक अवस्थासँ पूर्वक छी। ओना, श्यामाक शरीर-गठनमे नवपन आएल मुदा आनसँ भिन्न रूपमे। अखनो ई स्पष्ट नहि भेल जे श्यामा लड़का छी आकि लड़की। ओना, श्यामाक अपन उमेरक आकर्षण लड़की दिस बढ़ि रहल छल जइसँ केश बढ़ाएब, कनियाँ-पुतराक खेल-खेलाएब इत्यादि-इत्यादि श्यामाक मनक संग बेवहारमे आबए लगलै। अखन धरि परिवारोक नजैरमे श्यामाक असल रूप आ गामो-समाजक नजैरमे झँपाएल छल।
आइ आठ दिनसँ जीवन काकाकेँ हुनक पत्नियोँ आ दुनू बेटो मुँह फोरि कऽ तँ नहि, मुदा कात-करोटसँ सुना-सुना बाजए लगलैन-
श्यामा हमरा परिवारक नहि, हिजरा परिवारक भेल..!’
मंगली काकीमाने श्यामाक माए–जखन असगरमे बैस विचारै छेली तँ देखै छेली जे जहिना जेठ दुनू सन्तानकेँ पेटमे नअ मास सेवलौं तहिना ने श्यामाकेँ सेहो सेवने छी। मुदा..!, ऐमे हमर कोन दोख अछि..? सभ लीला तँ भगवानक छिऐन..!
मुदा लगले जखन बेटा-पुतोहु वा सर-समाज श्यामाक प्रति कहैन जे ई अपना सबहक सन्तान नहि, तखन मंगली काकी सेहो ओही विचारमे भँसिया समाज दिस तकैत श्यामाकेँ अपन नहि बुझि तियाग करैले तैयार भऽ जाइथ..! माइक दिल’, माइक दिल तँ दिन-राति अनघोल होइते अछि, मुदा ओकर बेवहारिक पक्ष की अछि से के देखत..!
श्यामाक प्रति अखन धरि समाजक अधिकांश लोकक यएह धारणा बनल रहल छल जे श्यामा लड़का छी। ओना दुनू परानी जीवन काकाक मनमे बच्चेसँ शंका उठलैन जइसँ केतेको डॉक्टर आ केतेको ओझा-गुनीसँ श्यामाकेँ देखा-सुना चुकल छला। ओझा-गुनी तँ घरक देवताक दोख लगा अपन-अपन पल्ला झाड़लक। मुदा डॉक्टरी जाँच-परताल करौला पछाइत अपन हारि कबुल कऽ डॉक्टर सभ जीवन काकाकेँ कहि देलकैन जे हमरा साधसँ बाहर अछि मुदा अहाँक तँ सन्तान छी, अहाँकेँ ते केतौ भगैक रस्ता नहि...।
डॉक्टरी विचारक पछाइत जीवन काका लड़का-लड़कीकेँ मनसँ हटा सन्तानक सीमापर ठाढ़ भऽ गेला। मनमे कखनो काल किन्नर परिवारक रूप-रेखा अबैन। किन्नर परिवारक रूप-रेखा देख मनक संग देहो काँपि उठैन जे ओ परिवार तँ समाजक हँसियापर अछि! अपना परिवारमे बाप-पुरखाक देल बीस बीघा जमीन अछि, किसान परिवार छी, किसानी जीवन अछि। जेकर धर्म रहलै जे अपन परिवारक भरण-पोषणक कोन बात जे दरबज्जापर आएल आनो-आन खगलोकेँ आ बाटो-बटोहीकेँ खाइ-पीबैक परहेज नहि अछि। धार्मिक वृत्ति समाजक परिवारमे रहबे कएल अछि जे जिनका जएह विभव छैन ओ ओहीमे परिवारक सभ मीलि-बैस खाइ-पीबी। व्यास बाबाक समाज तँ आइ अछि नहि, जे बुझत- लूटि लाउ, कुटि खाउ, प्रात भने फेर जाउ...।
अप्पन आइ धरिक परिवारक जिनगीक धाराकेँ देख जीवन कक्काक मनमे भोरेसँ जहिना दृढ़ता उठलैन जे अपन आँखिक सोझमे अपन सन्तानकेँ भिखमंगा परिवारमे किन्नौं नइ जाए देब, चाहे ऐ खातिर जे हुअए। परिवारे आकि समाजे की कहत। की समाज ई नइ जनैए जे श्यामा हमर तेसर सन्तान छी..?
दरबज्जाक ओसारक चौकीपर जीवन काकाकेँ अकलवेरा[4]मे उमंगित बैसल देख मंगली काकीक मनमे ओहिना हुमरलैन जहिना जेठ मासक रौदक जरल मेघमे हनहनाइत तूफानी दौड़मे करिया मेघ ऊपर चढ़ए लगैए जइसँ धरतियोपर हवा-बिहाड़ि, पानि-पाथर अबैक सम्भावना बनियेँ जाइए तहिना भेलैन। मुदा लगले मन थीर भऽ गेलैन। तैबीच दरबज्जापर पहुँच मंगली काकी जीवन काकाकेँ पुछलकैन-
चाहे पीब आकि पानियोँ पीब?”
ओना आजुक परिवेशमे एहेन विचार मनुखाह बनि मरखाह बनि सकैए। किएक तँ पानि नहि, पीबैक माने किछु खेलाक पछाइत पानि पीबसँ अछि। मुदा से नहि, कृषक बीच अखनो एहेन चलैन अछि जे सभसँ पहिने मुँह-कान धोनौं वा बिनु धोनौं खाली पानि पीबाक चलैन अछि। बिनु मुँह धोनेक माने भेल बाइसे मुहेँ बसिया पानि पीब। तँए हुनकर खतियान एहेन बनि गेल छैन जे भोरमे सभसँ पहिने मन भरि पानि पीबी। पछाइत चाह-पान चलत। तैठाम चाहक संग पानिक चलैन किए रहत? मुदा से नहि, मंगली काकीक मन जीवन कक्काक रूप देख थरथरा गेल रहैन तँए बाजल छेली।
जीवन काका मंगली काकी दिस टकटक देखए लगला जे यएह माए अपन कोखिक सन्तानकेँ भिखमंगाक सन्तान बनबए चाहि रहली अछि। मुदा मनक विचारकेँ मनेमे अरोपि बजला-
चाहो पीब आ किछु गपो-सप्प करब। तँए अपनो चाह एतै नेने आउ। संगे-संग पीबो करब आ...।
ओना संगे-संग चाह पीबैक साहस मंगली काकीक मनमे घटि रहल छेलैन। तँए बहन्ना बनबैत पहिने हिनकेटा-ले गिलासमे चाह नेने पहुँचली।
पतिक हाथमे गिलास पकड़ा मंगली काकी अपने चोटे घुमि आँगन आबि गेली। आँगन आबि चाह तँ पीबए लगली मुदा मन थरथराइते रहैन। मन थरथराइक कारण रहैन दुनू गोरेक बीचक ने परिवार छी, तखन चाहमे किए..?
मंगली काकी घोंटे-घोंटे चाहो पीबैथ आ मनकेँ घटे-घट सकतेबो करैथ। चाह पीला पछाइत दरबज्जापर आबि जीवन कक्काक आगूमे ठाढ़ भेली। ओना, तैबीच काकीक मनमे ईहो जगि चुकल छेलैन जे जहिना पति छैथ तहिना ने बेटो अछि। जहिना पतिकेँ खुश राखब अप्पन दायित्व छी तहिना ने बेटोकेँ राखए पड़त। तँए निर्भिक रूपमे मंगली काकी जीवन कक्काक आगूमे ठाढ़ भेली।
पत्नीकेँ आगूमे ठाढ़ देख जीवन कक्काक मन चकभौर लिअ लगलैन। जहिना धारक मोनिक चकभौरमे कियो-कियो डुमबो करैए, तहिना अकासमे गीध चकभौर लैत चारू दिशा देखबो करैए आ पाहि लगा पहियेबो करिते अछि। जीवन कक्काक मनमे पहिल दिशाक चकभौरमे जगलैन जे पति-पत्नीक बीचक ने परिवारो छी आ सन्तानो छी। मुदा तँए सोभावमे अन्तर नहि अछि सेहो केना मानल जाएत। पुरुखक सोभाव होइए जे जँ अपने वा परिवारक सन्तानेक आगू अबैत बाधा[5]मे सन्तानकेँ संरक्षण दैत अपने आगूमे ठाढ़ भऽ सामना करब, भलेँ परिणाम जेहेन होइ, मुदा पत्नीक की ई सोभाव नइ अछि जे आक्रमिक आगूमे ठाढ़ भऽ सन्तानकेँ दुनू हाथे दुनू हाथ पकैड़ मारि खुआ दइए। ओना, ऐठाम एहेन प्रश्न अछिए जे संरक्षणक रूप केहेन अछि?
फेर दोसर चकभौर जीवन कक्काक मनमे उठलैन। उठलैन ई जे श्यामाक जहिना पिता भेलिऐ तहिना ने पत्नियोँ माए भेलखिन। तैठाम अप्पन चाह की अछि आ पत्नीक चाह की छैन? केकरो बात सुनला पछाइत ओइपर नीक जकाँ विचारबो तँ जरूरी अछिए। विचारक पछाइत हँ-नइक ने निर्णय करब। आकि कियो बाजल जे कौआ कान नेने जाइए आ ओकरा सुनि अपन कान बिनु देखनहि जँ कौआक पाछू-पाछू दौगब, ई केहेन हएत..?
दू भौक टपैत-टपैत जीवन कक्काक मन कनी थमलैन। ओना, ने जीवन काका किछु बजै छला आ ने मंगलीए काकी किछु बजै छेली। मुदा भीतरे-भीतर दुनू बेकतीक मनमे समुद्री तूफान चलिये रहल छेलैन। पत्नीक अलिसाएल-मलिसाएल चेहराक रंग देख जीवन कक्काक मन सेहो पसीज रहल छेलैन। जे एकाएक मन बिहुसि उठलैन। जीवन काका बजला-
एकटा पनचैती अहाँसँ कराएब अछि, घरक बात छी तँए पहिने घरेक लोक ने ओइपर विचार करत। जँ घरमे नइ फरिछाएत तखन ने समाज आकि संसार देखब।
पतिक विचार सुनि मंगली काकीक मनमे एकाएक चमक एलैन। चमक अबिते मनमे उठलैन जे परिवारेक विषयमे ने पतियो विचार करए कहि रहल छैथ। जखने परिवारमे पति-पत्नी मिलि, वैचारिक एकरूपता आनि परिवार चलौत तखने ने ओ परिवार अपना बले ठाढ़ हएत। जइसँ जिनगीक धारा एकबट्ट होइत आगू बढ़ैत चलत। ओना, तैबीच परिस्थितिवश तोड़-जोड़ सेहो चलिते रहत। परिस्थितिक अर्थ भेल- परि+स्थिति’, तँए, जखने परक स्थिति आगूमे औत तखने कनी-मनी डोल-पात हेबे करत...।
मंगली काकी बजली-
बाजू, की कहै छी?”
मंगली काकीक विचार सुनि जीवन काका समधानल प्रश्न रखैत बजला-
अपना दुनू गोरेक बीच केते सन्तान अछि?”
मंगली काकी बजली-
तीन।
बजैक क्रममे तँ मंगली काकी बाजि गेली मुदा लगले मन बेटाक संग समाज दिस बढ़ि गेने तत-मत करए लगली।
पत्नीक ततमती देख जीवन काका बुझि गेला जे पछुआ दाबि रहल छैन। ठिकिया कऽ जीवन काका दोसर प्रश्न रखला-
एतेटा दुनियाँमे अहाँकेँ सभसँ लग के अछि?”
अतीतोमे जे अतीत अछि। जेकर जेहेन परतीत तेकर तेहने ने अतीतो। किए कियो अपन छोड़ि अनका-ले मरैए आ किए कियो अनका छोड़ि अपना-ले मरैए..? धरती-अकासक बीचक क्षितिजमे जहिना केहनो-केहनो उड़न-चिड़ैया फँसि जाइए तहिना मंगली काकीक मन एकाएक फँसि गेलैन। दुनियाँमे सभसँ लग के? अतीतमे वौआइत मंगली काकीकेँ बिआहक अपन मरबा मन पड़ि गेलैन। मन पड़लैन जे ओही मरबापर ने माए-बापक संग समाजो पतिक हाथ पकड़ा कहलैन जे दुनियाँ मेटि जाए मुदा पतिक संग नइ छोड़ब...।
मंगली काकी बजली-
बुझलो बात अनठा किए बजै छी। हमरा बकलेल-ढहलेल बुझै छी?”
मंगली काकीक चपचपाएल बोल सुनि अपन चपचपी मिलबैत जीवन काका बजला-
अहाँ केना बुझि गेलिऐ जे हम अनठा कऽ बजलौं हेन। जे कहैक अछि से पहिने चेतौनी दैत चेता देब।
जीवन कक्काक वाणीमे जेहेन ओज छेलैन तेहने मनो ओजस्वी छेलैन्हे जइसँ मंगली काकीक मनमे भय सेहो जगलैन। भयकेँ जगिते ज्वर-बुखार नपैबला थर्मामीटरक पारा जहिना गरमी पेब चढ़ैए आ ठण्ढी पेब उतैरतो अछि तहिना मंगली काकीकेँ भेलैन। बजली-
अहाँसँ हम कोनो हटल छी। जे कहै छी, जेना कहै छी तहिना ने सुनबो करै छी आ करबो करै छी।
पत्नीक विचार सुनि जीवन कक्काक मनमे उठलैन जे आइ जे समस्या परिवारक सोझामे उपस्थित भऽ गेल अछि ओ नान्हिटा नहि अछि। पत्नीसँ परिवार होइत समाज धरिक बीचक समस्या छी, तँए नान्हि-नान्हिटा विचारमे ओझराएब उचित नहि...।
जीवन काका बजला-
सुनबामे आएल अछि जे अहूँ श्यामाकेँ अपन सन्तान नहि बुझि तियाग करैले तैयार छी?”
पतिक बात सुनि मंगली काकी सहैम गेली। करेजक संग विचारो डोलायमान हुअ लगलैन। की बाजब आ की नइ बाजब तैबीच मंगली काकीक विचार ओझराए लगलैन। किछु बजैक साहसे ने भऽ रहल छेलैन।
मंगली काकीकेँ चुपी साधल देख जीवन काका बजला-
चुप रहने काज चलत! मुँह खोलि बाजू जे अहाँ की चाहै छी। कियो अपने विचारक ने मालिक अछि।
थरथराइत मने मंगली काकी बजली-
अपन बेटो आ समाजोक लोक श्यामाकेँ अपन नहि बुझि दोसराक कहि रहल अछि! तैबीच..?”
पत्नीक झूकैत विचार सुनि जीवन काका दृढ़ भऽ बजला-
चाहे ओ बेटा हुअए वा समाज, कान खोलि कऽ सभ सुनि लिअ जे श्यामा हमर सन्तान छी, सन्तान बनि रहत। ई हमहूँ बुझै छिऐ जे श्यामा नि:सन्तान रहत, मुदा तँए ओ मनुख नहि छी आ मनुखक जिनगी नहि जीब सकैए, हम तेकरा मानैले तैयार नहि छी।
पतिक दृढ़ विचार सुनि मंगली काकीक मनमे सेहो दृढ़ता आबए लगलैन, एकाएक अपन कोखिक संतप्त श्यामापर मन एकाग्र हुअ लगलैन। एकाग्र होइते मनमे उठलैन- श्यामेटा एहेन सन्तान थोड़े छी, दुनियाँमे एहेन बहुत लोक अछि जेकरा प्रकृत्ति प्रकोपसँ सन्तानोत्पतिक शक्ति नइ छइ। तँए ओकरा परिवार वा समाजसँ वहिष्कृत करब कहाँ धरि उचित हएत...।
तैबीच जीवन काका बजला-
पहिने अहाँ ई कहू जे अहाँक मनमे की अछि। की श्यामाकेँ अपन सन्तान नइ बुझि छोड़ैले तैयार छी?”
पतिक दृढ़ विचार पेब बिना किछु आगू-पाछू तकने मंगली काकी बजली-
श्यामा की कोनो हमरेटा सन्तान छी आ अहाँक नहि छी।
ढलानपर सँ टघरैत पानिक रोकाबतेँ देख जीवनानुभवी लोक जहिना छील-छील कऽ चिक्कन बना-बना एकबट्ट करैत छिड़ियाएल पानिकेँ धरिया धाराक रूपमे आगू बढ़बै छैथ तहिना जीवन काका मंगली काकीक छिड़ियाएल विचारकेँ समेट बजला-
पूबक सूर्ज पच्छिम किए ने उगइ, जमीनक पानि अकास सिर किए ने चढ़इ मुदा श्यामाकेँ अपन सन्तान छोड़ि ने अनकर बुझब आ ने अनका हाथ जाए देब।
विस्मित होइत मंगली काकी बजली-
लोक की कहत..!”
मंगली काकीक विचार सुनि जीवन कक्काक अन्तरात्मा जेना ओहन बिजलोका जकाँ चमकलैन जेहेनमे ठनका खसैए। बजला-
लोक की कहत! लोक पहिने अपन ठेकान करह। जेकरा अपन ठेकान नइ से अनकर ठनका रोकि सकैए आकि अपनाकेँ बँचा सकैए।
पतिक विचार सुनि मंगली काकी सिरसिराए लगली। एकाएक देहमे सिरसिराएल कँपन हुअ लगलैन। कँप-कँपाइत पुछलखिन-
की लोकक ठेकान?”
पत्नीक जलियाएल विचार सुनि जीवन कक्काक मनमे कुवाथ नहि भेलैन। तेकर कारण अछि जे जीवन कक्काक विचार सागरमे लहैर जकाँ उठि गेल छेलैन। लहराइत विचारमे आबि रहल छेलैन जे जँ मनुख छोट-सँ-छोट आ पैघ-सँ-पैघ अपन जिनगीक रस्ताक बाधाकेँ अपना आँखिये ठिकिया मनसँ हटबए चाहत तँ ओ जरूर हटा जिनगीकेँ बाधामुक्त कऽ सकैए। जखने जिनगी बाधामुक्त भेल तखने ने ओ जिनगी घोड़ाक चालिमे सरपट दौड़ लगौत...।
जीवन काका बजला-
जे समस्या अपना परिवारमे उपस्थित भऽ गेल अछि ओ खाली अपने परिवार-टा मे भेल आकि आइये भेल अछि आ पहिने नइ भेल हएत से केना बुझै छिऐ? सभ दिन होइत आबि रहल अछि आ आगूओ होइत रहत। महादेवकेँ सेहो अर्द्धनारीश्वर कहल जाइ छैन। जखने अर्द्धनारीश्वर तखने ने सन्तान विहीन! कार्तिक आ गणेश तँ तखन भेलैन जखन महादेव आ पार्वती दुनू दू छला। मुदा जखन दुनू सटि एक भेला तखन कोनो सन्तान नइ ने भेलैन। तँए की हुनका देववंशसँ कियो हटा देलकैन आकि हटा देतैन?”
ओना, मंगली काकीकेँ महादेव-पार्वतीक ओ कथा (माने अर्द्धनारीश्वरबला कथा सुनल रहैन मुदा एना भऽ कऽ नहि, ई नइ बुझल रहैन जे अर्द्धनारीश्वर की। तँए, धार-कातक पँकियाएल चपचपीमे जहिना चँङ्गुराएल चिड़ौयो आ पैरबला जानवरक संग लोको चपि कऽ गड़ि जाइए, तहिना मंगली काकी सेहो चपि कऽ गड़ि मुँहपर हाथ लैत बजली-
ऐँ.अ..अ..!”
जीवन काकाकेँ जेना सहगर खेतक लभगर हाल भेटलैन तहिना बजला-
ऐँ-टेँ नइ करू! वएह शिवजी महादेव छैथ जे देखलखिन जे जे कृष्णजी महिला संगठनक नेता छैथ ओ महिला छोड़ि पुरुखक प्रवेश रोकने छैथ, तखन ओ की केलैन से बुझल अछि?”
विचारक बोनमे हेराएल-भोथियाएल बेटोही जकाँ मंगली काकी बजली-
नइ! अहूँ ने तँ कहियो कहने छेलौं।
जीवन काका बजला-
कोनो कि एकेटा गप अछि जे ओ छुटि गेल ते बड़ जुलुम भऽ गेल। जखने जागी तखने परात..!”
उत्सुकाएल मंगली काकी बजली-
पहिने शिवशंकर दानीक कथा कहि दिअ।
पत्नीक चपचपी देख चपचपाइत जीवन काका बजला-
शिवसँ शिबानी बनि कृष्णजीक महिला संगठनमे शामिल भऽ गेला..!”
मंगली काकीकेँ जेना एकाएक भक् खुजलैन तहिना बजली-
एहेन बात जे अहाँ पेटमे रखने छेलौं आ कहियो एतबो सिनेह नइ भेल जे हमरो कहितौं..!”
पत्नीक झुझुआइत मनकेँ जीवन काका पकैड़ बिच्चेमे बजला-
पेटमे कि एतबे अछि। अच्छा जखन अहाँ पेटक बात लिअ चाहै छी ते सुनू। ई तँ शिवशंकर महादेवक विषयमे कहलौं। आब सुनू महाभारतक विषय।
महाभारतक नाओं मंगली काकी सुनने जरूर छैथ आ द्रौपदीक चिरहरणक सिनेमो देखने छैथ। तँए, महाभारतक नओं सुनि आरो जिज्ञासा बढ़ि गेलैन। बजली-
सुनाइये दिअ। जिनगीक कोनो ठेकान अछि, जँ मन लगले चलि जाएत तखन तँ अनेरे ने भूत बनि लपकबै।
मुस्की दैत जीवन काका बजला-
जखन महाभारत होइत रहै ने, तइमे एकटा वीर रहै शिखंडी, ओहो अपने श्यामा जकाँ छल। ओ की केलकै से बुझल अछि?”
मुड़ी डोलबैत मंगली काकी बजली-
नइ..!”
जीवन काका बजला-
कृपाचार्योकेँ आ कृतवर्मोकेँ छेरा-छेरा भरौलक!”
मंगली काकीक मनमे जेना आत्मबल फुलाए लगलैन तहिना बिहुसैत बजली-
अरे वा..!”
जीवन काका मंगली काकीक मनमे पसि बजला-
ऐँ., एतबेमे हदिआइ छी! भगवान राम जखन बोन जाए लगला तँ अन्तिम विदाइ अयोध्यावासी लैत-दैत पुरुख-नारी कहि तँ सभकेँ विदा कऽ देलखिन आ अपने दच्छिन मुहेँक रस्ता धेलैन, आ बीचमे किछु गोरे ओहिना ठाढ़े रहि गेल, ओ की केलक से बुझल अछि?”
मंगली काकी बजली-
नइ..!”
जीवन काका बजला-
ओ सभ–जे ठाढ़ छल से–के सभ छल? जे पुरुख-नारीक बीचक अछि। जेकरा शखा-सन्तान नइ हएत। जखन रामचन्द्रजी, लक्ष्मण आ सीताक संग घुमि कऽ अयोध्याक आड़िपर पहुँचला तखन वएह सभ दुनू भाँइक गट्टा पकैड़ कहलकैन जे अहाँ हमरा किए ने विदाइ देलौं? जइ आशामे अहीं जकाँ चौदह बर्ख हमहूँ सभ टपला खेलौं?”
मंगली काकीक मनो आ शरीरो जेना शान्त भऽ गेलैन। बजली-
जे अहाँ करबै सएह ने हमहूँ करब।
रणभूमिक संगी पेब जीवन काका बजला-
श्यामा हमर सन्तान छी। अपना जीबैत ओकरा भीख माँगैत देखब, की ओहन लाजक विचार लोक अपने नइ करत। दुनियाँ एक दिस भऽ जाए, मुदा...। जाबे धरि श्यामा पढ़ए चाहत, समांग बुझि सहयोग देबइ। जहिया ओ पढ़ाइ छोड़त तहिया अपना आँखिक सोझमे ओकरा मनोनुकूल जीबैक साधन बना देबइ। अपना पैरपर ठाढ़ कऽ समाजक ओहन मनुख बना देबै जे अपन श्रमसँ अपन सुभिमानी जिनगी बना जीबत आ ओकर रक्षा करैत रहत।
¦
शब्द संख्या : 2767, तिथि : 28 जनवरी 2018



[1] मक्खन
[2] चन्द्रगुप्त नाटक- जयशंकर प्रसाद
[3] परिवार-समाजक
[4] अकलबेराक माने ऐठाम भेल, भिनसुरका समैयक जे क्रिया-कलाप अछि, तइसँ भिन्न
[5] सन्ताप

































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